लो भई छत्‍तीसगढ ब्‍लागर्स मीट की खबरें

नवोदित व प्राकृतिक सुन्‍दरता से भरपूर छत्‍तीसगढ में ब्‍लागर्स मीट की संभावना से हम उत्‍साहित थे, नीरज दीवान भाई (की बोर्ड के सिपाही)के रायपुर आने की सूचना पाकर हमने संजीत जी से भिलाई में यह मीट रखने के लिए आग्रह किया था क्‍योंकि हम मानते हैं कि ब्‍लागर्स मीट सिर्फ ब्‍लागर्स मीट न होकर ब्‍लागर्स अवेयरनेस मीट हो, इसके लिए हम ब्‍लाग दुनिया में आने के इच्‍छुक नये साथियों को भी उसी स्‍थान में बुलाकर नीरज भाई व छत्‍तीसगढ के ब्‍लागरों से मिलाना चाहते थे ।

आज सुबह से ही हम आश लगाये बैठे थे नीरज भाई एवं हमारे अन्‍य छत्‍तीसगढिया ब्‍लागर्स भाईयों से तय स्‍थान में मुलाकात हो । हम रायपुर में भी मिलने के लिए तैयार बैठे थे किन्‍तु संजीत भाई का फोन आया कि सभी ब्‍लागर्स अपनी अपनी निजी व्‍यस्‍तता के कारण रायपुर में भी जुट नहीं पा रहे हैं तब हमने भी अपने रायपुर जाने का कार्यक्रम निरस्‍त कर नीरज भाई से फोन पर बात किया शाम को 6.30 संध्‍या को मिलने का समय तय हुआ क्‍योंकि नीरज भाई को राजनांदगांव जाना था और रायपुर से राजनांदगांव जाने के लिए भिलाई बीच में पडता है, जहां वे हमसे मिलने को तैयार हो गये । हम 6.00 बजे अपना सामान्‍य कामकाज निबटाकर नीरज भाई का इंतजार करने लगे । ब्‍लागर्स अवेयरनेस मीट का कार्यक्रम हमने हमने भविष्‍य के लिए पोस्‍टपोन कर दिया ।

नीरज भाई 06.40 शाम को नियत स्‍थान होटल हिमालय पार्क पहुंचें, वहां हम उनका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे । जैसी कल्‍पना थी नीरज भाई को हमने वैसा ही पाया, कहते है व्‍यक्ति का व्‍यक्तित्‍व उसके ब्‍लाग पोस्‍टों में झलकता है । एक सुलझा पत्रकार मन जिसे पाठकों के प्रति कलम की जवाबदेही का भान है ।

हम पहली बार उनसे मिले थे, हम उनसे, उनके सीनियर ब्‍लागर होने के कारण बहुत सी जानकारी लेना चाह रहे थे एवं उनके हिन्‍दी ब्‍लाग अनुभव के संबंध में बातें करना चाह रहे थे एवं उनके पास समय कम था, अत: हमने औपचारिकताओं के बाद हिन्‍दी ब्‍लागिंग के उनके अनुभवों से रूबरू हुए । दिल्‍ली के ब्‍लागरों के संबंध में भी औपचारिक बातें हुई । भिलाई में नीरज जी पढाई कर चुके हैं इस कारण उन्‍होंने अपने बीते दिनों को याद किया एवं हम दोनों नें उन अनुभवों का बेहद मजा लिया ।

फोटो सेशन के बाद रात 8.00 बजे हमारा यह मीट समाप्‍त हुआ । आप भी देखें हमारी तस्‍वीर (नीरज भाई व मैं यानी संजीव तिवारी):

प्रथम प्रेम पत्र

मैं तरस रहा था
तू देखे मेरी तरफ
और मुस्‍कुरा दे, हौले से
मैं तेरी इच्‍छा पे नही जाता
कि, तुमने क्‍यू मुस्‍कुराया है ?
पर, इतना जरूर जानता हूं
कि, तुमने मुस्‍कुराया तो है ।




तेरी ये शोख अदा,
इठलाना बुत सा खडे होना,
दांतो में उंगली चबाना
नजरों की चपलता मैं हैरान हूं,
ये मामूली है या गैर मामूली ?
मैं ये तो नही जानता पर,
इतना जरूर जानता हूं कि,
तेरी आंखों में कुछ तो है
आंखों के सिवा ।

आकांक्षाओं का विशाल समुद्र
किनारों से अठखेलियां करता हुआ
या मैं,
तेरी ओर ताकता हुआ ?
मैं ये तो नही जानता पर,
इतना जरूर जानता हूं कि,
तुमने मुझे देखा है ।

पहली कविता नही है यह
ऐसे कई लिख चुका हूं,
तुम्‍हारे खातिर
पेश है एक पुष्‍प मेरी बगिया का
तुम्‍हे ये पसंद आया,
या नही आया?
मैं ये तो नही जानता पर,
इतना जरूर जानता हूं कि,
तुम किसी से मेरा शिकायत नही करोगी ।

कुछ लिखने की तमन्‍ना हो तो ठीक
नही तो सिर्फ अपना पता लिखा
खाली लिफाफा ही सहीं
पत्र का इंतजार रहेगा मुझे
तुम प्रेषक बनोगी या नहीं ?
मैं ये तो नही जानता पर,
इतना जरूर जानता हूं कि,
मैने ये तुम्‍हारे लिए ही लिखा है ।

