मदराजी महोत्सव: अस्तित्व संकट और संघर्ष (24 सितम्बर दाऊ मदराजी की पुण्य तिथि पर विशेष)

प्रस्तुति - लखनलाल साहू “लहर”

छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति में नाचा का विशिष्ट स्थान है। छत्तीसगढ़ी नाचा-गम्मत को दाऊ दुलार सिंह मदराजी ने नई ऊँचाई दी है तथा छत्तीसगढ़ी लोक संगीत व लोक गीतों को लोक कंठ तक पहुँचानें में स्व. खुमानलाल साव का विशिष्ट योगदान है। छत्तीसगढ़ी नाचा और छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के ये दोनों शिखर पुरूष सदैव याद किये जायेंगे। मदराजी दाऊ का जन्म 1 अप्रैल 1911 में जिला मुख्यालय राजनांदगाँव से 7 कि.मी. दूर ग्राम रवेली के मालगुजार परिवार में हुआ था। इनके पिताजी रामाधीन साव एवं माता जी श्रीमती रेवती बाई साव थे। मदराजी दाऊ की प्रारंभिक शिक्षा प्राथ्रमिक शाला कन्हारपुरी में संपन्न हुई। छत्तीसगढ़ी लोक कला के सांस्कृतिक दूत श्री खुमानलाल साव जी का जन्म 05 सितम्बर सन् 1929 को डोंगरगाँव के पास खुर्सीटिकुल गाँव में मालगुजार परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम दाऊ श्री टीकम नाथ साव तथा माता श्रीमती कमला बाई साव थी। मदराजी दाऊ की माता जी रेवती और कमला बाई दोनों सगी बहनें थीं, जो ग्राम जंगलेशर निवासी जमींदार सिद्धनाथ साव की बेटियाँ थी। खुमान साव जी म्यूनिस्पल स्कूल में शिक्षकीय कार्य करते हुए छत्तीसगढ़ी लोक संगीत साधना में लगे रहे। बाद में वे ग्राम ठेकवा में आकर बस गए और 70 की दशक में लगातार चंदैनी गोंदा के माध्यम से छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति और गीतों को सँवारने में लगे रहे ।



छत्तीसगढ़ी नाचा-गम्मत और लोक संस्कृति के प्रति अनुराग रखने के कारण दाऊजी समर्पित भाव से कला जगत से जुड़े रहे और छत्तीसगढ़ी नाचा-गम्मत को जीवन भर साधते रहे। उन्होंने नाचा की खड़े साज को परिष्कृत और आधुनिक स्वरूप प्रदान किया। परिणाम स्वरूप छत्तीसगढ़ी नाचा-गम्मत जन-जन तक पहुँचा। दाऊ मदराजी ने सन् 1927-28 में रवेली नाचा पार्टी का गठन किया और छत्तीसगढ़ के विभिन्न अंचलों में बिखरे हुए कलाकारों को संगठित किया और नाचा के लिए काम करते रहे। छत्तीसगढ़ी नाचा-गम्मत को दर्शकों ने खूब सराहा। गाँव हो या शहर सन् 40 के दशक में नाचा की खूब धूम मची। दाऊजी सिनेमाघरों को भी मात देने में सफल रहे। सही मायने में नाचा, छुआछूत, भ्रष्टाचार, पूँजीवाद, सामाजिक कुरीतियाँ और ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक जन आन्दोलन था जिससे लोग प्रभावित होते रहे और जुड़ते रहे।




दाऊजी जी की नाचा पार्टी में फिदा बाई, मदन निषाद, भुलवाराम, गोंविन्द राम निर्मलकर, किस्मत बाई, माला बाई, झुमुक दास, नियायिक दास, खुमान लाल साव, ठाकुर राम, मानदास टण्डन, सुखीराम निषाद, अमर सिंह, खम्भन लाल अरकरे, लालूराम, पंचराम देवदास, जगन्नाथ धोबी, नोहरलाल, आत्माराम कोशा, बिसौहा राम साहू, बिसराम साहू जैसे अनेक गुमनाम कलाकारों ने समर्पित भाव से काम किया।

मदराजी दाऊ जी के पास जीवन के अंतिम समय में हारमोनियम के सिवाय कुछ भी नहीं बचा। उन्हें आर्थिक तंगी और कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। 24 सितम्बर 1984 को अपने गृह ग्राम रवेली में अंतिम साँस ली। राज्य शासन ने नाचा के पितृपुरूष मदराजी दाऊ के निधन के पश्चात् उनकी स्मृति में कलाकारों को मंदराजी पुरूस्कार देने का निर्णय भी लिया है। जिसके अंतर्गत दो लाख रूपये सम्मानित होने वाले कलाकार को दाऊ दुलार सिंह मदराजी सम्मान के रूप में प्रदान किया जाता है। परंतु यह कैसी विडम्बना है, जीते जी मंदराजी दाऊ को और मृत्यु के पश्चात् उनकी स्मृति में आयोजित होनेवाले मंदराजी महोत्सव को भी आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ रहा है।




