गिरीश पंकज और ललित शर्मा को चेतना साहित्य सम्‍मान

हम तो दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है दरिया और मानव की अदम्‍य प्रकृत्ति के संबंध में इन शब्‍द पंक्तियों को हम गाहे-बगाहे सुनते रहे हैं और देखते रहे हैं कि, आगे बढ़ने की विशाल लक्ष्‍य को भी दरिया जैसे सहज-सरल रूप में बहते हुए प्राप्‍त कर लेना कुछ विशेष लोगों की प्रकृति होती है। आगे बढ़ने के साथ-साथ खुद-ब-खुद पथरीले कठिन बाधाओं को रास्‍ता बनना पड़ता है जिसमें से होकर आगे की पीढ़ी कठिन लक्ष्‍य को भी सहज पार कर लेती है। यशश्‍वी पत्रकार और चर्चित साहित्‍यकार, ब्‍लॉगर गिरीश पंकज जी एवं हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत के मार्तण्‍ड ललित शर्मा जी कुछ ऐसे ही व्‍यक्तित्‍व हैं। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर एक गरिमामय कार्यक्रम में अभियान भारतीय तथा चेतना साहित्य एवं कला परिषद, छत्‍तीसगढ़ द्वारा हमारे इन्‍हीं दोनों अग्रजों को चेतना साहित्य सम्मान-11 प्रदान किया गया। 

प्रथम चेतना साहित्य सम्मान 11 व प्रथम चेतना ब्लॉगर सम्मान 11 से नवाजे गए हमारे दोनों ब्‍अग्रजों से आप परिचित हैं फिर भी इनके संबंध में दो शब्‍द मैं लिखना चाहूंगा- 


गिरीश पंकज जी विगत पैतीस सालों से साहित्य एवं पत्रकारिता में समान रूप से सक्रिय हैं। वर्तमान में साहित्य अकादेमी, दिल्ली के सदस्य एवं छत्तीसगढ़ राष्ट्र्भाषा प्रचार समिति के प्रांतीय अध्यक्ष हैं। गिरीश जी की बत्तीस पुस्तकें अब तक प्रकाशित हैं जिसमें तीन व्यंग्य-उपन्यास : मिठलबरा की आत्मकथा, माफिया, और पालीवुड की अप्सरा, आठ व्यंग्य संग्रह : ईमानदारों की तलाश, भ्रष्टाचार विकास प्राधिकरण, ट्यूशन शरणम गच्छामि, मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएँ, मूर्ति की एडवांस बुकिंग, हिट होने के फार्मूले, नेता जी बाथरूम में, एवं ''मंत्री को जुकाम'', नवसाक्षरों के लिये चौदह पुस्तकें बच्चो के लिये चार किताबें, एक हास्य चालीसा, दो ग़ज़ल संग्रह हैं। कर्नाटक एवं मध्यप्रदेश में दो शोधार्थी गिरीश पंकज के व्यंग्य-साहित्य पर पीएच.डी. कर रहे है. गिरीश भाई अमरीका, ब्रिटेन, त्रिनिदाद, मारीशस आदि लगभग दस देशो का प्रवास कर चुके हैं एवं निरंतर साहित्‍य साधना में रत हैं। नवोदित रचनाकारों को प्रोत्‍साहित कर उनके रचनाकर्म में प्राण फूंकने वाले मृदुभाषी गिरीश भईया सबके प्रिय हैं। 


ब्‍लॉ.ललित शर्मा जी को कौन नहीं जानता, और यदि कुछ और सत्‍य पंक्तियां जोड़ूं तो कहूंगा कि जो नहीं जानता वो हिन्‍दी इंटरनेट को ही नहीं जानता। 'परिचय क्या दुं मै तो अपना नेह भरी जल की बदरी हुँ / किसी पथिक की प्यास बुझाने कुंए पर बंधी हुई गगरी हुँ / मीत बनाने जग मे आया मानवता का सजग प्रहरी हूँ / हर द्वार खुला है जिसके घर का सबका सवागत करती नगरी हूँ' कहने वाले ब्‍लॉ. ललित शर्मा नें हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत में प्रवेश करने के साथ ही तकनीकि, लेखन, आभासी व्‍यवहार व टिप्‍पणियों के सहारे एक उत्‍कृष्‍ट ब्‍लॉगर के रूप में स्‍थापित होने के लिए उद्भट प्रयास किया और सभी क्षेत्रों में फतह प्राप्‍त करते हुए अपना सवोच्‍च स्‍थान बनाया। अभियान भारती के द्वारा ब्‍लॉ.ललित शर्मा को दिया गया यह सम्‍मान उनके हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत में सुदीर्ध कार्य के लिये दिया गया। आज संपूर्ण हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत ललित शर्मा से परिचित है, उनके लेखन में विविधता है जिसमें उनका गहन अध्‍ययन और अनुभव स्‍पष्‍ट रूप से झलकता है। साहित्‍य के अकादमिक खांचे में फिट यात्रावृत्‍तांत, कहानी, कविता, ब्‍यंग्‍य, विषय विश्‍लेषण व समीक्षा जैसे विधा को छूते हुए भी ललित जी अपने आप को साहित्‍यकार कहलाने के बजाए ब्‍लॉगर कहलाना पसंद करते हैं। इससे उनकी ब्‍लॉग के प्रति दीवानगी और निष्‍ठा प्रदर्शित होती है। लक्ष्‍य भेदने की अकुलाहट और साधना नें ललित जी को सदैव शीर्ष पर रखा है, चाहे वो चिट्ठाजगत के सक्रियता क्रम में पहले क्रम में पहुचने की बात हो या ब्‍लॉग 4 वार्ता के सफलता पूर्वक संचालन की बात हो, ललित जी नें जो ठाना वो पाया। ललित शर्मा जी से आप सभी परिचित है, उनके संबंध में मैं जितना भी लिखूं कम है।

