साथियों मिलते हैं एक लम्‍बे ब्रेक के बाद : इस बीच संपर्क का साधन जीमेल होगा.

राम मंदिर मामले का फैसला 30 सितम्‍बर को आ रहा है, इस फैसले के बाद भारत में महाप्रलय आ जायेगा ऐसा टीवी वाले चीख चीख कर प्रचारित कर रहे हैं। हम कल गोरखपुर एक्‍सप्रेस से इलाहाबाद और वहां से गया जाने वाले थे जहां पांच अक्‍टूबर तक रूककर सनातन आस्‍था के अनुसार हमारे मॉं-पिताजी एवं पुरखों का श्राद्ध कर्म करना था किन्‍तु इन टीवी वालों नें हमारे बरसों के परिश्रम को पल भर में ध्‍वस्‍त कर दिया, वे गला फाड-फाड कर कह रहे हैं कि युगों के बाद आ रहा है यह दिन, फलां दिन ये हुआ फलां दिन वो हुआ और कल ये होगा ... टीवी देख-देख कर आज दोपहर से जनकपुरी और अजोध्‍या (स्‍वसुराल और मेरेगांव) से फोन पे फोन आ रहे हैं ... परिवार वालों की जिद है कि टिकट कैंसल करा कर कार्यक्रम रद्द कर दिया जाए और विवश होकर मुझे उनकी जिद माननी पड़ी है. ...


.... पूरे देश की उत्‍सुकता हो उस विवाद के फैसले में ..... मेरी तो कतई नहीं ... क्‍योंकि मुझे विश्‍वास है न्‍याय भाईयों के बीच बंटवारा भले करा दे वैमनुष्‍यता नहीं कराती ..... खैर यह तो सामयिक है ... और भी गम है जमाने में, मेरे ढेरों काम पेंडि़ग पड़े हैं. साथियों मिलते हैं एक लम्‍बे ब्रेक के बाद, हो सकता है मैं मोबाईल संपर्क में भी ना रहूं, इस बीच संपर्क का साधन जीमेल होगा.

क्षमा सहित.

संजीव तिवारी

बस्‍तर बैंड : आदिम संगीत के साथ प्रकृति की अनुगूंज

पिछले दिनों इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय मानव संग्रहालय द्वारा इंटरनेशनल इंडीजिनस डे के अवसर पर  कर्नाटक के शहर मैसूर में स्थित देश के प्रख्‍यात प्रेक्षागृह एवं आर्ट गैलरी जगमोहन पैलेस में 10 व 11 अगस्‍त को आयोजित इंटरनेशनल इंडीजिनस फेस्टिवल में छत्‍तीसगढ़ के पारंपरिक जनजातीय नृत्‍यों की श्रृंखला जब बस्तर बैंड के रूप में भव्‍य नागरी मंच में प्रस्‍तुत हुआ तो संपूर्ण विश्‍व से आये कला प्रेमी उस प्रदर्शन को देखकर भावविभोर हो उठे। मैसूर के जगमोहन पैलेस के प्रेक्षागृह में बस्‍तर बैंड के कलाकारों ने लगातार दो दिनों तक ऐसा समां बांधा कि रंगायन एवं निरंतर फाउंडेशन जैसे प्रसिद्ध कला केंद्र ने उन्हें 13 अगस्‍त को पुन: प्रस्तुति के लिए बुलाया। इनकी प्रस्तुति की शिखर सम्मान प्राप्त बेलगूर मंडावी ने भी जमकर सराहना की और इस आयोजन के समाचार अंग्रेजी समाचार पत्रों के पन्‍नो पर भी छाए रहे।। तीन साल पहले सिक्किम के जोरथांग माघी मेले में पहली बार किसी बड़े मंच पर बस्तर बैंड को मौका मिला था। तब किसी ने नहीं सोचा था कि इतनी जल्दी इसके कलाकार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर धाक जमाएंगे।
इस प्रस्‍तुति में बस्‍तर के लगभग सभी समुदाय के प्रतिनिधि कलाकार हैं. कलाकारों के इस दल में माया लक्ष्‍मी सोरी, इडमें ताती, बुधराम सोरी, विनोद सोरी, कोसादेवा, रूपसाय सलाम, कज्‍जु राम, चंदेर सलाम, दसरू कोर्राम, संताय दुग्‍गा, जुगो सलाम, नीलूराम बघेल, श्रीनाथ नाग, कमल सिंग बघेल, समारू राम नाग, रामलाल कश्‍यप, विक्रम यादव, सुकीबाई बघेल, रंगबती बघेल, बाबूलाल बघेल, लच्‍छू राम, लखेश्‍वर खुदराम, बाबूलाल राजा मुरिया, सहादुर नाग, फागुराम, पुरषोत्‍तम चन्‍द्राकर, अनूप रंजन आदि शामिल हैं. परिकल्‍पना, संयोजन एवं निर्देशन अनूप रंजन पाण्‍डेय का है

