हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए : कितने वैज्ञानिक कितने अन्ध-विश्वास ?

देश के अन्य राज्यो की तरह छत्तीसगढ मे भी नाना प्रकार के विश्वास, आस्थाए और परम्पराए अस्तित्व मे है। राज्य मे सोलह हजार से अधिक गाँव है। पीढीयो से समाज इन विश्वासो, आस्थाओ और परम्पराओ को मानता आ रहा है। पर शहरो मे बैठे हमारे जैसे लोग बिना किसी देर इन्हे अन्ध-विश्वास घोषित करने मे नही चूकते है। हम यह भी चाहते है कि इस पर अंकुश लगे। पर क्या यह सही है? इन विश्वासो, आस्थाओ और परम्पराओ का विकास एक दिन मे तो हुआ नही है। ये पीढीयो से चले आ रहे है और इसमे लोगो का गूढ अनुभव शामिल है।
क्या हमारे पूर्वज निरे गँवार थे और क्या हम सब कुछ जान चुके है? जरा सोचिये यदि यही सोच हमने आगामी पीढी को दी तो वे हमे भी ऐसा ही मानेंगे। मुझे लगता है कि इन विश्वासो, आस्थाओ और परम्पराओ के विज्ञान को समझने और समझाने की जरूरत है।
क्या हमारे पूर्वज निरे गँवार थे और क्या हम सब कुछ जान चुके है? जरा सोचिये यदि यही सोच हमने आगामी पीढी को दी तो वे हमे भी ऐसा ही मानेंगे। मुझे लगता है कि इन विश्वासो, आस्थाओ और परम्पराओ के विज्ञान को समझने और समझाने की जरूरत है। हो सकता है कि समय के साथ ये अपना मूल रूप खो बैठे हो और इनका विज्ञान हम तक न पहुँचा हो। संजीव तिवारी जी के लोकप्रिय ब्लाग आरम्भ मे हर सप्ताह इसी पर चर्चा करने का प्रयास मै करूंगा। मै भी आप ही की तरह सीखने की प्रक्रिया मे हूँ। आपके विचार मुझे प्रेरणा देंगे। हर बार एक विषय पर चर्चा कर उसका वैज्ञानिक पहलू सामने रखा जायेगा। मै संजीव जी का आभारी हूँ कि उन्होने मुझे इसकी इजाजत दी है।


इस सप्ताह का विषय

छत्तीसगढ मे ‘झगडहीन’ नामक वनस्पति पायी जाती है। इसके बारे मे कहा जाता है कि इसे घर मे लगाने से झगडा हो जाता है। यह विश्वास है या अन्ध-विश्वास?

मेरे विचार: झगडहीन नामक पौधा वैज्ञानिक जगत मे ग्लोरिओसा सुपरबा के नाम से जाना जाता है। इसका हिन्दी नाम कलिहारी है। यह अत्यंत विषैला पौधा है। इसके कन्दो का छोटा सा टुकडा भी मनुष्य की जान ले सकता है। आपने लिट्टे का नाम तो सुना ही होगा। बीबीसी मे बहुत पहले प्रकाशित रपट के अनुसार उनके लडाके गले मे आत्महत्या के लिये जो केप्सूल बाँधते है उसमे इसी कन्द का उपयोग होता है।
बीबीसी मे बहुत पहले प्रकाशित रपट के अनुसार उनके लडाके गले मे आत्महत्या के लिये जो केप्सूल बाँधते है उसमे इसी कन्द का उपयोग होता है।
आप इसकी विषाक्त्ता का अन्दाज सहज ही लगा सकते है। पर इसके फूल बडे ही आकर्षक होते है। इसके जहर से अंजान लोग फूलो के कारण इसे अपने बागीचो मे लगा देते है। यह पौधा बच्चो और पालतू पशुओ के लिये जानलेवा साबित हो सकता है। मुझे लगता है कि हमारे पूर्वज इसके इस गुण को जानते होंगे। अब ऐसे तो लोग मानने से रहे। इसीलिये शायद झगडे वाली बात जोडी गयी हो। इस बात का इतना असर है कि लोग पीढियो से इसके बारे मे जानते है पर घर मे नही लगाते है। पढे-लिखे लोग इसे अन्ध-विश्वास बता सकते है। पर यदि यह विश्वास आम लोगो की रक्षा कर रहा है तो इसे इसी रूप मे जारी रहने देने मे कोई बुराई भी तो नही है।

झगडहीन के चित्र की कडी
http://ecoport.org/ep?SearchType=pdb&PdbID=6653


पंकज अवधिया

अगले सप्ताह का विषय है पीलीया झाडना: कितना सही कितना गलत ?

डॉ. पंकज अवधिया जी का अतिथि पोस्‍ट आरंभ पर

आप सभी जानते ही है कि छत्‍तीसगढ सहित संपूर्ण भारत में कई तरह की मान्यताए और परम्पराए प्रचलित है। जैसे दौना का प्रयोग, अमली मे भूत, हरेली मे नीम का प्रयोग, पीलीया झाडना आदि-आदि। ये सब हमारे समाज मे रचे बसे है। इन्हे अन्ध विश्वास कहना सबसे आसान है पर छत्तीसगढिया सब ले बढिया है तो फिर उनके समाज मे फैली बातो का कुछ वैज्ञानिक आधार भी तो हो सकता है।


ख्‍यात वनस्‍पति व कृषि विज्ञानी डॉ. पंकज अवधिया नें इस आधार को सामने लाने का बीडा उठाया है। पंकज भाई प्रत्‍येक सोमवार को आरंभ पर अतिथि पोस्ट लिखेंगें । जिसमे हर बार एक मान्यता का वैज्ञानिक विश्लेषण किया जायेगा ।


हम आभारी हैं पंकज जी के जो नियमित रूप से नेट पर अंग्रेजी में विभिन्‍न शोध क्रियाकलापों में एवं हिन्‍दी में मेरी कविता, किसानों के लिए, हमारा पारंपरिक चिकित्‍सा ज्ञान, मेरी प्रतिक्रिया एवं मधुमेह पर वैज्ञानिक रपट जैसे सफल ब्‍लाग लेखन के साथ ही श्री ज्ञानदत्‍त पाण्‍डेय जी के ब्‍लाग पर अतिथि पोस्‍ट भी लिख रहे हैं, पंकज जी देश के विभिन्‍न पत्र-पत्रिकाओं में भी लेख लिखने का निरंतर कार्य कर रहे हैं । देश विदेश से आये कृषकों एवं वैज्ञानिकों को समय देने के अतिरिक्‍त इन्‍हें इन्‍हीं कार्यों से निरंतर भ्रमण भी करते रहना पडता है फिर भी उन्‍होंनें हमारे ब्‍लाग पर नियमित लिखने का जो आर्शिवाद दिया है उससे हम अभिभूत हैं ।


इंतजार करिये सोमवार से दर्द हिन्‍दुस्‍तानी - पंकज अवधिया जी का आलेख हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए : कितने वैज्ञानिक कितने अन्ध-विश्वास ? सीरिज का पहला लेख कल 31 दिसम्‍बर को ।

संजीव

फिल्‍म “उन्‍नीस साल का लडका” का आज प्रसारण

इस वर्ष दूरदर्शन द्वारा देश के विभिन्‍न केन्‍द्रों से छ: कथाकारों की कहानियों को राष्‍ट्रीय प्रसारण के लिए चुना गया जिसमें रायपुर केन्‍द्र से शशांक द्वारा लिखित उम्र के अंतराल को लांघकर प्रेम की उपलब्धि तक पहुंचने की कहानी ‘उन्‍नीस साल का लडका’ का प्रसारण आज 29 दिसम्‍बर, संध्‍या 06.00 बजे दूरदर्शन में किया जायेगा ।