यह सम्‍मान कैलाशपुरी स्थित छत्तीसगढ़ सदन में चेतना साहित्य एवं कला परिषद् तथा अभियान भारतीय के संयुक्त तत्‍वाधान में प्रखर स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी पद्मश्री डा महादेव प्रसाद पाण्डेय के हाथों सम्मान पत्र/ शाल एवं श्रीफल देकर प्रदान किया गया। सम्मान समारोह के पश्चात कवि गोष्ठी संपन्न हुई जिसमें प्रदेश के राष्ट्रीय स्तर के कवियों ने अपनी रचनायें पढ़ी। इस गोष्ठी में सर्वश्री गिरीश पंकज, मीर अली मीर, ललित शर्मा, संजय मिश्र 'हबीब' डा अरुणा चौहान, निरुपमा शर्मा, ललित मिश्र संजय शर्मा 'कबीर' आर के बहार, महेश शर्मा, राम मूरत शुक्ल सुनीता शर्मा, सुधीर शर्मा सहित डा महादेव प्रसाद ने कविता पढ़ कर माहौल को बसंत मय बना दिया। अभियान भारतीय के सूत्रधार गौरव शर्मा ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में विशेष रूप से साहित्यकार रामकुमार बेहार, अभियान भारतीय के सक्रिय सदस्य श्री गिरीश दुबे, आतिश साहु, बरसाती लाल, राजकुमार सोनी आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन संजय मिश्रा ‘हबीब’ और राममूरत शुक्ल ने किया। कार्यक्रम के अंतरगत हुए बसंत गोष्‍ठी कवि सम्‍मेलन के आडियो व अन्‍य चित्रों को हम अगली पोस्‍ट में प्रस्‍तुत करेंगें।


गिरीश पंकज जी एवं ब्‍लॉ. ललित शर्मा जी को इस सम्‍मान के लिये अशेष शुभकामनायें.  

मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया

देवानंद की पुस्तक 'रोमांसिग विथ लाइफ' तो पूरी तरह पढ़ी नहीं, ... पुस्तकें इतनी महंगी हो गई हैं कि पढ़ने के थोड़ा-बहुत शेष रह गए मोह के बाद भी पसंद की सारी पुस्तकों को खरीद पाना संभव नहीं। कोई अच्छा पुस्तकालय भी पहुंच और जानकारी में नहीं। अलावा इसके इंटरनेट ने पुस्तकों को चलन से बाहर सा कर दिया है। हालांकि पुस्तकें, पुस्तकें होती हैं। किताब में रखे मयूरपंख से पृष्ठ को खोलकर पढ़ना शुरू करना मुझे आज भी आसान लगता है। लैपटॉप ऑन करना फिर एक आवाज सुनना, इंटरनेट कनेक्ट होने का इंतजार, स्क्रीन रोशन होने का इंतजार और बहुत सारी कुजियों को दबाने के बाद वांछित जगह पहुंचना, तब तक पढ़ने का मूड आधा रह जाता है। खैर... 