बस्‍तर बैंड मूलत: बस्‍तर के आदिम जनजातियों की सांगीतिक प्रस्‍तुति है जिसमें आदिम जनजातियों के संगीत व गीतों के ऐसे नाद की प्रधानता है जो वेद की ध्‍वनि 'चैंन्टिग' का आभास कराता है। इस नाद में गाथा, आलाप, गान और नृत्य भी है, जिसमें बस्‍तर आदिवासियों के आदि देव लिंगों के 18 वाद्य सहित लगभग 40 से ज्यादा परंपरागत वाद्य शामिल है। बैंड समूह के प्रत्‍येक कलाकार तीन से चार वाद्य एक साथ बजाने में पारंगत है। तार से बने वाद्य, फूंक कर मुह से बजाने वाले वाद्य और हाथ व लकड़ी के थाप से बजने वाले ढोल वाद्यों और मौखिक ध्‍वनियों से कलाकार मिला-जुला जादुई प्रभाव पैदा करते हैं। इसकी प्रस्‍तुति में ऐसा आभास होता है कि हम हजारो वर्ष पीछे आदिम युग में आ गए हों। बस्‍तर के आदिम जनजाति घोटूल मूरिया और दंडामी माड़िया दोनों की परंपराओं में विभिन्‍नतायें हैं एवं उनके वाद्य यंत्र भी भिन्न हैं। बस्तर बैंड ने इन दोनों के आदिम जीवन के सारे रंगों को एक सूत्र में पिरोने की कोशिश की है। इन जनजातियों के अतिरिक्‍त बस्‍तर के कई अन्‍य जनजातियों के लोगों को इसमें शामिल करके परिधान, संस्कार, अनुष्ठान, आदिवासी देवताओं की गाथा आदि की मिली-जुली संगीतमय अभिव्यक्ति दी गई है। यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि अनूप का यह बैंड, बस्त‍र के लोक एवं पारंपरिक जीवन का सांगीतिक स्वर है. इसमें सदियों से चली आ रही आदिम संस्कृ‍ति एवं संगीत की अनुगूंज है। बस्तर बैण्ड में समूचे बस्तरिया समुदाय के विलुप्त होते पारंपरिक, प्रतिनि‍धि लोक एवं आदिम वाद्यों की सामूहिक सांगीतिक अभिव्यक्ति है। 
बस्तर में आदिवासी लिंगो देव को अपना संगीत गुरू मानते हैं. मान्यता यह भी है कि लिंगो देव ने ही इन वाद्यों की रचना की थी. 'लिंगो पाटा' या लिंगो पेन यानी लिंगो देव के गीत या गाथा में उनके द्वारा बजाए जाने वाले विभिन्न वाद्यों का वर्णन मिलता है। यद्यपि वर्णन में प्रयुक्त कुछेक वाद्य लगभग विलुप्त हो चुके हैं, बावजूद इसके बस्तर बैण्ड के परिकल्‍पना को साकार करने वाले अनूप के प्रयासों से विलुप्तप्राय: इन वाद्यों को सहेजकर उन्हें पुन: प्रस्तुत किया जा रहा है। नाट्य व कला समीक्षक राजेश गनोदवाले जी बस्‍तर बैंड पर लिखते हुए बड़ी संजीदगी से कहते हैं कि 'अनूप नें प्रकृति के उस आवाज को सम्‍हालने की कमान उठा ली है जो आतंक मचाते आधुनिक संगीत और विकास के परिणाम स्‍वरूप बिगड़ने वाले सामाजिक असंतुलन की भेट चढ़ गया।' उनका कहना सर्वथा उचित प्रतीत होता है क्‍योंकि वर्तमान परिस्थिति में बिखर रहे सामाजिक ताने बाने को भाषा, बोली सहित असली जातीय सुगंध की रक्षा करने वाली कम्‍यूनिटी फीलिंग जागृत करने में ऐसे सांगीतिक प्रस्‍तुति की अहम भूमिका है।
