शिवरीनारायण देवालय एवं परम्‍पराएं : प्रो. अश्विनी केशरवानी की संपूर्ण ग्रंथ



लेखक : प्रो. अश्विनी केशरवानी



प्रथम संस्‍करण : फरवरी 2007

मूल्‍य : 120 रूपये

प्रिंट प्रकाशक : बिलासा प्रकाशन, बिलासपुर


वेब ब्‍लाग प्रकाशन : संजीव तिवारी

अनुक्रमणिका

भूमिका

शिवरीनारायण : एक नजर

अ. देवालय
१. गुप्तधाम
शबरीनारायण और सहयोगी देवालय
अन्नपूर्णा मंदिर
महेश्‍वरनाथ
शबरी मंदिर
जनकपुर के हनुमान
खरौद के लखनेश्‍वर

ब. परम्पराएं

१. मोक्षदायी चित्रोत्पलागंगा
२. महानदी में अस्थि विसर्जन
३. महानदी के घाट
४. महानदी के हीरे
५. शिवरीनारायण की कहानी और उसी की जुबानी
६. मठ और महंत परंपरा
७. गादी चौरा पूजा
८. रोहिणी कुंड
९. मेला
१०. रथयात्रा
११. नाट्य परंपरा
१२. तांत्रिक परंपरा
१३. साहित्यिक तीर्थ
१४. शिवरीनारायण के भोगहा
१५. गुरू घासी बाबा
१६. रमरमिहा
१७. माखन वंशनुक्रम

बस्‍तर की देवी दंतेश्‍वरी

छत्‍तीसगढ के शक्तिपीठ – 1
बस्‍तर के राजा अन्‍नमदेव वारांगल, आंध्रप्रदेश से अपनी विजय पताका फहराते हुए बस्‍तर की ओर बढ रहे थे साथ में में मॉं दंतेश्‍वरी का आशिर्वाद था । गढों पर कब्‍जा करते हुए बढते अन्‍नमदेव को माता दंतेश्‍वरी नें वरदान दिया था जब तक तुम पीछे मुड कर नहीं देखोगे, मैं तुम्‍हारे साथ रहूंगी । राजा अन्‍नमदेव बढते रहे, माता के पैरों की नूपूर की ध्‍वनि पीछे से आती रही, राजा का उत्‍साह बढता रहा ।

शंखिनी-डंकिनी नदी के तट पर विजय पथ पर बढते राजा अन्‍नमदेव के कानों में नूपूर की ध्‍वनि आनी बंद हो गई । वारांगल से पूरे बस्‍तर में अपना राज्‍य स्‍थापित करने के समय तक महाप्रतापी राजा के कानों में गूंजती नूपूर ध्‍वनि के सहसा बंद हो जाने से राजा को वरदान की बात याद नही रही, राजा अन्‍नमदेव कौतूहलवश पीछे मुड कर देखने लगे ।

माता का पांव शंखिनी-डंकिनी के रेतों में किंचित फंस गया था । अन्‍नमदेव को माता नें साक्षात दर्शन दिये पर वह स्‍वप्‍न सा ही था । माता नों कहा 'अन्‍नमदेव तुमने पीछे मुड कर देखा है, अब मैं जाती हूं ।'

राजा अन्‍नमदेव के अनुनय विनय पर माता नें वहीं पर अपना अंश स्‍थापित किया और राजा नें वहीं अपने विजय यात्रा को विराम दिया ।

डंकिनी-शंखनी के तट पर परम दयालू माता सती के दंतपाल के गिरने के उक्‍त स्‍थान पर ही जागृत शक्तिपीठ, बस्‍तर के राजा अन्‍नमदेव की अधिष्‍ठात्री मॉं दंतेश्‍वरी का वास है ।

(कथा पारंपरिक किवदंतियों के अनुसार)

संजीव तिवारी

इस ब्‍लाग को फायरफाक्‍स से देखने में कोई समस्‍या आ रही हो तो कृपया अवगत करायें, ताकि मैं आवश्‍यक सुधार कर सकूं

अदालत में काले कोटों की बढती संख्‍या एवं घटती आमदनी

दो दिन पूर्व मैं जब अपने कार्यालय भिलाई जा रहा था तो रास्‍ते में देखा, जिला न्‍यायालय के एक परिचित वकील पैदल चलते हुए भिलाई से दुर्ग की ओर आ रहे थे, काला कोट उतार कर उन्‍होंनें अपने कंधे पर लटका रखा था । पैरों में जो जूते थे उसमें कई कई बार सिलाई किया गया था फिर भी वकील साहब की पैरों की एकाध उंगलियां जूते से बाहर झांकने को बेताब थी ।

मैं पिछले कई दिनों से उन्‍हें ऐसे ही रास्‍ते में देखता हूं, कभी अपनी खटखटिया लूना से तो कभी अपने शरीर को लहराते हुए पैदल चलते । रास्‍ते में और कई वकील भाई मिलते हैं जो अपनी सजीली चार चक्‍के और दो पहियों में न्‍यायालय की ओर जाते नजर आते हैं, पर जब भी मैं इस वकील को देखता हूँ मन में अजीब सी हूक जगती है । न्‍यायालय में इनसे मिल कर कई बार बात करने की कोशिस किया हूं पर व्‍यावसायिक प्रतिस्‍पर्धा की वजह से अपनी खस्‍ताहाली के संबंध में ये कभी चर्चा नहीं किये हैं किन्‍तु परिस्थितियां चीख चीख कर कहती है कि वकील साहब काले कोट के सहारे अपना अस्तित्‍व बचाये रखने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं । भारतीय न्‍यायालयों में ऐसे कई वकील हैं जो इस जद्दोजहद में प्रतिदिन सुबह 11 से शाम 5 बजे तक न्‍यायालय के गलियारों, आसपास के कैंटीनों, पान ठेलों में अपना जूता घिसते हैं ।

पूरे दस साल जिला न्‍यायालय में हाजिरी बजाने के बावजूद वकील साहब के पास दहेज में मिले लूना के रिपेयरिंग के लिये पैसा नहीं रहने पर आप क्‍या सोंचते हैं, यह निर्विवाद सत्‍य है उस वकील के पास सचमुच में पैसा नहीं है ना लूना बनवाने के लिए ना ही टैम्‍पू - टैक्‍सी - रिक्‍शा के लिए । पर पैसे मिलने की संभावना तो जिला न्‍यायालय स्थित बार रूम का वही सीट है, आना ही पडता है सो पैदल ही सहीं महोदय पैदल ही चल पडे हैं ।

शाम को मैं न्‍यायालय से पुन: अपने कार्यालय वापस जा रहा था वही वकील साहब शाम के धुधलके में पैदल भिलाई की ओर जाते हुए मिल गए । अब हमसे नहीं रहा गया, हमने अपनी गाडी रोकी और महोदय को आग्रह कर के बिठा लिए कि हम भी उधर ही जा रहे हैं, आपको छोड देंगें । न्‍यायालय से उनके घर का फासला लगभग आठ किलोमीटर होगा । इस बीच में हमने उनसे उनके पैदल चलने का महात्‍म पूछा । वकील साहब आत्‍मीयता पा अपनी व्‍यथा बताने लगे । बिसंभर प्रसाद मिश्रा, अधिवक्‍ता के पिता बलिया बीहार से भिलाई में स्‍टील प्‍लांट में नौकरी करने आये थे जहां उन्‍हें नौकरी मिली हिन्‍दुस्‍तान स्‍टील कंस्‍ट्रक्‍शन कम्‍पनी लिमिटेड (भिलाई स्‍पात संयंत्र की निर्माता कम्‍पनी) वहां शुरूआती दौर में खूब वेतन व सुविधायें मिली उसके बाद कंपनी की हालत खस्‍ता हाल हो गई, अब हालात यह है कि कई कई वर्षों से वेतन नहीं मिल रहा है सो पूरे घर की जिम्‍मेदारी मिश्रा वकील साहब की वकीली कमाई पर आ गई है । मिश्रा जी ठहरे सीधे सरल व सज्‍जन व्‍यक्ति केसेस उनके पास आते नहीं और आये हुए केसेस वापस छिन जाते हैं बडी संकट में हैं । हमने रास्‍ते में उनके हां में हां मिलाते हुए उन्‍हें उनके घर के पास ड्राप किया और अपने कार्यालय आ गये ।

