मस्‍त प्रश्‍न, समय और फेसबुक

आज सुबह जब छत्तीसगढ़ी के यशश्वी युवा व्यंग्यकार पी के मस्त जी को अपने नामानुरूप टाई कसे सड़क पर देखा तो अचानक मेरी उगलियॉं मेरे दाढ़ी पर रेंग गई. लम्बे पके दाढ़ी के बाल उंगलियों को अहसास करा रहेथे कि हमारा पके और चूसे आम वाला चेहरा अब रेशेवाली गुठली जैसे नजर आ रही होगी. हमने उंगलियां वहॉं से हटाते हुए अहसास को दूर झटका और मस्त जी को आवाज दिया. 

हम दोनों की बाईक समानांतर रूकी, मैंनें पूछा "यार आज टाई में बहुत खुबसूरत लग रहो हो!" मस्त जी नें सकुचाते हुए बतलाया कि उन्होंने पर्सनालिटी डेवलपमेंट का कोर्स ज्वाईन कर लिया है और वे वहीं जा रहे हैं, उन्होंने यह भी बतलाया कि वे वहॉं से पाये ज्ञान एवं अनुभवों से प्रत्येक शुक्रवार स्लम एरिया के युवाओं को पर्सनालिटी डेवलपमेंट का ज्ञान बांटते हैं. छत्तीसगढ़ी साहित्यकार का सुदर्शन रूप और उस पर लोगों को पर्सनालिटी डेवलपमेंट का ज्ञान बांटनें की बात पर मुझे बेहद खुशी हुई. क्या मेरी पर्सनालिटी भी डवलप हो सकती है? प्रश्न नें समय को अपने आगोश में ले लिया. चुप्पी के विस्तार के बीच मस्त जी नें चितपरिचित मुस्कान बिखेरा, किक लगाया और चले गए. 

मैं अपने आप को आम आदमी का प्रतिरूप मानते, दाढ़ी पर उंगलियॉं फेरेते हुए वहीं जमा रहा. अभी दो दिन पहले ही तो मेरी ऐसी सूरती चित्र फेसबुक में अपलोड हुआ था और जमकर लाईक व कमेंट आये थे. मेरी रचनायें, कवितायें वैश्विक स्‍तर पर पढ़ी जा रही हैं, सराही जा रही हैं. अब मुझे पहचान की कोई आवश्‍यकता ही नहीं है, मेरी पर्सनालिटी डवलपमेंट तो सोसल मीडिया ने कर ही दिया है फिर किसी कोर्स को ज्योइन कर समय और पैसे खर्च करने की क्या आवश्यकता? 

प्रश्‍न उठ रहे थे जो मुझे पहली कक्षा से परेशान कर रहे हैं, परीक्षा हाल में नये छपे पन्‍नों में बिखरे प्रश्‍न को देखते ही माथे में और हाथों में पसीना फूट पड़ता था. हर साल सरजी परीक्षा में अटपटे प्रश्‍न ही छांटते थे ताकि मैं, साल भर मेहनत करने के बावजूद, उन्‍हें हल ना कर सकूं. जैसे तैसे असंतुष्टि के साथ उत्‍तर देने के बाद जब पास होता तो रिजल्‍ट देखकर लगता कि उन प्रश्‍नों का उत्‍तर मुझे पता था. सालों साल यही होता रहा, परीक्षा के प्रश्‍नों के साथ ही जीवन के अचानक मुह बाए आ खड़े होने वाले प्रश्‍नों नें कभी मेरा पीछा नहीं छोड़ा. अब तो आदत हो गई है, बेफिक्री से उत्‍तर देता हूं किन्‍तु ये अशांत तो करते ही हैं. जिस दिन प्रश्नों से पीछा छूटेगा उसी दिन अनंत शांति मिलेगी. ब्‍लॉं ब्‍लॉं ब्‍लॉं .. दर्शन झाड़ने के लिए ही सहीं मन में समय नें विस्‍तार ले लिया था.

