लोकप्रियता की अजब पहेली राजेश खन्ना
कुछ अनछुए आत्मीय प्रसंग
विनोद साव
‘अमरप्रेम’ का वह दृश्य याद आ रहा है जिसमें शर्मिला टैगोर से मिलने के लिए राजेश खन्ना पत्तल में समोसे और चटनी लेकर आया करते थे। वह बारह बजे का मैटिनी-शो था। इंटरवल करीब डेढ़ बजे के आसपास होना था। हम काॅलेज के मित्र फिल्म देख रहे थे। इस दृश्य का ऐसा असर पड़ा कि इंटरवल में हम तीन मित्र मिलकर दर्जन भर समोसे खा गए। हमने समोसे खाना भी राजेश खन्ना से सीखा।
राजेश खन्ना एक बार हमारे शहर दुर्ग आ गए थे कांग्रेस का चुनाव प्रचार करने। उनकी चुनावी आम सभा हमारे घर के पास पद्मनाभपुर स्थित मैदान में थी। शहर में यह पता चला कि वे लड़कियाॅ जो सोलह बरस की उमर में अपने जिस लवर बॉय राजेश खन्ना की दीवानी थीं, वे सभी उनके आगमन के समय चालीस-ब्यालीस बरस की हो गई थीं, लेकिन अपने प्रिय नायक के अपने शहर में आने की खबर ने उनमें झुरझुरी पैदा कर दी। उन्हें सहसा विश्वास नहीं हो पाया कि उनके दौर के रुपहले परदे का एक महानायक उनके शहर के किसी मैदान में अपनी आशिक अदाओं में बोलेगा। वे उस कालखंड में विचरण करते हुए कब उस चुनावी आम सभा के सामने आकर खड़ी हो गईं उन्हें खुद ही होश नहीं रहा था। ऐसी भारी भीड़ उन प्रौढ़ महिलाओं की दिखी थी जो अपनी किशोरावस्था में इस सम्मोहक नायक के लिए सिनेमाहालों की ओर भागा करती थीं। आज भागकर वे इस मैदान में पहुंच गई थीं। सुपर स्टार उस दिन सफेद कुरते और पाजामे में थे। अभिनेता के नहीं एक नेता के लिबास में। उन्होंने अपना भाषण देने के बाद जोर से आवाज लगाई ‘भाइयो...आप लोग अपना बहुमूल्य वोट साहू साहब को दें।’
‘कौन सा साहू... यहॉं तो सभी साहू हैं।’ उस समय दुर्ग लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस, भाजपा और बसपा तीनों प्रमुख दलों के उम्मीदवार साहू थे। तब उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी जागेश्वर साहू का हाथ उठाकर कहा ‘इन्हें अपना वोट दें ...यही है असली साहू...।’
मैं शाम को अपने कार्यालय से घर आया। तब मेरे छोटे बेटे अमिय ने पुलकते हुए बताया था कि ‘पापा हम तो आज राजेश खन्ना से मिले हैं। उन्होंने मेरे सिर पर हाथ फेरा।’ उसने सारा वृतांत कह सुनाया। वह चुनावी आमसभा के पास वाले स्कूल में छठवीं कक्षा का विद्यार्थी था। स्कूल से छुट्टी होने के बाद वह चुनावी मंच की ओर दौड़ गया था और मंच के सामने जाकर खड़ा हो गया। अपना भाषण देने के बाद राजेश खन्ना जब मंच की सीढ़ियों से नीचे उतर रहे थे तब पास खड़े एक मिडिल स्कूल के बच्चे को स्कूल यूनिफार्म में देखकर वे प्रफुल्लित हो गए और स्नेह से अपना हाथ उसके सिर पर रखते हुए आगे बढ़ गए थे।
