मशहूर छत्तीसगढी लोकगीत : टूरा नई जाने रे . . .


अपनी मदमाती आवाज से सुपर हिट छत्तीसगढी लोकगीत “टूरा नई जाने रे, ठोली बोली मया के ...” के जरिये लाखों लोकसंगीत प्रेमियों के दिलों में जगह बनाने वाली मशहूर छत्तीसगढी लोक गायिका सीमा कौशिक नें ख्वाब में भी नही सोंचा था कि जिस गीत को वे सचमुच में बोली ठोली करने लिख रही हैं, वही गाना उन्हे एक दिन लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचा देगा । अपनी मदमाती आवाज से सुपर हिट छत्तीसगढी लोकगीत “टूरा नई जाने रे, ठोली बोली मया के ...” के जरिये लाखों लोकसंगीत प्रेमियों के दिलों में जगह बनाने वाली यह लोक कलाकार भरथरी गायन के विधा से छत्तीसगढी लोकगीतों की दुनियां में आयी, दूधमोंगरा से जुडी और फिर हिट पे हिट छत्तीसगढी गीत संगीत देते हुए अभी छत्तीसगढ की लता मंगेशकर बन चुकी हैं प्रेम गीतों (जिन्हे छत्तीसगढ में ददरिया के रूप में जाना जाता है) की प्रस्तुति में उनका स्वर जादू चलाता है । जो लोग बीच के वर्षों में फूहड गीतों के चलते ददरिया से विमुख हो चुके थे वे भी फिर से सीमा के गाने के दीवाने हो चुके हैं ।

ग्राम इंदौरी दुर्ग की मूल निवासी ३६ वर्षीय सीमा के पिता एक किसान थे दसवीं तक पढी सीमा ट्रासपोर्टर पति के साथ छत्तीसगढ की राजधानी पंडरी रायपुर में रहती है । बचपन से संगीत के लगाव नें सीमा कौशिक को रायपुर रेडियो स्टेशन का दीवाना बना दिया था । उनकी मेहनत व लोकगीतों के प्रति उनकी आस्था के चलते नागपुर में स्वर कोकिला सम्मान, राजिम महोत्सव में छ.ग.राज्य सरकार द्वारा सम्मान सहित उनेकों सम्मान से विभूषित सीमा अभी मात्र ३६ वर्ष की है उससे छत्तीसगढ को काफी अपेक्षायें हैं ।

सीमा लोककला मंच `मोंगरा के फूल` के बैनर तले अपना प्रस्तुति देती हैं । कई छत्तीसगढी फिल्मों में स्वर दे चुकी एवं अभिनय कर चुकी सीमा के लोकप्रिय गीत “टूरा नई जाने रे, ठोली बोली मया के ...” का आडियो रिलीज पहले रायपुर की ही एक कम्पनी नें किया उसके बाद इसकी लोकप्रियता को देख कर टी सीरीज नें उडिया, मराठी व पंजाबी भाषाओं में इसका आडियो रिलीज निकाल रही है ।

सीमा कौशिक की वही मशहूर गाने को हम आपके लिए लाये हैं देखें वीडियो के साथ (यदि ट्यूब लगाने में मुझसे चूक हो और आप इसे देख नही पा रहे तो मुझे लिखें और समझाये कि कैसे ट्युब लगाया जाता है)

वृष को तरनि तेज सहसा किरन करि . . . . नवतपा शुरु

जेष्ठ माह में जब सूर्य सबसे ठंडा ग्रह चंद्र के नक्षत्र रोहिणी ( ईस पर सूर्य का भी अधिकार है ) वृष राशि मे प्रवेश करता है तभी नवतपा शुरु होता है । आज शाम सूर्य रोहिणी में प्रवेश करेगा उसी समय से नवतपा शुरू हो जायेगा जो ९ दिन चलेगा। २५ मई से ही बुध वृष राशि से मिथुन राशि मे प्रवेश करेगा। ज्यादतर देखा गया कि जब बुध सूर्य से आगे चला जाता है तभी पानी गिरता है।२५ मई शाम को चंद्र भी सिंह राषि में प्रवेश करेगा यानि स्वगृही बुध चंद्र से एकादस स्थान में चला जायेगा जो गर्मी से राहत दिलायेगा । उस समय नीच चंद्र के उपर सूर्य की दृष्टि भी रहेगी । २५ मई को ही मंगल मीन राषि, गुरु वृष्चिक राशि, राहु कुम्भ राषि व शनि कर्क, शुक्र मिथुन, राषि मे रहेगा । ईसी स्थितियों के कारण नवतपा में बीच बीच मे पानी भी गिरते रहेगा व लू का असर भी कम होगा ।

ये तो रही खगोलीय स्थिति ईस नवतपा के सम्बन्ध मे हमारे साहित्य के एक प्रसिद्ध कवि सेनापति ने जो लिखा है वो आज मन बार बार गुनगुना रहा है आप लोगो को अर्ज करता हू (कही गलती होगी तो सुधार लिजियेगा 1982 मे याद किया था भूल हो सकती है)

वृष को तरनि तेज सहसा किरन करि
ज्वालन के जाल बिकराल बरसत है
चचत धरनि जग जरत झरनि
सिरि छाह को पकर पन्थि पन्छि बिरमत है

सेनापति नेकु दुपहरी के ढरत
होत धमका बिकल जो न पात खरकत है
मेरे जान पवनो सिरि ठौर को पकरि कौनो
घरि एक कौनो, पवनो बिलमत है

नारद कुछ तो है पर सबकुछ नही है

हिन्दी चिट्ठाकारों की फौज कुल जमा 1000 जिसमें से सक्रिय चिट्ठे 500, पाठक इन्ही मे से संख्या अंजान, जिनके सहारे पूरा हिन्दी अंतरजाल संसार टिका है । विगत दिनो हिन्दी चिठ्ठो को बढाने के उद्देश्य से छत्तीसगढ मे मेरे द्वारा जो आंशिक प्रयाश किये गये उसमे यह बात खुल कर आयी कि भारतीय आग्ल चिठ्ठाकार यह सोचता है कि हम हिन्दी चिठ्ठाकार अपनी लेखनी को पढवाने के लिये हिन्दी व हिन्दी चिठ्ठाजगत की बात करते है क्योकि उनका चिंतन है हिन्दी चिठ्ठो के पाठक कम है और जो हिन्दी चिठ्ठा लिखेगा वो दूसरो के चिठ्ठो को पढेगा ही यदि उनकी बातो को माने तो हमारे पाठक सक्रिय चिट्ठे 500 के चिट्ठाकार ही है जो एक दूसरे के चिठ्ठो को पढते है यानी चटका लगाते है ।

हमारी जानकारी के अनुसार हिन्दी चिट्ठाकारों के मानक फीड एग्रगेटर दो हैं नारद महाराज व हिन्दी ब्लाग डाट काम इनके सहारे ही 500 ब्लाग के धमनियों में रक्त का प्रवाह हो पाता है । नारद महाराज के यहा विवाद के बावजूद यह देखने सुनने को मिलता है कि किसके व्लाग में कितना चटका लगा, यह चटका ही उस लेख की लोकप्रियता का आधार है । नारद में बाकायदा चटकों के रिकार्ड के साथ इस दिन, सप्ताह, माह, वर्ष के सर्वाधिक चर्चित चिट्ठों की सूची ‘लोकप्रिय लेख’ उपलव्ध कराई जाती है । जो नारद से होकर गुजरने वाले पाठकों के आधार पर होती है । . . . . और नारद को कौन देखता है, स्वाभाविक तौर पर वही जो हिन्दी व्लागिंग करता है और नारद में पंजीकृत है । तो क्या नारद से होकर चटका लगने को ही उस लेख की लोकप्रियता की कसौटी माना जा सकता है । खैर नारद जाने व उसके तारनहार जाने । श्रृजन शिल्पी के कहने पर लेखों के सामने दर्शित हिट्स की संख्या को हटा दिया गया वैसे ही नित नये प्रयोग होते रहेंगे ।

नारदहिन्दी ब्लाग के सहारे आने वालों के अतिरिक्त भी हिन्दी चिट्ठाकारों के चिट्ठों में आने के दूसरे रास्ते भी हैं जो विभिन्न सेवाप्रदाताओं द्वारा समान विचारधारा वाले व्यक्तियों के समूह और चिट्ठाकारों के व्यक्तिगत संबंधों से निर्मित होते हैं जो बिना किसी फीड एग्रीगेटर के माध्यम से स्वमेव ही चिट्ठे में विचरण करते हैं और चिट्ठों को पढते हैं । इस संबंध में विस्तृत चर्चा श्री रवि रतलामी जी पूर्व में भी कर चुके हैं । ऐसी स्थिति में लोकप्रियता की कसौटी के मानक चटके सही प्रतीत नही होते ।

