एक पाती आधुनिकाओं के नाम : प्रो. अश्‍वनी केशरवानी

छत्‍तीसगढ के प्रो. अश्‍वनी केशरवानी के कृतित्‍व से आप पूर्व से परिचित हैं । उनकी तीन शोधपरक आलेख रवि रतलामी जी के चिट्ठे रचनाकार में क्रमश:
रायगढ़ और राजा चक्रधरसिंह,
शिवरीनारायण की रथयात्रा,
गीतकार पंडित विद्याभूषण मिश्र
अभी हाल ही में प्रकाशित हो चुकी हैं । हम उनका एक आलेख आज यहां प्रस्‍तुत कर रहें हैं जो आधुनिकता की अंधी दौड में भागती नारी के मन को अवश्‍य आंदोलित करेगा ।

आलेख : प्रो. अश्‍वनी केशरवानी

देवियो जब मैं इस तरह आपको संबोधित करता हूं, तो आपको कोई बात नहीं खटकती ? आप इस सम्मान को अपना अधिकार समझती हैं। लेकिन किसी महिला को पुरूषों के प्रति 'देवता' कहते सुना है ? उसे आप देवता कहें तो वह समझेगा, आप उसे बना रही हैं। आपके पास दान देने के लिए दया है, श्रद्धा है, त्याग है, पुरूषों के पास देने के लिए क्या है ? वह अपने अधिकार के लिए संग्राम करता है, कलह करता है, हिंसा करता है,। इसलिए जब मैं देखता हूं कि उन्नत विचारों वाली देवियां उस दया, श्रद्धा और त्याग के जीवन से असंतुष्‍ट होकर कलह और हिंसा की दौड़ में शामिल हो रही हैं और समझ रही हैं कि यही मार्ग स्वर्ग का सुख है, तो मैं उन्हें बधाई नहीं दे सकता। स्त्री को पुरूष के रूप में पुरूष के कर्म में रत देखकर मुझे उसी तरह वेदना होती है जैसे पुरूष को स्त्री के रूप में स्त्री के कर्म करते देखकर होती है। मुझे विश्‍वास है ऐसे पुरूषों को आप अपने विश्‍वास और प्रेम का पात्र नहीं समझतीं और मैं आपको विश्‍वास दिलाता हूं कि ऐसी स्त्री भी पुरूष के प्रेम और श्रद्धा का पात्र कभी नहीं बन सकती।

मैं प्राणियों के विकास में स्त्री के पद को पुरूषों से श्रेष्‍ठ मानता हूं उसी तरह जैसे प्रेम, त्याग और श्रद्धा को हिंसा, संग्राम और कलह से श्रेष्‍ठ समझता हूं। अगर हमारी देवियां सृष्टि और पालन के देव मंदिर से हिंसा और कलह के दानव क्षेत्र में आना चाहती हैं तो उससे समाज का किसी प्रकार कल्याण नहीं होगा। मैं इस विषय में दृढ़ हूं । पुरूष नें अपने अभिमान में अपनी कीर्ति को अधिक महत्व दिया। वह अपने भाई का स्वत्व छीनकर, उसका रक्त बहाकर समझने लगा कि उसने बहुत बड़ी सफलता पा ली। जिन शिशुओं को देवियों ने अपने रक्त से सींचकर पाला, वह उन्हें बंदूक, मशीनगन, बम आदि का शिकार बनाकर अपने को विजेता समझता है और जब हमारी ही ये माताएं उसके माथे पर केसर का तिलक लगाकर, अपने आशीष का कवच पहनाकर हिंसा के क्षेत्र में भेजती हैं, तो आश्‍चर्य होता है कि पुरूषों ने विनाश को ही संसार के कल्याण की वस्तु समझा और उसकी हिंसा प्रवृत्ति दिन रात बढ़ती ही गयी और आज हम देख रहे हैं कि उनकी यह दानवता प्रचण्ड होकर समस्त संसार को रौंदती, प्राणियों को कुचलती, हरे भरे खेतों को जलाती और गुलजार बस्तियों को वीरान करती चली जा रही है। देवियों ! मैं आपसे पूंछता हूं कि क्या आप इस दानव लीला में सहयोग देकर इस संग्राम क्षेत्र में उतरकर संसार का कल्याण करेंगी ? मैं आपको मशविरा देता हूं कि नाश करने वालों को अपना काम करने दीजिए, आप अपने धर्म का पालन करती रहें।

देवियों ! मैं उन लोगों में से नहीं हूं जो कहते हैं कि स्त्री और पुरूष में समान शक्तियां हैं, समान प्रवृत्तियां हैं और उनमें कोई भिन्नता नहीं है। इससे भयंकर असत्य की मैं कल्पना नहीं कर सकता। यह वह असत्य है जो युग युगान्तरों से संचित अनुभव को ढक लेता है। मैं आपको सचेत किये देता हूं कि आप इस जाल में न फंसे। स्त्री, पुरूष से उतनी ही श्रेष्‍ठ है जितना प्रकाश अंधेरे से। मनुष्‍य के लिए क्षमा, त्याग और अहिंसा जीवन के उच्चतम आदर्श हैं। नारी इन आदर्शों को प्राप्त कर चुकी है। पुरूष, धर्म, आध्यात्म और ऋषियों का आश्रय लेकर उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए सदियों से जोर मार रहा है, पर सफल नहीं हो सका है। उसका सारा आध्यात्म और योग एक तरफ तो नीतियों का परित्याग दूसरी तरफ।

पुरूष कहता है- जितने दार्शनिक और वैज्ञानिक आविष्‍कारक हुए हैं, वे सब पुरूष थे। जितने बड़े बड़े महात्मा हुए, वे भी पुरूष थे। सभी योद्धा, राजनीतिक आचार्य, नाविक आदि सब (कुछ अपवादों को छोड़कर) पुरूष ही थे। लेकिन इन्होंने क्या किया ? महात्माओं और धर्म के प्रवर्तकों ने संसार में रक्त की नदियां बहाने और वैमनस्यता की आग भड़काने के सिवाय किया ही क्या है ? योद्धाओं ने भाइयों के गर्दन काटने के सिवाय क्या यादगार छोड़ी है ? आविश्कारकों ने मनुष्‍य को मशीन का गुलाम बनाकर रख दिया है। पुरूषों की रची हुई इस संस्कृति में शांति कहां है ? सहयोग कहां है ? मैं आपसे पूंछता हूं कि क्या बाज को चिड़ियों का शिकार करते देखकर हंस को यह शोभा देगा कि मानसरोवर की आनंदमयी शांति को छोड़कर चिड़ियों का शिकार करे ? और अगर वह शिकारी बन भी जाये, तो आप उसे बधाई देंगी ? हंस के पास उतनी तेज चोंच नहीं है, उतनी तेज आंखें नहीं है, उतनी तेज पंख नहीं है और उतनी तेज रक्त की प्यास नहीं है जो चिड़ियों का शिकार करने के लिए आवश्‍यक होती है।

मैं नहीं कहता कि आपको विद्या की जरूरत नहीं है, है और पुरूषों से अधिक है। लेकिन वह विद्या और वह शक्ति नहीं जिससे पुरूष ने संसार को हिंसा का क्षेत्र बना डाला है। अगर वही विद्या और शक्ति आप भी ले लेंगी तो संसार मरूस्थल हो जायेगा। आपकी विद्या और आपका अधिकार हिंसा और विध्वंस में नहीं, सृष्टि और पालन में है। क्या आप समझती हैं कि वोटों से मानव जाति का उद्धार हो जायेगा या दफ्तरों में जबान और कलम चलाने से ? इस नकली, अप्राकृतिक, विनाशकारी अधिकारों के लिए आप यह अधिकार छोड़ देना चाहती हैं जो आपको प्रकृति ने दिया है ?

अधिकार और बराबरी नये युग का मायाजाल है, मरीचिका है, कलंक है, धोखा है, उसके चक्कर में पड़कर आप न इधर की होंगी, न उधर की। कौन कहता है कि आपका क्षेत्र संकुचित है और उसमें आपको अभिव्यक्ति का अवसर नहीं मिलता ? हम सभी पहले मनुष्‍य हैं, बाद में स्त्री और पुरूष। हमारा घर ही हमारा जीवन है। वही हमारी सृष्टि है। वहीं हमारा पालन होता है। वहीं जीवन के सारे व्यापार होते हैं। अगर वह क्षेत्र परिमित है तो अपरिमित क्षेत्र कौन सा है ? क्या वह संघर्ष जहां संगठित अपहरण है, जिस कारखाने में मनुश्य और उसका भाग्य बनता है ? आप उस कारखाने में जाना चाहती हैं जहां मनुष्‍य पीसा जाता है ? जहां वह असंयमित हो जाता है ? अगर कहा जाये कि पुरूषों के जुल्म ने ही आपको बगावत के लिए बाध्य किया है, तो मैं कहूंगा कि ''बेशक पुरूशों ने अन्याय किया है लेकिन उसका यह जवाब नहीं है। अन्याय को मिटाइये लेकिन अपनो को मिटाकर नहीं ।'' कामकाजी महिलाएं अगर कहें कि उन्हें इसलिए बराबरी का अधिकार चाहिए कि उसका सदुपयोग करें और पुरूषों को दुरूप्योग करने से रोकें, तो मैं कहूंगा कि संसार में बड़े बड़े अधिकार सेवा और त्याग से मिलते हैं और वह आपको मिला हुआ है। इन अधिकारों के सामने वह कोई मायने नहीं रखता। मुझे खेद है कि भारतीय महिलाएं भी अब पश्चिम को आदर्श मानने लगी हैं, जहां नारी ने अपना पद और गरिमा खो दिया है और गृह स्वामिनी से विलास की वस्तु बनकर रह गयी है। पश्चिम की महिलाएं स्वच्छंद रहना चाहती हैं, इसलिए कि वह अधिक से अधिक विलास कर सके। भारतीय महिलाओं का आदर्श कभी विलास नहीं रहा है। उन्होंने केवल सेवा और अधिकार से घर गृहस्थी का संचालन किया है। पश्चिम में जो चीजें अच्छी है उसे अवश्‍य ग्रहण कीजिए। संस्कृति में सदैव आदान प्रदान होता आया है। लेकिन अंधी नकल तो मानसिक दुर्बलता का लक्षण है। पश्चिम की महिलाएं आज गृह स्वामिनी नहीं बनना चाहती, भोग की विदग्ध लालसा ने उसे उच्श्रृंखल बना दिया है। कदाचित् इसीलिए वह अपनी लज्जा और गरिमा को जो उसकी सबसे बड़ी पूंजी थी उसे चंचलता और आमोद प्रमोद पर होम कर रही है। जब मैं वहां की शिक्षित बालिकाओं को अपने रूप का या नग्नता का प्रदर्शन करते देखता हूं तो मुझे उनके उपर दया आती है। उनकी लालसाओं ने उन्हें इतना पराभूत कर दिया है कि वे अपनी लज्जा की भी रक्षा नहीं कर सकती। नारी की इससे अधिक और क्या अधोगति हो सकती है... ?

पाश्‍चात्य सभ्यता के रंग में रंगी युवतियां कह सकती हैं कि अगर पुरूष अपने बारे में स्वतंत्र हैं तो स्त्रियां भी अपने बारे में स्वतंत्र हैं। युवतियां अब विवाह को पहचान नहीं बनाना चाहती, वह केवल प्रेम के आधार पर विवाह करेंगी मगर मेरा व्यक्तिगत विचार है कि जिसे वह प्रेम कहती है वह एक धोखा है। सच्चा आनंद सच्ची शांति है, वही शक्ति का उद्गम है। सेवा भाव ही वह सीमेंट है जो दम्पति को जीवन पर्यन्त स्नेह और सहचर्य में जोड़े रख सकता है। जिस पर बड़े बड़े आधातों का कोई असर नहीं होता और जहां सेवाभाव का अभाव है, वहां विवाह विच्छेद है, परित्याग है और अविश्‍वास है। इसलिए मेरा कहा मानिये और अपनी गरिमा को बनाये रखिये, उसे गिरने मत दीजिये।

रचना, आलेख एवं प्रस्तुति,

प्रो. आश्विनी केशरवानी
राघव, डागा कालोनी,
चाम्पा-४९५६७१ (छत्तीसगढ़)
मो. नं. ०९४२५२२३२१२
ई मेल : ashwinikesharwani@gmail.com

छत्तीसगढ सवेरा साप्‍ताहिक अखबार अब ब्‍लाग पर





छत्तीसगढ सवेरा भिलाई से प्रकाशित होने वाला साप्‍ताहिक फुल साईज का अखबार है यह वर्तमान में प्रत्येक शनीवार को प्रकाशित होता है । अखबार के स्‍वामी, प्रकाशक व मुद्रक क्षेत्र के तेजतर्रार पत्रकार अब्‍दुल मजीद जी हैं जो पूर्व में देश के मशहूर साप्‍ताहिक ब्लिड्ज के पत्रकार रहे हैं एवं क्षेत्र के लगभग सभी समाचार पत्रों को अपनी सेवायें दे चुकें हैं


हम हमारी रूचि के कारण छत्तीसगढ सवेरा में बतौर मुक्‍त पत्रकार के रूप में उनका सहयोग कर रहे हैं । अब्‍दुल मजीद जी के अनुरोध पर उनके इस समाचार पत्र के कुछ अंश एक हिन्‍दी ब्‍लाग के रूप में यहां प्रकाशित कर रहे हैं भविष्‍य में हम इसे नियमित रखने का प्रयास करेंगें ताकि छत्‍तीसगढ से संबंधित समाचार अंतरजाल पाठकों को प्राप्‍त हो सके ।


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पाठकों के पत्र व्‍यंगकारों के नाम : विनोद शंकर शुक्‍ल - 3


पहला पत्र : हरिशंकर परसाई के नाम
दूसरा पत्र शरद जोशी के नाम

तीसरा पत्र रविन्‍द्रनाथ त्‍यागी के नाम




हे व्‍यंग के ऋतुराज,

आदाब !