बडी कोफ्त होती है कोर्ट में क्‍लाइंट से ज्‍यादा काले कोट वालों की भीड को देखकर । अपने आप को प्रोफेशनल कहलवाकर खुद अपना कंधा थपथपा खुश होते आशावादी युवाओं के समूह में से पूरे महीने में ऐसे कई वकील हैं जिन्‍हें व्‍यावसायिक दक्षता की कमी के कारण मुश्किल से दो चार सौ की आमदनी ही हो पाती है । कुछ वकीलों की यही मेहनत और तप उन्‍हें सफलता की ओर ले जाती है तो कुछ इसी दो तीन सौ रूपये महीने की कमाई में जिंन्‍दगी गुजार देते हैं ।

जब नर तितलियां ले जाए प्रणय उपहार : डॉ. पंकज अवधिया जी की कलम से

पंकज अवधिया जी (दर्द हिन्‍दुस्‍तानी) के लेख विभिन्‍न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होते रहते हैं जिससे पाठक एवं ब्‍लागजगत वाकिफ ही है अभी सांध्‍य दैनिक छत्‍तीसगढ में 22 नवम्‍बर को उपरोक्‍त लेख जब प्रकाशित हुआ था तो हम अपने आप को रोक नहीं पाये और इसे यहां आप लोगों के लिए प्रस्‍तुत कर दिया ।

आज चाँद बहुत उदास है


छटते ही नहीं बादल
किरणों को देते नहीं रास्ता
उमड़ घुमड़ कर
गरज बरस कर
सोख लेते ध्वनि सारी

बजती ही नहीं पायल
स्मृति का देती नहीं वास्ता
सिसक झिझक कर
कसक तड़फ कर
रोक लेती चीख सारी

दिल ही नहीं कायल
खुशबू ऐसी फैली वातायन में
निरख परख कर
बहक महक कर
टोक देती रीत सारी

दिखता ही नहीं काजल
चाँदनी ऐसी बिखरी उपवन में
घूम घूम कर
चूम चूम कर
रो लेती नींद सारी

तुम नहीं हो पास
आज चाँद बहुत उदास है

- अशोक सिंघई -

अशोक सिंघई : काहे रे नलिनी तू कुम्‍हलानी


अशोक सिंघई : डॉ. परदेशीराम वर्मा

जनवरी 2007 से राजभाषा प्रमुख, भिलाई स्‍पात संयंत्रसाहित्‍यकार एवं कवि अशोक सिंघई के संबंध में वरिष्‍ठ कहानीकार डॉ. परदेशीराम वर्मा नें अपने पुस्‍तक ‘काहे रे नलिनी तू कुम्‍हलानी’ में रोचक प्रसंगों का उल्‍लेख किया है आप भी पढे अशोक सिंघई जी का परिचय :-
काहे रे नलिनी तू कुम्‍हलानी छत्‍तीसगढ के ख्‍यातिलब्‍ध व्‍यक्तियों के संबंध में डॉ. परदेशीराम वर्मा जी द्वारा लिखित 'अपने लोग' श्रृंखला की किताब


एक

वरिष्‍ठ प्रबंधक, जन संपर्क के कार्यालय में विज्ञापन आदि के लिए पत्रकारगण मिलते ही हैं । कुछ बडे लोग फोन पर भी अपनी बात कहते हैं । एक दिन संयोगवश मेरी उपस्थिति में ही किसी बडे पत्रकार का फोन आया । बातचीत कुछ इस तरह होने लगी ।
पत्रकार : मैं अमुक पत्र से बोल रहा हूँ । सिंघई जी : कहिए । पत्रकार : मिला नहीं । सिंघई जी : देखिए, अब जो स्थिति है उसमें हमें निर्देशों के अनुरूप सीमा के भीतर ही रहकर अपने कर्तव्‍यों का निर्वाह करना है । इस्‍पात उद्योग की हालत तो आप भी बेहतर जानते हैं । पत्रकार : यह तो सामान्‍य जवाब है । सिंघई जी कुछ उखडते हुए : देखिए, अशोक सिंघई स्‍वयं सामान्‍य हैं इसीलिए सबको सामान्‍य जवाब ही देता है । मुझे क्षमा करें । मैं किसी को विशेष तो किसी को सामान्‍य ऐसा दोहरे स्‍तरों पर जवाब नहीं देता ।
पत्रकार : मैं उपर बात करूँगा ।
सिंघई जी : बडे शौक से । आप बडे, उपर वाले बडे । यही शोभा देता है । मुझे तो क्षमा ही करें ।

दो

बख्‍शी सृजन पीठ के अध्‍यक्ष श्री प्रमोद वर्मा से भिलाई के जिन साहित्‍यकारों की पटरी नहीं बैठी उनमें से एक मैं भी हूँ । लेकिन अशोक सिंघई डाक्‍टर वर्मा के अनन्‍य भक्‍त । प्रमोद जी के लिए कुछ भी करने को सदा तैयार । अशोक भाई प्राय: ऐसी भक्ति नहीं करते किसी किसी की । मुझे बडा अटपटा लगता । मैं अपने ही ढंग का नासमझ । इतने बडे व्‍यक्ति से निकटता नहीं बना सका । मुक्तिबोध के मित्र और भवभूति अलंकरण से सम्‍मानित वरिष्‍ठ साहित्‍यकार का आशीष लेना दीर्घायु होने के लिए जरूरी है, यह जानते हुए भी मैं अपने को सम्‍हालने में सफल न हो पाता ।

मुझे डगमगडैंया करते देख अशोक ने आदेशात्‍मक लहजे में कहा- देखो परदेशी भाई, तुम्‍हारी यही कमजोरी तुम्‍हें नुकसान पहूँचाती है । तुम मिलो, जाओ । भेंट करो । मैंने कहा : जिनसे मिलकर फिर-फिर मिलते रहने का उत्‍साह मुझे नहीं मिलता वहॉं में जबरदस्‍ती का कारोबार नहीं चलाता । अशोक सिंघई भांप गये कि अब सिर्फ ब्राम्‍हास्‍त्र ही अमोध सिद्ध होगा ।
उसने कहा : मुझे कुछ नहीं सुनना । भिलाई के साहित्यिक पर्यावरण के हित में तथा मेरे हित में हैं तुम भले आदमी की तरह सर से मिलो और संबंध बनाते चलो । बुजुर्ग लोग हैं । इस तरह तुनुकमिजाजी किस काम की । बच्‍चे की तरह बिदक जाते हो । मिलना पडेगा । और इस आदेश के बाद मैं न केवल मिला बल्कि साथ में कई कार्यक्रम भी कराने का असफल यत्‍न करने लगा ।

तीन

शैलजा और सागर की पहली किताब ‘मेरे लिए’ का विमोचन लिटररी क्‍लब के द्वारा आयोजित समारोह में होना तय हुआ । प्रसिद्ध निदेशक रामहृदय तिवारी बारबार आग्रह करने लगे कि चलकर लिटररी क्‍लब के अध्‍यक्ष श्री अशोक सिंघई के घर में एक बार उनसे मिल आये । मैं उन्‍हें शाम को ले जाना चाहता था मगर तिवारी जी सुबह मिलना चाहते थे । मैं बचना इसलिए चाहता था क्‍योंकि अशोक भाई का मूड सुबह सुबह खराब बहुत रहता है । तिवारी जी तथा महावीर अग्रवाल सहित मैं सुबह आठ बजे जा पहूंचा सिंघई जी के घर । वे उठकर सुबह की चाय ले रहे थे । हमें देखकर अरन-बरन बाहर आये और हमसे बिना कुछ बोले अपनी नई खरीदी कार को अपने बेटे के साथ साफ करने लगे । यह नापसंदगी जताने का उनका अपना तरीका जो है तिवारी जी कुछ देर धीरज दिखाते हुए बैठे रहे । फिर धीरे धीरे उनका धीरज छूटने लगा । वे चीरहरण से व्‍यथित द्रौपदी की तरह आर्तनाद करते हुए बोले- वर्माजी, अब चलें । बहुत हो गया । मैं सहज बना रहा । क्‍योंकि एक सुबह की हत्‍या के लिए वाजिब और तयशुदा दंड अशोक सिंघई दिये बगैर भला कहॉं मानते ।