संजीव तिवारी




कुछ हल्‍का फुल्‍का :-
मैनें यह प्रेम पत्र 1995 में मेरी एक संभावित प्रेमिका को लिखा था। संभावित इसलिये क्‍योंकि उन दिनों नौकरी के आवेदन बनाने के साथ साथ यह प्रयास भी एकाध दो जगह कर चुका था। तो हां उस संभावित प्रेमिका को बहुत हिम्‍मत कर के इसे दिया था। उसके एक घंटे बाद ही उसके भाई नें मुझे चौंक में पकडा और अपने घर ले गया, हम घबराते हुए उसके घर गये कि अब तो पडेगें डंडे। वहां मेरी भावी प्रेमिका के पिता नें मामला सम्‍हाला, मेरा नाम गांव पता सब नोट कर डाला। सकपकाते हुए हम जल्‍दी से जल्‍दी सलट लिये, जान बची लाखो पाये।

इस वाकये के एक महीने बाद ही हमारी उक्‍त भावी प्रेमिका, पत्‍नी बन गयी। हमें न तो पत्र का जवाब मिला ना ही, कुछ और पल, हमने ‘एज ए लवर’ गुजार सके, ना ही लव को एन्‍ज्‍वाय कर पाये। अब लोग हमसे पूछते हैं, भईया आपने तो लव मैरिज किया है ना.. तो हम अपसेट तो हो ही जाते है। आज श्रीमती के निजी सामानों के बक्‍से से यह पत्र मिला तो आंखों में चमक उभर आई . . . सचमुच हमने भी प्‍यार किया है।




हिन्‍दी कम्‍यूटिंग : स्‍वप्‍न अधूरे हैं



बडे भाई शुकुल जी एवं ज्ञानदत्‍त जी के प्रेरणा से आरंभ यह् इंक ब्‍लागिंग हमारे लिए एक अच्‍छा साधन सिद्ध हुआ है । दिन भर कम्‍प्‍यूटर से दूर रहने का गम इसने दूर कर दिया ।

नारित्व का बोध

विगत दिनों चर्चा में रहे अमिताभ बच्चन की फिल्में क्रमश: नि:शब्द व चीनी कम जैसी फिल्मों के मूल भावों एवं फिल्म समीक्षा व विचार मंथनों में जवान पुरुष से ज्यादा ६० से अधिक उम्र के पुरुषों की कामुक प्रवृत्तियों पर खुलकर चर्चा हुई । सभी ने अपने-अपने मति के अनुसार इस पर अपने-अपने विचार प्रकट किए । हम फिल्म तो नहीं देख पाते पर इस पर चर्चाओं को कभी कभी पढते रहते हैं एवं फिल्म देखने का मजा उसी से लेते हैं ।

आज सुबह हम एक साध्वी के श्री मुख से दूरदर्शन में प्रवचन सुन रहे थे, उन्होंने उपरोक्त मुद्दे का राज, पौराणिक कथाओं की माध्यम से खोला, हमारी भी आँखें खुल गई । लीजिए हम प्रस्तुत कर रहे हैं उस कथा को जो कथा नहीं चिंतन है, भाव उनके है शब्द हमारे:-

एक बार एक सरोवर में राजकन्यायें निर्वस्त्र होकर जल क्रीड़ा का आनंद ले रही थी । महर्षि वेद व्यास का युवा साधु पुत्र ऋषि पाराशर वहाँ से गुजरे, ऋषि ने जलक्रीड़ा करती हुई उन नग्न बालाओं को देखा और अपना कमंडल उठाये आगे बढ गए, युवतियाँ स्नान करती रहीं । थोड़ी देर पश्चात स्वयं महर्षि वेद व्यास जी उसी पथ से गुजरे, उन्होंने भी जलक्रीड़ा में मग्न, नग्न बालाओं को देखा और आगे बढने लगे । स्‍नान करती बालायें बोल पड़ी ‘महर्षि ठहरें ! आपने नग्न नारियों को देखकर पाप किया है ।’ महर्षि ने प्रतिउत्तर दिया- ‘इस पथ से अभी अभी मेरा पुत्र गया है उसने भी तुमको इसी स्थिति में देखा है, तो मेरे देखने से पाप क्यों ?’ राजकन्याओं ने कहा- ‘महर्षि आपका पुत्र इस राह से गुजरा उसने हमें इसी स्थिति में देखा, किन्तु उसके मन में जो भाव थे वो कुछ ऐसे थे कि सरोवर में जानवर क्रीड़ा कर रहे हों, उसने हमें नारी समझकर नहीं देखा, हम स्त्रियां दृष्टि का मर्म समझती हैं, किन्तु आपने हमें नारी के रुप में ही देखा और हमें आभास करा दिया कि हम नारी है, यही भाव तो पाप के भाव हैं ।‘

इसके बाद मेरे घर में विद्युत प्रवाह विच्छेदित हो गया, बाकी का चिंतन मेरे मन ने पूरा किया । युवक पाराशर द्वारा नग्न नारियों पर दृष्टिपात करने पर भी उसका मन निर्विकार रहा, वहीं वृद्ध वेद व्यास के मानस नें नारियों के प्रति पुरुषों की सहज उत्कंठा को जागृत कर दिया । मत्स्यकन्या से उत्पन्न महाज्ञानी पाराशर ऋषि के निर्मल मन को पाप छू नहीं सका क्योंकि वह नारी के भोग से पूर्ण संतुष्ट था तभी तो कालांतर से पाराशर गोत्रज आज भी विद्यमान है, जबकि महर्षि वेदव्यास ने नारी को भोगा था किन्तु वय के कारण कर्मणा नहीं मनसा कामना जीवित थी । इसीलिए उसकी एक दृष्टि ने ही उन बालाओं को उनके नारी होने का बोध करा दिया, वे झटपट अपने अंगों को हाथों से छुपाने लगीं ।

