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फिल्मों को भेड़ चाल से बचाएं : रामेश्वर वैष्‍णव

धारदार व्‍यंग्‍य कविताओं और सरस गीतों से कवि सम्‍मेलन के मंचों पर छत्‍तीसगढ़ी भाषा में अपनी दमदार उपस्थिति सतत रूप से दर्ज कराने वाले एवं चंदैनी गोंदा, सोनहा विहान, दौनापान, अरण्य गाथा, गोड़ के धुर्रा, छत्तीसगढ़ी मेघदूत, मयारू भौजी, लेड़गा नं. 1, झन भूलौ मां बाप ला जैसे लोकप्रिय छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍मों में गीतों के जरिये अपनी अलग पहचान बनाने वाले गीतकार, कवि रामेश्वर वैष्णव का मानना है कि छालीवुड में सुलझे निर्देशकों की कमी है। भेड़ चाल से बन रही फिल्मों में ज्यादातर फिल्मों में न तो गीत में स्थायी भाव होते हैं न धुन का ठिकाना। चुटकुलेबाजी और जोड़तोड़ से की जा रही रचनाओं का असर श्रोताओं पर स्थायी रूप से नहीं पड़ता। एक छत्तीसगढ़ी फिल्म 'मया' क्या हिट हो गई। कई निर्माता निर्देशक फिल्म बनाने बिना किसी तैयारी के फिल्म निर्माण में जुटे हैं। जिनमें मसालेदार फिल्मों को छत्तीसगढ़ के दर्शकों में परोसने की तैयारी है। ऐसे लोग फिल्म निर्माता के रूप में उभरे हैं जिनका साहित्य, कला व संस्कृति से दूर-दूर तक का संबंध नहीं है। उन्हें व्यवसाय करना है संगीत भले ही न जाने पर रिटर्न चाहते हैं। श्री वैष्णव ने 'देशबन्धु' के कला प्रतिनिधि से खास मुलाकात में ये बातें कहीं थी। हम अपने सुधी पाठकों के लिए उस कतरन की टाईप्‍ड कापी यहां प्रस्‍तुत कर रहे हैं - 

नये गीतकारों के बारे में आपकी राय दें?
सच कहूं तो गीतकार बनने और तुकबंदी करने की ख्वाइश रखने वाले कई मिल जायेंगे। पर गीत लिखना कठिन विधा है। इसमें धुन भी चाहिए, शिल्प, भाव का समावेश रचना में होना चाहिए। नये लोग मेहनत करने से कतराते हैं। एक अच्छा गीतकार वहीं होता है जो अपने संस्कृति की समझ रखता हो। मौलिक रचना को लोग पसंद करते हैं। गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिहा से मैं प्रभावित रहा। उनकी सोच से औरों को प्रेरणा लेना चाहिए। पहले जब लोग कविता लिख लेते थे तब मंच खोजते थे। आज का कवि मंच पहले खोजता है बाद में कविता खोजने की बारी आती है। सफलता का सूत्र है गंभीर रचनात्मक लेखन। इसके लिए खूब पढ़ें और लिखने का अभ्यास भी किया जाये।

छालीवुड में आपके हिसाब से सुलझे निर्देशक कौन है?
मैं सतीश जैन को ही सुलझे निर्देशक के रूप में पाता हूं। पर उनके साथ दिक्कत ये है कि वे सारा ध्यान सफलता पर देते हैं। छत्तीसगढ़ की भाषा, संस्कृति के प्रति वे सावधान नहीं है। जबकि मेरे विचार से ऐसा होना चाहिए।

आपने मंच पर कविताएं पढ़ी, व्यंग्य लेखन, फिल्मों के लिए गीत लिखे क्या फिल्म बनाने की इच्छा रखते हैं?
सवाल अच्छा है पर अभी तक किसी ने आफर नहीं दिया। बुध्दि है पर पैसा नहीं। मौका मिले तो जरूर छत्तीसगढ़ी फिल्म बनाऊंगा।