गुस्‍ताख किस्‍म के खत के लिए माफी चाहता हूं । यों शायद मैं गुस्‍ताखी का हौसला न करता, अगरचे मरहूम शायर अब्‍दुल रहीम खानखाना मेरी हौसलाअफजाई न करते । खानखाना साहब फर्मा गये हैं --- ‘ क्षमा बडन को चाहिए छोटन को अपराध ।‘ इस शेर की रोशनी में छोटा होने के कारण मुझे गुस्‍ताख होने का हक मिल जाता है और बडे होने के कारण आपको माफ करने की सनद ।


जनाब, मैने आपकी कई किताबें पढी हैं । अहा, क्‍या प्‍यारी प्‍यारी फागुनी चीजें दी है आपने ? आपका हर्फ-हर्फ जायकेदार है, लाईन-लाईन सीने से लगा लेने के काबिल हैं ।


आप हिन्‍दी व्‍यंग की आबरू हैं, व्‍यंग के ऋतुराज हैं । अगरचे हिन्‍दी में और भी व्‍यंगकार हैं, पर आपके सामने सब फीके हैं । परसाई ग्रीष्‍म हैं, शरद वर्षा और श्रीलाल शीत । वसंत तो केवल आप हैं । मैं अक्‍सर अपने दोस्‍तों से कहता हूं, अगर तुमने त्‍यागी साहब को नहीं पढा, तो कुछ नहीं पढा, ऐसा ग्रेट राईटर सदियों में पैदा होता हैं ----

‘हजारों साल हिन्‍दी अपनी बेनूरी पे रोती है, बडी मुश्किल से होता है अदब में, त्‍यागी तब पैदा ।‘

हम तो आपके ही मुरीद हैं । जैसे रसखान के लिए कृष्‍ण वैसे हमारे लिए आप । अगले जन्‍म के लिए यही एकसूत्रीय आरजू है ---

पाहन हौं तो वही फ्लैट को, जो जाय लगे त्‍यागी साहब के द्वारन ।

गरीबनवाज आपसे एक छोटी सी गुजारिस है । इधर मुहल्‍ले में अपना एक लफडा चल रहा है । एक चौदहवी के चांद पर दिल जा अटका है, जैसे कटी पतंग बिजली के खंबे पर अटक जाती है । मुश्किल यह है कि इधर एक शायरनुमा नौजवान से लडकी के ताल्‍लुकात दिन दूने रात चौगुने बढ रहे हें । कमबख्‍त शेरों शायरी भरे खत लिखता है कि लडकी दिलोजान से उसे चाहने लगी है । आप हसीनाओं के फितरत को जानते ही हैं ( आपने भी तो आधा दर्जन से अधिक इश्‍क किये हैं और ‘मेरे पहले प्रेम प्रसंग’ वाली रचना में स्‍वीकार भी किया है ) जो जितना नमक मिर्च लगाकर उनके हुश्‍न की तारीफ करता है, उसे वो उतना ही बडा आशिक मान बैठती है ।


बदनसीबी से मै भी इस कला में कोरा हूं । हाय रे हिन्‍दुस्‍तान, यहां प्रेम करना भी आसान नहीं है । नौजवानों के लिए नर्क है यह देश । नौकरी भी मुश्किल, छोकरी भी मुश्किल । नौकरी के लिए अप्‍लीकेशन लिखना आना जरूरी है और छोकरी के लिए प्रेमपत्र ।


त्‍यागी साहब, अब आप भी हमारे अल्‍लाह हैं । अपने इस बंदे को डूबने से बचाईये । चार पांच अच्‍छे से दिल फरेब खत लौटती डाक से लिख भेजिए, ताकि मैं उस शायर की औलाद का पत्‍ता साफ कर सकूं । आपसे पढकर इस फन का माहिर इंडिया में इस वक्‍त कोई दूसरा नहीं है ।


हालांकि मैं नवाब वाजिद अली शाह की औलाद नहीं हूं, परंतु दिल मैने नवाब का पाया है । आपको हर खत पर मैं 100 रूपया बतौर शुक्राना अदा करूंगा । उम्‍मीद है आप मेरी फरमाईश पूरी करेंगें ।


आपका शुक्रगुजार

आशिक अली, एम. ए.

पाठकों के पत्र व्‍यंगकारों के नाम : विनोद शंकर शुक्‍ल 2

पहला पत्र : हरिशंकर परसाई के नाम

दूसरा पत्र शरद जोशी के नाम

दुष्‍ट-प्रवर,

समझ में नहीं आता, मैनें तुम्‍हारा क्‍या बिगाडा है ? क्‍यों तुम हाथ धोकर मेरे पीछे पडे हो ? सीआईए जैसे किसी भी देश में गृह कलह करा देता है, वैसे ही तुमने मेरी छोटी-सी गृहस्‍थी में बवंडर उठा दिया है । तुम्‍हारे ही कारण कल मेरी पत्‍नी रूठकर मायके चली गई और मैं तब से अपने को बिलकुल अनाथ और असहाय महसूस कर रहा हूं ।

महाशय, मैं तुमसे व्‍यक्तिगत तौर पर बिलकुल परिचित नहीं, मैने तुम्‍हें कभी देखा नहीं, फिर तुम मेरे संबंध में सारी बातें कैसे जानते हो ? यदि जानते भी हो तो उसे अपनी रचनाओं के माध्‍यम से सार्वजनिक क्‍यों बना देते हो ? तुम्‍हें किसी के निजी जीवन में झांकने का क्‍या हक है ?

शादी से पहले लिखी, मेरी प्रेमिका ( अब पत्‍नी ) की चिट्ठी जाने तुमने कहां से उडा ली और उसे जैसे का तैसा अपनी ‘पराये पत्रों की सुगंध’ रचना में प्रयुक्‍त कर लिया । क्‍या तुम्‍हारे पास अपनी अकल नहीं है ? बिलकुल यही तो शव्‍द थे मेरी प्रेमिका के ------ ‘डियर, मैं 26 को मेल से पहुंच रही हूं । उम्‍मीद है प्‍लेटफार्म पर वक्‍त से मिल जाओगे । अभी मैरिज अनांउंस मत करना क्‍योंकि कुछ दिन हमें अलग रहना शो करना पडेगा । मेरे ठहरने का अरेंजमेंट कही अलग करना फिलहाल । तुम्‍हारा जुकाम कैसा है ? उसमें कबूतर बडा मुफीद होता है । बहुत बहुत प्‍यार तुम्‍हारी – नूरजहां ‘

खैर, बमुश्किल हमारी शादी हुई । हमने घर बसाया । तुमने फिर भी हमारा पीछा नहीं छोडा । अब तुम हमारे पारिवारिक जीवन में झांकने लगे । ‘मेरे क्षेत्र के पति’ रचना में तुमने मुझे ‘कुत्‍ते’ के रूप में पेश किया, लिखा ---- ‘उनके गले में जंजीर बंधी रहती है जो उन‍की औरत के हाथ में रहती है जो अंदर काम करती है । वे समय पर छोड भी दिये जाते हैं, और वे तब सडक पर भटकते हैं और दफ्तर जाते हैं ।‘

अच्‍छा, मैं कुत्‍ता सही, पर मैने तो तुम्‍हे कभी नहीं काटा । फिर क्‍यों तुम व्‍यंग के पत्‍थर मुझ पर उछालते रहते हो ।

तुम लेखक हो या ‘ऐंटीना’ । मिया-बीबी के होने वाले गुप्‍त संवादों को भी कैच कर लेते हो ? अब तो बेडरूम में पत्‍नी के साथ सोते हुए भी यही लगता है कि तुम हमें देख रहे हो, सुन रहे हो ।

कल तो गजब हो गया ‘भूतपूर्व प्रेमिकाओं को पत्र’ वाली तुम्‍हारी रचना पढ बीबी यों उखड गयी जैसे आंधी में कोई पेड उखड जाता है । तुमने मेरी भूतपूर्व प्रेमिका कुंतला का जिक्र इस रचना में किया है । पत्‍नी को उसके और मेरे प्रेम के संबंध में पता चल गया था । दरअसल बीए के तीन सालों में मैने तीन अदद कन्‍याओं से प्रेम किया । पहले साल जूली, दूसरे साल कुन्‍तला और तीसरे साल यही नामुराद नूरजहां, जो अब मेरी बीबी है । तुम देखोगे, प्रेम में भी मैनें साम्‍प्रदायिक एकता का निर्वाह किया । इसाई, हिन्‍दू और मुस्लिम तीनो धर्म की कन्‍याये मेरी प्रेमिकायें रही । खैर कुन्‍तला इस समय एक ठेकेदार की बीबी है और यदा कदा मिलकर हम अपने भूतपूर्व प्रेम की दीवाली मना लेते हैं । तुम्‍हारी रचना नें पत्‍नी के पुराने जख्‍म कुरेद दिये । वह बार बार पूछने लगी क्‍या तुम उससे अब भी मिलते हो ? तुम्‍हारी वो घरफोडू पंक्तियां इस प्रकार हैं ---

‘ अब तो तुम्‍हारे उन सुर्ख गालों पर वक्‍त नें कितना पाउडर चढा दिया है । जिन होटो के अंचुंम्बित रहने का रिकार्ड बन्‍दे नें पहली बार तोडा था, उस पर तुम्‍हारे पातिव्रत्‍य नें आज ऐसी लिपिस्टिक लगा रखी है, जैसे मेरी कविता की कापी पर घूल की तहें । आज जब अपने बच्‍चों को स्‍कूल और ठेकेदार पति को पुल का निर्माण देखने रवाना कर तुम सोफे पर लेटी यह चिट्ठा पढ रही हो, मैं तुमसे पूछूं कि क्‍या तुम्‍हे याद है वो ठेकेदारिनी कि, कभी एक पुल बनाने का, दो किनारे जोडने का ठेका तुमने भी लिया था ।‘

मैने नूरजहां को लाख समझाया कि मेरे और कुन्‍तला के बीच अब कोई संबंध नही है, परन्‍तु वह मानने को तैयार नही थी । तुम्‍हारी इन चंद लकीरों नें कहर ढा दिया । घर की कंकरीट की दीवार भी थरथरा गयी । गीता कुरान उठा कर मैने कुन्‍तला को भूल जाने की कसमें खायी, पर नूरजहां न रूकी ।
जालिम, तुम्‍हारे बारे में मेरे मन में तरह तरह के खयाल आते हैं, क्‍या तुम मेरी बीबी के पुराने आशिक हो जो उससे इस तरह बदला ले रहे हो ? कहीं तुम्‍हारा इरादा मुझे ब्‍लेकमेल करने का तो नही है ? बोलो, कितना पैसा लेकर तुम हमें चैन से जीने दोगे ?