इस फिल्‍म के पटकथा व संवाद लेखक कथाकार डॉ.परदेशीराम वर्मा हैं । छत्‍तीसगढ के परिवेश में रंगी यह कहानी स्‍थानीय सीमाओं को तोडती है । इस फिल्‍म का फिल्‍मांकन छत्‍तीसगढ के गरियाबंद व फिंगेश्‍वर क्षेत्र में किया गया है ।

फिल्‍म के कार्यकारी निर्माता बैकुण्‍ठ पाणिग्रही, निर्देशक डॉ.अजय सहाय हैं । प्रदीप पाठक द्वारा प्रस्‍तुत इस फिल्‍म के कलाकारों में प्रसिद्व कलाकार शिल्‍की गुहा भी हैं अन्‍य कलाकरों में मधु साहू, कुमार हर्ष, पूनम नकवी, महेश वर्मा व विनोद हैं कैमरा मैन यूसूफ खान हैं ।

रावघाट के योद्धा : अधिवक्‍ता विनोद चावडा

क्षेत्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्राय: ``रावघाट के योद्धा`` के संबोधन से युक्‍त एक शख्‍श का नाम पिछले कई माह से हम पढ रहे हैं । हम दुर्ग-भिलाई में रहते हैं इस कारण लोहा एवं उससे जुडे मुद्दों पर यदा कदा चिंतन स्‍वमेव हो जाता है और लौह अयस्‍क के अकूत भंडार होने के कारण हमारी स्‍वाभाविक रूचि रावघाट एवं रावघाट से जुडे मुद्दों पर भी रही है । रावघाट के इस योद्धा नें लौह अयस्‍कों को निजी हाथों में सौंपे जाने के विरूद्ध जो लडाई लडी है वह छत्‍तीसगढ सहित संपूर्ण भारत के उपलब्‍ध खजाने को लूटने से बचाने की लडाई है ।

रावघाट के इस योद्धा का नाम है विनोद चावडा । सहज सरल किन्‍तु देश के खनिज संपदा के संबंध में संम्‍पूर्ण जानकारी अपनी सहज शैली में बसाए हुए खनिज मामलों के वकील । इनके संबंध में व्यापक जनहित पर आधारित विशिष्‍ट कार्यशैली पर बीबीसी के पूर्व संवाददाता श्री शुभ्राशु चौधरी अपने एक लेख पर कहते हैं –

“विनोद चावड़ा थोडे फक्कड़ किस्म के माइनिंग विषयों के वकील है। जब दुर्ग के एक मोहल्ले में मैं उनके गैराज नुमा दतर में पहुंचा वे दो जेबों वाली सफेद बण्डी पहने हुए थें। सबसे पहले उन्होंने मुझे उनकी काली कुर्सी पर बैठने को कहा उन्होंने बताया कि यह इस दफ्तर का रिवाज हैं कि कोई भी मेहमान जब यहां पहली बार आता हैं तो मैं उन्हें अपनी कुर्सी में बैठाता हूं और खुद मेहमान की कुर्सी पर बैठता हूं।“

“. . .अब विनोद चावड़ा जी ने अपने बारे में बताना शुरू किया । मेरे पिताजी ट्रक ड्राइवर थे और मैं भिलाई-दुर्ग में ही बड़ा हुआ, यही मेरी मातृभूमि कर्मभूमि हैं । मैंने शादी नहीं की है और पड़ोस में मेरे भाई का परिवार रहता है जिनके भरोसे मैं जिन्दा हूं यानि मेरे खाने पीने का इंतजाम उनके यहां होता है और अब आप सिर उठाकर ऊपर देखिए ।“

“विनोद चावड़ा की कुर्सी के ठीक ऊपर जहां अब भी मैं बैठा हुआ था एक बड़ा सा ओम लिखा हुआ हैं । उन्होंने बताया यह ओम मेरी रक्षा करता हैं ।“

इसी ओम के सहारे विनोद भाई नें छत्‍तीसगढ के रावघाट के गर्भ में छिपे 90 हजार करोड के लौह भंडार को केन्‍द्र और राज्‍य शासन के द्वारा निजी एवं विदेशी कम्‍पनियों को सौंपने के कुत्सित प्रयास के विरूद्ध आवाज उठाया । सरकारी तंत्रों से दस्‍तावेजी प्रमाणों व विधिक साक्ष्‍यों के साथ ही जन-मन आन्‍दोलनों के सहारे बिना किसी आर्थिक सहयोग के लडते रहे । विनोद जी के संबंध में शुभ्राशु जी आगे कहते हैं –

“उन्होंने आगे समझाया कि मध्यप्रदेश सरकार के एक नोटिफिकेशन के अनुसार रावघाट की तमाम माइंस को सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सुरक्षित रखा गया हैं, पर देश के काफी नेताओं ने उस कानून को अनदेखा कर रावघाट की माइंग की लीज निजी कंपनियों को दे दी थी ।“

विनोद चावड़ा कहते है 'भाई साहब हम आज जो भी हैं भिलाई स्टील प्लांट की बदौलत हैं और अगर रावघाट निजी हाथों में चला जाता तो भिलाई स्टील प्लांट के अगले तीस सालों में बंद हो जाने की नौबत आ जाती ।`

विनोद चावड़ा ने अपने खर्चे और प्रयास से इस गैर कानूनी पहल के बारे में लोगों को जानकारी देना शुरू किया और अंतत: पिछले महीने मुख्य सचिव शिवराज सिंह ने रावघाट को निजी कंपनियों को देने की फाइल में अंतिम दस्तखत करके मामले को रफा दफा किया ।

विनोद जी का कार्य, लगन एवं कर्तव्‍यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता सदैव अनुकरणीय रहा है । छत्‍तीसगढ के खनिज ज्ञान के संबंध में उन्‍हें चलता फिरता इन्‍साईक्‍लोपीडिया कहा जाता है । छत्‍तीसगढ के खनिज के सहारे देश और विदेश में कौन कौन सी कम्‍पनियों का अस्तित्‍व कायम है यह विनोद जी को पता है । न केवल बाक्‍साईड, लौह अयस्‍क और कोयला बल्कि छत्‍तीसगढ के हीरों की गहरी जानकारी विनोद जी के पास है । छत्‍तीसगढ के मुख्‍यमंत्री के कथन ‘ 2011 तक छत्‍तीसगढ में इतना ज्‍यादा हीरे का उत्‍पादन होने लग जायेगा जो न कि प्रदेश का हुलिया बदल देगा बल्कि छत्‍तीसगढ दुनिया में हीरे की इतनी बडी मंडी बन जाएगी कि वही हीरे की कीमत तय करेगी’ का उत्‍तर देते हुए विनोद जी कहते हैं –

“जैसा यूरोप के देशों ने एशिया और अफ्रीका को उपनिवेश बनाने के लिए आपस में बांट लिया था वैसे ही दुनिया की तीन बड़ी कंपनियों डी बीयर्स, रिओ टिण्टो और एंग्लो अमेरिकन ने पूरे छत्तीसगढ़ को आपस में बांट लिया है और उनको लीज हमारी सरकार ने दी है । यह बात सही है कि छत्तीसगढ़ में अकूत हीरे के होने की पूरी संभावना है पर मैं यहां की वास्तविकता जानता हूं और आपको यह लिखकर देता हूं कि २०२० में भी यदि पहला हीरा बाजार में आ गया तो यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी ।“

“पर मैं सभी से हाथ जोड़कर अनुरोध करता हूं कि इस हीरे के उत्खनन को हमारी अगली पीढ़ी के लिए छोड़ दिया जाए । हमारे प्रदेश में लौह अयस्क, कोयला, बॉक्साइट और डोलोमाइट का इतना भंडार है कि यदि इनका उचित दोहन किया जाए और उस धन का उचित उपयोग हो तो वह हमारी कई पीढ़ियों के लिए पर्याप्त है । मेरा मानना है कि हीरे का खनन तब तक नहीं होना चाहिए जब तक हमारे बच्चों के पास हीरा उत्खनन की तमाम तकनीक न आ जाए और हमें किसी विदेशी रिओ टिण्टी या डी बीयर्स की जरूरत न रहे ।“

