सिरपुर के संबंध में एक महत्‍वपूर्ण दस्‍तावेज



छत्‍तीसगढ़ में स्थित सिरपुर का महत्‍व अब सर्वविदित है। सोमवंशी शासकों के काल में जब यह क्षेत्र दक्षिण कौसल के नाम से जाना जाता था तब इसकी राजधानी सिरपुर ही थी जिसे श्रीपुर कहा जाता था। विद्धानों नें कहा है कि कला के शाश्वत नैतिक मूल्यों एवं मौलिक स्थापत्य शैली के साथ-साथ धार्मिक सौहार्द्र तथा आध्यात्मिक ज्ञान-विज्ञान के प्रकाश से आलोकित सिरपुर भारतीय कला के इतिहास में विशिष्ट कला तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है। इस नगरी का अब अस्तित्‍व ही शेष है, वर्तमान समय में इसके वैभव की परिकल्‍पना को साकार करने के लिए यहॉं यत्र तत्र पुरातात्विक अवशेष आज भी शेष हैं।

इन पुरातात्विक अवशेषों का विश्‍लेषण करते हुए सिरपुर पर शोध तो कितनों ही हुए हैं किन्‍तु पुस्‍तकाकार रूप में इस नगरी के वैभव को उकेरता हुआ कोई एकाग्र ग्रंथ अभी तक नहीं आ पाया था। ललित शर्मा की किताब ‘सिरपुर : एक सैलानी की नजर में’ जब हमारी नजर पड़ी तो प्रसन्‍नता हुई। यायावर ब्‍लॉगर ललित शर्मा देश के विभिन्‍न पुरातात्विक स्‍थलों के संबंध में कलम चलाते रहे हैं एवं उन्‍होंनें कई पुरातात्विक रहस्‍य उद्घाटित भी किया है। इस कारण उनकी इस किताब पर हमारी स्‍वाभाविक रूप से विश्‍वसनीयता बढ़ी है।

किताब सहज व सरल भाषा में तथ्‍यात्‍मक रूप से लिखी गई है। विवरणों के साथ ही रंगीन चित्रों नें किताब के महत्‍व को और बढ़ाया है एवं सिरपुर को सजीव कर दिया है। किताब का आवरण बहुत आकर्षक है। सुप्रसिद्ध हिन्‍दी ब्‍लॉगर ललित शर्मा नें इस पुस्‍तक में सिरपुर का संपूर्ण पुरा ऐतिहासिक विवरण दिया है। इसके अलावा लेखक द्वारा वैभवशाली श्रीपुर को वहॉं उपलब्‍ध पुरातत्विक अवशेषों में खोजना और उन्‍हीं कालखण्‍डों में जाकर उस भव्‍य नगर का चित्र खींचना एक अद्भुत अनुभूति पैदा करता है।

पुरातात्विक शोध ग्रंथों की उबाउ पठनीयता के मुकाबिले किताब ‘सिरपुर : एक सैलानी की नजर में’ ना केवल पठनीय है बल्कि संग्रहणीय है। सिरपुर पर उनके इस किताब के मुख्‍य स्‍त्रोत प्रसिद्ध पुरातत्‍ववेत्‍ता अरूण कुमार शर्मा हैं इस कारण यह किताब सिरपुर के संबंध में एक महत्‍वपूर्ण दस्‍तावेज भी है। हमें विश्‍वास है इस सैलानी की नजर से अब सिरपुर को देखना और भी आसान हो जायेगा।

पुस्तक – सिरपुर; सैलानी की नज़र से
लेखक – ललित शर्मा
प्रकाशक – ईस्टर्न विन्ड, नागपुर
मूल्य – रुपये 375/- (सजिल्द)
कुल पृष्ठ – 99
रंगीन 10 पृष्ठ अतिरिक्त

संजीव तिवारी

छत्तीसगढ़ी भाषा की मिठास: गुरतुर छत्तीसगढ़ी

(संदर्भ – रायपुर साहित्य महोत्सव)