इस पत्र का जवाब चार दिन के अंदर न दिया तो मेरी राईफल से शहीद होने के लिए तैयार रहो ।

तुम्‍हारा

भूचाल सिंह ईंट ठेके दार


(शेष अंतिम पत्र अगले पोस्‍ट पर)

पाठकों के पत्र व्‍यंगकारों के नाम : विनोद शंकर शुक्‍ल

(अस्‍सी के दसक से आज तक व्‍यंग की दुनिया में तहलका मचाने वाले रायपुर निवासी आदरणीय विनोद शंकर शुक्‍ल जी को कौन नही जानता है उन्‍होंने अपने समकालीन व्‍यंगकारों पर भी अपनी कलम चलाई है । हम 1985 में रचित व प्रकाशित उनकी एक व्‍यंग रचना को यहां आपके लिए प्रस्‍तुत कर रहे हैं )


हरिशंकर परसाई, शरद जोशी और रविन्‍द्र नाथ त्‍यागी की व्‍यंग तिकडी हिन्‍दी पाठकों के बीच अपार लोकप्रिय है । इनका अपना विशाल पाठक समूह हैं । एक समीक्षक किस्‍म के पाठक नें मुझे बताया कि परसाई को तामसिक, जोशी को सात्विक और त्‍यागी को राजसिक प्रवृत्ति के पाठक बहुत पसंद करते हैं । एक पाठक जो व्‍यंगकारों को साग-सब्‍जी समझता था, मुझसे बोला, ‘क्‍या बात है साब अपने व्‍यंगकारों की । सबके स्‍वाद अलग अलग हैं । परसाई करेला है, जोशी ककडी है और त्‍यागी खरबूजा है ।‘ उसकी बात से लगा, तीनो में से कोई भी उसे मिला तो वह कच्‍चा चबा जायेगा ।

हिन्‍दी साहित्‍य के इतिहास के मर्मज्ञ एक पाठक बोले ‘राजनीति उस समय फलती फूलती है, जब किसी चौकडी का जन्‍म होता है और साहित्‍य तब समृद्ध होता है, जब कोई तिकडी उस पर छा जाती है । प्रसाद, पंत और निराला की ‘त्रयी’ जब प्रगट हुई, तभी छायावाद फला फूला । हिन्‍दी की नयी कहानी भी कमलेश्‍वर, मोहन राकेश और राजेन्‍द्र यादव के पदार्पण से ही सम्‍पन्‍न हुई । यही हाल हिन्‍दी व्‍यंग का है । परसाई, शरद जोशी और रविन्‍द्रनाथ त्‍यागी हिन्‍दी व्‍यंग के ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश हैं ।‘

रोज बडी संख्‍या में व्‍यंगकारों को पाठकों के अजीबोगरीब पत्र प्राप्‍त होते हें । इनकी फाईलों में सेंध लगाकर बडी मुश्किल से प्राप्‍त किये गये तीन पत्र आपकी खिदमत में पेश है :-

पहला पत्र : हरिशंकर परसाई के नाम



अधर्म शिरोमणि,

ईश्‍वर तुम्‍हे सदबुद्धि दे ।

तुम जैसे नास्तिकों को हरि और शंकर जैसे भगवानों के नाम शोभा नहीं देते । अच्‍छा हो यदि तुम एच.एस.परसाई लिखा करो । म्‍लेच्‍छ-भाषा ही तुम्‍हारे लिए ठीक है ।

मेरा नाम स्‍वामी त्रिनेत्रानंद है और मैं भूत, वर्तमान और भविष्‍य सभी देखने की सामर्थ्‍य रखता हूं । ‘पूर्वजन्‍मशास्‍त्र’ का तो मैं विशेषज्ञ ही हूं । मैने बडे बडे नेताओं, महात्‍माओं और ज्ञानियों के पूर्वजन्‍म का पता लगाया है ।
पंडित जवाहर लाल नेहरू को मैने ही बताया था कि वे पूर्व जन्‍म में सम्राट अशोक थे । मेरे कथन की सत्‍यता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि सम्राट अशोक भी शांतिप्रिय थे और पंडित नेहरू भी । अशोक नें विश्‍व शांति के लिए धर्मचक्र प्रवर्तित किया था और पंडितजी नें पंचशील । दोनों की जन्‍म कुण्‍डलियां इस सीमा तक मिलती थी कि यदि जन्‍मतिथि का उल्‍लेख न होता तो यह बताना कठिन था कि कौन-सी अशोक की है और कौन-सी पंडित जी की ?

इसी प्रकार बाबू राजनारायण को भी मैने ही बताया था कि वे पूर्वजन्‍म में दुर्वासा ऋषि थे । दुर्वासा के भीतरी और बाहरी दोनों ही लक्षण उनमें दिखाई देते थे । दाढी बाहरी लक्षण हैं और क्रोधी मन भीतरी । उनके शाप के कारण ही जनता-पार्टी का राजपाठ चौपट हो गया था ।

दुर्बुधे, तुम्‍हारे भी पूर्वजन्‍म का पता मैने लगाया है । कुछ दिन पूर्व एक धर्मप्राण सज्‍जन मेरे पास आये थे । तुम्‍हारी कुण्‍डली देकर बोले, ‘यह लेखक धर्म-कर्म के विरूद्ध अनाप-शनाप लिखता है इसकी अक्‍ल ठिकाने लगाने की कोशिस कर हम हार गये हैं । अब आप ही ऐसा कोई अनुष्‍ठान कीजिये, जिससे इसकी बुद्धि निर्मल हो जाये । इसे व्‍यंगकार से प्रवचनकार बना दीजिये ।‘

तुम्‍हारी कुण्‍डली देखने पर ज्ञात हुआ कि तुम द्वापर के अश्‍वत्‍थामा हो । धर्म, नीति और न्‍यायभ्रष्‍ट, अभिशप्‍त । पाण्‍डवों द्वारा पिता के अधमपूर्वक मारे जाने से विक्षिप्‍त, पशू युगों-युगों से दिशाहीन भटकते हुए । यह सत्‍य है, अश्‍वस्‍थामा कभी मरा नहीं, वह सदियों से नये नये रूपों में प्रकट होता रहता है । कभी कार्ल मार्क बनकर आता है तो कभी हरिशंकर परसाई ।

यज्ञ द्वारा तुम्‍हारी मुक्ति और विवेक निर्मल करने में समय लगेगा । मैं शार्टकट चाहता हूं । जिससे अनुष्‍ठान का चक्‍कर भी न चलाना पडे और तुम्‍हारा परिष्‍कार भी हो जाये । तुम केवल इतना करो कि नास्तिक लेखन छोड दो ‘रानी नागफनी की कहानी’ के स्‍थान पर ‘नर्मदा मैया की कहानी’ जैसी रचनायें लिखने लगो । इससे तुम्‍हारी शुद्धि चाहने वाले इतने मात्र से संतुष्‍ट हो जायेंगें । अनुष्‍ठान का पैसा हम और तुम आधा-आधा बांट सकते हैं ।

एक काम और मैं करूंगा अपनी पूर्वजन्‍म की विद्या से सिद्ध कर दूंगा कि तुम त्रेता के परशुराम हो । परसाई परशुराम का ही तो अपभ्रंश रूप है । परशुराम भी ब्राह्मण और अविवाहित थे, तुम भी हो । फर्क इतना ही है कि फरसे की जगह इस बार हाथ में कलम है ।

तुम्‍हें अश्‍वस्‍थामा बनना पसंद है या परशुराम, यह तुम सोंचो । आशा है, अपने निर्णय की शीध्र सूचना दोगो ताकि मैं भी अपना कर्तव्‍य निश्चित कर सकूं ।

सदबुद्धि के शुभाशीष सहित,

- स्‍वामी त्रिनेत्रानंद

(आवारा बंजारा वाले संजीत त्रिपाठी के प्रिय प्रोफेसर श्री शुक्‍ल जी के शेष दो पत्र अगले पोस्‍टों पर हम प्रस्‍तुत करेंगे)

दीवारों पर लिखा है

रायपुर, छत्‍तीसगढ से एक लोकप्रिय सांध्‍य दैनिक 'छत्‍तीसगढ' प्रकाशित होता है जिसके संपादक हैं वरिष्‍ठ पत्रकार सुनील कुमार जी । उनके इस समाचार पत्र के संपादकीय पन्‍ने पर प्रत्‍येक दिन दीवारों पर लिखा है नाम से कोटेशन प्रकाशित होता है । जो प्रत्‍येक दिन पाठक को बरबस अपनी ओर खींचता है एवं पढने व चिंतन करने को विवश करता है । सुन्‍दर सरल हस्‍तलिपि में लिखे गये इन शव्‍दों की कुछ कतरने आज हमारे एक दोस्‍त की डायरी के खीसे में अचानक हमें मिल गयी, हमने उसे पढा एवं हमें लगा कि इसे अपने चिट्ठे में सुरक्षित रख लिया जाए













आपको कैसे लगी हमारे छत्‍तीसगढ अखबार की कतरने ।

क्‍या आपने कराया है अपने विवाह का पंजीयन

उच्‍चतम न्‍यायालय नें सीमा नामक महिला के स्‍थानांत‍रण याचिका पर विचार करते हुए विगत वर्ष विवाह पंजीकरण को आवश्‍यक करने हेतु नियम बनाने का बहुचर्चित आदेश दिया था जिस पर उस समय देश भर में काफी बहस हुआ था । कुछेक राज्‍यों नें इसे गहराई से न लेते हुए अपने तरफ से कोई सराहनीय प्रयास नहीं किया था ।


अब विगत सोमवार को उच्‍चतम न्‍यायालय के न्‍यायमूर्ति अरिजीत परसायत और न्‍यायमूर्ति लोकेश्‍वर सिंह पंटा की बेंच नें इसी मामले में सुनवाई करते हुए सभी राज्‍यों को इस उदासीनता पर नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगा है कि राज्‍य सरकारों नें विवाह पंजीयन को अनिवार्य करने हेतु कोई सार्थक कदम क्‍यों नहीं उठाया । न्‍यायमूर्ति द्वय नें राज्‍यों को इस हेतु से आठ सप्‍ताह में जवाब देने को कहा है साथ ही न्‍यायालय नें यह स्‍पष्‍ट किया है कि विवाह पंजीयन सभी समुदायों पर समान रूप से लागू होने वाला होना चाहिए ताकि पूरे देश में इस अधिनियम में समरूपता आयेगी ।



छत्‍तीसगढ सरकार इस संबंध में बधाई का पात्र है । छत्‍तीसगढ सरकार के द्वारा सभी धर्म, जाति व मतावलंबियों के लिए विवाह का पंजीयन अनिवार्य करने के लिए कानून बनाने के साथ ही केबिनेट में प्रस्‍ताव पारित कर इसे पूरे प्रदेश के लिए विगत अक्‍टूबर 2006 को ही अनिवार्य कर दिया है । अब हमें भी भले ही हमारी बरबादी के ग्‍यारह साल हो चुके हों पर अब अपना विधिवत विवाह पंजीयन कराना होगा ।


क्‍या आपने कराया है अपने विवाह का पंजीयन ।

भिलाई स्‍पात संयंत्र में जंगरोधी रेलपांत का निर्माण

भिलाई स्‍पात संयंत्र नें पिछले कई वर्षों से लौह उत्‍पादन में एक से बढकर एक कीर्तिमान स्‍थापित कियें हैं । नेंहरू जी के स्‍वप्‍न को साकार करता यह संयंत्र रूस भारत मित्रता का सबसे बडा मिशाल है । इस संयंत्र नें पिछले कुछ वर्षों से रेलपांतों के निर्माण में भी कीर्तिमान स्‍थापित कर रहा हैं । इसी संबंध में इन दिनों क्षेत्रीय समाचार पत्रों में प्रतिदिन समाचार प्रकाशित हो रहे हैं प्रस्‍तुत हैं एक विवरण ।


(रेलपांत निर्माण में प्रवीणता के यादगार के रूप में रेल चौंक का दृश्‍य)

केन्‍द्र सरकार के एक महत्‍वांकांक्षी प्रोजेक्‍ट समुद्रीय तटवर्ती क्षेत्रों के लिए बेहतर केमिकल कंपोजिशन के साथ किफायती जंगरोधी रेलपांत बनाने पर भिलाई में काम शुरू हुआ है एवं प्रतिदिन इससे नित नये अनुसंधान व परीक्षण किये जा रहे हैं । संयंत्र नें पहली खेप में प्रथम स्‍वीकृत केमिकल कंपोजिशन की रेलपांत परीक्षण के लिए तैयार भी कर लिया है । इसके लिए भिलाई स्‍पात संयंत्र नें रेल टेक्‍नालाजी के क्षेत्र में अंतर्राष्‍ट्रीय मानकों के अनुसार अनुसंधान के लिए पहली बार दो प्रमुख केन्‍द्रीय एजेंसियों से हांथ मिलाया है जिससे कि अब तक भिलाई में बन रही जंगरोधी रेलपांत की केमेस्‍ट्री में कुछ संशोधन होगा एवं देश के समुद्री इलाकों को किफायती जंगरोधी रेलपांत मिल पायेगी