छत्तीसगढ़ की अकूत खनिज संपदा के कुपात्रों द्वारा विकृत दोहन किये जाने के कुत्सित प्रयासों में से एक मुख्य षड़यंत्र छ.ग. के मेरूदंड राष्‍ट्रीय गौरव भिलाई इस्पात संयंत्र की जीवनदायिनी परियोजना ‘रावघाट’ के लौह अयस्क भंडारों को राज्य एवं केन्द्र सरकारों द्वारा निजी हाथों में सौपे जाने के सरकारी प्रयासों को अधिवक्ता विनोद चावड़ा द्वारा विफल करवा देने के कारण ९० हजार करोड़ रूपए की सरकारी संपत्ति (रावघाट के लौह अयस्क भंडार) पुन: भिलाई इस्पात संयंत्र को वापस मिलने की संभावना बलवती हई। उनके इस प्रयास पर छत्‍तीसगढ के विभिन्‍न सामाजिक संगठनों एवं प्रतिष्ठित ब्‍यक्तियों के द्वारा उन्‍हें सम्‍मान प्रदान किया गया एवं उनकी सर्वत्र प्रसंशा की गई जिनमें से कुछ का उल्‍लेख हम यहां कर रहे हैं :-

1. छ.ग. की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था ``अगासदिया`` द्वारा ``रावघाट के योद्धा`` की उपाधि से विभूषित करते हुए ``चंदूलाल चंद्राकर सम्मान-२००७`` प्रदान किया गया ।

2. राष्‍ट्रीय लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्यक्ष एवं समाजवादी चिंतक श्री रघु ठाकुर द्वारा प्रदेश की खनिज संपदा की रक्षा के अभिनव सफलतम प्रयासों के लिए सार्वजनिक अभिनंदन करते हुए ``छत्तीसगढ़ गौरव`` की उपाधि से विभूषित किया।

3. राजभाषा छत्तीसगढ़ी मंच द्वारा ``छत्तीसगढ़ रत्न`` की उपाधि से सम्मानित किया गया।

4. कंगलामाझी सरकार द्वारा ``कंगलामाझी सम्मान-२००७`` से सम्मानित किया गया ।

5. संत कवि पवन दीवान द्वारा अभिनंदन ।

6. प्रख्यात चिंतक व सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसायटी एंड सेक्युलरिजम, मुम्बई के निर्देशक डॉ. असगर अली इंजीनियर द्वारा प्रशंसा ।

7. भिलाई इस्पात संयंत्र के वर्तमान प्रबंध निर्देशक श्री आर. रामाराजू द्वारा धन्यवाद दिया गया कि, विनोद चावड़ा ने भिलाई इस्पात संयंत्र का अधिवक्ता नहीं होने के बावजूद संयंत्र के लंबे जीवन के लिए आवश्यक रावघाट के लौह अयस्क भंडारों को वापस संयंत्र की झोली में डलवाने का अविस्मरणीय कार्य कर दिया है इसके लिए संयंत्र परिवार इनका अत्यंत आभारी है।

8. भिलाई इस्पात संयंत्र की स्थापना में अविस्मरणीय योगदान प्रदान करने वाले म.प्र. के प्रथम मुख्यमंत्री स्व. पं. रविशंकर शुक्ल के पुत्र श्री विद्याचरण शुक्ल द्वारा रावघाट के लौह अयस्क भंडारों को बीएसपी के पक्ष में पुन: सुरक्षित किये जाने हेतु किये गये उनके प्रयासों की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए श्री चावड़ा को आर्शीवाद दिया ।

इस योद्वा का जीवन आदर्श है, देश को ऐसे कर्मवीरों की आवश्‍यकता है, शुभ्रांशु जी की पंक्ति देखिए –

"मुझे विख्यात अमेरिकी लेखक वाइस लिपमैन का १९३६ में दिया वह विख्यात भाषण भी याद आया जो उन्होंने अमेरिकी लोकतंत्र की सफलता का कारण समझाते हुए दिया था । उन्होंने बताया था कि न सिर्फ स्वतंत्र प्रेस और न्यायालय बल्कि इन सभी से स्वतंत्र उन व्यक्तियों का भी इस बचाने में अहम रोल रहा है जो चर्च, विश्वविद्यालय या किसी भी तरह की संस्था से अलग रहकर अपने दम पर इस पर नजर रखते हैं । अगर हम भारतीय लोकतंत्र को भी बचाना चाहते हैं तो हमें विनोद चावड़ा जैसे स्वतंत्र लोगों की जरूरत हैं ।"

(शुभ्रांशु चौधरी के आलेख एवं विनोद चोपडा जी से प्राप्‍त जानकारी के आधार पर)
संजीव तिवारी

महाकोशल में हैहयवंश की उपस्थिति एवं सोमवंश का अंत

छत्‍तीसगढ इतिहास के आईने में 2

त्रिपुरी के हैहयवंशी राजा के अट्ठारह पुत्र थे सभी वीर व शौर्यवान थे । इनके वंशज संपूर्ण भारत को अपनी वीरता से जीत लेने के लिए विभिन्‍न क्षेत्रों में अपने-अपने सामर्थ्‍य के अनुसार प्रयास करते रहे इन्‍हीं मे से शंकरण द्वितीय मुग्‍धतुंग, महाराज शिवगुप्‍त के पुत्र कोकल्‍ल प्रथम एवं रामायणकालीन राजा कीर्तिवीर्य सहत्रार्जुन का वंशज था ।

मुग्‍धतुंग नें कोसल के रत्‍नपुर में बारंबार आक्रमण कर उस पर विजय प्राप्‍त कर लिया किन्‍तु सोमवंशी राजा जन्‍मेजय नें पुन: रत्‍नपुर को मुग्‍धतुंग से छीन लिया एवं सैन्‍य बल रत्‍नपुर में बढा दिया । यहीं से सोमवंशियों एवं कलचुरियों के बीच शत्रुता और संघर्ष बढता गया । सोमवंशी अपना राज्‍य बचाने के लिए एवं कलचुरी अपनी प्रतिष्‍ठा बढाने के लिए लडते रहे ।

इन्‍हीं दिनों मुग्‍धतुंग के पराजय और अपमान का बदला लेने का बीडा हैहयवंशी कुमार कलिंगराज नें उठाया । वह त्रिपुरी से अपनी चतुरंगिणी सेना लेकर सोमवंशी सीमा रेखा को लांघते हुए कोसल के अंदर तक घुस आया और तुम्‍मान को अपना गढ बना लिया यहां कलिंगराज नें शक्ति संचय किया एवं भारी संख्‍या में नये सैनिकों की भर्ती कर उन्‍हें प्रशिक्षित भी किया ।

त्रिपुरी के अखण्‍ड राज्‍य से कलिंगराज को भरपूर सहायता प्राप्‍त हो ही रही थी । कलिंगराज नें पुन: पूर्ण जोश के साथ रत्‍नपुर में आक्रमण किया । घमासान युद्ध के बाद रत्‍नपुर के तत्‍कालीन सोमवंशी शासक का वध कर कलचुरी ध्‍वज को कलिंगराज नें रत्‍नपुर के किले में फहरा दिया ।

अब सोमवंश की आदि राजधानी श्रीपुर की ओर प्रस्‍थान का समय था, वीर कलिंगराज रत्‍नपुर से श्रीपुर की ओर बढ चला । विजय पथ पर पढने वाले कोसल के सभी राजाओं व गढपतियों नें सहर्ष कलचुरी अधीनता को स्‍वीकार किया ।