'रोमांसिग विथ लाइफ' पर अलग-अलग पत्रिकाओं में समीक्षा/टिप्पणी पढ़ने और डेढ़-दो साल पहले 'सीधी बात' में प्रभु चावला के साथ देव साहब की बातचीत सुनने के बाद मुझे जो लगा, वह देवानंद की आमरूप से जानी-पहचानी एक रोमांटिक हीरो की छवि से सर्वथा अलग है। रोमांटिक हीरो से जो छवि बनती है वह है अपनी समकालीन हीरोइनों यथा सुरैया से जीनत अमान तक लगभग सभी हीरोइनों के साथ परदे के बाहर भी किसी हद तक रोमांस में पड़े रहना। ऐसी सोच स्वाभाविक भी है सफल, खूबसूरत, मस्त, कभी नहीं मंद पड़ने वाली ऊर्जा से सराबोर, सदाबहार हीरो के प्रति हीरोइनों का आकर्षित हो जाना बिल्कुल नहीं चौंकाता। 

पर देवानंद स्वयं के अनुसार रोमांस से तात्पर्य किसी इंसानी, शरीरी और दुनियावी रोमांस से नहीं है इसके लिए उनके समकालीन राजकपूर और दिलीप कुमार को संभवतः प्रामाणिक रूप से रोमांटिक कहा जा सकता है, जिनके फिल्म-हीरोइनों के साथ प्रेम-प्रसंग आम होते रहे। देवानंद को रोमांस के लिए किसी विपरीत लिंगी पात्र की आवश्यकता नहीं होती। देवानंद के रोमांस से तात्पर्य किसी व्यक्ति से नहीं, वरन जिंदगी से रोमांस, समग्र अर्थों में जिंदगी से रोमांस, किसी अमूर्त से रोमांस है। रोमांस, जिसमें किसी भौतिक स्वरूप या जिस्मानी अस्तित्व के लिए कोई स्थान नहीं होता। रोमांस के Concept से शब्दशः मतलब है एक सूझ या विचार। ज्यादा साफ अर्थों में देव साहब का रोमांस- रोमांस की अवधारणा Hypothesis से रोमांस है। जिंदगी के साथ प्यार में पड़े रहने से प्यार, उसकी चाल से प्यार, प्यार करने और उसमें स्थाई और सतत रूप से डूबे रहने से प्यार, जिंदगी के हर रंग से प्यार, एक एहसास से प्यार, प्यार की संभावनाओं से प्यार ...। 

नाम के अनुरूप दैवीय आनंद और सतत मोड़ लेते प्रवाहमय जीवन से मुकम्मल तौर पर आत्मीयता, जैसी कि उनके जीवन पर एक नजर डालने से स्पष्ट हो जाता है कि वे सदैव देव+आनंद ही बने रहे, देव+दास कभी नहीं हुए, यह खिताब दिलीप कुमार के नाम रहा। बाद के वर्षों में उनकी फिल्में नहीं चलने के बाद भी वे फिल्में बनाते रहे। जितना पाया उससे आगे खोजने, और आगे जाने की जरूरत समझते रहे। अलग-अलग देश-काल में बदलती राहों पर चलती हुई जिंदगी को देखते और महसूस करते रहे। उसका अपनी निगाह से विश्लेषण कर सेल्यूलाइड के माध्यम से हम तक पहुंचाते, जिंदगी से संवाद करते रहे। ईश्‍वर ने उन्हें एक सुदीर्घ जीवन काल से नवाजा भी और वे अपनी इस नवाजत को पूरी ईमानदारी से एक पर्याप्त सार्थक जिंदगी बनाने में लगाते रहे। उनके साथ के एक और निर्माता, निर्देशक, अभिनेता ने जिंदगी के हर रंग को सेल्युलाइड पर उतार कर हम तक पहुंचाने का बेहतरीन काम किया, चमत्कृत करने की हद तक पहुंचाया- गुरूदत्त ने। अफसोस कि उन्होंने देव साहब के उलट, अपनी जिंदगी बड़ी तेजी और बेदर्दी से खर्च कर डाली। 

जिंदगी के प्रति उन्होंने रोमांस और आकर्षण एक निस्पृहता, बिना किसी मोह के, भावनारहित रोचकता के साथ बनाए रखा, किसी अंत के बारे में सोचे बिना। इसलिए उन्होंने मृत्यु के बारे में कभी बात ही नहीं की, उनकी फिल्मों में सुखांत ही नजर आया, एक अपवाद ''गाइड'' के अलावा, जो उनकी परिपक्वता की सबसे चमकीली मिसाल है, लेकिन इस फिल्म में भी जीवन के बाद के जीवन का विमर्श है। मृत्यु की बात तो वही करेगा, अंत की बात भी वही करेगा, जो शरीर के अंत से दहशतजदा होगा। जिसे जिंदगी से मोह हो, लालच हो, लंबे जीवन की सार्थकता या निरर्थकता के सवाल से परे, परन्तु रोमांस में मृत्यु या अंत जैसी चर्चा के लिए स्थान नहीं होता। 