बस्तर बैण्ड में कोइतोर या कोया समाज जिनमें मुरिया, दण्डामी माडिया, धुरवा, दोरला, मुण्डा्, माहरा, गदबा, भतरा, लोहरा, परजा, मिरगिन, हलबा आदि तथा अन्य कोया समाज के पारंपरिक एवं संस्का्रों में प्रयुक्त, वाद्य संगीत, सामूहिक आलाप-गान को प्रस्तुत किया जा रहा है. बस्तर बैण्ड के वाद्यों में माडिया ढोल, तिरडुडी़, अकुम, तोडी़, तोरम, मोहिर, देव मोहिर, नंगूरा, तुड़बुडी़, कुण्डीडड़, धुरवा ढोल, डण्डार ढोल, गोती बाजा, मुण्डा बाजा, नरपराय, गुटापराय, मांदरी, मिरगीन ढोल, हुलकी मांदरी, कच टेहण्डोर, पक टेहण्डोर, उजीर, सुलुड, बांस, चरहे, पेन ढोल, ढुसीर, कीकीड, चरहे, टुडरा, कोन्डोंडका, हिरनांग, झींटी, चिटकुल, किरकीचा, डन्डार, धनकुल बाजा, तुपकी, सियाडी बाजा, वेद्दुर, गोगा ढोल आदि प्रमुख हैं. 
बस्‍तर बैंड के संयोजन, निर्देशन और परिकल्पना रंगकर्मी एवं लोककलाकार अनूपरंजन पांडेय कहते हैं कि हमारा प्रयास इस बैंड के रूप में बस्तर की अलग-अलग बोलियों और प्रथाओं को एक मंच पर लाने का है। आगे वे सहजता से स्‍वीकार करते हुए कहते हैं कि वे स्‍वयं इन कलाकारों से निरंतर सीख रहे हैं, विलुप्त होते आदिवासी वाद्य यंत्रों के संग्रहण के जुनून ने कब बस्तर बैंड की शक्ल अख्तियार कर ली पता ही नहीं चला। इस खर्चीले, श्रम समय साध्य उपक्रम की शुरुआत करीब 10 साल पहले हुई थी, लेकिन 2004 के आसपास बैंड ने आकार लिया। किसी बड़े मंच पर तीन साल पहले उसकी पहली प्रस्तुति हुई। अनूप रंजन पाण्‍डेय से चर्चा करने पर ज्ञात हुआ कि देशभर में छा जाने वाला वाला जनजातीय संगीत (जिसमें गीत वाद्य, नृत्‍य शामिल है) से परिपूर्ण, आदिवासी संस्कृति की संपूर्ण झलक दिखाने वाला यह बैंड, अक्टूबर में होने वाले दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स में अपनी छटा बिखेरेगा। इसे दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन अवसर की चुनिंदा प्रस्तुतियों के लिए रखा गया है। जहां बस्तर के लोक संगीत और विलुप्त वाद्यों के साथ 40 से ज्यादा कलाकार गजब का प्रभाव छोड़ने वाली एक से डेढ़ घंटे की प्रस्तुति देंगे। 
यह प्रदर्शन दर्शकों को बस्तर के कोने-कोने की संगीतमय यात्रा कराएगी एवं प्रकृति के सबसे करीब होने का अहसास भी कराएगी। बस्‍तर बैंड के इसी ख्याति के आधार पर ही कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजन समिति ने आयोजन अवसर पर 3 से 6 अक्टूबर के बीच इन्हें प्रस्तुति के लिए आमंत्रित किया है। इसके पूर्व 17 सितम्‍बर को दिल्‍ली सेलीब्रेट (दिल्‍ली सरकार) के द्वारा संध्‍या 6 से 9 बजे दिल्‍ली हॉट में बस्‍तर बैंड का प्रदर्शन होने जा रहा है, दिल्‍ली और उसके आस-पास के पाठकों से मेरा निवेदन है कि इस प्रदर्शन को अवश्‍य देखें।
नया थियेटर के मुख्‍य नाट्य कलाकार, प्रसिद्ध रंगकर्मी, लोक कलाकार और संगीत नाटक अकादमी के छत्‍तीसगढ़ के कांउसिल मेम्‍बर  अनूपरंजन पांडेय  के संबंध में जानकरी यहां उपलब्‍ध है।