सनातन में दण्ड से ज्यादा पश्च्याताप और अपराधबोध कराकर दण्ड को स्वयं स्वीकारने की परंपरा रही है, महर्षि ने सनातन विधि से पश्चात्यताप किया । इस कथा से हमने जो समझा वह यह है-

पाप पहले मन में कामना के रुप में पैदा होता है तदनंतर शरीर उसे मूर्त रुप देता है, शारीरिक क्रिया अकेले पापी नहीं है, यदि कामना न हो तो पापमय दृष्टि का प्रश्न ही नहीं उठता, और यह भी कि भिन्‍न भिन्‍न व्‍यक्तियों की दृष्टि में समान भाव नहीं होते । नारित्व के बोध का भाव ही किसी कम वय की कन्या को अपने से इतर वय के पुरुषों के प्रति आकर्षण का कारण है । मात्र रजोदर्शन ही नारित्व का बोध नहीं है पुरुष के मन की कामना जब इंद्रियों से परिलक्षित होती है तब नारी को नारी होने का शाश्वत बोध होता है ।

नारित्‍व के रुप अनेक हैं यहां हमने उसके एक स्वरुप का ही चित्रण किया है इसका मतलब यह नहीं है कि वह श्रद्धा नहीं है या कविता नहीं है । किसी भी व्यक्ति के मन को इस लेख से किसी भी प्रकार की चोट पहुंचती है तो मैं उनसे क्षमा चाहता हूं मैने अपने विचार प्रकट किये हैं, आप भी स्वतंत्र है मुझे टिपियाने के लिए ।

संजीव तिवारी

आजादी के दिन का समाचार पत्र : धरोहर

आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये

छत्तीसगढ के दुर्ग मे आज भी है आजादी के दिन का समाचार पत्र जिसे सम्हाला है सक्सेरिया परिवार ने धरोहर की तरह.
15 अगस्त को स्वराज्य के सूर्योदय से दिल्ली मे रौनक
9 अगस्त को दैनिक विश्वामित्र , मुम्बई से प्रकाशित समाचार पत्र का वह ऐतिहासिक समाचार जो लोगों के मन में उत्‍साह व रोमांच भर रहा था ।
तब सोने की कीमत थी 98.25 रु. प्रति तोला व चान्दी का भाव था 157.25 रु.प्रति किलो . मुम्बई मे तब नीलकमल फिल्म लगी थी ! और भी कई रोचक व एतिहासिक पलो को याद करने को विवश करते इस समाचार पत्र का चित्र हम यहा प्रस्तुत कर रहे है .

हर दौर मे छत्तीसगढ के सपूतो के बलिदान, त्याग और समर्पण से मजबूत हुआ मेरा भारत

आज मै इस पावन बेला पर भाई संजीत त्रिपाठी के स्वर्गीय पिता श्री मोती लाल जी त्रिपाठी, छत्तीसगढ के वरिष्ठ स्वतंत्रता सग्राम सेनानी एवं मेरे श्वसुर जो स्व.त्रिपाठी जी के ग्रुप के कनिष्ठ सदस्य थे, स्व. श्री लक्ष्‍मण प्रसाद जी दुबे स्वतंत्रता सग्राम सेनानी को शत शत नमन करता हू ! उनका सम्पूर्ण जीवन आदर्श रहा उनका सन्देश निदा फाजली के इस शेर मे देखें -

हरेक घर मे दिया भी जले अनाज भी हो,
अगर न हो तो कहीं एसा तो एहतियाज भी हो .
हुकूमतों को बदलना तो कुछ मुहाल नहीं,
हुकूमतें जो बदलता है वो समाज भी हो .

पुन: शुभकामनाये !

छत्तीसगढ़ के ज्योतिर्लिंग : प्रो. अश्विनी केशवानी

प्राचीन छत्‍तीसगढ पर दृश्टिपात करें तो हमें इस क्षेत्र में जहां वैष्णव मंदिर बहुतायत में मिलते हैं, वहीं भव्‍य मंदिर अपनी गौरव गाथा कहते नहीं अघाते। छत्‍तीसगढ प्राचीन काल से आज तक अनेक धार्मिक आयोजनों का समन्वय स्थल रहा है। गांवों में स्कूल-कालेज न हो, हाट बाजार न हो, तो कोई बात नहीं, लेकिन नदी-नाले का किनारा हो या तालाब का पार, मंदिर चाहे छोटे रूप में हों, अवश्‍य देखने को मिलता है। ऐसे मंदिरों में शिव, हनुमान, राधाकृष्‍ण और रामलक्ष्मणजानकी के मंदिर प्रमुख होते हैं। प्राचीन काल से ही यहां शैव परम्परा बहुत समृद्ध थी। कलचुरि राजाओं ने विभिन्न स्थानों में शिव मंदिर का निर्माण कराया जिनमें चंद्रचूड़ महादेव (शिवरीनारायण), बुद्धेश्‍वर महादेव (रतनपुर), पातालेश्‍वर महादेव (अमरकंटक), पलारी, पुजारीपाली, गंडई-पंडरिया के शिव मंदिर प्रमुख हैं। इसके समकालीन कुछ शिवमंदिर और बने जिनमें पीथमपुर का कालेश्‍वरनाथ, शिवरीनारायण में महेश्‍वरनाथ प्रमुख हैं।

