भाषा के लिये आवश्‍यक है योग्‍य व्‍याकरण (Grammer) का होना

मानक छत्‍तीसगढी व्‍याकरण एवं छत्‍तीसगढी शव्‍दकोश

छत्‍तीसगढ राज्‍य के निर्माण के साथ ही छत्‍तीसगढी भाषा को राजभाषा का दर्जा भी दे दिया गया । अब इस भाषा के विकास के लिये सरकार की सुगबुगाहट के साथ ही स्‍वैच्छिक रूप से क्षेत्र के विद्वानों के द्वारा सहानुभूतिपूर्वक सक्रियता दिखाई जा रही है । भाषा के मानकीकरण के लिये ख्‍यात भाषाविद डॉ.चित्‍तरंजन कर एवं प्रदेश की एकमात्र नियमित छत्‍तीसगढी भाषा की पत्रिका ‘लोकाक्षर’ नें अपने प्रयास आरंभ कर दिये हैं । छत्‍तीसगढ में भाषा के विकास के लिये ‘व्‍याकरण’ एवं ‘शव्‍द कोश’ पर निरंतर गहन शोध व संशोधन हुआ है एवं समय समय पर छत्‍तीसगढी व्‍याकरण व शव्‍द कोश का प्रकाशन भी होते रहा है । व्‍याकरण के लेखक चाहे जो भी हों किन्‍तु प्रत्‍येक प्रकाशन के साथ ही इसमें निखार आता गया है । छत्‍तीसगढ में छत्‍तीसगढी सहित अन्‍य कई बोलियां बोली जाती है, छत्‍तीसगढी भाषा में भी स्‍थान स्‍थान के अनुसार से किंचित भिन्‍नता है इस कारण छत्‍तीसगढी के मानक व्‍याकरण की बहुत समय से प्रतीक्षा थी । इस प्रतीक्षा को दूर किया चंद्र कुमार चंद्राकर जी की कृति ‘मानक छत्‍तीसगढी’ नें ।

छत्‍तीसगढ की क्षेत्रीयता और जातिभेद से उपजी सभी उप बोलिंयों के मानक रूप पर आधारित यह ‘मानक छत्‍तीसगढी व्‍याकरण’ महज एक श्रेष्‍ठ कृति नहीं, आज की आवश्‍यकता है एवं भविष्‍य में भाषा के विकास के लिये एक आवश्‍यक अंग है । इस कृति में व्‍याकरण के सभी पक्षों पर सोदाहरण गहन विवेचना किया गया है । इस ग्रंथ में समानार्थी, विरूद्धार्थी, पर्यायवाची, अनेकार्थी, अनेक शव्‍दों के स्‍थान पर एक शव्‍द तथा शव्‍दों के लिंग-भेद की विस्‍तृत विवेचना, विविध प्रकार के वाक्‍य दोष तथा मुहावरों एवं लोकोक्तियों के वाक्‍य प्रयोग के साथ कोश देने से ‘मानक छत्‍तीसगढी व्‍याकरण’ का महत्‍व और बढ गया है । भाषा के विकास में चंद्र कुमार चंद्राकर जी का यह योगदान अत्‍यंत प्रसंशनीय है ।

इस व्‍याकरण के साथ ही चंद्र कुमार चंद्राकर जी की कृति  ‘छत्‍तीसगढी शव्‍दकोश’ भी अत्‍यंत सराहनीय एवं संग्रहणीय है । चंद्राकर जी का यह शव्‍दकोश, छत्‍तीसगढी में अब तक का सबसे बडा शव्‍दकोश है, इसमें 27000 शव्‍द हैं । शव्‍दों के सहीं अर्थ अभिव्‍यंजित होने के कारण सुविज्ञ पाठकों नें इसे ‘श्रेष्‍ठ कोश’ के रूप में स्‍वीकारा हैं । अनेकों विलुप्‍त शव्‍दों को जीवंत करनेवाला यह कोश छत्‍तीसगढी भाषा प्रेमियों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों के लिए अनुपम उपहार है ।
इस कोश का संशोधित एवं परिर्वधित रूप अतिशीध्र प्रकाशन को जा रहा है, जिसमें शव्‍द-संख्‍या में श्री वृद्धि भी हुई है साथ ही शव्‍दों की उत्‍पत्ति भी दर्शाई गई है ताकि अर्थ में विश्‍वसनीयता बढे । इसमें शब्‍दों के उदाहरण भी दिये गये हैं, इन सब के कारण व मुहावरों के प्रयोग आदि से अभिधा, लक्षणा एवं व्‍यंजना तीनों शव्‍दशक्तियों में अर्थ का द्योतन होने लगा है ।इनके व्‍याकरण की ही तरह यह शव्‍दकोश भी निश्‍चय ही छत्‍तीसगढी भाषा-विकास के पथ का ‘मील का पत्‍थर’ होगा ।
संजीव तिवारी