रायपुर साहित्य महोत्सव, छत्तीसगढ़ में अपने तरह का पहला आयोजन था जिसमें हिंदी और क्षेत्रीय भाषा छत्तीसगढी को विशेष रूप से फोकस किया गया था। यह हमारे प्रदेश के लिए गौरव की बात है कि, इस आयोजन के विभिन्न सत्रों में हमारी क्षेत्रीय भाषा और अस्मिता पर चर्चा हुई। पूरे कार्यक्रम में लगभग चौदह सत्रों में हमारी भाषा, साहित्य और संस्कृति पर बात हुई। हमारी भाषा, साहित्य और संस्कृति के महत्व को राष्ट्रीय स्तर पर रेखांकित करने के लिए यह कार्यक्रम एक बहुत बडा मंच बना।

इस आयोजन में सभी सत्रों के लिए लगभग एक घंटे का समय निर्धरित था। सीमित समय मे विषय विशेषज्ञ से मूल बातों को सामने लाना लगभग असंभव होता है किन्‍तु वैश्विक फलक पर इससे सम्मिलत विषयों पर विमर्श का उद्देश्य पूरा होता है। अनके सत्रों के मध्य ऐसे ही एक घंटे मे छत्तीसगढी भाषा की मधुरता पर 'गुरतुर छत्तीसगढ़ी' के नाम से एक सत्र था, जिसमें बतौर सूत्रधार मुझे विषय को सामने रखते हुए वक्ताओं से छत्तीसगढी भाषा में अंतर्निहित व्यंजकता, ध्वन्यात्मकता और शब्द शक्ति के साथ माधुर्य गुणों के संबंध में महत्वपूर्ण तथ्य सामने लाना था। मुझे सूत्र जोड़ते हुए सत्र के उद्देश्यों की ओर वार्ता को आगे बढ़ाना था।

वर्तमान समय में छत्‍तीसगढ़ी भाषा के संबंध में जो तथ्य एवं प्रश्न वैश्विक क्षितिज पर ज्वलंत रूप से उभरे हैं उस पर ध्यान रखते हुए ही हमें अपनी भाषा पर विमर्श करना आवश्यक था। हमारी मीठी बोली छत्तीसगढ़ी बोलने वालों के कण्ठों में वस्तुत: लोक जीवन के प्रेम, सौहार्द्र, पारस्परिकता, निश्छलता और सामाजिकता की मिठास बसी हुई है। भाषा का सौंदर्य और उसकी सृजनात्मकता उसके वाचिक स्वरूप और विलक्षण मौखिक अभिव्यक्तियों में निहित है। इधर वह लिखित-मुद्रित अभिव्यक्तियों और औपचारिक साहित्‍य में भी क्रमश: रूपांतरित हो रही है, यह स्वागतेय है। यह सत्य भी है कि, छत्तीसगढ़ का विकास इसी रास्ते से होगा किन्तु प्रश्न यह भी है, कि क्या मौखिक अभिव्यक्ति के माधुर्य को छत्तीसगढ़ी के लिखित, मुद्रित और औपचारिक प्रारूप में बचाए रखना संभव है। इसके साथ ही कुछ अन्य सामयिक ज्वलंत प्रश्न भी हमारे सामने उठते रहे हैं।