हमेशा फिल्में बनाते रहना, कुछ नया खोजने और इन सबसे, शायद सब कुछ पाने की उनकी ललक और अदम्य इच्छा ने मुझे ज्यां पाल सार्त्र के अंतिम साक्षात्कार की याद दिला दी- 
सवाल :- जिंदगी से आप खुश हैं?
सार्त्र :- हां, मैं जिंदगी से बेहद खुश हूं। 
सवाल :- क्या इसलिए कि जिंदगी ने आपको वह सब कुछ दिया जिसकी आपको चाह थी?
सार्त्र ने कहा- हां जिदगी ने मुझे बहुत कुछ दिया पर जो कुछ दिया वह सब कुछ नहीं था, पर इसके लिए आप कर भी क्या सकते हैं। 

देवानंद के साथ भी यही बात थी जिंदगी ने उन्हें सब कुछ दिया - रूप, नाम, दौलत, शोहरत, अक्षुण्ण ऊर्जा और सुन्दर स्त्रियों का साथ, एक स्टाइल और एक अलग पहचान पर उन्हें इस जीवन काल में जो भी मिला, उन्होंने उसे सब कुछ नहीं माना। कुछ और, कुछ और पाने की प्यास में जिंदगी से सब कुछ पाने का प्रयास करते रहे। इसी कोशिश ने उन्हें रोमांटिक हीरो बनाया। हीरोईनों से नहीं, जिंदगी से रोमांस करने वाला हीरो। फिल्मों के सफल असफल होने, चलने या न चलने और उनसे लाभ कमाने की प्रत्याशा से अलग, वे अपनी रचनाधर्मिता को अंत तक निबाहते, मांजते और समृद्ध करते रहे, एक संत की भांति, संत (रेणु के लिए निर्मल वर्मा के कथन की तरह) से तात्पर्य - 
''एक ऐसा व्यक्ति जो अपने इस लौकिक जीवन में किसी चीज को त्याज्य, घृणास्पद और अपवाद नहीं मानता। एक जीवित तत्व में पवित्रता और सौदर्य और चमत्कार को खोज ही लेता है, इसलिए नहीं कि वह इस पृथ्वी पर उगने वाली कुरूपता, अन्याय, अंधेरे और आंसुओं को नही, देखना चाहता बल्कि इन सबको समेटने वाली अबाध मानवता को, पहचानता है, दलदल को कमल से अलग नहीं करता, दोनों के बीच रहस्यमय और अनिवार्य रिश्ते को पहचानता है।''

देवानंद ऐसे ही रोमांटिक हीरो का नाम था, जिसका जिंदगी से रोमांस पूरे 88 वर्षों तक पूरी शिद्दत के साथ निर्बाध रूप से बना रहा। आज भी ऐसा नहीं लगता कि वे हमारे बीच नहीं हैं, क्योंकि देवानंद सिर्फ जिस्मानी संज्ञा नहीं। लगता है कि जुहू में पुरानी चन्‍दन टाकीज और इस्कान के हरे रामा हरे कृष्णा मंदिर के बीच किसी एक अलसाई सुबह या सुरमई सांझ, सड़क पर उनसे अचानक मुलाकात हो जाए और हम आश्चर्य से चौंक कर कहें- 
सुनो, तुम्हारा असली नाम क्या है - जी, जॉनी।
और नकली - नकली भी जॉनी। 
इसके अलावा और भी कोई नाम है - जी, ज् ज् ज् ज् जॉनी, ... आपको ज्यादा पसंद है?

राजेश सिंह



इस अतिथि पोस्‍ट के लेखक हैं कवि श्री राजेश सिंह जी, जो बिलासपुर में रहते हैं। राजेश जी अपने प्रोफाईल में अपने संबंध में कहते हैं 'अपनों के साथ देखे सपनों के सेतु पर चल कर जाना है उस पार।' राजेश जी का मोबाईल न. +919229158700 है एवं ई-मेल rajeshakaltara@gmail.com राजेश जी का ब्‍लॉग है तथागत .. 




इप्टा के साथ तीन दिन - विनोद साव


शाम को चार बजे नेहरु हाउस पहुंचा तो सन्नाटा था। जयप्रकाश दिखे, बताए कि ‘सब लोग रैली में शामिल हैं, चलो हम लोग भी चलते हैं।’ इतने में ही विनोद कुमार शुक्ल और सुभाष मिश्र भी आ गए। हम सब रैली में जाने के लिए सुभाषजी की कार में बैठ गए। जयप्रकाश आलोचक हैं और सुभाष मिश्र एक संगठनकर्ता। वहॉं हम दोनों ही विनोद विशुद्ध लेखक थे। बहुधा इस तरह के लेखकों के बीच मुलाकात होने पर एक दूसरे की रचना पढ़े जाने से बात आरंभ होती है। एक विनोद (शुक्ल) ने दूसरे विनोद (साव) को देखते ही लपक कर कहा कि ‘‘अभी अभी ‘वसुधा’ में आपका यात्रा वृत्तांत देखा है। बर्दवान पर है। आप बंगाल कैसे चले गए थे?’’ विनोदजी अपने आसपास के प्रति बड़े जिज्ञासु हो उठते हैं। वे मंचों पर बोलने से बचते हैं। वे मंच के उपर नहीं मंच के नीचे मुखरित होते हैं। उनकी बातें सुनने में रोचक लगती हैं उनकी कहानियों की तरह।

