लोटा लेके मारवाड़ के किसी बीहड़ गांव से आये नाई और बाम्हन, मॉर्निंग वाक करते हुए लड़ रहे हैं, पता नहीं क्यों? हालाँकि साथ चलने वालों का कहना है कि वे लड़ नहीं रहे हैं, मज़ाक कर रहे हैं। जो भी हो, सुबह-सुबह गन्दी गालियों का मंगलाचरण चल रहा है, स्वस्ति वाचन चारो तरफ बिखर रहा है। 'तमंचा' को आश्चर्य हो रहा है कि यह वही पंडित है जिसका पांव छू कर सेठ लोग हजार का नोट चढ़ाते हैं।30-32 साल पहले दोनों छत्तीसगढ़ आये, बमुस्कल चौंथी कक्षा पढ़े इन दोनों में से, एक ने टपरे में सेलून खोला और दूसरे ने झुग्गी में रहते हुए पंडिताई शुरू की। दोनों ने आधा-आधा दर्जन बच्चे पैदा किये जो उनके धंधे में लग गए। मारवाड़ी भाषा को सीढ़ी बनाकर इन्होंने अपने प्रान्त के प्रति वफ़ादारी रखने वालों से सहयोग (?) प्राप्त किया।नाइ कैंची चलाते हुए अक्षर को भूल गया और बाम्हन ने उसे साधा। दोनों का धंधा परवान चढ़ा और वे गाड़ी-बंगला टिका के नगर के श्रेष्ठि कोटि के जीव बन गए।दोनों आये थे तब भी उनकी परिस्थिति एक थी आज भी एक है, .. किन्तु कल मुफलिसी की दोस्ती थी, आज रहीसी का रंज।-तमंचा रायपुरी
दोस्ती
छत्तीसगढ़ की ब्रांड एम्बेसडर पंडवानी गायिका तीजनबाई - विनोद साव
दोस्तों.. विगत ३१ अगस्त को
छत्तीसगढ़ की मशहूर पंडवानी गायिका पद्मभूषण तीजन बाई
सेवानिवृत्त हो गईं. वे भिलाई इस्पात संयंत्र के सामुदायिक विकास विभाग तथा बाद में कीड़ा एवं सांस्कृतिक समूह में
लंबे समय तक सेवारत रहीं. महाभारत की कथा कहने की एक दुर्लभ लोकविधा पंडवानी गायन
में वे पारंगत हैं. अपनी इस विलक्षण कला के लिए वे जगप्रसिद्ध हैं. इसके लिए
उन्हें पहले पद्मश्री मिला फिर पद्मभूषण से वे अलंकृत हुईं. तीजन बाई का जन्म
दुर्ग जिले के पाटन तहसील के पास अटारी गांव में हुआ था. तीजा त्यौहार में जन्म लेने के
कारण उनका नाम तीजन पड़ा था और वे तीज पर्व में सेवानिवृत्त हुईं हैं. मैं उनके
बचपन से लेकर आज तक की कलायात्रा का साक्षी रहा हूं. उन पर मैंने ‘एक जीवित किवदंती के आसपास’ शीर्षक से एक आलेख भी कभी लिखा था जो
अनेक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ था.
सही मायनों में तीजनबाई छत्तीसगढ़ की ‘ब्रांड एम्बेसडर’ हैं. वे एक जीवित किवदंती के बन गईं हैं. वे छत्तीसगढ़ की
अकेली हस्ती हैं जिन्हें देश की जनता जानती है और जिनकी विदेशों में भी पहचान है. एक दिन ऐसा भी आया
जब प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर ने उन्हें सुना और तबसे तीजनबाई का जीवन बदल गया।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से लेकर अनेक
अतिविशिष्ट लोगों के सामने देश-विदेश में उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन किया।
उन्होंने सोवियत संघ में
हुए ‘भारत महोत्सव’ में शिरकत की थी.
फ़्रांस-पेरिस के एफिल टावर के नीचे भी उन्होंने अन्तराष्ट्रीय मंच में प्रस्तुति
दी थी. वे मंचों से जब प्रोग्राम करके नीचे उतरतीं थीं तब लोग हज़ार और पांच-सौ के
नोटों में उनके आटोग्राफ माँगा करते थे. उन्हें श्याम बेनेगल ने दूरदर्शन के
प्रसिद्द धारावाहिक ‘भारत एक खोज’ में प्रस्तुत किया था.
विगत दिनों मुंबई से रणवीर कपूर अपने एक निर्देशक इम्तियाज अली को लेकर तीजन बाई
से मिलने भिलाई आए थे. उन्हें अपनी फिल्म के लिए साइन करना चाहते थे पर
स्वास्थ्यगत कारण से वे उसमें शामिल नहीं हो सकीं. उनकी शिक्षा नहीं हुई पर उनकी
प्रतिभा को देखते हुए उन्हें अनेक संस्थाओं द्वारा ‘डाक्टरेट’ की मानद उपाधि दी गईं है.
