हिन्दी ब्लाग प्रवेशिका 3 : ब्लाग टूल

आपने देखा होगा कि कई ब्‍लागर अपने ब्‍लाग के साईडबार में विभिन्‍न टूल का प्रयोग करते हैं जिससे उन्‍हें अपने ब्‍लाग के प्रमोशन में सहायता मिलती है वहीं उन टूलों से ब्‍लाग की सजावट भी हो जाती है । आज हम नये ब्‍लागर्स के लिये ब्‍लाग प्रमोशन के कुछ टूलों के संबंध में जानकारी प्रदान कर रहे हैं -


ब्‍लाग का पंजीकरण : ब्‍लाग निर्माण एवं उस पर पठनीय सामाग्री डालने के बाद भी यह आवश्‍यक नहीं होता कि पाठक आपके ब्‍लाग तक सीधे यूआरएल टाईप कर के आयें । इसके लिए हमें लोकप्रिय फीड एग्रीगेटरों में पंजीकरण कराना आवश्‍यक होता है क्‍योंकि ज्‍यादातर पाठक इन्‍हीं फीड एग्रीगेटर वेबसाईटों के माध्‍यम से आपके ब्‍लाग तक पहुचते हैं । अंग्रेजी ब्‍लागों के लिए ढेरों फीड एग्रीगेटर व ब्‍लाग डायरेक्‍ट्री मौजूद हैं किन्‍तु हिन्‍दी ब्‍लागों के लिए अभी बहुत कम ब्‍लाग फीड एग्रीगेटर हैं । आप नीचे दिये गये फीड एग्रीगेटरों के वेबसाईटों में जाकर वहां दिये गये पंजीयन प्रक्रिया को पूर्ण कर अपने ब्‍लाग का पंजीयन करा सकते हैं -


http://narad.akshargram.com

http://unmukt.tumblr.com

http://chitthajagat.in

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http://hindiblogs.com

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हो सकता है इसके अतिरिक्‍त भी हिन्‍दी के फीड एग्रीगेटर मौजूद हो तो कृपया हमें टिप्‍पणी के माध्‍यम से अवगत करायें ।


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हम आपको हर तकनीक हाथ पकड कर नहीं सिखा सकते और न ही हमारे पास स्‍वयं इतना समय है कि आप सभी के ब्‍लाग को व्‍यक्तिगत रूप से उपकरणों से सक्षम बना सकें । आपसे अनुरोध है कि अभ्‍यास करते रहें हमने भी ब्‍लागिंग किसी स्‍कूल या संस्‍था से नहीं सीखी है, भारतीय ‘जुगाड’ और छत्‍तीसगढिया ‘काडी’ पद्धति से आज भी सीखने का क्रम जारी है ।

संजीव तिवारी

भूमकाल : बस्तर का मुक्ति संग्राम

भारत स्‍वतंत्रता आन्‍दोलन की 150 वीं वर्षगांठ मना रहा है । भारत के कोने कोने से 18 वीं सदी में अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में उठी चिंगारियों से देश रूबरू हो रहा है । नृत्‍य, नाटिका, कविता, लेख व कहानियों के द्वारा इस महान व पवित्र संग्राम की गाथाओं को प्रस्‍तुत किया जा रहा है और हम पूर्ण श्रद्धा से उन अमर सेनानियों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्‍यक्‍त कर रहे हैं । छत्‍तीसगढ की धरती भी इस स्‍वतंत्रता आंदोलन के महायज्ञ में अपनी आहुति देती रही जिसके संबंध में इन दिनों लगातार लिखा गया और राज्‍य के श्रेष्‍ठ मंच निर्देशकों के द्वारा इसे मंचस्‍थ भी किया गया ।

17 वीं एवं 18 वीं सदी के छत्‍तीसगढ की हम बात करें तो यह बहुसंख्‍यक आदिवासी जनजातियों का गढ रहा है और धान, खनिज व वन संपदा से भरपूर होने के कारण अंग्रेज सन् 1774 से लगातार इस सोन चिरैया पर आधिपत्‍य जमाने का प्रयास करते रहे हैं जिसमें आदिवासी, वन व खनिज बाहुल्‍य बस्‍तर अंचल का भूगोल भी रहा है जहां की भौतिक, आर्थिक व सामाजिक परिस्थितियों नें ‘परदेशियों’ को आरंभ से ललचाया है । बस्‍तर वनांचल क्षेत्र रहा है जहां सदियों से पारंपरिक जनजातियां मंजरों, टोलों व गांवों में शांति के साथ निवास करती रही है । काकतीय नरेशों व पारंपरिक देवी दंतेश्‍वरी की उपस्थिति इस सुरम्‍य वनांचल की अस्मिता रही है एवं ये आदिवासी दैवीय सत्‍ता के प्रतिरूप के रूप में राजा को अपना सबकुछ मानते रहे हैं । परम्‍पराओं के अनुसार उनके लिये राजा के अतिरिक्‍त किसी और की सत्‍ता स्‍वीकार्य नहीं रही है ऐसे में वे हर घुसपैठ का जमकर मुकाबला करने को सदैव उद्धत रहे हैं । आदिवासी अस्मिता में चोट के कारण उस सदी में लगभग दस विद्रोह हुए थे जिनमें भूमकाल का विद्रोह जनजातीय इतिहास में एक अविस्‍मरणीय विद्रोह था ।


आईये हम उस समय में बस्‍तर अंचल की स्थितियों पर एक नजर डालें । 17 वीं सदी के मध्‍य तक काकतीय नरेश बस्‍तर क्षेत्र में अपनी राजधानी दो तीन जगह बदलते हुए जगदलपुर में अपनी स्‍थाई राजधानी बना कर राजकाज करने लगे थे प्रजापालक राजाओं से जनता प्रसन्‍न थी । सन् 1755 में नागपुर के मराठों नें छत्‍तीसगढ के सभी क्षेत्रों में मराठा सत्‍ता कायम कर लिया तब अन्‍य गढो सहित बस्‍तर के राजाओं से अधिकार छीन लिये थे । इस प्रकार से बस्‍तर के भी राजा नाममात्र के सील ठप्‍पा ही रह गये थे । इधर संपूर्ण भारत में धीरे धीरे पैर जमाती ईस्‍ट इंडिया कम्‍पनी नें सन् 1800 में रायगढ राज में अपना घुसपैठ कायम कर छत्‍तीसगढ में अंग्रेजी सत्‍ता का ध्‍वज फहरा दिया था । इसके बाद के वर्षों में अंग्रेजों की कुत्सित मनोवृत्ति नें विरोध व विद्रोहों का निर्ममतापूर्वक दमन करते हुए सन् 1891 तक छत्‍तीसगढ के अन्‍य गढों में भी अपना कब्‍जा कर लूट खसोट के धंधे को मराठों से छीन लिया था ।


पहले ही बतलाया जा चुका है कि बस्‍तर में अंग्रेजी हुकूमत एवं आताताईयों के विरूद्ध लगभग नव विद्रोह हो चुके थे । बारंबार विद्रोहों के कुचले जाने के कारण स्‍वाभिमान धन्‍य शांत आदिवासी अपनी अस्मिता के लिये उग्र हो चुके थे उनके हृदय में ज्‍वाला भडक रही थी । ऐसे समय में 1891 में अंग्रेज शासन के द्वारा बस्‍तर का प्रशासन पूर्ण रूप से अपने हाथ में लेते हुए तत्‍कालीन राजा रूद्र प्रताप देव के चाचा लाल कालेन्‍द्र सिंह को दीवान के पद से हटाकर पंडा बैजनाथ को बस्‍तर का प्रशासक नियुक्‍त कर दिया गया । पंडा बैजनाथ के संबंध में यह कहा जाता है कि वह एक बुद्धिमान व दूरदर्शी प्रशासक था उसने तत्‍कालीन राजधानी जगदलपुर का मास्‍टर प्‍लान बनाया था एवं बस्‍तर में विकास के लिये विभिन्‍न जनोन्‍मुखी योजना बनाकर उसे प्रशासनिक तौर पर कार्यान्वित करवाने लगा था ।


इन योजनाओं के कार्यान्‍वयन में अंग्रेजी हुकूमत के कारिंदों के द्वारा आदिवासियों पर जम कर जुल्‍म ढाये गये । अनिवार्य शिक्षा के नाम पर आदिवासियों के बच्‍चों को जबरन स्‍कूल में लाया जाने लगा एवं विरोध करने पर दंड दिया जाने लगा । सुरक्षित वन के नियम के तहत् जंगल पर आश्रित आदिवासियों को अपने ही जल जंगल व जमीन से हाथ धोना पड रहा था या भारी भरकम जंगल कर देना पड रहा था । लेवी एवं अन्‍य करों का भार बढ गया था विरोध करने पर अंग्रेजी हुक्‍मरानों के द्वारा बेदम मारा जाता था एवं कारागारों में डाल दिया जाता था । पंडा बैजनाथ के द्वारा तदसमय में शराब बंदी हेतु बनाये नियमों के तहत् शराब विक्रय को केन्‍द्रीकृत करने ठेका देने व घर घर शराब निर्माण को बंद कराने का आदेश पारित किया गया था, आदिवासियों की मान्‍यता के अनुसार उनके बूढा देव को शराब का चढावा चढता था एवं वे उसे प्रसाद स्‍वरूप ग्रहण करते थे ऐसे में उन्‍हें लगने लगा कि उनके देव के साथ, उनकी धर्मिक मान्‍यताओं के साथ खिलवाड किया जा रहा है । पंडा बैजनाथ के द्वारा प्रशासनिक ढांचा तैयार करने के उद्देश्‍य से बस्‍तर के बडे गांव एवं छोटे नगरों में पुलिस व राजस्‍व अधिकारियों की नियुक्तियां की गई एवं वे कर्मचारी आदिवासियों की सेवा करने के स्‍थन पर उनका शोषण ही करते गये । कुल मिला कर बस्‍तर की रियाया पंडा बैजनाथ के प्रशासन से त्रस्‍त हो गई थी । उपलब्‍ध जानकारियों के अनुसार बस्‍तर का यह मुक्ति संग्राम पूर्णत: पंडा बैजनाथ के विरूद्ध ही केन्द्रित रहा है ।


इसके साथ ही अन्‍य परिस्थितियों में बस्‍तर को लूटने के उद्देश्‍य से ‘हरेया’ बाहरी लोगों का बेरोकटोक बस्‍तर आना जाना रहा है, अंग्रेजों के द्वारा मद्रास रेसीडेंसी से बस्‍तर प्रशासन को सहयोग करने के कारण मद्रास रेसीडेंसी के ‘तलेगा’ के लोग क्रमश: बस्‍तर आकर बसने लगे थे एवं प्रशासन से साठ गांठ कर के आदिवासियों की जमीन हडपकर खेती और वनोपज पर अपना कब्‍जा जमाने लगे थे और गरीब भोले आदिवासियों से बेगारी कराने लगे थे । एक तो आदिवासियों से उनकी जमीन वन नियम के तहत् छीनी जा रही थी दूसरे तरफ मद्रास के लोग वन भूमि पर कब्‍जा करते जा रहे थे और आदिवासी अपने ही खेतों व जंगलों में बेगारी करने को मजबूर थे । बस्‍तर में खनिज, वनोपज का लूट खसोट आरंभ हो चुका था । ‘बाहरी’ ‘परदेशी’ बस्‍तर के अंदर भाग तक पहुच कर संपदा का दोहन करने लगे थे । आदिवासियों के मन में इस दमन व शोषण के विरूद्ध क्रोध पनपने लगा था ।