श्रीपुर में सोमवंशी राजा महाशिवगुप्‍त का पुत्र महाभवगुप्‍त प्रथम जन्‍मेजय उस काल में प्रतापी और वीर राजा था । तब संपूर्ण कोशल में सोमवंश की ही पताका फहराती थी और सोमवंशी तत्‍कालीन संस्‍कृति के लिए विश्‍वविख्‍यात राजधानी श्रीपुर में निवास करते थे । त्रिपुरी के कलचुरियों को रणभूमि में बार बार मात देने में जन्‍मेजय का कोई मुकाबला नहीं था । कलचुरियों का कोसल में राज करने के स्‍वप्‍न को उसने कई बार तोडा था, किन्‍तु निरंतर आक्रमण एवं भंज व नाग राजाओं के साथ नहीं देने की वजह से पहले ही रत्‍नपुर का राज्‍य छिन चुका था । फलत: जन्‍मेजय, कलिंगराज से संघर्ष में परास्‍त हो गया उसे सिहावा की ओर भागना पडा ।

कलचुरी नरेश कलिंगराज नें श्रीपुर में भी कब्‍जा कर लिया, अब कोसल क्षेत्र में उसके राज्‍य की सीमायें उत्‍तर में गंगा, दक्षिण में गोदावरी, पश्चिम में उज्‍जैन तथा पूर्व में समुद्र तट तक फैल गया । इस प्रकार से कलचुरी भारत के मध्‍य तथा दक्षिण-पूर्व के एक विस्‍तृत भू-भाग के अधिपति बन राज्‍य करने लगे ।

कलिंगराज के संबंध में कहा जाता है कि उसे इस विजय के लिए ‘कौशलेन्‍द्र’ की पदवी से विभूषित किया गया था । उसका शौर्य प्रभाव इतना था कि कौशलेन्‍द्र की सेना के राज्‍य प्रवेश की सूचना मात्र से शत्रु राजा के प्राण सूख जाते थे ।

सोमवंशी प्रतापी किन्‍तु वृद्ध हो चले राजा जन्‍मेजय के श्रीपुर में परास्‍त होने के साथ ही सोमवंशियों का महाकोसल से समूल विनाश हो गया और हैहयवंशी कलचुरियों का एक-छत्र राज्‍य स्‍थापित हो गया ।

इस वंश के राजाओं में जाजल्‍लदेव जैसे प्रसिद्ध राजा हुए जिनके निर्माण व स्‍थापत्‍यकला से आज भी छत्‍तीसगढ की धरती फूली नहीं समाती और इनके इन स्‍थापत्‍य हस्‍ताक्षरों की चर्चा देश ही नहीं विदेशों में भी होती हैं । छत्‍तीसगढ के इतिहास को सामान्‍य भाषा में प्रस्‍तुत करने का हमारा यह क्रम जारी रहेगा ... ।

(छत्‍तीसगढ एवं कोशल के विभिन्‍न इतिहासविषयक लेखों, शिलालेखों, ताम्रपत्रों व किताबों के आधार पर लिखित इस आलेख में विचार और शव्‍द मेरे हैं । इसे विवादों से परे एक कथानक के रूप में पढें, यही हमारा अनुरोध है )

संजीव तिवारी

इस आलेख में प्रयोग किए गए स्‍थान के नाम संबंधी परिचय -
त्रिपुरी – मध्‍यप्रदेश के जबलपुर के निकट स्थित इतिहासकालीन स्‍थल
तुम्‍मान – छत्‍तीसगढ के बिलासपुर के निकट स्थित पुरातात्‍विक एवं ऐतिहासिक स्‍थल
रत्‍नपुर - छत्‍तीसगढ के बिलासपुर के निकट स्थित पुरातात्‍विक एवं ऐतिहासिक स्‍थल जो वर्तमान में रतनपुर कहलाता है एवं जहां प्रसिद्ध महामाया मंदिर स्थित है ।
श्रीपुर - छत्‍तीसगढ के रायपुर के निकट स्थित पुरातात्‍विक एवं ऐतिहासिक स्‍थल जो वर्तमान में सिरपुर कहलाता है एवं जहां खुदाई में नालंदा से भी वृहद विश्‍वविद्यालय के अस्तित्‍व का पता चला है ।
हैहयवंशी – इसे कलचुरीवंश भी कहा जाता है ।
सोमवंश – कहीं कहीं इसे पाण्‍डुवंश के नाम से संबोधित किया जाता है ।

छेर छेरा पुन्‍नी : छत्‍तीसगढी त्‍यौहार

छत्‍तीसगढ इतिहास के आईने में - 1

कोसल नरेश हैहयवंशी प्रजापाल‍क कल्‍याण साय मुगल सम्राट जहांगीर के सानिध्‍य में आठ वर्ष तक अपने राजनीतिज्ञान एवं युद्धकला को परिष्‍कृत करने के बाद सरयू क्षेत्र से ब्राह्मणों की टोली को साथ लेकर अपनी राजधानी रत्‍नपुर पहुंचे ।

कोसल की प्रजा आठ वर्ष उपरांत अपने राजा के आगमन से हर्षोल्‍लास में डूब गई । प्रजा राजा के आगमन की सूचना पाकर निजी संसाधनों से एवं पैदल ही रत्‍नपुर की ओर दौड पडी । सभी 36 गढ के नरेश भी राजा के स्‍वागत में रत्‍नपुर पहुच गए । सभी आंनंदातिरेक में झूम रहे थे, पारंपरिक नृत्‍य और वाद्यों के मधुर स्‍वर लहरियों के साथ नाचता जन समुह कल्‍याण साय का जय जयकार कर रहा था ।

महल के द्वार को प्रजा राजा के दर्शन की आश लिये ताकती रही मन में नजराने की आश भी थी । आठ वर्ष तक राजकाज सम्‍हालने वाली रानी को पति के प्रेम के समक्ष अपनी प्रजा के प्रति दायित्‍व का ख्‍याल किंचित देर से आया, रानी फुलकैना दौड पडी प्रजा की ओर और दोनो हांथ से सोने चांदी के सिक्‍के प्रजा पर लुटाने लगी ।




कोसल की उर्वरा धरती नें प्रत्‍येक वर्ष की भंति इस वर्ष भी धान की भरपूर पैदावार हई थी प्रजा के धरों के साथ ही राजखजाने छलक रहे थे । प्रजा को धन की लालसा नहीं थी, उनके लिए तो यह आनंदोत्‍सव था ।

राजा कल्‍याणसाय ने प्रजा के इस प्रेम को देखकर सभी 36 गढपतियों को परमान जारी किया कि आगामी वर्षों से पौष शुक्‍लपूर्णिमा के दिन, अपने राजा के घर वापसी को अक्षुण बनाए रखने के लिए संपूर्ण कोशल में त्‍यौहार के रूप में मनाया जायेगा ।

कालांतर में यही उत्‍सव छत्‍तीसगढ में छेरछेरा पुन्‍नी के रूप में मनाया जाने लगा एवं नजराना लुटाये जाने की परंपरा के प्रतीक स्‍वरूप घर के द्वार पर आये नाचते गाते समूह को धान का दान स्‍वेच्‍छा से दिया जाने लगा । समय के साथ ही इस परम्‍परा को बडों के बाद छोटे बच्‍चों नें सम्‍हाला ।

पौष शुक्‍ल पूर्णिमा के दिन धान की मिसाई से निवृत छत्‍तीसगढ के गांवों में बच्‍चों की टोली घर घर जाती है और -

छेर छेरा ! माई कोठी के धान ला हेर हेरा !

का संयुक्‍त स्‍वर में आवाज लगाती है, प्रत्‍येक घर से धान का दान दिया जाता है जिसे इकत्रित कर ये बच्‍चे गांव के सार्वजनिक स्‍थल पर इस धान को कूट-पीस कर छत्‍तीसगढ का प्रिय व्‍यंजन दुधफरा व फरा बनाते हैं और मिल जुल कर खाते हैं एवं नाचते गाते हैं –

चाउंर के फरा बनायेंव, थारी म गुडी गुडी
धनी मोर पुन्‍नी म, फरा नाचे डुआ डुआ
तीर तीर मोटियारी, माझा म डुरी डुरी
चाउंर के फरा बनायेंव, थारी म गुडी गुडी !
000 000 000
तारा रे तारा लोहार घर तारा …….
लउहा लउहा बिदा करव, जाबो अपन पारा !
छेर छेरा ! छेर छेरा !
माई कोठी के धान ला हेर हेरा !