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भगवान शिव अक्षर, अव्यक्त, असीम, अनंत और परात्पर ब्रह्म हैं। उनका देव स्वरूप सबके लिए वंदनीय है। शिवपुराण के अनुसार सभी प्राणियों के कल्याण के लिए भगवान शंकर लिंग रूप में विभिन्न नगरों में निवास करते हैं। उपासकों की भावना के अनुसार भगवान शंकर विभिन्न रूपों में दर्शनदेते हैं। वे कहीं ज्योतिर्लिंग रूप में, कहीं नंदीश्‍वर, कहीं नटराज, कहीं अर्द्धनारीश्‍वर, कहीं अश्टतत्वात्मक, कहीं गौरी शंकर, कहीं पंचमुखी महादेव, कहीं दक्षिणामूर्ति तो कहीं पार्थिव रूप में प्रतिष्ठित होकर पूजित होते हैं। शिवपुराण में द्वादस ज्योतिर्लिंग के स्थान निर्देश के साथ-साथ कहा गया है कि जो इन १२ नामों का प्रात:काल उच्चारण करेगा उसके सात जन्मों के पाप धुल जाते हैं। लिंग रहस्य और लिंगोपासना के बारे में स्कंदपुराण में वर्णन है कि भगवान महेश्‍वरनाथ अलिंग हैं, प्रकृति ही प्रधान लिंग है। महेश्‍वर Photo Sharing and Video Hosting at Photobucket
निर्गुण हैं, प्रकृति सगुण है। प्रकृति या लिंग के ही विकास और विस्तार से ही विश्‍व की सृष्टि होती है। अखिल ब्रह्मांड लिंग के ही अनुरूप बनता है। सारी सृष्टि लिंग के ही अंतर्गत है, लिंगमय है और अंत में लिंग में ही सारी सृष्टि का लय भी हो जाता है। ईशान, तत्पुरूश, अघोर, वामदेव और सद्योजात ये पांच शिवजी की विशष्‍ट मूर्तियां हैं। इन्हें ही इनका पांच मुख कहा जाता है। शिवपुराण के अनुसार शिव की प्रथम मूर्ति क्रीडा, दूसरी तपस्या, तीसरी लोकसंहार, चौथी अहंकार और पांचवीं ज्ञान प्रधान होती है। छत्‍तीसढ में शिवजी के प्राय: सभी रूपों के दर्शन होते हैं। आइये इन्हें जानें :-

लक्ष्मणेश्‍वर माहादेव

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जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत जिला मुख्यालय जांजगीर से ६० कि. मी., बिलासपुर से ६४ कि. मी., कोरबा से ११० कि. मी., रायगढ़ से १०६ कि. मी. और राजधानी रायपुर से १२५ कि. मी. व्हाया बलौदाबाजार, और छत्‍तीसढका सांस्कृतिक तीर्थ शिवरीनारयण से दो-ढाई कि. मी. की दूरी पर स्थित खरौद शिवाकांक्षी होने के कारण ''छत्‍तीसढकी काशी'' कहलाता है। यहां के प्रमुख आराध्य देव लक्ष्मणेश्‍वर महादेव हैं जो उन्नत किस्म के ''लक्ष्य लिंग'' के पार्थिव रूप में पश्चिम दिशा में पूर्वाभिमुख स्थित हैं। मंदिर के चारों ओर पत्थर की मजबूत दीवार है। इस दीवार के भीतर ११० फीट लंबा और ४८ फीट चौड़ा चबुतरा है जिसके उपर ४८ फीट ऊंचा और ३० फीट गोलाई लिए भव्य मंदिर स्थित है। मंदिर के गर्भगृह में ''लक्ष्यलिंग'' स्थित है। इसे ''लखेश्‍वर महादेव'' भी कहा जाता है क्योंकि इसमें एक लाख शिवलिंग है। बीच में एक पातालगामी अक्षय छिद्र है जिसका संबंध मंदिर के बाहर स्थित कुंड से है। शबरीनारायण महात्म्य के अनुसार इस महादेव की स्थापना श्रीराम ने लक्ष्मण की विनती करने पर लंका विजय के निमित्त की थी। इस नगर को ''छत्‍तीसढकी का काशी'' कहा जाता है। इनकी महिमा अवर्णनीय है। महाशिवरात्री को यहां दर्शनार्थियों की अपार भीढ़ होती है। कवि श्री बटुकसिंह चौहान इसकी महिमा गाते हैं :-

जो जाये स्नान करि, महानदी गंग के तीर।
लखनेश्‍वर दर्शनकरि, कंचन होत भारीर।।
सिंदूरगिरि के बीच में लखने वर भगवान।
दर्शनतिनको जो करे, पावे परम पद धाम।।

कालेश्‍वर महादेव

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जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत जांजगीर से १० कि. मी., चांपा से ८ कि. मी. और बिलासपुर से ८० कि. मी. की दूरी पर हसदो नदी के तट पर पीथमपुर स्थित है। यह नगर यहां स्थित ''कालेश्‍वर महादेव'' के कारण सुविख्यात् है। चांपा के पंडित छविनाथ द्विवेदी ने ''कलिश्‍वरनाथ महात्म्य स्त्रोत्रम'' संवत् १९८७ के लिखा था। उसके अनुसार पीथमपुर के इस शिवलिंग का उद्भव चैत कृष्‍ण प्रतिपदा संवत् १९४० को हुआ। मंदिर का निर्माण संवत् १९४९ में आरंभ हुआ और १९५३ में पूरा हुआ। खरियार के युवराज डॉ. जे. पी. सिंहदेव ने मुझे सूचित किया है कि उनके दादा वीर विक्रम बहादुर सिंहदेव को कालेश्‍वर महादेव की पूजा-अर्चना करने के बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। यहां महाशिवरात्री को एक दिवसीय और फाल्गुन पूर्णिमा से १५ दिवसीय मेला लगता है। धूल पंचमी को यहां प्रतिवर्ष परम्परागत शिवजी की बारात निकलती है जिसमें नागा साधुओं की उपस्थिति उसे जीवंत बना देती है। कवि बटुकसिंह चौहान गाते हैं-