चार

भाई रवि श्रीवास्‍तव की सुपुत्री अन्‍नू की निर्मम हत्‍या हो गई । हम सब स्‍तब्‍ध थे । शहर खामोश । लोगों की भीड रातदिन रवि भाई के यहां उन्‍हें सांत्‍वना देने के लिए उमडी पडती थी । अशोक भाई रात-रात जागकर सबको सम्‍हाले रहते । तीसरे दिन मैं दफतर में उनसे मिला । ऑंखे लाल । उदास उदास । गुस्‍सा और व्‍यथा का मिला-जुला भाव चेहरे पर आ जा रहा था ।बात चलाने की गरज से मैंने कहा, अशोक भाई पूरा शहर हमारे दुख में शरीक है । यह कम राहत की बात नहीं है ।
मैं शायद और कहता कि रूलाई के साथ अस्‍फुट शब्‍दों में मैं हत्‍प्रभ रह गया – परदेशी भाई यही तो हमारी कमाई है ।

यह भी अशोक सिंघई थे । सदैव कमान की तरह तनकर रहने वाले तेज तर्रार, संतुलित और विवेकी अशोक ।

पॉंच

पॉंच बरस पहले की बात है । भिलाई-तीन थाने के पास से गुजरती हुई सांसद की कार एक स्‍कूटर सवार नौजवान को देखकर खडी हो गई । दोनों मिले । अट्हास कर लेने के बाद सांसद ने नौजवान से कहा – मिलस नहीं । भुलागेस का । राजिम के मया ला । साहेग होगेस ।

नौजवान ने कहा- साहेब तो महाराज बहुत छोटी चीज है, आप तो दिल में बसते हैं । मगर हम जैसों के लिए आपके पास समय नहीं रहता इसलिए नहीं मिलता । आप तो संत से राजा हो गये । सांसद हतप्रभ । निरूत्‍तर । सांसद थे पवन दीवान और पटन्‍तर देने वाला युवक था अशोक सिंघई ।

छ:

ये कुछ अलग अलग प्रसंग है । इन प्रसंगों में एक व्‍यक्ति के कई रंग दिखते हैं । अशोक सिंघई के बारे में मैं स्‍वयं कुछ न लिखकर केवल कुछ रंग बिखेर देना चाहता था । मगर मैं कलावादी नहीं हूँ इसलिए स्‍थूल चित्रण के बगैर मेरा मन भरता नहीं । शायद आपका भी न भरे इसलिए थोडी सी सपाट सी लगती कुछ और कथायें भी जरूरी लगती है ।

अशोक सिंघई से मेरी भेंट प्रगतिशील लेखक संघ के प्रथम आयोजन में हुई । भिलाई इकाई का गठन हुआ । अशोक और मुझे एक साथ रवि भाई ने सहसचिव बना दिया । अशोक राजिम के हैं । भाई रवि राजिम के । इस तरह एक परिवार बना । हडबडी में जैसा बना वैसा रूप दिया गया संगठन को ।

काम चलने लगा । अशोक सिंघई तब केम्‍प एक के हाई स्‍कूल में रसायन शास्‍त्र के व्‍याख्‍याता थे । नंदिनी से यहां पहूँचे थे । यहॉं आने से पहले वे चंपारण के हाई स्‍कूल में शिक्षक रह चुके थे ।

राजिम अशोक भाई का गांव है । वहां उनके परिवार का अच्‍छा खासा कारोबार है । मगर वे स्‍वभाव से कारोबारी नहीं है । इसलिए अलग लीक पर चलने के लिए उन्‍होंने मास्‍टरी को चुना । रोज मोटर साइकिल से राजिम से चांपारण पढाने जाते थे । पिताजी को यह घाटे का सौदा लगता था । एक दिन उन्‍होंने कह ही दिया कि जितना कमाते हो उससे ज्‍यादा तो पेट्रोल में फूक देते हो ।

उस दिन से अशोक सिंघई साइ‍किल से यात्रा करने लगे । दादी का दुलरूआ अशोक सिंघई खटर-खटर साइकिल से चला जा रहा है । राजिम से धुरमारग का सुख उठाते चम्‍पारण । दादी बहुत व्‍यथित हुई । लेकिन अशोक अडिग । उसने फिर मोटर साइकिल को हाथ नहीं लगाया । आज उनके कवि हृदय पिता अशोक की नई कार में बैठकर सैर सपाटे के लिए भी निकलते हैं । माता पिता को कार में बिठाकर शायद पुरूषार्थी अशोक को वही सुख मिलता हो जो रावण को हिमालय सहित शिव पार्वती को उठाकर, चलने से मिलता रहा होगा । अशोक स्‍वाभिमानी और आत्‍मविश्‍वास से लबालब भरा हुआ कर्मठ व्‍यक्ति है ।

निज भुज बल मैं बयरू बढावा, दैहंव उतरू जो रिपु चढ आवा ।

यही अंदाजा रहता है अशोक का जब कोई उसे अपने शीशे में जबरदस्‍ती उतारने के लिए नाहक चेष्‍टा करने लगता है ।

सेल में नौजवान कर्मियों के लिए एम.टी.ए. की परीक्षा की जब पहली योजना बनी तो भिलाई से एक पूरी बस भरकर मित्रों की टोली गई भोपाल । परीक्षा दिलाने । अशोक भी उनमें से एक थे ।

परिणाम आया तो पूरी बस के यात्रियों में से मात्र यही अपने अशोक भाई लिखित परीक्षा की वैतरणी पार कर सके । साक्षात्‍कार का बुलावा आया । अशोक सिंघई को अपनी विशिष्‍टता का ज्ञान शुरू से रहा है । अशोक सिंघई ने लिट् ररी क्‍लब के तत्‍कालीन अध्‍यक्ष श्री दानेश्‍वर शर्मा से प्रमाण पत्र लिया कि साहित्यिक रूचि और गति है ।

अपने साहित्यि स्‍टैंड के कारण अशोक सिंघई बाजी मार लाये । ट्रेनिंग के बाद वे जनसंपर्क में पदस्‍थ हुए । आज वहीं वरिष्‍ठ प्रबंधक है । और बेहद सफल वरिष्‍ठ प्रबंधक । निचले पादान से क्रमश: उभरते हुए उँचाइयों को छूना कोई अशोक सिंघई से सीखे । विकट परिस्थितियों में भी वे अधीर नहीं होते । स्‍वाभिमानी इतने कि अकडू लगे । योजना कुशल इतने कि जुगाडू दिखें । स्‍पष्‍टवादी इतने कि मुहफट कहायें । दृढ निश्‍चय इतने कि बेरहम कहलायें । और बौद्धिक ऐसे कि रसहीन माने जायें । लेकिन साहित्‍य और साहित्‍यकारों के संदर्भ में अपनी सारी कमियों और छवियों से अलग एक समर्पित और निष्‍ठावान कलमकार की सारी खूबियों के एकत्र रूप । उच्‍च पदों पर आसीन होने के बाद प्राय: व्‍यक्ति की कुछ रूचियां रूप ग्रहण करने लगती हैं । लेकिन पद उन्‍हें और उनकी रूचि को खा जाता है । इसके उलट जो लोग अपनी कलारूचियों एवं सिद्धियों के महत्‍व को समझते हैं और जीवन में भी सफल होते हैं ऐसे स्‍वाभाविक कलाकार, कवि, लेखक अपनी कला-बिरादरी को भरपुर संरक्षण, बल और आदर देते हैं ।

श्री अशोक सिंघई टूटही साइकिल में चलने वाले गुरूजी होने से पहले ही एक संभावनाशील कवि के रूप में पहचान बना चुके थे । वे छात्र कवि थे । अब तो खैर क्षत्रिय कवि हो गये हैं । मारक कविता लिखने में माहिर है ।