(कुछ इतिहासकार जहांगीर के स्‍थान पर अकबर का उल्‍लेख करते हैं)

संजीव तिवारी




राम बाबू तुमन सुरता करथौ रे मोला : डॉ. पदुमलाल पन्‍नालाल बख्‍शी


छत्‍तीसगढ के छोटे से कस्‍बे खैरागढ के रामबगस होटल और ददुआ पान ठेले में बैठे खडे बीडी का कश लेते तो कभी मुस्‍का नदी के तट पर शांत बैठे हुए एक सामान्‍य से दिखने वाले व्‍यक्ति की प्रतिभा का अनुमान लगाना मुश्किल था । उसके मानस में पल्वित विचारों का डंका तब भारत के हिन्‍दी साहित्‍य प्रेमी जन मन में व्‍यापक स्‍थान पा चुका था । यह व्‍यक्ति भारत के सर्वमान्‍य व प्रतिष्ठित साहित्‍यक पत्रिका ‘सरस्‍वती’ के संपादक पदुमलाल पन्‍नालाल बख्‍शी थे ।




तब ‘सरस्‍वती’ हिन्‍दी की एक मात्र ऐसी पत्रिका थी जो हिन्‍दी साहित्‍य की आमुख पत्रिका थी । आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के संपादन में प्रारंभ इस पत्रिका के संबंध में सभी विज्ञ पाठक जानते हैं । सन् 1920 में द्विवेदी जी ने पदुमलाल पन्‍नालाल बख्‍शी की संपादन क्षमता को नया आयाम देते हुए इन्‍हें ‘सरस्‍वती’ का सहा. संपादक नियुक्‍त किया । फिर 1921 में वे ‘सरस्‍वती’ के प्रधान संपादक बने यही वो समय था जब विषम परिस्थितियों में भी उन्‍होंनें हिन्‍दी के स्‍तरीय साहित्‍य को संकलित कर ‘सरस्‍वती’ का प्रकाशन प्रारंभ रखा ।

छत्‍तीसगढ के जिला राजनांदगांव के एक छोटे से कस्‍बे में 27 मई 1894 में जन्‍में पदुमलाल पन्‍नालाल बख्‍शी की प्राथमिक शिक्षा म.प्र. के प्रथम मुख्‍यमंत्री पं. रविशंकर शुक्‍ल जैसे मनीषी गुरूओं के सानिध्‍य में विक्‍टोरिया हाई स्‍कूल, खैरागढ में हुई थी ।

प्रारंभ से ही प्रखर पदुमलाल पन्‍नालाल बख्‍शी की प्रतिभा को खैरागढ के ही इतिहासकार लाल प्रद्युम्‍न सिंह जी ने समझा एवं बख्‍शी जी को साहित्‍य श्रृजन के लिए प्रोत्‍साहित किया और यहीं से साहित्‍य की अविरल धारा बह निकली ।

प्रतिभावान बख्‍शी जी ने बनारस हिन्‍दु कॉलेज से बी.ए. किया और एल.एल.बी. करने लगे किन्‍तु वे साहित्‍य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता एवं समयाभाव के कारण एल.एल.बी. पूरा नहीं कर पाये, इस बीच में उनका विवाह मंडला निवासी एक सुपरिटेंडेंट की पुत्री से हो चुका था एवं पारिवारिक दायित्‍व बख्‍शी जी के साथ था । अत: बख्‍शी जी वापस छत्‍तीसगढ आकर सन् 1917 में राजनांदगांव के स्‍कूल में संस्‍कृत के शिक्षक नियुक्‍त हो गए ।

उनकी ‘प्‍लैट’ नामक अंग्रेजी कहानी की छाया अनुदित कहानी ‘तारिणी’ के जबलपुर के ‘हितकारिणी’ पत्रिका में प्रकाशन से तत्‍कालीन हिन्‍दी जगत इनकी लेखन क्षमता से अभिभूत हो गया था । विभिन्‍न पत्र-पत्रिकाओं में बख्‍शी जी की रचनायें प्रकाशित होने लगी थी जिनमें 1913 में ‘सरस्‍वती’ में ‘सोना निकालने वाली चीटियां’ एवं 1917 में ‘सरस्‍वती’ में ही इनकी मौलिक कहानी ‘झलमला’ ने इनके हिन्‍दी साहित्‍य जगत में दमदार उपस्थिति को सिद्ध कर दिया ।

बख्‍शी जी खैरागढ के विक्‍टोरिया हाई स्‍कूल में अंग्रेजी के शिक्षक भी रहे एवं इन्‍होंने खैरागढ की राजकुमारी उषा देवी और शारदा देवी को शिक्षा में पारंगत भी किया ।

साधारण जीवन जीने वाले स्‍वभावत: एकाकी एवं अल्‍पभाषी बख्‍शीजी का तकिया कलाम था ‘राम बाबू’ , स्‍वाभिमान इनमें कूट कूट कर भरा था । इनके संबंध में डॉ. रमाकांत श्रीवास्‍तव अपने एक लेख में कहते हैं -

कभी किसी समारोह के लिए उनसे एक मानपत्र लिखने के लिए कहा गया । जाने क्‍या बात हुई कि तत्‍कालीन नायब साहब नें आकर उनसे कहा कि उस मानपत्र को संशोधन के लिए रायपुर किसी के पास भेजा जायेगा । बख्‍शी जी नें उस मानपत्र को तुरंत फाड दिया – मेरा लिखा हुआ कोई दूसरा संशोधित करेगा, एसी से लिखा लो । विजयलाल जी बतलाते हैं कि उन्‍हें इतने गुस्‍से में कभी नहीं देखा था । मुझे लगता है कि उनका गुस्‍सा उचित ही था । ‘सरस्‍वती’ के संपादक के रूप में जिसने हिन्‍दी के कितने ही लेखकों की भाषा का परिष्‍कार किया, उस व्‍यक्ति की ऐसी प्रतिक्रिया स्‍वाभावित ही थी । यह तो एक लेखक के स्‍वाभिमान पर प्रश्‍न था ।




पिछले कुछ दिनों से उन्‍हें व उनके संबंध में पढते हुए मुझे लगा बख्‍शीजी मुझे कह रहे हों 'राम बाबू तुमन सुरता करथौ रे मोला !'

आज उनकी पुण्‍यतिथि है बख्‍शी जी को समस्‍त हिन्‍दी जगत 'सुरता' कर रहा है ।

संजीव तिवारी





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बख्‍शी जी के संबंध में उपलव्‍ध पत्र-पत्रिकाओं व पुस्‍तकों मित्रों से फोन के द्वारा जब हमने यह लिख डाला तब इंटरनेट में इस संबंध में सर्च किया तो ढेरों लिंक मिले, जहां इनकी कृतियों का भी उल्‍लेख है । आप भी देखें :-

स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित छत्तीसगढ़ का प्रथम आँचलिक उपन्यास 'धान के देश में' के लिये श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी नें भूमिका भी लिखा ।

कविता कोश में डॉ. पदुमलाल पन्‍नालाल बख्‍शी के जीवन परिचय में विस्‍तार से लिखा है । उनकी कविता क्रमश: मातृ मूर्ति , एक घनाक्षरी और दो चार भी कविता कोश में उपलब्‍ध हैं ।