हमारे जैसे अल्प ज्ञानी चिट्ठाकार अपनी दो टूक बाते कहने के लिए लम्बी लम्बी लेखनी लिखता है बार बार वही बात कहता है जो चिट्ठे का सार है, इस प्रकार चिट्ठा लम्बा होता जाता है पर चटके व टिप्पणियां दो चार से ज्यादा नही चिपक पाते । वही परमजीत बाली जी एवं मेरा चुंतन वाले सन्तोष जी जैसे शव्दों के शिल्पी चार लाईनों में ही अपनी पूरी बातें कह जाते हैं और उन पर चटका भी खूब लगता है व टिप्पणियां दस से ज्यादा चिपक जाते हैं, क्यू न लगे इससे पाठक को और भी चिट्ठों को पढने का समय भी मिल जाता है ।

रवि रतलामी जी नें पिछले दिनों विश्व के सर्वाधिक चर्चित २५ चिट्ठों के संबंध में लिखा था मैं उन चिट्ठों में से पहले क्रम के चिट्ठे पर गया तो देखा उस दिन के उक्त विश्व के महत्वपूर्ण चिट्ठे के पोस्ट में एक भी टिप्पणी नही की गयी थी उसमें मैनें पहली टिप्पणी की । मायने यह कि विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय चिट्ठे की कसौटी, टिप्पणियॉं तो हरगिज नही है ।

हिन्दी के ही स्थापित चिट्ठाकारों के चिट्ठे पर नजर दौडायें श्री रवि रतलामी जी हमेशा थोडा लिखते हैं पर पूरा लिखते हैं । उनकी लोकप्रियता हिन्दी चिट्ठाजगत में सर्वविदित है । क्या हमें स्थापित होने के लिए लम्बा चौडा लेख लिख लिख कर, पहले एक घंटे पन्नों पर कलम घिसकर फिर उसके बाद दो घंटे हिन्दी टायपिंग के पचडों से निबटते हुए कम्प्यूटर पर समय खर्चने की आवश्यकता है वो भी इस संबल पर कि हमारी हिन्दी अंतरजाल में स्थापित हो रही है या हमारा चिट्ठा स्थापित हो रहा है । ऐसा करके न हम हिन्दी को स्थापित कर रहे हैं न ही अपने आप को स्थापित कर पा रहे हैं पर अपने भीतर कोने में बैठे दमित इच्छाओं की जीजीविषा को उजागर कर रहे हैं और पोस्ट करने के बाद बार बार अपने चिट्ठे व मेल को रिफ्रेश कर टिप्पणियों व चटकों को देख देख कर प्रफुल्लित हो रहे हैं कि हमारी कचरा अधकचरा सामाग्री को कितने लोगों ने झेला। मेरा यह मानना है कि चिट्ठे की ‘लोकप्रियता’ हम चिट्ठाकारों का आधार नही होना चाहिए, हमारा उद्देश्य हिन्दी को अंतरजाल में स्थापित करना है । इसके साथ ही अपने हृदय में छुपे लेखक, कवि मन को उजागर करना है, रचना ऐसी, पूर्णतया मौलिक जिसमें सुधार की संभावनायें अपनी बाहें फैलाये खडी हो को सीधे पाठक के सामने ले जाने की मन्शा को प्रदर्शित करना है ।

जहां रवि रतलामी जी जैसे शार्ट एण्ड स्वीट शव्दों के चिट्ठाकार हैं जिनके चिट्ठों पर चटकों का अंबार लगता है तो दूसरी ओर श्री रामचरित मानस जैसे सामुदायिक सहयोग से निर्मित चिट्ठे भी हैं जिसमें अत्यधिक श्रम लगने के बावजूद चटकों व लोकप्रियता की लिप्सा गायब है, एसे कइ चिट्ठाकार भाइ है, हमारे छत्तीसगढ के ही भाइ जय प्रकाश मानश जी को देखें उन्होंने छत्तीसगढ के साहित्यकारों की रचनाओं को अंतरजाल में डालने के लिए पता नही कितना श्रम किया होगा किन्तु उनके दो चिट्ठे श्रृजन गाथा व उनके स्वयं के नाम वाले चिट्ठे को छोड दिया जाये तो बाकी चिटठों में लोकप्रियता दर्शित ही नही होती जबकि उनका प्रयास काफी श्रमसाध्य व काबिले तारीफ है । उनके स्वयं के चिट्ठे में उनकी लम्बी लम्बी शोधपरख लेखनी यह सिद्व करती है कि वे लोकप्रियता के मानकों को भुनाने के लिए चिट्ठाकारी नहीं करते उनका उद्देश्य स्पष्ट है हिन्दी का विकास ।

इस हिन्दी के विकास के यज्ञ के लिये हमे जो आहुति देनी पडती है वह है प्रति माह ३०० से ९०० रूपये ब्राड बैंड का बिल व लगभग तीन से पांच घंटे प्रतिदिन की तनमयता, यदि इसका वित्तीय आंकलन करें तो हिन्दी को स्थापित करने मात्र के सनक के कारण भारत मे निवासरत प्रायः सभी चिठ्ठाकारो का लगभग १०००० रूपये प्रतिमाह खर्च हो रहा है । इसके अतिरिक्त परिवार के लिए नियत समय को खराब करने का अपराधबोध, दिन के बाकी के कार्य के समय में हावी चिट्ठाकारिता के भूत से चलते द्वंद से निबठना अलग । अब इसके बाद भी चटके की लिप्सा न रखा जाये यह तो सम्भव नही है पर लोकप्रियता के वीणा या गीटार का तार कमान जो नारद मुनि के पास है तो एसे मे दिन मे सीधे कम से कम 100 चटके लगने के बावजूद आपका लेख अलोकप्रिय बना रह सकता है और नारद के द्वारा 18 चटके वाला लेख लोकप्रिय के सुनहरे हर्फो मे शोभा पा सकता है इसलिये मेरे चिट्ठाकार दोस्तो नारद को सबकुछ मत समझ बैठो नारद कुछ तो है पर सबकुछ नही है लिखते रहो, लिखते रहो ! आपका लेख भी लोकप्रिय है ।

अश्लीलता शब्द की अवधारणा

अश्लीलता शब्द की अवधारणा के संबंध में सदैव विवाद रहा है समय काल व परिस्थितियों के अनुसार इसकी परिभाषा बदलते रही है अभी पिछले वर्ष दिसम्बर २००६ में अजय गोस्वामी बनाम भारत सन्घ व अन्य के वाद से संबंधित एक महत्वपूर्ण मुकदमें में सुप्रीम कोर्ट नें इसके विभिन्न पहलुओं पर विचार किया एवं वकीलों के तर्क वितर्क के पश्च्यात निर्णय सुनाया । अश्लीलता के संबंध में भारत के न्यायालयों में चल रहे व निर्णित वादों एवं वर्तमान परिवेश में इस संबंध में चल रहे अटकलों एवं समाज में व्याप्त चिंतन पर स्पष्ट प्रकाश डालने में यह न्याय निर्णय अगले कुछ बरसो तक सक्षम साबित होगा .

इस वाद में वैचारिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं अश्लीलता का विस्तृत विवेचन किया गया है । जिसमें अश्लीलता के उस पहलू पर विचार किया गया है जो विज्ञापनों के द्वारा बाल व किशोर मन में अश्लीलता को जगाता है । इस वाद का महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि इसमें प्रतिवादी के रूप में भारत के दो जाने माने पत्र समूह हिन्दुस्तान टाईम्स व टाईम्स आफ इंडिया के साथ ही प्रेस कौंसिल आफ इंडिया का नाम भी है ।

इस वाद में अश्लीलता को परिभाषित करने के लिये समसामयिक लोकाचार एव राष्ठ्रीय मानको के मुद्दों पर विचार किया गया . वाद मे दिये गये पूर्व न्याय दष्ठान्तो व सन्दर्भो मे रन्जीत उसेडी विरुद्ध महारास्ट्र राज्य के वाद मे न्यायालय ने यह अवधारित किया था कि यह विनिश्चय करने का, कि क्या कलात्मक है और क्या अश्लील, नाजुक कार्य न्यायालयो द्वारा ही किया जाना चाहिये और अन्तिम आश्रय के रूप मे इसे उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाना है और इसलिये अश्लीलता के प्रश्न पर साहित्यकार या कलाकार या अन्य के साक्षय को सुसन्गत नही माना गया . यानी नगी स्त्री का चित्र बनाओ समाज मे लाओ और कह दो कला है . इ ना चलिबे . . . .