इन प्रश्नों और तथ्यों के साथ विमर्श को आगे बढ़ाते हुए अंतरजाल में सक्रिय वरिष्ठ ब्लॉगर ललित शर्मा ने कहा कि अब अंतरजाल मे भी छत्तीसगढ़ी भाषा स्थापित हो रही है। हिन्दी ब्लॉगों के आरंभिक दिनों में अंतरजाल के पाठक एवं लेखक छत्तीसगढ़ को एक पिछड़े व विपन्न राज्य के रूप में देखते थे। छत्तीसगढ़ के ब्लॉगरों नें अपने साहित्य एवं संस्कृति के संबंध में धीरे धीरे जानकारियां ब्लॉग में डाली। जिससे हमारे साहित्य व हमारी भाषा और हमारी सांस्कृतिक परंपराओं पर वैश्विक चर्चा शुरू हुई। इसी समय में छत्तीसगढ़ की भाषा की समृद्धि को प्रस्तुत करने के लिए गुरतुर गोठ नामक वेबसाइट का संचालन शुरु किया गया। इसके बाद अंतरजाल मे कई और छत्तीसगढ़ी भाषा के ब्लॉग आरंभ हुए। हिंदी भाषा-भाषी लोगो ने भी इस भाषा के मर्म को समझा और इस भाषा की सरलता व मधुरता से वे प्रभावित हुए। अंतरजाल मे हमारी लोक भाषा के साहित्य की उपस्थिति पर उन्होंने बल दिया जिससे कि हमारी भाषा एवं उसके साहित्य का परम्म्परिक माध्यमों से एक कदम आगे बढ़कर अनौपचारिक दस्तावेजीकरण हो सके।

अगले वक्ता के रुप मेँ नीरज मनजीत ने अपने माधुर्य गुण के कारण अन्य भाषा-भाषियोँ को लुभाती छत्तीसगढ़ी पर अपने अनुभव को विस्तारित किया। उन्होंनें बताया कि एक पंजाबी भाषी होने के बावजूद छत्तीसगढ़ी की मीठी बोली उन्हें किस तरह से प्रभावित करती है। उन्होंनें कहा कि दूसरी भाषाओं के साहित्य का छत्तीसगढ़ी में रुपांतरण या अनुवाद होना चाहिए एवं इसका क्षेत्रीय प्रकाशन भी होना चाहिए ताकि छत्तीसगढ़ी भाषा के साहित्य में विविधता आये। अगली कड़ी मेँ डॉ.अनसूइया अग्रवाल नें छत्तीसगढ़ी भाषा के सौंदर्य और उसकी वाचिक परम्परा की मौखिक अभिव्यक्तियों को छत्तीसगढी लोकोक्तियाँ एवं मुहावरों के माध्यम से विस्तृत किया। उन्होंनें अपना परचा पढ़ते हुए छत्तीसगढ़ी की अनेक मुहावरों का अर्थ सहित उल्लेख किया। कवि गणेश सोनी प्रतीक ने अपना वक्तव्य कविताओं के माध्यम से प्रस्तुत किया। उन्होंनें छत्तीसगढ़ में अपनी ही भाषा के प्रयोग पर शरमाते लोगों को आड़े हाथ लेते हुए भाषा की महिमा का गान प्रस्तुत किया। एक भाषा विशेषज्ञ के रूप में डॉ.चित्तरंजन कर जी भी इस कार्यक्रम में प्रतिभागी थे किन्तु वे किसी कारणवश नहीं आ सके। भाषा विज्ञान की दृष्टि से डॉ.कर की उपस्थिति से छत्तीसगढ़ी भाषा का भाषा वैज्ञानिक पहलुओं पर भी प्रकाश डाला जा सकता था।

कार्यक्रम के अंत मेँ पद्मश्री डॉ.सुरेंद्र दुबे नें विषय को समग्रता से विस्तार देते हुए छत्तीसगढी भाषा की अस्मिता और उससे जुड़े हमारे सम्मान पर उदाहरणों सहित अपने विचार रखे। उन्होंनें मेनस्ट्रीम औपचारिक साहित्य में रूपांतरित हो रहे छत्तीसगढ़ी भाषा के साहित्य पर भी विस्तार से अपने विचार रखे। हमारी भाषा के अदभुत शब्द ग्राह्यता गुण एवं हिन्दी पट्टी में स्वीकार्यता के संबंध मे बताते हुए उन्होंनें रामचरित मानस में छत्तीसगढ़ी शब्द प्रयोग का उदाहरण दिया। अंग्रेजी व अन्य भाषाओं के शब्दों का छत्तीसगढ़ी में सहज रूप से समाहित हो जाने का उल्लेख करते हुए अपनी आलराइट नामक छत्तीसगढी कविता का पाठ भी किया। अपने वक्तव्य में उन्होंनें मंगलेश डबराल के द्वारा छत्तीसगढ़ को सांस्कृतिक रूप से विपन्न कहे जाने पर अपना रोश व्यक्त किया। रायपुर साहित्य महोत्सव के मंच से मानसिक रूप से विपन्न मंगलेश डबराल को लानत भेजते हुए उन्होंनें छत्तीसगढ़ी में कविता पाठ किया। जिसका आशय था कि संकुचित मानसिकता को छोड़ डबरवाल और मिट्टी कीचड़ के छोटे संकुचित गड्हे से तो बाहर निकल। हमारे प्रदेश के साहित्य और संस्कृति को निहार फिर कह विपन्न कौन है। इस दिन सम्पन्न हुए सभी सत्रों से ज्यादा दर्शक इस सत्र में थे जिन्होंनें डॉ.दुबे के स्वर में स्वर मिलाते हुए छत्तीसगढ़ियों को विपन्न कहने वाले मंगलेश डबराल की कड़ी आलोचना की।