27 वर्षों से लगातार मदराजी महोत्सव का सिलसिला जारी है। महोत्सव की शुरूआत 1993 में हुई। दाऊजी की कला यात्रा और यादों को संजोने, ग्रामीणों ने मदराजी महोत्सव समिति बनाई। आयोजन के प्रथम वर्ष 1 अप्रैल 1993, दिन गुरूवार को सोनहा बिहान के संचालक दाऊ महासिंग चंद्राकर व कलाकारों की उपस्थिति में मदराजी दाऊ की प्रतिमा का अनावरण किया गया जिसे ग्राम थनौद से लाया गया था। महोत्सव की शुरूआत करने में संगीत के पुरोधा स्व. खुमानलाल साव एवं मदराजी के छोटे भाई बलेश्वर साव सहित मदराजी महोत्सव समिति व ग्रामीणों का विशेष योगदान रहा। बिना किसी सरकारी मदद के कई वर्षों तक बलेश्वर साव जी व खुमानलाल साव जी मदराजी महोत्सव आयोजित करते रहे। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद सरकार ने इस आयोजन के लिए आर्थिक सहायता घोषणा किया था परंतु इस राशि के को प्राप्त करने के लिए आयोजन समिति के पसीने छूट जाते हैं। संस्कृति विभाग और अन्य कार्यालयों के कई चक्कर लगाने पड़ते हैं। मदराजी महोत्सव को आज भी जनसहयोग से ही आयोजित किया जाता है। रवेली सहित आस-पास के ग्रामीण व कला प्रेमी इस आयोजन के लिए यथाशक्ति अपना आर्थिक योगदान देते आ रहे हैं।

छत्तीसगढ़ में होने वाले विभिन्न महोत्सवों की तरह मदराजी महोत्सव की भव्यता विशिष्ट है। मदराजी महोत्सव कलाकारों का कुंभ है जहाँ से छत्तीसगढ़ के छोटे-बड़े कलाकारों को पहचान मिलती रही है, परंतु 9 जून 2019 को संगीत के पुरोधा खुमानलाल साव जी के आकस्मिक निधन से छत्तीसगढ़ी लोक संगीत की दुनिया में सन्नाटा छा गया, कला जगत स्तब्ध है। 10-12 वर्ष की उम्र में मदराजी दाऊ की नाचा पार्टी से हारमोंनियम की रीड में सुरों का जादू बिखेरने वाले और चंदैनी गोंदा के माध्यम से छत्तीसगढ़ी लोक संगीत को नये आयाम देने वाले विराट व्यक्तित्व खुमानलाल साव जी को भारत सरकार ने सन् 2015 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की और 4 अक्टूबर 2016 को तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम प्रणव मुखर्जी ने नई दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में खुमान सर जी को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान किया। खुमान सर जी मदराजी महोत्सव के सूत्रधार थे। अब बलेश्वर साव जी बिल्कुल अकेले पड़ गये हैं। प्रति वर्ष कार्यक्रम की रूपरेखा दोनों मिलकर बनाते थे। खुमान सर के निवेदन के कारण छत्तीसगढ़ की कोई भी संस्था या कलाकार सहजता से मदराजी महोत्सव में उपस्थित होकर अपनी कला का प्रदर्शन करते थे। कलाकारों को बड़ी मुश्किल से मार्ग व्यय ही उपलब्ध हो पाता था।



दुर्भाग्य यह की कई बार मदराजी महोत्सव समिति के फरियाद के बावजूद शासन की आँखें नहीं खुली हैं और इस महोत्सव के लिए अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है। अगर कभी मिला भी तो ऊँट के मुँह में जीरा। मदराजी महोत्सव समिति ने जनप्रतिनिधियों के समक्ष यहाँ तक भी बात रखी है कि छत्तीसगढ़ में जिस प्रकार अन्य महोत्सवों को प्रशासनिक स्तर पर कराया जाता है ठीक उसी प्रकार मदराजी महोत्सव आयोजन की जिम्मेदारी भी शासन-प्रशासन को ले लेनी चाहिए और अपने संरक्षण में मदराजी महोत्सव का आयोजन करना चाहिए। परन्तु ऐसा आज तक नहीं हुआ जबकि मदराजी महोत्सव में सभी दल के जन प्रतिनिधि बराबर आते हैं। आयोजन की भव्यता किसी से छिपी नही है। बस जो भी जनप्रतिनिधि यहाँ अतिथि बनकर आता है दो-चार चिकनी-चुपड़ी बातें बोलकर और झूठे आश्वासनों का मरहम लगाकर चला जाता है। पता नहीं यह सिलसिला कब तक चलेगा? क्या ऐसे में छत्तीसगढ़ी लोककला, संस्कृति और साहित्य को हम संरक्षित कर पायेंगे?