लोगों के बीच 1982-83 में अशोक सिंघई की कविता बचपन में बुलबुले बनाये थे बेहद चर्चित हुई । वे वैचारिक कविता में सिद्ध है । इधर आत्‍मीय संबंधों पर भी उन्‍होंने जमकर लिखा है ।

पत्‍नी पर लिखी उनकी कविताओं से सिद्ध कवियों की बहुचर्चित प्रेम कवितायें याद हो आती हैं ।

अशोक सिंघई का अभ्‍युदय भिलाई नगर में आयोजन कौशल का युग सिद्ध हुआ । विगत पॉंच वर्षो में देश के नामचीन विद्वान भिलाई में आये । स्‍तरीय कार्यक्रम हुए । साधनों के लिए हम अशोक सिंघई के रहते एकदम निश्चिंत रहते हैं । लेखकों की स्‍वतंत्र सत्‍ता हो जाय, ऐसे सत्‍ताधारी लेखक एकजुट हो जाऍं और उन्‍हें साधनों की सुविधा हो जाये तो क्‍या चमत्‍कार हो सकता है, इसे सबसे पहले अशोक सिंघई ने समझा ।

उनकी समझदारी से उत्‍पन्‍न प्रतिफल का लाभ हम सब उठा रहे हैं । कुशल वक्‍ता और चिंतक के रूप में अशोक सिंघई की धाक शुरू से रही । समीक्षा द्ष्टि और विश्‍लेषण बुद्धि के कारण वे हम सबके बीच सभा समितियों में लगभग आतंक की मानिंद उपस्थित रहते है । अशोक सिंघई कई कई दिनों की चल रही तैयारी को अपने तर्को से एक दूसरा ही रूप दे देते हैं । इसीलिए कार्यक्रम बनाने वाले बैठकों के शुरूवाती दौर में उन्‍हें पधारने के लिए न्‍यौता दे देते हैं ।

अशोक सिंघई अब साहित्‍य के ऐसे तेजस्‍वी देव हो गये हैं जिसे साहित्यिक यज्ञ में अगर ससम्‍मान भाग नहीं दिया जाय तो यज्ञ का विध्‍वंश लगभग तय हो जाता है ।

अशोक भाई कितने मित्रवत्‍सल हैं- कितने बॉंस भक्‍त हैं, कितने पितृसेवी हैं- कितने परंपरा विरोधी, किस किसके विरोधी है- किस किसके समर्थक या फिर कब विरोधी है और कब समर्थक, यह दावे से कोई भी कह नहीं सकता ।

अपने पुरूषार्थ की ताकत से मंजिल की ओर तेजी से बढने वाले व्‍यक्तियों में पाया जाने वाला आत्‍मविश्‍वास और अहं दोनों को अशोक सिंघई ने खूब पाला पोसा है ।

अशोक सिंघई के कवित्‍व और व्‍यक्तित्‍व को परवान चढते देखा है श्रीमती सरोज सिंघई ने । एम.ए., बी.एड. तक शिक्षित श्रीमती सरोज सिंघई 79 में बहु बनकर राजिम आई । वे वर्धा जिले के एक छोटे से नगर आरवी से यहां आई । संपन्‍न घर की बेटी और समर्थ घर की बहु सरोज जी ने सेक्‍टर-6 के टू-बी टाइप असुविधाजनक छोटे से क्‍वार्टर को अशोक का भरापूरा घर बना दिया । उस छोटे से घर में भी श्रीमती सरोज सिंघई उसी तत्‍परता और विनम्रता से अपने पढाकू पति के मित्रों का आवभगत करती थीं । तब भी अशोक सिंघई के घर में बडी-बडी जिल्‍दों वाली चमचमाती और मुझे डरावनी सी लगती गूढ ज्ञान से भरी किताबें अटी रहती । सरोज जी उन्‍हीं किताबों से बची जगहों में नाश्‍तें की प्‍लेटे रखा करतीं । आज सेक्‍टर-5 के बडे घर में पहूँच कर भी हालात बहुत नहीं बदले । रखने को तो अशोक सिंघई तब भी एक सवारी रखते थे । बाबा आदम के जमाने की एक साइकिल । लेकिन सरोज जी को तब भी कोई विशेष शिकायत नहीं रहती थी । न ही आज उन्‍हें कोई विशेष गर्व है, जबकि उनके टूटही साइकिल वाले पति आज नई मारूती कार में सर्राटे से भिलाई से राजिम ड्राइव करते हुए सुनहरे फ्रेम के चश्‍में से देखकर सामने वाले को नाप लेने की सिद्धि के लिए चर्चित हो चुके हैं ।
अशोक सिंघई की गाडी में सेल का चिन्‍ह अंकित है । श्री रवि श्रीवास्‍तव और बसंत देशमुख उस सेल चिन्‍हधारी गाडी के विशेष सवार हैं । दोनों बी.एस.पी. के बकायदा अधिकारी जलो ठहरे । रायपुर से राजनांदगांव तक यह गाडी खास साहित्यिक आयोजनों के अवसर पर सरसराती है । महासमुन्‍द, बिलासपुर, बालोद और धमतरी के साहित्‍यकार इस सफेद रंग की गाडी को पहचानते हैं ।

अंचल के साहित्यिक आयोजनों को लेकर जिस तरह की उत्‍तेजक संलग्‍नता अशोक सिंघई में रहती है वह अन्‍यत्र देखने को नहीं मिलती । समारोह में जाने के लिए कपडों की छंटाई से लेकर साथ चलने वाली सवारियों की सजधज तक सब पर उनकी नजर रहती है । केवल नजर ही नहीं रहती, नजारों का लुत्‍फ भी खूब उठाते हैं । समारोह से लौटने के बाद की कथा हफतों चलती है कि हम लोग उतरे । आयोजकों ने हाथों हाथ लिया । सामने ले जाकर बिठाया । रवि और मैं कोसे के कुरते में थे । सबसे अलग । बसंत भी जवाहर जाकिट में खूब सज रहे थे । सबका ध्‍यान भिलाई पर ठहर गया । मया आ गया ।

या फिर यह कि – सालों को खूब सुनाया कि भिलाई वालों को तो आप लोग कार्ड के काबिल भी नहीं समझते । पेपर पढकर हमलोग आ गये । क्षमा करें, हम तो गेट के बाहर खडे होकर सुनेंगे । भीतर बैठकर सुनने के योग्‍य तो हम है नहीं । खूब लानत-मलामत हुई । हाथ जोडने पर ही छोडा । फिर बैठे जाकर । उसके बाद तो हमीं हम रहे ।

मुझे आज तक समझ में नहीं आया कि आयोजन को लेकर अशोक भाई इतने पागल क्‍यों हो जाते हैं । पागल तो खैर वे कविता के पीछे भी रहते हैं । विशेषकर विगत् पॉंच वर्षो से । कविता के किताब के लिए तैयारी तीन वर्ष से चल रही है ।

अशोक ही हम सबके बीच ऐसे लेखक हैं जिनकी आज तक कोई किताब नहीं छपी मगर वे कई-कई किताबधारी लेखकों के दिशा निर्देशक और साहित्यिक बॉस है ।

अशोक सिंघई का सारा खेल बहुत सोचा समझा हुआ रहता है । पाण्‍डुलिपि ही वे इस तरह से तैयार कर रहे हैं जिसे देखकर हम सबको अपनी पुस्‍तक फीकी लगती है । और संग्रहों के नाम को लेकर भी कम उँची उडान नहीं है । मुट्ठी पर धूप, शब्‍दश: शब्‍द धीरे-धीरे बहती है नदी, आदि आदि । जहॉं अधीर होना वहॉं अशोक बेहद अधीर पाये जाते हैं । और जहां संयम बरतना है वहां महाव्रती, अटल संकल्‍पवान । अडतालीस की उम्र तक आ गये, वरिष्‍ठ प्रबंधक हो गये, वरिष्‍ठ प्रबंधक हो गये, लिटररी क्‍लब के अध्‍यक्ष बन गये, अंचल के साहित्यिक गलियारे के शेर का दर्जा भी उन्‍हें मिल गया लेकिन संग्रह प्रकाशन के लिए अशोक भाई अधीर नहीं हुए । यही उनकी खूबी है ।
भिलाई में ऐसा कौन मित्र है जिसे अशोक ने बुरी तरह घुडका न हो और कौन ऐसा विरोधी है जिसे योजनापूर्वक उसने शीशे में उतार न लिया हो ।