कठफोडवा और ठेठरी खुरमी : कुछ चित्र

पिछले कुछ दिनों से मेरे घर के बागवानी के लिए सुरक्षित रखे गए स्‍थान में एक सूखी लकड़ी पर एक चिडि़या लगातार चोंच मार रही थी, मेरा पुत्र उसको उत्‍सुकता से देखता था और  उत्‍सुकता के कारण मुझसे उसके संबंध में जानकारी मांगता था। वह सुन्‍दर चिडि़या लकड़ी में छेद करने का प्रयास कर रही थी जिसके कारण यह माना जा सकता था कि वह कठफोड़वा ही होगी किन्‍तु छत्‍तीसगढ़ के गांवों में देखे मेरे आंखों और स्‍मृतियों में समाये कठफोड़वा से उसकी छवि कुछ अलग थी जिसके कारण मैं फैसला नहीं कर पा रहा था कि यह वही चिडि़या है। .. किन्‍तु यह दो-तीन दिनों में ही उसने उस लकड़ी में अपने घुसने लायक जगह बना ली तो यह विश्‍वास पक्‍का हो गया कि यह कठफोड़वा ही है। ... हालांकि उस लकड़ी के सहारे मेरी श्रीमती नें कपड़ा सुखाने का तार बांध रखा है जो अब कमजोर हो चला है फिर भी चिडि़या के लगातार मेहनत और सूखी लकड़ी को चोंच में अपने आकार से बड़ा छेद करने की लगन को देखकर मन प्रसन्‍न हुआ। क्रमिक रूप से उस चिडि़या के प्रयासों को हमारी श्रीमती जी नें कैमरे में कैद किया जिसे हम अपने ब्‍लॉग एल्‍बम में सुरक्षित रख रहे हैं ताकि सनत रहे वक्‍त पर काम आवे .......





हमारी श्रीमती ने इन चित्रों के साथ हमारे लिए छत्‍तीसगढ़ के पारंपरिक व्‍यंजन ठेठरी-खुरमी भी पेश किया, जिसे पाठकों और तिजहारिनों को ललचाने के लिए हम यहां लगा रहे हैं.
आप सभी का स्‍वागत है, ठेठरी-खुरमी मिलने की गारंटी ... टिल स्‍टाक.

रविवार की छुट्टी और गांव की खुशबू के साथ 'फरा' का स्‍वाद, अहा !

आज रविवार छुट्टी का दिन, वैसे तो हमारे जैसे निजी संस्‍थानों में सेवा दे रहे लोगों के लिए महीने के चार रविवार में से एक दो रविवार को ही पूरी तरह से छुट्टी मिल पाती है नहीं तो 'अर्हनिशं सेवामहे (टेलीफोन विभाग का ध्‍योय वाक्‍य)' मंत्र पढ़ते हुए सेवा देना होता है। पूरे सप्‍ताह लगभग सुबह 9 से रात 9 तक कार्यालयीन कार्यो में व्‍यस्‍त होने के बाद घर का कोई भी काम करने का मन नहीं होता, ऐसे समय में मैं तो 'गृह कारज नाना जंजाला' कह कर अपने आप को झूठी दिलासा दिलाता हूं और रविवार को चाहता हूं कि पूरा समय अपने घर परिवार को दू, ताकि इस दिन इस नाना जंजालों को पूरा कर सकूं। इस दिन मित्रों के फोन भी नहीं अटेंड करता क्‍योंकि 'नहीं' ना कहने के कारण मैं अधिकतम बार रविवार को अपने घर की खुशी बर्बाद कर बैठता हूं।
.... पर आज मुझे छुट्टी मिली सुबह कुछ घंटो के लिये और शाम को कुछ घंटो के लिये, शुक्र है, छुट्टी तो मिली, बहुत खुशी की बात है। ............. सुबह इसी खुशी के समय में श्रीमती जी नें छत्‍तीसगढ़ के पारंम्‍परिक व्‍यंजन फरा बनाने की घोषणा कर दी। मेरा छत्‍तीसगढि़या मन प्रफुल्लित हो उठा क्‍योंकि शहरों में रहते हुए ऐसे व्‍यंजन बहुत कम ही बनते हैं। ... तो फरा के लिए रात का बचा हुआ पका चावल (भात) और चांवल आटे को सान कर लोई तैयार कर ली गई और श्रीमती नें मुझे भी फरा बनाने के लिए किचन में आमंत्रित किया, मेरा किचन से बहुत कम नाता रहा है और सच्‍ची कहूं तो मुझे कुकिंग बिल्‍कुल पसंद नहीं है फिर भी आज रविवार का दिन था तो जैसे तैसे मैने दोनों हाथो से कुछ फरा को रूप देकर बाकी को श्रीमती के लिये सौंपकर वापस अपने लैपटाप पे आ गया। श्रीमती नें बाकी लोई से फरा बेलकर, तेल में जीरा, मिर्च का छौंक देकर धनिया आदि डालकर छत्‍तीसगढ़ का यह व्‍यंजन बनाया जिसे हमने पेटभर खाया आप चित्र देखें -
 