‘श्री चंद्राकर नें यह शब्‍दकोश पूर्ण समर्पण भाव से तैयार कर के छत्‍तीसगढी की प्रतिदिन होती जा रही आधिकारिक प्रगति के यज्ञ में अपने सार्थक परिश्रम की हवि प्रस्‍तुत की है । चूँकि यह कोश छत्‍तीसगढी के अभी तक प्रकाशित शब्‍दकोशों में सर्वाधिक शब्‍दों को अपने कलेवर में समेटे हुए है, इसलिये इस का स्‍वागत छत्‍तीसगढ की सारी मेजों द्वारा किया जाना निश्चित है । इस की सार्वजनिक उपयोगिता को नकारना किसी के लिए भी संभव नहीं है, क्‍योंकि यह छत्‍तीसगढी-भाषियों के लिए ही नहीं, अन्‍यों के लिये भी वक्‍त की माँग को पूरा करता है ।‘ डॉ.(प्रो.) रमेश चंद्र महरोत्रा


मानक छत्‍तीसगढी व्‍याकरण 
लेखक – चंद्र कुमार चंद्राकर
प्रकाशक – शताक्षी प्रकाशन, रायपुर
मूल्‍य – 395/- रूपये

छत्‍तीसगढी शव्‍दकोश
लेखक – चंद्र कुमार चंद्राकर
प्रकाशक – श्री प्रकाशन, दुर्ग
मूल्‍य – 505/- रूपये

लेखक परिचय
 
नाम : चंद्र कुमार चंद्राकर
जन्‍म तिथि : 23.01.1962 जन्‍म स्‍थान : ग्राम चौरेल, तह. गुण्‍डरदेही, जिला दुर्ग (छ.ग.)
माता : स्‍व.श्रीमती गिरिजा बाई चंद्राकर पिता : श्री गंगा प्रसाद चंद्राकर
संगिनी : श्रीमति उपासना चंद्राकर
शिक्षा : एम.ए., एम.फिल (भूगोल)
कृतियॉं : 1. छत्‍तीसगढी व्‍याकरण 2. छत्‍तीसगढ की वर्तनी 3. छत्‍तीसगढी कहावतें एवं लोकोक्तियॉं 4. छत्‍तीसगढी हंसौला संग्रह
संप्रति : प्राचार्य, संत राजाराम शदाणी नागरिक महाविद्यालय, डौंडी लोहारा, जिला दुर्ग, (छ.ग.)
संपर्क : ग्राम अरजुन्‍दा, तह. गुण्‍डरदेही, जिला दुर्ग (छ.ग.)
मो. : 094241 14632

दण्‍डक वन का ऋषि : लाला जगदलपुरी

बस्‍तर के लोक जीवन का चित्र जब जब हमारे सामने आता है तब तब एक शख्‍श का नाम उभरता है और संपूर्णता के साथ छा जाता है वह नाम है लाला जगदलपुरी का । साहित्‍य और संस्‍कृति के क्षेत्र में बस्‍तर के पहचान के रूप में लाला जी बिना हो हल्‍ला के पिछले पचास वर्षों से लगातार इस पर अपना छाप छोडते रहे हैं । उनके लेख व किताबें बस्‍तर के एतिहासिक दस्‍तावेज हैं । बस्‍तर के अरण्‍य वनांचल के गोद में छिपे लोक जीवन, साहित्‍य व संस्‍कृति के संबंध में सर्वप्रथम एवं प्रामाणिक जानकारी संपूर्ण नागर जगत को लाला जी के द्वारा ही प्राप्‍त हो सका है । इसके बाद तो लाला जी के सानिध्‍य एवं लेखनी व उनके सूत्रों का उपयोग कर अनेकों लोगों नें रहस्‍यमय और मनोरम बस्‍तर को जनता के सामने लाया और अपनी राग अलापते हुए अपने ढंग से प्रस्‍तुत भी किया जो आज तक बदस्‍तूर जारी है । 