मोबाईल की घंटी बजने लगी थी, फेसबुक की यादों को बीच में बंद कर हमने "हलो!" कहा. दूसरी ओर हमारी पत्नी नें भी "हलो!" कहा. संक्षिप्त बातें हुई और विस्तारित समय सिमट कर जेब में समा गया. आज रात को ## हजार रुपए के साथ घर पहुंचना है, यह वाक्य प्रश्न नहीं था पर व्याकुल करने में समर्थ था. ओह, ये छुपा हुआ प्रश्‍न था. ये तो और खतरनाक है, छुपा हुआ प्रश्‍न. आठ घंटे में ## हजार की व्‍यवस्‍था कैसे होगी? मुझे लग रहा था कि इस शब्‍दांश में कोई अलंकार है, प्रश्‍न दिख भले नहीं रहा है. रात को नेट में, ओपन बुक में खोजूंगा, इसी बहाने एकाध कविता फेसबुक में ठोकनें लायक बन जायेगी. फेसबुक की यादों नें ## हजार के प्रश्‍न के भारीपन को हल्‍का फुल्‍का कर दिया. पी के मस्त जी की मस्‍त रचनायें, उनका डवलप्ड पर्सनालिटी, मेरे दाढ़ी के बालों में कहीं अटकी रही. उंगलियाँ बार बार उसे महसूस करती रही. हमने भी बुलेटिया किक अपने खट खटिया फटफटी को मारा और आगे बढ़ गए. पीछे धूल और धुवाँ देर तक उड़ता रहा. 
(यूं ही, लेखन के लिए वार्मअप होते हुए)

©तमंचा रायपुरी

विदाई समारोह में भावुक हुए सीजे यतींद्र सिंह, बोले-छत्तीसगढ़ में ही बनाऊंगा घर

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस यतींद्र सिंह बुधवार को रिटायर हो गए। विदाई समारोह में वे भावुक हो गए। एक बार नहीं, कई बार। हालत यह हो गई कि वे स्पीच तक पूरी नहीं कर सके और फफक-फफक कर रो पड़े। उन्होंने जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए माफी मांगी। छत्तीसगढ़ की तारीफ की। बोले-यह राज्य प्राकृतिक संपदा से भरपूर है। भविष्य में वे यहीं घर बनाएंगे। 22 अक्टूबर 2012 को यहां ज्वॉइन करने के बाद से जस्टिस सिंह ने ई-फाइलिंग, ऑनलाइन ऑर्डरशीट, फास्ट ट्रैक कोर्ट, जजों की संपत्ति सार्वजनिक करने जैसे कई बड़े फैसले लिए। उनकी जगह सीनियर जज नवीन सिन्हा को एक्टिंग चीफ जस्टिस बनाया गया है।

चीफ जस्टिस यतींद्र सिंह... विधि के क्षेत्र में एक जानी-पहचानी शख्सियत। जाना-पहचाना इसलिए कि उन्होंने अपने काम के जरिए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट को अलग पहचान दिलाई। ठीक दो साल के कार्यकाल के बाद उन्होंने इस पेशे से विदाई ली। बुधवार को हाईकोर्ट में उनका ओवेशन हुआ। पूरे समय अपने लोगों से अपनी बात। कभी कोई अनुभव याद आता तो गला रुंध जाता, कभी आवाज धीमी पड़ जाती। अपने विदाई समारोह में चीफ जस्टिस यतींद्र सिंह रह-रहकर भावुक होते रहे। अंतिम समय हालत यह हुई कि वे अपनी स्पीच तक पूरी नहीं दे सके और फफक-फफक कर रो पड़े। उन्होंने बेहद विनम्रता से जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए वहां मौजूद लोगों से माफी मांगी।

चीफ जस्टिस यतींद्र सिंह ने 22 अक्टूबर 2012 को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ज्वॉइन किया था। दो साल के कार्यकाल के बाद जब उनकी विदाई हुई तो ओवेशन में हर कोई उन्हें सुनने पहुंचा था। स्पीच की शुरुआत उन्होंने अलविदा छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट... से की। स्पीच के दौरान हर अनुभव को याद करते हुए हरेक व्यक्ति को धन्यवाद दिया और जानी-अनजानी गलतियों के लिए क्षमा भी मांगी। सीजे ने ईश्वर के प्रति अटूट आस्था व्यक्त करते हुए कहा कि उसके ढंग निराले हैं। करने करवाने वाला वही है। हम निमित्त मात्र हैं। उन्होंने छत्तीसगढ़ को कई खूबियों वाला बताते हुए कहा कि भविष्य में वे यहीं अपना घर बनाएंगे।