इन प्रश्नों के अतिरिक्त सत्र में जो हस्तक्षेप के बिन्दु थे उनमें जो प्रश्न व समाधान उभर कर सामने आ रहे थे उसके अनुसार पहला प्रश्न यह था कि, क्या वजह है कि अब क्षेत्रीय भाषाओं का साहित्य जिस तरह का विस्तार एवं जगह बना पाया है वैसा छत्तीसगढ़ी का साहित्य नहीं बना पाया है ? इस प्रश्न के जवाब में जो बातें सामने आई उसके अनुसार इसमें मूल रूकावट हमारी भाषा के साहित्य का मूल्यांकन नहीं होना ही है। साथ ही छत्तीसगढ़ी भाषा के साहित्य का अन्य भाषाओं में अनुवाद नहीं होना भी इसका सबसे बड़ा कारण रहा है। अगला प्रश्न यह रहा कि यदि छत्तीसगढ़ी को राजभाषा बना भी दें तो इससे क्या साहित्य का विस्तार हो जाएगा, जबकि हिन्दी राष्ट्रभाषा बनने के बाद स्वयं संकुचित होने का खतरा उठा रही है ? इस हस्तक्षेप के जवाब में सत्र से जो बातें निकल कर सामने आई उसके अनुसार लोक भाषा का राजभाषा के रूप में कार्य व्यवहार होने से भाषा संकुचित नहीं होती बल्कि इससे लोक भाषा का विस्तार होता है। उसमें नित नये भाषा शब्दों का समावेश होता है एवं भाषा की नदी निरंतर आगे प्रवाहमान रहती है। हिन्दी लोक भाषा नहीं है इस कारण इसे उदाहरण स्वरूप रखना श्रेयकर नहीं है।

हस्तक्षेप का तीसरा प्रश्न यह था कि, यदि हम रेखांकित करना चाहें तो छत्तीसगढ़ी साहित्य के शीर्ष रचनाकार कौन होंगें और उनके साहित्य का राष्ट्रीय विस्तार क्या है ? एवं छत्तीसगढ़ी अस्मिता को आप किस तरह समझते हैं और छत्तीसगढ़ी समाज के लिए यह कितना जरूरी है, जब वैश्विक समाज की बात हो रही है ? इसके उत्तर में सत्र की वैचारिकी यह रही कि वर्तमान समय में हमें हमारी लोक भाषा के साहित्य का विस्तार करने के हर संभव प्रयास करने हैं। वर्तमान में हम अपनी अस्मिता और स्वाभिमान के साथ अपनी भाषा के संविधान की आठवीं अनुसूची में जुड़ने का बाट जोह रहे हैं। हमारी भाषा की धमक, संपूर्ण विश्व में एडिनबरो नाट्य समारोह से लेकर पद्मश्री तीजन बाई के पंडवानी गीतों के रूप में गुजायमान हो रही है। हमारी लोक कलायें व शिल्प का डंका संपूर्ण विश्व में बज रहा है ऐसे समय में हमें विश्वास है कि हमारी भाषा भी अब शीघ्र ही अपने वांछित सम्मान को पा लेगी। वैश्विक समाज की अवधारणा के संबंध में हमारी वैचारिकी सोशल मीडिया में अपना धरातल तलास रही है जिसे अभी और खाद पानी का इंतजार है।

