भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष: संवेदनाओं से भरे कलाकार थे कामरेड ए.के.हंगल

                   विनोद साव

हिदी फिल्मों के चरित्र अभिनेता ए.के.हंगल नहीं रहे। एक ऐसे दिन में उनका अवसान हुआ जब चंद्रमा पर सबसे पहले जाने वाले अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग भी यह दुनियॉं छोड़ गए। ए.के.हंगल ऐसे समय में कूच कर गए हैं जब हम भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष मना रहे हैं। सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ सबसे ज्यादा सोलह फिल्मों में अभिनय करने वाले जीवंत अभिनेता अवतार वीनित किशन हंगल राजेश खन्ना के तुरंत बाद ही हमसे बिदा हो गए, ‘शोले’ में कहे गए अपने संवाद की तरह ‘इतना सन्नाटा क्यों है भई।’ ...और अपने पीछे वे सन्नाटा छोड़ गए। साथ ही उस सन्नाटे को बढ़ा गए जो देव आनंद और राजेश खन्ना के गुजर जाने के बाद पसरा पड़ा सन्नाटा है। मेगा हिट ‘शोले’ में ए.के.हंगल की भूमिका सबसे छोटी थी, कुछ मिनटों की लेकिन सबसे यादगार असर उन्हीं के अभिनय ने छोड़ा था, अपनी खास संवाद अदायगी और भाव प्रवण चेहरे से। इस फिल्म में उन्होंने बमुश्किल तीन चार संवाद बोले थे लेकिन उनके बोले गए हर संवाद दर्शकों के दिलों को छू गए थे। कुछ तो दर्शकों को रुला भी गए हैं। जब नमाज के लिए जाते हुए उन्हें यह खबर मिलती है कि उनका नवजवान बेटा डाकुओं के हाथों मारा गया है तब वे कहते हैं कि ‘जाता हूं ... आज अल्ला से पूछूंगा कि इस गॉंव में शहीद होने के लिए मुझे दो चार औलादें और क्यों नहीं दीं!’


फिल्मों में ए.के.हंगल की उपस्थिति एक बेहद संवेदनशील उपस्थिति होती थी। एक ऐसी उपस्थिति जिसमें एक जिम्मेदार किरदार खड़े होता था। एक ऐसा चरित्र जो महज एक पारिवारिक व्यक्ति नहीं है बल्कि गहन और व्यापक सरोकारों से जुड़ा हुआ जिम्मेदार इंसान है। चाहे वह शोले का मौलवी हो, नमकहराम का यूनियन लीडर हो, बावर्ची का पारिवारिक व्यक्ति हो या फिर ‘शौकीन’ का अपनी उम्र को दरकिनार कर रहा शौकीन मिजाज इंसान हो - हर कहीं उनकी उपस्थिति दर्शकों को छू लेती थी। ऐसा लगता था कि वे अभिनय कर नहीं रहे हों केवल कैमरे के सामने अपने को प्रस्तुत कर रहे हों। इस मामले में रंगीन फिल्मों के दौर के दो अभिनेता ओम पुरी और ए.के.हंगल एक समान प्रभाव छोड़ते हैं। एक सामान्य और संजीदा आदमी की तरह अभिव्यक्ति देते हुए अपने चरित्रों को जी लेने की काबिलियत इनमें रही है।

इसका एक बड़ा कारण यह है कि हंगल थियेटर की दुनियॉं से आए थे। इसलिए उनके अभिनय में एक किसम की सहृदयता दिखा करती थी। वे अपनी भूमिकाओं को हृदय से जीते थे और इसलिए एकदम स्वाभाविक अभिनय करते थे। वे पेशावर के उसी हिस्से से आए थे जिसने बम्बई फिल्म उद्योग को महान हस्तियॉं दी थीं। हंगलजी को भी वर्ष 2006 में fहंदी फिल्मों में उनके योगदान के लिए पद्मभूषण से नवाजा गया था।


