पिछले दिनों हमने यहॉं छत्तीसगढ़ के चर्चित साहित्यकार श्री विनोद साव जी का एक आलेख प्रकाशित किया था, जब श्रीलाल शुक्ल जी एवं अमरकांत जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार देने की घोषणा हुई थी। उपन्यासकार, व्यंग्यकार व कथाकार श्री विनोद साव जी के श्रीलाल शुक्ल जी से अंतरंग संबंध रहे हैं, उन्होंनें श्रीलाल जी से अपनी पहली मुलाकात और पहला पड़ाव से संबंधित कुछ जानकारी उस आलेख में लिखा था। आज श्रीलाल शुक्ल जी के निधन के समाचार प्राप्त होने पर मन द्रवित हो गया, विगत दिनों श्री विनोद साव जी नें हमें श्रीलाल शुक्ल जी के घर में खींची गई तीन तस्वीर भी भेजी थी किन्तु हम उन्हें प्रकाशित नहीं कर पाए थे, आज हम श्रीलाल शुक्ल जी को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कृतज्ञ छत्तीसगढ़ की ओर से तीनों चित्र एवं श्री विनोद साव जी के आलेख का वह अंश पुन: प्रकाशित कर रहे हैं-
यह वर्ष 1994 की बात है जब लखनऊ में ‘रागदरबारी’ जैसे कालयजी उपन्यास के लेखक श्रीलाल शुक्ल जी से भेंट हुई। मुझे उन्हीं के हाथों लखनऊ में व्यंग्य के लिए दिया जाने वाला अट्टहास सम्मान भी प्राप्त हुआ था। आयोजन के बाद मैंने उनसे कहा था ‘मैं आपसे मिलने आना चाहता हूं। '
‘जरुर..’ फिर उन्होंने अपने घर आने का नक्शा बताया। तब उनसे साढ़े तीन घण्टों तक बातचीत का लम्बा सिलसिला चला था जिसे जारी रखने के लिए कॉफी के दौर चलते रहे।
पहला पड़ाव और छत्तीसगढ़ः
श्रीलाल शुक्ल का एक उपन्यास है ‘पहला पड़ाव’। इस उपन्यास में छत्तीसगढ़ से उत्तरप्रदेश कमाने खाने आए मजदूरों की कथा केन्द्र में है। श्रीलाल शुक्ल कहते हैं कि ‘मैं इस उपन्यास का दूसरा भाग लिखना चाहता था... पर इसके लिए कुछ तैयारी करनी थी। छत्तीसगढ़ क्षेत्र का अध्ययन करना था। सैकड़ों वर्षों पहले वहॉं महात्मा घासीदास हुए थे जिन्होंने उस क्षेत्र के सम्पूर्ण वर्ग को संगठित करके उनके द्वारा जो अनेक पारम्परिक कार्य कराये जाते थे उनसे उन्हें विलग कराया। परिणाम स्वरुप वहॉं के भूमिघरों ने उन्हें अपने खेतों से निकाल दिया और वे काम की तलाश में उत्तरप्रदेश, दिल्ली, पंजाब तक फैले। तब भी गॉंव में उनकी जड़े बनीं रहीं। उसी पुराने आंदोलन के कारण इनमें आज भी शराब खोरी आदि की आदतें बहुत कम हैं। सचमुच विस्थापितों का यह अत्यंत आश्चर्य जनक समुदाय है। इस पर यदि कथा रचनी है जाहिर है कुछ बुनियादी तैयारियॉं करनी होंगी। अध्ययन, शोध की जरुरत होगी, जो मैं नहीं कर सका।’
छत्तीसगढ़ के सौंदर्य का चित्रणः
‘पहला पड़ाव’ की नायिका जसोदा है जो छत्तीसगढ़ से गई है, उसके आकर्षक व्यक्तित्व के कारण उपन्यास के अन्य पात्र उसे ‘मेमसाहब’ कहते हैं। इस नायिका की सुन्दरता का चित्रण श्रीलाल शुक्ल ने बड़े सौन्दर्य बोध के साथ किया है इस तरह ‘‘मेमसाहब का दिल ही मुलायम नहीं था उनमें और भी बहुत कुछ था। उनकी ऑंखें बड़ी बड़ी और बेझिझक थीं, भौंहें बिलकुल वैसी, जैसी फैशनेबुल लड़कियॉं बड़ी मेहनत से बाल प्लक करके और पेंसिल की मदद लेकर तैयार करती थीं। रंग गोरा, गाल देखने में चिकने - छूने में न जाने और कितने चिकने होंगे, कद औसत से उंचा, पीठ तनी हुई, और दॉंत जो मुझे ख़ास तौर से अच्छे लगते, उजले और सुडौल। उनके बाल कुछ भूरे थे। मेमसाहब की उपाधि उन्हें अच्छी बातचीत के हाकिमाना अंदाज से नहीं, गोरे चेहरे और इन लंबे-घने-भूरे बालों के कारण मिली थी।’
श्रीलाल शुक्ल जी एवं श्रीमती गिरिजा शुक्ल |
श्रीमती गिरिजा शुक्ल जी एवं श्री विनोद साव, यह चित्र श्री श्रीलाल शुक्ल जी नें खींची थी |
श्री श्रीलाल शुक्ल जी एवं श्री विनोद साव जी, यह चित्र श्रीमती गिरिजा शुक्ल जी नें खींची थी |
आलेख एवं चित्र :- विनोद साव, मुक्तनगर, दुर्ग, छत्तीसगढ़ 491001. मो. 9407984014.
श्रीलाल शुक्ल जी को अश्रुपूरित श्रद्धांजली सहित .....