हम आकाश गंगा पहुंच गए थे जहॉं से रैली आरंभ हुई थी। लगभग एक़ किलोमीटर लम्बी रैली थी ‘इप्टा’ यानी भारतीय जन नाट्य संघ की। देश भर के अलग अलग राज्यों से आई हुई इप्टा की नाट्य एवं लोक मंडलियॉं थीं और उनके झूमते, नाचते, गाते कलाकार थे। पुरुष, महिला और बच्चों के समूह थे जो जन-धर्मी गीतों से समां बांध रहे थे। ये सब भिलाई में आयोजित इप्टा के तेरहवें राष्ट्रीय अधिवेशन में आए हुए थे। रैली को लगभग पॉंच किलोमीटर चलकर आकाशगंगा से नेहरु सांस्कृतिक सदन तक पहुंचना था। हम कार से उतरकर रैली के साथ लग गए थे।

रैली में जयप्रकाश का युवकोचित उत्साह देखते बना ‘मैं पूरी रैली को पीछे से आगे तक देख आया हूँ।’ उन्होंने जब कहा तब रैली और उसके जन-धर्मी रुप के प्रति उनका प्रेम दिखा था। रैली में रंग-बिरंगे बैनर और झण्डे थे जो ज्यादातर लाल थे। माक्स और लेनिन जैसी दाढ़ियों वाले बुजुर्ग एक लम्बे अंतराल के बाद भिलाई में दिखे थे। कुल मिलाकर लाल सलाम के जोश से सड़कों और आकाश में गूंज थी। मैंने शुक्ल जी से कहा कि ‘आपको पॉंच किलोमीटर तक चलना पड़ सकता है।’ प्रत्युत्तर में उन्होंने कहा कि ‘मैं बीस किलोमीटर तक पैदल चल सकता हूँ।’ नेहरु हाउस के करीब आते आते रैली में शामिल लोगों का जोश और बढ़ चुका था। आयोजन स्थल का प्रवेश द्वार सुसज्जित था और चारों ओर रोशनी फेली हुई थी।

प्रवेश द्वार से अंदर पहुंचकर भी लोग नाच रहे थे। इनमें पंजाब से आया समूह था जिन्हें नाचने में महारत हासिल होती है। अचानक एक बड़ी मशाल प्रज्वलित हो उठी जो रिमोट से जलाई गई थी। यह अग्नि-शिखा वाम विचारों की क्रान्ति से जनमी लग रही थी इसके साथ ही लोगों का उत्साह और बढ़ गया था और लोग गगन भेदी नारे लगा रहे थे। नगाड़ों की गूंज थी।

उद्घाटन सत्र आरंभ हो चुका था। सबसे पहले इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ए.के.हंगल का संदेश था। परदे पर अभिनेता हंगल बोल रहे थे। आदमी नहीं आया पर उनके विचारों को आने से कौन रोक सकता है? बढ़ती उम्र और गिरते स्वास्थ्य के बाद भी उनका कामरेडी जोश बरकरार था ‘ये दुनियॉं कभी खत्म नहीं होती। मेरे पहले भी दुनियॉं थी और मेरे बाद भी दुनियॉं होगी - जीवन होगा, मनुष्य होंगे और एक बेहतर दुनियॉं के लिए हमारी लड़ाई होगी।’


दूसरे दिन रमाकांत श्रीवास्तव का मोबाइल आया ‘राजेन्द्र शर्मा आए हैं उनसे मिलो।’ राजेन्द्र शर्मा और महेश कटारे से मुलाकात हुई। राजेन्द्रजी भिलाई कमला प्रसाद के साथ अक्सर आया करते थे। इस बार उन्हें अकेले देखने से कुछ अलग अनुभूति हुई। अब ‘वसुधा’ का भार उन पर और स्वयंप्रकाश पर है। वे अपने साथ ‘वसुधा-89’ के अंक लाए थे। मुझे मेरी लेखकीय प्रति के अतिरिक्त कुछ और प्रतियॉं उन्होंने स्नेह से दीं।’ इसी में छपी है ‘शस्य श्यामला धरती’ जिसके बारे में विनोदकुमार शुक्ल ने बताया था।