हंसदो नदी के तीर में, कलेश्‍वर नाथ भगवान।
लखनेश्‍वर दर्शनकरि, कंचन होत भारीर।।
फागुन मास के पूर्णिमा, होवत तहं स्नान।
काशी समान फल पावहीं, गावत वेद पुराण।।

चंद्रचूड़ महादेव

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जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत जांजगीर से ६७ कि. मी., बिलासपुर से ६७ कि. मी. की दूरी पर छत्‍तीसढकी पुण्यतोया नदी महानदी के तट पर शिवरीनारायण स्थित है। जोंक, शिवनाथ और महानदी का त्रिवेणी संगम होने के कारण इसे ''प्रयाग'' की मान्यता है। यहां भगवान नारायण के मंदिर के सामने पश्चिमाभिमुख चंद्रचूड़ महादेव स्थित हैं। मंदिर के द्वार पर एक विशाल नंदी की मूर्ति है। बगल में एक जटाधारी किसी राज पुरूष की मूर्ति है। गर्भगृह में चंद्रचूड़ महादेव और हाथ जोड़े कलचुरि राजा-रानी की प्रतिमा है। मंदिर के बाहर संवत् ९१९ का एक शिलालेख हैं। इसके अनुसार कुमारपाल नामक कवि ने इस मंदिर का निर्माण कराया और भोजनादि की व्यवस्था के लिए चिचोली नामक गांव दान में दिया। इस शिलालेख में रतनपुर के कलचुरि राजाओं की वंशवली दी गयी है। यहां का महात्म्य बटुकसिंह चौहान के मुख से सुनिए :-

महानदी गंग के संगम में, जो किन्हे पिंड कर दान।
सो जैहै बैकुंठ को, कही बटुकसिंह चौहान ।।

महेश्‍वर महादेव

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शिवरीनारायण में ही महानदी के तट पर माखन साव घाट में छत्‍तीसढके प्रमुख मालगुजार माखन साव के कुलदेव महेश्‍वरनाथ महादेव और कुलदेवी शीतला माता का भव्य मंदिर है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार पं. मालिकराम भोगहा ने भाबरीनारायण महात्म्य में लिखा के कि ''नदी खंड में माखन साव के कुलदेव महेश्‍वरनाथ महादेव मंदिर का निर्माण संवत् १८९० में कराया गया है।'' प्राप्त जानकारी के अनुसार माखन साव ने वंश वृद्धि के लिए बद्रीनाथ और रामेश्‍वर की पदयात्रा की और स्वप्नादेश के अनुसार उन्होंने महेश्‍वरनाथ महादेव की स्थापना की, तब उनकी वंश की वृद्धि हुई। महेश्‍वरनाथ के वरदान से वंश की वृद्धि होने पर प्रसन्न होकर बिलाईगढ़ के जमींदार श्री प्रानसिंह ने सन् १८३३ में नवापारा गांव इस मंदिर में चढ़ाया था।

पातालेश्‍वर महादेव

बिलासपुर जिला मुख्यालय से ३२ कि. मी. की दूरी पर बिलासपुर-शिवरीनारायण मार्ग में मस्तुरी से जोंधरा जाने वाली सड़क के पार्श्‍व में स्थित प्राचीन ललित कला केंद्र मल्हार प्राचीन काल में १० कि. मी. तक फैला था। यहां दूसरी सदी की विष्‍णु की प्रतिमा मिली है और ईसा पूर्व छटवीं से तेरहवीं शताब्दी तक क्रमबद्ध इतिहास मिलता है। यहां का पातालेश्‍वर महादेव जग प्रसिद्ध है। प्राप्त जानकारी के अनुसार कलचुरि राजा जाज्वल्यदेव द्वितीय के शासनकाल में संवत १९१९ में पंडित गंगाधर के पुत्र सोमराज ने इस मंदिर का निर्माण कराया है। भूमिज शैली के इस मंदिर में पातालगामी छिद्र युक्त पाताले वरश्‍महादेव स्थित हैं। इस मंदिर की आधार पीठिका १०८ कोणों वाली है और नौ सीढ़ी उतरना पड़ता है। प्रवेश द्वार की पटिटकाओं में दाहिनी ओर शिव-पार्वती, ब्रह्मा-ब्रह्माणी, गजासुर संहारक शिव, चौसर खेलते शिव-पार्वती, ललितासन में प्रेमासक्त विनायक और विनायिका और नटराज प्रदर्शित हैं।

बुढ़ेश्‍वर महादेव

बिलासपुर जिला मुख्यालय से २२ कि. मी. की दूरी पर प्राचीन छत्‍तीसढकी राजधानी रतनपुर स्थित है। यहां कलचुरि राजाओं का वर्षों तक एकछत्र शासन था। यहां उनके कुलदेव बुढ़े वर महादेव और कुलदेवी महामाया थी। डॉ. प्यारेलाल गुप्त के अनुसार तुम्माण के बंकेश्‍वर महादेव की कृपा से कलचुरि राजाओं को दक्षिण कोसल का राज्य मिला था। उनके वंशज राजा पृथ्वीदेव ने यहां बुढ़े वर महादेव की स्थापना की थी। इसकी महिमा अपार है। मंदिर के सामने एक विशाल कुंड है।