सायोनारा, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट... नमस्ते, जय जोहार - बतौर चीफ जस्टिस मेरी नियुक्ति में हुई देर से मैं नाखुश था। छत्तीसगढ़ में पोस्टिंग की सुगबुगाहट नहीं थी। अचानक कहा गया कि आप छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के सीजे बनाए गए हैं। मित्रों और सहयोगियों ने मुझे ज्वाइनिंग करने की सलाह दी। लेकिन मैंने इसे स्वीकार किया। आखिरकार यह मेरी पदोन्नति थी। आज महसूस होता है कि सही निर्णय था। छत्तीसगढ़ प्राकृतिक रूप से सुंदर जगह है। वन संपदा, बांधों से भरपूर... जहां रहने का सपना हर किसी का हो सकता है। इस दिशा में मैं भी प्रयासरत हूं। यहां के लोग, वकील और जज सादा जीवन, उच्च विचार वाले हैं। अमू्मन न्यायपालिका से संबंधित बातों में परिवर्तन, बदलाव पर कोई बात नहीं करना चाहता। पर यहां के साथियों ने नया आइडिया लागू करने में सदा सहयोग ही दिया। शायद इसीलिए परिणाम भी दूसरी कोर्ट की तुलना में बेहतर रहे। यह पहला कोर्ट है जहां सिर्फ हाईकोर्ट बल्कि जिला कोर्ट के जजों की भी संपत्ति का ब्योरा ऑनलाइन है।

घटना... जिसने दुखी किया - फुलकोर्ट ने तय किया था कि कंडोलेंस (तीन माह में एक बार) सोमवार की शाम 4.15 बजे ही होंगे। ऐसा निर्णय बार की विनती परामर्श के बाद लिया गया था। लेकिन बार ने ही इसका उल्लंघन किया। हमारे पेशे में संस्थान का समय कीमती होता है। बार ने वादा नहीं निभाया, शायद इसी वजह से मुझे कठोर निर्णय लेना पड़ा। हालांकि बार की भलाई के लिए मेरा सहयोग हमेशा मिलता रहेगा।

सीख दी - वहमित्र ही होता है जो आपकी खामियां आपके सामने कहता है। वह दुश्मन होता है जो मुंह पर तारीफ और पीछे बुराई करता है। कबीर ने कहा है- "निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।'

बार-बेंच पर - एलेवेशनके लिए नाम सुझाने में सिर्फ सहयोगी जजों ने, बल्कि बार के अधिवक्ताओं ने भी मदद की। बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने दो बार इस पर चर्चा की। मेरे ख्याल से देश के किसी भी न्यायालय में एसा नहीं होता। यहां के वकील समझदार हैं। बार और बेंच का रिश्ता महत्वपूर्ण है। इनके बेहतर तालमेल के लिए समय-समय पर कार्यक्रम किए गए। उम्मीद है यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा।

...और मनोबल बढ़ाया - मैं वकीलों से नाराज होता था, उन्हें डांटता था कि उन्होंने केस की तैयारी ठीक से नहीं की। डाक्यूमेंट्स ठीक से नहीं बनाए। साधारण सा कारण यह था कि एक अच्छे निर्णय में केस के वकील की तैयारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है। मैं चाहता हूं कि आप सभी केस की तैयारी अच्छे से करें, ताकि दिए जाने वाले फैसले वादातीत रहें।

खुद पर - अपने व्यवहार के बारे में अगर मैं कुछ बताऊं तो यह अन्याय होगा। कभी-कभी मैं अपने सहयोगियों के प्रति कठोर आलोचक हो जाता हूं। वकीलों से नाराज हो जाता हूं। अनपेक्षित परिणाम आने की वजह से शायद ऐसा हुआ हो। अगर किसी का दिल दुखाया हो तो मुझे क्षमा करें। जहां तक आलोचना की बात है, तो आलोचना हाउस के भीतर चहार दीवारी के अंदर, आपके सामने की गई। पीठ पीछे कभी कुछ नहीं कहा गया।

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के नाम ऊपर ले जाबो... - सीजे ने छत्तीसगढ़ी में स्पीच देकर सबको हतप्रभ कर दिया "मोला शक नइ की हमन छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के नाम ऊपर ले जाबो अउ एक अइसन इंसान बनबो जेखर ऊपर हमर जम्मो भारतवासी गरब करही। एखर पहिली कि मोर सुरता भुला जाय, मैं कहना चाहत हौं कि हफ्ता बाद मैं इलाहाबाद चले जाहौं, मै ऊहां कुछ महीना रुकहूं। आए वाले साल नोएडा चले जाहूं। आप मन जब कभी इहां आहौ, मोर मेहमान बनके नहीं, मोर अपन बनके मोर साथ रइहौ। एखर साथ मय आप मन ले विदा लेत हौं। जय हिंद। सीजे ने दोनों शहरों में अपना पता भी बताया।

दैनिक भास्‍कर से साभार रिपोर्टिंग : अनुपम सिंह

जनकवि स्व.कोदूराम “दलित” के गृह ग्राम टिकरी (अर्जुन्दा) में उनकी 47 वीं पुण्यतिथि का ऐतिहासिक आयोजन