उस समय की राजनैतिक परिस्थितियों के संबंध में जो अटकलें लगाई जाती हैं उसके अनुसार राजा भैरम देव के उत्‍तराधिकारी नहीं रहने व जीवन के अंतिम काल में पुत्र रूद्र देव प्रताप सिंह देव के पैदा होने के कारण जगदलपुर के राजनैतिक परिस्थितियों में उबाल आने लगा था या कृत्तिम तौर पर इसे हवा दिया जा रहा था । राजा भैरमदेव के भाई लाल कालेन्‍द्र सिेह का बस्‍तर में भरपूर सम्‍मान रहा । वह विद्वान एवं आदिवासियों पर प्रेम करने वाला सफल दीवान रहा । संपूर्ण बस्‍तर राजा भैरमदेव से ज्‍यादा लाल कालेन्‍द्र सिंह का सम्‍मान करती थी । तत्‍कालीन राजा भैरमदेव के दो दो रानियों के बावजूद कोई संतान हो नहीं रहे थे ऐसे में लाल कालेन्‍द्र सिंह के मन में यह बात रही हो कि भावी सत्‍ता उसके हाथ में ही होगी यह उनका पारंपरिक अधिकार भी था किन्‍तु रानी के गर्भवती हो जाने पर अपने स्‍वप्‍न को साकार होते न देखकर लाल कालेन्‍द्र सिंह के कुछ आदिवासी अनुयायियों नें यह फैलाना चालू कर दिया कि रानी का गर्भ अवैध है एवं कुंअर रूद्र देव प्रताप सिंह में राजा के अंश न होने के कारण वह भावी राजा बनने योग्‍य नही है उसके इन बातों का समर्थन एक और रानी सुबरन कुंअर नें किया और दबे जबानों से आदिवासियों की भावनाओं को वैध अवैध का पाठ पढाया जाने लगा । परिस्थितियों नें राजा रूद्र प्रताप देव के विरूद्ध असंतोष को हवा दिया और आदिवासियों का साथ दिया । लाल कालेन्‍द्र सिंह एवं रानी सुबरन कुंअर नें आदिवासी जनता पर इतना प्रभाव जमा लिया था कि किशोर कुंअर रूद्र प्रताप सिंह राजा घोषित होने के बाद भी इन दोनों से डरता था । और वह समय भी आ गया जब लाल कालेन्‍द्र सिंह को दीवान के पद से हटा दिया गया और अंग्रेजों के द्वारा नियुक्‍त प्रशासक पंडा बैजनाथ बस्‍तर का दीवान घोषित हो गया । पूर्व दीवान लाल कालेन्‍द्र सिंह व रानी सुबरन कुंअर की राजनैतिक महत्वाकांक्षा को विराम लगा दिया गया, आदिवासियों को य‍ह अनकी अस्मिता पर कुठाराघात प्रतीत हुआ ।


उपरोक्‍त सभी परिस्थितियां एक साथ मिलकर भूमकाल विद्रोह की भूमिका रच रहे थे । बारूद तैयार था और उसमें आग लगाने की देरी थी और यह काम किया लाल कालेन्‍द्र सिंह, कुंअर बहादुर सिंह, मूरत सिंह बख्‍शी, बाला प्रसाद नाजीर के साथ में थी रानी सुबरन कुंअर । इन सभी नें मुरिया एवं मारिया व घुरवा आदिवासियों के हृदय में अंग्रेजी हुकूमत प्रत्‍यक्षत: पंडा बैजनाथ के विरूद्ध नफरत को और बढाया एवं इस नफरत नें माडिया नेता बीरसिंह बेदार और घुरवा नेंता गुंडाधूर को विप्‍लव की नेतृत्‍व सौंप दी ।


बेहद प्रभावशाली व्‍यक्तित्‍व के गुंडाधूर नें भूमकाल विद्रोह के लिये आदिवासियों को संगठित करना आरंभ किया । सभी वर्तमान शासन से त्रस्‍त थे फलत: संगठन स्‍वस्‍फूर्त बढता चला गया । इस संबंध में अपने पुस्‍तक ‘बस्‍तर इतिहास व संस्‍कृति’ में लाला जगदल पुरी बतलाते हैं कि गुंडाधूर नें इस क्राति का प्रतीक आम के डंगाल पर लाल मिर्च को बांध कर तैयार किया ‘डारा मिरी’ । यह ‘डारा मिरी’ आदिवासियों के मंजरा, टोला, गांवों में भरपूर स्‍वागत होता एवं आदिवासी इस क्राति की स्‍वीकृति स्‍वरूप इस ‘डारा मिरी’ को आगे के गांव में लेजाते थे । इस पर बस्‍तर के एक और विद्वान जो इन दिनों भोपाल में रहते हैं एवं बस्‍तर विषय पर ढेरों किताबें लिखी हैं, डॉ. हीरालाल शुक्‍ल अपनी किताब ‘छत्‍तीसगढ के जनजातीय इतिहास’ में लिखते हैं कि क्रांति के प्रतीक के रूप में गुंडाधूर के कटार को पूरे बस्‍तर में घुमाया गया, जहां वो कटार जाता था जन समूह गूंडाधूर के समर्थन में साथ देते थे । यह कटार सुकमा के जमीदार के दीवान जनकैया के पास से आगे नहीं बढ पाया क्‍योंकि वह अंग्रेजों का चापलूस था । उसने इस विद्रोह के बढते चरणों की सूचना अंग्रेजी हुकूमत को भेज दी तब तक लगभग 13 फरवरी 1910 तक राजधानी जगदलपुर सहित दक्षिण पश्चिम बस्तर का संपूर्ण भू भाग गुंडाधुर के समर्थकों के कब्जे में हो चुका था । मुरिया राज की स्‍थापना के इस शंखनाद के क्रमिक घटनाक्रम का उल्‍लेख लाला जगदलपुरी अपनी कृति ‘बस्‍तर इतिहास एवं संस्‍कृति’ में करते हुए कहते हैं कि 2 फरवरी से यह विद्रोह अपनी उग्रता में आता गया इस दिन पूसापाल बाजार भरा था, क्रांतिकारियों की भीड नें मुनाफाखोर व्‍यापारियों को भरे बाजार मारा पीटा और उनका सारा सामान लूट लिये उसके बाद 4 फरवरी को कूकानार में दो आदिवासियों नें एक व्‍यापारी की हत्‍या कर दी, 5 फरवरी करंजी बाजार लूट लिया गया । अब तक बस्‍तर में आदिवासियों के द्वारा अंग्रेजी हुक्‍मरानों, व्‍यापारियों जो आदिवासी शोषक थे की जमकर धुनाई होने लगी थी । संचार साधनों व सरकारी इमारतें विरोध स्‍वरूप ध्‍वस्‍त किया जाने लगा था । राजा रूद्र देव प्रताप सिंह स्थिति का सामना करने में असमर्थ थे । बडी मुश्किल से 7 फरवरी को राजा का तार रायपुर पहुंचा तब अंग्रेजों को इस विद्रोह के संबंध में पता चला ।


भीड हर जगह पंडा बैजनाथ को ढूढ रही थी, पंडा अपनी जान बचाते लुकते छिपते रहा । 9 फरवरी को उग्र भीड नें तीन पुलिस वालों को मार डाला । 10 फरवरी को पंडा के अनिवार्य शिक्षा के दबाव एवं पालकों पर जुर्म के विरोध में मारेंगा, तोकापाल और करंजी स्‍कूल जला दिये गये । यह क्रम 16 फरवरी तक चलता रहा, फिर रायपुर व मद्रास रेसीडेंसी से सैन्‍य सहायता पहुचनी आरंभ हो गई थी । अंग्रेज पुलिस अधीक्षक गेयर का मुठभेड खडकाघाट में उग्र क्रांतिकारियों की भीड से हो गया, गेयर के द्वारा भीड पर गोली चलाने का आदेश दे दिया गया जिसमें सरकारी आकडों के अनुसार पांच व गैरसरकारी आंकडों के अनुसार सैकडों आदिवासी मारे गये । गेयर के अंग्रेजी सेना के दबाव में क्रांति कुछ दब सा गया एवं 22 फरवरी तक सभी मुख्‍य 15 क्रांतिकारी नेता गिरफ्तार कर लिये गये । नेताओं की गिरफ्तारी के बाद आंदोलन फिर उग्र हो गया 26 फरवरी को 511 छोटे बडे आंदोलनकारी गिरफ्तार कर लिये गये और सभी को सरेआम बेदम होते तक मारा गया और छोड दिया गया ताकि अंग्रेजों का दबदबा बना रहे किन्‍तु विद्रोह न दब सका । सरकारी गोदाम लूटे जाने लगे, छोटे नगरों और कस्‍बों के कैदखानों में बंद कैदियों को छुडा लिया गया । जंगल कानून से त्रस्‍त व परदेशियों के नाम आदिवासियों की जमीन चढा देनें एवं राजस्‍व अभिलेखों में गडबडी करने वाले पटवारियों को चौंक चौराहों में लाकर पीटा गया और उनके पीठ को नंगा कर छूरी के नोक से उसमें नक्‍शे बनाये गये ।


अंग्रेजी हुकूमत नें आदिवासियों के इस विद्रोह को दबाने में अपनी रायपुर व मद्रास रेसीडेंसी की सेना के साथ ही घुडसवार पुलिस व पंजाब बटालियन को भी लगा दिया पर स्‍वस्‍फूर्त संगठित आदिवासियों का समूह अलग – अलग स्‍थानों पर छापामार गुरिल्‍ला युद्ध के तरीकों को अपनाते हुए भारी संख्‍या में अपने पारंपरिक पोशाकों व तीरों से लैस होकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ प्रदर्शन व तोडफोड - आगजनी आदि करने लगते थे और अंग्रेजी सेना के आने तक जंगल में गुम हो जाते थे । अंग्रेज इस लम्‍बी लडाई से त्रस्‍त हो चुके थे ।


25 मार्च 1910 तक यह क्रम चलता रहा । गूंडाधूर शोषित व अत्‍याचार से दमित मूल आदिवासियों के क्रांतिकारी समूह का नेतृत्‍व करता रहा । क्रांतिकारी अपने विजय यात्रा में बढते हुए नेतानार नामक गांव में इकट्ठे हुए यहां अश्‍त्र शस्‍त्र भी इकट्ठे किये गये । कुटिल अंग्रेजों नें आदिवासियों के बीच के ही एक आदिवासी सोनू मांझी को तोड लिया । सोनू मांझी नें अपने ही भाईयों के साथ गद्दारी की, क्रांतिकारियों की सभी सूचनायें अंग्रेजों को देने लगा । उसने 25 मार्च को नेतानार में भारी संख्‍या में क्रांतिकारियों के इकट्ठे होने की सूचना भी अंग्रेजों को दी । अंग्रेजों नें चाल चली वहां प्रशासन के द्वारा सोनू मांझी के सहयोग से भारी मात्रा में शराब व मांस पहुंचाया गया (एने सोनू मांझी बिचार करला/दुई ढोल मंद के नेई देला/चाखना काजे बरहा पीला/अतक जाक के रूढांई देला/सेमली कोनाडी नेला/सोनू मांझी – र अकल निरगम मारला)। लंबे युद्ध के कारण आदिवासी थक गये थे ऐसे में उनका प्रिय पेय भारी मात्रा में मिला तो वे अपना संयम खो बैठे । सभी क्रातिकारियों नें छक कर शराब का सेवन किया और बेसुध हो गये (मंद के दखि करि सरदा हेलाय/बरहा पीला के पोडाई देलाय/मंद संग काजे चाखना करलाय/खाई देलाय हांसि माति/गोठे बाती होई निसा धरि गला/अदगर कुप राति/निसा धरबा के पडला सोई/तीर धनु-कांड भाटा ने ठोई/अतक गियान तिके खंडकी ना रला/मातलाय बुध गुपाई) ऐसे ही समय में सोनू मांझी नें अंग्रेजों की सेना को सूचित किया अंग्रजों नें नेतानार में आक्रमण कर दिया । आदिवासी मुकाबला कर नहीं सके, अंग्रेजी सेना की बंदूकें गरज उठी लडखडाते कदमों व थरथराते हांथों नें तीर कमान तो थामा पर वे मारक वार कर न सके । सैकडों की संख्‍या में आदिवासी पुरूष व महिला क्रातिवीरों का शरीर गोलियों से छलनी होकर नेतानार में कटे पेडों की भांति गिरने गला, धरती खून से लाल हो गई । अंग्रेजों के बंदूकों नें बस्‍तर के मुक्ति संग्राम को नेतानार में सदा सदा के लिये मौत की नीद सुला दिया । भूमकाल के अनगिनत स्‍वतंत्रता के परवाने इस मुक्ति संग्राम की ज्‍वाला में भस्‍म हो गये जिनका नाम तक लोगों के जुबान में नहीं है यही वे सपूत थे जो कलसों की स्‍थापना के लिये संग्राम करते रहे ऐसे ही कंगूरों से स्‍वतंत्र भारत की इमारत खडी हो सकी ।