कथा यात्रा में आदरणीय रमेश नैयर जी कहते हैं

छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ के कथाकारों को हिंदी साहित्य जगत् में विशेष प्रतिनिधित्व श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी द्वारा किए गए ‘सरस्वती’ के संपादन काल में मिला। राजनांदगाँव के श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी स्वयं भी अच्छे कहानीकार थे। उन्होंने सन् 1911 से कहानियाँ लिखना शुरू किया था। बख्शीजी को प्रेमचंद युग का महत्त्वपूर्ण कथाकार माना गया है। बातचीत के अंदाज में कहानी कह जाने की विशिष्ट शैली बख्शीजी ने विकसित की थी। बख्शीजी की मान्यता थी कि छत्तीसगढ़ की समवन्यवादी और परोपकारी संस्कृति की छाप यहाँ के कथाकारों के लेखन पर गहराई से पड़ी। छत्तीसगढ़ के प्रतिनिधि कथाकारों के एक संकलन का संपादन करते हुए बख्शीजी ने लिखा था, ‘छत्तीसगढ़ की अपनी संस्कृति है जो उसके जनजीवन में लक्षित होती है। छत्तीसगढ़ियों के जीवन में विश्वास की दृढ़ता, स्नेह की विशुद्धि सहिष्णुता और निश्छल व्यवहार की महत्ता है। ये स्वयं धोखा खाकर भी दूसरों को धोखा नहीं देते हैं। गंगाजल, महापरसाद और तुलसीदास के द्वारा भिन्न-भिन्न जातियों के लोगों में भी जो एक बंधुत्व स्थापित होता है, उसमें स्थायित्व रहता है। जाति-भेद रहने पर भी सभी लोगों में एक पारिवारिक भावना उत्पन्न हो जाती है।’
यहां झलमला भी देखें

मनु शर्मा अपनी कृति उस पार का सूरज में कहते हैं

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी किसी घटना, किसी एक रोचक प्रसंग या किसी एक बात से निबंधों की शुरुआत करते हैं। नाटकीयता और कथात्मकता इनके निबंधों को रोचक बनाती है। सहजता इनकी एक अन्य विशेषता है। सियाराम शरण गुप्त ने भी अपने अपने निबंधों में छोटी-छोटी बातों को कहीं संस्मरण और कहीं व्यंग्य के माध्यम से कहा है। यह व्यक्ति-चेतना है। हिंदी में व्यक्ति-व्यंजक निबंध लिखनेवालों की ये दो परंपराएँ हैं। इन्हें व्यक्ति-व्यंजक और ललित कहकर अलग करना उचित नहीं है। ये दोनों एक ही हैं। फिर भी अंग्रेजी के व्यक्ति-व्यंजक निबंधों से हिंदी के व्यक्ति-व्यंजक निबंधों की पहचान अलग है। अंग्रेजी के निबंधकारों की तरह अपने घर-परिवार, इष्ट-मित्र, पसंद-नापसंद का विवरण हिंदी के निबंधकार नहीं देते हैं। वे चुटकी लेते हैं, व्यंग्य करते हैं, किसी विश्वस्त और निकट व्यक्ति की तरह बात करते हैं।

(इंटरनेट के उद्धरण भारतीय साहित्‍य संग्रह एवं अन्‍य साईटों से लिए गये हैं)




संजीव तिवारी

शब्द नहीं ध्वनि हो तुम : अशोक सिंघई

आदरणीय अशोक सिंघई के सुन रही हो ना कविता संग्रह की पहली कविता -

शब्द नहीं
ध्वनि हो तुम मेरी कविता की
एक अनुगूँज
झंकृत करती उस कारा को
बंदी है जिसमें आत्मा मेरी

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रक्ताक्त हैं अँगुलियाँ खटखटाते द्वार अहर्निश
नहीं होते दर्शन
मैं चिर प्रतीक्षित
व्याकुलता हो गई तिरोहित
न कोई तृष्णा / न मरीचिका
न दौड़ता है मन
अंतरिक्ष के आर-पार
लगाती रहो टेर पर टेर
खुलेंगे एक दिन
इस पिंजर के द्वार
भला जी कर के भी
कौन सका है जी

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अन्तराल में
निहारता रहता हूँ छवि
मन है अतिशय उदार
दिखला देता है ध्वनि विरल को
एक नहीं / कई क्षण / कई बार
मत छुओ मन को
हो जाओ मन के पार
नहीं शेष कोई आग्रह
नहीं उठती हिलकोरे ले चाह
कभी नहीं ढूँढी मैंने
कभी नहीं देखी तेरी राह
भला कौन कर सका
आँखें न हों गीली

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मुटि्ठयों में कैसे हो बंद
शून्य का आलिंगन
अस्पर्श / अब नहीं बढ़ाता संताप
मौन / केवल मौन
अखण्ड चराचर में
निष्कम्प ज्योति सा यह सम्बन्ध
नहीं किसी ने अब तक परिभाषा दी

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शब्द नहीं
ध्वनि हो तुम मेरी कविता की

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अशोक सिंघई

रवि रतलामी का छत्‍तीसगढी आपरेटिंग सिस्‍टम : संभावनायें










रवि रतलामी जी के महत्‍वपूर्ण प्रयोग छत्‍तीसगढी आपरेटिंग सिस्‍टम के संबंध में भास्‍कर में प्रकाशित इस समाचार एवं इसके बाद संजीत त्रिपाठी जी के ब्‍लाग आवारा बंजारा में इसके प्रकाशन के बाद से छत्‍तीसगढ के भाषा पर लगाव रखने वाले, गांव व कस्‍बाई विद्यार्थियों एवं कम्‍प्‍यूटर प्रयोक्‍ताओं में एक खुशी की लहर दौड गई है ।
कुछ समय पूर्व यह समाचार के रूप में हरिभूमि में भी प्रकाशित हुआ था जिसके बाद से जयप्रकाश मानस जी नें इसे अपने ब्‍लाग पर विस्‍तृत आलेख के रूप में छत्‍तीसगढी में बोलेगा कम्‍प्‍यूटर के नाम से प्रकाशित किया था ।
यद्यपि उस समय छत्‍तीसगढी को राज्य‍भाषा का दर्जा नहीं मिला था किन्‍तु अभी परिस्थितिया अनुकूल हैं । उस लेख में मानस जी नें राजनैतिक इच्‍छाशक्ति के संबंध में लिख था जो इस कार्य के लिए सौ फीसदी सही बैठता है । रवि जी का यह भगीरथ प्रयास, संस्‍कृति मंत्री एवं मुख्‍य मंत्री की इच्‍छाशक्ति के द्वारा ही पूर्ण होगा । क्‍योंकि वित्‍तीय सहायता यदि शासन के द्वारा कर भी दिया जाता है तो इसे जन जन तक ले जाने एवं उसे लोकप्रिय बनाने में भी शासन का अहम योगदान रहेगा ।
छत्‍तीसगढ नें कम्‍प्‍यूटर शिक्षा एवं सरकारी कामकाजों में कम्‍प्‍यूटरीकरण के आधुनिक प्रयोगों को प्रारंभ से ही अंगीकार किया है जिसके कारण ही राजस्‍व अभिलेखों, न्‍यायालयीन प्रक्रियाओं, धांन खरीदी आदि का जनसुलभ किया जाना संभव हो पाया है । विडियो कांफ्रेसिंग के जरिये त्‍वरित समस्‍या निदान एवं आंखों के सम्‍मुख दोषी अधिकारियों को डांट खाते देख कर सूचना क्रांति के इस चमत्‍कार से ग्रामीण जन प्रसन्‍न हैं ।
कुछ वर्ष पूर्व मुझे आईटीसी द्वारा छत्‍तीसगढ में कियोक्‍स खोलने हेतु प्रस्‍ताव प्राप्‍त हुआ था तब मैं इसे कपोल कल्‍पना कह कर इस पर ध्‍यान नहीं दिया था आज छत्‍तीसगढ में इसी ग्रामीण सूचना केन्‍द्र का विकास होने वाला हैं सभी ग्रामपंचायतों में इंटरनेट से युक्‍त कम्‍प्‍यूटर अगले एक साल में लग जायेंगे पर सरकार यदि इसे घोषणा मान कर पूरा करने में आमादा है तो यह व्‍यर्थ है क्‍योंकि गांवों में स्‍थापित किये जाने वाले इन कम्‍प्‍यूटरों में अंग्रेजी आपरेटिंग सिस्‍टम लगे होने के कारण मुश्किल से दस प्रतिशत ही सहीं सलामत चल पायेंगें ।
पर यदि रवि रतलामी जी का छत्‍तीसगढी आपरेटिंग सिस्‍टम को लोड कर के यदि इन कम्‍प्‍यूटरों को गांवों में भेजा जायेगा तो जन भाषा व जन सुलभता के कारण सौ प्रतिशत संभावना है कि ये सूचना केन्‍द्र ग्रामीण जन के काम आयेगें और सरकारी तंत्र को भी सूचनाओं का आदान प्रदान त्‍वरित हो पायेगा ।
छत्‍तीसगढ शासन नें आप्रवासी सम्‍मान वेंकटेश शुक्‍ला जी को प्रदान किया है वे सिलिकान वैली से हैं एवं कम्‍प्‍यूटर के क्षेत्र में ही कार्य कर रहे हैं उनका छत्‍तीसगढ में बैंगलोर जैसे साफटवेयर उद्योग लाने का प्रयास है एवं सूत्र बताते हैं कि मुख्‍य मंत्री से इस संबंध में गंभीर वार्तालाभ हो चुका है । यह बात भविष्‍य के लिए सुखद है कि छत्‍तीसगढ के सत्‍ताशीन राजनीतिज्ञों के मन में तकनीकि के विकास के लिए सोंच अभी विद्यमान है । यही सार्थक सोंच छत्‍तीसगढी आपरेटिंग सिस्‍टम के स्‍वप्‍न को पूरा अवश्‍य करेगा ।

