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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

भारतीय संविधान के निर्माण में छत्‍तीसगढि़या सिपाही : धनश्‍याम सिंह गुप्‍त

पराधीन देश मे स्वतंत्रता और अपने स्वयं के संविधान के लिए आकुल जनता की आवाज को बुलंद करते हुए जनवरी 1938 में पं.नेहरू नें कहा था कि राष्‍ट्रीय कांग्रेस का लक्ष्‍य स्‍वतंत्रता और लोकतांत्रिक राज्‍य की स्‍थापना है। उसकी मांग है कि स्‍वतंत्र भारत का संविधान वयस्‍क मताधिकार के आधार पर निर्मित हो। नेहरू और राष्‍ट्रीय कांग्रेस के इच्‍छा के अनुरूप भारतीय लोकतंत्र के संविधान के निर्माण की प्रक्रिया आरंभ हुई। देश की आजादी के पूर्व अंग्रेजी सरकार के प्रयासों से प्रांतीय विधान सभा द्वारा चुने गए एवं रियासतों और प्रांतों के कुल 389 सदस्यों से संविधान सभा का गठन किया जा चुका था। संविधान सभा ने जवाहरलाल नेहरू के साथ 13 दिसंबर, 1946 को भारत के संविधान निर्माण के लिए औपचारिक रूप से पहल आरंभ किया। इसका उदेश्‍य भारत को एक संप्रभु गणराज्य के रूप में स्‍वतंत्र घोषित करना और उसके लिए संविधान का निर्माण करना था। इस बीच देश का विभाजन हो गया और 15 अगस्‍त को भारत को जब स्‍वतंत्रता मिली, संविधान सभा में सीटों की कुल संख्या 299 हो गई। डॉ. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष चुने गये। सभा की अगली कार्यवाहियों