[28 सितम्बर 2014]


टिकरी (अर्जुन्दा) में 05 मार्च 1910 को जन्मे जनकवि कोदूराम “दलित” जी की 47 वीं पुण्यतिथि उनके गृह गाँव टिकरी (अर्जुन्दा) के आम्बेडकर भवन में दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति और ग्राम टिकरी व अर्जुन्दा के उत्साही युवकों के संयुक्त तत्वाधान में 28 सितम्बर को मनाई गई. कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध साहित्यकार पं. दानेश्वर शर्मा, लक्ष्मण मस्तुरिया, मुकुंद कौशल, डॉ.निर्माण तिवारी के साथ ही दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति के अध्यक्ष डॉ.संजय दानी, सचिव संजीव तिवारी, रमाकान्तह बरडिया जी, दुर्ग के कविगण सूर्यकांत गुप्ता, उमाशंकर मिश्रा, संगवारी समूह के नवीन तिवारी अमर्यादित, जनकवि कोदूराम “दलित” जी के पुत्र कवि अरुण निगम तथा पुत्र-वधु कवियित्री श्रीमती सपना निगम और अर्जुन्दा-गुन्डरदेही के साहित्यकार केशव साहू, प्यारेलाल देशमुख, दिनेश्वर चंद्राकर आदि उपस्थित थे. आयोजन में जनकवि कोदूराम “दलित” जी की धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला निगम और उनके पोते अभिषेक निगम विशेष रूप से उपस्थित थे. 


कार्यक्रम में सर्वप्रथम जनकवि कोदूराम ”दलित” के चित्र पर अतिथियों ने माल्यार्पण कर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की और दीप प्रज्जवलित किया. ग्राम टिकरी में दुर्ग और रायपुर से पधारे अतिथि साहित्यकारों के स्वागत के साथ ही वरिष्ठ साहित्यकारों और स्व. कोदूराम “दलित” जी की धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला निगम को टिकरी गाँव के प्रवीण लोन्हारे और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती पुष्पलता लोन्हारे ने शाल और श्रीफल भेंट कर सम्मानित किया. प्रवीण लोन्हारे ने स्वागत भाषण दिया. 

स्व. कोदूराम “दलित” जी के सुपुत्र अरुण निगम ने कहा कि जब दलित जी का निधन हुआ तब वे मात्र ग्यारह वर्ष के थे. बचपन के धुंधले से संस्मरण तो हैं किन्तु चूंकि दानेश्वर शर्मा जी ने दलित जी के साथ कई कवि सम्मेलनों के मंच साझा किये हैं और मुकुंद कौशल जी भी उनके शिष्य थे, अत: आज इन दोनों वरिष्ठ कवियों से दलित जी के कृतित्व और व्यक्तित्व के बारे में सुनना चाहेंगे. दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति के अध्यक्ष डॉ.संजय दानी ने जनकवि कोदूराम “दलित” जी की जीवन यात्रा के बारे में बताया. उन्होंने समिति द्वारा दलित जी पर प्रतिवर्ष पुण्यतिथि कार्यक्रम के आयोजन की बात कही. 

सुप्रसिद्ध कवि और गायक लक्ष्मण मस्तुरिया ने कहा कि उनकी दलित जी से मुलाकात नहीं हो पाई थी. मस्तुरिया जी ने पुण्यतिथि के अवसर पर अपनी कविताओं के माध्यम से भाव-सुमन समर्पित किये. 

मुकुंद कौशल ने बताया कि प्राथमिक शाला के दिनों में शाला में ही गणेश पूजा का आयोजन होता था. पूरे ग्यारह दिनों तक शाला में सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ करते थे. गुरूजी बच्चों से नाटक और प्रहसन के साथ ही गहिरा नाच भी करवाते थे. गहिरा नाच में बच्चों को अपने लिखे दोहे देते थे. इन दोहों में सामाजिक चेतना , राष्ट्र निर्माण की भावना हुआ करती थी. उस समय का एक दोहा जो उन्होंने पढ़ा था आज भी याद है...हमर गाँव के कुछ ढोंगी मन लम्हा तिलक लगायं रे, हरिजन मन के छुआ मानयं, चिंगरी मछरी खायं रे . मुकुंद कौशल जी ने बताया कि उन दिनों वे बहुत छोटे थे लगभग पन्द्रह सोलह साल के, गुरूजी उन्हें कवि सम्मेलनों के मंचों पर ले गए. उन्होंने और भी बहुत से संस्मरण सुनाये. उन्होंोनें कहा कि गुरूजी की जयंती या पुण्ये तिथि पर इस गाँव में विशाल आयोजन होना चाहिए जिसमें आसपास के गाँव के सभी लोग आयें. उन्होंने ग्रामवासियों को हरसंभव सहयोग देने के प्रति आश्वस्त किया. 