महिलाओ का अशिष्ट रूपण (प्रतिषेध) अधिनियम 1986, भारतीय दण्ड सन्हिता 1860, प्रेस परिषद अधिनियम 1978, पत्रकरिता आचरण के सन्नियम , सुचना व तकनिकि अधिनियम 2000 मे उल्लखित अश्लीलता शब्द की अवधारणा के सबन्ध मे किसी भी विधि के अस्पष्ट व भ्रामक शव्दों पर जब जब विवाद हुआ है न्यायपालिका नें हल निकाला है क्योंकि विधि सम्मत मामलों में वही सवोच्च है ।

हालाकि प्रस्तुत वाद मे देश काल व परिस्थितियो के अनुसार न्यायपालिका ने अश्लीलता शब्द की अवधारणा को सुसन्गत माना है और हिन्दुस्तान टाईम्स व टाईम्स आफ इंडिया के विवादित तथाकथित विज्ञापनों को अश्लीलता की श्रेणी मे ना मानते हुए वाद निरस्त किया है . पर इस न्याय निर्णय की कन्डिकाओ के अन्दर अश्लीलता की वही परिभाषा समझाइ गयी है जो हम सब चिठठाकार समझ रहे है कला के नाम पर नगी तस्वीरो को झेलो . 1997 मे सरस्वती की ‘नग्न’ तस्वीर और 2008 मे . . . कोइ हमारी मा बहनो की ‘नग्न’ तस्वीर बनाकर कहेगा महिलाओ का अशिष्ट रूपण (प्रतिषेध) अधिनियम 1986, भारतीय दण्ड सन्हिता 1860, प्रेस परिषद अधिनियम 1978, पत्रकरिता आचरण के सन्नियम , सुचना व तकनिकि अधिनियम 2000 इन सभी मे और तो और सविधान ने भी अभिब्यक्ति की स्वतन्त्रता दी है कला के लिये अश्लीलता परोशने की छूट है . नग्नता और अश्लीलता कुल मिलाकर नजर और समझ का ही खेल है चित्र आपकी मा बहनो से मिलती है तो मै क्या करू ।

अश्लीलता सम्बन्धी तथ्यपरक लेख और पढे ः
राष्ट्रीय सहारा 22 मइ
विश्लेषण : सार्वजनिक अभिव्यक्ति बनाम अश्लीलता (अभय कुमार दुबे )
असमय : अश्लील समस्या न उठाएं (मुद्राराक्षस)

मेरी तीन अधूरी कवितायें

आज मैं अपनी १९९० की डायरी के पन्नों में जीवंत मेरे कवि मन को पाकर काफी खुश हुआ उसमें दस बारह कवितायें बार बार काट छांट के साथ लिखी गयी हैं । मेरी व्यक्तिगत सोंच है कि यदि व्यक्ति अपनी लेखनी में, एक बार लिख लेने के बाद उस पर सुधार करता है तब वो लम्हे वो परिस्थितियां व्यक्ति के हार्डडिस्क के किसी कोने में फारमेटिंग के कुप्रभाव से दूर लंबे समय तक सेव्ड हो जाता है । जैसे ही उस पल की कोई निशानी सामने आती है तो वरसों पुरानी कहानी जीवंत हो जाती है। मेरी डायरी के पन्नों में लिखी कुछ कविताओं के कुछ अंश आपको अर्ज करता हूं इसके बीच के हिस्सों में कुछ व्यक्तिगत पद हैं इसलिए उन्हें मैं यहां प्रस्तुत नही कर रहा हूं -

१. प्रियतम

घूंघट निकारे आंचल सजाये,
चली जा रही हो वो किस ठांव है प्रिय ।
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स्वप्नों में शाश्वत का श्रृंगार कर के
मेंहदी रचाई हो, किस ठांव है प्रिय ।
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तेरी हर खुशी ही तो संबल था मेरा
तू खुश है जहां, वो किस ठांव है प्रिय ।
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भावों को शव्दों का आधार देकर
मुझे छोड आई हो, किस ठांव है प्रिय ।
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२. कविता

मेरा रूप सलौना है ना अर्थों से मैं हूं परिपूर्ण
“शरद” का जीवन कुठित जीवन कुंठा है यौवन संपूर्ण ।

कौन बनेगा साथी मेरा कौन चलेगा मेरे साथ
कलुष अमंगल दीप यहां पर यौवन की मतवारी रात ।

किंचित मेरे छंद तुम्हारे मानस में होंगे दृष्टव्य
तब होगी ये पूर्ण साधना होंगे तभी गीत सब श्रव्य ।

यें मेरे शव्दों की अर्थी या मेरे आंसू का गान
शाश्वत हो सरद की कविता दे दो इन्हे स्वरों का दान ।
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व्योम परिधान सांवरी सूरत कविता के शव्दों की मूरत
मूक छुपी थी मेरे मन में खोज रहा था जिसे गगन में ।

गीत तुम्ही हो मीत तुम्ही हो जग जीवन की रीत तुम्ही हो
आलिंगन बन द्वय स्पंदन सांसों के मंदिर का धडकन ।
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मन मंदिर की देवी तुम हो भाव शव्द की सेवी तुम हो
“शरद” बना दो पतझड वन को गीत बना दो तुम जीवन को ।

अपनी भाव भंगिमा देकर शव्दों की पंखुडियां देकर
गति दो मेरे प्रीत कलम को भर दो मेरे रीत कलम को ।

मन चाहा है प्यार तुम्हारा जीत नही बस हार तुम्हारा
गीत वही जो तुम्हे सुनाउ गान वही जो तेरा गांउ ।


३. चाहत

क्यूं चपल मन पा के मधुबन पास आना चाहता है
क्यूं तृषित गुंजन कली का गंध पाना चाहता है
कौन मावस में दिये का लौ जलाना चाहता है
या कुमुदनी को निशा में ही लजाना चाहता है
क्यूं किसी के याद में जीवन जलाना चाहता है
क्योंकि तेरा प्यार है दुर्लभ, धरा से दूर है
और मेरा दिल तुझी से दिल लगाना चाहता है ।

(१९८७ से १९९५ तक मैं संजीव “शरद” के नाम से बोरिंग कवितायें लिखता था
इसलिए उपर कही कही शरद शव्द का उपयोग हुआ है ।)

भूमि अधिग्रहण अधिनियम : “लोक प्रयोजन” का व्यूह

दिल्ली से अधिवक्ता मित्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार रिट पिटीशन नं २२४/२००७, कर्नाटक भूमिहीन किसान संगठन व अन्य विरुद्ध भारत सरकार व अन्य दिनाक ११ मई को न्यायाधिपति आर वी रविंद्रन व एच एस बेदी के बेंच में नियत ईस प्रकरण की प्रारंभिक सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधिपति के जी बालकृशनन ने प्रकरण मे निहित विधि के प्रश्न “लोक प्रयोजन” पर कहा कि केंद्र व राज्य शासन को लोक प्रयोजन के मसले पर प्रस्तुत पिटीशनो पर भूमि अधिग्रहण अधिनियम के अन्य उपबंधों के तहत प्रस्तुत पिटीशनो से ज्यादा गम्भीरता पुर्वक अपने दायित्वों को समझना चाहिये इस संबंध मे न्यायालया ने सभी राज्यो के मुख्य सचिव व कृषि मंत्रालय को नोटिस भेजा है ।

मै इस समाचार को छत्तीसगढ के नजरिये से देखते हुये अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता हूं यहा शासन ने लोक प्रयोजन शब्द को अपने हित मे अर्थान्वयन करवाने के लिये जो व्यूह रची यह देखे :-

छत्तीसगढ में अभी टाटा के संयंत्र के लिये भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया जारी है जहा अधिग्रहण पूरी तरह से विवादित है नक्सलियो की जन अदालत की तर्ज पर ग्राम सभा मे प्राप्त किसानों की स्वीकृति व १३ लकीरों मे छिन चुकी आदिवासियो की भूमि पर आप रोज पढ रहे होंगे हम इस संबध मे कुछ भी नही कहेंगे ।

नये राज्य की राजधानी के लिये भारी मात्रा मे किये जा रहे भूमि अधिग्रहण के मसले पर हम कुछ नजर दौडायें, नया रायपुर विकास प्राधिकरण द्वारा नये रायपुर का मास्टर प्लान प्रकाशित किया जा चुका है एवं उस पर दावा आपत्ति भी स्वीकार करने का समय समाप्त हो चुका है । नया रायपुर विकास प्राधिकरण एवं छ.ग. शासन के द्वारा नये रायपुर के लिये भी अधिग्रहित की जाने वाली भारी मात्रा में भूमि को टाटा संयंत्र की भांति विवाद से परे रखने के लिए रणनीति के तहत आज दिनांक तक भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना जारी नहीं की गई है बल्कि भूमि अधिग्रहण के पिछले द्वार से प्रवेश की कार्यवाही आपसी सहमति के जरिये की जा रही है यह शासन की भूमि अधिग्रहण के पचडे से बचने की एक सोची समझी चाल है । हुडा (हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण) के नीतियों पर अमल करते हुए छ.ग. शासन, वहां आई व्यावहारिक दिक्कतों को प्रशासनिक तौर पर दूर करने के उददेश्य से आपसी समझौते पर ही ज्यादा जोर दे रही है क्योंकि भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत भूमि अधिग्रहण् में विभिन्न राज्य सरकारें सर्वोच्च न्यायालय के कटघरे में है एवं जनता भी अधिग्रहण के रास्ते में नित नये रोडे अटका रही है । ऐसे में विकास की धारा को विवादों से गंदला करने के बजाय दूसरे वैकल्पि रास्तों को प्रभावी बनाना सरकार की विवशता है ।