मैंने औपचारिकता वश पूछ ही लिया कि ‘चलिये हम सब काफी पीयें।’ काफी नहीं बियर पीयेंगे का संयुक्त नारा सुनाई दिया था और हम कहीं बैठ गए थे एक ऐसी बैठक में जहॉं लेखक मित्र ज्यादा जीवन्तता महसूस करते हैं। मैं बोल पड़ता हूं कि ‘हम कार्यक्रमों में जाते भी इसलिए हैं कि अपने किसी अंतरंग के साथ सुकुन के दो पल बिता सकें और किसी वैचारिक धरातल पर आ सकें।’ राजेन्द्र और महेश ने एक साथ हामी भरी।

भोपाल में ‘मुल्ला रमूजी भवन’ जिनके नाम से है, उनके बारे में कुछ बताइये?’ मैं पूछ पड़ता हूँ। राजेन्द्र बताते हैं कि ‘वे बहुत पुराने शायर थे जिनकी उर्दू आज की उर्दू से भिन्न थी, और उसे गुलाबी उर्दू कहते थे। यह गुलाबी उर्दू आज नहीं है।’ हॅसी और कहकहों के गुलाबीपन के बीच हमारी बातचीत घंटे भर चली। कथाकार महेश कटारे अपनी कद काठी के अनुरुप हॅसते हैं ‘मुझसे पूछ पड़ते हैं कि आपके उपन्यास भोंगपुर-30 कि.मी.में ऐसी ही मजेदार भाषा है क्या?’ राजेन्द्र याद करते हैं कि ‘यहॉं गिलौरी अच्छी मिलती है किसी कोने वाले पान ठेले में।’ हम सिविक सेंटर आते हैं और पान-गिलौरी खाते हैं।’ पान ठेले में लिखा है ‘वेडिंग पान-51 रुपये’। हम सब देखकर हॅसते हैं। राजेन्द्र कहते हैं ‘अब ये पान खाने की उमर नहीं रही।’ वे और महेश दोनों खजूर से बना पान घर ले जाने के लिए रख लेते हैं।’ शाम को सिंघई विला में आमंत्रण है.. पर मैं नहीं पहुंच पाता हूँ।

इप्टा के अधिवेशन का तीसरा और अंतिम दिन कला मंदिर में बीता। ज्यादातर कार्यक्रम नेहरु हाउस में थे। नाटक सब वहीं खेले गए थे। एक नाटक फिल्मों में हास्य व चरित्र अभिनेता के रुप में स्थापित हो चुके कलाकार अंजन श्रीवास्तव का भी था। इंदौर इप्टा के नाटक को भी लोगों ने सराहा था। नेहरु हाउस में चित्र, वाद्ययंत्रों और काष्ठ-शिल्पों व फिल्मों की प्रदर्शनी थी। लेकिन आज अंतिम कार्यक्रम शाम को कलामंदिर में रखा गया था। यहॉं इप्टा के साथ आई हुई लोक मंडलियों की प्रस्तुतियॉं थीं। उनके गीत, संगीत और नृत्यों ने माहौल को रंगीन बना दिया था। विशेषकर छत्तीसगढ़, कश्मीर और असम के कलाकारों ने सबको मोह लिया था। कश्मीर के पश्तो नृत्य को प्रस्तुत करने वाली लड़कियॉं तो हूर की परियॉं लग रही थीं। मानों सीधे जन्नत से उतरकर आई हों।

नव-वर्ष के आगमन की खुशी में किए जाने वाले असम के बीहू नृत्य ने सबको विभोर कर दिया था। झुकी हुई कमर पर हाथ रखकर, अपनी सुराहीदार गर्दन को दॉंयीं ओर से पीछे मोड़कर, मुस्कुराती हुई कमनीय सुन्दर काया वाली नर्तकियों और नर्तकों के समूह ने लगभग चालीस मिनट तक बीहू नृत्य की ऐसी प्रस्तुति दी जैसे लोक संस्कृति की कोई अमर गाथा काव्य-मय हो उठी हो। ऐसा मोहक नृत्य कि वहॉं उपस्थित सभी नृत्य मंडलियॉं उनके साथ कूद पड़ीं और नाचने लगीं। फिर कार्यक्रम उद्घोषिका भी फुदकने लग गईं। मीडियाकर्मी भी मंच पर चढ़ कर कंधे उचकाने लग गए। नव वर्ष 2012 सामने था और उसके स्वागत में बीहू नृत्य का यह मंजर था। उल्लास और उमंग से भरे लोगों का बाहर खड़े आयोजनों के मुख्य संयोजक राजेश श्रीवास्तव और मणिमय मुखर्जी से हाथ मिलाना जारी था। यह कुछ मीन-मेखों के बाद भी एक भव्य आयोजन को संपन्न कर देने की उन्हें बधाई थी।