आलेख एवं प्रस्‍तुति -

संजीव तिवारी

(संदर्भ ग्रंथ : बस्‍तर इतिहास एवं संस्‍कृति – लाला जगदलपुरी, छत्‍तीसगढ का जनजातीय इतिहास – डॉ.हीरालाल शुक्‍ल, आई प्रवीर दि आदिवासी गॉड – महाराजा प्रवीर चंद भंजदेव, मारिया गोंड्स आफ बस्‍तर – डब्‍्ल्‍यू व्‍ही ग्रिग्‍सन, बस्‍तर एक अध्‍ययन – डॉ.रामकुमार बेहार व विभिन्‍न पत्र-पत्रिकायें)

यह लेख स्थानीय लघु पत्रिका 'इतवारी' के 15 जून 2008 के अंक में प्रकाशित हुआ है, इसका ई - संस्करण आप यहां देख सकते हैं पेज क्र. 27 , 28 , 29 , 30 , 31 , 32 , 33

पत्रकारिता व साहि‍त्य के ऋषि पं. माधवराव सप्रे

राजा राममोहन राय नें आधुनिक भारतीय समाज के निर्माण में जो चिंगारी जगाई थी उसके वाहक के रूप में छत्‍तीसगढ में वैचारिक सामाजिक क्रांति के अलख जगाने का काम किसी नें पूरी प्रतिबद्धता से किया है तो निर्विवाद रूप से यह कहा जायेगा कि वह छत्‍तीसगढ के प्रथम पत्रकार व हिन्‍दी की प्रथम कहानी एक टोकरी भर मिट्टी के रचईता पं. माधवराव सप्रे जी ही थे । इन्‍होंनें छत्‍तीसगढ के पेंड्रा से छत्‍तीसगढ मित्र पत्रिका का प्रकाशन सन् 1900 में सुप्रसिद्ध स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री वामन राव लाखे के सहयोग से आरंभ किया था ।

19 जून 1871 को मध्‍य प्रदेश के दमोह जिले के ग्राम पथरिया में जन्‍में पं. माधवराव सप्रे जी का संपूर्ण जीवन अभावग्रस्‍त एवं संघर्षमय रहा । सन् 1874 में बालक माधवराव छत्‍तीसगढ के बिलासपुर में अपने पितातुल्‍य बडे भाई बाबूराव के पास अपने माता पिता के साथ आये और संपूर्ण छत्‍तीसगढ को कृतज्ञ कर दिया । इनकी प्राथमिक व माध्‍यमिक शिक्षा बिलासपुर एवं उच्‍चतर माध्‍यमिक शिक्षा रायपुर से हुई । पढाई में कुशाग्र बालक माधवराव को आरंभ से ही छात्रवृत्ति प्राप्‍त होने लगी थी ।


रायपुर में अध्‍ययन के दौरान पं. माधवराव सप्रे, पं. नंदलाल दुबे जी के समर्क में आये जो इनके शिक्षक थे एवं जिन्‍होंनें अभिज्ञान शाकुन्‍तलम और उत्‍तर रामचरित मानस का हिन्‍दी में अनुवाद किया था व उद्यान मालिनी नामक मौलिक ग्रंथ भी लिखा था । पं. नंदलाल दुबे नें ही पं. माधवराव सप्रे के मन में साहित्तिक अभिरूचि जगाई जिसने कालांतर में पं. माधवराव सप्रे को छत्‍तीसगछ मित्र हिन्‍दी केसरी जैसे पत्रिकाओं के संपादक के रूप में प्रतिष्ठित किया और राष्‍ट्र कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी के साहित्तिक गुरू के रूप में एक अलग पहचान दिलाई ।


पं. माधवराव सप्रे सन् 1889 में रायपुर के असिस्‍टेंट कमिश्‍नर की पुत्री से विवाह के बाद श्‍वसुर द्वारा अनुशंसित नायब तहसीलदार की नौकरी को ठुकराकर अपने कर्मपथ की ओर बढ गए । पहले रार्बटसन कालेज जबलपुर फिर 1894 में विक्‍टोरिया कालेज ग्‍वालियर एवं 1896 में इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय से एफ.ए. पास किया । इसी बीच उनकी पत्‍नी का देहावसान हो गया और शिक्षा में कुछ बाधा आ गई । पुन: 1989 में इन्‍होंनें कलकत्‍त विश्‍वविद्यालय से बी.ए. की डिग्री ली एवं एलएलबी में प्रवेश ले लिया किन्‍तु अपने वैचारिक प्रतिबद्धता के कारण इन्‍होंनें विधि की परिक्षा को छोड छत्‍तीसगढ वापस आ गए ।


छत्‍तीसगढ में आने के बाद परिवार के द्वारा इनका दूसरा विवाह करा दिया गया जिसके कारण इनके पास पारिवारिक जिम्‍मेदारी बढ गइ तब इन्‍होंने सरकारी नौकरी किए बिना समाज व साहित्‍य सेवा करने के उद्देश्‍य को कायम रखने व भरण पोषण के लिए पेंड्रा के राजकुमार के अंग्रेजी शिक्षक के रूप में कार्य किया । समाज सुधार व हिन्‍दी सेवा के जजबे नें इनके मन में पत्र-पत्रिका के प्रकाशन की रूचि जगाई और मित्र वामन लाखे के सहयोग से छत्‍तीसगढ मित्र मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया जिसकी ख्‍याति पूरे देश भर में फैल गई ।


मराठी भाषी होने के बावजूद इन्‍होंनें हिन्‍दी के विकास के लिए सतत कार्य किया । सन् 1905 में हिन्‍दी ग्रंथ प्रकाशक मंडल का गठन कर तत्‍कालीन विद्वानों के हिन्‍दी के उत्‍कृष्‍ठ रचनाओं व लेखों का प्रकाशन धारावाहिक ग्रंथमाला के रूप में आरंभ किया । इस ग्रंथमाला में पं. माधवराव सप्रे जी के मौलिक स्‍वदेशी आन्‍दोलन एवं बायकाट लेखमाला का भी प्रकाशन हुआ । बाद में इस ग्रंथमाला का प्रकाशन पुस्‍तकाकार रूप में हुआ, इसकी लोकप्रियता को देखते हुए अंग्रेज सरकार नें सन् 1909 में इसे प्रतिबंधित कर प्रकाशित पुस्‍तकों को जप्‍त कर लिया ।


हिन्‍दी ग्रंथमाला के प्रकाशन से राष्‍ट्रव्‍यापी धूम मचाने के बाद पं. माधवराव सप्रे नें लोकमान्‍य बाल गंगाधर तिलक से अनुमति प्राप्‍त कर उनकी आमुख पत्रिका मराठा केसरी के अनुरूप हिन्‍दी केसरी का प्रकाशन 13 अप्रैल 1907 को प्रारंभ किया । हिन्‍दी केसरी अपने स्‍वाभाविक उग्र तेवरों से प्रकाशित होता था जिसमें अंग्रेजी सरकार की दमन नीति, कालापानी, देश का दुर्देव, बम के गोले का रहस्‍य जैसे उत्‍तेजक खेख प्रकाशित होते थे फलत: 22 अगस्‍त 1908 में पं. माधवराव सप्रे जी गिरफ्तार कर लिये गए । तब तक सप्रे जी अपनी केन्‍द्रीय भूमिका में एक प्रखर पत्रकार के रूप में संपूर्ण देश में स्‍थापित हो चुके थे ।


इस गिरफ्तारी के बाद इनके पिता तुल्‍य भाई बाबूराव नें आत्‍महत्‍या की धमकी देकर इनसे माफीनामें में हस्‍ताक्षर करवा लिया । उस समय बाबूराव जी नें जो दलील दिया वह यह था कि जेल में रहकर या फांसी में लटक कर समय नष्‍ट करने के पहले समाज व साहित्‍य की सेवा के लिए सप्रे जैसे युवक को जेल से बाहर रह कर देश सेवा करना चाहिए । पिता तुल्‍य बडे भाई के आदेश को मानने के फलस्‍वरूप पं. माधवराव सप्रे जेल से तो छूट गए किन्‍तु वे इससे बहुत आहत हुए । लगभग डेढ वर्ष तक इस आत्‍मग्‍लानि से उबर नहीं पाये और अज्ञातवास पर चले गए ।


इस बीच वे रायपुर में समर्थ रामदास के दास बोध, गीता रहस्‍य, महाभारत मीमांसा का हिन्‍दी अनुवाद भी किया और रायपुर में ही रह कर शिक्षा व लेखन कार्य करते रहे । साहित्‍य के प्रति उनकी रूचि जीवंत रही । सन् 1916 में जबलपुर के सातवें अखिल भारतीय हिन्‍दी सम्‍मेलन में उन्‍होंनें पहली बार देशी भाषाओं को शिक्षा का माध्‍यम बनाने संबंधी प्रस्‍ताव रखा ।

पत्र-पत्रिका प्रकाशन व संपादन की इच्‍छा सदैव इनके साथ रही इसी क्रम में मित्रों के अनुरोध एवं पत्रकारिता के जजबे के कारण 1919-20 में पं. माधवराव सप्रे जी जबलपुर आ गए और कर्मवीर नामक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया जिसके संपादक पं. माखन लाल चतुर्वेदी जी बनाए गए । कर्मवीर का प्रकाशन सफल रहा और वे जबलपुर में हिन्‍दी साहित्‍य की बगिया महकाने में अपने अंमित प्रयाण 28 दिसम्‍बर 1971 तक अनवरत जुटे रहे । उन्‍होंनें देहरादून में आयोजित 15 वें अखिल भारतीय साहित्‍य सम्‍मेलन की अध्‍यक्षता भी की एवं अपनी प्रेरणा से जबलपुर में राष्‍ट्रीय हिन्‍दी मंदिर की स्‍थापना करवाई जिसके सहयोग से छात्र सहोदर, तिलक, हितकारिणी, श्री शारदा जैसे हिन्‍दी साहित्‍य के महत्‍वपूर्ण पत्रिकाओं का प्रकाशन संभव हुआ जिसका आज तक महत्‍व विद्यमान है ।

आज पत्रकारिता व साहित्‍य के ऋषि पं. माधवराव सप्रे जी की जयंती पर हम इन्‍हें अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं ।