पाली का शिवमंदिर

बिलासपुर जिला मुख्यालय से अम्बिकापुर रोड में ५० कि. मी. की दूरी पर पाली स्थित है। ऐसा उल्लेख मिलता है कि प्राचीन रतनपुर का विस्तार दक्षिण-पूर्व में १२ मील दूर पाली तक था, जहां एक अष्‍टकोणीय शिल्पकला युक्त प्राचीन शिवमंदिर एक सरोवर के किनारे है। मंदिर का बाहरी भाग नीचे से उपर तक कलाकार की छिनी से अछूता नहीं बचा है। चारों ओर अनेक कलात्मक मूर्तियां इस चतुराई से अंकित है, मानो वे बोल रही हों-देखो अब तक हमने कला की साधना की है, तुम पूजा के फूल चढ़ाओ। मध्य युगीन कला की शुरूवात इस क्षेत्र में इसी मंदिर से हुई प्रतीत होती है। खजुराहो, कोणार्क और भोरमदेव के मंदिरों की तरह यहां भी काम कला का चित्रण मिलता है।

रूद्रेश्‍वर महादेव

बिलासपुर से २७ कि. मी. की दूरी पर रायपुर राजमार्ग पर भोजपुर ग्राम से ७ कि. मी. की दूरी पर और बिलासपुर-रायपुर रेल लाइन पर दगौरी स्टेशन से मात्र एक-डेढ़ कि. मी. दूर अमेरीकापा ग्राम के समीप मनियारी और शिवनाथ नदी के संगम के तट पर ताला स्थित है जहां शिवजी की अद्भूत रूद्र शिवकी ९ फीट ऊंची और पांच टन वजनी विशाल आकृति की उर्द्ववरेतस प्रतिमा है जो अब तक ज्ञात समस्त प्रतिमाओं में उच्चकोटि की प्रतिमा है। जीव-जन्तुओं को बड़ी सूक्ष्मता से उकेरकर संभवत: उसके गुणों के सहधर्मी प्रतिमा का अंग बनाया गया है।

गंधेश्‍वर महादेव

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रायपुर जिलान्तर्गत प्राचीन नगर सिरपुर महानदी के तट पर स्थित है। यह नगर प्राचीन ललित कला के पांच केंद्रों में से एक है। यहां गंधेश्‍वर महादेव का भव्य मंदिर है, जो आठवीं भाताब्दी का है। माघ पूर्णिमा को यहां प्रतिवर्श मेला लगता है।

कुलेश्‍वर महादेव

रायपुर जिला मुख्यालय से दक्षिण-पूर्वी दिशा में ५० कि. मी. की दूरी पर महानदी के तट पर राजिम स्थित है। यहां भगवान राजीव लोचन, साक्षी गोपाल, कुलेश्‍वर और पंचमेश्‍वर महादेव सोढुल, पैरी और महानदी के संगम के कारण पवित्र, पुण्यदायी और मोक्षदायी है। यहां प्रतिवर्श माघ पूर्णिमा से १५ दिवसीय मेला लगता है। इस नगर को छत्‍तीसढ शासन पर्यटन स्थल घोशित किया है।

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इसके अलावा पलारी, पुजारीपाली, गंडई-पंडरिया, बेलपान, सेमरसल, नवागढ़, देवबलौदा, महादेवघाट (रायपुर), चांटीडीह (बिलासपुर), और भोरमदेव आदि में भी शिवजी के मंदिर हैं जो श्रद्धा और भक्ति के प्रतीक हैं। इन मंदिरों में श्रावण मास और महाशिवरात्री में पूजा-अर्चना होती है। इन्हें सहेजने और समेटने की आवश्‍यकता है।

रचना, लेखन, फोटो एवं प्रस्तुति,

प्रो. अश्विनी केशरवानी

राघव, डागा कालोनी, चांपा-४९५६७१

इस तुच्‍छ विजय पर इतना अभिमान


कलिंग विजय के उपरांत सम्राट अशोक अपनी सफलतम विजय यात्राओं के कारण अहंकार से परिपूर्ण हो गया था. और चाटुकारों की दिन रात प्रशंसा और चारण सुन सुनकर, वह अपने आप को बहुत बुद्धिमान, सर्वशक्तिमान व सफल सम्राट मानने लगा था ।

एक बार राजधानी पाटलीपुत्र में बौद्धभिक्षु आचार्य उपगुप्त का आगमन हुआ. चांदनी रात में सम्राट उनसे मिलने गये. आचार्य का अभिवादन करते हुए अशोक का दंभ विद्यमान था, उन्‍होंने कहा- विश्‍व का सर्वशक्तिमान शासक सम्राट अशोक आपको प्रणाम करता है ।

आचार्य विद्वान थे उनसे कुछ छुपा नहीं था और फिर सम्राट अशोक के कथन में छिपे अहंकार तो स्पष्ट परिलक्षित था । आचार्य ने उनके शब्दों में छिपे दंभ को पहचान लिया । उन्होंने शांतिपूर्वक आसमान की ओर ताकते हुए सम्राट अशोक से कहा - राजन ! वह आकाशगंगा देख रहे हैं ? क्या आप जानते हैं, इसमें छोटे-छोटे दिखने वाले अनगिनत तारों में से कुछ तारों का आकार हमें दिखाई पड़ने वाले सूर्य से भी हजारों गुना बड़ा है ।

अशोक ने सहमति से सिर हिलाया । आचार्य ने कहा- और तुम यह भी मानते हो ना कि जिस राज्य पर तुमने विजय प्राप्त की, वह तो इस पृथ्वी का बहुत छोटा सा टुकड़ा मात्र है । . . . तो फिर इस तुच्‍छ विजय पर इतना अभिमान किस बात का ?