अचानक साहित्य की मुख्यधारा मे आना, बौद्धिकों की तेज धाराओं में अबौद्धिक होते हुए भी, न केवल जमे रहना बल्कि गाल बजाना, कितना कठिन होता है यह आप मुझसे जान सकते हैं। फिर भी मैं ये 'अतलंग' बार बार करता रहा हूं, मेरा उद्देश्य अपनी भाषा को वैश्विक परिदृश्य मे रखना था। मैंने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल व अन्य लिटरेचर फैस्टिवल के ढेरो वीडियोज देखे एवं उन कार्यक्रमों के अनुरूप अपने कार्यक्रम की रूपरेखा तय भी किया, किन्तु सचमुच में छत्तीसगढ़िया मनखे सुप्पर इंटेलीजेंट। बिना किसी संकुचित कैनवास के मुक्तांगन के विस्तृत कैनवास में प्रतिभागियों नें विमर्श के उपरांत रायपुर साहित्य महोत्सव के मंच पर गुरतुर छत्तीगढ़ी के उद्देश्य को सिद्ध किया। इस आयोजन से हमारी अस्मिता को हिन्दी पट्टी के वैश्विक परिदृश्य पर सामने रखने की एक शुरुआत हुई।

संजीव तिवारी

कहानी के स्वरुप मे बदलाव की आवश्यकता है : प्रो.जयप्रकाश


दुर्ग जिला हिंदी साहित्य समिति द्वारा हिंदी कहानियो की विकास यात्रा पर रविवार संध्या एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम मेँ वरिष्ठ कथाकार गुलबीर सिंह भाटिया ने अपनी कहानी "खचरि मुस्कान" का पाठ किया एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ परदेशी राम वर्मा ने अपनी कहानी "थप्पड़" का पाठ किया। इन कहानियों पर आलोचनात्मक टिप्पणी देते हुए चर्चित कथाकार लोक बाबू ने कहा कि, गुलबीर सिंह की कहानी अपनी बुनावट मेँ सशक्त है जो अपने लक्ष्य को प्राप्त करने मेँ सक्षम है। कथा के नायक विनोद के माध्यम से कथाकार ने अपनी संदेशात्मक अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है। सामयिक परिवेश मेँ बुनी गई कहानी मेँ सरस्वती के बेटे का दाखिला कथा के चरम को व्यक्त करती है। उन्होंने परदेशीराम वर्मा की कहानी "थप्पड़" पर कहा कि परदेसी राम छत्तीसगढ़ के परिवेश की कथाएँ लिखते हैं। उनका केंद्रीय परिवेश किसी भी कहानी मेँ बदलता नहीँ है। वे छत्तीसगढी की लोकप्रिय देशज शब्दोँ का प्रयोग करते हैं। इस कहानी मेँ लोककला की दुर्दशा का जीवंत चित्रण है। कहानी के नायक देवदास के हम चश्मदीद हैं जो थप्पड़ के रुप मेँ सामने आया है।

इन दोनो कहानियो के संबंध मेँ चर्चा करते हुए वरिष्ठ व्यंग्यकार रवि श्रीवास्तव ने कहा कि, गुलबीर सिंह भाटिया की कहानियाँ छोटी होती है लेकिन मर्म को भेदती है। वे सामाजिक यथार्थ को अपनी कहानियोँ मेँ चित्रित करते हैं। इस कहानी मे भी उन्होंने समाजिक यथार्थ को चित्रित किया है। डॉ परदेशीराम वर्मा की कहानी के संबंध मेँ इंहोन्ने कहा कि परदेसी की कहानियाँ और उनके पात्रोँ के वे चश्मदीद हैं। उनकी ठेठ देसज शैली उनकी कहानी को सशक्त बनाती है।