अब तो दिन – दिन उनका यह कौशल और परवान चढेगा ।

भाई अशोक सिंघई समन्‍वय में माहिर हैं । भोपाली कवि का एकल काव्‍यपाठ भिलाई होटल के एपार्टमेंट में ठीक रहेगा और स्‍थानीय कवि का रचनापाठ लिटररी क्‍लब या बख्‍शी सृजन पीठ में ही जमेगा, यह वे मिनटों में तय कर देते हैं । ऐसी समस्‍याओं पर विद्वत्‍जन घंटों सर पीटते रहते हैं मगर अशोक भाई दर्जनों गेंदों को एक गेंद की तरह उछाल सकते हैं और एक गेंद को ही इस कौशल से उछालते हैं कि दर्जन भर गेंद होने का भ्रम खडा हो जाता है ।
भिलाई इस्‍पात संयंत्र पर वजन भी न पडे और साहित्‍यकार का वजन कम न हो वह दोनों चिंता वे बराबर करते हैं । कमाल यह है कि वे दोनों के बीच शानदार संतुलन बना ले जाते हैं ।

छोटे लिफाफे में भारी भरकम खत डालना और भारी से लिफाफे में शब्‍दश: शब्‍द भी न लिखना उन्‍हें सुहाता है । उनकी सारी सूचनायें चमकदार होती हैं । अभी वे विगत् वर्ष से एक लंबी कविता लिख रहे हैं ।

हिन्‍दी में मुक्तिबोध, निराला, नरेश मेहता, अज्ञेय जैसे कवियों की लंबी कवितायें चर्चित है । हमारे अशोक भाई पूरी योजना के साथ लगभग दो सौ पृष्‍ठों की लंबी कविता के साथ इस सदी की विदाई और नई सदी के स्‍वागत की योजना बना रहे हैं । उस लंबी कविता के अंशों को अंतरंग गोष्ठियों में हमने सुना है । बडी बात यह है कि बीसवीं सदी के अंतर्द्वन्‍द, को ही सिंघई इस लंबी कविता में प्रस्‍तुत करने का प्रयास कर रहे हैं । जय-पराजय, यश-अपयश, हानि-लाभ, के संदर्भ में सदी की पडताल कविता में देखते ही बनती है । प्रस्‍तुत है प्रकाशन के पहले ही चर्चा में आ चुकी सदी को समर्पित लम्‍बी कविता का एक अंश.....

क्‍या अर्थ था मेरे बगैर पृथ्‍वी का
एक निर्जीव दुनिया
विराट व्‍योम में पथ भूल चुकी
एक चपटी और झुर्रीदार गेंद
पृथ्‍वी ने मुझे जन्‍म दिया
चॉंद के आईने में/अपनी कुरूपता निहारती
अपनी उष्‍मा खोते हुए/वेदना के उत्‍ताप में
पृथ्‍वी ने मुझे जन्‍म दिया
पृथ्‍वी ने मेरी रचना की
और मैंने की पृथ्‍वी की पुनर्रचना
सुंदर से सुंदरतम बनाया उसे ।

पिछले दिनों श्रीनारायण लाल परमार जी को दुर्ग जिला साक्षरता समिति द्वारा प्रकाशित उनकी कृति भेंट करने हम धमतरी गये । परमार जी अस्‍वस्‍थ थे । हमने उन्‍हें अस्‍पताल में जाकर सविनय कृति भेंट की । फिर त्रिभुवन पाण्‍डे जी से भेंट हुई । पाण्‍डे जी ने एक जनवरी 99 को दीवान जी के जन्‍म दिवस पर प्रकाशित मेरे लेख के लिए कहा कि तुम्‍हारा अनसेन्‍सर्ड लेख बहुत अच्‍छा लगा । दीवान जी को पकडना है तो यह साहसिकता जरूरी है । हम लोग थोडा सकपकाकर पीछे हट आते हैं । साथ में गये श्री डी.एन. शर्मा एवं जी जमुना प्रसाद कसार को यह अनसेन्‍सर्ड लफज बहुत जमा । पाण्‍डे जी ने आगे कहा कि दीवान जी जैसे बीहड व्‍यक्तित्‍व पर ऐसा ही बेबाक लेखन होना जरूरी है । अब हम सब इस बीहड शब्‍द पर फिर खिलखिलाये ।

श्री त्रिभुवन पाण्‍डे शिल्‍पी हैं । उन्‍होंने बीहड व्‍यक्तित्‍व का दर्जा देकर दीवान जी की विचित्रता को ही रेखांकित किया । बीहड जहां डाकू भी छिप जाये और जहां संत भी समाधिरत होने के लिए जगह बना लें । जहां धसकर आदमी बागी कहलाये । जहां जाने के बाद व्‍यक्ति नये रूप में ढलता चला जाय । जहां आदमी पकडा न जा सके वह कहलाता है बीहड । दीवान जी के लिये प्रयुक्‍त यह लफज बीहड मौजू है । लेकिन मैं इसका विस्‍तार चाहता हूँ । महानदी के किनारे बसे राजिम के हर जोगी का व्‍यक्तित्‍व ऐसा ही है । बीहड व्‍यक्तित्‍व । साहित्‍य के जोगी अशोक सिंघई भी महानदी के किनारे बसे नवापारा के निवासी हैं । उस ओर सन्‍यासी का डेरा, इस ओर जोगी की बस्‍ती है मगर है दोनों बीहड व्‍यक्तित्‍व ।

अशोक सिंघई ने पैदा होने के लिए राजिम को नहीं नवापारा को चुना । उसे सब कहीं नवा पसंद है । पुरानी लीक पर कवि के आदेशानुसार अशोक सिंघई चल भी तो नहीं सकता । कवि ने यह जो कह दिया है...

लीक छॉंड तीनों चले, शायर, सिंह, सपूत ।

यहॉं मार तिहरी है । अशोक शायर भी है, सपूत भी ।
जिस तरह लक्ष्‍मी की कृपा उन पर अब हो रही है उसे देखते हुए और पुरूष सिंह मुपैति लक्ष्‍मी इस स्‍थापना पर विश्‍वास करते हुए अशोक सिंघई को सिंह भी मानना पडता है । सिंह इसलिए भी मानना पडता है क्‍योंकि जिस किसी ने भी उसकी पूंछ पर हाथ रखने की जुर्रत की उसे एक ही गप्‍पा में अशोक हुबक कर लील लिया । लेकिन बिहडता देखिए कि अहिंसा, प्रेम, भाईचारा, एकता, क्षमा, दया मया का भी कारोबार अशोक के यहॉं पर्याप्‍त मात्रा में मिलता है । बल्कि हम सबके बीच वे इन जीन्‍तों के होल-सेलर है । यह अशोक सिंघई के व्‍यक्तित्‍व को, ठीक पवन दीवान सी, विचित्रता है । जैसे दीवान जी की गहराई की थाह नहीं लगती उसी तरह अशोक सिंघई का अंदाजा नहीं लगता ।

एक अवसर पर किसी पहाड को लतियाते नजर आते हैं तो दूसरे मौके पर एक छोटी सी टिकरी के आगे हाथ बॉंधे खडे दिखते हैं । अराजक ऐसे कि मंत्रियों को बात सुना दें और अनुशासित ऐसे कि अपने बॉस और यहॉं तक मातहत कर्मचारियों के भी बाकायदा पीर, बावर्ची, भिस्‍ती, खर तक बन जाय । सचमुच रजिमहा लोग बीहड व्‍यक्तित्‍व के स्‍वामी हैं ।

अशोक सिंघई की कविताओं के अंशों से गुजरते हुए हमें इसका अहसास शिद्दत से होता है:

विक्रमादित्‍य का ही सिंहासन
मिला हमें विरासत में
हर पुतली गूंगी है अब
हर पाया जगह-जगह घुना है ।
नदियॉं लेटी हैं
जंगल अनमना है ।

xxx xxx xxx

दसों दिशाओं / चौदह भुवनों
और असीम समय की सीमा तक
फैली है / उँची है यह दीवार
अदृश्‍य होकर भी रोकती है
बॉंधती है समय के बंधनों में
संस्‍कारों की सांकलों में
कहानियों की कंदराओं में
हम खो नहीं सकते
जंगलों में / पहाडों में / कछारों में
तुम्‍हें देख नहीं सकते
ऑंखे बंद करके / खोल करके ।

xxx xxx xxx

कविता उग आती है
घास की तरह
इसके बीज कभी नहीं मरते
घास के बीजों की तरह ।

नथमल झंवर जी की दो कवितायें

जीवन का इतिहास यही है

जीवन की अनबूझ राहों में
चलते-चलते यह बनजारा
गाता जाये गीत विरह के
जीवन का इतिहास यही है

यौवन की ऑंखों से देखे
वे सारे स्‍वप्निल सपने थे
जिन-जिन से नाता जोडा था
वे भी तो सारे अपने थे

सबके सब हरजाई निकले
जीवन का परिहास यही है

पीडाओं की अमर कहानी
कोई विरही-मन लिख जाये
और व्‍यथा के सागर डूबा
कोई व्‍याकुल-तन दिख जाये

पीता है नित विष का प्‍याला
जीवन का संत्रास यही है

संघर्षो में बीता जीवन
कभी रात भर सो न पाया
जिसे कोख में पाला हमने
लगता है अब वही पराया

तोडो रिश्‍तों की जंजीरें
जीवन का सन्‍यास यही है

देखो सागर की ये लहरें
सदा कूल से मिलने जाती
दीप-शिखा को देखो प्रतिदिन
अंधकार से मिलकर आती

तुम प्रियतम से मिल सकते हो
जीवन का विश्‍वास यही है

अपने मंदिर की देहरी पर
आशाओं के दीप जलाओ
जीवन से जो हार चुके हैं
उन्‍हें विजय का घूंट पिलाओ

परमारथ तन अर्पित कर दो
जीवन का आकाश यही है

प्रथम रश्मि देखो सूरज की
जीवन में उल्‍लास जगाती
और चंद्र की चंचल किरणें
सबके तन-मन को हरषाती

पल-पल में अमृत रस भर दो
जीवन का मधुमास यही है

सूरज सा ढलना है

मंजिल है दूर बहुत, और अभी चलना है
जग को उजियारा कर, सूरज सा ढलना है

घुटनों के बल चलना
आँगन का वह पलना
बातों ही बातों में जाने कब बीत गया
चाबी की वह गुडिया
माटी की वह चिडिया
तरूणाई आई तो जाने कब रीत गया
यौवन के आने से
उमर बीत जाने से
दुनिया को देखा तो सिर्फ एक छलना है

पपीहा पी-पी बोले
कानों में रस घोले
परदेशी बालम की यादें तरसा गई
जंगल में मोर नचा
ऑंखों में प्रीत रचा
सूखे इन अधरों पर अमृत बरसा गई
हरजाई बालम है
कैसा यह सरगम है
बाती को दीपक सँग जलना ही जलना है

मन का संताप लिये
अधरों में प्‍यास लिये
कौन आज दूर कहीं विरह राग गा रहा
मन पंछी व्‍याकुल है
तन कितना व्‍याकुल है
कौन है जो विजन में भी गीत आज गा रहा
नीले आकाश तले
क्षण-क्षण यह उमर ढले
सॉंसों को हर पल बस मोम जैसा गलना है।

परिचय
नाम: डॉ. नथमल झँवर
पिता: स्‍व. नानकराम झँवर माता: स्‍व. गंगादेवी झँवर
पत्नि: श्रीमती शांति देवी जन्‍मतिथि: 22 नवम्‍बर 1944 ई.
शिक्षा: इन्‍टरमीडिएट, राष्‍ट्रभाषा रत्‍न,
साहित्‍य रत्‍न मानद् उपाधि-विद्यावाचस्‍पति (पी-एच.डी) विद्यावारिधि
प्रेरणाश्रोता: श्री जी.पी. तिवारी, श्री बबन प्रसाद जी मिश्र, डॉ. विनय कुमार पाठक
प्रकाशन: सरिता, मेरी सहेली, समरलोक, पालिका समाचार, नवभारत, दैनिक-भास्‍कर, नोंक झोंक, स्‍वर्णिम प्रकाश, देशबन्‍धु, हरिभूमि, प्रखर समाचार, हिन्‍दी जगत, छत्‍तीसगढ टुडे, विकास संस्‍कृति, सुमन सुधा, माहेश्‍वरी, माहेश्‍वरी सेवक, समाज प्रवाह, श्री माहेश्‍वरी टाइम्‍स, साहित्‍यांचल आदि अनेक पत्र पत्रिकाओं में ।
संप्रति: संरक्षक- सृजन साहित्‍य परिषद् तिल्‍दा (नेवरा), अध्‍यक्ष- वर्षा साहित्‍य समिति, सिमगा, अध्‍यक्ष- माहेश्‍वरी सभा सिमगा, कार्यकारिणी सदस्‍य- छत्‍तीसगढ हिन्‍दी साहित्‍य परिषद (रायपुर), सचिव – शिवनाथ सृजन समिति सिमगा, आजीवन सदस्‍य – साहित्यिक सांस्‍कृतिक कला संगम अकादमी परियावां (उ.प्र.), सदस्‍य – विकल्‍प साहित्‍य परिषद तिल्‍दा, सदस्‍य – ‘वक्‍ता एवं लेखक पेनल’ माहेश्‍वरी महासभा, कार्यकारिणी सदस्‍य – छ.ग. प्रादेशिक माहेश्‍वरी सभा
सम्‍मान- विद्यावारिधि – साहित्यिक सांस्‍कृतिक कला संगम अकादमी परियावां (उ.प्र.) विद्या वाचस्‍पति (पी-एच्.डी.) – विक्रम शिला हिन्‍दी विद्यापीठ ईशीपुर भागलपुर (उ.प्र.) मैथिलीशरण गुप्‍त सम्‍मान- अखिल भारतीय साहित्‍यकार अभिनंदन समिति मथुरा (उ.प्र.) वर्ष 2000 बीसवीं शताब्‍दी रत्‍न सम्‍मान – जैमिनी अकादमी पानीपत वर्ष 2000 साहित्‍य श्री सम्‍मान – अरविन्‍द प्रकाशन केन्‍द्र सतना, वर्ष 2000 साहित्‍य सौरभ सम्‍मान- शिव संकल्‍प साहित्‍य परिषद नर्मदापुरम, वर्ष 2001 स्‍व. मुकीम अहमद पटेल ‘रासिख’ सम्‍मान इतिहास एवं पुरातत्‍व शोध संस्‍थान बालाघाट, वर्ष 2000 प्रयास प्रकाशन बिलासपुर, अभिनन्‍दन – वर्ष 2001 पं. राजाराम त्रिपाठी स्‍मृति सम्‍मान – साहित्यिक सांस्‍कृतिक कला संगम अकादमी, प्रतापगढ (उ.प्र.) वर्ष 2001 पद्म श्री डॉ. लक्ष्‍मीनारायण दुबे स्‍मृति सम्‍मान – जैमिनी अकादमी पानीपत, वर्ष 2001 काव्‍य सुमन सम्‍मान- पुष्‍पगंधा प्रकाशन कवर्धा, वर्ष 2006 दीपाक्षर सम्‍मान – दीपाक्षर साहित्‍य समिति भिलाई, वर्ष 2006 .ऋतंभरा अलंकरण-ऋतंभरा साहित्‍य मंच कुम्‍हारी (दुर्ग) वर्ष 2005 छत्‍तीसगढ लोककला उन्‍नयन मंच – भाटापारा द्वारा अभिनंदन वर्ष 2000
प्रसारण: आकाशवाणी रायपुर से प्रसारण (कविताओं का)
प्रकाशित कृति: एक गीत तुम्‍हारे नाम (काव्‍य संग्रह) वर्ष 2000 ई.
(विदेश मंत्रालय द्वारा आठवें विश्‍व हिन्‍दी सम्‍मेलन के लिए अनुशंसित)
सौ समुंदर पार से (गीत संग्रह) वर्ष 2003 ई. प्रकाशनाधीन: जीवन का इतिहास यही है (काव्‍य संग्रह) (प्रेस में)
यादों का सफर (कहानी संग्रह)
अप्रकाशित: नेता प्रशिक्षण केन्‍द्र (व्‍यंग)
संपर्क: झँवर निवास,
मेन रोड, सिमगा जिला रायपुर (छ.ग.) 493101
स्‍वर संपर्क: चल 94255-18635, 93292-49110
अचल: 07726-274245

.. श्री सूक्त ( ऋग्वेद) ..