संजीव तिवारी


अन्य कडियां -
पं.माधवराव सप्रे की की १३८ वीं जयंती पर राष्ट्रीय आयोजन

http://srijansamman.blogspot.com/2008/06/blog-post_10.html

http://www.dailychhattisgarh.com/today/Page%206.pdf

http://www.mediavimarsh.com/dec07-feb08/sarokar-sanjay%20dwivedi.htm

यह है हिन्दी की पहली प्रकाशित कहानी

http://sarokaar.blogspot.com/2008/06/blog-post_17.html

ब्लागर्स प्रोफाईल में अपने लम्बे ब्लाग लिस्ट में से कुछ को ही दिखाना

आजकल हिन्‍दी ब्‍लागर्स अनेक विधा में लगातार लिख रहे हैं और गूगल बाबा की कृपा से एक से अधिक ब्‍लाग बना कर हिन्‍दी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रस्‍तुत कर रहे हैं । कई हिन्‍दी ब्‍लागर्स तो सभी ब्‍लागों में नियमित तौर पर पोस्‍ट पब्लिश कर रहे हैं पर हमारे जैसे कुछ हिन्‍दी ब्‍लागर्स कई ब्‍लाग तो बना लिये हैं पर उन्‍हें नियमित अपडेट नहीं कर पा रहे हैं । ऐसे में एक मुख्‍य ब्‍लाग के अतिरिक्‍त अन्‍य ब्‍लाग भी लाईन से हमारे प्रोफाईल में नजर आते रहते हैं । इन्‍हें प्रोफाईल से हटाने का साधन आरंभिक तौर पर हमें ब्‍लाग डिलीट करना ही समझ में आता था । पर ऐसे में हमारे पसंद के ब्‍लाग यूआरएल सदा सदा के लिये समाप्‍त हो जाते है और डिलीट होने के कारण भविष्‍य में उपयोग के लिये इसे बचाया नहीं जा सकता । इसका दूसरा तरीका है वह यह है कि हम अपने दूसरे आई डी से ब्‍लाग बनायें पर ऐसे में गूगल एड सेंस की चवन्‍नी अट्ठन्‍नी से सौ डालर तक का सफर एक आई डी में चालीस तो दूसरे आई डी में साठ पहुचकर भी शुरू नहीं हो पाता । इस समस्‍या का हल हमें ब्‍लागर्स प्रोफाईल में ही नजर आया जिसे हम आपके लिये प्रस्‍तुत कर रहे हैं ।


जब हम किसी ब्‍लाग में टिप्‍पणी करते हैं तो वहां से कई पाठक जिस लिंक के सहारे हमारे ब्‍लाग तक आते हैं वह साधन है हमारे ब्‍लागर्स प्रोफाईल का लिक । जब पाठक इस लिंक को क्लिक कर हमारे प्रोफाईल में आते हैं तब हमारे प्रोफाईल में लम्‍बे ब्‍लागों के लिस्‍ट को देखकर फैसला नहीं कर पाते कि कौन सा ब्‍लाग इस प्रोफाईल मालिक का आमुख ब्‍लाग है । ऐसे में कई ब्‍लागर्स चाहते हैं कि प्रोफाईल में उनका आमुख ब्‍लाग ही दिखाई दे ।



इस समस्‍या का हल ब्‍लागर्स डेशबोर्ड के एडिट प्रोफाईल में उपलब्‍ध है । इसके लिये एडिट प्रोफाईल में जाकर सलेक्‍ट ब्‍लाग टू डिस्‍प्‍ले को क्लिक करें । वहां आपको आपके सभी ब्‍लाग के शीर्षक नजर आयेंगें जिसके आगे खाने बने होंगें जिसमें सभी खानों में टिक लगा होगा । यहां आप जिस जिस ब्‍लाग को प्रोफाईल में दिखाना चाहते हैं उसके सामने ही टिक रहने दें बाकी में से टिक को क्लिक कर हटा लेवें । अब सेव सेटिंग कर पुन: एडिट प्रोफाईल पेज में आयें और पेज के नीचे दिये गये सेव प्रोफाईल को क्लिक करें ।


आपके ब्‍लागर्स प्रोफाईल में अब वही ब्‍लाग ही नजर आयेंगा जिसे आपने टिक किया है ।

संजीव तिवारी

ब्लागर्स डाट काम में पसंदीदा फीड एग्रीगेटर बनाना आसान

यदि आप स्वयं अपने पसंद के ब्लागों का फीड एग्रीगेटर बनाना चाहते हैं तो लेआउट पेज में एड पेज एलीमेंट के ब्‍लाग लिस्‍ट को एड कर बना सकते हैं । यह नई सुविधा फीड के अन्‍य विकल्‍पों के साथ उपलब्‍ध है । इस संबंध में जानकारी मेरे पिछले पोस्‍ट में दी गई है ।

इसी सुविधा को उपयोग करते हुए मैंनें छत्‍तीसगढ ब्‍लाग एग्रीगेटर बनाने का प्रयास किया है, आप भी देखें एवं इस सुविधा का लाभ उठायें ।

संजीव तिवारी

भारतेन्दु युगीन साहित्यकार गोविंद साव

भारतेन्दु युगीन साहित्यकार गोविंद साव

प्रो. अश्विनी केशरवानी


छत्तीसगढ़ में भारतेन्दु युगीन कवि, आलोचक और उपन्यासकार ठाकुर जगमोहनसिंह का साहित्यिक वातावरण बनाने में महत्वपूर्ण योगदान था। उन्होंने सन~ 1880 से 1882 तक धमतरी में और सन~ 1882 से 1887 तक शिवरीनारायण में तहसीलदार और मजिस्ट्रेट के रूप में कार्य किया है। यही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के बिखरे साहित्यकारों को जगन्मोहन मंडल बनाकर एक सूत्र में पिरोया और उन्हें लेखन की सही दिशा भी दी। जगन्मोहन मंडल कांशी के भारतेन्दु मंडल की तर्ज में बनी एक साहित्यिक संस्था थी। इसके माध्यम से छत्तीसगढ़ के साहित्यकार शिवरीनारायण में आकर साहित्य साधना करने लगे। उस काल के अन्यान्य साहित्यकारों के शिवरीनारायण में आकर साहित्य साधना करने का उल्लेख तत्कालीन साहित्य में हुआ है। इनमें रायगढ़ के पं. अनंतराम पांडेय, रायगढ़-परसापाली के पं. मेदिनीप्रसाद पांडेय, बलौदा के पं. वेदनाथ श्‍वर्मा, बालपुर के मालगुजार पं. पुरूसोत्तम प्रसाद पांडेय, बिलासपुर के जगन्नाथ प्रसाद भानु, धमतरी के काव्योपाध्याय हीरालाल, बिलाईगढ़ के पं. पृथ्वीपाल तिवारी और उनके अनुज पं. गणेश तिवारी और शिवरीनारायण के पं. मालिकराम भोगहा, पं. हीराराम त्रिपाठी, गोविंदसाव, महंत अर्जुनदास, महंत गौतमदास, पं. विश्‍वेस्‍वर वर्मा, पं. ऋषि श्‍वर्मा और दीनानाथ पांडेय आदि प्रमुख थे। शिवरीनारायण में जन्में, पले बढ़े और बाद में सरसींवा निवासी कवि शुकलाल प्रसाद पांडेय ने छत्तीसगढ़ गौरव में ऐसे अनेक साहित्यकारों का नामोल्लेख किया है :-

नारायण, गोपाल मिश्र, माखन, दलगंजन।
बख्तावर, प्रहलाद दुबे, रेवा, जगमोहन।
हीरा, गोविंद, उमराव, विज्ञपति, भोरा रघुवर।
विष्णुपुरी, दृगपाल, साव गोविंद, बज गिरधर।
विश्वनाथ, बिसाहू, उमर नृप लक्षमण छत्‍तीस कोट कवि।
हो चुके दिवंगत ये सभी प्रेम, मीर, मालिक सुकवि।।

इस प्रकार उस काल में शिवरीनारायण सांस्कृतिक के साथ ही साहित्यिक तीर्थ भी बन गया था। द्विवेदी युग के अनेक साहित्यकारों- पं. लोचनप्रसाद पांडेय, पं. शुकलाल पांडेय, नरसिंहदास वैष्‍णव, सरयूप्रसाद तिवारी मधुकर, ज्वालाप्रसाद, रामदयाल तिवारी, प्यारेलाल गुप्त, छेदीलाल बैरिस्टर, पं. रविशंकर शुक्ल, सुंदरलाल आदि ने शिवरीनारायण की सांस्कृतिक-साहित्यिक भूमि को प्रणाम किया है। मेरा जन्म इस पवित्र नगरी में ऐसे परिवार में हुआ है जो लक्ष्मी और सरस्वती पुत्र थे। पं. शुकलाल पांडेय ने छत्तीसगढ़ गौरव में मेरे पूर्वज गोविंदसाव को भारतेन्दु युगीन कवि के रूप में उल्लेख किया है-

रामदयाल समान यहीं हैं अनुपम वाग्मी।
हरीसिंह से राज नियम के ज्ञाता नामी।
गोविंद साव समान यहीं हैं लक्ष्मी स्वामी।
हैं गणेश से यहीं प्रचुर प्रतिभा अनुगामी।
श्री धरणीधर पंडित सदृश्‍य यहीं बसे विद्वान हैं।
हे महाभाग छत्तीसगढ़ ! बढ़ा रहे तब मान हैं।।

हालांकि गोविंद साव की कोई रचना आज उपलब्ध नहीं है लेकिन शिवरीनारायण के साहित्यिक परिवेश में उन्होंने कोई न कोई रचना अवश्‍य लिखी होगी। मुझे साहित्यिक अभिरूचि उनकी विरासत में मिला है। मैं भगवान शबरीनारायण, हमारे कुलदेव महेश्‍वरनाथ महादेव और कुलदेवी माता शीतला का आशीर्वाद तथा चित्रोत्पलागंगा के संस्कार को प्रमुख मानता हूं। उन्हीं के आशीर्वाद से आज प्रदेश के साहित्य जगत में मैं अपनी पहचान बना सकने में समर्थ हो सका हूं। शिवरीनारायण का साहित्यिक परिवेश ठाकुर जगमोहनसिंह की ही देन थी। उन्होंने यहां दर्जन भर पुस्तकें लिखी और प्रकाशित करायी। शबरीनारायण जैसे सांस्कृतिक और धार्मिक स्थल के लोग, उनका रहन-सहन और व्यवहार उन्हें सज्जनाष्टक आठ सज्जन व्यक्तियों का परिचय लिखने को बाध्य किया। भारत जीवन प्रेस बनारस से सन~ 1884 में सज्जनाष्टक प्रकाशित हुआ। वे यहां के मालगुजार और पुजारी पंडित यदुनाथ भोगहा से अत्याधिक प्रभावित थे। भोगहा जी के पुत्र मालिकराम भोगहा ने तो ठाकुर जगमोहनसिंह को केवल अपना साहित्यिक गुरू ही नहीं बनाया बल्कि उन्हें अपना सब कुछ समर्पित कर दिया। उनके संरक्षण में भोगहा जी ने हिन्दी, अंगेजी, बंगला, उड़िया और उर्दू और मराठी साहित्य का अध्ययन किया, अनेक स्थानों की यात्राएं की और प्रबोध चंद्रोदय, रामराज्यवियोग और सती सुलोचना जैसे उत्कृष्ट नाटकों की रचना की जिसका सफलता पूर्वक मंचन भी किया गया। इसके मंचन के लिए उन्होंने यहां एक नाटक मंडली भी बनायी थी। माखन वंश के श्री बलभद्र साव के सुपुत्र और श्री सूरजदीन साव के अनुज श्री विद्याधर साव के नेतृत्व में यहां एक ष्‍केशरवानी नवयुवक नाटक मंडली बना था जिसके माध्यम से न केवल माखन वंश के नवयुवकों बल्कि नगर के नवोदित कलाकारों मंच मिला और अनेक नाटकों का सफलता पूर्वक मंचन किया गया। ठाकुर जगमोहनसिंह ने सज्जनाष्‍टक में माखन साव के बारे में लिखा है :-