बस्‍तर की लोक संस्‍कृति, लोक कला, लोक जीवन व लोक साहित्‍य तथा अंचल में बोली जाने वाली हल्‍बी–भतरी बोलियों एवं छत्‍तीसगढी पर अध्‍ययन व इन पर सतत लेखन करने वाले लाला जी निर्मल हृदय के बच्‍चों जैसी निश्‍छल व्‍यक्ति हैं । सहजता ऐसी कि सांसारिक छल छद्म से परे जो बात पसंद आयी, उस पर लिखलखिला उठते हैं । मन के अनुकूल कोई बात न हुई, तो तुरंत विरोध करते हैं । स्‍पष्‍टवादिता ऐसी कि गलत बात वे बर्दाश्‍त नहीं कर पाते इसी के कारण कोई उन्‍हें तुनकमिजाज भी कह देता है । धीर-गंभीर व्‍यक्तित्‍व, सदैव सब को अपने ज्ञान दीप से आलोकित करता एवं अपने प्रेम रस में आकंठ डूबोता हुआ ।
 

लाला जी का जन्‍म 17 दिसम्‍बर 1920 में जगदलपुर में हुआ था । शैशवकाल में ही के इनके पिता की मृत्‍यु हो गई एवं इनके उपर विधवा मॉं दो छोटे भाई एवं एक छोटी बहन का दायित्‍व आ गया, पढाई बीच में ही छूट गई । रोजी रोटी के इंतजाम के साथ ही लाला जी अपने रचना संसार में गीत, गजल, नई कविता, छंद, दोहों के साथ बस्‍तर की लोक कला, संस्‍कृति, इतिहास, आदिम जाति के जन जीवन पर गहराई से अध्‍ययन कर सूक्ष्‍म विवेचन प्रस्‍तुत करते रहे । इनके प्रयासों से ही भतरी व हल्‍बी बोलियों को जन के सामने अभिनव रूप में लाया जा सका । आदिम मुहावरों व लोकोक्तियों पर लालाजी नें खोजपूर्ण परिश्रम किया । बस्‍तर का पर्व जगार इनका सदैव हमसफर रहा, जगार को उन्‍होंनें अपने स्‍पर्श से सुगंधित किया और भूमकाल के नायक गूंडाधूर को उन्‍होंनें नई पहचान दी । इतना विशद लेखन एवं कार्य के बावजूद वे एक संत की भांति महत्‍वाकांक्षा से सदैव दूर रहे जिसके कारण उनके कार्यों का समयानुसार मूल्‍यांकन नहीं हो सका । अन्‍य साहित्‍यानुरागियों व विद्वानों की तरह, अपने निच्‍छल व सहज भाव के कारण समय को बेहतर ढंग से भुना नहीं सके, दरअसल वे इसे कभी भुनाना ही नहीं चाहे । वे संपूर्ण जीवन संघर्ष करते रहे एवं लिखते रहे हैं । वे स्‍वयं अपनी एक कविता में स्‍वीकारते हैं ‘जितना दर्द मुझे दे दोगे / उतने भाव संजो लूंगा मैं / जितने आंसू दोगे दाता / उतने मोती बो दूंगा मैं / जितनी आग लगा दोगे तुम / उतनी ज्‍योति जगा दूंगा मैं ...।’ बस्‍तर के संसाधनों की तरह इनके भी बौद्धिक अधिकारों की लूट मची रही है और ये सच्‍चे फकीर की भांति सबकुछ बांटकर भी मस्‍त मौला गुनगुनाते रहे हैं, बस्‍तर के दर्द को प्राथमिकता से महसूस करते हुए । बस्‍तर की पीडा को सच्‍चे मन से स्‍वीकारते हुए शोषण के हद तक दोहन पर उनके गीत मुखरित होते हैं – ‘यहां नदी नाले झरने सब / आदिम जन के सहभागी हैं / यहां जिंदगी बीहड वन में / पगडंडी सी चली जा रही / यहां मनुजता वैदेही सी / वनवासिन है वनस्‍थली में / आदिम संस्‍कृति शकुन्‍तला सी / प्‍यार लुटाकर दर्द गा रही ...’
 