केन्‍द्र सरकार नें बेहतर गुणवत्‍ता के रलपांतों के निर्माण हेतु टेक्‍नालाजीकल मिशन फार सेफ्टी शुरू किया है । जिसमें मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से आईआईटी कानपुर, भारतीय रेलवे की ओर से अनुसंधान इकाई आरडीएसओ और स्‍टील अथारिटी आफ इंडिया की ओर से भिलाई स्‍पात संयंत्र प्रमुख भागीदार हैं । भिलाई स्‍पात संयंत्र के जीएम मिल्‍स भरतलाल कहते हैं ‘’प्रोजेक्‍ट टीएमआरएस पर जब काम शुरू हुआ तो मालिबडेनियम धातु सबसे मंहगी थी । अब निकल की टेक्‍नालाजी इस्‍तेमाल कर किफायती जंगरोधी रेलपांत विकसित की गयी है । हालांकि निकल भी अब पहले जितनी सस्‍ती धातु नहीं रही फिर भी हमारे यहां जो रेलपांत विकसित की गयी है वह मालिबडेनियम से सस्‍ती ही पडेगी जो तटवर्तीय क्षेत्रों के लिए रेलवे के मानकों के अनुरूप होगी ।

तो अब लौह नगरी से सस्‍ती व उच्‍च गुणवत्‍ता के रेलपांतों का निर्माण प्रारंभ हो जायेगा एवं देश को रेलपांतों की नियमित सप्‍लाई मिल पायेगी ।

रेल भारत की जीवन धारा है एवं इसे जीवन देने में मेरे शहर की भी भागीदारी है यह मेरी सुखद अनुभूति है और मैं इसे आपके साथ बांटना चाहता हूं ।

धांसू प्रोफाईल का सच

हम कवि एवं कविता दोनों के मर्मज्ञ हैं । हम कवि हृदय एवं आह से उपजे गान को समझते हैं । पाठक भी ऐसे अवसर को पहचानते हैं प्रेम, आह और दर्द को देखकर कविता के चिट्ठों में सात्‍वना देने जरूर जाते हैं । कहा भी गया है जो दुख में साथ निभाये वही तो साथी है, यदि बनना हो साथी तो प्रेम, आह और दर्द की कविताओं पर टिप्‍पणी कीजिये अपने प्रोफाईल में तुलसीदास जैसे महाकवि के छंदों को लिखें । कवि न होउं न बचन प्रवीणा । तो भईये ये संवाद का तकाजा है ।

हम तो साहित्‍य के विद्यार्थी रहे हैं हमें तो और भी मजा है मुहरटे छंदों व पदों की ऐसी झडी टिप्‍पणियों व आरकुट स्‍क्रैपों में हम फेंकते हैं कि कन्‍या तो फिदा हो ही निहायत हाउस वाईफ टाईप फिमेल भी हमारे बहुमुखी व्‍यक्तित्‍व वाले प्रोफाईल से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता । हमने आरकुट और कविता के चिट्ठों को देखा तो अपने प्रोफाईल को पहले अपडेट किया क्‍योंकि जब लोग जो हैं वो नही प्रस्‍तुत करते, जो नहीं हैं उसे प्रस्‍तुत करने का नाम ही यदि प्रोफाईल है तो हम क्‍यू पीछे रहें बडे दिनों से जो भी बनने की तमन्‍ना थी उसे बारी बारी से अपने फोफाईल में अब डालना आरंभ कर दिया था । पच्‍चीस पोज देकर अपने पिचके गाल के दोनो तरफ दो दो बीडा पान बनारस से मंगा कर दाबे हैं और बीस फोटू खिंचवायें थे । ऐइसा फोटू निकलवाया था कि जइसे गुड । मख्खियां भिनभिना के आई रही थी । भाई सूंघने वालों की कमी नहीं है बस आपका प्रोफाईल और फोटू एवं टिप्‍पणी धांसू होना चाहिए ।

अब आने लगे थे स्‍क्रैप, होने लगी थी चैटिंग । रात को जब फुरसतिया टाईम में हम नेट में बैठते थे तो हमारी श्रीमतिजी कनखियों से हमारे मानीटर का निरीक्षण करते रहती थी । सो हमने अपने साथियों को कह दिया कि अपने अपने प्रोफाईल में फोटू अमिताभ बच्‍चन और अमर सिंह जी का लगा लो पर संजीत भाई के मामू नें हमारा सब किये धरे पर पानी फेर दिया । तब हमने कहा कि हनुमान जी का फोटो लगा लो क्‍योंकि शादी के पहले तक हम भी उन्‍ही के नक्‍शे कदम पर चले हैं और वो हमारे अब भी आराध्य हैं ऐसे में कनखियों से भी हमारी श्रीमती जान नहीं पायेगी कि हम इंशान से चैट कर रहे हैं कि भगवान से ।

कल ही हमारी जिद्दी पडोसन घर आयी और आग लगा गयी । वो आई जी पंडा के सारे किस्‍से को मेरी श्रीमती को रिकाल करा गयी । अब हनुमान जी के भी फोटू को नाक में चश्‍मा को ठीक करती हुई देखती है और कहती है भरोसा नहीं है तुम लोगों का वो प्रोफेसर मटुक नाथ को देखो, अपनी बेटी के उम्र की लडकी के साथ भाग गया । आजकल की लडकियां चीनी कम, निशब्‍द जैसी फिल्‍में देखकर रामधारी सिंह दिनकर की उर्वशी को भी मात देने लगी हैं ।

श्रीमती के बार बार रिकवेस्‍ट करने और गृह कलह की गंभीर संभावनाओं को मध्‍ये नजर रखते हुए फाईनली हमने आज अपने प्रोफाईल में वो सुन्‍दर फोटू बदल दिया और अपना असली फोटू लगा दिया ।

कैसे लगा मेरा फोटू बताईयेगा जरूर ।

शीर्ष पर बिराजी शक्ति

दैनिक भास्कर मे कल प्रकाशित खबर

नन्ही महमहिम

युवा महमहिम हमारे भूतपूर्व राष्‍ट्रपति, चित्र बडा कर के देखे



अलविदा डा कलाम

अपने चिट्ठे को तीन कालम वाला बनायें

चिट्ठे में कालम की आवश्‍यकता

ब्‍लागर्स, वर्डप्रेस व याहू 360 में सेवा प्रदाता के द्वारा दो कालम का टेम्‍पलेट्स उपलब्‍ध कराया जा रहा है जिसमें एक बडा कालम पोस्‍ट के लिए एवं एक साईड कालम प्रोफाईल, चिट्ठे के विषय आदि अन्‍य सामाग्री के लिए होता है, पर आजकल ब्‍लाग की बढती लोकप्रियता एवं उसमें विभिन्‍न आवश्‍यक सेवाओं को एक पेज में डालने के लिए चिट्ठाकरों के द्वारा विभिन्‍न बटन, लिंक, एचटीएमएल कोड, एड सेंस आदि का प्रयोग अपने ब्‍लाग में किया जा रहा है जिसके कारण साईड कालम लगातार लम्‍बी होती जा रही है । ऐसे में चिट्ठाकार यदि कोई छोटा पोस्‍ट लिखता है तो उसके दो कालम के टेम्‍पलेट्स में साईड कालम में डाली गई जानकारी पोस्‍ट के खत्‍म हो जाने के बाद भी खत्‍म नहीं होती । कई बार तो ऐसा होता है कि जब कोई आवश्‍यक टैग जिसे हम लोगों को दिखना चाहते हैं वह पोस्‍ट के काफी नीचे होने के कारण लोग वहां तक माउस स्‍कोल करते ही नहीं ।

तीन कालम टेम्‍पलेट्स क्‍या है

उपरोक्‍त समस्‍याओं का हल है तीन कालम का टेम्‍पलेट्स, जिसमें आजू बाजू में साईड कालम व बीच में पोस्‍ट के लिए स्‍थान होता है । इससे हमारे द्वारा दो कालम टेम्‍पलेट्स के एक साईड कालम में डाली गई लम्‍बी सामाग्री तीन कालम टेम्‍पलेट्स के दो साईड कालम में बांटी जा सकती है । इससे पोस्‍ट के साथ ही दोनों तरफ के कंटेंट्स पाठक को एक साथ नजर आते हैं ।

तीन कालम टेम्‍पलेट्स क्‍यों

आजकल ज्‍यादातर लोग 14 इंची मानीटर के स्‍थान पर 17 इंची मानीटर का प्रयोग कर रहे हैं ऐसे में यदि आपका चिट्ठा तीन कालम का हो तो आप अपने चिट्ठे में पाठकों को ज्‍यादा जानकारी उपलब्‍ध करा सकते हैं । अब यह आपके विवेक पर निर्भर करता है कि आप साईड कालमों में क्‍या क्‍या जानकारी या लिंक डालते हैं और विजिटर को कितनी देर तक अपने चिट्ठे पर रोक सकते हैं ।

तीन कालम टेम्‍पलेट्स में पोस्‍ट के अतिरिक्‍त आजू बाजू, उपर व नीचे हेडर व फुटर के रूप में आपको अतिरिक्‍त पेज इलेमेंट भी प्राप्‍त होते हैं ।

तीन कालम टेम्‍पलेट्स कैसे बनायें

तीन कालम टेम्‍पलेट्स को बनाने के लिए आपके चिट्ठे की चौडाई बढानी होती है फिर उसमें एक अतिरिक्‍त कालम जोडने के लिए कुछ एचटीएमएल कमांड डालने होते हैं एवं कुछ तब्‍दीली करनी होती है । चूंकि इसमें तकनीकी जानकारी की आवश्‍यकता पडती है अत: हमने विभिन्‍न वेब साईटों में उपलब्‍ध तीन कालम के टेम्‍पलेट्स को तलाशना प्रारंभ किया । कई साईटों में यह उपलब्‍ध है पर हमें ब्‍लागर्स वर्कशाप नामक ब्‍लाग का टेम्‍पलेट्स पसंद आया । हमने स्‍वयं इसे प्रयोग किया एवं इसे सफलतापूर्वक संस्‍थापित किया । फीड एग्रीगेटरों से इस संबंध में अनुमति भी प्राप्‍त की पर उन्‍होंने कहा कि इसकी आवश्‍यकता नहीं है । इस संबंध में चिट्ठाजगत एवं ब्‍लागवाणी के हम आभारी हैं जिन्‍होंने हमें पंद्रह मिनट के अंदर ही जबाब भी दिया ।

हम आपको तीन कालम वाले टेम्‍पलेट्स को चिट्ठे पर संस्‍थापित करने का सरल तरीका बताते हैं :-
1. तीन कालम वाला चिट्ठा टेम्‍पलेट्स ब्‍लागर्स वर्कशाप नामक ब्‍लाग(http://thrbrtemplates.blogspot.com) में उपलब्‍ध है, इस साईट को खोलें । इस साईट में दिये गये किसी भी तीन कालम टेम्‍पलेट्स को पसंद करिये एवं डाउनलोड पर माउस को ले जाए एवं राईट क्लिक करें । सेव टारगेट एज को चुने व किसी इच्छित टारगेट में उसे सेव कर लें ।

2. अब अपने चिट्ठे में साईन इन करें व अभिन्‍यास को क्लिक करें । खाका का पेज खुल जायेगा । इसमें दिये गये हेडर, फुटर एवं साईड कालम के प्रत्‍येक पृष्‍ट तत्‍व (कंटेंट्स, टैगों, लिंकों, चित्रों व टेक्‍स्‍ट) को क्रमश: संपादन के द्वारा खोल कर किसी टेक्‍ट्स या वर्ड फाईल में सेव कर लें । अपने चिट्ठे के हेडर, फुटर एवं साईड कालम का कच्‍चा खाका किसी पेपर में बना कर रख लें कि कहां क्‍या क्‍या डाला गया था ।

3. अब खाका पेज से एचटीएमएल संपादन को क्लिक करें । “पूर्ण टेम्‍पलेट्स डाउनलोड करें” को क्लिक कर डाउनलोड कर अपने वर्तमान खाके को अपने इच्छित स्‍थान पर सुरक्षित रख लेवें ताकि यदि आप कोई गडबडी कर बैठते हैं तो आपको चिट्ठे का मूल स्‍वरूप “अपलोड” के द्वारा पुन: प्राप्‍त हो सकेगा ।

4. अब “पूर्ण टेम्‍पलेट्स डाउनलोड करें” के नीचे “Browse” बटन को क्लिक कर पूर्व में द ब्‍लागर्स वर्कशाप नामक ब्‍लाग (http://thrbrtemplates.blogspot.com) से डाउनलोड व सेव (क्रमांक 1 के अनुसार) किये गये टेम्‍पलेट्स को सलेक्‍ट करें व “अपलोड” करें ।