माखन साहु राहु दारिद कहं अहै महाजन भारी।
दीन्हो घर माखन अरू रोटी बहुविधि तिनहो मुरारी।।
लच्छपती मुइ शरन जनन को टारत सकल कलेशा।
द्रव्यहीन कहं है कुबेर सम रहत न दुख को लेशा।
दुओधाम प्रथमहि करि निज पग कांवर आप चढ़ाई।
चार बीस शरदहु के बीते रीते गोलक नैना।
लखि अंसार संसार पार कहं मुंदे दृग तजि नैना।।

छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित मालगुजारों में माखनसाव की गिनती होती थी। इस उद्धरण से स्पष्‍ट है कि वे एक महाजन थे जिनके घर में लक्ष्मी जी और कुबेर जी का वास था। वे न केवल धीर-गंभीर और प्रजाप्रिय थे बल्कि धार्मिक और भक्तवत्सल भी थे। उन्होंने महानदी के तट पर अपने कुलदेव महेश्‍वरनाथ महादेव का एक भव्य मंदिर का संवत~ 1890 में निर्माण कराया था। इस मंदिर के बारे में ठाकुर जगमोहनसिंह ने अपने खंडकाव्य प्रलय में लिखा है :-

बाढ़त सरित बारि छिन-छिन में। चढ़ि सोपान घाट वट दिन मे।
शिवमंदिर जो घाटहिं सौहै। माखन साहु रचित मन मोहै।।84।।
चटशाला जल भीतर आयो। गैल चक्रधर गेह बहायो।
पुनि सो माखन साहु निकेता।। पावन करि सो पान समेता।।87।।

उनकी धार्मिकता और भक्ति को डां. भालचंद राव तैलंग ने ष्‍ष्‍छत्तीसगढ़ी, हल्बी, भतरी बोलियों का भाषा वैज्ञानिक अध्ययनष्‍ष्‍ के अर्थतत्व पृ. 200 मे उल्लेख किया है। विशेष घटना के कारण ष्‍ष्‍खिचकेदारष्‍ष्‍ को परिभाषित करते हुए उन्होंने लिखा है-ष्‍ष्‍रतनपुर का मंदिर जहां पहले माखन साव ने एक साधु को खिचड़ी परोसी थी और जहां पकी हुई खिचड़ी से भरी पत्तल को फोड़कर शिवजी प्रकट हुए थे। इस उद्धरण को रामलाल वर्मा द्वारा लिखित रायरतनपुर महात्म्य पृ 22 से लिया गया है।

ऐसे पवित्र आत्मा माखन साव के अनुज श्री गोविंद साव के जगन्नाथपुरी की यात्रा और मनौती के रूप में जन्में उनके एकलौते पुत्र जगन्नाथ साव की धर्मप्रियता पर भी किसी को संदेह नहीं है। कदाचित~ यही कारण है कि आज भी गोविंदसाव के वंशजों का मुंडन संस्कार जगन्नाथपुरी में किये जाने का विधान है। मेरे पिता जी, मेरा और मेरे बच्चों का मुंडन संस्कार भी पुरी में हुआ था। जगन्नाथ साव के एक मात्र पुत्र पचकौड़ साव हुए। माखन वंश में उनकी विद्वता की साख थी और इस वंश के लंबरदार आत्माराम भी उनकी दबंगता से प्रभावित थे। उन्हें साजापाली और दौराभाटा में खेती-किसानी का दायित्व सौंपा गया था जिसे उन्होंने अपने चचेरे भाई महादेव साव के सहयोग से बखूबी निभाया। शिवरीनारायण में महादेव-पचकौड़ साव के नाम से व्यापार होता था और जब गांवों में व्यापार की शुरूवात हुई तब 05 वर्ष बाद शिवरीनारायण का खाता बंद कर साजापाली-दौराभाठा में महादेव-पचकौड़ साव के नाम से खाता शुरू किया गया जो मालगुजारी उन्मूलन तक चलता रहा। गलत बातों का वे दबंगता से विरोध करते थे साथ ही मांगने पर उचित सलाह भी देते थे। आजादी के कुछ महिने बाद 17.10.1947 को उन्होंने स्वर्गारोहण किया। पचकौड़ साव के एक मात्र पुत्र राघव साव का जन्म चैत्र शुक्ल 2, संवत~ 1972 को रात्रि 10 बजकर 33 मिनट को हुआ। उनका राशि नाम दुर्गाप्रसाद रखा गया था। परिवार की धार्मिकता का संस्कार उन्हें मिला और इसी परिवेश में परवरिश होने के कारण धार्मिकता उनके जीवन का एक अंग हो गया। उन्होंने अपने जीवन में लगभग दो घंटे पूजा अवश्‍य किया करते थे। चारों धाम-बद्रीनाथ, द्वारिकाधाम, रामेश्‍वरम~ और जगन्नाथपुरी की पूरी यात्रा उन्होंने की थी। गया श्राद्ध, प्रयाग और काशी श्राद्ध करने के साथ गंगासागर और बाबाधाम की यात्रा भी उन्होंने की। जीवन भर वे सात्विक रहे- सादा जीवन और उच्च विचार को उन्होंने अपनाया।...और इलाहाबाद के महाकुंभ में एक माह का कल्पवास करने के बाद अपने भरे पूरे परिवार को शुक्रवार, दिनांक 24.11.1989 को दोपहर एक बजे 74 वर्ष जीवन का सुख भोगकर स्वर्गारोहण किया। उन्होंने मुझे रामायण और महाभारत की कहानियां सुनाकर धार्मिक वृत्ति से न केवल जोड़ा बल्कि मुझे रचनात्मक लेखन की प्रेरणा दी। मुझे इस दिशा में प्रेरित करने वाले माखन वंश के अंतिम लंबरदार श्री सूरजदीन साव भी थे। सर्व प्रथम विश्‍व हिंदु परिषद द्वारा आयोजित निबंध प्रतियोगिता में गीता के प्रसंगों पर निबंध लिखकर पुरस्कृत होकर लेखन की मैंने शुरूवात की। इस निबंध के लेखन में मुझे मेरे दादा श्री राधवप्रसाद के साथ ही श्री सूरजदीन साव का पूर्ण सहयोग मिला। वृद्ध प्रपितामह के साहित्यिक विरासत और महानदी का संस्कार पाकर मेरी लेखनी अविचल चलने लगी।

ऐसा पहली बार हुआ और गोविंदसाव के वंश में एक-एक पुत्र की परंपरा टूटी और राघवप्रसाद के चार पुत्र क्रमश: देवालाल, सेवकलाल, होलीदास और हेमलाल हुए। होलीदास तो बचपन में ही काल कवलित हो गए लेकिन शेष तीनों पुत्रों ने अपने वंश को बढ़ाने में सफल हुए। देवालाल के एक मात्र पुत्र अश्‍वीनी कुमार और पुत्री मीना बाई हुई। सेवकलाल के दो पुत्र संजय कुमार और नरेन्द्र कुमार तथा चार पुत्री मंजुलता, अंजुलता, स्नेहलता और मधुलता हुई। हेमलाल के दो पुत्र अतीत और अमित कुमार और एक मात्र पुत्री अल्पना हुई। इस प्रकार राघवप्रसाद के तीन पुत्र और पांच पौत्र हुए और उनकी वंश परंपरा बढ़ी। राघवप्रसाद के ज्येष्‍ठ पुत्र के रूप में देवालाल का 05. 07. 1934 को जन्म हुआ। उनकी प्राथमिक शिक्षा शिवरीनारायण में और हाई स्कूल की शिक्षा सारंगढ़ और बिलासपुर में हुई। उच्च शिक्षा न कर पाने का उन्हें अफसोस अवश्‍य हुआ था लेकिन मात्र 17 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने घर-परिवार की जिम्मेदारी उठा लिए थे। अपने भाई-बहनों की शिक्षा दीक्षा से लेकर उनके विवाह और नौकरी लगाने तक तथा उनके बच्चों के भी विवाह आदि में पूरा सहयोग देकर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया। देवालाल धीर, गंभीर और सुलझे हुए व्यक्ति थे। कदाचित~ उनके इसी व्यक्तित्व के कारण वे न केवल माखन वंश के बल्कि समाज और शिवरीनारायण, बेलादूला और साजापाली में अत्यंत लोकप्रिय थे। उन्होंने न जाने कितने परिवार को टूटने से बचाया और टूटे परिवार को जोड़ा है। वे अपनी पीढ़ी के एक मात्र व्यक्ति थे जिन्होंने अपनी पैत्रिक वृत्ति महाजनी को अपनाया। उन्होंने शिवरीनारायण के विकास में अमूल्य योगदान दिया है। आज की पीढ़ी उनके योगदान को शायद न समझ सके। लेकिन यह सत्य है कि शिवरीनारायण में गाम पंचायत के सफलतम सरपंच जहां माखन वंश के श्री तिजाउप्रसाद थे वहीं उनकी इस सफलता के पीछे यहां के उदितनारायण सुलतानिया, देवालाल केशरवानी, गोवर्धन शर्मा, सेवकराम श्रीवास और मोहम्मद अहमद खां का विशेष योगदान था। उनके कार्यकाल में ही यहां शिक्षा का विस्तार हुआ, अनेक स्कूल भवन बने, बिजली और सड़कें बनी, सब्जी बाजार लगने की शुरूवात हुई और जनपद पंचायत जांजगीर से साप्ताहिक मवेशी बाजार और छत्तीसगढ़ के महाकुंभ कहाने वाले मेले की व्यवस्था गाम पंचायत की मिली। इस नगर में चिकित्सा सुविधा के लिए देवालाल ने मंत्रियों और अधिकारियों से मिलकर अपने बहनोई श्री बलदाउ प्रसाद केशरवानी को प्रेरित कर जहां ष्‍प्रयाग प्रसाद केशरवानी शासकीय चिकित्सालयष्‍ की स्थापना करायी और डाक्टरों के रहने-खाने की सुविधा उपलब्ध करायी। इस चिकित्सालय में विद्युत व्यवस्था उन्होंने अपने दादा श्री पचकौड़ साव की स्मृति में कराया था। शासकीय प्राथमिक कन्या शाला को मात्र अपने मित्र श्री गणेश प्रसाद नारनोलिया से शर्त लगाकर खुलवाया था जो आज शासकीय मिडिल कन्या स्कूल के रूप में संचालित है। मध्यप्रदेश शासन के मंत्रियों सर्वश्री डा. रामाचरण राय, श्री वेदराम, श्री बिसाहूदास महंत, श्री चित्रकांत जायसवाल, श्री बी. आर. यादव, भंवरसिंह पोर्ते, डा. कन्हैयालाल शर्मा, श्री रेशमलाल जांगड़े, श्रीधर मिश्रा, मुख्य मंत्री श्री श्‍यामाचरण शुक्ल, और केंदिय मंत्री श्री विद्याचरण शुक्ल से उनकी गहरी पहचान थी। आये दिन उनका कार्यक्रम शिवरीनारायण में कराकर नगर को विकास के मार्ग में ले जाना उनका ध्येय था। खरौद को नगर पालिका बनाये जाने पर नगरवासियों के अनुरोध पर उन्होंने मंत्रियों से अपनी पहचान का लाभ उठाकर शिवरीनारायण को भी नगरपालिका दर्जा तीन बनवाने में सफलता हासिल की। महानदी के रेत में महाराष्‍ट्र के किसानों को तरबूज बोने के लिए उन्होंने बुलवाया जिससे पंचायत की आमदनी बढ़ी। पूरे छत्तीसगढ़ में एकलौता शिवरीनारायण नगर था जहां बिजली के खम्भों में मरकरी बल्ब लगे थे। यही नहीं बल्कि उन्होंने शबरीनारायण मंदिर के गर्भगृह में ष्‍केशरवानी महिला समाजष्‍ द्वारा संकल्पित चांदी के पत्तर से बना दरवाजा को सन 1960 में जीवन मिस्त्री के सहयोग से कलकत्ता से बनवाया था। अपने कुलदेव महेश्‍वरनाथ मंदिर में भोगराग की व्यवस्था करायी। सारंगढ़ और शिवरीनारायण में केशरवानी धर्मशाला के निर्माण में अर्थसंचय में उनका अमूल्य सहयोग था। अपने भाईयों, बहनों को उन्होंने न केवल सत्पथ पर चलने की प्रेरणा दी बल्कि समाज के लिए भी एक मिशाल स्थापित की। अपने परिवार के श्री सूरजदीन साव, श्री विद्याधर साव, श्री तिजाउ प्रसाद, श्री साधराम साव, श्री रामचंदसाव, श्री ईतवारी साव, श्री गिरीचंद साव, श्री मुरीतराम साव, श्री जगदीश प्रसाद, श्री गौटियाराम के प्रिय पात्र रहे वहीं श्री पराउराम, श्री गोरेलाल, श्री शोभाराम के गहरे मित्र रहे। जीवन भर सत्पथ रहकर नि:स्वार्थ सेवा भाव से कार्य करते हुए जीवन के अंतिम समय में उन्होंने भगवत्भजन में अपना मन लगाया... और 67 वर्ष की अवस्था में भौतिक सुख सुविधा का परित्याग कर 16. 04. 2001 को पंच तत्व में विलीन हो गये।