नया रायपुर विकास प्राधिकरण द्वारा नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम के तहत प्रकाशित डाफट, भूमि अधिग्रहण के पूर्व किसानों के अटकलों पर एवं छुटपुट उठते विरोधों को दबाने का एक अस्त्र के रूप में प्रयोग है । छोटे किसान जिनके रोजी-रोटी का साधन उसकी भूमि है, पर शासन पिछले चार वर्षो तक विक्रय पंजीकरण नहीं करने का
आदेश तो दे ही चुकी थी । समाचारों में रोज छपता रहा कि किसी की बेटी का ब्याह तो किसी का और अन्य अहम आवश्यकता की पूर्ति उनके स्वयं की भूमि को विक्रय नहीं कर पाने के कारण हो नहीं पाई थी, सरकार के इस मार से किसान पहले से ही आधा हो गया था आपसी सहमती का चोट ऐसे ही समय में गरम लोहे पर हथौडा मारने वाला काम था, अब वे सभी किसान इस डर से राजीनामा कर पैसा ले लिए कि पता नहीं कल क्या तुगलकी फैसला हो और उन्हें फिर पांच साल तक बिना पैसे का गुजारा करना पडे ।

ऐसा करके शासन अधिकांशत: जमीन अधिग्रहित कर लेगी बाकी बचे जमीन राज्य शासन द्वारा अधिनियम के तहत अधीसूचना जारी कर डंडे के जोर पर छीन ली जायेगी । क्योंकि तब बहुसंख्यकों का विरोध सरकार को नहीं झेलना पडेगा और बिना विवाद काम निपट जायेगा । इस चाल का एक और पेंच है चीफ कमिशनर देहली एडमिनिस्ट्रेशन बनाम धन्ना सिंह 1987 के केस में न्यायालय नें मास्टर प्लान के लिए अधिग्रहण को लोक प्रयोजन की कोटि का माना है तो मास्टर प्लान यदि स्वीकृत हो गया तो सरकार की दिक्कते अपने आप सुलझ जायेगी । यहा नये रायपुर परिक्षेत्र मे आने वाले गाव के लोग समझ रहे है कि अभी तो धारा 4 की अधिसूचना तो जारी ही नही हुयी है जब जारी होगी तो लोक प्रयोजन की आपत्ति लगायेगे मगर तब तक देर हो चुकी होगी लोक प्रयोजन सिद्ध हो चुका होगा, यही है अधिनियम को अपने पक्ष मे करने का गुपचुप तरीका । हमने इस स्थिति को भांप कर 5 मइ 2007 तक गांवो के किसानो को जोडा और मास्टर प्लान ड्राफ्ट पर आपत्ति लगाया है हमारे साथ 400 से 500 लोगो ने आपत्ति लगाया है पर वे सभी सरकार की मंशा को समझ रहे है हमें नही लगता ।

(विधि से सम्बधित मेरे प्रयोग व पूरा लेख आप मेरे कानून सम्बन्धी चिठ्ठे http://jrcounsel4u.blogspot.com मे देख सकते है)

माया मिश्रा मेल ः असर छत्तीसगढ तक

उत्तर प्रदेश मे मायावती की जीत से छत्तीसगढ मे एक नया समीकरण बनता नजर आ रहा है . उत्तर प्रदेश मे माया की जीत को यहा के ब्राह्मण एक नये युग की शुरुआत के रूप मे देख रहे है
छत्तीसगढ के 99 प्रतिशत ब्राह्मण उत्तर प्रदेश से व 1 प्रतिशत राजस्थान से बरसो पहले आकर छत्तीसगढ मे बस गये थे और यहा की भाषा व सन्सकृति उत्तर प्रदेश की सरयु की पानी मे घुल कर महानदी, अरपा, शिवनाथ व खारून मे समहित हो गयी थी समय ने उन्हे पूरी तरह से छत्तीसगढया बना दिया था

यह सर्वविदित है कि छत्तीसगढ के मूल निवासी आदिवासी ही रहे है किन्तु अयोध्याकालीन धार्मिक इतिहास को प्रमाणिक माना जाय तो दण्कारण्य व कौशल क्षेत्र मे ऋषि मुनियो का निवास अर्वाचीन काल से रहा है खैर हम यहा इतिहास बताने के लिये नही लिख रहे है पर उत्तर प्रदेश के सरयू के किनारे निवासरत ब्राह्मणो का यहा पर आगमन मोरध्व्ज के काल से माना जाता है जो आज तक जारी है

पृथक छत्तीसगढ आन्दोलन अपने अन्तिम चरण मे था तो कुछ स्वार्थी तत्वो ने उस समय छत्तीसगढया गैरछत्तीसगढ शब्दो का एसा ताना बाना रचा जिससे छत्तीसगढ के ब्राह्मण मानसिक रूप से काफी आहत हुये थे और उनकी वेदना समय समय पर कभी सरकार मे प्रतिनिधित्व नही मिलने पर तो कभी छत्तीसगढ मे ब्राह्मणो की उपेच्छा होने के मसले पर फूटते रहती है छत्तीसगढ के आदिवासी एव ब्राह्मणो के बीच सम्बन्ध सदैव से मधुर रहे है उसमे अलगाववाद के बीज राजनीति ने बोया है जैसे उत्तर प्रदेश मे हालाकि यहा की परिस्थितिया उतनी बढी हुइ नही है किन्तु समय चक्र के चलते एसा आज नही तो कल हो जाने वाला था

उत्तर प्रदेश मे दलित व ब्राह्मणो के मेल से जो शक्ति का उदय हुआ है उसे पुराने लोग धार्मिक मान्यताओ से जोड कर देख रहे है हमारे एक परिचित ने माया मिश्रा के जीत को धर्म की जीत बतला रहे है उनके अनुसार कट्टरपन्थी ब्राह्मणो ने अपने बच्चो से माया के पैर छुवाये है क्योकि नारी की कोइ जाति नही होती सनातन मे एसे उदाहरण है, जब जब दलित व ब्राह्मण का मेल हुआ है भारत मे एश्वर्यशाली इतिहास लिखा गया है

छत्तीसगढ के ब्राह्मणो ने खुसुर पुसुर चालू कर दिया है आगामी विधानसभा चुनाव मे छत्तीसगढ मे भी यदि उत्तर प्रदेश के इतिहास को दोहराये तो इसमे आश्चर्य की बात नही होगी क्योकि अब शबरी और राम व कृष्ण और सुदामा का प्रेम छलकने लगा है समय ने पात्र बदल दिये है

एडवांटेज छत्तीसगढ : विजन २०१०


दैनिक भास्कर समूह नें आज छत्तीसगढ में एडवांटेज छत्तीसगढ विजन २०१० का वितरण छत्तीसगढ के प्रमुख व्यक्तियों को किया इस बहुप्रतिक्षित पुस्तक का छत्तीसगढ के प्रबुद्ध जनता एवं छत्तीसगढ के विकास में सहभागिता साबित करने वालों को बेसब्री से इंतजार था तेजी से बढते अखबार दैनिक भास्कर नें छत्तीसगढ सहित पूरे देश में अपनी व्यावसायिक क्षमता एवं पत्रकारिता के बल पर प्रकाशन की ऐसी श्रृखला को रचा है जो किसी समाचार पत्र की बढती लोकप्रियता का स्पष्ट उदाहरण है । देश की जनता में बेहद लोकप्रिय हो चुके अखबार के द्धारा छत्तीसगढ के विकास से संबंधित महत्वपूर्ण दस्तावेज के प्रकाशन, जिसके संबंध में रोज बडे बडे विज्ञापन छापे जा रहे थे, को पढने के लिए लोग उत्सुक थे जिसका इंतजार आज खत्म हो गया ।

अन्य व्यक्तियों के साथ ही भिलाई भास्कर के द्धारा मेरे संगठन को यह विजन स्टेटमेंट आज प्राप्त हुआ । बहुप्रतीक्षित एवं बहुचर्चित होने के कारण मैं इसे हांथ में आते ही चट कर गया क्योंकि बहुत ही आकर्षक तरीके से बाइंडिंग और ग्लैजड A4 पेपर में रंगीन मुद्रित १०० पेज का यह स्टेटमेंट छत्तीसगढ के विकास की गाथा कहने को बेताब दिख रहा था ।

हम उससे प्राप्त जानकारी को आपको भी परोस रहे हैं वैसे मेरे पत्रकार एवं पत्रकार टाईप चिटठाकार भाईयों को दिल्ली व छत्तीसगढ में कल भास्कर नें स्वयं ससम्मान परोस दिया था । वैसे इस किताब को भास्कर नें उच्चवर्गीय अधिकारी, प्रमुख व्यवसायी एवं उद्योगपतियों को ही नि:शुल्क उपलब्ध कराया है इस कारण प्रदेश की जनता विजन से अनभिज्ञ है इस कारण हम इसे यहां पर पोस्ट कर रहे हैं यह विजन मुल रूप से अंग्रेजी भाषा में है क्योंकि यह उसी भाषा के जानकार लोगों के पढने के लिए है फिर भी मैं अपने अल्प अंग्रेजी ज्ञान के आधार पर उसका भावार्थ प्रस्तुत कर रहा हूं, इस लेख में विजन स्टेटमेंट के अतिरिक्त मेरे स्वयं के विचार भी धुसपैठ कर गये हैं । जन्म से ब्राह्मण होने के कारण किसी किताब के संबंध में बतलाते हुए स्वाभाविक परंपरागत स्वभाव की झलक इस लेख में दिखे तो उसे इग्नोर करेंगे ।