.. श्री सूक्त ( ऋग्वेद) ..
हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो ममावह ।१।




तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ।२।
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् ।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ।३।
कांसोस्मि तां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ।४।
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलंतीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ।५।
आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसानुदन्तुमायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ।६।
उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेस्मिन्कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।७।
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुदमे गृहात् ।८।
गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ।९।
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ।१०।
कर्दमेन प्रजाभूतामयि सम्भवकर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ।११।
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीतवसमे गृहे ।
निचदेवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ।१२।
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ।१३।
आर्द्रां यःकरिणीं यष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् .
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह .. १४..
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् .
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावोदास्योश्वान्विन्देयं पुरुषानहम् .. १५..
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् .
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् .. १६..
पद्मानने पद्म ऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे .
तन्मेभजसि पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् .. १७..
अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने .
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे .. १८..
पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि .
विश्वप्रिये विश्वमनोनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि संनिधत्स्व .. १९..
पुत्रपौत्रं धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम् .
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे .. २०..




धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः .
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमस्तु ते .. २१..
वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा .
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः .. २३..
न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः . .
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत् .. २४..
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे .
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् .. २५..
विष्णुपत्नीं क्षमादेवीं माधवीं माधवप्रियाम् .
लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् .. २६..
महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि .तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् .. २७..
श्रीवर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते .
धान्यं धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः .. २८..
ऋणरोगादि दारिद्य पापंक्षुदपमृत्यवः .
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ..
श्रिये जात श्रिय आनिर्याय श्रियं वयो जनितृभ्यो दधातु .
श्रियं वसाना अमृतत्वमायन् भजन्ति सद्यः सविता विदध्यून् ..
श्रिय एवैनं तच्छ्रियामादधाति .
सन्ततमृचावषट् कृत्यंसंधत्तं सधीयते प्रजया पशुभिः ..
ॐ महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि .
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ....





ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ..


आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें ।



प्रवासी छत्‍तीसगढ सम्‍मान : वेंकटेश शुक्‍ला



( चित्र डेली छत्‍तीसगढ से साभार)


छत्‍तीसगढ से बाहर निकलकर दुनिया के दूसरे देशों में कामयाबी के झंडे गाडने वालों में एक छत्‍तीसगढ के वेंकटेश शुक्‍ला ( सिलिकान वैली प्रोफेशनल एसोशियेशन के वरिष्‍ठ सदस्‍य ) भी हैं जिन्‍हें छत्‍तीसगढ सरकार नें इस वर्ष के प्रवासी छत्‍तीसगढ सम्‍मान के लिए चुना हैं ।


चांद पर जिस वर्ष मनुष्‍य नें पांव धरे उसी वर्ष जांजगीर में जन्‍में वेंकटेश शुक्‍ला नें छत्‍तीसगढ के छोटे से कस्‍बे अकलतरा से मैट्रिक की परिक्षा हिन्‍दी माध्‍यम से पूरा किया व इलैक्‍ट्रानिक्‍स में बीई करने की चाह में आईआईटी प्रवेश परीक्षा में बैठे । छत्‍तीसगढ के इस सपूत को एमएसटी भोपाल जो वर्तमान में एनआईटी है, में बीई करने का अवसर प्राप्‍त हुआ ।

देश में ही रह कर कार्य करने के इच्‍छुक वेंकटेश नें भारतीय राजस्‍व सेवा को चुनकर भारतीय राजस्‍व सेवा में कार्य करने लगे किन्‍तु मन में इलैक्‍ट्रानिक्‍स इंजीनियरिंग के प्रति लगाव जीवित रही । विवाह के बाद अमेरिका में रह रही पत्‍नी के आग्रह पर अमेरिका गये और वहां एमबीए किया । एमबीए करने के लिए, लिए गए कर्ज को चुकाने के लिए अमेरिका के ही मल्‍टीनेशनल कम्‍पनी में नौकरी शुरू की एवं निरंतर सफलता प्राप्‍त करते हुए अपने स्‍वयं का कारोबार विकसित कर लिया वे स्‍वयं कहते हैं –


’ मैंने एक नई कम्‍पनी शुरू की है, यह तीसरी चौथी कम्‍पनी मैने शुरू की है । यह चिप डिजाईन के क्षेत्र में काम करती है । करीब ढाई साल हो गए इस कम्‍पनी को, इसमें करीब 25 इंजीनियर हैं मुझे छोडकर बाकी इंजीनियर हैं, तकनीकि क्षेत्र में काम करते हैं छह अमेरिका में और अट्ठारह बैंगलोर में । मैंनें जितनी भी कम्‍पनियां शुरू की, उसमें भारत की भूमिका रही ।‘

इनके व्‍यावसायिक साख एवं कार्यकुशलता व भारत में विदेशी मुद्रा लाने के अतिरिक्‍त इन्‍होंनें जो गरीब और जरूरतमंद छात्र-छात्राओं के उच्‍च शिक्षा के लिए वित्‍तीय सहायता के रूप में छात्रवृत्ति देने का कार्य प्रारंभ किया है वह वाकई काबिले तारीफ है । वेंकटेश की संस्‍था फाउन्‍डेशन फार एक्‍सीलेंस (http://www.ffe.org/) एवं फाउन्‍डेशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्मस इन इंडिया (http://www.fdri.org/) भारत के जरूरतमंद होनहार बच्‍चों को उच्‍च अध्‍ययन के लिए वित्‍तीय सहायता प्रदान करती है वो भी बिल्‍कुल मुफ्त । वेंकटेश स्‍वयं कहते हैं –

‘ भारत में हम सिर्फ 22 प्रदेशों में कार्य कर रहे हैं, हर साल करीब ढाई हजार बच्‍चों को छात्रवृत्ति देते हैं । टाटा-बिडला और अंबानी ये तीन समूह मिलाकर तीन सौ बच्‍चों को ऋण देते हैं, हम ढाई हजार बच्‍चों को छात्रवृत्ति देते हैं ।‘

इसे लौटाना नहीं पडता के प्रश्‍न पर वे कहते हैं – ‘ नहीं, लौटाना नहीं पडता, लेकिन एक अच्‍छी बात हमने देखी है कि कुछ बच्‍चे स्‍नातक होते ही हमें पैसे भेजना शुरू कर देते हैं । ....... बच्‍चे मदद पाकर इतने खुश रहते हैं कि वे इसे लौटाना चाहते हैं । हम इन बच्‍चों से सिर्फ एक वादा लेते हैं कि अपने जीवन में वे दो दूसरे बच्‍चों की मदद करेंगें । इससे मदद का सिलसिला तेजी से बढता जाता है ।‘


यदि आप भी किसी ऐसे जरूरतमंद बच्‍चे को जानते हैं जिसे वेंकटेश की मदद की आवश्‍यकता है तो ऐसे प्रतिभा को वेंकटेश शुक्‍ला की संस्‍था तक पहुंचावें एवं धन के कारण शिक्षा से वंचित बच्‍चों की सहायता में सहभागी बनें ।