कहते हैं इस घटना नें अशोक को अपनी तुच्छता का अहसास कराया और उसने राज्य विजय व नरसंहार की जगह धम्म विजय व भगवान बुद्ध को अपनाने का संकल्प लिया.

(बौद्धधर्मावलंबियों से सुनी कथा, संकलन - संजीव तिवारी)

श्रावण मास भगवान शिव के आराधना का मास

श्रावण का मास भगवान शिव के आराधना का मास है, जनश्रुति व शास्‍त्रोक्‍त मतानुसार श्रावण मास में आदिदेव भगवान शंकर की आराधना से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है । हमारे हिन्‍दी चिट्ठा समूह में अलखवाडा नें हमारे शिव मंत्रों व स्‍तोत्रों को हमारे सम्‍मुख प्रस्‍तुत कर के बडा उपकार किया है मैं अलखवाडा के श्रृजनकर्ता को प्रणाम करता हूं । आप भी खोजें इंटरनेट संसार में भगवान शिव से शिवोहम होने का राह । हम आपको अपने मानस में गुंजायमान शिव के स्‍तोत्रों की संक्षिप्‍त बानगी प्रस्‍तुत कर रहे हैं :-





ब्रह्ममुरारी सुरार्चित लिंगं, बुद्धी विवरधन कारण लिंगं।
संचित पाप विनाशन लिंगं, दिनकर कोटी प्रभाकर लिंगं।
ततप्रणमामि सदाशिव लिंगं॥1।।
देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गम् कामदहम् करुणाकर लिङ्गम् .
रावणदर्पविनाशनलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् .. २..

सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गम् बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् .
सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् .. ३..

कनकमहामणिभूषितलिङ्गम् फनिपतिवेष्टित शोभित लिङ्गम् .
दक्षसुयज्ञ विनाशन लिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् .. ४..

कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गम् पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम् .
सञ्चितपापविनाशनलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् .. ५..

देवगणार्चित सेवितलिङ्गम् भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् .
दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् .. ६..

अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गम् सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम् .
अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् .. ७..

सुरगुरुसुरवरपूजित लिङ्गम् सुरवनपुष्प सदार्चित लिङ्गम् .
परात्परं परमात्मक लिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् .. ८..

लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ .
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ..

.. ॐ तत् सत् ..



उन सदाशिव लिंग को प्रणाम – जो कि ब्रह्मा विष्णु (मुरारी) एवं अन्य देव गणों द्वारा पुजित है, जो कि बुद्धी (ज्ञान) के वर्धन का कारण हैं, जो कि मनुष्य द्वारा किये गए असंख्य पापों से मुक्ति दिलाने वाले हैं तथा जिनमें करोडों सूर्य का तेज समाविष्ट है।




असित-गिरि-समं स्यात् कज्जलं सिन्धु-पात्रे
सुर-तरुवर-शाखा लेखनी पत्रमुर्वी
लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं
तदपि तव गुणानामीश पारं न याति॥


हे शिव! यदि कोई विशाल काला पर्वत स्याही, अथाह सिन्धु नदी दवात , कल्पवृक्ष (जो कि सभी इक्षाओं को पूर्ण करने में सक्षम है) को कलम एव सम्पुर्ण विश्व को ही पत्र के रूप में उपयोग किया जाए तथा सम्पुर्ण ज्ञान एवं कला की देवी माँ शारदा स्वयं अनंत काल तक लिखती जाएं तो भी आपके गुणों का वर्णन संभव नहीं ।






मैं छत्‍तीसगढ के शिवनाथ व खारून नदी के संगम के समीप नदी तट में बसे गांव में जनमा शिवनाथ के ऊफनते लहरों नें मुझे जुझारूपन दिया संगम के बीच में स्थित सोमनाथ शिव नें मुझे सौभाग्‍य दिया । मैं अपनी धरती की स्‍मृतियां व अपनी औकात सदैव जीवित रखता हूं, संत कवि व सांसद, पूर्व मंत्री पवन दीवान जी की एक कविता नें मुझे मेरे गांव और भगवान शिव के प्रति आशक्ति को निरंतर बनाया है, मैं बचपन से उन‍की पंक्तियों को तब्‍दील कर के कुछ इस तरह से गुनगुनाता हूं :




जहां घंटियों का सरगम है, जहां वंदना की वाणी
शिवनाथ नदी की लहर लहर में, हसती कविता कल्‍याणी
अमर सभ्‍यतायें सोई हैं, शिवनाथ नदी की घाटी में
मेरे भी पावन जन्‍मों का, पुण्‍योदय इस माटी में
सुनकर आतुर हो जाता है, जिनका लेने पावन नाम
अखिल विश्‍व के शांति प्रदायक, सोमनाथ जी तुम्‍हें प्रणाम ।


छत्‍तीसगढ शिव की कृपादृष्टि से परिपूर्ण है यहां कई विशाल व भव्‍य ऐतिहासिक प्रसिद्व शिव मंदिर हैं । हम आपके लिये शीध्र ही ‘छत्तीसगढ़ के ज्योतिर्लिंग’ के संबंध में प्रो. अश्विनी केशरवानी जी का एक आलेख यहां प्रस्‍तुत करेंगें ।