राघव साव के द्वितीय पुत्र सेवकलाल ने जहां बैंकिंग सेवा में अपना जीवन सफर तय किया वहीं तृतीय पुत्र हेमलाल ने व्यापार को अपनाया जिसे उन्होंने पुत्र अतीत कुमार के सहयोग से संचालित कर रहे हैं। सेवकलाल के दोनों पुत्र संजय और नरेन्द कुमार टेंट हाउस के व्यापार में संलग्न हैं। देवालाल के पुत्र अश्विनी कुमार शासकीय महाविद्यालय चांपा में प्राध्यापक हैं। उन्होंने अपनी अभिरूचि के अनुसार छत्तीसगढ़ के इतिहास, पुरातत्व और परंपराओं के उपर लिखकर प्रादेशिक और राष्‍ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित किया और अपने वंश को गौरवान्वित किया है। धर्मयुग, अणुवत और नवनीत हिन्दी डाइजेस्ट जैसे राष्‍ट्रीय पत्रिका में बाल मनोविज्ञान विषय पर और कादम्बिनी, दैनिक हिन्दुस्तान में स्वतंत्र स्तम्भ लेखन किया। देश और प्रदेश के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं प्रकाशित हो चुकी है। वे जांजगीर-चांपा जिले और प्रदेश के गिने चुने राष्‍ट्रीय लेखकों में से एक हैं। अपने क्षेत्र के उपर लिखकर अपने जन्म को सार्थक बनाने का प्रयास उन्होंने किया है। शिवरीनारायण, पीथमपुर के उपर शोध गंथ लिखकर वहां के माहात्म्य को प्रकाशित कर सद~कार्य किया है। छत्तीसगढ़ के बिखरे और खंडहर होते मंदिरों और लुप्त हो रही परंपराओं पर कलम चलाकर लोगों का ध्यान आकर्ष्‍शित किया है। छत्तीसगढ़ के भारतेन्दु कालीन गुमनाम साहित्यकारों को प्रकाश में लाने का उनका सराहनीय प्रयास है। उनके इस रचनात्मक और सार्थक लेखन के लिए विभिन्न संगठनों से सम्मानित होकर अपने वंश को गौरवान्वित करने वाले अकेले हैं। आज वे छत्तीसगढ़ राज्य केशरवानी वैश्‍य सभा के अध्यक्ष रहे और सम्प्रति प्रदेश सभा के संरक्षक हैं। प्रदेश के अनेक नगर सभाओं के द्वारा उन्हें ष्‍समाज के गौरवष्‍ के रूप में सम्मानित होने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। उनकी धर्मपत्नी कल्याणी देवी भी एक स्वतंत्र लेखिका हैं और लायनेस क्लब चांपा और नगर केशरवानी महिला सभा की अध्यक्ष, प्रदेश केशरवानी महिला सभा की कोषाध्यक्ष और अखिल भारतीय केशरवानी वैश्‍य महिला महासभा की राष्‍ट्रीय महामंत्री हैं। उनके दो पुत्र प्रांजल कुमार कम्प्यूटर साफ~टवेयर इंजीनियर के रूप में टाटा कंसलटेन्सी सर्विसेस मुम्बई में पदस्थ है वहीं अंजल कुमार नेट प्वाइंट के संचालक है। हेमलाल के दो पुत्रों में अतीत कुमार जहां अपने पिता जी के साथ व्यापार में संलग्न हैं वहीं अमित कुमार मेकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करके अपने पिता के साथ उनके व्यवसाय में संलग्न है। सेवकलाल के पुत्र संजय कुमार के दो पुत्री सृष्टि और साक्षी और एक पुत्र सृजन कुमार है वहीं नरेन्द कुमार के दो पुत्र पियुष और प्रीतुल है। दोनों भाई टेंट व्यवसाय कर रहे हैं।


रचना, लेखन एवं प्रस्तुति,

प्रो. अश्विनी केशरवानी
राघव, डागा कालोनी,
चांपा-495671 छ.ग.


पिछले दिनों मैं हिन्दी ब्लाग को बढावा देने हेतु संक्षिप्त प्रयास के रूप में एक दो पोस्ट पब्लिश किया था उसके बाद मेरे मित्रों से लगातार अनुरोध आता रहा कि नियमित रूप से अपना लिखा पोस्ट ही आरंभ में पब्लिश करें । मैं प्रयास करूंगा कि भविष्य में नियमित रूप से स्वयं की कलम घसीटी 'आरंभ' पर चलती रहे । आज के पोस्ट के बाद अतिथि पोस्टों का समावेश संपूर्ण पोस्ट के रूप में नहीं वरण संदर्भों के रूप में ही प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगा ।

संजीव तिवारी

हिन्दी ब्ला‍ग प्रवेशिका 2 : एड पेज एलीमेंट

ब्‍लाग बना लेने के बाद प्रत्‍येक ब्‍लागर्स चाहता है कि ब्‍लाग के हेडर, फूटर व साईड बार में चित्र, लिंक व टेक्‍स्‍ट आदि लगाये । इसके लिये ब्‍लागर्स डाट काम लेआउट पेज में एड पेज एलीमेंट (पृष्‍ट तत्‍व जोडें) की सुविधा प्रदान करता है । इसके द्वारा ब्‍लागर्स अपने ब्‍लाग को सजाते हुए आवश्‍यक लिंक, ब्‍लागरोल, गजट, फोटो आदि अपने ब्‍लाग में लगा सकते है । हम यहां संपूर्ण एड पेज एलीमेंट की जानकारी क्रमिक रूप से प्रस्‍तुत कर रहे हैं । इसके पूर्व हमने हिन्‍दी ब्‍लाग प्रवेशिका 1 मे न्‍यू पोस्‍ट पेज के अवयवों के संबंध में पूर्ण जानकारी प्रस्‍तुत कर चुके हैं ।

ब्‍लाग लेआडट हमारे ब्‍लाग के परदे के पीछे का हिस्‍सा है यहां आपके मौजूदा ब्‍लाग में जोडे जा सकने योग्‍य स्‍थान पर ही एड पेज एलीमेंट (पृष्‍ट तत्‍व जोडें) दर्शित होता है ।


जैसे ही हम डैशबोर्ड लेआउट में एड पेज एलीमेंट पृष्‍ट तत्‍व जोडें को क्लिक करते हैं एक नया विंडो खुलता है जिसे उपरोक्‍त चित्र में दिखाया गया है । इसमें विभिन्‍न प्रकार के 16 पृष्‍ट तत्‍वों का खाका आईकान के साथ उपलब्‍ध होता है । जैसे ही हम इस नये विंडो में उस तत्‍व के लिंक को क्लिक करते हें उसी विंडो में एक खाका खुलता है जिसमें दी गई आवश्‍यक जानकारी डालकर इसके नीचे तरफ दिये गये सेव या एड बटन को क्लिक कर सेव या एड करना होता है । इसके बाद वह तत्‍व आपके ब्‍लाग में जुड जाता है ।


1 ब्‍लाग लिस्‍ट : यह आपके मित्रों के ब्‍लाग का लिंक आपके ब्‍लाग में प्रस्‍तुत करता है । आप इसे क्लिक करें, उस विडों में अपने पसंद का कोई शीर्षक लिखें शार्ट आप्‍शन में माई रिसेंट अपडेट को ही रहने दें । इसके नीचे चार छोटे डिब्‍बे में टिकिंग आप्‍शन होगें जिसे आप अपनी सुविधानुसार सेट कर लेवें । नीचे के खाने में एड ए ब्‍लाग टू यूवर लिस्‍ट विकल्‍प को क्लिक कर अपने मित्र के ब्‍लाग का यूआरएल एड्रेस डालें व उसका शीर्षक लिखें, उसे सेव करें । इसी प्रकार आप अपने अधिकाधिक ब्‍लाग मित्रों के ब्‍लाग को लिंक के साथ अपने ब्‍लाग में जोड सकते हैं । ब्‍लागर्स डाट काम नें इसमें जो नई सुविधा प्रदान की है उसके अनुसार इसमें लिंक के साथ ब्‍लाग की ताजा प्रवृष्टियों का भी प्रदर्शन होता है । सारे यूआरएल एड कर लेने के बाद एड टू लिस्‍ट बठन को क्लिक करें ब्‍लाग लिस्‍ट आपके ब्‍लाग में एड हो जायेगा ।


2 स्‍लाईडशो : यह तत्‍व आपके पास उपलब्‍ध चित्रों या गूगल डिफाल्‍ट चित्रों को क्रमिक रूप से स्‍लाईड के रूप में अपने ब्‍लाग में प्रदर्शित करने का अच्‍छा माध्‍यम है इससे आपके बहुत सारे चित्र कम जगह घेरते हुए ब्‍लाग में प्रदर्शित हो सकते हैं । इसके लिये मेरा सुझाव यह है कि किसी फोटो साईट से स्‍लाईड शो बनाकर उसका कोड अपने ब्‍लाग में लगायें तो बेहतर होगा ।


3 पोल : अंग्रेजी ब्‍लागों में इस तत्‍व का बहुत ज्‍यादा प्रयोग होता है, चूंकि ब्‍लाग विचारों के आदान प्रदान का एक अच्‍छा माध्‍यम है इसलिये ब्‍लागर पाठकों के विचार पोल के माध्‍यम से प्राप्‍त करता है जिसका परिणाम ब्‍लाग में प्रदर्शित होता है । इससे पाठक व लेखक दोनों को वैचारिक रूझान प्राप्‍त होते हैं । हिन्‍दी ब्‍लागों में अभी इसका प्रचलन ज्‍यादा प्रभावी रूप प्रस्‍तुत नहीं कर पाया है ।