विनोद साव
20 सितंबर 1955 को दुर्ग में जन्मे विनोद साव समाजशास्त्र विषय में एम.ए.हैं। वे भिलाई इस्पात संयंत्र में प्रबंधक हैं। मूलत: व्यंग्य लिखने वाले विनोद साव अब उपन्यास, कहानियां और यात्रा वृतांत लिखकर भी चर्चा में हैं। उनकी रचनाएं हंस, पहल, ज्ञानोदय, अक्षरपर्व, वागर्थ और समकालीन भारतीय साहित्य में भी छप रही हैं। उनके दो उपन्यास, चार व्यंग्य संग्रह और संस्मरणों के संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है। उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं। वे उपन्यास के लिए डॉ. नामवरसिंह और व्यंग्य के लिए श्रीलाल शुक्ल से भी पुरस्कृत हुए हैं। आरंभ में विनोद जी के आलेखों की सूची यहॉं है।

संपर्क मो. 9407984014, निवास - मुक्तनगर, दुर्ग छत्तीसगढ़ 491001
ई मेल -vinod.sao1955@gmail.com

रामचन्‍द्र देशमुख ‘बहुमत सम्‍मान’ सुमिन को

चित्र सीजी गीत संगी से साभार
कला साहित्‍य एवं संस्‍कृति की पत्रिका बहुमत द्वारा प्रदत्‍त रामचंद्र देशमुख बहुमत सम्‍मान इस वर्ष जनजातीय लोकगीत धनकुल की प्रख्‍याता गायिका श्रीमती सुमिन बाई बिसेन को दिया जायेगा। 12 जनवरी को शाम साढ़े चार बजे भिलाई होटल के बहुद्ददेशीय सभागार में आयोजितत एक गरिमामय समारोह में सम्‍मान निधि, शाल, श्रीफल एवं प्रशसित पत्र से सम्मानित किया जायेगा। सात सदस्‍सीय निर्णायक समिति की अनुशंसा के आधार पर उनका चयन किया गया है।

डीपी देशमुख एवं मुमताज नें बताया कि सुमिन बाई बिसेन लुप्त हो रही जनपदीय लोक परम्परा धनकुल की विलक्षण लोकगायिका हैं। धनकुल की परम्परा का विस्‍तार दंडकारण्‍य के उस मैदानी भूभाग में पाया जाता है जो इंद्रावती नदी के तट पर है। धनकुल वाद्य यंत्र धनुष, हण्‍डी, चावल फटकने का सूपा और बांस की कमची के संयोजन से बनता है। इस वाद्य की संगीत के लिए अलग से किसी भी ताल वाद्य की आवश्‍यकता नहीं होती। सुमिन बाई बिसेन इस वाद्य यंत्र से अत्‍यंत मोहक ध्‍वनि उत्पन्न करती है। साथ ही तीजा जगार, चारखा गीत और शिव पार्वती विवाह प्रसंग का अद्भुत गान करती है।

63 वर्ष की श्रीमती सुमिन बाई बिसेन ने कोई औपचारिक शिक्षा ग्रहण नहीं की है। वे 40 वर्षों से निरंतर गायन में संलिप्त हैं। संपूर्ण छत्‍तीसगढ़ एवं अविभाजित मध्‍यप्रदेश के अनेक हिस्‍सों में अनेक प्रतिष्ठित मंच पर वे अपनी कला का प्रदशन कर चुकी हैं।


धनकुल वाद्य के साथ बस्तर बैंड के महिला लोककलाकार

धनकुल वाद्य यंत्र के जरिए परम्परागत रूप से इन्हें गाया जाता है। धनकुल गीतों को पूरी आस्था और भक्ति के साथ दो गुरू माताओं द्वारा स्वर दिया जाता है। मिट्टी की हंडी के साथ धनूष और सूप तथा बांस की खपची से धनकुल वाद्य यंत्र का निर्माण किया जाता है। धनकुल वाद्य के साथ पारंपरिक रूप से गाए जाने वाले जगार गीतों का अद्भुत संकलन श्री हरिहर वैष्‍णव जी के द्वारा किया गया है एवं इस संबंध में जनमानस को परिचित कराने का काम भी वे लगातार कर रहे हैं, धनकुल के संबंध में अधिक जानकारी के लिये सीजीगीत संगी में श्री हरिहर वैष्‍णव जी के आलेख यहां देखें। वैष्‍णव जी नें सुमिन बाई बिसेन द्वारा प्रस्तुत छत्तीसगढ़ी लोक-गाथा धनकुल को लिपिबद्ध कर संपादित किया है जिसका प्रकाशन छत्तीसगढ़ राज्य हिन्दी ग्रंथ अकादमी, रायपुर नें किया है।