वरिष्ठत कवि दानेश्वर शर्मा ने बताया कि प्राथमिक शाला में अध्ययन के समय दलित जी उनके गुरूजी थे. कोदूराम “दलित” जी का जन्म पाँच मार्च उन्नीस सौ दस को ग्राम टिकरी में हुआ था. उनकी कविताओं में देश की आजादी का आव्हान के साथ-साथ आजादी के बाद भारत के नव-निर्माण की भावना भी. आजादी के पूर्व जब देशवासियों को कुछ भी कहने का अधिकार नहीं था तब गुरूजी बच्चों में राउत दोहों के माध्यम से आजादी के लिये जूझने को प्रेरित करते थे. उदहारण के तौर पर उन्होंने बताया ‘गाँधी जी के छेरी भैया, में में में नरियाय रे, एखर दूध ला पी के संगी बुढ़वा जवान हो जाये रे...’ कवि दानेश्वर शर्मा ने अपने बारे में बताया कि वे पहले केवल हिन्दी में लिखते थे, गुरूजी ने कहा कि छत्तीसगढ़ी में लिखो तो पहले तो उनहोंने कहा कि नइ बने गुरूजी, फिर बाद में उन्होंने छत्तीसगढ़ी में लिखना शुरू किया. पहली कविता बेटी कि बिदाई पर लिखी “कइसे के बेटी तोला मयं भेजवं, अँचरा के मोती ला दहरा मा फेंकवं “ इस गीत को एच.एम.व्ही. कंपनी ने रिकार्ड किया, साथ ही और भी गीत जैसे तपत कुरु भाई तपत कुरु बोल रे मिट्ठू तपत कुरु...आदि श्रीमती मंजुला दास गुप्ता की आवाज में रिकार्ड किये गए. अपनी अमरीका यात्रा का संस्मरण सुनाते हुए शर्मा जी ने बताया कि अमरीका में एक कार्यक्रम में वे किसी मित्र से छत्तीसगढ़ी में बात कर रहे थे तब एक महिला ने पूछ कि आप किस भाषा में बात कर रहे हैं, मैंने कहा कि छत्तीसगढ़ी में, तब उस महिला ने भाषा से प्रभावित होकर वायस आफ अमेरिका के लिये एक इंटरव्यू लिया. गुरु जी ने छत्तीसगढ़ी में लिखने की प्रेरणा देकर मुझे कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया. कवि दानेश्वर शर्मा ने दलित जी के बहुत से संस्मरण सुनाये. संस्मरण सुनते हुए वे कई बार भाव-विभोर हो उठे. उन्होंने टिकरी वासियों से कहा कि आप लोग जब भी गुरूजी का कोई कार्यक्रम करेंगे, मैं जरुर आऊंगा. 

कार्यक्रम के अध्यक्ष ताराचंद मेश्राम (पूर्व प्राचार्य) ने अपने उदबोधन में कहा कि श्री कोदूराम “दलित” जी कि वजह से ही आज उनका परिवार शिक्षित है और उच्च पदों पर विराजमान है. ऐसे धरोहर को पाकर पूरा गाँव अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहा है. 

कार्यक्रम में टिकरी, अर्जुन्दा और आसपास के ग्रामीण और साहित्यकार काफी उत्साह के साथ भारी संख्या में उपस्थित थे. कार्यक्रम का सफल सञ्चालन अर्जुन्दा के गीतकार मिथिलेश शर्मा ने अपने चुटीले अंदाज में किया. आभार प्रदर्शन रितेश देवांगन ने किया. ग्राम टिकरी अर्जुन्दा के राकेश मेश्राम, श्रीमती लता मेश्राम, जितेन्द्र सुखदेवे, श्रीमती अमृता सुखदेवे, हरिशंकर साहू, सुभाष देशमुख, डिगेंद्र साहू, ढालू विश्वकर्मा, छगन देवांगन, गिरिधर देवांगन, योगेन्द्र साहू, भुवन सिन्हा, डिलेश्वर साहू, गजानंद सिन्हा, राजू देशमुख,निर्मल सिन्हा, वेद सिन्हा, सुभाष, गजेन्द्र सहित अनेक युवाओं ने इस कार्यक्रम को सफल बनाने में अपनी सहभागिता दी.

- अरूण कुमार निगम

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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...