ए.के.हंगल स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, यूनियन लीडर थे, इप्टा के आजीवन सदस्य एवं अंतिम समय तक राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। वे जब पेशावर से इक्कीस बरस की उम्र में मुबई पहुॅचे तब उनकी जेब में भी उतने ही रुपये थे जितनी कि उनकी उम्र थी। वे भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के सक्रिय सदस्य रहे और अपनी आजीविका चलाने के लिए उनके लिए दर्जी का काम किया। जिस तरह का अभाव और संघर्षमय जीवन जीया वैसा ही अभिनय किया। उनकी पृष्ठभूमि और उनके व्यक्तित्व और अभिनय क्षमता को देखते हुए उनका सबसे सही उपयोग ऋषिकेश मुखर्जी ने अपनी फिल्म ‘नमक हराम’ में किया था। इसमें वे एक ईमानदार यूनियन लीडर की भूमिका में थे जिनके साथ राजेश खन्ना की टकराहट होती है और यूनियन के चुनाव में हंगल की हार होती है। इस फिल्म में हंगल के घर में महान श्रमिक नेताओं और विचारकों के चित्र लगे थे जिनमें माक्स, लेनिन के साथ व्ही.व्ही.गिरी के चित्र भी दीवालों पर टॅगे दिखलाए गए हैं। गिरी देश के पहले राष्ट्रपति थे जो कभी मजदूर नेता थे। ऋषिकेश मुखर्जी जैसे विचारवान और कल्पनाशील निर्देशक ही इस तरह का फिल्मांकन कर पाते हैं। इस फिल्म की कहानी तब के यूनियन नेताओं और उद्योगपतियों के बीच टकराहट से उपजी मशीनबंदी पर आधारित थी। तब बंबई के कपड़ा मिलों में दत्ता सावंत के दौर में उपजे यूनियन आंदोलनों में कैसा बहकाव आया था और किन स्थितियों में कपड़े मिल बंद हो गए थे और लाखों मजदूरों के सामने पेट भरने की कैसी विकराल समस्या आ गई थी इन सबको आधार बनाकर रची गई कहानी का बड़ा प्रभावशाली फिल्मांकन हुआ है।


दर्शकों की संवेदना को झकझोर देने वाली अपनी भूमिकाओं के बाद भी ए.के.हंगल फिल्मों को ‘शो-बिजनेस’ का एक बड़ा क्षेत्र माना करते थे। अपनी आत्मकथा ‘ए.के.हंगल का जीवन और समय’ में उन्होंने कहा है कि ‘फिल्मों को लेकर मेरी कोई बहुत महत्वाकांक्षा कभी नहीं रही किन्हीं परिस्थितियों में मैं यहॉं आ गया और एक लम्बा समय यहॉं गुजारने के बाद भी मैं यहॉं किसी आउटसाइडर की तरह ही रहा।’ यह वही संकट है जो थियेटर की दुनियॉं से आए बेहद परिपक्व कलाकारों के सामने होती है। कुछ इसी तरह का संकट कलकत्ता से आए उत्पलदत्त के सामने भी था और वे अपनी जरुरतें पूरी करने के बाद बंबई फिल्मोद्योग को छोड़ फिर कलकत्ता बस गए थे और सामान्य जीवन जीने लग गए थे।


ए.के.हंगल इप्टा से जुड़े होने के कारण निरंतर सक्रिय रहे। वे प्रलेस तथा इप्टा के आयोजनों में आते जाते थे। कभी बिलासपुर आए तो कभी रायपुर पहुंचे। भिलाई इप्टा के कलाकार बताते हैं कि पिछले साल इप्टा के राष्ट्रीय अधिवेशन को मुंबई के बदले में भिलाई करवाने की पहल हंगल ने खुद की थी ‘यह कहते हुए कि मुंबई महानगरी है यहॉं सम्मेलन अधिवेशन होते रहते हैं इस बार अधिवेशन भिलाई में होना चाहिए।’ 98 वर्षीय हंगल अस्वस्थ थे भिलाई के अधिवेशन में वे नहीं आ सके तो उनका सचित्र संदेश आया जिसमें बोलते हुए उन्हें एल.सी.डी.पर दिखाया गया। अशक्त होने के बाद भी अपने कामरेडी जोश में वे बोल रहे थे कि ‘मुझसे पहले भी यह दुनियॉं थीं, और मेरे बाद भी यह दुनियॉं रहेगी और एक बेहतर दुनियॉं के लिए हमारे लिए लड़ाई जारी रहेगी।’




20 सितंबर 1955 को दुर्ग में जन्मे विनोद साव समाजशास्त्र विषय में एम.ए.हैं। वे भिलाई इस्पात संयंत्र में प्रबंधक हैं। मूलत: व्यंग्य लिखने वाले विनोद साव अब उपन्यास, कहानियां और यात्रा वृतांत लिखकर भी चर्चा में हैं। उनकी रचनाएं हंस, पहल, ज्ञानोदय, अक्षरपर्व, वागर्थ और समकालीन भारतीय साहित्य में भी छप रही हैं। उनके दो उपन्यास, चार व्यंग्य संग्रह और संस्मरणों के संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है। उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं। वे उपन्यास के लिए डॉ. नामवरसिंह और व्यंग्य के लिए श्रीलाल शुक्ल से भी पुरस्कृत हुए हैं। आरंभ में विनोद जी के आलेखों की सूची यहॉं है।
संपर्क मो. 9407984014, निवास - मुक्तनगर, दुर्ग छत्तीसगढ़ 491001
ई मेल -vinod.sao1955@gmail.com

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...