राज्य में पूंजी निवेश की संभावनाओं को मूर्त रूप देने के उद्देश्य से सरकार प्रायोजित इस विजन में वो सब है जो किसी निवेशक को लुभा सकता है वैसे रमन सरकार के सत्ता में आते ही अमेरिका के छ.ग.एन.आर.आई.एसोसियेशन का गठन हुआ था और मुख्यमंत्री स्वयं इन्ही संभावनाओं को टटोलते हुए अमेरिका का दौरा कर आये थे एवं संगठन के अघ्यक्ष पटेल जी भी इसी पर केन्द्रित अपना छत्तीसगढ दौरा किये पर अमेरिका के अनिवासीय छत्तीसगढिया, छत्तीसगढ में ढेला भर भी निवेश नही कर पाये । हमें संभावनाओं एवं आशाओं का डोर थामें रहना है क्योकि यही तो जीवन को सुखमय बनाता है ।

छत्तीसगढ शासन के गुणगान से ओतप्रोत इस स्टेटमेंट के कुल जमा ९४ अघ्याय में पहले अघ्याय Baby Steps for Big Leaps से लेकर नवम अघ्याय नगर पालिक निगम दुर्ग तक छ ग शासन से संबंधित विकास की जानकारी एवं भविष्य की योजनाओं का लेखाजोखा है बाकी के अघ्याय छत्तीसगढ में औद्योगिक एवं व्यावसायिक घरानों के छत्तीसगढ के विकास में योगदान पर केन्द्रित है ।

आधारभूत उपलब्ध जानकारी के साथ शासन के विकास हेतु नियत ऐजेंडे को बताते हुए भास्कर नें जो लिखा है वह छत्तीसगढ के विकास में रूचि रखने वालों के लिए वास्तव में एक संग्रहणीय दस्तावेज है । नये नवेले राज्य छत्तीसगढ नें अपने गठन के बाद जिस तरह से विकास किया है उसका आधार इसके थाती में भंडारित अकूत खनिज संपदा व औद्योगीकरण की अपार संभावना सहित राज्य की औद्योगिक नीति है इन दोनों हथेलियों नें राज्य निर्माण के बाद जिस तरह से ताल मिलाया है उससे ही छत्तीसगढ में विकास के रास्ते खुले हैं । यहां पर मैं बस्तर को शामिल नही कर रहा हूं पर सरकार अपने विजन स्टेटमेंट में इसे अलग नही मानती ।

विजन २०१० में भास्कर पावर हब छत्तीसगढ के बारे में दी गयी जानकारी में छत्तीसगढ राज्य विद्युत मंडल के अघ्यक्ष राजीब रंजंन के हवाले से कहता है कि राज्य में वर्तमान विद्युत आवश्यकता १८५० मे.वा.से २३०० मे.वा. की है जिसमें से अप्रैल व मई माह में यह आवश्यकता बढकर २५०० मे.वा. तक पहुच जाती है मंडल वर्तमान में राज्य की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ती कर रही है यद्यपि उसकी वर्तमान संस्थपित क्षमता १४२४ मे.वा. ही है। पावर फाईनेंस कारपोरेशन के अनुमान से छत्तीसगढ में ११६००० मे.वा. बिजली अगले ३५ वर्षों तक प्राप्त की जा सकती है ३५००० मे.वा. प्रति वर्ष के हिसाब से यदि उत्पादित की जाय तो अगले १०० वर्षों तक यह निरंतरता बनी रह सकती है । छत्तीसगढ में पनबिजली परियोजनाओं की भी संभावनायें ३००० मे.वा. की है जिसमें से कुछ परियोजनायें योजना स्तर में हैं तो कुछ अपने उत्पादन स्तर में है कुल मिलाकर यदि देखा जाये तो राज्य में बिजली की समस्या अगले दस वर्षों तक नही आने वाली है । ग्यारहवें पंचवर्षीय योजना की समाप्ति वर्ष २०११ तक राज्य में संभावित औद्योगीकरण को देखते हुए ३७०० से ४००० मे.वा. की आवश्यकता राज्य को होगी जिसकी पूर्ती मंडल सामान्य रूप से कर सकेगी यह आंकडे राज्य में नित नये निवेश को प्रोत्साहन तो देगा ही साथ में प्रदेश के बहुमुखी विकास का बाट जोह रहे नागरिकों के हृदय में नये उर्जा का संचार भी करेगा।

राज्य में विकास के मूलभूत तत्वों में बिजली के अतिरिक्त सडक परिवहन की भी अहम आवश्यकता होती है इसके लिए भी राज्य में उल्लेखनीय कार्य किये गये हैं लोक निर्माण मंत्री राजेश मूणत व सचिव एम.के.राउत के हवाले से भास्कर नें लिखा है कि राज्य नें केन्द्रीय परियोजनाओं व विभिन्न अन्य कार्यक्रमों के अनुसार पूरे राज्य में सडकों का जाल बिछा दिया है अब छत्तीसगढ में एक कोने से दूसरे कोने तक परिवहन की सुगम व सरल व्यवस्था है । शहरी विकास की काया तो राज्य निर्माण के पश्चात पूरी ही पलट चुकी है नगरीय प्रशासन के सचिव व ग्रामीण स्कूल स्तर पर ई शिक्षण के विकास के पुरोधा सी. के. खेतान राज्य के शहरों के विकास के लिए कृतसंकल्पित हैं । नगरीय प्रशासन की बागडोर सम्हाले मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह नें राज्य के नगरों के विकास हेतु जिस तरह से खजाने का मुंह खोला है वह रायपुर, बिलासपुर व दुर्ग में स्पष्ट नजर आता है । विजन स्टेटमेंट में रायपुर के महापौर सुनील सोनी व दुर्ग के महापौर सरोज पाण्डेय की यशोगाथा का भी वर्णन है जिसको नगर की जनता प्रत्यक्ष अनुभव कर रही है ।

छत्तीसगढ राज्य पूरे विश्व में धान के कटोरे के रूप में प्रसिद्ध है इसी क्रम में दसवे अध्याय में प्राउड टू बी लीडर्स के छत्तीसगढ के नामी गिरामी आर्थिक क्षेत्र के व्यक्तियों व संस्थाओं पर केन्द्रित लेखों में सबसे पहले छत्तीसगढ राईस मिल एशोसियेशन के अघ्यक्ष योगेश अग्रवाल को प्रस्तुत करते हुए भास्कर नें बतलाया है कि छत्तीसगढ में ७५ लाख मीट्रिक टन धान का उत्पादन होता है जो राज्य के लिए गर्व की बात है योगेश अग्रवाल जी कौन है यह छत्तीसगढ के लोग जानते हैं इनका नाम प्रथम पंक्ति में होना ही चाहिए क्योंकि धान हमारी अस्मिता है। इस स्टेटमेंट में जिन महानुभावों को शामिल किया गया है वे इस प्रकार हैं -

छत्तीसगढ का गहना सिटी माल ३६ के संजय गुप्ता जी जिन्होंने छत्तीसगढ की राजधानी रायपुर में महानगरों के तर्ज पर ४ स्क्रीन आईओनेक्स मल्टीप्लेक्स जिसकी क्षमता १४०० व्यक्तियों की होगी व ३.५ लाख वर्ग फिट में संपूर्ण आधुनिक सुविधओं से युक्त सिटी माल को मूर्त रूप देने का जिम्मा व जजबा को सम्हाला है ।

अनोपचंद तिलोकचंद ज्वेलर्स के उल्लेख के बिना सचमुच यह विजन स्टेटमेंट अधूरा हो जाता इस परिवार नें आभूषणों के व्यवसाय को जिस ढंग से स्थापित किया है वह औद्योगिक घरानों से कम नही है इस परिवार नें रायपुर में आभूषणों के निर्माण उसकी व्यावसायिकता, रत्न साजी के जो पाठ्यक्रम की शुरूआत की है उसका डंका सूरत से लेकर पूरे विश्व में है । ज्वेलर्स में सन एन्ड सन के राजेन्द्र शर्मा, महावीर अशोक के प्रवीण वूरड व कमलेश वूरड का भी नाम भुलाया नही जा सकता ।