फरा हथेली से बेल लिया गया है
 
अब कड़ाही में पकने को तैयार
 
मुझे कुछ ज्‍यादा कड़क चाहिए तो फिर से काली कड़ाही में तली जा रही है
अब तैयार है गांव की खुशबू के साथ फरा
हमने सुना है कि दुर्ग की सांसद सरोज पाण्‍डेय ने पिछले सप्‍ताह अपने दिल्‍ली स्थित निवास में सांसदों को भोज में आमत्रित किया था और छत्‍तीसगढ़ी खाना-खजाना के साथ फरा भी परोसा था। मेरी आकांक्षा पांच सितारा होटलों में इन्‍हें परोसने की है, देखिये ये कब तक हो पाता है।
मुझे भान है कि उपर लिखा गया व्‍यौरा मेरे अनुसार से मेरे पोस्‍ट आईटम के योग्‍य नहीं है फिर भी 'फरा' के संबंध में पाठकों को बतलाने के लिए यह पोस्‍ट पब्लिश कर रहा हूं, क्षमा सहित. ...
संजीव तिवारी  

ब्‍लॉग पोस्‍टों में दिव्‍यास्‍त्रों का प्रयोग और लक्ष्‍य के बीच नारी विमर्श टाईप कुछ-कुछ

दो दिन पहले की बात है, मैं अपने प्रथम तल में स्थित कार्यालय से नीचे उतरा तो मुझे होटल के स्‍वागतकक्ष में एक लड़की सफेद गमछे में मुह बांधे बैठे दिखी। मैंनें स्‍वाभाविक रूप से उससे संबोधित होते हुए कहा कि 'मैडम यहॉं तो नकाब उतार दीजिए' संभवत: अचानक मेरा अनपेक्षित कथन उसे अटपटा सा लगा किन्‍तु वह मुह में बांधे हुए गमछे को हटा लिया। तब तक मेरे मोबाईल की घंटी बजनी शुरू हो गई थी और मैं स्‍वागतकक्ष से होते हुए बाहर निकल गया।
फोन अग्रज ब्‍लॉगर की थी, मेरे द्वारा लगातार दो पोस्‍ट एक ही दिन में पब्लिश कर देने के संबंध में। बात उनके ताजा पोस्‍ट के संबंध में भी हुई और मैं अग्रज के श्रीमुख से हल्‍दी लगे पत्र का वाकया का आनंद स्‍वानुभूति के साथ लेते हुए बाहर बरांडे में घूमता रहा। इस बीच स्‍वागताध्‍यक्ष द्वार के बाहर मेरे फोन बंद होने का इंतजार करता रहा, शायद उसे मुझसे कोई बात करनी रही होगी सो मैने हाथ के इशारे से अंदर जाने को कहा कि फोन के बाद मैं आकर चर्चा करता हूं। इस बीच स्‍वगातकक्ष में बैठी लड़की (वह लड़की नहीं थी लगभग 34-36 साल की महिला थी) चक्‍के लगे लगेज के साथ एक नये स्‍कापियो के पास आई, ड्राईवर नें बैग गाड़ी में रख लिए वह वापस स्‍वागतकक्ष में चली गई। मेरा फोन चलता रहा, फोन बंद करते ही स्‍वागताध्‍यक्ष बाहर मेरे पास आ गया। मैंने पूछा क्‍यों भाई, इतनी क्‍या आवश्‍यक बात है जो बाहर आ गए।
'सर .. वो लेडी .. जिसे आपने मुह खोलने को कहा था ...' मैंनें कहा कहो यार क्‍या बात है। उसने मुझे दरवाजे से दूर ले जाते हुए जो बतलाया उसका मजमून इस प्रकार है। वह महिला पिछले पांच-छ: दिनों से हमारे होटल में है, अपने पुत्र को बी.