5. अब यहां पर आपके पूर्व के खाके के कंटेंट को सहीं ठंग से संस्‍थापित नहीं कर पाने के कारण बिन्‍दुवार सूचना प्राप्‍त होगी । यहां आप “सुरक्षित करें” चुनें । इससे आपके पूर्व के साईड कालम के कंटेंट समाप्‍त हो जायेंगें । परवाह मत कीजिये आपने अपने कंटेंट्स को टैक्‍स्‍ट या वर्ड फाईल में सेव कर के रख ही लिए हैं (क्रमांक 2 के अनुसार)।

6. अब “विजेट टेम्‍पलेट्स” विडों के नीचे लाल बटन में लिखे “खाका सहेजें” को क्लिक करें ।
7. अब खाका के दाहिने तरफ “ब्‍लाग देखें” को क्लिक करें और अपने तीन कालम में तब्‍दील चिट्ठे को देखें । आपका तीन कालम का चिट्ठा तैयार है ।

8. इस तीन कालम चिट्ठे में आपके पूर्व के हेडर, फुटर व साईड बार कालम के कंटेंट नहीं नजर आ रहे हैं । मात्र एबाउट मी, लेबल व ब्‍लाग अचीव ही नजर आ रहे हैं ।

9. पुन: “समानुरूप” चुनें “खाका” पेज में जायें और “एक पृष्‍ट तत्‍व जोडे” के द्वारा पूर्व में टैक्‍स्‍ट या वर्ड फाईल में (क्रमांक 2 के अनुसार) सेव कर के रखे गये कंटेंट्स, टैगों, लिंकों, चित्रों व टेक्‍स्‍ट को क्रमश: दायें – बांयें या हेडर – फुटर में संस्‍थापित कर लेवें एवं अपनी रूचि के अनुसार कालमों को सजा लेवें । लीजिए तैयार है आपका सजा धजा चिट्ठा ।

तीन कालम टेम्‍पलेट्स की व्‍यवहारिक समस्‍यायें

तीन कालम टेम्‍पलेट्स में जो व्‍यवहारिक समस्‍यायें आती है उन्‍हें भी हम आपको बता देना चाहतें हैं ताकि आप इसे जान सकें । इस साईट से डाउनलोडेड टेम्‍पलेट्स में पहली समस्‍या यह आती है कि साईड बार कालम को विभक्‍त करने के लिए लगाई गयी लंबवत काली रेखा कंटेंट्स को काटती हुई निकलती है जिसके कारण चिट्ठा अच्‍छा नहीं दिखता । इसे दूर करने के लिए आप पुन: “खाका” पेज में “एचटीएमएल संपादन” में जायें और एचटीएमएल शव्‍द Layout Divs हेडिंग के नीचे border: के सामने दिये गये अंक को घटा कर 0px कर लेवें उसके बाद हेडर, फुटर, साईड बार जहां जहां border दिया गया है उसे ऐसे ही बदल लेवें । लंबवत व अन्‍य रेखा हट जावेगी ।

इस टेम्‍पलेट्स के दाहिने साईड के कालम कम टेक्‍स्‍ट आदि का एलाईमेंट लेफ्ट होने के कारण सहीं नहीं लगता अत: एचटीएमएल संपादन में Sidebar Styles में text-align: right कर लेवें । इसी प्रकार हेडर, फुटर, प्रोफाईल, अचीव आदि को ढूढ कर मनमाफिक सेंटर, लेफ्ट या राईट कर लेवें ।

तीन कालम टेम्‍पलेट्स की उपरोक्‍त समस्‍या सुलझाई जा सकती है पर एक मुख्‍य समस्‍या जो हमसे सुलझाई नही जा पा रही है वह है पुराने ब्‍लाग अचीव एवं लेबलों को देखने के लिए क्लिक करने पर कभी कभी पोस्‍ट काफी नीचे चली जाती है जिससे पाठक को यह लगने लगता है कि पोस्‍ट खाली है यद्धपि थोडा माउस स्‍क्रोल करने पर पूरा पोस्‍ट दिख जाता है पर यह समस्‍या पुराने पोस्‍टों को रिकाल करने में ही आ रही है । हमने पूर्व से ही तीन कालम प्रयोग करने वाले संजीत त्रिपाठी जी के चिट्ठे आवारा बंजारा में भी इस समस्‍या को देखा है । वैसे इससे कोई पाठक को कोई विशेष अंतर नहीं पडता है ।

हम आपको जुगाड तोड से बनाये गये तीन कालम चिट्ठे के संबंध में उपरोक्‍त जानकारी दे रहे हैं पर हम स्‍वयं तकनीकि जानकार नहीं हैं इस कारण इसमें त्रुटियां संभव है । इस संबंध में ज्‍यादा जानकारी श्रीश भाई ई-पंडित जी दे सकते हैं यद्धपि वे मेरे पिछले मरक्‍यू वाले पोस्‍ट को समयाभाव के कारण पढ नहीं पाये थे जिसमें मैनें उनसे अनुरोध किया था पर हम आशा का दामन छोडे बिना उनसे पुन: अनुरोध करते हैं कि वे इस पोस्‍ट में एक्‍सपर्ट कमेंट्स देवें । श्रीश भाई के एक्‍सपर्ट कमेंट्स के बाद ही इन प्रक्रियाओं को अपनायें ।

संजीव तिवारी (tiwari.sanjeeva@gmail.com)

पेंटालून बिग बाजार का छत्‍तीसगढ में पदार्पण

फ्यूचर ग्रुप के पेंटालून रिटेल इंडिया लिमिटेड नें रायपुर में हाईपर मार्केट स्‍टोर के अपने सबसे बडे रिटेल चेन बिग बाजार का आज शुभारंभ किया । 51000 वर्ग फिट में फैले सिटी माल 36 में स्थित बिग बाजार रायपुर का पहला सबसे बडा हाईपर मार्केट है ।

वैसे रायपुर में मझोले स्‍तर की कम्‍पनियों के रिटेल बाजार भी विगत कई वर्षों से संचालित थे पर पेंटालून के आने से अब छत्‍तीसगढियों को भी ठेठरी बासी खाकर, अपना पागी पउटका, खुमरी आदि लेने के लिए महानगर के स्‍तर का बाजार प्राप्‍त हो सकेगा ।

स्कूलो मे योग शिक्षा

छत्तीसगढ के शिक्षा विभाग ने बाबा रामदेव के सुझाओ को मानते हुए 2005 के शिक्षा सत्र से योग शिक्षा को स्कूलो मे सम्मिलित किया था, इसके आदेश के साथ ही राज्य शैक्षणिक अनुसन्धान परिषद ने 1 से 12 तक के छात्रो के लिये योगासनो की सूची जारी की थी और पूरे प्रदेश मे मास्टर ट्रेनर तैयार किये गये थे . ये मास्टर ट्रेनर प्रत्येक स्कूल के एक शिक्षक को योग पाठ्यक्रम की शिक्षा भी दिये थे तकि शिक्षक बच्चो को योग सिखा सके .

इस पाठ्यक्रम को जीवन विज्ञान का नाम दिया गया जिसमे प्रार्थना सभा व कालखण्डो मे जीवन विज्ञान व योग की गतिविधियो को सिखाने का निर्देश था . पर दुर्ग जिले को छोडकर छत्तीसगढ के किसी भी जिले के स्कूलो मे यह पाठ्यक्रम शासन के निर्देशो के बावजूद लागू नही किया जा सका .
दुर्ग जिले मे यह पाठ्यक्रम सही ढंग से चल रहा है इसके लिये जिले के 11 शिक्षक राजस्थान के लाडलू मे 20 दिन की विशेष प्रशिक्षण लेकर आये है . जिले मे पाठ्यक्रम के सही संचालन के लिये पोरवाल चेरिटबल ट्रस्ट व जीवन विज्ञान अकादमी दुर्ग के स्वयंसेवक सहयोग कर रहे है और जिले के स्कूलो मे अनुलोम विलोम व कपाल भांति धीरे धीरे छाने लगा है .

पूरे राज्य के एक जिले ने इसके लिये प्रयास किया पर इस सद प्रयास को राजनीति का ग्रहण लगने वाला है . जिले के कतिपय नेताओ द्वारा इसे स्कूली बच्चो को धर्म विशेष से जोडने का प्रयास है कह कर सरकार पर आरोप लगाये जा रहे है . चिंता और प्रबल हो जाती है जब जिले के ख्यात शिक्षाविद प्रो. एस सी मेहता कहते है कि एसा करके हम कैसा समाज देने जा रहे है, संविधान ने हमे धर्म निरपेक्षता का पाठ पढाने का निर्देश दिया है स्कूलो मे धर्मगुरुओ व धार्मिक मान्यताओ का प्रवेश निषेध होना चहिये !

क्या सोचते है आप बाल मन मे अनुलोम विलोम व कपाल भांति से धार्मिक मान्यताओ का प्रभाव पडेगा !

बढते घोटाले टूटती उम्‍मीदें

छत्‍तीसगढ, हरियाणा एवं दिल्‍ली से एक साथ प्रकाशित होने वाले दैनिक समाचार पत्र हरिभूमि के क्षेत्रीय पन्‍ने पर रविवार को “बढते घोटाले टूटती उम्‍मीदें” नाम से एक लेख छपा हैं । नवोदित राज्‍य छत्‍तीसगढ में हुए प्रमुख घोटालों पर प्रकाश डालते हुए अपने विस्‍तृत लेख में वरिष्‍ठ पत्रकार सुकांत राजपूत जी नें कहा है कि –

“छत्‍तीसगढ अब देश में अपनी धाक जमाने लगा है । वह किसी भी बडे प्रदेश से पीछे नहीं हैं । अगर आप सोंच रहे हैं यह बात किसी विकास सूचकांक के आधर पर कही जा रही है तो आप गलत हैं । दरअसल यह मुल्‍यांकन उन प्रदेशों की तुलना के आधार पर है जो घोटालों में डूबे हुए हैं । एक नये प्रदेश का नीला आकास इन घोटालों की काली घटनाओं में घिर गया । देश के तमाम दूसरे राज्‍यों की तरह यहां के घोटालों की जांच अधर में अटकी है . . . ।“

“प्रदेश के अब तक के सबसे प्रमुख घोटाले - पी डब्‍लू डी का डामर घोटाला, फर्नीचर घोटाला, टाटपट्टी घोटाला, बारदाना घोटाला, नमक घोटाला, पी एच ई का पाईप घोटाला, कनकी घोटाला, राज्‍य लोक सेवा आयोग में गडबडी, सहकारी बैंक घोटाले, दलिया आबंटन में गडबडी, धान घोटाला, कम्‍प्‍यूटर घोटाला, फर्जी मार्कशीट और जाति प्रमाण पत्र में गडबडियों का मामला, कंडम वाहन घोटाला, दवा खरीदी घोटाला _ _ _ !”

“. . . अविभजित मघ्‍य प्रदेश के समय से ही यहां कई प्रकार के घेटाले उजागर होते रहे हैं । लेकिन राज्‍य पुर्नगठन के बाद भ्रष्‍टाचार नें सीमा पार कर दी है । नवोदित राज्‍य में सत्‍ता के लोगों के हाथ ताकत थी, इस ताकत का जमकर दुरूपयोग किया गया । जिसका नतीजा कुछ सालों में सामने हैं, सबले बढिया – छत्‍तीसगढिया का नारा देने वालों नें यह दर्शा दिया कि वे वाकई में अन्‍य किसी राज्‍य की तुलना में घोटाले के क्षेत्र में काफी आगे है ।“

“. . . जो रोल विधायिका और कार्यपालिका को करना चाहिए वह भूमिका अब देश का जनमानस न्‍यायपालिका में तलाशने लगा है ।“


इस लेख पर मेरी प्रतिक्रिया – सुकांत राजपूत जी नें यहां पर छत्‍तीसगढ सहित देश के अन्‍य घोटालों का भी उल्‍लेख किया है एवं इस पर राजनीतिज्ञों व जनता का विचार भी प्रकाशित किया है । लेख का सार घोटालों पर जनता का घ्‍यान आकृष्‍ट करना प्रतीत होता है । लेखक न्‍यायपालिका के बदले रूख पर आश्‍वस्‍थ नजर आते हैं, यदि सुशांत जी क्षेत्रीय घोटालों का स्‍पष्‍ट विवरण देते तो लेख और रोचक हो सकता था ।
क्षेत्रीय घोटालों पर मेरी सोंच - यह बात हमें भरपूर दिलासा दिलाती है कि पिछले दिनों न्‍यायपालिका नें अपने दायित्‍वों का बेहतर निर्वहन किया है एवं उसने राजनैतिक व अफसरशाही के बल पर भ्रष्‍टाचार को दबाने, छुपाने एवं पनपने से रोकने के सारे दरवाजे जनता के लिए खोल दिये हैं । 6 दिसम्‍बर 2006 को न्‍यायाधीश अरिजित परसायत व न्‍यायाधीश एस एच कपाडिया के न्‍याय निर्णय के आधार पर भारतीय दण्‍ड संहिता की धारा 197 व भ्रष्‍टाचार निरोधक अधिनियम 19 1 के तहत अब वो सारे बंधन समाप्‍त हो गये हैं जो दिग्‍गजों के द्वारा किए गये भ्रष्‍टाचार के विरूद्ध कानूनी लडाईयों में आडे आते थे । अब कोई भी मंजूरी व इजाजत का बहाना नहीं चलेगा राजनेताओं व अफसरशाहों की गिरफ्तारी के लिए, और न्‍यायपालिका ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत देने में भी पूरी सावधानी बरतेगी । हम सबने यह मान लिया है कि ऐसा ही होने वाला है ।