घर पर ब्‍लाग मित्र का फोन और गांव की कुंठा

उस रात लगभग 11 बजे मेरे एक मित्र का फोन मेरे मोबाईल सेट पर घनघना उठा । मैं अपने मोबाईल को बैठक के टेबल में रखकर दूसरे कमरे में हिन्‍दी ब्‍लागों को पढने में मगन था । मोबाईल का वाईब्रेशन पुन: सक्रिय हो गया, इस समय मेरे पुत्र का ध्‍यान उस ओर गया, स्‍वाभविक रूप से उसने मोबाईल उठा कर देखा और फोन कर रहे मित्र का नाम बताते हुए वहीं से आवाज दिया ' फलां का फोन है ' मोबाईल वाईब्रेट होता रहा । मन तो कह रहा था लपक लूं मोबाईल और बात करूं, आखिर मित्र का फोन था । पर किसी पूर्वनिर्धारित साफ्टवेयर आदेश की तरह मेरे शरीर के हार्डवेयर नें उसे पालन करते हुए मोबाईल नहीं उठाया और वाईब्रेटर हार थक के बंद हो गया ।

सुबह मैं अपने कार्यालय पहुंचकर उस मित्र को फोन किया, उसे किसी लेख के संबंध में कुछ आवश्‍यक सहयोग चाहिए था । उसके अनमनेपन को मैं भांप गया, मैंनें झेंपते हुए अपना पक्ष रखा, उसने भावुक होकर कुछ सुझाव दिये ।

चिंतन की शुरूआत इसके बाद ही हुई । मैं 80 व 90 के दसकों में हिन्‍दी लेखन से कुछ कुछ जुडा हुआ था । 1995 तक स्‍थानीय पत्र-पत्रिकाओं में यदा कदा मेरी रचनायें प्रकाशित होती रही है । 1995 में मेरे विवाह के बाद मैंने अपने कलम को विराम दे दिया था ।

इससे संबंधित मेरे द्वारा पूछे गये प्रश्‍न के उत्‍तर में मेरी पत्‍नी ने बताया था कि उसे कविता, कहानी व लेख लिखने वाले कतई पसंद नहीं हैं इसका कारण यह है कि ये लोग हकीकत की धरातल में रह कर नहीं लिखते काल्‍पनिक भावनाओं में डूबते उतराते रहते हैं और ना ही इससे पेट भरता है और ना ही घर चलता है । उसके दूसरे दलील में दम था अत: हमने ज्ञानदत्‍त जी के परसुराम वाले पोस्‍ट की तरह समझौता कर लिया था एवं लेखन को बंद कर दिये थे क्‍योंकि तब हमारे उपर परिवार की शुरूआती आर्थिक जिम्‍मेदारी थी एवं वेतन न्‍यूनतम था, तो हमने अपना कलम अपने संस्‍था के व्‍यावसायिक साख को बढाने में ही लगाया और सेवा कार्य में अपना संपूर्ण समय तन्‍मयता से लगाया ।

पिछले वर्षों से हमारे कानूनी दांव पेंचों एवं बहसों के सहारे पत्‍नी महोदया नें ब्‍लाग लिखने की टेंम्‍परेरी आर्डर पास कर दिया था, सो हम आप लोगों को छत्‍तीसगढ से परिचित कराने में लगे थे । पर आज भी उसके मन में लेखन से जुडे व्‍यक्तियों के प्रति आदर के भाव को मैं स्‍थापित नहीं कर पाया हूं, उसे प्रत्‍येक लेखन धर्मी से कोई विशेष श्रद्धा नहीं है । यही वह कारण है कि वह किसी ब्‍लाग लेखन के क्षेत्र से जुडे व्‍यक्ति के साथ लम्‍बी वार्ता मुझे करते देखने पर विचलित हो जाती है । मैं परिवार में विचलित मानसिकता को पसंद नहीं करता ।

मित्र के सुझावों पर अमल करते हुए मैंने पत्‍नी को समझाया पर उसनें साफ शब्‍दों में कहा कि 'यह सब व्‍यावसायिक क्रियाकलाप है, लेखन यद्धपि स्‍वांत: सुखय कर रहे हों पर भविष्‍य में इससे किसी न किसी प्रकार से लाभ लेने की लालसा सभी के मन में है अत: व्‍यावसायिक बातें कार्यालयीन समय में ही हो, घर तक उसे ना लायें । व्‍यावसायिक मित्रता व शुभकामनायें, घर में शुभकामना संदेश पत्रों तक ही सीमित रखना मुझे पसंद है ।'

संबंधों में निरंतरता स्‍वमेव ही आदर या स्‍नेह के भाव को जगा देती है, जो मानव मन की सहज प्रवृत्ति है । श्रद्धा व प्रेम को दबावपूर्ण रूप से किसी के हृदय में उतारा नहीं जा सकता । जिस तरह से दस वर्षों के बाद मैनें अपनी पत्‍नी के मन में अपने लेखन प्रवृत्ति को स्‍वीकृत करवाया है वैसे ही मित्रों के लिए उसके मन में श्रद्धा को स्‍थापित होने में कुछ तो वक्‍त लगेगा ।

प्रारंभिक रहन सहन की अवस्‍थाओं का मनुष्‍य के मन में गहरा प्रभाव होता है, मेरी पत्‍नी छत्‍तीसगढ के एक बडे आबादी वाले भरे पूरे गांव से आई है । साल के 365 दिनों में से 300 दिन घर आये मेहमानों की खातिरदारी करने एवं बाकी के बचे 65 दिनो में हम पारिवारिक विवादों के तू तू मैं मैं में गुजार देते हैं । ऐसे में हिन्‍दी लेखन एवं आधुनिक परंपराओं से परिचित होने के लिए उसके पास समय ही नहीं रहता । हां उसे पता रहता है कि फलां तारीख को फलां की पेशी है एवं फलां तारीख को फलां की बेटी की सगाई है और फलां फलां आने वाले हैं उनके लिए ये ये सामान लाना है, खाना बनाना है खिलाना है बस । और फलां के साथ शहर का लुफ्त उठाने के लिए मेहमानों की टीम मेरे घर एवं मेरी पत्‍नी के सेवा का आनंद उठाते हुए दो चार दिन ज्‍यादा सेवा का अवसर देकर हमें कृतार्थ करते रहते हैं, मेरी पत्‍नी कभी मायके तो कभी श्‍वसुराल से आये मेहमानों की सेवा करते हुए सुबह उठ कर ठाकुर जी के सामने अगरबत्‍ती जलाते हुए गाती है