लखनलाल साहू “लहर”
अध्यक्ष, साकेत साहित्य परिषद् सुरगी
निवास - ग्राम मोखला, पो. भर्रेगाँव,
जिला - राजनांदगाँव (छ.ग.)
मो - 9630312197
ई.मेल - lakhan.sahu12197@gmial.com

हिन्दी गद्य के आलोक में दुर्ग भिलाई के रचनाकार

-    विनोद साव
हिन्दी साहित्य के भारतेंदु युग के उद्भट रचनाकार प्रतापनारायण मिश्र ने एक पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया था उसका नाम रखा था ‘ब्राम्हण’. यह एक सामाजिक-साहित्यिक पत्रिका. बस इसी तरह से दुर्ग और उसके पडोसी नगर भिलाई में कारखाने की स्थापना के बाद कोई पत्रिका निरंतर आठ वर्षों तक हर माह छपती रही तो वह एक जातीय संगठन की पत्रिका थी ‘साहू सन्देश’ और इस पत्रिका के संपादक थे पतिराम साव. साव जी के संपादन में यह पत्रिका १९६० से १९६८ तक निरंतर प्रकाशित होती रही. पतिराम साव न केवल समाज के एक अग्रणी आन्दोलनकर्ता थे बल्कि वे दुर्ग में १९२७ से शिक्षक और बाद में प्रधानाध्यापक हुए थे. वे समाज सेवी थे, स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय थे. शिक्षक संघ के आन्दोलन में जेल गए थे. नागपुर जेल में उन्हें पंद्रह दिनों तक रहना पड़ा था. वे दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति के पहले महामंत्री थे. मंचों पर कविता पाठ की परंपरा की स्थापना करने वालों में से थे. उनके नाम से हर वर्ष साहित्यकारों, शिक्षकों व समाजसेवियों को अपने योगदान के लिए ‘समाजरत्न’ पतिराम साव सम्मान’ से अलंकृत किया गया.



चूँकि आज़ादी के बाद साहित्यिक पत्रिकाओं का अभाव था इसलिए साव जी द्वारा सम्पादित ‘साहू सन्देश’ में ही सभी समाज के साहित्यकार छपा करते थे. छत्तीसगढ़ी के चर्चित कवि कोदूराम दलित तो ‘साहू संदेश’ की उपज हैं. तब शिशुपाल बलदेव यादव, उदयप्रसाद ’उदय’ (ताम्रकार), दानेश्वर शर्मा, रघुवीर अग्रवाल पथिक, बसंत देशमुख जैसे कितने ही छत्तीसगढ़ी हिन्दी के तत्कालीन वरिष्ठ व युवा रचनाकार साव जी के संपादन में ‘साहू संदेश’ में छपा करते थे. इस पत्रिका में छेदीलाल बैरिस्टर, डा.खूबचंद बघेल जैसे बड़े विचारवानों के भाईचारा और स्थानीय अस्मिता की भावना से भरे पुनर्प्रकाशित आलेखों को भी हम पढ़ा करते थे. पत्रिका के हर अंक में संपादक साव जी द्वारा लिखित सम्पादकीय चिंतन परक होता था जिस पर संपादक कार्यालय में गहमागहमी के साथ चर्चा बैठकी होती रहती थी. कहा जा सकता है कि साव जी और उनके समकालीन गुरुजनों के माध्यम से इस अंचल में सद्भावपूर्ण साहित्यिक वैचारिक वातावरण बनाने की ठोस शुरुआत हो चुकी थी.




इसके बाद वह दौर आया जब भिलाई इस्पात संयत्र अपने किशोरवय को प्राप्त कर अपनी जवानी के जोश को प्राप्त कर रहा था और लौह उत्पादन में देश में न केवल अग्रणी ईकाई सिद्ध हो रहा था बल्कि अपनी कार्य-संस्कृति के बीच अवकाश के क्षणों के लिए भिलाई के कर्मवीरों को उनके अनुकूल मनोरंजन देने के उपक्रम भी कर रहा था. इस सोच के साथ तीन क्लबों का गठन किया गया – लिटररी क्लब, आर्ट क्लब और एडवेंचर क्लब.. और इन तीनों क्लबों में सबसे ज्यादा मुखरित हो रहा था लिटररी क्लब. इस क्लब के अध्यक्ष हिन्दी साहित्य के दो आलोचक-समीक्षक हो गए थे – डा.मनराखन लाल साहू और अशोक सिंघई. संयोगवश ये दोनों व्यक्तित्व भिलाई में जनसंपर्क अधिकारी और राजभाषा अधिकारी भी रहे. इन दोनों ने तब अपने अपने समय में जनसंपर्क विभाग और राजभाषा विभाग से आवश्यक स्रोत और संसाधन जुटाकर लिटररी क्लब के माध्यम से हिन्दी साहित्य के विराट आयोजनों को रूप दिया जिसमें देश भर के जाने माने लेखक, चिन्तक और अनेक बुद्धिजीवियों का निरंतर भिलाई आगमन होता रहा. देश में सबसे बड़े और भव्य रूप में हिन्दी दिवस मनाने की शुरुआत हो चुकी थी. इन सबसे  भिलाई की साहित्य साधना को बल मिला और सार्थक दिशा मिल रही थी. आज भी भिलाई के इन दोनों विभागों के प्रभारी अधिकारी – विजय मेराल, उप महाप्रबंधक (जनसंपर्क) और डा.बी.एम.तिवारी, सहा.महाप्रबंधक (राजभाषा) अपने रचनात्मक कार्यक्रमों से कलाकारों और संस्कृति कर्मियों को जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं.   