तो क्‍या हम यह खुशफहमी पाल लें कि अब वे दिन लद गये जब घोटालेबाज मजे से हमारा धन लूटते थे और हम खून का आंसू लिए मुंह बंद किये जीते थे ? पर ऐसा बिल्‍कुल नहीं है । न्‍यायपालिका में आज भी ढेरों मुकदमे लंबित हैं । भारतीय न्‍यायिक परंपरा, न्‍यायाधीशों की कमी, लंबित मुकदमों का भारी बोझ और अधिवक्‍ताओं के मानवीय खेलों नें त्‍वरित न्‍याय में नित नये रोडे अटकाये हैं और देश व प्रदेश की घोटालों की सूची निरंतर बढती रही है दो चार मुकदमों के फैसलों से हमें अतिउत्‍साहित नहीं होना है । हर चुनाव में राजनीति, आरोपी व अपराधी का भेद जनता को समझाती है और अबोध जनता सफेद झक कपडों के पीछे छुपे दानव को मानव का भगवान मान कर सर आंखों में बिठा लेती है ।

हमने छत्‍तीसगढ के उच्‍च न्‍यायालय में देखा है यहां के पूर्व मुख्‍य न्‍यायाधीश नायक के समय में जो न्‍यायिक परंपरा छत्‍तीसगढ में कायम हुई थी वह राज्‍य के सात सालों में अपना एक अलग स्‍थान बनाती है । न्‍यायाधीश नायक के काल में अधिवक्‍ता रिट व पब्लिक लिटिगेशन को उच्‍च न्‍यायालय में पंजीकृत कराने में घबराने लगे थे क्‍योंकि वो ही एक ऐसे न्‍यायाधीश थे जो तथ्‍यहीन व बेबजह परेशान करने एवं पब्लिसिटी स्‍टंट के लिए दायर मुकदमों के विरूद्ध भारी से भारी जुर्माना, मुकदमा दायर करने वाले पर लगाते थे वहीं जनता से जुडे व भ्रष्‍टाचार के मामलों को तत्‍काल पंजीकृत करवाते थे फलत: उस समय में जनता से जुडे मामले जल्‍द निबटने लगे थे । पर क्‍या इन सात सालों में छत्‍तीसगढ के घोटालों से जुडे मामलों में कोई निर्णय आया है ? बिल्‍कुल नहीं । बमुश्‍कल इनकी फाइलें जांच समितियों से निकल कर डायस में आ पाई हों । ऐसे ही एक घोटाले से जुडे जांच समिति के प्रमुख का मैं निजी सचिव रह चुका हूं मैं इनकी सारी प्रक्रिया से वाकिफ हूं । उच्‍च न्‍यायालय में लंबित मुकदमों की फेहरिश्‍त इतनी लंबी है कि जब तक आरोप सिद्ध होने की स्थिति आयेगी तब तक सारे घोटालेबाज दस पंद्रह साल और मोटे मोटे घोटाले करते रहेंगें, उसके बाद अपील का अधिकार संविधन नें उन्‍हें दिया है उस अधिकार का प्रयोग करने से उन्‍हें इस जीवन काल तक का समय मिल ही जायेगा । और हम लेख पे लेख पोस्‍ट पे पोस्‍ट लिखते जायेंगे कहते जायेंगें – छत्‍तीसगढिया सबले बढिया ।

चिट्ठे में मरक्‍यू या चलित शब्‍द पट्टी

आजकल हिन्‍दी चिट्ठाकारों के द्वारा अपने चिट्ठे में मरक्‍यू या चलित शब्‍द पट्टी लगाई जा रही है । जो आपके चिट्ठे का आर्कषण को बढा रहे हैं वहीं आवश्‍यक जानकारी सीमित स्‍थान में स्‍क्रोल होते हुए उपलब्‍ध हो जा रहे  हैं । कुछ साथियों के द्वारा इस संबंध में मुझसे एवं संजीत जी से जानकारी मेल के द्वारा मागी जा रही है । हालांकि हम दोनों तकनीकि जानकार नहीं हैं फिर भी हमने कुछ जुगाड तोड कर के अपने ब्‍लाग में इसका प्रयोग किया है और साथियों को इसकी जानकारी भी समय समय पर दे रहे हैं । मुझे जितनी जानकारी है उसके आधार पर मैं यहां कुछ विवरण प्रस्‍तुत कर रहा हूं । इस संबंध में श्रीश भाई ई स्‍वामी व ई पंडित भाई लोग पोस्‍ट लिखते तो हमें खुशी होती ।




ब्रह्ममुरारि सुरार्चित लिङ्गम् निर्मल भासित शोभित लिङ्गम् । जन्मजदुःख विनाशक लिङ्गम् तत् प्रणमामि सदा शिव लिङ्गम् । १ । देव मुनि प्रवरार्चित लिङ्गम् कामदहम् करुणाकर लिङ्गम् । रावण दर्प विनाशन लिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् । २ ।




यदि आप भी चलित शव्‍दों का प्रयोग अपने ब्‍लाग में करना चाहतें हैं तो हम आपको कुछ जानकारी दे रहे हैं जिसकी सहायता से आप चलित शव्‍दों का प्रयोग अपने ब्‍लाग में कुशलता पूर्वक कर सकेंगें एवं एच टी एम एल के कोडों के संबंध में परिचित हो सकेंगें यथा -


1    चलित शब्‍द जिसे marquee कहा
जाता है के विभिन्‍न behavior होते हैं जो चलित शब्‍दों को
विभिन्‍न इफेक्‍ट प्रदान करते हैं । जिसमें से ब्‍लाग में बहुधा प्रयोग होने वाले
behavior उपरोक्‍त चलित शव्‍दों के अनुसार तीन हैं पहला
"alternate"  दूसरा lang=en-us>"scrol"  marquee direction="left"
एवं तीसरा "scrol"  marquee
direction="right"  


2    उपरोक्‍त सभी स्थितियों में एच टी एम एल कोड एक ही होते
हैं सिर्फ behavior और direction कमांड को बदलना होता है


3    अब हम यहां marquee का कोड दे
रहे हैं जो मेरे दर्शित marquee का है



<table align="center" border="1">

<tr>

<td background=""><font size="6" face="arial"
color="#000000">

<span style="background-color: #FFCC00">

<marquee direction="left" scrolldelay="80"

behavior="scroll" scrollamount="6" width="550"
height="40" loop="true"><blink>ब्रह्म मुरारि
सुरार्चित लिङ्गम् निर्मल भासित शोभित लिङ्गम् ।
</blink></marquee></span></font></td>

</tr>

</table>

<p>&nbsp;</p>

<p>&nbsp;</p>

यह कोड उपरोक्‍त चलित शव्‍द बायें से दायें का है । अब हम आपको इस कोड में दिये गये कमांड ( नीले रंग में दर्शाये गये हैं)  के संबंध में जानकारी देते हैं ताकि आप उसे समझ कर अपने अनुसार marquee सेट कर सकें । सबसे पहले इस कोड को कापी कर डेस्‍कटाप में राईट क्लिक से नया टेक्‍ट फाईल बनाकर उसमें पेस्‍ट कर लेवें फिर नीचे दिये गये सलाह के अनुसार से
" "  के बीच में दिये गये कमांड कोड को बदल कर अपने अनुरूप बना लेवें ।


1    टेबल -
यदि आप marquee को टेबल के अंदर देना चाहते हैं तो बार्डर में color=#0000ff>1 से लेकर 9 तक अंक बदल सकते हैं इससे आपका marquee का टेबल बार्डर मोटा या पतला सेट होगा यदि आप टेबल बार्डर नहीं देना चाहते तो 0 डालें । वैसे ही टेबल को लेफ्ट या राईट एलाईन किया जा सकता है यह एलाईन तभी हो सकेगा जब आप हेडर के नीचे marquee डाल रहे हैं साईड इलेमेंट के रूप में वैसे भी जगह कम होता
है अत: वहां सेंटर एलाईन ही ठीक होगा ।


2     फोंट साईज color=#0000ff>1 से 6 तक डाल सकते हैं इससे चलित शव्‍द के आकार छोटे या बडे किए जा सकते हैं ।


3    फोंट का रंग color=#0000ff>#000000 द्वारा बदला जाता है इसके लिए तकनीकि की जानकारी या किसी बेव साईट से कलर कोड चुना जा सकता है । जुगाड तोड के लिए अंको में बदलाव कर के प्रभाव देख सकते हैं ।


4    चलित शव्‍द का इफेक्‍ट कैसा हो - यदि हम चाहतें हैं चलित शव्‍द बायें से दायें चले तो डायरेक्‍शन में राईट लिखें और यदि आप चाहतें हैं दायें से बायें चले तो लेफ्ट लिखें । यदि आप चलित शव्‍दों को झूले की तरह दायें बांये झुलाना चाहते हैं तो बिहेबियर में color=#0000ff>scroll  की जगह alternate
डालना होगा ।


5    चलित शव्‍द की दोलन व इफेक्‍ट गति को नियंत्रित करने के लिए स्‍क्राल डिले के सामने लिखे अंक को कम या ज्‍यादा कर लेवें पर इसे तीन अंकों से कम या ज्‍यादा न करें तो उचित होगा । चलित गति को नियंत्रित करने के लिए स्‍क्रोलएमांउन्‍ट की संख्‍या को color=#0000ff>1 ये 9 तक बढा घटा लेवें


6    अब आता है चलित शव्‍दों के आकार लंबाई चौडाई एवं टेबल की तो यहां वीर्थ एवं color=#0000ff>हाईट में अपने अनुसार से अंकों में तब्‍दीली कर के टेबल का आकार सेट कर सकतें हैं । जैसे हेडर के नीचे सेट करना हो तो वीर्थ color=#0000ff>600 से 800 तक रख सकते हैं वहीं साईड बार में रखना हो तो र्वी‍थ 100 से color=#0000ff>300  रख सकते हैं ।


7    अब जहां लाल रंग में शव्‍द लिखे हैं उसकी जगह आप अपने इच्‍छानुसार शव्‍द लिख कर डाल सकते हैं जैसे समाचारों की सुर्खियों को टाईप कर <blink>प्रतिभा  पाटिल राष्‍ट्रपति पद के लिए चुन ली गयीं </blink> पेस्‍ट कर सकते हैं ।


8     अब आपका एच टी एम एल कोड तैयार हो गया अब न्‍यू फाईल को सेव एज करें वह नाम पूछेगा तो नाम दें lang=en-us>xyz.htm अब वह फाईल आपको इंटरनेट एक्‍सप्‍लोरर आईकान में दिखने लगेगा न्‍यू टेक्‍ट फाईल को भी कोई नाम देकर सेव कर लेवें । lang=en-us>xyz.htm फाईल को क्लिक करें देखें आपका marquee  ठीक लगा कि नहीं । यदि ठीक है तो  टेक्‍ट फाईल के सारे कंटेंट को कापी कर अपने इच्छित स्‍थान (हेडर, साईड बार, फुटर)
में कहीं भी एड न्‍यू इलेमेंट में एच टी एम एल कोड के रूप में पेस्‍ट कर देवें । यदि आप दुहरी तिहरी लाईन उपयोग करना चाहें तो इस कोड
को दो बार या तीन बार पेस्‍ट कर दें दो या तीन लाईन की पट्टी चलने लगेगी ।


9    देखें आपका  marquee 
चालू हो गया ।


वैसे विभिन्‍न वेब साईट आनलाईन मरक्‍यू बनाने की सुविधा भी देता है आप चाहें तों उनका प्रयोग भी कर सकते हें ।


