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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
  संतोष झांजी के ७५ वें जन्मदिन पर : हिरनी के पांव थमते नहीं हैं विनोद साव   वे हमेशा तरोताजा और प्रफुल्लित दिखाई देती हैं जैसी बरसों से दिख रही हैं. अकाल वैधव्य के बाद भी चार बेटियों और एक बेटे के साथ अपने मातृत्व-मय कर्तव्य को पूरा करते हुए अपने संघर्षमय जीवन को उन्होंने गाते गुनगुनाते हुए बिता दिया. गीत लेखन और मंचों पर गायन ने उनके व्यक्तिव को गीतमय बना दिया. जीवन रूपी गाडी के पहियों ने उनके सुर में अपना सुर मिलाया और उनके आसपास को गीत माधुर्य से भर दिया. साहित्य की समालोचना ने नहीं पर जीवन के दर्शन ने जीवन को एक कविता कहा है. यह काव्यमय अभिव्यक्ति संतोष झांजी के पोर पोर से फूटती है.. और यही बन जाती है उनकी शक्ति, हर झंझावात से निपट पाने की.   ऐसे ही हौसलों के साथ अब वे ७५ पार कर रही हैं लेकिन मैं फकत ३० बरस से उन्हें जानता हूं. वह भी उनकी बाहरी सक्रियता से. मुझे ठीक ठीक याद नहीं कि भिलाई के उनके मकानों में मेरी उपस्थिति कभी हुई हो. वे अक्सर हमारे साथ तब होती हैं जब हम किसी साहित्यिक कार्यक्रमों में जा रहे होते हैं - पहले अशोक सिंघई की कार में और बाद में रवि श्रीवास्तव की क