उनकी सफल कलायात्रा और सेवायात्रा के लिए हमारी हार्दिक बधाइयाँ इस उम्मीद के साथ
कि आगे भी छत्तीसगढ़ और उसकी विराट लोककला तीजनबाई के नाम से रौशन होती रहेगी.
तीजन पंडवानी की
‘हिज हाइनेस’ हो गईं:
उस समय महिला
पंडवानी गायिकाएँ केवल बैठकर गा सकती थीं जिसे वेदमती शैली कहा जाता है। पुरुष खड़े होकर कापालिक शैली में गाते थे।
तीजनबाई ऐसी पहली महिला थीं जिन्होंने कापालिक शैली में पंडवानी का प्रदर्शन किया। बाद में तीजनबाई की शैली का ज्यादा
अनुसरण हुआ और ज्यादा से ज्यादा महिलाएं पंडवानी गायन के क्षेत्र में आने लगीं.
पंडवानी को ग्लैमर से भर देने वाली तीजनबाई पंडवानी कला की ‘हिज हाइनेस’ हो गईं.
तब तीजन ने पानी पिलाना
बंद किया :
भिलाई इस्पात
संयत्र में तीजनबाई की नियुक्ति प्रबंध निदेशक संग्मेश्वरम के कार्यकाल में हुई
थी. संगमेश्वरम साहब की ये आदत थी कि वे
किसी भी आगन्तुक से दो बातें पूछते थे, पहला
‘‘आपने कारखाना देखा है या नहीं..यदि नहीं तो जरूर
देखिये..दूसरा..अमुक साहित्यकार, संगीतकार, कलाकार, खिलाड़ी जो हमारे संयंत्र में काम करते हैं
आप उन्हें जानते हैं कि नहीं..?’’ उन्हें जब ये जानकारी हुई
कि सामुदायिक विकास विभाग में तीजनबाई पानी पिलाने का काम कर रही है तब तत्कालीन
अधिकारीयों को उन्होंने हडकाया और आदेश दिया कि ‘तीजन बाई से पानी मत पिलवाना।‘
साथ ही तीजनबाई से भी कहा कि ‘तुम पानी नहीं पिलाना. इससे पहले कि मेरी नौकरी जाये
मैं तुम्हारी नौकरी समाप्त कर दूंगा.’ उस दिन से तीजनबाई ने अफसरों को पानी पिलाना बंद
किया और बड़े बड़े उस्तादों को अपनी प्रतिभा की बानगी से पानी पिलाना शुरू कर दिया था.
एक्के घांव में निपटा देंव :
यह वह समय था जब
दूरदर्शन पर प्रसिद्द फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल का महान धारावाहिक ‘भारत एक
खोज’ खूब देखा जा रहा था. मैंने एक दिन पहले ही दूरदर्शन पर ‘भारत एक खोज’ देखा. जिसमें महाभारत के युद्धपर्व में कीच्चक वध का प्रसंग था. ‘तीजनबाई अपने तमूरे को लेकर सन न न भाई कहते हुए कैमरे के सामने आई और भीमसेन जैसी मुद्रा बनाकर ताल ठोंक कर अपना ज़न्नाटेदार शाट देते हुए निकल गई. देखने वाले उसकी ओजपूर्ण भाव-भंगिमाओं को किंकर्तव्यविमूढ़ होकर देखते रह गए.
दूसरे दिन मैं
भिलाई के सामुदायिक विकास विभाग में किसी से मिलने गया तब दफ्तर में सन्नाटा था और एक खाली कुर्सी पर मैं बैठ गया था. थोड़ी थकान थी तो मैंने ऑंखें बंद कर ली थीं.. और जब ऑंखें खुलीं तो खुलीं की खुलीं रह गई .. मेरे सामने वही चेहरा था जिसे कल टी.वी.पर मैंने देखा था. बड़े चेहरे पर काजर पारी हुई बड़ी बड़ी
ऑंखें, माथे में बीचोंबीच मीनाकुमारी ब्रांड बड़े आकार की टिकली. बड़ी नाक में एक
बड़ी फूल्ली, और मुस्कराहट में भीगे तथा पान से रचे हुए उसके होंठ. मुझे लगा कि मैं
फिर एक बार ‘भारत की खोज’ सीरिअल तो नहीं देख रहा हूं. अब तक जिस दरअसल जिस खाली कुर्सी पर मैं बैठ गया था वह तीजन बाई की थी. मैंने धारावाहिक वाली बात उन्हें बताई. तब उन्होंने बम्बई में शूटिंग का सारा वृत्तांत कह
सुनाया छत्तीसगढ़ी में कि ‘बस ओतके बर श्याम बेनेगल हा मोला आठ दिन बार बलाए रहिस..में काए करतेंव बम्बई में आठ आठ दिन. मेंहा श्याम बेनेगल ला एक्के घांव में निपटा देंव.’