इनके समकालीन अनेक सहयोगी एवं साहित्‍यकार स्‍वीकारते हैं कि लाला जी की सरलता एवं सभी पर विश्‍वास करने व ज्ञान बाटने की प्रवृत्ति के बावजूद उनकी  साहित्तिक उपेक्षा की गई है । अपनी सादगी, शांत प्रकृति, किसी के प्रति अविश्‍वास नहीं करने की प्रवृत्ति, परदुखकातरता और विशाल हृदयता के अतिरिक्‍त उदारता नें लाला जी जैसे विद्वान और शीलवान रचनाकार को हासिये पर ढकेले रखा । अपनी एक कविता में वे इस बात को पूर्ण आत्‍मस्‍वाभिमान से प्रस्‍तुत करते हैं – ‘चाहते मुझको न गाना / अप्रंशेसित गेय हूं / चाहते मुझको न पाना / मैं अलक्षित ध्‍येय हूं / चाहते जिसको न लेना / वह प्रताडित श्रेय हूं / मैं स्‍वयं अपने लिये / उपमान हूं, उपमेय हूं / दृश्‍य हूं / दृष्‍टा स्‍वयं हूं / पर अमर ...।‘ उन्‍होंनें सब पर विश्‍वास किया । यह तो एक सामान्‍य सी बात है । भ्रष्‍ट राजनेता और उनकी राजनैतिक पैतरेबाजी किसी को भी हासिये पर डाल सकती है । परन्‍तु लालाजी के साथ राजनितिकों नें शायद कुछ नहीं किया । अलबत्‍ता उनका दोहन तो उन बुद्धिजीवियों नें किया जो छल-कपट के लिये आज भी सराहे जाते हैं । इसके बावजूद लाला जी बैरागी भाव से कहते हैं ‘मैं इंद्रावती नदी के बूंद-बूंद जल को / अपने दृग-जल की भंति जानता आया हूं / दुख पर्वत-घाटी जैसे मेरे संयोगी / सबकी सुन-सुन, जिनकी बखानता आया हूं ...।’
 


नाटक, रूपक, निबंध और कहानी आदि अन्‍यान्‍य विधाओं में इनका लेखन रहा है । इनकी अब तक दो कविता संग्रह प्रकाशित हुई हैं - ‘मिमियाती जिन्‍दगी: दहाडते परिवेश’ एवं ‘पडाव 5’ । लोक साहित्‍य विषयक शोध एवं सर्वेक्षण के ग्रंथ बस्‍तर:लोकोक्तियॉं, बस्‍तर की लोककथांए, हल्‍बी लोककथांए, वन कुमार के साथ ही सर्वाधिक चर्चित शोध ग्रंथ – बस्‍तर : इतिहास एवं संस्‍कृति का प्रकाशन हुआ है । इसके अतिरिक्‍त इनके ढेरों लेख व कवितायें स्‍थानीय पत्र-पत्रिकाओं, चांद, विश्‍वामित्र, सन्‍मार्ग, प्रहरी, युगधर्म, वातायन, नवनीत, हिन्‍दुस्‍तान व कादम्बिनी आदि में प्रकाशित हुए हैं व आकाशवाणी से प्रसारित हुए हैं ।
 

इनको मिले पुरस्‍कारों की पडताल करते हुए मुझे इनकी एक कविता याद आती है – ‘वह / प्रकाश और अंधकार / दोनों को कान पकडकर नचाता है / जिसके कब्‍जे में / बिजली का स्विच आ जाता है ...।‘ इनको मिलने योग्‍य पुरस्‍कारों की जब-जब बारी आई, शायद बिजली का स्विच लालाजी के कार्यों से अनभिज्ञ व्‍यक्तियों के हाथ में रहा, इसे विडंबना के सिवा कुछ भी नहीं कहा जा सकता ।