ठाकुर इतना दीजिये जामें कुटुम्‍ब समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूं साधु ना भूखा जाए ।।

तो इन साधुओं की भूख नें हमारी आर्थिक स्थिति के साथ ही पारिवारिक स्थिति को भी छिन्‍न भिन्‍न कर दिया है, गांव की महिलायें मेरे घर के मिठाईयों का स्‍वाद चखते हुए मेरी पत्‍नी को साहित्‍य पढने एवं आधुनिकताओं के दौड में बढने से रोकती हैं अत: हमारे ज्ञान बखान पर गोबर थोपा जाता है । हमारे विदेशी मेहमान गांव के दीवालों पर कंडा बनाने के लिए चिपकाये गये (थापे गए) गाय के गोबर को जिस प्रकार कूतूहल से देखते हैं कि गाय नें दीवाल में चढ कर कैसे गोबर किया होगा । वैसे ही कूतूहल बना रहता है कि मास्‍टर डिग्री तक पढी मेरी पत्‍नी क्‍या इतनी गैरआधुनिक हो सकती है कि मित्र से फोन पर हिन्‍दी लेखन के संबंध में लम्‍बे वार्तालाभ को सहज रूप से न स्‍वीकार कर पाये, पर यह सत्‍य है । यह आवश्‍यक नहीं है कि जिसके प्रति मेरे हृदय में सम्‍मान, प्रेम-स्‍नेह हो उसके प्रति किसी दूसरे के हृदय में भी वही भाव हो जो मेरे में है, यह एक नितांत निजी अनूभूति है ।

शिक्षा पर भारी पडती है पारिवारिक व सामाजिक परिस्थितियां । मेरी एक युवा भाभी ( अभी कुछ माह पूर्व ही उनका आकस्मिक निधन हो गया) भोपाल के एक कालेज में रसायन शास्‍त्र की विभागाध्‍यक्ष थी, भाई साहब राष्‍ट्रीयकृत बैंक के जोनल मैनेजर । नौकरी के पूर्व ही भाभी जी नें पी.एच.डी. कर लिया था तब छत्‍तीसगढ, मध्‍य प्रदेश से अलग नहीं हुआ था और राजधानी भोपाल ही थी । रिश्‍तेदारों का काम से भोपाल आना जाना होता था और मेरा नेता जी की सेवा में विधायक विश्राम गृह में बसेरा होता था । रिश्‍तेदारों के आने पर भाभी जी से मिलने जब भी कालेज जाता था तो भाभी जी कालेज परिसर में जहां भी मिलती थी, कृषकाय बुजुर्ग रिश्‍तेदार के धूलधूसरित पैरों को, सिर में पल्‍लू ढांक कर, पारंपरिक रूप से झुककर चरण स्‍पर्श करती थी । उनका यह सहज व्‍यवहार जहां एक ओर कालेज में विद्यार्थियों के हंसी ठिठोली का कारण बनता था वहीं दूसरी ओर मेरे मन में उनके प्रति श्रद्धा के भाव अंतस तक उमड पडते थे । तो यह भाव है उसके संसकार के जो शिक्षा एवं पद के बावजूद उसमें सहज रूप से विद्यमान थे ।

मुझे उनका सलवार या गाउन पहनने के लिए भाई साहब के प्रोत्‍साहन के बावजूद 'घर में बडे बुजुर्ग आते रहते हैं' की बात कहकर गाउन पहनने को जीवन भर टालते रहने की बात भी याद हो आती है जबकि आज महिलाओं के लिए यह आम बात है । यही वो प्रवृत्ति है जिसे आधुनिक समाज असहज भले कहता हो पर ग्रामीण नारी के मन से अंदर तक पैठे इन भावों को निकाल फेंकना सहज नहीं है । जिस प्रकार से रूढियों के प्रतिकूल आधुनिक अच्‍छे परंपराओं नें नारी शिक्षा को आत्‍मसाध करना सिखाया है वैसे ही अन्‍य परंपराओं की पैठ शैन: शैन: समाज में होगी । इसमें कुछ वक्‍त तो जरूर लगेगा और तब तक मेरा मोबाईल घर में बजता रहेगा ।

डॉ.परदेशीराम वर्मा की पत्रिका 'अगासदिया-27' का संपूर्ण नेट संस्‍करण



- विशेष सामग्री -

छत्तीसगढ़ की बेटी भगवान श्री राम की माता कौशल्या के मंदिर से गौरवान्वित

सौ तालाबों का गांव चंदखुरी और सांसद श्री रमेश बैस

धरसींवा विधानसभा क्षेत्र का यशस्वी गांव पथरी और जागृत विधायक श्री देवजी भाई पटेल


सहयोग राशि : सौ रुपये मात्र

मुद्रक : यूनिक, पंचमुखी हनुमान मंदिर के पीछे, मठपारा, दुर्ग (छ.ग.) ०७८८-२३२८६०५


मुख-पृष्ठ सज्जा सौजन्य - नेलशन कला गृह, सेक्टर-१, भिलाई

नेट ब्‍लाग वेब प्रकाशन : संजीव तिवारी
अनुक्रमणिका :-

१.
संपादकीय
२. संत पवन दीवान और जीवन संदेश
३. श्री रमेश बैस
४. श्री देवजी भाई पटेल
५. संत कवि पवन दीवान की पांच छत्तीसगढ़ी कविताएं
अ. राख
ब. जिवलेवा जाड़
स. सांझ
द. महानदी
ड. तोर धरती
५. दीवान जी के प्रवचन की क्षेपक कथाएं
अ. जनप्रिय संत पवन दीवान और प्रवचन की क्षेपक कथाएं
(माता पार्वती ने जलाई लंका)
ब. संत पवन दीवान के प्रवचन की रोचक कथाएं
६. संत कवि पवन दीवान का गद्य -
अ. भाषा की जीत सुनिश्चित है छत्तीसगढ़ी से बना छत्तीसगढ़ राज्य
- पवन दीवान
ब. मोरारजी, चरन, मधु, जार्ज साक्षात्कार : सुधीर सक्सेना
स. मेरे प्रिय लेखक डॉ. परदेशीराम वर्मा
द. छत्तीसगढ़ी संस्कृति का जन-जन तक प्रसार जरुरी-पवन दीवान
ड. हम घर में भटके हैं, कैसे ठौर ठिकाने पायेंगे।
७. संत की दो हिन्दी कविताएं -
अ. शोषण की रोशनी
ब. जब तक हम जलते हैं
८. छत्तीसगढ़ की पहचान - संत कवि पवन दीवान
९. माता राजिम, सबरी, बिलासा और उनकी छत्तीसगढ़ी भाषा
१०. १२ अगस्त को हरि ठाकुर सम्मान २००७ से विभूषित होने के अवसर पर विशेष
११. याद - ए - दीवान
१२. महात्मा गांधी - जमुना प्रसाद कसार
१३. समीक्षा :-
अ. आवा मेरी दृष्टि में - दानेश्वर शर्मा
ब. छत्तीसगढ़ी अस्मिता - आशुतोष
स. औरत खेत नहीं - रवि श्रीवास्तव
१४. आयोजन :-
अ. डॉ. परदेशीराम वर्मा की षष्ठिपूर्ती संपन्न
ब. लिमतरा के सियान श्री तेजराम मढ़रिया को सम्मान
स. डॉ. खूबचंद बघेल अगासदिया सम्मान ०७ श्री कोदूराम वर्मा को प्रदत्त
१५. राजिम के देवालय (संत पवन दीवान की साधना स्थली)
१६. देश के नक्शे पर उभरता एक नया कुंभ स्थल राजिम
१७. संत कवि पवन दीवान को अत्यंत प्रिय नेलसन कलागृह में संत समागम
१८. अगासदिया यात्रा एवं उपलब्धि
१९. पत्र एक

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...