चूँकि यहां पर गद्य विधा के रचनाकारों पर चर्चा करने को कहा गया है इसलिए इस आरंभिक भूमिका के साथ वैसा ही प्रयास इस आलेख में होगा - दुर्ग में हिन्दी का पहला उपन्यास जो पढने में आया वह था डा.अनंत कुमार चौहान ‘अणु’ का उपन्यास ‘मोड़ पर’. इस उपन्यास का कथानक गृहस्थ और सन्यास धर्म के बीच किसी बेहतर विकल्प को तलाशने के अंतरद्वंद से भरा हुआ था. इस दशा में एक पारंपरिक हिन्दू स्त्री का स्थान कहां और कितना सुरक्षित होगा इस पर इसके पात्रों के मध्य तर्क-वितर्क होते हैं. भले ही इस उपन्यास के चरित्रों में थोडा अस्वाभाविक विकास दिखता है, उपन्यास के पात्रों और उसके लेखक में कुछ भटकाव दिखाई देता है पर फिर भी यह उपन्यास अपने समय में स्त्री विमर्श का ठोस आधार तो बुन रहा था. इसे पढ़ते समय भगवतीचरण वर्मा के उपन्यास ‘चित्रलेखा’ का स्मरण हो आता था.



दुर्ग में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व शिक्षा अधिकारी जमुना प्रसाद कसार हुए. उनकी पुस्तकें उनकी सेवानिवृत्ति के बाद छपीं थीं पर उनमें कथा, उपन्यास, नाटक, निबंध, समीक्षा जैसी अनेक विधाओं की कृतियाँ थीं. कविताएं भी थीं पर उनका गद्य लेखन सशक्त था और इनमें कथा संग्रह - ‘सन्नाटे का शोर’, उपन्यास ‘अक्षर’, निबंध ‘संस्कार का मंत्री, शोध -‘माता कैकेयी: एक रूपांकन’ जैसी अनेक कृतियाँ थीं. कसार जी मानस प्रेमी और कुशल वक्ता थे. आकाशवाणी-रायपुर में ‘आज का चिंतन’ कार्यक्रम के अंतर्गत उन्होंने अनेक चिंतन परक रचनाओं का पाठ किया था.

इस तरह कथा व उपन्यास लेखन दोनों में दुर्ग और उसके पडोसी शहर भिलाई के रचनाकारों ने अपनी उल्लेखनीय पहचान बनाई. स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कथा संसार में दुर्ग में ‘विश्वेश्वर’ एक बड़े कथाकार हो गए थे जिन्होंने बम्बई में रहकर कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव जैसे मनीषी कथाकारों के संग रहकर कथा लेखन किया और धर्मयुग, सारिका, नई कहानी जैसी कई बड़ी पत्रिकाओं में छपे. ‘हंस’ के संपादक राजेन्द्र यादव ने अपने अक्षर प्रकाशन से उनका पहला कथा संग्रह ‘दूसरी गुलामी’ को प्रकाशित किया था. विश्वेश्वर की सर्वाधिक चर्चित कहानी ‘लाक्षागृह’ थी जिनमें उन्होंने अनेक मुखौटों व छद्म रूपों पर जमकर सेंध मारी थी जैसा कि मुक्तिबोध की कहानियों में देखने को मिलता है. उन्हें ‘कहानी’ पत्रिका द्वारा ‘प्रेमचंद कहानी सम्मान’ दिया गया था उनके बाद कहानी लेखन में भिलाई में परदेशी राम वर्मा, लोकबाबू और विनोद मिश्र की तिकड़ी उभर कर आई. इनमें परदेशी राम वर्मा अधिक मुखरित हुए और वे आज भी निरंतर सक्रिय हैं. उनका समूचा लेखन हिन्दी और छत्तीसगढ़ी गद्य का विपुल लेखन है. कथा, उपन्यास और संस्मरण लेखन में उनकी दर्ज़नों कृतियाँ हैं. अपने विषय वैविध्य लेखन से उन्होंने सम्मान भी खूब बटोरा है. उनकी रचनाएं पाठ्यक्रम में भी समाहित हुई हैं. हिन्दी उपन्यास ‘प्रस्थान’ और छत्तीसगढ़ी उपन्यास ‘आवा’ के ज़रिए छत्तीसगढ़ की अस्मिता और आंचलिकता से लबरेज कथाकार के रूप में उनकी बड़ी पहचान बनी है. उन्हें रविशंकर विश्वविद्यालय ने ‘डी-लिट्.’की उपाधि से विभूषित किया है.