कभी प्रतिष्ठित पत्रिका ‘धर्मयुग’ के बाल-जगत स्तंभ में बच्चों के लिए साक्षात्कार देते हुए उन्होंने बताया था कि ‘एक बार एक नाटक में उन्हें दरबान की भूमिका दी गई थी जिसमें एक छोटा सा डॉयलाग बोलने में उन्हें पसीना छूट गया था।’ आगे चलकर यही वो कलाकार है जिसकी प्यार से लबरेज आवाज को सुनने के लिए दर्शक हमेशा तरसते थे। तब उनकी फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ ने बच्चों का मन मोह लिया था। उनकी ज्यादातर फिल्में पारिवारिक और भावना प्रधान होती थीं। किसी भी किरदार में वे अपने दोस्ताना अंदाज में छा जाते थे। वे आज के नायकों की तरह अंडरवर्ड में स्टेनगन लेकर दौड़ने वाले हीरो नहीं थे। अपने समय के उम्दा निर्देंशकों ऋषिकेश मुखर्जी, वासु भट्टाचार्य, असित सेन, शक्ति सामन्त, दुलाल गुहा और यश चोपड़ा के वे चहेते नायक थे। वे सदाबहार देव आनंद की शैली के कलाकार थे। चाल-ढाल, पहनाव-ओढ़ाव, रुप सौन्दर्य और अन्दाज में रुमानी पन, संवाद अदायगी का अपना अलग ढंग - ये कुछ ऐसी समानताएँ थीं जो इन दोनों में एक जैसी थीं। दोनों की लबों पर किशोर कुमार की आवाज खूब फबती थी। देव साहब ने संगीतकार एस.डी.बर्मन को स्थापित किया तो राजेश खन्ना ने आर.डी.बर्मन को।
कुछ दिनों पहले भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष पर शाहरुख खान ने एक सम्मान समारोह का आयोजन करवाया था और उसमें राजेश खन्ना के साथ दिलीपकुमार और कई मशहूर कलाकारों को बुलाया गया था। बूढ़े हो चुके, मंच पर शांतचित्त बैठे राजेश खन्ना को जब बोलने के लिए आमंत्रित किया गया तब वहॉं उनके खड़े होते ही हर्ष और उल्लास की एक लहर दौड़ गई। उन्होंने अपनी फिल्म ‘दाग’ की वह भावपूर्ण कविता सुनायी ‘आज मैं हूँ जहॉं कल कोई और था, यह भी इक दौर है और वह भी इक दौर था... मेरे दोस्त मैं तो कुछ भी नहीं।’ यह यश चोपड़ा निर्देशित ‘दाग’ के एक दृश्य की लम्बी कविता का अंश है जिसमें नगर निगम में मेयर के चुनाव जीतने के बाद जब उनके सम्मान में कार्यक्रम रखा जाता है वहॉं यह कविता नायक द्वारा सुनाई जाती है। उसी कविता को जब आज वे अपने सम्मान में सुना रहे थे तब समारोह स्थल तालियों और सीटियों से गूँज उठा था। यह दिखा कि आज भी उनके चाहने वालों में एक अतृप्ति और छटपटाहट बाकी है, वह प्यास बाकी है जो उनके समय में थी। आज भी चैनलों में और आर्केस्ट्रा पार्टियों में सबसे ज्यादा उनके सिने गीतों को देखे सुने जाने की उद्दाम लालसा भरी है। दिल अभी पूरी तरह भरा नहीं है।
आज उनके प्रशंसक भी साठ बरस के आसपास हैं और राजेश खन्ना सत्तर के करीब। पिछले बरस मुम्बई गया था। जब टूरिस्ट बस में घूम रहे थे तब बस अचानक राजेश खन्ना के मकान के सामने रुक गई थी। गाइड ने बताया कि ‘काका कभी कभी काला चश्मा पहने यहॉं अपनी छत पर बैठकर अखबार पढ़ते रहते हैं।’ उनके मकान का नाम ‘आशीर्वाद’ है। इस मकान को उन्होंने राजेन्द्र कुमार से खरीदा था तब इस मकान का नाम ‘डिम्पल’ था। सिनेमा की नायिका डिम्पल नहीं राजेन्द्र कुमार की बेटी का नाम भी डिम्पल था। कुँआरे राजेश खन्ना ने जब इस मकान को खरीदा तब मकान का नाम बदलकर ‘डिम्पल’ से ‘आशीर्वाद’ कर दिया। तब उन्हें मालूम नहीं था कि उनके जीवन में कोई डिम्पल नाम की नायिका आवेगी और उनके साथ ब्याही जावेगी।