(डिस्‍कवरी छत्‍तीसगढ के लिए सांध्‍य दैनिक छत्‍तीसगढ के संपादक सुनील कुमार नें इस वर्ष के प्रवासी छत्‍तीसगढ का सम्‍मान प्राप्‍त करने वाले वेंकटेश शुक्‍ला से लंबी बातचीत की है जिसे उन्‍होंनें सांध्‍य दैनिक छत्‍तीसगढ में तीन किश्‍तों में प्रकाशित किया है । सांध्‍य दैनिक छत्‍तीसगढ www.dailychhattisgarh.com में पढे संपूर्ण साक्षातकार )

छत्तीसगढ थापना परब अउ बुचुआ के सुरता

बुचुआ के गांव म एक अलगे धाक अउ इमेज हे, वो हर सन 68 के दूसरी कक्षा पढे हे तेखरे सेती पारा मोहल्ला म ओखर डंका बाजथे । गांव के दाउ मन अउ नवां नवां पढईया लईका मन संग बराबर के गोठ बात करईया बुचुआ के बतउती वो हर सन 77 ले छत्तीसगढ राज के सपना संजोवत हे तउन ह जाके 2000 म पूरा होये हे ।

सन 1977 म मनतरी धरमपाल गुप्ता के झोला मोटरा ल धरईया बुचुआ ह शहर अउ गांव म मेहनत करत करत 30 साल म छत्तीसगढ के बारे म जम्मो जानकारी ल अपन पागा म बंधाए मुडी म सकेल के धरे हे, नेता अउ कथा कहिनी लिखईया घर कमइया लग लग के ।

छत्तीसगढ के जम्‍मो परब तिहार, इतिहास अउ भूगोल ला रट डारे हे । कहां नंद, मौर्य, शंगु, वाकाटक, नल, पांडु, शरभपुरीय, सोम, कलचुरी, नाग, गोड अउ मराठा राजा मन के अटपट नाव ला झटपट याद करे रहय । रतनपुर अउ आरंग के नाम आत्‍ते राजा मोरध्‍वज के कहनी ला मेछा म ताव देवत बतावै । गांव म नवधा रमायन होवय त बुचुआ के शबरीनरायन महात्‍तम तहां लव कुश के कथा कहिनी ला अईसे बतावै जईसे एदे काली के बात ये जब छत्तीसगढ म लव कुश जनमे होये ।

भागवत कथा सुने ल जाय के पहिली बीर बब्रूवाहन के चेदिदेश के कथा सुनावै अउ मगन होवय कि वोखर छत्तीसगढ हर कतका जुन्‍ना ये । लीला, नाचा, गम्‍मत होतिस त बुचुआ ह कवि कालीदास के मेघदूत के संसकिरित मंतर के टूटे फूटे गा के बतावै कि सरगुजा म संसार के सबले पुराना नाटक मंच हे जिहां भरत मुनि ह सबले पहिली राम लीला खेलवाए रहिसे । वोखर रामगिरी के किस्‍सा ल सुन के नवां पढईया टूरा मन बेलबेलातिन अउ बुचुआ संग टूरा मन पथरा म लिखाए देवदासी अउ रूपदक्ष के परेम कहानी ला सुनत सुनावत ददरिया के तान म मगन हो जातिस ।

कोनो ल पुस्‍तक देखतिस तभो शुरू हो जतिस भाई रे हमर छत्‍तीसगढ म छायावाद के पहिली कविता कुकरी कथा लिखे गे रहिसे, इन्‍हें ले पहिली हिन्‍दी किस्‍सा हा जागे रहिसे । तहां ले कालिदास के संसकिरित चालू हो जातिस । पुस्‍तक धरईया कुलेचाप हूं, हां कहत टसक मारतिस ।

अडबड किस्‍सा हे गांव म बुचुआ के पूरा पुरान ये छत्‍तीसगढ के । सन अउ तारीख संग छत्‍तीसगढ अंदोलन के दिन बादर के उतार चढाव ला मुअखरा बुचुआ मेर पूछ लेवव । थोरकन बात ला खोल भर तो देव, तहां बुचुआ के पोगा चालू, बीच बीच म बेटरी चारजिंग बर चोगीं माखुर भर देत रहव । हार थक के सुनईया मन ला जुर मिल के कहे ल लागय ‘जय छत्‍तीसगढ’ ‘जय छत्‍तीसगढ’ । तहां ले जय कहे के भोरहा म बुचुआ के धियान हा भरमावै तहां ले बात ल सम्‍हारे बर तीर बईठे कोनो सियान हा बुचुआ ल टप ले पूछै ‘चमरासहिन डोली के धान कईसे हे बाबू ‘ तब जाके बुचुआ के महात्‍तम सिरावै ।

बुचुआ के बिहई बुधियारिन ला बुचुआ के बात ल हंसी ठ्ठा म उडावत देख के, अडबड दुख होवै, फेर बुचुआ ये, कि वोला कुछु फरके नई परय । वो तो अपन छत्‍तीसगढ महतारी के सिरतोन बेटा, महिमा गाये ल छोडबेच नई करय, कोनो हांसै कि थूंकै ।

आज बुचुआ ला बिहिनिया बिहिनिया नहा धो के मार चिकचिक ले तेल चुपरे, नवां बंगाली तेखर उपर मा जाकिट मारे, नवां पचहथ्‍थी धोती संग बजनी पनही पहिरे । चरर चरर खोर म किंजरत देख के बुधियारिन कहिथे ‘का हो आज सुरूज बुडती डहर ले उही का, बिहिहनया ले मटमट ले सम्‍हर पखर के कहां जाए बर सोंचत हौ, ओलहा जोंते बर नई जाना हे का, जम्‍मा ओल सिरा जही त सुरता करहू ।‘

बुचुआ के बजनी पनही के चुरूर चुरूर थम गे, करिया तश्‍मा ला माई अंगरी मा नाक कोती खरकावत बुचुआ कथे ‘अरे छोटकी के दाई नई जानस का ओ आज हमर छत्‍तीसगढ राज के जनम दिन ये, तेखर सेती रईपुर जए बर तियार हौं बीस ठन रूपिया दे देतेस।‘

बुधियारिन अपन काम बुता गोबर कचरा में बिपतियाये रहय बुचुआ के गोठ ला सुनिस तहां ले बगिया गे, बंगडी पढे लगिस ‘ का हो हम न तो छठी छेवारी उठायेन न तो कांके पानी पीयेन अउ तूहू मन चह नई पीये अव, फेर काबर मटमटाथौ । का मिल गे राजे बन गे हे त, कोन मार हमर दुख हा कम होगे । उही कमई दू पईली अउ खवई दू पईली ।‘

‘नवां राज म राशन सोसईटी खुले के झन खुले गांव गांव म दारू भट्ठी जरूर खुल गे, जिंहा गांव के जम्‍मो पईसा सकलाए लागिस, घरो घर म दुख ह अमाय लागिस ।‘

‘रूखमिन के बेटी ला गांव म खुले दारू भट्ठी के संडा मन जनाकारी कर दिस पेट भरा गे अउ संडा मन भगा गे । पुलिस उल्‍टा रूखमिन के डउका ला ओलिहा दीस ।‘

‘कहां सटक गे रहिस तोर महिमा हा जहां तोर माता के सिरतोन बेटी ला तोर मोसी बडी के बेटा मन थिथोलत रहिन अउ तोरे भाई पुलिस मन रूखमिन ला बीच गांव के गुडी म चकला चलाथर रे छिनार कहिके डंडा म ठठात रहिन ।‘

‘का महिमा गाये, दिया जराये, नवां कुरथा पहिरे ले रूखमिन के दुख हेराही ।‘

‘छोटकी के बाबू नेता मन बर राज बने हे हमर मन बर तो उही काल उही आज । ‘

दुरिहा भांठा म नवां खुले स्‍कूल ले लईका मन के ‘जय छत्‍तीसगढ’ ‘जय छत्‍तीसगढ’ के नारा के आवाज हा बुधियारिन के करलई म तोपा गे ।

बुचुआ के सुरता (छत्‍तीसगढी कहानी) संजीव तिवारी


आप सभी को छत्‍तीसगढ राज्‍य स्‍थापना दिवस की शुभकामनायें ।

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...