परदेशी राम वर्मा को हम आंचलिकता से भरे कथाकार मानते हैं तो लोकबाबू की कहानियों में स्थानीयता की पकड़ को देखा जा सकता है. लोकबाबू उन बिरले रचनाकारों में से हैं जो संगठन और लेखन दोनों ही स्तर पर सक्रिय रहे. वे आजीवन प्रगतिशील लेखक संघ के सदस्य रहे हैं. प्रलेसं की सहयात्री संस्था ’इप्टा’ के कार्यक्रमों में भी अपनी पूरी उर्जा के साथ वे जुटे रहे हैं। उन्होंने गद्य लिखा और गद्य में कहानी लेखन पर अपने को केंद्रित किया। उनके दो कथा संग्रह और दो उपन्यास प्रकाशित हुए हैं। उनके एक उपन्यास ’अब लौं नसानी’ को मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन का ’वागीश्वरी पुरस्कार’ प्राप्त हुआ है। उनकी कहानी ’मेमना’ को केरल के शालेय पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। उनका दूसरा कथा संग्रह है ’बोधिसत्व भी नहीं आये.’ इस पर प्रस्तावना ज्ञानरंजन और सियाराम शर्मा ने लिखी है। संग्रह के फ्लैप पर कमला प्रसाद और शैलेश मटियानी की टिप्पणियॉ भी शामिल हैं।

इस तिकड़ी के कथाकारों में विनोद मिश्र अपने लेखन के आरंभिक दौर में सक्रिय कथाकार थे. उनके भी दो कथा-संग्रह ‘जुमेराती मियाँ’ और ‘स्वप्न गर्भ’ छपे. बाद में लेखन की तुलना में वे आयोजन में अधिक सक्रिय हो गए और भिलाई में पिछले दो दशक से छत्तीसगढ़ राज्य शासन के संस्कृति विभाग के सह्योग से दो आयोजन करते आ रहे हैं - इनमें ‘रामचंद देशमुख बहुमत सम्मान’ में किसी लोक कलाकार को और ‘वसुंधरा सम्मान’ से किसी पत्रकार को सम्मानित किया जाता हैं. साथ ही वे ‘बहुमत’ और ‘एकजुटता’ नाम से अनियतकालीन पत्रिका का संपादन करते हैं.

बल्कि परवर्ती पीढी में दुर्ग के तीन कथाकार ऋषि गजपाल, मनोज रूपड़ा और कैलाश बनवासी ने हिन्दी कथा लेखन में अपना व्यापक प्रभाव डाला. ऋषि गजपाल ‘पहल’ में प्रकाशित अपनी एक लम्बी कहानी से चर्चा में आए. ‘घंटियों का शोर’ सहित उनके दो कथा संग्रह और उपन्यास हैं. मनोज रूपड़ा ने कम मगर लम्बी कहानियां लिखीं जबकि कैलाश बनवासी ने छोटी मगर अधिक कहानियां लिखीं. मनोज और कैलाश इन दोनों ही कथाकारों ने राष्ट्रीय परिदृश्य में अपनी धाक जमाई है. कैलाश को कई पुरस्कार प्राप्त हुए हैं. उनकी कहानियों ने प्रख्यात समालोचक डा. नामवरसिंह का ध्यान खींचा और उन्होंने कैलाश बनवासी की चर्चित कहानी ‘बाज़ार में रामधन’ पर स्वतंत्र टिप्पणी भी की.