ई पंडित व ई स्‍वामी भाई एवं चिट्ठाजगत वाले भाई लोगों से मेरा अनुरोध है कि मेरे उपरोक्‍त कोड में जो तकनीकि त्रुटियां हैं उसे टिप्‍पणी के द्वारा सुधारने की कृपा करें ताकि नये प्रयोक्‍ताओं को सहीं कोड प्राप्‍त हो सके ।
नये प्रयोक्‍ताओं से भी मेरा अनुरोध है कि इस कोड का प्रयोग पंडित भाईयों के टिप्‍पणी के बाद ही प्रयोग में लावे ।


संजीव तिवारी (tiwari.sanjeeva@gmail.com)

क्‍या आप भी हिन्‍दी में हस्‍ताक्षर करते हैं ? : प्रेरणा

बात सन् 1989-90 की है मैं तब रायपुर में श्री राम होण्‍डा ग्रुप में पोर्टेबल जनसेट्स के मार्केटिंग फील्‍ड में नौकरी ज्‍वाईन कर लिया था । वहां मैं इंस्‍टीट्यूशनल सेल्‍स देखता था । उस वर्ष हमारे टीम के प्रयास से हमारे रीजन छत्‍तीसगढ-उडीसा में देश के अन्‍य रीजनों से सर्वाधिक जनसेट्स की बिक्री का रिकार्ड कायम हुआ ।
कम्‍पनी के द्वारा हमारे डीलर एवं हमारे टीम के प्रत्‍येक सदस्‍य को होटल मयूरा में इनाम के साथ ही प्रशश्ति-पत्र भी प्रदान किया गया । मैं इस प्रोत्‍साहन से बहुत प्रभावित हुआ । दूसरे दिन दो दिन की छुट्टी लेकर अपने गांव गया अपने उत्‍साह को मां बाप के आर्शिवाद से अक्षुण बनाने के लिए ।

गांव जाकर मां बाप के सामने अपने पुरस्‍कारों को रखा । मेरी मां इनाम में मिले ब्रीफकेस को देखने लगी तो मेरे पिताजी मेरे प्रशश्ति-पत्र को अपने मोटे चश्‍में से निहारने लगे । पिताजी अंग्रेजी में लिखे शव्‍दों का अक्षरश: अर्थ बताते हुए आखरी में आकर ठिठक गये । देर तक प्रशश्ति-पत्र को निहारते रहे फिर बोले
“ये दू झन के दस्‍खत काबर हे जी ।“
प्रशश्ति-पत्र के नीचे में श्रीराम ग्रुप के इंडियन डायरेक्‍टर और होण्‍डा ग्रुप के जापानी डायरेक्‍टर का हस्‍ताथर था । मैंने उन्‍हें इस ज्‍वाइंट वेंचर के संबंध में बताया । पर वे संतुष्‍ट नहीं हुए फिर बोले
“पर येमा तो होण्‍डा वाले हा जापानी में दस्‍खत करे हे जी ।“
मैंने सहज भाव से उत्‍तर दिया
“हां काबर कि वो ह जापानी ये तेखर सेती विदेशी भाषा में दस्‍खत करे हे ।“
“त तोर श्री राम वाले ह कोन मार देशी भाषा में दस्‍खत करे हे ।“ पिताजी नें कहा ।

मेरा सारा उत्‍साह उस शव्‍द नें क्षण भर में उतार दिया । मैंनें पिताजी से वो प्रशश्ति-पत्र लगभग छीन सा लिया । देखा, एक तरफ जापानी होण्‍डा कम्‍पनी का र्निदेशक जापानी भाषा में हस्‍ताक्षर किया था और दूसरी तरफ भारतीय र्निदेशक अंग्रेजी में हस्‍ताक्षर किया था ।

दो दिन गांव में रहा दोनों दिन में जब भी पिताजी से सामना हुआ मुझे बिनावजह आत्‍मग्‍लानी सा महसूस होता । मन में विचार कुलबुलाते रहे कि एक जापानी सात समुंदर पार भारत में आकर भी अंग्रेजी भाषा के मजमून पर हस्‍ताक्षर करता है तो अपनी भाषा में और हम हैं कि मजमून भी विदेशी भाषा में लिखते हैं और हस्‍ताक्षर भी विदेशी भाषा में करते हैं । हमारा कोई अस्तित्‍व नहीं है हमारी कोई निजी पहचान नहीं है उधारी का मान सम्‍मान उसमें भी शान ।

उस दिन के बाद से मैने हिन्‍दी में हस्‍ताक्षर करने का निश्‍चय किया । मैं जब भी हिन्‍दी में हस्‍ताक्षर करता हूं मुझे आनंद की अनूभूति होती है और तब तो मेरी अनुभूति और बढ जाती है जब अंग्रेजी में लिखे गये पत्रों में, मैं जब हिन्‍दी में हस्‍ताक्षर करता हूं ।
क्‍या आप भी करते हैं अपनी भाषा में हस्‍ताक्षर ?


(ब्‍लाग से ही ज्ञात हुआ कि भाई रवि रतलामी जी भी हिन्‍दी में हस्‍ताक्षर करते हैं मेरा प्रणाम स्‍वीकारें उनके अतिरिक्‍त उन सभी हिन्‍दी हस्‍ताक्षर कर्ताओं को मेरा सलाम ।
आपने मेरे इस आनंद अनुभूति को जीवंत रखा है।)

एमबीसियस गर्ल

छोटे शहरों के सितारा होटलों में बडे बडे चोचले के साथ ही रिशेप्‍शन के अतिरिक्‍त प्रोफेशनल लेडीज स्‍टाफ रखने का चलन अब बढता जा रहा है खासकर हाउसकीपिंग व किचन डिपार्टमेंटों में जहां अब तक एक्‍का दुक्‍का ही महिला स्‍टाफ रहते थे वहां इनकी संख्‍या में इजाफा होते जा रही है । वो इसलिए कि अब प्रदेश स्‍तर पर भी होटल व रेस्‍टारेंट के प्रशिक्षण संस्‍थान खुलते जा रहे हैं जहां से नयी नयी एम्‍बीसि‍यस विथ स्‍मार्ट गर्ल्‍स ट्रेनिंग लेती हैं और लोकल लेबल पर इन होटलों में ज्‍वाईन कर लेती हैं । कभी कभी एकाध माह दिल्‍ली मुम्‍बई के होटलों में काम कर के भी लडकियां वापस आ जाती हैं और लोकल लेबल पर ज्‍वाईन कर लेती हैं ।

अब ऐसी दिल्‍ली मुम्‍बई रिटर्न लडकी और उसका एम्‍बीसि‍यस होना हमें बहुत सालता है । धीरूभाई हैं कि रोज आते हैं और कहते हैं फलाना जी मिस ढेकाने को ढंग से काम सिखाईये ये वेलकम ग्रुप में काम कर चुकी हैं और ली मेरेडियन ज्‍वाईन करने वाली थी हमने रिक्‍वेस्‍ट कर के इन्‍हे ज्‍वाईन करवाया है । कहते तो ऐसे हैं जैसे हमें ही कह रहे हों कि आप ही सीखें ये तो सीखी पढी है । दिखने में भी वैसेईच लगती है ।

हम ठहरे ठेठ छत्‍तीसगढिया, सोंचते हैं जइसे ठेठ बिहारी लालू जी रेल मंत्रालय अपने स्‍टाईल में चला रहे हैं वैसे ही हम इस धरमशाला को चलायेंगे चाहे अंग्रेजी मेम आये कि जर्मनी के बाबू । यहां छत्‍तीसगढ में तो हम राजा हैं हमारी मेहरारू कहती है वा जी किसी भी शहर में चले जाओ आपके चेले होटल में नजर आ ही जाते हैं । हम हैं ही खानदानी ट्रेनिंग इंस्‍टीट्यूट, स्‍टार रेटिंग हमने लिया ही इसीलिए है चार महीना सीखों रूम में गेस्‍ट के लिए रखे लेटर पेड चुराओ टायपिंग इंस्‍टीट्यूट से एक्‍सपीरियंस सर्टिफिकेट बनाओ खुद दस्‍खत करो और चढ जाओ बेबीलोन में । पर ये एम्‍बीसि‍यस गर्ल जबसे आई है हमारी मति को अपने पांच इंची हिल वाली सैंडिल के टप टप से बहुतै भरमाती है ।

अब धीरूभाई नें भर्ती किया है इस कारण हम इनकी सैंडल का ही नाप जानने पर विश्‍वास रखते हैं ज्‍यादा कुछ नहीं । दूसरी बात दिलवालों की दिल्‍ली के ली मेरेडियन से आयी है तो कुछ तो मान रखना ही पडेगा । जब हमें रिपोर्ट देने, तराशे गये टखनो व पिंडिलियों को ढकने का प्रयत्‍न करते सोबर स्‍कर्ट और शरीर को भरपूर कसती हमारे मोनो वाली कमीज में फाईलों को अपने सीने में दबाये हमारे सामने खडी होती है तब मन तो ये करता है कि काश मैं फाईल होता । चश्‍मों को अपने सहीं जगह में बैठाते हुए उसकी बातें सुनता हूं । दिल्‍ली के गलियों और वहां रहने वालों के बारे में पूछता हूं कि शीला दीक्षित जी से मिली हो क्‍या, वहां चाय का क्‍या क्‍या ट्रेंड चल रहा है, कोई कवि संम्‍मेलन सुनी हो कि नहीं आदि आदि । और बातें खत्‍म कर फाईलों को वेवजह अपने टेबल में रखवा लेता हूं कि थोडी देर बाद देख कर दूंगा । उसके जाने के बाद इत्मिनान से फाईलों को नाक के सामने ले जाकर रामदेव के चेले की भांति लम्‍बी लम्‍बी सांस लेते हुए उसके डियोडरेंट का ब्रांड जानने का प्रयत्‍न करता हूं ।

पर एमबीसियस गर्ल ब्रांड का पता चलता ही नहीं । काम करने में तेज हो कि ना हो बातों में बडी तेज है रूमसर्विस सम्‍हालती है । कहती है सर रूमसर्विस और हाउसकीपिंग का काम तो मेरे घर सम्‍हालने जैसा है जैसे हम अपने कमरे सजाते हैं वैसे ही रूम सजाना है और धीरे धीरे मेरे धरमशाले के साथ साथ अपना घर भी कमीशन पेटे सजाने लगी है । रिसपांसिबिलिटी नाम की चिडिया किसे कहते हैं उसे मालूम ही नहीं दिन भर हाहा, हीही तो उससे समय बच गया तो मोबाईल में चिपकी रहेगी । रूम से फोन की घंटी पे घंटी बज रहे हों पर मैडम का मोबाईल ज्‍यादा जरूरी है । ऐसे में गेस्‍ट का शिकायत आना लाजमी है । पर कभी गेस्‍ट की शिकायत आई नहीं कि अपने झील सी आंखों में रहस्‍यमय भाव लिये हमारी सहानुभूति प्राप्‍त करने की मुद्रा में हमारे सामने खडी हो जाती है और कहती है सर जमाना खराब है गेस्‍ट जबरन शिकायत कर रहा है । इसीलिए तो मम्‍मी होटल में नौकरी करने से मना करती है । अरेरेरे मैं वारी जांवा कुडिये ।

ऐसे समय में कभी कभी धीरूभाई भी हमारे पास आना चाहते हैं तो हम झटपट वेटर भेजकर लिफ्ट को टाप फ्लोर में भेजकर दरवाजा खुलवा देते हैं । अब बुलाते रहो, एक दो बार बटन दबाते हैं फिर उत्‍साहे में “हफरते हफरते” फलोर पे फलोर चढते जाते हैं । मिस ढेकाना के अभिवादन एवं मुस्‍कान से उनका सारा श्रम काफूर हो जाता है ।

धीरूभाई भी पसीज जाते हैं उसकी अदा पर । वो ठहरे बुजुर्ग आदमी हमारी एमबीसियस गर्ल ठहरी तब्‍बू जी सी कम उम्र वाली, उसे मैंनेजमेंट हेल्‍प नहीं करेगा तो कौन करेगा । सचमुच में आज कल के गेस्‍ट साले बदमास हैं अमूल के फेमस प्रोडक्‍ट पहन कर लाबी में भी निकल जाते हैं और मना करो तो गलती गिनाने लगते हैं । बेचारी का ध्‍यान रखा करो अब जमाना बदल गया है । गाहे बगाहे स्‍कर्ट से पिंडिंलिंयां झांकती हैं और सारा मैंनेजमेंट उसकी तरफ हो जाता है ।

मैं लाख कोशिस करता हूं हिम्‍मत कर के उससे रेजीगनेशन ले लूं पर जब भी हिम्‍मत करता हूं कोई ना कोई संवेदना का सहारा उसके पास रहता है और उपर से धीरूभाई ना निगलने देते ना उगलने देते ।