4 लिस्‍ट : यह ब्‍लाग में शव्‍दों के रूप में हाईपर लिंक युक्‍त शव्‍दों को प्रदर्शित करने का माध्‍यम है । इसमें एड लिस्‍ट आईटम में वर्ड कोटेशन लिख कर बाजू में ही दिये गये हाईपर लिंक आईकान को क्लिक कर उस शव्‍द से संबंधित लिंक यूआरएल पेस्‍ट कर एड करना होता है ब्‍लागर्स इसमें एक एक कर कई लिंक लगा सकते हैं एवं अपनी इच्‍छानुसार कितने लिंक को ब्‍लाग में प्रदर्शित करना है इसकी संख्‍या भी निर्धारित कर सकते हैं ।


5 लिंक लिस्‍ट : लिंक के समान ही इसमें यूआरएल डाल कर साईट नाम डालते हुए लिंक साईटों का लिस्‍ट बनाया जा सकता है ।


6 पिक्‍चर : इस विकल्‍प के द्वारा आप अपना पसंदीदा फोटो अपने ब्‍लाग के साईडबार में लगा सकते हैं । यहां फोटो लगाने के दो विकल्‍प हैं पहला अपने हार्ड डिस्‍क में सेव फोटो को अपलोड करने का एवं दूसरा फोटोबकेट जैसे फोटो वेवसाईट में पूर्व से अपलोड किसी फोटों को चयन करने का । ज्‍यादातर नये ब्‍लागरों के द्वारा पहले विकल्‍प का ही उपयोग किया जाता है । यानी ब्राउज के सहारे अपने हार्ड डिस्‍क में सेव फोटो को अपलोड करें, यदि आपका फोटो साईडबार की चौडाई से ज्‍यादा बडा है तो संकुचित करें बिन्‍दी को क्लिक करें यदि फोटो साईडबार की चौडाई से कम है तो संकुचित करें । बिंदी से मार्क क्लिक कर हटा लेवें । सेव करें । हेडर फूटर में फोटो लगाने संबंधी विवरण हम आगे के पोस्‍टों में प्रदान करेंगें ।


7 एड सेंस : यह विकल्‍प प्रारंभिक एड सेंस उपयोगकर्ता ब्‍लागर्स के लिये है । मेरे अनुसार से एड सेंस के लिये बेहतर विकल्‍प एड सेंस में पंजीयन करा कर लागईन होकर, पसंदीदा एड सेंस का चुनाव कर एचटीएमएल कोड प्राप्‍त करें एवं एचटीएमएल/जावा स्‍क्रीप्‍ट विकल्‍प में इसे पेस्‍ट करें ।


8 टेक्‍स्‍ट : इससे हम कोई कोटेशन अपने ब्‍लाग के स्थिर बारों में लगा सकते हैं । इसके चयन के बाद खुले विंडो में मनचाहा कोटेशन डाले और सेव करें । यहां आप अपने शव्‍दों को रंगीन भी कर सकते हैं इसके साथ ही किसी शव्‍द या शव्‍द समूह को हाईपर लिंक भी कर सकते हैं । हाईपर लिंक लगाने के लिए पहले इसी विंडो में लिखे गये शव्‍द को माउस से सलेक्‍ट करें फिर इस विंडो के उपर दिये गये हाईपर लिंक आईकान को क्लिक करें यहां एक छोटा सब विंडो ओपन होगा । जिसमें यूआरएल को पेस्‍ट करें । कार्य पूर्ण करने के बाद सेव करें ।


9 एचटीएमएल / जावा स्क्रिप्‍ट : ब्‍लागर्स डाट काम के द्वारा प्रदान किया गया यह एक महत्‍वपूर्ण पेज एलीमेंट है । ब्‍लागर्स इसके द्वारा एचटीएमएल / जावा स्‍क्रीप्‍ट कोडों को अपने ब्‍लाग में डाल कर उनके प्रभाव को प्रदर्शित करता है । ब्‍लागर्स की भाषा में जहां भी कोड शव्‍द का प्रयोग होता है उसका अभिप्राय एचटीएमएल / जावा स्‍क्रीप्‍ट कोड से होता है । एड न्‍यू पेज एलीमेंट विंडों में इस विकल्‍प को चयन करने पर जो विंडो खुलता है उसमें दिये गये खाने पर एचटीएमएल / जावा स्‍क्रीप्‍ट कोड डाले जाते हैं जो या तो हम स्‍वये बनाते हैं या किसी वेबसाईट से प्राप्‍त कोड होता है । फीड एग्रीगेटर, फीड बर्नर, हिट काउंटर व गूगल एड से प्राप्‍त कोडों को यहीं डालना होता है । इन कोडों में चित्र व शव्‍द सन्निहित होते हैं जो इस विंडो को सेव करने पर ब्‍लाग में प्रदर्शित होते हैं । इस विंडो में रिच टैक्‍स्‍ट पूर्वदर्शन का विकल्‍प भी मौजूद रहता है ।


10 फीड : अपने ब्‍लाग में प्रवृष्‍ट किये गये सामाग्री को पाठक तक पहुचाने का यह एक सशक्‍त माध्‍यम है इसके सहारे पाठक को ब्‍लाग की सामाग्री ई मेल के द्वारा एवं एग्रीगेटरों को फीड के द्वारा प्राप्‍त होती है । मेरा सुझाव यह है कि ब्‍लागर्स फीडबर्नर की सदस्‍यता लेवें एवं यहां फीडबर्नर की फीड यूआरएल पेस्‍ट करें ।


12 लेबल : यह ब्‍लाग का अतिमहत्‍वपूर्ण तत्‍व है । यद्धपि यहां पर सिर्फ इसे ओपन कर इसमें दिये गये क्रम विकल्‍पों के चयन के बाद सेव बस करना होता है । इससे पोस्‍ट लेबल हमारे ब्‍लाग में विषय सूची के रूप में दर्शित होता है जिसे क्लिक कर पाठक आपके उस विषय से संबंधित पोस्‍ट तक पहुच सकते हैं ।


13 वीडियो बार : इससे गूगल वीडियो द्वारा उपलब्‍ध बार में तीन चार वीडियो प्रदर्शित होते हैं जो गूगल वीडियो साईट के लोकप्रिय वीडियो होते हैं । हिन्‍दी ब्‍लाग के लिये अभी इसकी विशेष उपयोगिता नहीं है । यदि आप अपने पसंद के वीडियो यहां लगाना चाहें तो अपने वीडियो यू ट्यूब जैसे किसी वीडियो अपलोडर साईट में अपलोड कर प्राप्‍त कोड को एचटीएमएल / जावा स्‍क्रीप्‍ट एलीमेंट में पेस्‍ट करें ।


14 लोगो : यह ब्‍लागर्स डाट काम के विभिन्‍न रंगों के लोगो को अपने ब्‍लाग में लगाने संबंधी विकल्‍प है ।


15 प्रोफाईल : प्रारंभिक तौर पर ब्‍लाग निर्माण के समय टेम्‍पलेट चयन के साथ ही यह तत्‍व स्‍वाभाविक रूप से ब्‍लाग में एड रहता है, यदि यह तत्‍व आपके ब्‍लाग में एड न हो तो इसे क्लिक कर एड कर लेवें ।


16 ब्‍लाग अचीव : यह तत्‍व ब्‍लाग के प्रवृष्ठियों को तिथि के अनुसार ब्‍लाग में प्रस्‍तुत करता है । सामान्‍यतया यह तत्‍व भी आरंभिक तौर पर एड रहता है फिर भी यदि यह तत्‍व एड न हो तो इसे क्लिक करें एवं दिन, सप्‍ताह, महीनों के इच्छित विकल्‍प को चुनें एवं इसी विंडों में इसके प्रभाव को देख कर सेव कर लेवें ।


उपरोक्‍त जानकारी के आधार पर पृष्‍ट तत्‍व जोडने की क्रिया पूर्ण करें एवं लेआडट पेज के व्‍यू ब्‍लाग को क्लिक कर अपना ब्‍लाग देखें । अब आपके द्वारा जोडे गए तत्‍व आपके ब्‍लाग में दिख रहे हैं । यदि आप इन जोडे गये पृष्‍ट तत्‍वों को साईडबार, हेडर व फुटर में अपने इच्‍छानुसार उपर नीचे करना चाहें तो इसके लिये लेआउट में जाकर यह तय करें कि किस पृष्‍ट तत्‍व को कहां लगाना चाहते हैं फिर उस पृष्‍ट तत्‍व में माउस को ले जायें उसे सिंगल क्लिक करें, क्लिक बटन को दबाए हुए ही ड्रैग करते हुए माउस वहां ले जायें जहां आप इसे लगाना चाहते हैं यानी उपर या नीचे । आप देखेंगें कि जैसे ही वह तत्‍व वहां पहुंचेगा एक खाली स्‍थान बन जायेगा वहां ले जाकर माउस पर दबाव छोड दें । आपका पृष्‍ट तत्‍व आपके मनचाहे स्‍थान पर सेट हो गया । अब आप इस लेआउट में किये गये इस परिवर्तन को लेआउट पेज के उपर तरफ दिये गये सेव बटन को क्लिक कर सेव करें, पुन: ब्‍लाग देखें । आप ऐसा कर के अपने पृष्‍ट तत्‍वों को एक एक कर सजा सकते हैं ।


आशा है कि नये हिन्‍दी ब्‍लागर्स इससे लाभान्वित होंगें । यदि आपका सहयोग बना रहा तो हम आगामी पोस्‍टों में हिन्‍दी ब्‍लाग प्रवेशिका जारी रखेंगें ।

संजीव तिवारी

हिन्दी ब्लाग प्रवेशिका 1 : ब्लाग में न्यू पोस्ट के विकल्पों की जानकारी

आपने सफलतापूर्वक अपना ब्‍लाग बना लिया है और गूगल के हिन्‍दी टूल के माध्‍यम से हिन्‍दी में पोस्‍ट भी पब्लिश कर लिया है । इसके बावजूद कई नये ब्‍लागर्स, पोस्‍ट तो नियमित तौर पर पब्लिश कर लेते हैं किन्‍तु उन्‍हें न्‍यू पोस्‍ट पेज के अवयवों के संबंध में पूर्ण जानकारी नहीं होती । इसलिये नये ब्‍लागर्स की सुविधा के लिये हम यहां पोस्टिंग संबंधी संपूर्ण जानकारी क्रमिक रूप में प्रस्‍तुत कर रहे हैं :-

जब आप अपने ब्‍लाग में कोई नई प्रवृष्टि करने के लिये साईन इन डैशबोर्ड न्‍यू पोस्‍ट में आते हैं तो वहां इस चित्र के अनुसार पोस्‍ट विंडो के अतिरिक्‍त 20 विकल्‍प प्राप्‍त होते हैं जिसका विवरण इस प्रकार है -


(पूर्ण आकार के लिये फोटो को क्लिक करें)

1 पोस्‍ट शीर्षक : पोस्‍ट करने के पूर्व अपनी सामाग्री का शीर्षक यहां लिखें जो आपके ब्‍लाग में मोटे अक्षरों से इस प्रवृष्टि के लिंक सहित प्रदर्शित होगा । ब्‍लाग में इसी शीर्षक को क्लिक करने पर पोस्‍ट की जाने वाली सिर्फ यह सामाग्री ही प्रदर्शित होगी एवं इसके नीचे इस प्रवृष्टि पर की गई टिप्‍पणियां भी प्रदर्शित होगी । कई बार देखा जाता है कि कि ब्‍लागर्स बिना शीर्षक डाले ही पोस्‍ट पब्लिश कर देते हैं जिससे टिप्‍पणी देने व देखने में असुविधा होती है ।


2 फोंट : यह सुविधा अभी अंग्रेजी भाषा के लिए ही उपलब्‍ध है । हिन्‍दी में मंगल यूनिकोड के अतिरिक्‍त कोई अन्‍य फोंट यूनि‍कोडित नहीं है इस कारण हमारे पास अभी फोंट संबंधी अन्‍य विकल्‍प उपलब्‍ध नहीं है ।