आपने वर्तमान में कौन सी किताबें लिखी है? क्या छत्तीसगढ़ी फिल्मों के लिए गीत लिखे हैं?
छत्तीसगढ़ी फिल्म भांवर के लिए मैंने चार गीत लिखे हैं। क्षमानिधि मिश्रा की ये फिल्म जल्द ही प्रदर्शित होगी। इसके अलावा मयारू भौजी, नयना, झन भूलौ मां बाप ला, लेड़गा नं. 1, गजब दिन भइगे, सीता फिल्म के लिए मैंने गीत तैयार किये हैं। 13 स्क्रिप्ट तैयार है। दस पुस्तकें पाठकों के बीच पहुंचने वाली है। इनमें नमन छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी में अमरनाथ मरगे हास्य व्यंग्य संग्रह, गजल संकलन 'भुइंया या अकारू' शामिल है। तथा सूर्य नगर की चांदनी, उत्ता धुर्रा, उबुक चुबुक, उजले गीतों की यात्रा, भीड़ की तन्हाई, सबले बढ़िया छत्तीसगढ़िया जल्द प्रकाशित होगी।
 मेरे फाईल से समाचार पत्र का पुराना कतरन ... देशबंधु से साभार सहित 

रंगकर्मी संतोष जैन से देशबन्धु के कला प्रतिनिधि की खास बातचीत

छत्तीसगढ़ी फिल्मों के निर्माता व वरिष्ठ रंगकर्मी संतोष जैन का मानना है छत्तीसगढ़ी फिल्मों को प्रोत्साहित करने राज्य सरकार सब्सिडी दे। तथा महाराष्ट्र की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में भी स्थानीय भाषा की फिल्मों को अनिवार्य रूप से प्रदर्शित करने छबिगृह संचालकों को निर्देशित किया जाये। जिस तरह महाराष्ट्र में मराठी फिल्मों को नहीं दिखाने पर टॉकीज के लायसेंस रद्द करने की कार्रवाई की जाती है। छत्तीसगढ़ में भी छत्तीसगढ़ी फिल्मों को बढ़ावा देने अंचल के छबिगृहों में यह व्यवस्था लागू की जाये। श्री जैन ने 'देशबन्धु' के कला प्रतिनिधि से बातचीत में ये बातें कही। उन्होंने ये भी सुझाव दिया कि छालीवुड में बनने वाली फिल्मों का प्रदर्शन दिल्ली दूरदर्शन से किया जाये। क्योंकि छत्तीसगढ़ में सात-आठ जिले ही ऐसे हैं जहां छत्तीसगढ़ी फिल्मों को प्रदर्शित किया जाता है। पूरे भारत में छत्तीसगढ़ी में बनने वाली फिल्मों का प्रचार प्रसार हो इसके लिए दिल्ली दूरदर्शन से यहां की फिल्में प्रसारित हो ऐसा प्रयास किया जाये। इस मुद्दे को छत्तीसगढ़ सिने एवं टीवी एसोसिएशन द्वारा प्रमुखता से उठाया जायेगा।

- छालीवुड में ढर्रे पर बन रही फिल्मों में बदलाव लाने क्या गाइड लाइन बनाने की जरूरत है?
देखिए हमारे यहां छत्तीसगढ़ी फिल्मों का मार्केट छोटा है। इसलिए फिल्म निर्माता जोखिम उठाने से घबराते हैं। फिल्मों में लगा पैसा वापस हो पायेगा कि नहीं ये ज्वलंत प्रश् है। इसलिए ज्यादातर लोग एक ही तरह की फिल्म बनाने की सोचते हैं। पर जैसे-जैसे विस्तार होगा नये-नये विषयों पर छत्तीसगढ़ी फिल्में देखने को मिलेगी। वैसे छत्त्तीसगढ़ी फिल्मों में 'मया' के बाद एक बार फिर निर्माता उत्साहित हैं। कई नई फिल्में आने वाले समय में प्रदर्शित होगी। तीन वर्षों में 50 फिल्में छत्तीसगढ़ी में बनी जिनमें 46 फिल्मों को सेंसर बोर्ड ने पास किया। हमारे छालीवुड में सुलझे हुए फिल्म निर्माताओं की कमी नहीं है। बस थोड़ा प्रोत्साहन चाहिए।