ई. में एडमिशन दिलाने आई है। पिछले तीन रात से यह वेटर से 'बच्‍चा' मंगा रही है, तब से हम लोग इस पर निगाह रखे हुए हैं। मैं चकरा गया कि ये कौन से बच्‍चे को मंगाती है, और क्‍या बच्‍चा भी होटलों में सर्व होता है। मेरे शंका पर रिशेप्‍शनिष्‍ट नें समझाया कि यह 'बच्‍चा' क्‍या है, उसने बतलाया कि महगे शराब के एक-दो पैग जितनी मात्रा में छोटी शीशी में जो शराब मिलता है उसे बच्‍चा कहते हैं, (हमने तो अध्‍धी, पौवा सुना था :) । ... तो यह सिद्ध था कि वह रात को शराब पीती है। ... मैने बेफिक्री से कहा कि .. तो क्‍या हुआ। उसने पुन: कहा सर शराब से हमें कोई तकलीफ नहीं थी पर वो पिछली रात एक दो गेस्‍ट के रूम में नाक कर रही थी और गेस्‍ट से बातचीत कर रही थी कि कहॉं से आये है, क्‍या करते हैं, बोर हो रही हूं तो यूं ही आपको नाक कर दिया। एक गेस्‍ट ने शिकायत की और एक गेस्‍ट के साथ वो देर तक बात करते रही। वेटर ने जब उन्‍हें रूम के बजाए लाबी में जाकर बात करने को कहा तो नाराज हो गई थी। किसी तरह समझाकर उन्‍हें उनके रूम में पहुचाया गया। 
आज सबेरे हमने इनका रूम चेकआउट कर दिया यह कहते हुए कि पूरा रूम बुक है कोई रूम खाली नहीं है। दिन भर तो यह नहीं आई अभी शाम से फिर आकर बैठी है कि एक रूम दे दो प्‍लीज। मैने इसके आईडी व पता और इसके पुत्र के संबंध में पूछा, पुत्र एडमीशन के पूर्व एक दिन रूम में साथ रहा, सामने स्‍कार्पियो और ड्राईवर थे, किसी बड़े सरकारी कर्मचारी की पत्‍नी रही होगी, ... ओके। मैंनें कहा तो मुझसे क्‍या हैल्‍प चाहते हो, रिशेप्‍शनिष्‍ट नें कहा सर हो सकता है वो आपसे रिक्‍वेस्‍ट करे और आप बिना पूरा वाकया जाने रूम देने के लिए कह देगें तो हमें रूम देना होगा, और यह फिर नाटक करेगी।
अग्रज प्रो.अली जी का पोस्‍ट मानस से ओझल हुआ ही नहीं था कि यह....। एक और पोस्‍ट में प्रकाशित कहानी पिछले कुछ दिनों से मन को मथ रही है। कुछ और ख्‍यात पोस्‍टों में शब्‍द बाण संधान चालू आहे। पिछले दिनों से ब्‍लॉग पोस्‍टों में पुरूषप्रधान मन को आहत करने वाले दिव्‍यास्‍त्रों का प्रयोग और लक्ष्‍य के बीच नारी विमर्श टाईप का कुछ-कुछ भी प्रस्‍तुत हुआ है। सनातन परंपरा के विभिन्‍न महाकाव्‍यों में विवाहित स्‍त्री के परपुरूष संबंधों पर अलग-अलग ढंग से व्‍याख्‍या और आख्‍यानों का वर्णन हुआ है,  प्रेम पर ओशो नें आधुनिक सदर्भों में वृहद दर्शन परोसा है।  ... पर इन किताबों में मुह छिपाने के बजाए  मैं नारी अस्मिता, नारी विमर्श, यत्र नारी पूज्‍यंते ..... के साथ .... इन वाकयों को किसी अपवाद के साथ स्‍वीकारते हुए,  दिमागी तूफानों  को शांत करने का प्रयास कर रहा हूं .......  देव, मैं पूर्ण एकाग्रता के साथ दिनकर को पढ़ना चाहता हूं।
संजीव तिवारी

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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...