अंग्रेजी नये वर्ष के उत्साह और उमंग में संपूर्ण विश्व के साथ साथ भारत भी मुम्बई धमाकों के टीस को दिल में बसाये 31 दिसम्बर की रात को झूमता गाता रहा । हमारी परम्परा एवं परिपाटी चैत्र प्रतिपदा से नये वर्ष की रही है किन्तु "चलन" नें इसे बिसरा दिया है । दुनियॉं के साथ कदम पे कदम मिलाते हुए आगे बढने के लिए एवं कुछ व्यवसायगत आवश्यकताओं के कारण बडे व प्रतिष्ठित होटलों को भी 'नये वर्ष' के आगमन में ऐसे ही आयोजनों का प्रबंध करना पडता है और मन रहे न रहे प्रतिस्पर्धा में ताल ठोंकना पडता है ।
15 दिसम्बर से समाचार पत्रों के विज्ञापन प्रतिनिधियों के फोन एवं उनके मिलने आने का सिलसिला बढ जाता है, आजकल समाचार पत्रों में भी व्यावसायिकता इस कदर हावी है कि विज्ञापन विभाग के कर्मचारी बाकायदा पीछे लग जाते हैं बीमा कंपनी या नेटवर्क मार्केटिंग कम्पनी के एजेंटों की तरह । चलन एवं इनको उपकृत करने (यह भी एक प्रकार की व्यावसायिक आवश्यकता है) के कारण इनकी इच्छाओं के चलते विज्ञापन भी छापे जाते हैं ।
जैसे तैसे पेलते ढकेलते सजावट, डीजे, आर्केस्ट्रा, इनामों व कूपनों के इंतजाम के साथ 31 दिसम्बर भी आ जाता है और सुबह के समाचार पत्रों में विज्ञापनों व समाचारों को पढते ही, मालिकों व प्रबंधन देख रहे बंदों की मोबाईल की घंटिंयॉं घनघनाने लगती है । एक बानगी देखिये -
- लाखन सिंह, सीएसपी चौपट नगर बोल रहा हूं
- जी, सर, नमस्कार, कैसे हैं
- बस ठीक हैं जी, क्या इंतजाम है तुम्हारे यहां आज
- बस सर, झूमरी तलैया का डीजे है, दरभंगा का आर्केस्ट्रा साथ में डिनर, हमारे यहां तो आपको मालूम ही है, वेज है, दारू सारू तो चलता नहीं है
- अरे वही तो, यही चीज तो आपके होटल को औरों से अलग करती है बॉस, फेमलियर तो तुम्हारे यहां ही आना चाहते हैं, जहां दारू सारू है वहां हुल्लड के सिवा कुछ नहीं होता
- हा हा हा, बस सर सब आपलोगों का आर्शिवाद है ...........
- हा हा हा, अरे आर्शिवाद तो उपर वाले का है पगले, हॉं यार दस कूपन भिजवा देना मेरे आफिस, आई जी साहब की फेमिली आना चाहती है
- ओके सर, बिल्कुल भिजवाता हूं .........
- ओके, बाय
- बाय
सुबह की चाय से चालू इस तरह के कई फोन आते हैं पोस्ट भर बदल जाते हैं, शाम को जब एंट्री कूपन का हिसाब मिलातें हैं तो पता चलता है सत्तर प्रतिशत कूपन तो ऐसे ही फोन के चलते निकल गये है । अब निकालो विज्ञापन , सजावट, डीजे, आर्केस्ट्रा, इनामों व कूपनों का खर्च और मना लो नया साल नाचते गाते हुए ।
नये साल की सुबह सब खुमारी में देर तक सोते हैं पर फोन रिसीव करने वाले को तो अपना दिमाग व फोन चालू ही रखना है, फोन रिसीव करने वाले को एक और फोन आता है उसकी भी बानगी देखें -
- कैसे रहा
- गुड मार्निंग सर, हैप्पी न्यू ईयर सर, ठीक रहा सर
- हूँ ........., क्या रहा हिसाब
- सर इस साल फलाने ढेकाने व सेकाने साहब नें मुफ्त कूपन मंगा लिया था, और होटल भी तो ढेरों नये खुल गये हैं ना सो ग्राहक भी नहीं आये, बीस हजार का घाटा रहा सर, पर सर हमारा विज्ञापन तो हुआ ही है, इसे विज्ञापन खर्च मान लें, हा हा हा
- क्या खाक मान ले, हद हो गई, सफेद हाथी पाल लिया हूं मैं, हर साल तुम लोगों से यही सुनता हूं, क्या कोई अवैध काम करते हो तुम लोग होटल में, जो इन लोगों पर फोकटिया लुटाते हो ।
उधर से फोन काट दिया जाता है, फोन सुनने वाला घिघियाते रहता है ।

पिछले चार पांच सालों के इस कडुए अनुभव नें फोन रिसीव करने वाले को सिखा दिया है कि 31 दिसम्बर को फोन बंद रखा जाए । इस साल फोन रिसीव करने वाले नें अपना फोन बंद रखा, विज्ञापन भी पूरी तरह से अपनी प्रबंधन कुशलता को बापरते हुए हिसाब से दिया, मुफ्तिया कूपन भी बीस परसेंट ही बांटे पर मंदी और दारू की 'चलन' के चलते इस साल भी उसे नये वर्ष की सुबह वही फोन आया और देर तक घिघियाना पडा ।
समाचार पत्र वाले भविष्य के विज्ञापनों की चापलूसी में 15 दिसम्बर से लगातार 2 जनवरी तक शहीदों के नामों का उल्लेख कर रहे हैं पर मुस्किल यह है कि इस पब्लिसिटी से मुफ्तिया फोन किसे किया जाय यह पता चल रहा है । फोन रिसीव करने वाले की स्थिति भय गति सांप छुछंदर केरी की तरह उगलत बनत न खात घनेरी की होती है जो पूरे साल बनी ही रहती है । और तब 'गधा जब धांस से दोस्ती कर लेगा तो खायेगा क्या' मुहावरे का अर्थ भी समझ में आ जाता है । सुनने में आया है कि फोन रिसीव करने वाला अब नये साल के आयोजनों का घोर विरोधी हो गया है ।
बहरहाल, बाकी सब ठीक है,
आप सभी को अंग्रेजी नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं सहित .....
संजीव तिवारी