महिलाओं ने जो कविता तथा अन्य विधाओं में नाम कमा चुकी थीं उन्होंने कहानी में भी दखल दी. प्रसिद्द गीतकारा संतोष झांझी ने भारत पाकिस्तान विभाजन पर उपन्यास ‘सरहदें आज भी’ लिखा और उनके कथा संग्रह भी आए. संतोष झांझी इसलिए भी उल्लेखनीय नाम हैं क्योंकि उन्होंने भिलाई में हिन्दी रंगमंच को स्थापना दी और अनेक नाटकों में अभिनय किया. इसी तरह डा.नलिनीं श्रीवास्तव, प्रभा सरस, विद्या गुप्ता, सरला शर्मा, मीता दास ने कहानी, निबंध व अनुवाद कर्म में अपनी कलम चलाई. नलिनी श्रीवास्तव ने अपने लेखन के अतिरिक्त अपने दादा पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के समग्र साहित्य का संचयन किया जिन्हें कई खण्डों में वाणी प्रकाशन, दिल्ली ने प्रकाशित किया है. विद्या गुप्ता अपने लेखन, अपनी रचनाओं के पाठ और साहित्य सम्मेलनों में अपने वक्तव्यों से प्रभाव छोडती हैं. कथा संग्रह ‘एक लोटा पानी’ की लेखिका प्रभा सरस एक समय में कई नामी व्यावसायिक पत्रिकाओं में खूब छपा करतीं थीं. भिलाई से सेवानिवृत्ति के बाद सरला शर्मा ने भी निबंध संग्रह और उपन्यास लिखकर अपनी साहित्यिक सक्रियता दर्ज की. मीता दास ने बांग्ला-हिन्दी में लेखन के साथ अनुवाद कर्म करने का बीड़ा उठा लिया है. विशेषकर बांग्ला साहित्यकार नवारुण भट्टाचार्य की कृतियों पर वे काम करतीं हैं. गोविन्द पाल ने भी अपने बांग्ला-हिन्दी लेखन वैविध्य के बीच बालसाहित्य लेखन में अपनी विशेष उपस्थिति दर्ज की है. उनके बालकथा संग्रह और बालनाटक संग्रह प्रकाशित हुए हैं.

हिन्दी व्यंग्य लेखन में दुर्ग भिलाई के लेखकों ने अपनी पहचान बनाई. नई कविता के जाने माने कवि रवि श्रीवास्तव, गुलबीर सिंह भाटिया ने अच्छे गद्य-व्यंग्य भी लिखे. अपनी रचनाओं का अनेक गोष्ठियों में वे पाठ करते हैं. रवि श्रीवास्तव के दो व्यंग्य संग्रह- ‘लालबत्ती का डूबता सूरज’ और ‘राम खिलावन का राम राज्य’ प्रकाशित हुआ. अस्सी की उम्र की और जा रहे इस तेजस्वी व्यक्तिव की रचनाएं आज भी अख़बारों पत्रिकाओं में छप रही हैं. रवि श्रीवास्तव साहित्य के आयोजनों के प्रति बड़े ज़िम्मेदार माने जाते हैं और शहर में साहित्यिक समरसता बनाए रखते हैं. गुलबीर सिंह भाटिया ने व्यंग्य के अतिरिक्त अच्छी कहानियां लिखीं. उनका कथा संग्रह ‘मछली का मायका’ उनके परिपक्व लेखन को प्रमाणित करता है. वे पंजाबी के भी लेखक रहे तब प्रसिद्द कथाकारा अमृता प्रीतम ने उनकी पंजाबी कहानी को अपने द्वारा सम्पादित संग्रह में शामिल भी किया था.




व्यंग्य में विनोद साव यानी मेरी उपस्थिति को हिन्दी व्यंग्य विधा ने स्वीकारा है. सत्रह किताबें प्रकाशित हुई हैं जिनमें चार व्यंग्य संग्रह दो उपन्यास, दो यात्रावृत्तांत और कहानी व संस्मरण के एक एक संग्रह हैं. छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम ने मुक्तिबोध और दाऊ मन्दरा जी साव पर मेरी चित्र कथाएं छापी है. अपने रचनाधर्म पर मैं खुद ही कुछ कहूं उससे ज्यादा प्रासंगिक होगा कि विगत दिनों समग्र लेखन के लिए आयोजक संस्था द्वारा ‘सप्तपर्णी सम्मान’ देते हुए अभिन्दन पत्र में दी गई पंक्तियों को उद्धृत कर देना, यथानुसार – “छत्तीसगढ़ प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मलेन श्री विनोद साव, दुर्ग को उनके सुदीर्घ साहित्यिक अवदान के लिए ईश्वरी प्रसाद मिश्र स्मृति सप्तपर्णी सम्मान २०१८ प्रदान करते हुए आनंद का अनुभव करता है. सर्वप्रथम एक व्यंग्य लेखक के रूप में चर्चित व प्रशंसित होकर उन्होंने कहानी विधा की और रुख किया. इसके समानांतर यात्रावृत्तांत लेखन में भी उनकी रूचि जागृत हुई. इस तरह तीन विभिन्न विधाओं में समान गति से लिखते हुए उन्होंने अपने सामर्थ्य का परिचय दिया. उनकी कहानियों के विषय निरूपण में संवेदनशीलता व शैली में सरसता है, जबकि यात्रा विवरण में वे बारीक़ विवरणों में जाते हैं और सुन्दर कोलाज पाठकों के सामने रखते हैं. सम्मलेन, श्री विनोद साव को शुभकामनाएं देता है कि उनकी लेखनी इसी तरह सक्रिय बनी रहे.”

हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में दुर्ग के जयप्रकाश और भिलाई के सियाराम शर्मा ने प्रतिष्ठा अर्जित की. आलोचना की प्रमुख पत्रिकाओं में इनके आलोचनात्मक निबंध एवं सैद्धांतिक समीक्षाएं प्रकाशित होती रहती हैं. दोनों ही आलोचक आलोचना के वाचिक परंपरा से समृद्ध हैं और साहित्य सम्मेलनों के प्रभावशाली और गंभीर वक्ता हैं. महावीर अग्रवाल ने ‘सापेक्ष’ जैसी साहित्यिक पत्रिका अपने संपादन में प्रकाशित कर और श्री-प्रकाशन के माध्यम से अनेक रचनाकारों के संग्रह छापकर साहित्य जगत में दुर्ग नगर को एक पहचान दी है. उनकी पत्रिका ‘सापेक्ष’ को मध्यप्रदेश साहित्य परिषद द्वारा पुरस्कृत भी किया गया है. जनवादी कवि नासिर अहमद सिकंदर कविता के नए मुहावरों पर बातचीत करते हैं और उन पर उनके आलेख लघु पत्रिकाओं में प्रकाशित होते हैं. उनका ‘आलोचनात्मक गद्य’ प्रकाशनाधीन है. नरेंद्र राठौर साहित्य लेखन के साथ साथ पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में कार्यरत संस्था ‘कवच’ के अध्यक्ष हैं. उन्होंने इतिहास, पुरातत्व और पर्यावरण विषयक पांडुलिपियाँ को खोजने का कार्य किया है. शासकीय महाविद्यालय के प्राचार्य डा.महेशचंद्र शर्मा संस्कृत व हिन्दी के महत्वपूर्ण लेखक हैं. संस्कृत के अनेक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में उन्होंने शिरकत की, उन्होंने शोध पत्र पढ़े और अनेकों बार उन्हें संस्कृत साहित्य में उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया. कल्याण महाविद्यालय, भिलाई के हिन्दी विभागाध्यक्ष डा.सुधीर शर्मा सक्रिय साहित्यकार, संपादक और कार्यक्रम संयोजक हैं. माधव राव सप्रे की पत्रिका ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ के पुनर्प्रकाशन का जिम्मा उठाकर वे इस मासिक पत्रिका का सम्पादन कर रहे हैं. वे साहित्य के शोध संधान और राजभाषा हिन्दी के कार्यक्रमों से जुड़े हैं. इस विषयक वे देश-विदेश की यात्रा भी कर आते हैं.  युवा रचनाकारों में प्रगतिशील लेखक संघ, भिलाई के अध्यक्ष हैं परमेश्वर वैष्णव जो अनेक साहित्यिक आयोजनों में अपनी सक्रियता और अपने वैचारिक वक्तव्यों से पहचान बना रहे हैं.



भिलाई में केवल साहित्यकारों में ही नहीं यहां के पत्रकारों में भी लेखकीय प्रतिभा साहित्यकारों के बरक्स है. क्रांतिकारी विचारों से लैस भिलाई के पत्रकार राजकुमार सोनी ने हिन्दी नाटकों और रंगमंच पर उल्लेखनीय काम किया है. पिछले दिनों उनके एक उपन्यास का विमोचन हुआ. वरिष्ठ पत्रकार सईद अहमद व्यंग्य और कथा लेखन में सक्रिय हैं. उनके दो व्यंग्य संग्रह छपे हैं और ‘हंस’ जैसी ख्यातिनाम पत्रिका में उनकी कहानियां छप रही हैं. युवा पत्रकार मुहम्मद जाकिर हुसैन ने ‘भिलाई एक मिसाल:फौलादी नेतृत्वकर्ताओं का‘ और ‘वोल्गा से शिवनाथ तक’ दो पुस्तकों को रचा. इनमें भिलाई की ऐतिहासिक विकास यात्रा में यहां के कर्मठ महाप्रबंधकों और रूसी विशेषज्ञों के योगदानों का अत्यंत संवेदनशील ढंग से विश्लेषण किया है. जाकिर ने उन सबकी स्मृतियों को संजोते हुए उन्हें अनुभव जनित गाथाओं व क्षेपक कथाओं से पठनीय बना लिया है. एक अन्य पत्रकार मित्र प्रदीप भट्टाचार्य ने पिछले दस-ग्यारह वर्षों से मासिक पत्रिका प्रकाशन का महत्पूर्ण ज़िम्मा उठाया है और वे ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ नामक पत्रिका का हर महीने मुद्रण कर रहे हैं. इस पत्रिका में छत्तीसगढ़ के अनेक साहित्यकारों से वे नियमित स्तंभ लेखन करवा रहे हैं. इससे लेखकों को भी अपनी कलम मांजने का अवसर मिल रहा है. हिन्दी छत्तीसगढ़ी दोनों के लेखक संजीव तिवारी ने तो वेबसाइट में पत्रिकाओं का प्रकाशन कर एक नवोन्मेष के साथ अपनी उपस्थित दर्ज की है. वे हिन्दी में ‘आरम्भ’ और छत्तीसगढ़ी में ‘गुरतुर गोठ’ नाम से वेबसाइट पत्रिका का संपादन कर छत्तीसगढ़ की अस्मिता विषयक ज्ञानवर्धक सामग्रियों को सामने ला रहे हैं. छत्तीसगढ़ी गद्य-व्यंग्य का उनका एक संग्रह भी प्रकाशित हुआ है.