उल्लेखनीय है कि बहुमत सम्‍मान का यह निरंतर 13 वां आयोजन है। यह अब तक हरि ठाकुर, पवन दीवान, नारायण लाल परमार, लक्ष्‍मण मस्‍तुरिया, ममता चंद्राकर, देवी प्रसाद वर्मा, सुमित्रा बाई खांडे, कोदूराम वर्मा, न्‍यायिक दास मानिकपुरी, गोविन्‍दराम निर्मलकर, रामहृदय तिवारी, एवं पंचराम देवदास को प्रदान किया जा चुका है।


आयोजन समिति के विनोद मिश्र एवं बालकृष्‍ण अय्यर जी नें इस अवसर पर इस पोस्‍ट के माध्‍यम से हिन्‍दी ब्‍लॉगरों को भी सादर आमंत्रित किया है, आप सभी से अनुरोध है कि इस कार्यक्रम में आयें एवं लोकसंस्‍कृति को सम्‍मानित करने की इस परंपरा के सहभागी बने।

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यह ब्लॉग के साइडबार बेवजह ज्यादा जगह घेरता है इसे छोटा करने के प्रयास में हमें एक सुन्दर कोड हाथ लगा जिसे हम अपने इस ब्लॉग में प्रयोग कर रहे हैं. ब्लॉग के बायें भाग में यह विजेट पेज को उपर नीचे करने के बावजूद अपने नियत स्थान में जमा रहता है और विजिटर को नजर आते रहता है. हमारे द्वारा सुझाया जा रहा ​कोड आपके ब्लॉग में आपके —


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यदि आप इसे अपने ब्लॉग में प्रयोग करना चाहते हैं तो नीचे दिये गए कोड को कापी कर अपने ब्लॉग के एड एचटीएमएल/जावा विजेट में पेस्ट करें.

<div style="position: fixed; top: 120px; left: 90px;"><br /> <!--Shot Cut Icon 1 RSS Feed--> <a href="http://feeds.feedburner.com/SanjeevaTiwari" target="_blank"><img src="http://cdn1.iconfinder.com/data/icons/socialize-icons-set/48/rss.png" alt="RSS Feed" width="48" height="48" /></a><br /> <!--Shot Cut Icon 2 Twitter--> <a href="http://twitter.com/#!/aarambha" target="_blank"><img src="http://cdn1.iconfinder.com/data/icons/socialize-icons-set/48/twitter.png" alt="Follow us on Twitter" width="48" height="48" /></a><br /> <!--Shot Cut Icon 3 Facebook--> <a href="https://www.facebook.com/tiwari.sanjeeva" target="_blank"><img src="http://cdn1.iconfinder.com/data/icons/socialize-icons-set/48/facebook.png" alt="Find us on Facebook" width="48" height="48" /></a><br /> <!--Shot Cut Icon 4 LinkedIn--> <a href="http://in.linkedin.com/pub/sanjeeva-tiwari/4/86a/594" target="_blank"><img src="http://cdn1.iconfinder.com/data/icons/socialize-part-2-icons-set/48/linkedin.png" alt="Find us on Linked In" width="48" height="48" /></a><br /> <!--Shot Cut Icon 5 Email Subscription--> <a href="http://feedburner.google.com/fb/a/mailverify?uri=SanjeevaTiwari&loc=en_US" target="_blank"><img src="http://cdn2.iconfinder.com/data/icons/onebit/PNG/onebit_42.png" alt="Get free emails in your inbox" width="48" height="48" /></a> </div>

आपको इस कोड में लाल रंग में दिये गये लिंक पते की जगह अपने फेसबुक, ट्विटर आदि Social networking site के प्रोफाईल का एड्रेस डालना होगा.

ब्लॉग में इस विटेज की स्थिति तय करने के लिये आप कोड के शुरूआत में दिये गए पोजीशन कोड में लाल रंग में दिये गये पोजीशन को बदलकर दायें—बांयें या उपर—नीचे कर सकते हैं और संख्या को कम ज्यादा करके संयोजित कर सकते हैं.

इस विजेट को आप अपने साईडबार के किसी भी जगह रखें, Social networking site प्रोफाईल इस कोड में दिये गए कमांड स्थान के अनुसार ही दिखायेगा जिसे आप अपनी सुविधानुसार बदल भी सकते हैं. 

अब विजेट सेव करें और देखें आपके ब्लॉग में यह सुन्दर आईकान वाला शार्टकट नजर आने लगा है.

यह पोस्ट मूलत: मेरे ब्लॉग तकनीक आधारित हिन्दी ब्लॉगर से लिया गया है, पाठकों की वहॉं आवाजाही कम होने की वजह से इसे यहॉं भी प्रकाशित किया जा रहा है. कोड को कापी हिन्दी ब्लॉगर से किया जा सकता है.

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