००० लेखक
संपर्क : 9009884014
20 सितंबर 1955 को दुर्ग में जनमे विनोद साव समाजशास्त्र विषय में एम.ए.हैं। वे भिलाई इस्पात संयंत्र में सहायक प्रबंधक हैं। हिंदी व्यंग्य के सुस्थापित लेखक विनोद साव अब उपन्यास, कहानियां और यात्रा वृतांत लिखकर भी चर्चा में हैं। उनकी रचनाएं हंस, पहल, वसुधा, अक्षरपर्व, ज्ञानोदय, वागर्थ और समकालीन भारतीय साहित्य में भी छपी हैं। दो उपन्यास, तीन व्यंग्य संग्रह, एक संस्मरण, एक कथा संग्रह और एक यात्रावृत्तांत संग्रह सहित उनकी कुल बारह किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं। वे उपन्यास के लिए डॉ. नामवरसिंह और व्यंग्य के लिए श्रीलाल शुक्ल से भी सम्मानित हुए हैं।
रामेश्वर वैष्णव जी के गीत को याद करते हुए, एक तमंचा फायर (मने बकबक)
आज पेट कुछ ख़राब था, रायपुर जाने के लिए सहयात्रियों का ख्याल रखते हुए, एसी सिटीबस के बजाय सामान्य सिटीबस में चढ़ा।
सामान्य सिटी बस दुर्ग से सीधे रायपुर के लिए नहीं है। दुर्ग वाली बस कुम्हारी तक जाती है, कुम्हारी में लगी गाड़ी रायपुर रेलवे स्टेशन के लिए मिल जाती है।
कुम्हारी से उतर कर, कवि सम्मेलनों में रामेश्वर वैष्णव जी की लोकप्रिय पैरोडी 'बस में कबके ठाढ़े हँव, बइठे बर जघा देदे..' गुनगुनाते हुये जब दूसरी सिटी बस में चढ़ा तो उसमे डबल सीट में एक सीट खाली था। मैं वहां जाकर बैठ गया। सीट में जगह कुछ कम लगी, क्योंकि बाजू सीट वाले यात्री ने खिड़की की ओर सीट में अपना बैग रख कर बैठा था। बाजू सीट में जो सहयात्री बैठे थे वे लगातार नान एंड्राइड फोन से किसी 'सर' से बात कर रहे थे।
मैंने ऊँगली के इशारे से उन्हें उस आफिस बैग को गोद में लेने को कहा। उन्होंने बैग सीट से नहीं हटाया, उल्टा थोड़ा और पसर कर बैठ गया अब लगभग आठ इंच की जगह मुझे मिल पाई। मुझे बैठने में दिक्कत होने लगी, मैंने कंडक्टर को बोला, कंडक्टर ने उनसे अनुरोध किया। वो मोबाईल पर बात करते हुए मुझे व मेरे कपडे को इस तरह देखा मानो मुझे तौल रहे हों (?)। बस जब स्पीड पकड़ती या ब्रेक मारती तब मैं सीट से नीचे गिरने को होता। मेरा मन हो रहा था कि, उसके मोबाईल को छीनकर बस के फर्श पर पटक दूँ और दो-चार झापड़ उसे दूँ। कुम्हारी से टाटीबंद तक सहता रहा, भारत माता स्कूल के सामने के स्पीड ब्रेकर में क्रोध अपान वायु के रूप में निकल गया। सहयात्री कसमसाया, खिड़की का शीशा-उसा चेक किया। अनजाने में हुए मिसफायर का असर देख कर मैंने दो-चार फायर और किया। अब सहयात्री ने फोन रख दिया, बैग अपने गोद में ले लिया और मुस्कुराते हुए कहा मुझे उतरना है। मैंने लजाने का भाव मुख पर लाते हुए, उसे निकलने दिया और खिड़की की ओर जाकर इत्मीनान से बैठ गया।
वह दरवाजे के पास जाकर खड़ा हो गया, स्टापेज आते गए वह नहीं उतरा। मैं घडी चौक में उतरा, वह दरवाजे के पास खड़ा बेहद सभ्रांत और कुलीन नज़र आ रहा था। .. और मैं जाहिल, गंवार ..?
-तमंचा रायपुरी
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