अप्रतिम शव्‍द शिल्‍पी लाला राम श्रीवास्‍तव जी बस्‍तर के लोक भाषा व संस्‍कृति के प्रकाण्‍ड विद्वान हैं वे स्‍वयं इस बात को जानते हैं इसके बावजूद महत्‍वाकांक्षा तो उनकी कभी कोई नहीं रही, मामूली और जरूरी इच्‍छाओं तक को उन्‍होंनें हंकाल दिया । पिता की मृत्‍यु के बाद स्‍कूल से विलग हो जाने वाले लालाजी नें शिक्षा स्‍वाध्‍याय से प्राप्‍त की । गुलशेर खॉंन शानी, प्रो.धनंजय वर्मा जैसे कई योग्‍य एवं प्रसिद्ध साहित्‍यकारों का इन्‍होंनें शव्‍द संस्‍कार किया है एवं इनके आर्शिवाद से अनेकों शव्‍द सेवक आज देश के विभिन्‍न भागों में साहित्‍य सृजन कर रहे हैं ।
 


लाला जी बस्‍तर के दोहन व शोषण से सदैव दुखी रहे, अपनी रचनाशीलता के लिए उन्‍हें सतत संघर्ष भी करना पडा । आज तक वे दुख से उबर नहीं पाये पर वे इस पीडा को अपना साथी मानते आये हैं, वे कहते हैं ‘पीडायें जब मिलने आतीं हैं मेरे गीत संवर जाते हैं ...’
 

उनकी एक हल्‍बी गीत ‘उडी गला चेडे’ मुझे बहुत पसंद है । आज उनकी 78 वीं जन्‍म दिन के अवसर पर उनके दीर्धायु होने की कामना के साथ इसे प्रस्‍तुत कर रहा हूं – ‘राजे दिना/धन धन हयं/उछी उडी करी आयते रला/बसी-बसी करी खयते रला/सेस्‍ता धान के पायते रला/केडे सुन्‍दर/चटेया चेडे/सरी गला धान/भारी गला चेडे/एबर चेडे केबे ना आसे/ना टाक सेला/कमता करबिस/एबर तुय तो ‘खड’ होयलिस/एबर तोके फींगीं देयबाय/गाय खयसी/चेडे गला/आउरी गोटे ‘सेला’ उगर ।‘ लटक झूल रहा था नीचे धान की बालियों का एक झालर । टंगा हुआ था ‘सेला’ दरवाजे के चौंखट पर । अपनी शुभ शोभा छिटकाये दर्शनीय । एक दिन एक सुन्‍दर गौरैया आई, और उसने दोस्‍ती गांठ ली ‘सेला’ से । रोज रोज वह उड उड कर बार बार आती रही थी । बैठ कर सेला धान को खाती रही थी । भूख बुझाती रही थी । एक सुन्‍दर गौरैया । धीरे धीरे कम होते गये सेला के लटकते झूलते दाने । और एक दिन ऐसा आया कि सेला के पास शेष नहीं रह गया एक भी दाना । चिडिया उड गई । ‘चिडिया अब कभी नहीं आएगी रास्‍ता मत देख सेला ‘ सेला से उसकी आत्‍मा कह रही थी ‘अब तो तू रह गया है केवल घांस गौरैया के लिए अब रखा क्‍या है तेरे पास तेरे इस अवशिष्‍ट भाग से गौरैया को क्‍या लेना देना उसे चाहिए दाने गौरैया की दोस्‍ती तुझसे नहीं तेरे दानों से थी अब तुझे चौखट से उतार कर बाहर फेंक देंगें गइया खा जायेगी गौरैया गई एक नए ‘सेला’ की खोज में । उन्‍होंनें अपने कवि निवास में बस्‍तर ज्ञान भंडार से भरे हजारों ‘सेला’ लटकाए हैं और हजारों पिपासु गौरैयों नें सेला का इसी तरह उपभोग किया है ।
  
लाला जी शतायु हों, दीर्धायु हों । इन्‍हीं कामनाओं के साथ .......
संजीव तिवारी

सत्‍य की जीत या हार ... ?