3 टेक्‍स्‍ट साईज : यह हमारी प्रवृष्टि के शव्‍दों को विभिन्‍न आकार में प्रदर्शित करने का विकल्‍प देता है । ब्‍लागर्स प्रवृष्टि में विषय के अनुसार शव्‍दों को छोटा बडा कर के अपना संप्रेषण प्रभावी बना सकता है ।


4 बोल्‍ड व इटालिक विकल्‍प : उपरोक्‍त विकल्‍प के अनुरूप यह शब्‍दों को बोल्‍ड व इटालिक बनाता है । इसके लिये शव्‍द को सलेक्‍ट कर इस बटन को क्लिक करना होता है ।


5 रंग विकल्‍प : विकल्‍प 4 जैसा ही शव्‍दों को अलग अलग रंगों में प्रस्‍तुत करने के लिए इस विकल्‍प का प्रयोग करें । शव्‍दों को सलेक्‍ट कर इस विकल्‍प को क्लिक करने पर विभिन्‍न रंग प्रस्‍तुत होते हैं उनमें से किसी एक रंग को क्लिक करने पर शव्‍द के रंग बदले जा सकते हैं ।


6 लिंक विकल्‍प : यह विकल्‍प पोस्‍ट सामाग्री में उल्‍लेखित अन्‍य वेबसाईट, ब्‍लाग या अपने पूर्व पोस्‍ट के संदर्भों को लिक सहित प्रस्‍तुत करने की सुविधा प्रदान करता है । किसी शव्‍द या शव्‍द समूह में लिंक लगाने के लिए पहले उसे सलेक्‍ट करें फिर लिंक विकल्‍प को क्लिक करें । इससे एक छोटा विंडो खुलेगा जिसमें http:// लिखा होगा । यहां संदर्भित वेबसाईट, ब्‍लाग या अपने पूर्व पोस्‍ट का यूआरएल एड्रेस कापी कर पेस्‍ट कर देवें व सेव कर लेवें । आपके शव्‍दों में लिंक लग जायेगा जो ब्‍लाग पब्लिश होने के बाद उन शव्‍दों में नजर आयेगा ।


7 टेक्‍स्‍ट एलाईनमेंट विकल्‍प : यह विकल्‍प प्रवृष्टि के शव्‍दों को दायां बायां, बीच में एवं जस्‍टीफाई मोड में प्रस्‍तुत करने के लिए उपयोग में लाया जाता है । इस संबंध में नये ब्‍लागर्स के लिये सलाह यह है कि वे जस्‍टीफाई विकल्‍प का चयन न करें क्‍योंकि इससे फायर फाक्‍स उपयोक्‍ता को शव्‍द ठीक से नजर नहीं आता ।


8 वर्ड्स मल्‍टी लेवल व इनवाईटेड कामा विकल्‍प : यह विकल्‍प सामान्‍यतया हिन्‍दी ब्‍लागर्स उपयोग नहीं करते इसमें अंग्रेजी भाषा के लिए बेहतर शव्‍द प्रदर्शन विकल्‍प मौजूद हैं । इसके प्रयोग के संबंध में मुझे ज्‍यादा जानकारी नहीं है ।


9 स्‍पैल चैक विकल्‍प : यह विकल्‍प हिन्‍दी प्रयोक्‍ताओं के लिये अभी पूरी तरह से सक्षम नहीं हो पाया है ।




10 फोटो अपलोड विकल्‍प : जैसे ही हम इस विकल्‍प को क्लिक करते हैं एक विंडो खुलता है जो इस चित्र की तरह दिखता है । अब आप इसमें अपने हार्ड डिस्‍क में पहले से सेव फोटो को ब्राउज करें, फोटो को शव्‍दों के किस एलाईमेंट में सेट करना है उसके लिये दायें बायें या मध्‍य में रखने के लिए नीचे दिये गये बिंदी में क्लिक करें । यदि आप पहली बार फोटो अपलोड कर रहे हों तो कापीराईट नियमों को स्‍वीकारने संबंधी खाने को क्लिक करें । अब फोटो अपलोड करें बटन को क्लिक करें । फोटो अपलोड होना आरंभ हो जायेगा, जैसे ही यह प्रक्रिया पूर्ण होगी उस विंडो में अपलोड चित्र के साथ पूर्ण करें या डन बटन उभरेगा जिसे क्लिक करें । आपका फोटो आपके न्‍यू पोस्‍ट पेज में आ जावेगा, यह फोटो सदैव आपके पोस्‍ट के उपरी सिरे पर ही अपलोड होगा अब आप इसे सलेक्‍ट कर माउस से ड्रैग करते हुए अपने इच्छित शव्‍द समूह या पैराग्राफ के पास लगा सकते हैं ।


11 वीडियो अपलोड विकल्‍प : जैसे फोटो अपलोड किया है लगभग उसी तरह से वीडियो अपलोड किया जा सकता है । आपके 100 एमबी तक के वीडियो गूगल वीडियो के द्वारा यहां अपलोड हो सकता है ।


12 इरेजर विकल्‍प : यह विकल्‍प शव्‍दों को हटाने के लिये प्रयोग में लाया जाता है जिसकी आवश्‍यकता प्राय: नहीं पडती यदि पडती भी है तो हम बैकस्‍पेस या डिलीट की के प्रयोग से शव्‍दों को हटा सकते हैं ।


13 हिन्‍दी व अन्‍य भारतीय भाषा के विकल्‍प : यह विकल्‍प हमें रोमन की के साथ भारतीय भाषाओं को प्रस्‍तुत करने का साधन उपलब्‍ध कराता है । इसमें हिन्‍दी के ‘अ’ शव्‍द को क्लिक करने के बाद रोमन में टाईप करने पर इस पोस्‍ट में शव्‍द हिन्‍दी भाषा में प्रस्‍तुत होते हैं । ज्‍यादातर हिन्‍दी ब्‍लागर्स हिन्‍दी के लिये अलग अलग साफ्टवेयर टूल का उपयोग करते हैं इस कारण इस विकल्‍प का उपयोग प्राय: कम ही होता है ।

14 एचटीएमएल संपादन : यदि आप एचटीएमएल के जानकार हैं तो इस बटन के द्वारा पोस्‍ट खिडकी में एचटीएमएल भाषा में प्रवृष्टि लिख सकते हैं या अपने सामान्‍य भाषा में लिखी गई प्रवृष्टि में एचटीएमएल कोड आदि यहां जाकर लगा सकते हैं ।


15 कम्‍पोज संपादन : सामान्‍यतया न्‍यू पोस्‍ट के पेज ओपन होने पर यह विकल्‍प प्रभावी रहता है । इस विकल्‍प को क्लिक करने की आवश्‍यकता एचटीएमएल संपादन के बाद उसके प्रभाव को देखने के लिये किया जाता है । यदि आप सामान्‍य लेख, कविता, कहानी, फोटो या वीडियो अपने प्रविष्टि में शामिल करते हैं तो इस विकल्‍प को क्लिक करने की आवश्‍यकता ही नहीं पडती ।


16 प्रीव्‍यू पूर्व दर्शन विकल्‍प : जब हम उपरोक्‍त विकल्‍पों के माध्‍यम से अपना पोस्‍ट पूर्ण कर लेवें तब ब्‍लाग में पब्लिश होने पर यह प्रवृष्टि कैसे नजर आयेगी इसे देखने के लिये इस विकल्‍प का प्रयोग करें । जब आप इसे क्लिक करेंगें तो पोस्‍ट विंडो बंद हो जायेगा और उसके नीचे पूर्वदर्शन प्रस्‍तुत होगा जिसमें आपकी प्रवृष्टि नजर आयेगी । प्रवृष्टि में किसी प्रकार के संपादन की आवश्‍यकता होने पर पूर्वदर्शन के स्‍थान पर पूर्वदर्शन हटायें लिखे हुए शव्‍द को क्लिक करें पुन: पोस्‍ट विंडो खुल जायेगा जिसमें आप संपादन कर सकेंगें । यदि किसी भी प्रकार से संपादन की आवश्‍यकता न हो तो आगे बढे ।


17 पोस्‍ट प्रकाशन विकल्‍प : इसे क्लिक करने पर पोस्‍ट विंडो में अतिरिक्‍त अवयव जुडते हैं जिसमें टिप्‍पणी को सक्षम करने या रोकने संबंधी विकल्‍प होता है जिसे सदैव सक्षम ही रखें इससे आपके पाठक आपको टिप्‍पणी दे सकेंगें । इसके नीचे पोस्‍ट पब्लिश करने का दिनांक व समय का विकल्‍प होता है जो प्राय: ब्‍लागर्स डाट काम स्‍वत: ही डिफाल्‍ट लेता है । यदि आप अपने पोस्‍ट को आगे की तिथियों में पब्लिश करना चाहें तो यहां आगामी तिथि व समय डालें इससे आपका पोस्‍ट शेड्यूल्‍ड हो जावेगा और उसी दिन व समय पर पब्लिश होगा ।


18 लेबल विकल्‍प : यह ब्‍लाग का अतिमहत्‍वपूर्ण अंग है । यहां हमारे प्रविष्टियों से संबंधित छोटे शब्‍दों का समावेश किया जाता है जिसके सहारे सर्च इंजन, पाठक को हमारे ब्‍लाग तक खींच कर लाता है । यहां एक से अधिक लेबलों का प्रयोग किया जा सकता है किन्‍तु प्रत्‍येक लेबल के बीच में कामा का प्रयोग किया जाता है । ज्‍यादातर ब्‍लागर्स लेबल को अपने विषय संदर्भ के रूप में भी प्रयोग करते हैं ।


19 पब्लिश पोस्‍ट : यदि आपने सभी विकल्‍पों का समुचित उपयोग करते हुए अपनी प्रवृष्टि पूर्ण कर ली है तो इस बटन को क्लिक कर अपना पोस्‍ट पब्लिश कर सकते हैं । इसे क्लिक करने के बाद आपका पोस्‍ट पब्लिश होकर ब्‍लाग का स्‍वरूप ग्रहण कर लेता है और जैसे ही हम इस की को क्लिक करते हैं फीड एग्रीगेटरों को इसकी फीड तत्‍काल प्राप्‍त हो जाती है और वे कुछ क्षणों के पश्‍चात आपके पोस्‍ट को अपने साईट में दिखाने लगते हैं ।


20 सेव पोस्‍ट : इस बटन के द्वारा आप अपनी प्रवृष्टि को बाद में पुन: संपादन या प्रकाशन के लिये सेव कर के रख सकते हैं जो एडिट पोस्‍ट पेज में जाकर सेव होता है ।


नये हिन्‍दी ब्‍लागर्स से अनुरोध है कि वे इसके अतिरिक्‍त हिन्‍दी में उपलब्‍ध मेरे अग्रजों के अन्‍य पोस्‍टों को भी पढे । सर्वज्ञ में उपलब्‍ध जानकारी को देखें व चिट्ठाकार गूगल ग्रुप के सदस्‍य बने । आरंभिक तौर पर उपरोक्‍त जानकारी को पढ कर धीरे धीरे स्‍वयं सक्षम हो जावेंगें और बेहतर हिन्‍दी ब्‍लागिंग करने में सक्षम होंगें एवं अंतरजाल में हिन्‍दी को समृद्ध करेंगें ।


यदि आप इससे लाभन्वित होते हैं तो आपसे अनुरोध है कि यहां टिप्‍पणियों से हमें अपनी राय से अवगत करायें । हम आगे समय समय पर हिन्‍दी ब्‍लाग प्रवेशिका संबंधी अन्‍य पोस्‍ट भी प्रस्‍तुत करने का प्रयत्‍न करेंगे ।

संजीव तिवारी

लेबल

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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

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