छत्तीसगढ के विकास में अग्रणियों में से औद्योगीकरण के सूत्रधार छत्तीसगढ उद्योग महासंघ के महेश कक्कड जी, छत्तीसगढ में कैंसर चिकित्सा के क्षेत्र में कार्यरत डा.खण्डूजा, पांच सितारा भव्य होटेल के संचालकों में सेलेब्रेशन के हरमीत सिंह होरा व कमलजीत सिंह होरा, अतिउच्चस्तरीय विलासिता संसाधनों से भरपूर होटल बेबीलोन के जगजीत सिह खुराना व परमजीत सिंह खुराना, दिशा एजूकेशन सोसायटी के एस.के.जैन, रूगटा इंजीनियरींग कालेज के रूंगटा परिवार, हीरा सोप से हीरा ग्रुप आफ इंडस्ट्रीज के बी.एल.अग्रवाल जिन्होनें साबुन बनाने से लेकर गोदावरी पावर एण्ड स्पात सहित दस उद्योगों को खडा कर दिया, नीको ग्रुप के बसंतलाल अग्रवाल जिन्होंने छत्तीसगढ में सर्वप्रथम भारी लौह उद्योग स्थापित किया,जिन्दल ग्रुप के नवीन जिन्दल जी के योगदान को छत्तीसगढ में भुलाना मुश्किल है नीको ग्रुप के बाद जिन्दल नें ही छत्तीसगढ में लौह उद्योगों को नवीन दशा व दिशा प्रदान किया, जिन्दल ग्रुप के बाद मोनेट ग्रुप नें भी राज्य में लौह उद्योग के साथ साथ विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में जो प्रयास किया है उसे उल्लेख करना आवश्यक है, पावर व स्टील के पुरोधाओं में पाटनी प्रोजेक्ट के अमित पाटनी, रायपुर एलाज के कमल सारडा, सिम्पलेक्स ग्रुप के एच.बी.शाह सहित राज्य के बोर्डिंग स्कूल युगांतर के सुशील कोठारी को भी इस विजन स्टेटमेंट में स्थान दिया गया है ।

छत्तीसगढ के बस्तर में लौह उद्योग लगाने के लिए प्रयासरत टाटा ग्रुप के पितामह जमशेद जी नुसरवानजी टाटा का नाम भी इस स्टेटमेंट में दिया गया है जिसे हम विजन २०१० के लिये अग्रिम में दिया गया समझते हुए इस कथा को यहीं समाप्त करते हैं ।

अथ श्री बीजेपी प्रायोजित विज्ञापन दाताओं को महिमामंडित करने के उद्देष्य से भास्कर विरचित एडवांटेज छत्तीसगढ विजन २०१० पुराणे सम्पन:

रूद्राक्ष प्रयोग : रत्न परीक्षण का आधार (ज्योतिष)


इस लेख का कोई वैज्ञानिक आधार नही है यह पूर्णतया मान्यताओं पर आधारित है जो व्यक्ति ज्योतिष, पराशक्ति आदि में विश्वास रखता है उनके लिये हम इसे प्रस्तुत कर रहे हैं ।


विश्व के प्राय: हर देश में रत्नों के लिए स्वाभविक आकर्षण प्रारंभ से रहा है । रत्नों के लुभावने रंग व आभा समूचे संसार का मन भावन रहा है । रत्नों का प्रयोग आभूषणों के लिए प्राचीन काल में होता था किन्तु ज्योतिषीय मतों के अनुसार उसमें निहित दैवीय प्रभाव नें मनुष्य को उसके प्रति आकर्षण को और बढा दिया है । इसी के कारण आजकल १०० में से ८० व्यक्तियों के हांथों की उंगलियों में रत्नजडित अंगूठियों को देखा जा सकता है ।

ज्योतिष के सिद्धांतों पर यदि हम विश्वास करें तो रत्नों का प्रभाव मनुष्य के जीवन में पडता है । रत्न मनुष्य को उसके जन्म कालिक ग्रहों की स्थितियों एवं वर्तमान काल की ग्रहीय स्थितियों के अनुसार फल देते हैं । विवादों के बाद भी यह माना जा रहा है कि रत्नों के धारण करने मात्र से समयानुसार आने वाली मनुष्य की परेशानिया कम या समाप्त हो जाती है । इसी के कारण व्यावसायिक ज्योतिषियों के खजाने भरते जा रहे हैं । रत्नों के प्रति हमारे रूझान में वृद्धि प्रतिस्पर्धा, बीमारी, वैवाहिक कलह व असंतोष के कारण ही बढा है ।

मनुष्य को कब कौन सा रत्न धारण करना चाहिए इसके संबंध में ज्योतिष में सिद्धांतत: दो आधार माने गये हैं एवं उन्हे मान्यता भी प्राप्त है जिसमें से सर्वप्रथम आधार कुण्डली है, कुण्डली तात्कालिक ग्रहों की स्थिति को बताने का एक साधन है, ज्योतिष कुण्डली के ग्रहों की स्थिति के अनुसार पहले जातक की परेशानियों का अनुमान लगाता है फिर वह परेशानी किस ग्रह से संबंधित है यह भी अनुमान लगााता है एवं अनुभव के आधार पर व्यक्ति को रत्न धारण करनें का सुझाव देता है । दूसरा आधार - हांथों में ग्रहों की स्थितियों का अघ्ययन कर रत्नों का चयन किया जाता है ।

अभी तक इन्ही दो आधारों के दवारा रत्नों का सुझाव दिया जाता रहा है किन्तु हमें विगत दिनों एक चौकाने वाली जानकारी हांथ लगी जिसमें रत्नों के चयन की एक नयी पद्धति के संबंध में पता चला । हम आपके समक्ष उसकी जानकारी रखना चाहते हैं । यथा -

छत्तीसगढ के लौह नगरी दुर्ग-भिलाई के एक प्रतिष्ठित व्यवसायी एवं एक भव्य शापिंग माल के मालिक हैं नरेन्द्र कुमार जी अग्रवाल । इनके पास रत्न चयन के संबंध में एक अनोखा ज्ञान है जो ईश्वर प्रदत्त है । अग्रवाल जी यह कार्य स्वांत: सुखाय रूप से करते हैं यह कार्य उनका व्यवसाय नही है, वे जिसे रत्न धारण करना हो उसके हांथों के उपर मोली धागे में पेडुलम की तरह लटकते रूद्राक्ष के दवारा व्यक्ति को किस रत्न की आवश्यकता है यह बतलाते हैं । अग्रवाल जी इस पद्धति को रूद्राक्ष प्रयोग कहते हैं जो उन्हे दैवीय रूप से प्राप्त है एवं हजारों व्यक्तियों के दवारा इसका परीक्षण प्रयोग किया जा चुका है जिसमें वे सफल हुए हैं । इस बात की सत्यता की जानकारी उनके कार्यालय के विजिटर्स बुक में लिखे विभिन्न व्यक्तियों की टिप्पणियों में देखा जा सकता है जिसमें देश से ही नही विदेशों के रहवासियों के संदेश लिखे हुए हैं एवं उनके दवारा भेजे गये पत्र भी उसमें लगे हैं ।

अग्रवाल जी हांथों के उपर रूद्राक्ष को घुमातें हैं एवं विभिन्न प्रकार के रत्नों को बारी बारी से उंगलियों के उपर रखते हैं जिसमें पंेडुलम रूद्राक्ष में तीन स्थितियां निर्मित होती है जो रत्न धारण का आधार होता हैं । पहली स्थिति रूद्राक्ष का क्लाक वाईज घूमना जो बतलाता है कि उक्त रत्न व्यक्ति के लिये उचित है । दूसरी स्थिति एंटी क्लाक वाईज घूमना जो यह बतलाता है कि वह रत्न उस व्यक्ति के लिए अनुचित है । तीसरी स्थिति पेंडुलम की स्थिति होती है जो यह बतलाता हैं कि उक्त रत्न व्यक्ति को कोई खास प्रभाव नही डालेगा । अग्रवाल जी हंथेली के अलग अलग जगह में अलग अलग आवश्यकताओं के अनुसार रूद्राक्ष प्रयोग करते हैं । यहां इस बात पे आश्चर्य होता है कि बिना कुण्डली देखे इनके द्धारा धारण करवाया गया रत्न ज्योतिषीय गणना के अनुसार भी सौ प्रतिशत फिट बैठता है । यह प्रयोग उनके लिए तो वरदान साबित हो सकता है जिनके पास अपनी जन्म कुण्डली नही है जबकि जिनके पास कुण्डली है पर अशुद्ध गणना के अनुसार वह सही नही है ।


अग्रवाल जी नें हमें चर्चा के दौरान यह भी बतलाया कि उन्होंनें कई व्यक्तियों को उनके दवारा पहने गये महंगे रत्नों को उतरवा कर हल्दी के गांठ व तांबें के अंगूठी पहनवा कर भारी से भारी संकट को टलवा दिया है । उनका मानना है कि रोगग्रस्तता का महत्वपूर्ण कारण अज्ञानता एवं विलासिता के लिए हीरे एवं अन्य मंहगे व इमिटेशन आभूषणों को बिना जाने समझे पहनना है । उनका कहना है कि प्रत्येक रत्न मनुष्य के जीवन को अच्छा या बुरा प्रभाव देता है चाहे वह रत्न हो, उप रत्न हो या रंगीला पत्थर । इसलिए कोई भी रत्न पहनने के पहले उसे अपने उपर आजमा लेना चाहिए फिर उसे पहनना चाहिए ।

अग्रवाल जी रत्नों के चयन एवं धारण करने के लिए जो प्रक्रिया अपनाते हैं वह दिखने में सामान्य सा प्रतीत होता है पर उनके दवारा बताये गये रत्नों को ज्योतिषीय आधार पर बार बार परीक्षण किया गया है और वह पूर्णत: खरा उतरा है ।