आपने कॅरियर की शुरूआत के बारे में बताएं? रंग कर्म में आपकी दिलचस्पी कब से हैं?
मैंने अपने कॅरियर की शुरूआत रंगकर्मी के रूप में की। नाटकों से लगाव रहा। मैंने 'मुर्गीवाला' नाटक तैयार किया। महाराष्ट्र मंडल में उन दिनों जब मुक्तिबोध राष्ट्रीय नाटय समारोह का आयोजन होता तब हमारी टीम ने इस नाटक का मंचन किया। जिसे दर्शकों ने काफी सराहा। भिलाई, दुर्ग, राजनांदगांव, रायपुर सहित अन्य स्थानों पर नाटक मंचन करने का मौका मिला। अब तक 25 से 30 नाटकों में हिस्सा ले चुका हूं। फिर दूरदर्शन से जुड़ा और इसके लिए छत्तीसगढ़ी में पहला धारावाहिक 'भोर के तारा' मैंने बनाया। दिल्ली दूरदर्शन से डीडी भारती पर 'पैजानिया' धारावाहिक शीघ्र ही प्रसारित होगा। छत्तीसगढी फ़िल्म 'बंधना' का निर्देशन मैंने किया है जो कि स्थानीय ग्रामीण परिवेश पर आधारित फिल्म है। जल्द ही इसे प्रदर्शित करने की तैयारी की जा रही है। ईरा फिल्म के बैनर तले 'जय बम्लेश्वरी मइया' छत्तीसगढ़ी फिल्म बनी थी। जिसे दर्शकों ने काफी सराहा। कई वृत्त चित्र, टेलीफिल्म का निर्माण भी किया। कोशिश यही रहती है नयेपन के साथ संदेश परक फिल्में दर्शकों तक पहुंचाया जाये। जिसमें छत्तीसगढ़ की कला, संस्कृति समाहित हो तथा स्थानीय लोक कलाकारों की प्रतिभा का भरपूर दोहन हो।

- छत्तीसगढ़ में बेहतर फिल्म निर्माण के लिए किस तरह के प्रयास हो रहे हैं?
इसमें कोई दो मत नहीं है कि छत्तीसगढ़ में फिल्म निर्माण की काफी संभावनाएं हैं। पहले भी फिल्म निर्माण से जुड़े लोगों ने प्रयास किया कि हमारे यहां बेहतर फिल्मों का निर्माण हो। जोगी के शासनकाल में फिल्म विकास निगम का गठन किया गया। परेश बागबाहरा इसके अध्यक्ष रहे। संगठित होकर फिल्म निर्माण से जुड़े कई पहलुओं को जानने की कोशिश हुई। पर दो तीन साल बाद गतिविधियां थम सी गई। एक बार फिर हम संगठित हुए हैं। और ये बड़ी खुशी की बात है कि सिनेमा व टेलीविजन से जुड़े फिल्म निर्माता, कलाकार व तकनीकी सहयोगी, रंगकर्मियों ने मिलकर हाल ही में छत्तीसगढ़ सिने एवं टीवी एसोसिएशन का गठन किया। प्रेम चंद्राकर अध्यक्ष, मनोज वर्मा सचिव बनाये गये। छालीवुड से जुड़े फिल्म निर्माता सतीश जैन के अलावा हमारे एसोसियेशन में कई समर्पित कलाकार भी शामिल हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि अब एक बार फिर हम संगठित होकर अपनी बात शासन तक पहुंचायेंगे। तथा छालीवुड में बेहतर काम हो यह प्रयास होगा। मेरा ये भी मानना है कि छत्तीसगढ़ी को राजभाषा बनाने के साथ ही यहां के साहित्य और फिल्मों को भी पर्याप्त प्रोत्साहन देने की जरूरत है। अभी तक जो प्रोफेशनल काम नहीं हो पाया अब इस इंडस्ट्री में होने की उम्मीद है। हमारे यहां प्रतिभाओं की कमी नहीं बस उन्हें मौका देने की जरूरत है।
मेरे फाईल से समाचार पत्र का पुराना कतरन ... देशबंधु से साभार सहित 

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