सात साल की उम्र में ‘मोहब्बत के फूल’ नाटक को देखकर एक बालक के मन में अभिनय की ललक जो जागृत हुई वह निरंतर रही, बालक नाचते गाते अपनी तोतली जुबान में नाटकों के डायलागों को हकलाते दुहराते बढते रहा। उसके बाल मन में पुष्पित अभिनय का स्वप्न शेक्शपीयर की नाटक ‘किंगजान’ में प्रिंस का आंशिक अभिनय से साकार हुआ। असल मायनें में उसी दिन महान नाट्य शिल्पी हबीब तनवीर का नाटकों की दुनिया में आगाज हो गया।
आज से ठीक एक साल पहले आज के ही दिन हबीब जी के निधन का समाचार मित्रों से प्राप्त हुआ, नाटकों व लोकनाट्यों से हमारा लगाव हमें हबीब जी एवं उनके कलाकारों के करीब ले आया था. सुनकर गहरा दुख हुआ पिछले वर्ष हबीब जी के अस्वस्थ होने के समाचार मिलने पर आवारा बंजारा वाले संजीत त्रिपाठी नें कई बार आग्रह किया कि मैं उनपर कोई आलेख लिखूं किन्तु व्यस्तता के कारण मैं कुछ भी नहीं लिख पाया. पिछले वर्ष ही उन्हें श्रद्धांजली स्वरूप मैंनें यह आलेख लिखा था तब बमुश्कल पांच कमेंट आये थे, आज उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर मुझे कुछ पोस्ट नजर आये जिसमें साथियों नें अपना उत्साह एवं स्नेह हबीब जी के प्रति प्रस्तुत किया है जिसे पढ़कर दिल को सुकून मिल रहा है. हबीब जी को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए मैं साथियों से आग्रह करता हूं कि एक बार पुन: मेरे एक वर्ष पहले लिखे गए इस आलेख को अवश्य पढें . हबीब जी की यादें तो बहुत हैं, समय पर हम आपसे शेयर करेंगें.
देखें रंग ए हबीबचरन दास चोर