हमारी समस्‍या तो सुलझने के बजाय उलझती ही जाती है एक ही बात सत्‍य नजर आती है कुछ लडकियां अपने नादानी को बेहद भुनाती हैं ।
... और बॉस के चाय में कम तो अपने चाय में चीनी ज्‍यादा मिलाती हैं ।

One million pounds sterling की लाटरी

सथियों कल हमें एक मेल आया था जिसमें मुझे किसी डाक्‍टर साहब नें लिखा है कि मुझे ब्रिटेन की One million pounds sterling की लाटरी लगी है वो भी कैसे तो रेंडमली सलेक्‍टेड ई मेल एड्रेस के द्वारा । हम मेल के पढते ही जान गये कि ये कंटिया है पर दिल तो पागल है मानता ही नहीं है । सोंचता है हो सकता है ये मेल सही हो, पिछले तीन सप्‍ताह से सवा लाख की लाटरी वाला आशावादी गीत सुन रहा हूं, भगवान नें हमारी सुन ली हो और लग गई लाटरी ।

दरअसल मेरे आई पाड में मेरे पुत्र नें श्री सूक्‍त लोड करते करते सवा लाख की लाटरी वाला गाना भी लोड कर दिया है अब जैसे ही श्री सूक्‍त खत्‍म होता है ये सवा लाख की लाटरी वाला गाना चलने लगता है । हमने अपने बेटे को कह दिया है आज के जमाने में सवा लाख से कुछ नहीं होता मागना है तो सवा करोड मांगों । ये क्‍या सवा लाख – डेढ लाख भगवान से मांगना । हटा दो मेरे आई पाड से ये गाना मैं अपने श्री सूक्‍त और शिव सूक्‍तों से खुश हूं जहां मांग की कोई सीमा नहीं है । पर ना तो वो हटा रहा है ना ही हम हटा पाये हैं इस सवा लाख के लालच को ।

... और देखों ईश्‍वर की माया छप्‍पर फाड के दिया है One million pounds sterling। मेरी पत्‍नी कह रही है कोई पूर्व जन्‍म का पुण्‍य कर्म है आपका, जो इतना बडा इनाम हांथ लगा है । अब हमारे सारे दुख दूर हो जावेंगें आपको बैल की तरह पिसते देख कर, हमारी हर आवश्‍यकताओं के लिए आहें भरते देख कर हमें टीवी अदाकारा श्‍वेता तिवारी जैसे दुख का आभास होता है आप तो टीवी देखते नहीं हो इस कारण भावनाओं का असर आपको होता नहीं है हम कैसे सहते हैं हम ही जानते हैं । अब हमें आज ही पैसे दीजिए सत्‍यनारायण का व्रत कथा-पूजा करवाना है इतना बडा इनाम लगा है । ... और मैं इस उहापोह में जी रहा हूं कि कैसे पत्‍नी को बताउं कि ये कंटिया है कोई लाटरी फाटरी नहीं है ।

पर सोंचता हूं इस खुशफहमी को बरकरार रखूं । घर में आज मेरा एक अलग ही क्रेज बना है, हरि साडू को बिल्‍कुल सहीं प्रोनाउंसियेट किया है, नहीं तो मेरी पत्‍नी साहित्‍य, कम्‍प्‍यूटर, चेटिंग व ब्‍लागिंग को सबसे अधम काम समझती है, जैसे हमारे छत्‍तीसगढ में नौकरी को अधम नौकरी कहा जाता है और खेती को उत्‍तम कहा जाता है । हमारी खेती वर्षा जल से ही सिंचित होने एवं अतिवृष्टि व अनावृष्टि के निरंतर मार खाने के कारण हमारा साथ छोड दी है । हमें भी विवश होकर अधम कर्म को अपनाना पडा है उसमें करेले पे नीम ब्‍लागिंग का नशा । अत: जिन्‍दा रखता हूं इस सत्‍य को कि मुझे ब्रिटेन की लाटरी लगी है । यदि आपको भी ये मेल आये तो मुझे सूचित करियेगा, मिठाई का इंतजाम मैं करूंगा ।

मुझे जो मेल आया है वह यह है – देंखें, पढे, आह ! कहे वाह ! कहें और मेरे परिवार को आर्शिवाद दें -

UK NATIONAL LOTTERY HEADQUARTERS
The Marina Offices, St Peters Yacht Basin,
Newcastle upon Tyne, NE6 1HX England

Dear Winner,

We are pleased to inform you of the final announcement that you are
one of our first quarter winners of the UNITED KINGDOM NATIONAL
LOTTERY,international Lottery programs. held today the 4th of
july,2007.Theselection was made from the list of over 21,000
e-mail addresses of individual and corporate bodies picked by an
advanced automated random computer search from the internet, no
ticketswere sold.

After this automated computer ballot, your e-mail address emerged
as one of three winners in the category \\\\\\\"A\\\\\\\" with the
following winninginformations: You have therefore been approved to
claim a total
sum of £1,000,000 (One million pounds sterling).

REFERENCE NUMBER:(hmane nahi diya hai)
BATCH NUMBER:(hmane nahi diya hai)
TICKET NUMBER:(hmane nahi diya hai)

To file for your claim, Contact the processing Consultant:

Dr. Pinkett Griffen
Do fill out the claims form to Dr. Pinkett Griffin in other to
processthe claims of your prize without delay.

PAYMENT PROCESSING FORM:
1.FULL NAMES:_____________________
2.ADDRESS:________________________
3.SEX:_____________________________
4.AGE:____________________________
5.MARITAL STATUS:________________
6.OCCUPATION:____________________
7.E-MAIL ADDRESS:________________
8.TELEPHONE NUMBER:____________
9.AMOUNT WON:__________________
10. COUNTRY______________________

Reply to this confidential email account: (hmane nahi diya hai)
Sincerely,
Mrs. Rose Woods
UK NATIONAL ONLINE LOTTERY.

....Your Email Address Has Won !!!!!

हजार बार देखो, देखने की चीज है (ब्‍लागर्स पैरोडी टाईप गद्य)

कल भारी बारिस के कारण रायपुर में कोई फ्लाईट नही आ पाई जमीन से आसमान तक पानी ही पानी, हमारे संस्‍था प्रमुख को आज शाम को दुबई जाना था । हडबडाने लगे क्‍या करें, नागपुर फोन किये पता चला वहां भी देर सबेर की नौबत है समय चूके जा रहा था कल भी यही हाल रहा तो ... चक्रधर की चकल्लस छोडो। हमने अपनी अभिव्यक्ति प्रस्‍तुत की बोईंग तो अइबेच नई करी अब लालू भईया के बडे बोईंग में जाये बर पडी मुम्‍बई से कल उडना है आपको कल का इंतजार करते यहीं बैठे रहेगें तो नही न जा पायेंगें दुबई ।



सो हम दौडे सांसद महोदय से रेलगाड़ी के बडका साहब को फोन करवा के टेसन की ओर टिकस का बंदोबस्‍त करने । टिकट का इंतजाम करने के बाद हमारे पास कुछ समय था हम इंतजार करने लगे बॉस का । महाशक्ति की भांति चारो तरफ नजर दौडाये कहीं कोई सुन्‍दरी मिल जाय और आंख तर कर ली जाय या कोई जोगलिखी हो कोई पहचान का मिल जाये । इस बुढापे भरी जवानी में अब आंख और अंतर्मन का ही तो सहारा रह गया है । देखा सामने एक लगभग 40-45 वर्ष की जवान कन्‍या अपने साजो सामान के साथ खडी थी साथ में उसका सामान था अल्प विराम हूर के साथ लंगूर की शक्‍ल में उसका पति गले में पट्टा बंधे कूकूर की भांति खडा था आंखों में मोटी ग्‍लास का चश्‍मा लगाये इधर उधर कुछ सूंघता हुआ शायद कुली ढूंढ रहा था । हमने अपनी नजर दूसरी ओर कर ली लगा डर कि हमरी सूरत देख के हमें ही ऐ कुली कह कर ना बुला ले ।



उसे आश्‍वस्‍थ होकर एक जगह खडे देखा तो सोंचे ये जोगलिखी हमारे लिये ही है पहले चोर निगाहों से सुन्‍दरी को फिर देखा सुन्‍दरी नें 40-45 वर्ष की ढलती उम्र को पीले टी शर्ट एवं नीले फुल टाईट जीन्‍स से जकड रखा था । गठे ठसे शरीर की कहानी स्‍पष्‍ट थी कि उसकी कोई सृजन-गाथा नहीं है । चेहरे पर विशेष रूप से बंजर भूमि सुधार के सारे परयोग अपनाये गये थे और धान गेहूं बोना छोडकर जैसे आजकल फूलों की खेती की जा रही है वैसे ही अंग्रेजी खादों से गुलाबों की खेती की गयी थी ।



मन बिना चोर नजर से उस ड्रीम सुन्‍दरी को देखना चाहा नजरें सीधे उस पर । एक क्षण में उसने अपने राजीव नयन में भांप लिया कि हम उसकी सुन्‍दरता के मुरीद हैं । उसने अनमने से अंजान भाव प्रदर्शित करते हुए पर्स से आईना निकाला, अपनी सूरत देखने लगी, मानो हमें अनुमति दे रही हो कि देखो । उसकी मानसिक हलचल को मैं स्‍पष्‍ट पढ रहा था । सौंदर्य का प्रदर्शन होना ही चाहिए हमारा मन उडन तश्तरी …. बन उसके आस पास मंडराने लगा । हमारे दादा जी कहा करते थे जिसमें से कुछ ज्ञात कुछ अज्ञात हैं पर एक याद है - आप रूप भोजन, पर रूप श्रृंगार । जो रूप उसने धरा है वो दुनिया को दिखाने के लिए ही था, सौभाग्‍य से वहां हम एकोऽहम् ही थे और कोई नहीं था, दो चार बूढे निठल्ला चिन्तन कर रहे थे, सो फुरसतिया देखने लगे, प्रेम अनुभूतियाँ जाग उठी । कस्‍बा, बजार, मोहल्ला में यदि वो दिख जाती तो जवानों का कांव कांव हो जाता पर यहां कोई भी बजार पर अवैध अतिक्रमण नहीं कर सकता था ।



हमने अपनी आंखें व्‍यवस्थित की देखने लगे जी भर के, मन पखेरू फ़िर उड़ चला छायावादी कवि की भांति क्‍योंकि हमें हिन्द-युग्म में सौंदर्य कविता जो भेजनी है क्या करूँ मुझे लिखना नहीं आता… इसीलिए सौंदर्य बोध कर रहा था रचनाकार को तूलिका पकडा कर ।


अचानक उसके पति को लगा कि हम उसकी पत्‍नी को ताक रहे हैं । बेचैन सी निगाहों से हमें अगिनखोर सा देखा । नजरें बिनती कर रही थी, भाई साहब प्‍लीज ऐसा मत करो उसके अंर्तध्‍वनि को सुनकर हम भी अपने लिंकित मन व निगाह को सहजता से दूसरी तरफ कर लिये ऐसा प्रदर्शित करते हुए कि हम कोई पंगेबाज नही हैं कुली खोज रहे हैं और पास ही रखे दूसरे की लगेज के पास जा कर खडे हो गये ।



देखा एक कुआरा सजीला नौजवान पास में ताजा समाचार पत्र लेकर आ गया आवारा बंजारा की भांति कहने लगा हम भी हैं लाइन में हम सौंदर्य के पुजारी हैं । हमने बातों बातों में उसे समझाते हुए कहा बेटा मैं एक अकेला इस शहर मे.. साहित्‍यकार हूं हिन्‍दी व्‍लाग वाला चिट्ठाकार हूं, मसिजीवी हूं पहले मैं आया हूं मुझे सौंदर्य की अनुभूति है । पास ही एक राम भक्‍त यानी हनुमान रेलवे पुलिस खडा था हम लोगों का वाद-संवाद सुन रहा था । जोर से डंडा पटका और बोला -



तुम साले अधकचरे लोग समय नष्‍ट करने का एक भ्रस्‍ट साधन हो अभी हमारे छत्‍तीसगढ में हिन्‍दी ब्‍लाग लिखने वाले भाई जयप्रकाश मानस ही सृजन शिल्पी हैं तीसरा कोई नहीं है उन्‍ही को मालूम है साहित्‍य और सौंदर्य, चलो भागो यहां से बेफालतू में भीड बढा रहे हो तुम लोगों का मन निर्मल आनंद नहीं है । हमने पिद्दी सिपाही से बतंगड़ करना और ज्ञानदत्‍त पाण्‍डेय जी का धौंस देना उचित नही समझा, दिल में आह भरते नौ दो ग्यारह हो गये मन में ढंग से ना देख पाने की वेदना व्‍याप्‍त थी ।

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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

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