आरंभ Aarambha सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

जनवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

सुरता चंदैनी गोंदा - 1

दाऊ रामचंद्र देशमुख के चंदैनी-गोंदा की कथावस्तु उद्घोषक -  मूल कार्यक्रम प्रारंभ करने के पहले हम यह बतला देना आवश्यक समझते हैं कि चंदैनी गोंदा कोई नाटक गम्मत या तमाशा नहीं है। चंदैनी गोंदा एक दर्शन है, एक विचार है जो कि एक औसत भारतीय किसान के इर्द-गिर्द घूमता है। यह हमारी मान्यता है कि छत्तीसगढ़ का कोई भी औसत किसान अपने सारे परिवेश में भारत के किसी भी शोषित, पीड़ित और उपेक्षित क्षेत्र का किसान हो सकता है। इस दृष्टिकोण से चंदैनी गोंदा प्रतीकात्मक ढंग से एक भारतीय किसान के जीवन के चित्रण का प्रयास है। कृषक जीवन को चंदैनी गोंदा में प्रस्तुत करने के लिए हमने प्रधानतः छत्तीसगढ़ी लोक गीतों और कवियों की रचनाओं का आश्रय लिया है जो धरती और धरतीपुत्र से संबंधित हैं। इन गीतों को किसी कथानक के सूत्र में न गूँथते हुए हमने इसे ऐसी क्रमबद्धता प्रदान कर दी है कि यही क्रमबद्धता आपको कथानक का आनंद देने लगती है। साथ ही छत्तीसगढ़ की अंतर-वेदना को भी साकार करती है और अंत में एक व्यथा, कथा का रूप ले लेती है । गीतों को प्रतिभाशाली ढंग से प्रस्तुत करने के लिए हमने दृश्यों, प्रतीकों, संवादों आदि का आश्

चंदैनी-गोंदा की स्मृतियाँ

एक बार फिर चंदैनी-गोंदा की स्मृतियाँ ताजी हो गई और कुछ लिखने की इच्छा जाग गई. सत्तर के दशक की शुरुवात में ग्राम- बघेरा, दुर्ग के दाऊ राम चन्द्र देशमुख ने ३६ गढ़ के 63 कलाकारों को लेकर "चंदैनी-गोंदा" की स्थापना की. "चंदैनी-गोंदा" किसान के सम्पूर्ण जीवन की गीतमय गाथा है. किसान के जन्म लेने से लेकर मृत्यु होने तक के सारे दृश्यों को रंगमंच पर छत्तीसगढ़ी गीतों के माध्यम से इस तरह प्रस्तुत किया गया कि यह मंच एक इतिहास बन गया. चंदैनी गोंदा की प्रथम प्रस्तुति दाऊ रामचंद्र देशमुख के गृहग्राम बघेरा में हुई। दूसरी प्रस्तुति ग्राम पैरी (बालोद,जिला दुर्ग के पास) छत्तीसगढ़ के जन कवि स्व.कोदूराम "दलित" को समर्पित करते हुए दाऊ जी ने मंच पर उनकी धर्म-पत्नी को सम्मानित किया था. इस आयोजन की भव्यता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि चंदैना गोंदा देखने सुनने के लिए लगभग अस्सी हजार दर्शक ग्राम पैरी में उमड़ पड़े थे. इस प्रदर्शन के बाद जहाँ भी चंदैनी-गोंदा का आयोजन होता,आस -पास के सारे गाँव खाली हो जाया करते थे. सारी भीड़ चंदैनी-गोंदा के मंच के सामने रात भर मधुर गीतों औ