ज्योतिष के अनुसार रत्नों के चयन में जो मूलभूत प्रक्रिया अपनाई जाती है उस पर मैं संक्षिप्त में प्रकाश डालना चाहता हूं । ज्योतिषियों की भाषा में तीन तरह के रत्नों का उल्लेख प्रमुखत: होता है और ज्योतिषियों के द्धारा मुख्यत: किसी व्यक्ति को इन्ही आधार पर रत्न धारण करने की सलाह देता है -

जीवन रत्न - यह मनुष्य के लग्न भाव के आधार पर तय किया जाता है ज्योतिषियों की मान्यता है कि इस रत्न का धारण मनुष्य अपने जीवन पर्यंत कर सकता है । जीवन रत्न मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारता है एवं उसके जीवन को प्रभावशाली व स्वस्थ रखता है ।

भाग्य रत्न - इसके चयन का आधार भाग्य भाव या नवम स्थान होता है यह मनुष्य के सामयिक विकास में कर्म के साथ मिलकर सफलता की संभावनाओं में वृद्धि करता है यानी यदि आप अपने भाग्य को प्रभावशाली बनाना चाहते हैं अपने चिंतन के अनुरूप करना चाहते हैं तो भाग्य रत्न को घारण किया जा सकता है ।

दशानुसार रत्न - उपरोक्त दोनों सामान्य स्थितियों के रत्न चयन का आधार जन्म कुण्डली होता है ।
दशानुसार रत्न का चयन वर्तमान परिस्थितियों में इच्छत फल प्राप्ति के लिए जन्मगत एवं गोचरगत ग्रहीय स्थितियों के अनुसार रत्न का चयन किया जाता है ।


उपरोक्त आधारों पर जन्म कुण्डली के परीक्षण में यदि संपूर्ण गणना एवं सिद्धांतों को ध्यान में नही रखा गया एवं भावगत राशियों एवं भाव में बैठे ग्रहों के आधार पर रत्न धारण करवा दिया जाय तो ग्रहों की दृष्टि, कारक भाव, कारक ग्रह, गोचर गत ग्रह कई बार भावगत राशि व ग्रह को इस कदर प्रभावित करते हैं कि जीवन रत्न मारक प्रभाव देने लगता है ऐसी स्थितियां मनुष्य को ज्योतिष से विमुख करती है एवं ज्योतिष इससे बदनाम होता है ।

अग्रवाल जी से चर्चा के दौरान हमें यह तो भरोसा हो चला कि उनके पास ज्योतिष के इस कठिन एवं नाजुक सिद्धांत में नव या अर्ध ज्ञानियों के द्धारा यदि कोई गलत सलाह दे दिया जाता है तो उनके दवारा रूद्राक्ष परीक्षण से स्थिति स्पष्ट हो जाती है ।

नरेन्द्र कुमार अग्रवाल जी से रूद्राक्ष परीक्षण के उपरांत संतुष्ट व्यक्तियों की लिस्ट में अलग अलग क्षेत्र व अलग अलग व्यवसाय से संबंधित लोग हैं जिसमें से कई ज्योतिष भी हैं । हमें उनके पास से अमेंरिका में निवासरत एक अनिवासीय भारतीय का ई मेल पता भी प्राप्त हुआ है जिसे हम यहां पर दे रहे हैं साथ ही अग्रवाल जी का पता एवं फोन नम्बर भी दे रहे हैं जिससे कि आप स्वयं उनसे उपनी जिज्ञाशाओं का उत्तर प्राप्त कर सकते हैं ।

Mr. Gaurang K., Sanfrancisco, USA . Mail : grkhetan@yahoo.com

श्री नरेन्द्र कुमार अग्रवाल, राधा किसन माल, स्टेशन रोड, सिटी क्लब के सामने, दुर्ग छत्तीसगढ
फोन : ०७८८ २२११६२५, ४०१०७२३

आत्ममुग्धता के वसीभूत चिटठाकार : आरंभ

फुरसतिया जी ने अपने चिटठे में एक बार लिखा था कि कुछ चिटठाकार आत्ममुग्धता के वसीभूत होते हैं जिसपर मैनें स्वीकार किया था कि मैं स्वयं इसका शिकार रहा हूं । पिछले दो चिटठे में मेरी आत्ममुग्धता को पुन: बल मिल गया ।

छत्तीसगढ के सामयिक समाचारों को लिखनें की अतिउत्सुकता एवं एक चिटठाकार होने के दायित्व के निर्वहन की थोथी मंशा के कारण पिछले पोस्ट में मुझसे गलती हो गयी जो चिटठाकारिता के
अलिखित संविधान का उलंघन था । उक्त पोस्ट के नारद पर आने के तुरंत बाद मेरे मित्रों नें मुझे फोन कर के “३६ गढ” को तत्काल हटाने के लिए फोन किया पर मैं उस समय इंटरनेट उपयोग क्षेत्र से दूर था जब नेट क्षेत्र में आया तो इंटरनेट कैफे के पुरानी मशीनों एवं धीमी गति के नेट के चक्कर में कई कोशिस करने के बाद भी पोस्ट एडिट नही हो पाया तब तक गलती आम हो गयी थी, छुपाने का समय नही था ।

चिटठाकार का सामाजिक दायित्व होना चाहिए सहीं तथ्यों को चिटठे में प्रदर्शित करना यदि कोई जानकारी अधूरी है तथ्यपरक नही है तब उस पर अपने स्वयं की जानकारी के अनुसार जैसे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। मैने पिछले पोस्ट में “३६ गढ के स्कूलों में .... गोमूत्र का छिडकाव” शीर्षक से एक पोस्ट संलग्न किया था । उसके पिछले पोस्ट में मेरे द्धारा पोस्ट किये गये पुलिस एनकाउंटर पर अपनी प्रस्तुति पर मैं इस कदर मोहित हुआ कि विभिन्न फोरमों के द्धारा प्रेषित ढेरों मेलों के शीर्षकों में से विवादित विषय को उठाने की प्रवंचना कर बैठा और लब्बो लुआब से पूरा का पूरा चिटठा लिख डाला ।

जब की बोर्ड के सिपाही वाले नीरज भाई नें उस पर टिप्पणी की एवं समाचार को मेल करने के लिए कहा तब जाकर मैनें उस समाचार को नेट में ढूढनें का प्रयास किया पता चला समाचार महारास्ट्र का था जो ३६ गढ का नजदीकी क्षेत्र है, जिसे मैंनें छत्तीसगढ का समाचार कह कर अपने चिटठे में पोस्ट कर दिया था ।


आज अपने कार्यालय में आया तब इस गलती को सुधारने के बजाय इसे भविष्य के पाठ के रूप में सहज रूप से स्वीकार करते हुए यह चिटठा लिख रहा हूं । नारद व हिन्दी ब्लाग दुनिया परिवार शीर्षक देख कर ही किसी के चिटठे में प्रवेश करते हैं एवं अपने ब्यस्ततम समय में से कुछ समय उस चिटठे को देते हैं जिसके बाद पता चलता है कि उस चिटठे में दी गयी जानकारी यद्धपि पठनीय हो पर उसका शीर्षक भ्रमित करता है ऐसी स्थिति में पाठक का समय खराब करने का दोषी वह चिटठाकार होता है । मैं नीरज भाई सहित उन सभी पाठकों से क्षमा प्रार्थी हूं जिन्होंनें ३६ गढ के कारण मेरे उक्त चिटठे पर समय दिया ।

३६ गढ के स्कूलों में बच्चों पर गो मूत्र का छिडकाव : पवित्रीकरण

समाचारों में आदिवासी ईलाकों के स्कूलों में शिक्षकों के द्वारा दलित बच्चो पर पवित्रीकरण के लिये गो मूत्र के छिडकव करने की सूचना मिलने पर -

सचमुच में यह बहुत बडी विडंबना है कि हम आज भी आदम के युग से उबर नही पाये हैं । हमारी यही प्रवृत्ति के कारण ही समाज में भाई‍ चारा कायम नही हो पा रहा है पर जब भी ऐसे समाचार मुझे झकझोरते हैं, मैं अपने अतीत को झांकता हूं । मैं एक मालगुजार परिवार से हूं, जहां मेरे दादा मालगुजार थे यानी आस पास के चार गावों के पालनहार या तानाशाह । 60 के दसक की जानकारी जो मुझे मेरे परिवार जन देते थे तब की कुछ यादें आज भी शेष हैं । दादा जी का खौफ़ कुछ एसा था कि हमारे घर के सामने की गली से हर कोई अपने जूते उतार कर चलता था चाहे कितनी भी तेज तपिश हो यदि दूसरे स्‍थान में रहने वाला तनिक विकासवादी या अनजान, जूते के साथ हमारी गली में दाखिल हुआ नही कि मेरे दादा के गुर्गे जो साहू, निषाद, सेन व यादव हुआ करते थे अपने ही जात भईयों को मेरे दादा के प्रति स्वामिभक्ति एवं चाटुकारिता प्रदर्शित करने के लिये बेरहमी से पीटते थे और अपने मूछों में ताव देते थे ।