इन दोनो कहानियाँ पर वरिष्ठ कवि शरद कोकास नें कहा कि दोनो कहानियो मेँ पाठक से जुडाव का तत्व मौजूद है। इन कहानियो की शब्दावलियाँ दृश्य और पात्र सब अपने से लग रहे हैं। किसी भी श्रेष्ठ कहानी की यही अहम बात होती है। शरद कोकास नें आज के बदलते परिवेश मेँ पाठकोँ को भी नहीँ कहानियो के पठन के लिए संस्कारित करने पर बल दिया। राजिम से आए साहित्यकार दिनेश चौहान ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया। उन्होंने छत्तीसगढी परिवेश की कहानियो मेँ कथनोँ पर कथोपकथन मे छत्तीसगढी भाषा के प्रयोग का अनुरोध किया।

कार्यक्रम में आधार वक्तव्य देते हुए वरिष्ठ आलोचक प्रो.जयप्रकाश नें कहानी की विकास यात्रा पर सारगर्भित एवं क्रमिक विवरण दिया। उन्होंने कहा कि, कहानी अपने अनुभवो को संजोने की प्रक्रिया है एवं लिखित रुप मे अनुभवो की अभिव्यक्ति है। कहानियों मे अभिव्यक्त यही अनुभव पाठकोँ के मर्म को जगाता है। कथा के विकास क्रम के सम्बन्ध मेँ बताते हुए उन्होंने कहा कि आज साहित्य के सरोकार बदल गए है। बहुततेरे कथाकार संघर्ष की अभिव्यक्ति के संग तादात्म्य ठीक से बैठा नहीँ पा रहे हैं। उन्होंनें कहानियो मेँ काल्पनिक कथा लेखन के बजाय अनुभवजन्य यथार्थ के चित्रण पर बल दिया। कथा के दसकीय विकास क्रम में कहानियों एवं कथाकारों पर विस्तार से चर्चा करते हुए उन्होंनें राजेश जोशी एवं उदयप्रकाश जेसे कथाकारों का उल्लेख किया जिन्होंनें कहानी के टैक्स्ट को बदल कर कहानियों मे प्रयोग किये। वर्तमान के नव उदारीकरण, ग्लोबल गांव एवं आभासी सामाजिक परिवेश पर चर्चा करते हुए कहा कि, बहु राष्ट्रीय पूँजी के लिए उठते प्रतिरोध के समय में कहानी के स्वरुप मे बदलाव की आवश्यकता है। जटिल बात कहने के लिए जटिल शिल्प अपनाने के बजाय सहज शिल्प मे जटिलता को प्रस्तुत करने वाले 90 के दशक के कथाकार सृंजय का उल्लेख करते हुए, सहजता से जटिल बातोँ को कहानियों में अभिव्यक्त करने का सुझाव दिया।

कार्यक्रम मे स्वागत भाषण समिति के अध्यक्ष डा. संजय दानी नें दिया एवं सभा का संचालन सचिव संजीव तिवारी ने किया। कार्यक्रम मेँ दुर्ग भिलाई के साहित्यकार रघुबीर अग्रवाल पथिक, महेंद्र कुमार दिल्लीवार, नवीन कुमार तिवारी अमर्यादित, नरेश कुमार विश्वकर्मा विश्व, रतनलाल सिन्हा, आदित्य पांडे, अशोक कुमार समद्दर, अरुण कसार, डा.निर्माण तिवारी, लल्लाजी साहू, कैलाश बनवासी, शरद कोकास, रामकृष्ण कुलकर्णी, तुंगभद्रा सिंह राठोर, केशी चंद्रशेखरन पिल्लई, भूषण लाल परगनिया, रामाधीन श्रमिक, डा.सुरर्शन राय, रवि श्रीवास्तव, लोक बाबू, यूसुफ मछली, नारायण चंद्राकर, मुकुंद कौशल, अशोक सिंघई, संतोष झांझी, रामाकांत बराडिया, नीता काम्बोज आदि उपस्थित थे।

संजीव तिवारी

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...