हमारी टूरिस्ट बस उस मकान ‘आशीर्वाद’ के सामने खड़ी थी। हम बस की खिड़कियों से झांककर देख रहे थे। सामने अरब सागर में अठखेलियॉं करती उसकी लहरें और समुद्र के सामने एक उजड़ा हुआ-सा मकान। फिल्म ‘दाग’ में गाई गई उनकी कविता की तरह। शिखर पर पहुंचना आसान होता है पर वहॉं टिके रहना कितना कठिन। राजेश खन्ना ने अपने एक छोटे संस्मरण में यह लिखा था कि ‘मुझे यह भय सताने लगा था कि आज जिस शिखर पर मैं हूँ और कल कहीं उस शिखर से उतार दिया जाउँ तब मेरे लिए जीना कितना भयावह होगा। इस भय से मैं अँधेरी रात में अपने घर के सामने समुद्र में घुस गया था, उसमें डूब जाना चाहता था। पर मरना भी मेरे हाथों में नहीं था।’
उनके मकान के सामने एक छोटी लॉन है। मकान का मुख्य प्रवेश द्वार खुला हुआ था और भीतर सुपर-स्टार की एक बड़ी पोट्रेट लगी हुई थी जो बाहर से भी साफ दिखलाई दे रही थी। पोट्रेट में वे अपनी उसी मुस्कान पर थे जिस पर उनके लाखों चाहने वाले फिदा थे। इस चित्र में वे अपना गुरु कुरता पहने हुए हैं। पेंट के उपर इस कुरते को पहनने का चलन उन्हीं से हुआ था। यह चित्र उनकी सबसे सार्थक फिल्म ‘आनंद’ से लिया गया है ‘जिंदगी कैसी है पहेली’ वाला गीत गाते हुए दृश्य। हिन्दी सिनेमा के पहले सुपरस्टार, हर दिल अजीज अभिनेता जिसने लोकप्रियता की एक इतिहास बदल देने वाली उंचाई को प्राप्त किया था, उस राजेश खन्ना की दगी में आज ये कैसी पहेली छाई हुई है इसे कोई नहीं बूझ पा रहा है।
विनोद साव, मुक्तनगर, दुर्ग, छत्तीसगढ
मो. 9407984014
मो. 9407984014
20 सितंबर 1955 को दुर्ग में जन्मे विनोद साव समाजशास्त्र विषय में एम.ए.हैं। वे भिलाई इस्पात संयंत्र में प्रबंधक हैं। मूलत: व्यंग्य लिखने वाले विनोद साव अब उपन्यास, कहानियां और यात्रा वृतांत लिखकर भी चर्चा में हैं। उनकी रचनाएं हंस, पहल, ज्ञानोदय, अक्षरपर्व, वागर्थ और समकालीन भारतीय साहित्य में भी छप रही हैं। उनके दो उपन्यास, चार व्यंग्य संग्रह और संस्मरणों के संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है। उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं। वे उपन्यास के लिए डॉ. नामवरसिंह और व्यंग्य के लिए श्रीलाल शुक्ल से भी पुरस्कृत हुए हैं। आरंभ में विनोद जी के आलेखों की सूची यहॉं है।
संपर्क मो. 9407984014, निवास - मुक्तनगर, दुर्ग छत्तीसगढ़ 491001
ई मेल -vinod.sao1955@gmail.com
ई मेल -vinod.sao1955@gmail.com