साहित्य की विधाओं से इतर लेखन का एक बड़ा हिस्सा दुर्ग में कनक तिवारी के समग्र लेखन में समाधृत हुआ है. कनक तिवारी विचारों की दुनियां के उन दुर्लभ व्यक्तित्वों में शुमार हैं जो लिखने और बोलने में एक बराबर विस्मयकारी प्रभाव छोड़ते हैं. उन्होंने एकदम ठोस गद्य लेखन का विपुल मात्रा में साहित्य रचा है. वे भारतीय वांग्मय के उत्स को चीन्हते हुए अपनी कलम चलाते हैं तब उनकी विशेषज्ञता भारतीय स्वाधीनता संग्राम, भारतीय संविधान और गाँधी नेहरु विचार धारा के संदर्भ में परवान चढ़ती नज़र आती है. आज भी अस्सी की उम्र में तिवारी जी लिखने पढने में बेहद सक्रिय बुद्धिजीवी हैं. अनेक अख़बारों के लिए हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में स्तंभ लेखन कर रहे हैं. वे हर तरह के मीडिया और संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल करते हैं. इस मायने में आज के सोशल मीडिया फेसबुक में भी उनकी भरपूर सक्रिय उपस्थिति को देखा जा सकता है. मध्यप्रदेश शासन में जब तिवारी जी केबिनेट में रहे तब भिलाई में ‘बख्शी सृजन पीठ’ और रायपुर में ‘बख्शी शोध पीठ’ की स्थापना करवा कर साहित्यिक आयोजनों को और भी गति व ऊंचाई पाने के अवसर दिए. तब बख्शी सृजन पीठ के अध्यक्ष के रूप में प्रसिद्द समालोचक प्रमोद वर्मा और कथाकार सतीश जायसवाल ने यहां पदस्थ होकर साहित्यिक वातावरण को और भी परिष्कृत किया. तिवारी जी की जीवन संगिनी पुष्पा तिवारी ने भी कविता कहानियां लिखीं, उपन्यास लिखे जो पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित हुए.




(यह अलेख नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति की त्रैमसिक पत्रिका ‘महानदी’ में प्रकाशित हुअ है -  इस पत्रिका का ३ सितम्बर को भिलाई इस्पात संयत्र के मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने केंद्र, राज्य, बैंक व बीमा प्रतिष्ठान्न के समस्त राजभाषा अधिकारियों की उपस्थिति में विमोचन किया और साहित्यकारों का सम्मान किया)



20 सितंबर 1955 को दुर्ग में जनमे विनोद साव समाजशास्त्र विषय में एम.ए.हैं। वे भिलाई इस्पात संयंत्र में निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व विभाग में सहायक प्रबंधक हैं। fहंदी व्यंग्य के सुस्थापित लेखक विनोद साव अब उपन्यास, कहानियां और यात्रा वृतांत लिखकर भी चर्चा में हैं। उनकी रचनाएं हंस, पहल, अक्षरपर्व, वसुधा, ज्ञानोदय, वागर्थ और समकालीन भारतीय साहित्य में छपी हैं। उनके दो उपन्यास, तीन व्यंग्य संग्रह और संस्मरणों व कहानियों के संग्रह सहित अब तक कुल सत्रह किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्हें वागीश्वरी और अट्टहास सम्मान सहित कई पुरस्कार मिल चुके हैं। छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल के लिए भी चित्र-कथाएं उन्होंने लिखी हैं। वे उपन्यास के लिए डाॅ. नामवरfसंह और व्यंग्य के लिए श्रीलाल शुक्ल से भी सम्मानित हुए हैं। उनका पता है: मुक्तनगर, दुर्ग छत्तीसगढ़ 491001 ई-मेलः vinod.sao1955@gmail.com लेखक संपर्क मो. 9009884014





लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...