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जनवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

पंथी का दैदीप्‍यमान सितारा: राधेश्याम बारले Dr R S Barle

विश्व के सबसे तेज नृत्य के रूप में प्रतिष्ठित छत्‍तीसगढ़ के लोक कला पंथी नृत्य के ख्‍यात नर्तक पंथी सम्राट स्व. देवदास बंजारे के साथ डॉ. आर.एस. बारले का नाम देश-विदेश में चर्चित है। सतनामी समाज के धर्म गुरू परम पूज्य गुरु बाबा घासीदास जी ने संपूर्ण मानव समाज को सत्य, अहिंसा, भाईचारा, सद्भावना, प्रेम, दया, करुणा, विश्व बंधुत्व के साथ-साथ 'मनखे-मनखे एक समान' जैसे अद्भुत संदेश दिया है। इन्‍होंनें छुआछुत भेदभाव को मिटाकर संपूर्ण मानव में सत्य का रास्ता दिखाया है। समाज नें बाबा के इन्‍हीं संदेशों को भावभक्ति से पंथीनृत्य के माध्यम से प्रचार प्रसार किया, कालांतर से यह नृत्य प्रदेश के लोकमंच का सिरमौर बना हुआ है। राधेश्याम बारले  लगभग साढ़े चार सौ साल पुरानी विधा, इस पारम्पारिक लोकनृत्य की साधना में विगत 40 वर्षो से साधना रत हैं एवं इसे आगे बढ़ाने हेतु कृतसंकल्पित हैं। राष्ट्रीय चेतना के विकास मे लोक गीतों उवं नृत्यों की अहम भूमिका रही है। छत्‍तीसगढ़ का पंथी लोक नृत्य गीत लोक जीवन का ऐसा महाकाव्य है जिसमें जीवन धारा के साथ ही अंलकारो की मधुर झंकार भी है। पंथी गीत नृत्य मे