मेरे दादा स्‍वयं इसके लिए हमारे नौंकरों, दरोगाओं, लठैतों को कभी उकसाये हों ऐसा मैनें कभी नही देखा ना सुना पर ऐसा कह कर मैं अपने दादा का पक्ष नही रख रहा हूं जो तटस्‍थ है . . . समय लिखेगा उसके भी अपराध . . . को मैं जानता हूं । बिना अपराध किये पुरखो के अपराध को ढोने का अपराधबोध क्या होता है यह हमारे जैसो से पुछा जा सकता है । हमें कई बार एसे लोगों से दो चार होना पडता है जो अधुरे ईतिहास के जानकार रहे है, जिनके दिल में सवर्णो के लिये कोई दया नही है । ईनके सामने पूरी जिंदगी उंच नीच का भेद व्यवहार किये बिना भी नाम के पीछे तिवारी होने के कारण हमारे जैसे लोग अपराधी ठहराये जाते है ।

मुसलमान शासकों को हमने यह कह कर अभयदान दे दिया कि उन्‍होनें अपने राज्‍य व्‍यवस्‍था को कायम रखनें के लिए दमन एवं धर्म परिवर्तन का सहारा लिया । यह कूटनीति थी राजनीति थी । सहानुभूति के कई शव्‍दों का प्रयोग भिन्‍न भिन्‍न जगह किया गया है, जबकि हिन्‍दुस्‍तान गवाह है कि मुगल काल में बहुतेरे गरीब तबके के लोग मुसलमान बनाये गये या स्‍वेच्‍छा से बन गये दमन एवं आतंक का नंगा नाच तब भी लेखा गया था, सिखों का प्रादुर्भाव क्‍यों हुआ था सभी जानते हैं पर मुगलों को बाबर का संतान कह कर नीचा नही दिखाया जाता ।


यह सब अप्रासांगिक एक दूसरे से बेमेल बाते प्रसंशवश ही कह रहा हूं आज दलितों को अपवित्रं पवित्र: कहने वाले कही न कही से कुलीनता का लबादा ओढे भ्रष्‍ट परिवार के ही अंश हैं यदि ये कुलीन हैं तो सौ प्रतशित वैधानिक और यदि ये स्‍वयं दलित ओ बी सी आदि हैं और ऐसा कर रहे हैं तो सौ प्रतशित अवैधनिक रूप से आरंभिक 19 वी सदी के पंडितों के संतान हैं क्योकि वैदिक संस्कृति के अनुसार मनु ही प्रथम मनुष्य थे ।

मैं लोगों के द्वारा मनु के संतान शव्‍द के प्रयोग करने पर आपत्ति पेश करता हूं । अज्ञानी के कान में वेद के ऋचाओं का स्‍वर पडने मात्र पर खौलता शीशा उनके कान में डालने का इंटरप्रिटेशन करने वालों को ही लोग आधुनिक युग में मनु के संतान की संज्ञा देते है । यानी गंदा इंशान जबकि हमें अपने आप को मनु के संतान कहलाने में गर्व महसूस करना चाहिए । मनु हिन्‍दू संकृति के आदि पुरूष् हैं, फिर भी हमें उनसे नफरत है बल्कि हमें नफरत उन पंडितों से करना चाहिए जिन्‍होंनें अपनी स्‍वार्थ सिद्धि के लिए अपने अनुसार स्मृतियों के अर्थ जनसुलभ कराये । क्या मनु ने स्वयं मनु स्मृति को लिखा ? उनको तो संतानोत्पत्ति कर पृथ्वी में मनुष्य संसार को रचना था उनके पास ईतना समय (मेरी समझ के अनुसार) बिल्कुल भी नहीं रहा होगा । जो भी लिखा गया वह पंडितों के द्वारा ही लिखा गया था, चूकि मनुष्य मनु के संतान थे इसलिये मनुष्य के जीवन व्यवहार की संहिता बनाने के उद्देश से तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार तात्कालिक परिस्थितियों के लिये ही, जो नियमावली की रचना की गयी उसे मनु स्मृति का नाम दे दिया गया । ठीक उसी प्रकार से जैसे राज्य के उत्पत्ति के सिद्धांत में संगठन व संम्हिता का श्रजन होता है । और ये गो मूत्र से दलितों को पवित्र करने वाले भी उन्‍ही पंडितों के वंशज हैं वही पंडित जिन पर वैदिक काल में भी हमारे बच्‍चों के शिक्षा की जिम्‍मेदारी थी और आज भी है । “पंडित सोई जो गाल बजावा . . .”

आज मात्र ऐसे समाचारों के शीर्षक को पढ कर सर्वणों के विरोध में दस पन्‍ने का भाषण देने वाले तथाकथित अम्‍बेडकर वादी भी हैं जिनका एक मात्र उददेश्‍य सर्वणों का विरोध करना है इसलिए नही कि सर्वण गलत हैं इसलिए क्‍योंकि यह समय की मांग है और इसी में ताली के ज्‍यादा बजने की संभावना है ।

गो मुत्र का छिड्काव करने के लिये किसने किन परिस्थितियो में कहा और क्यो कहा शिक्षकों ने एसा क्यो किया यह हमारे लिये मायने नहीं रखता मायने रखता है बाल की खाल निकालना कहां किसी से चूक हुई और “सींका के टुट्ती बिलईया के झपट्ती “

बिजली कर्मियो का बटवारा म प्र एव छत्तीसगढ मे एक दिवा स्वप्न

छत्तीसगढ राज्य निर्माण के बाद से मध्य प्रदेश विधुत मण्डल व छत्तीसगढ राज्य विधुत मण्डल के बीच कर्मियो का बटवारा प्रशासनिक स्तर से होते हुए न्यायिक स्तर तक पहुच गया है किन्तु दोनो राज्यो के कर्मचारी अपने अपने राज्य मे अपने अपने राज्य के विधुत मण्डल मे सेवा करने की आश सजोये पिछले सात साल से अधर मे लटके जी रहे है । इनकी विडम्बना यह है कि इनके परिवार व घर मे इनकी आवश्यकता महती है फिर भी ये अपने घर से काफी दूर मे निवास करने के लिये मजबूर है, किसी का बूढा बाप बीमार है तो किसी का घर खेत बन्जर हो रहा है ।

सूत्र बताते है कि यह समस्या छत्तीसगढ के कर्मचारी जो अविभाजित मध्य प्रदेश मे सेवारत थे उनकी ज्यादा है क्योकि मध्य प्रदेश विधुत मण्डल से ज्यादा वेतन व सुविधाये छत्तीसगढ राज्य विधुत मण्डल द्वारा दी जा रही है जिसके कारण मध्य प्रदेश के कर्मचारी जो छत्तीसगढ राज्य विधुत मण्डल मे वर्तमान मे सेवारत है वे मध्य प्रदेश जाना नही चाहते जबकि छत्तीसगढ के कर्मचारी जो मध्य प्रदेश विधुत मण्डल मे सेवारत है वे अपने गाव व घर के करीब नौकरी करना चाहते है उनके लिये वेतन का उतना महत्व नही है ।

बिजली कर्मियो के बटवारे के लिये गठित आर पी कपूर कमेटी के अप्रभावी सूची मे जिनका नाम आया वे पिछले वर्ष सेवा काल व वेतन वृद्धि मे कटौती को भी स्वीकार करते हुए काफी खुश थे पर छत्तीसगढ के अभियन्ता छत्तीसगढ उच्च न्यायालय चले गये और मामला फिर ठ्न्डे बस्ते मे चला गया । अब छत्तीसगढ उच्च न्यायालय ने अभियन्ताओ के प्रकरण का निराकरण कर दिया है जिसमे कहा गया है कि मध्य प्रदेश विधुत मण्डल व छत्तीसगढ राज्य विधुत मण्डल के बीच कर्मियो का बटवारा केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित दिशा निर्देशो के तहत की जाय । एक बार फिर सिफर की ओर ...

अब प्रश्न यह उठता है कि क्या आर पी कपूर कमेटी के द्वारा निर्धारित दिशा निर्देश, केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित दिशा निर्देशो के अनुरूप थे यदी थे तो मण्डल अपना पक्ष छत्तीसगढ उच्च न्यायालय मे क्यो नही रख पाइ । अब आर पी कपूर कमेटी के द्वारा बनाइ गयी सूची के आश मे सालो से जीते छत्तीसगढ के कर्मचारी जो मध्य प्रदेश विधुत मण्डल मे सेवारत है उनका क्या होगा जब तक उनका नाम पुर्नगठित सूची मे नाम आयेगा तब तक वे सेवामुक्ति के आयु मे आ जायेगे

छत्तीसगढ उच्च न्यायालय के निराकरण के बाद अब दोनो राज्यो के उर्जा मन्त्री, सचिव व मण्डल के अध्यक्षो की तत्परता से ही मोर छत्तीसगढ के बिजली विभाग के जबलपुरिहा अउ नइ जाने कहा कहा बसे, नौकरी म फसे, जग भर के घर ला अजोर करे बर पेरात भाइ मन के छत्तीसगढ के सुन्ना डीह मे दीया जल पाही दाइ ददा के लाठी म दम आ पाही अउ बेटी बेटा के बिहाव जात बिरादरी सन्ग हो पाही, बाकी उम्मर छत्तीसगढ महतारी के कोरा म बीत पाही ।

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