 छत्‍तीसगढ का जनादेश आ चुका है, रमन सिंह के नेतृत्‍व वाली भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ प्रदेश में सरकार बनाने की क्षमता हासिल कर चुकी है । इस चुनाव परिणाम के पीछे विकास एवं रमन की छबि है । कांग्रेस नेतृत्‍व में आपसी कलह व भितरधात नें भी इस परिणाम को भरपूर प्रभावित किया है । पूरा राज्‍य रमन के तीन रूपिया किलो चांउर में तुलता हुआ प्रतीत होता है एवं उनकी वर्तमान व भविष्‍य की योजनाओं को जनता की स्‍वीकृति मिलती दीख पडती है । 

इस परिणाम में चौकाने वाला तथ्‍य यह हैं कि प्रदेश में सत्‍ता का समीकरण तय करने वाले आदिवासी क्षेत्रों में भी भाजपा नें अपनी बढत कायम रखी है जबकि समझा यह जा रहा था कि भाजपा सरकार के ‘सडवा जूडूम’ की योजना से आदिवासी त्रस्‍त हैं । सर्वोच्‍च न्‍यायालय में प्रस्‍तुत याचिका एवं दुनिया भर के तथाकथित विचारकों द्वारा यही प्रचारित भी किया जा रहा था । इसके बावजूद आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा की बढत यह सिद्ध करती है कि ‘सडवा जूडूम’ प्रदेश के हित में है ।

प्रचारित यह भी किया जा रहा था एवं कुछ हद तक हमें भी यह लगता था कि इससे आदिवासियों के प्राकृतिक आवास से उन्‍हें विलग कर अन्‍यत्र शरणार्थी की तरह बसाना जिससे वहां उन‍की स्‍वाभाविक रीति रिवाज, परम्‍पराओं पर अघोषित बंदिसें लग रही थी एवं संस्‍कृति पर संकट गहरा रहे थे । किन्‍तु यदि ऐसा था, उन्‍हें वह स्थिति पसंद नहीं थी, तो वे इस व्‍यवस्‍था के विरोध में जनादेश देते ।

नेपाल में प्रजातांत्रिक तरीके से सत्‍ता प्राप्‍त कर लेने के बाद छत्‍तीसगढ में भी नक्‍सलियों या नक्‍सल विचार समर्थित लोगों के आगे आने एवं जीतने की संभावना देखी जा रही थी इसके बावजूद नक्‍सलियों के द्वारा चुनाव का बहिष्‍कार, वोट डालने वालों के अंगुलियां काट देने का एलान उनके खीझ को दर्शाता है । उनके पास व्‍यापक जनाधार तो है ही नहीं, शोषण और बंदूक के बल पर समानांतर शासन । कुल मिला कर ‘दादा’ लोगों की दादागिरी ही है । उनके इस दादागिरी के बावजूद लोगों नें मतदान किया यह भी उनके दिलों में ‘दादा’ लोगों के प्रति विरोध को भी स्‍पष्‍ट दर्शित करता है । 

बात उमड घुमड कर पुन: जूडूम शिविर की उपादेयता पर केन्द्रित हो जाती है । सडवा जूडूम शिविरों में हालात यद्धपि बदतर होंगें किन्‍तु जब इस शिविर के अस्तित्‍व का फैसला देने का अवसर आया तब आदिवासियों नें स्‍वयं इसके पक्ष में ही फैसला दिया । यह स्‍पष्‍ट करता है कि ‘सडवा जूडूम’ छत्‍तीसगढ के हित में है । किन्‍तु वहां का हालात सुधारा जाना आवश्‍यक है जिन्‍होंनें रमन को जिताया है उनकी सुरक्षा के साथ ही उनके जीवन स्‍तर का ख्‍याल रखना अब रमन का दायित्‍व है । 

बस्‍तर के परिणामों और मतों के आंकडों को देखते हुए मुझे यह लगता है कि, मैदानी इलाकों में बैठे हम लोग कलम से कितने ही मार्मिक तस्‍वीर उकेर लेंवें वह सत्‍यता के करीब हो सकती है, पर पूर्ण सत्‍य नहीं ।

चलते चलते .... खबर यह भी है कि रायपुर ग्रामीण से कलमकारों के संरक्षक और कलमकारों को नई उंचाईयां देने में सहयोगी, आका-काका, पूर्व मंत्री सत्‍यनारायण शमों जी चुनाव हार चुके हैं ।


संजीव तिवारी

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...