संजीव तिवारी

हिन्दुस्तान अमरीका बन जाए तो कैसा होगा : अनुगूँज 22


(चित्र बडा करके पढे)
हमने फुरसद के क्षणों में भईया फुरसतिया की बातों को मानते हुए परयास किया है आशा है आपको भी पसंद आयेगा ।

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भोजली : मित्रता की मिसाल

भोजली एक लोकगीत है जो श्रावण शुक्‍ल नवमी से रक्षाबंधन के बाद तक छत्तीसगढ़ के गांव गांव में भोजली बोने के साथ ही गूंजती है और भोजली माई के याद में पूरे वर्ष भर गाई जाती है । छत्तीसगढ़ में बारिस के रिमझिम के साथ कुआरी लडकियां एवं नवविवाहिता औरतें भोजली गाती है।

दरअसल इस समय धान की बुआई व प्रारंभिक निदाई गुडाई का काम खेतों में समाप्ति की ओर रहता है और कृषक की पुत्रियां घर में अच्‍छे बारिस एवं भरपूर भंडार फसल की कामना करते हुए फसल के प्रतीकात्‍मक रूप से भोजली का आयोजन करती हैं । भोजली एक टोकरी में भरे मिट्टी में धान, गेहूँ, जौ के दानो को बो कर तैयार किया जाता है । उसे धर के किसी पवित्र स्‍थान में छायेदार जगह में स्‍थापित किया जाता है । दाने धीरे धीरे पौधे बनते बढते हैं, महिलायें उसकी पूजा करती हैं एवं जिस प्रकार देवी के सम्‍मान में देवी की वीरगाथाओं को गा कर जवांरा – जस – सेवा गीत गाया जाता है वैसे ही भोजली दाई के सम्‍मान में भोजली सेवा गीत गाये जाते हैं । सामूहिक स्‍वर में गाये जाने वाले भोजली गीत छत्‍तीसगढ की शान हैं । महिलायें भोजली दाई में पवित्र जल छिडकते हुए अपनी कामनाओं को भोजली सेवा करते हुए गाती हैं :

देवी गंगा
देवी गंगा लहर तुरंगा
हमरो भोजली देवी के
भीजे ओठों अंगा।
मांड़ी भर जोंधरी
पोरिस कुसियारे हो
जल्दी बाढ़ौ भोजली
होवौ हुसियारे।


छायेदार स्‍थान में बोई गई भोजली स्‍वाभाविक तौर पर पीली हो जाती है, भोजली के पीले होने से महिलाओं में खुशी उमडती है वे भोजली दाई के रूप को गौरवर्णी व स्‍वर्ण आभूषणों से सजी हुई बताते हुए अपने आस पास की परिस्थितियों को भी गीत में समाहित करती हैं, जिसमें बरसात में नदी किनारे के गांवों में बाढ आ जाने के कारण नाव के बह जाने, चूल्‍हा जलाने के लिए सहेजे गये छोटे छोटे लकडी के तुकडों के बह जाने को भी भोजली दाई के श्रृंगार के साथ जोडकर कुछ इस तरह गाती हैं :-

आई गई पूरा
बोहाई गई मलगी ।
हमरो भोजली दाई के
सोन सोन के कलगी ।।
लिपी डारेन पोती डारेन
छोड़ि डारेन कोनहा ।
हमरो भोजली दाई के
लुगरा हे सोनहा ।।
आई गई पूरा,
बोहाई गई झिटका ।
हमरो भोजली देवी ला
चन्दन के छिटका ।।

बारिस में किसान की लडकियां जब कुछ समय के लिए कृषि कार्य से मुक्‍त होती हैं तो घर में आगामी व्‍यस्‍त दिनों के लिए पहले से ही धान से चांवल बनाने के लिए मूसर व ढेंकी से धान कुटती हैं उसे पछीनती निमारती है (साफ करती है), जतवा में गेहूं पीसती हैं इस कार्य में उन्‍हें कुछ देर हो जाती है और जब वे समय निकाल कर सामुहिक रूप से इकट्ठा होकर भोजली दाई के सामने जाती हैं और कुछ इस तरह से अपनी अभिव्‍यक्ति प्रस्‍तुत करती हैं :-

कुटि डारेन धाने
पछिनी डारेन भूसा
लइके लइका हन, भोजली
झन करबे गुस्सा ।


नवमी से लेकर पूर्णिमा तक महिलायें भोजली माता की नियमित सेवा करती हैं एवं इस सेवा में गाये जाने वाले पारंपरिक गीतों को ही भोजली गीत कहा जाता है । छत्‍तीसगढ के विभिन्‍न हिस्‍सों में अलग अलग भोजली गीत गाये जाते हैं पर उनके गाने का ढंग व राग एक ही है । भोजली के नवमी से पूर्णिमा तक के विकास को भी भोजली गीतों में महिलायें कुछ इस तरह से प्रस्‍तुत करती हैं :-

आठे फुलोइन नवमी बोवा इन
दसमी के भोजली, जराइ कर होईन,
अकादसी के भोजली दूदी पान होईन।
दुआस के भोजली।
मोती पानी चढिन।
तेरस के भोजली
लहसि बिंहस जाइन
चौदस के भोजली
पूजा पाहूर पाइन
पुन्नी के भोजली
ठण्डा होये जाइन।।


पूर्णिमा को टोकरियों में बोये गये दानो से उत्‍पन्‍न पौधा रूपी भोजली को महिलायें कतारबद्ध होकर मूडी में बो‍ह कर (सिर में रख कर) गांव के समीप स्थित नदी, नाले या तालाब में बहाने ले जाती हैं जिसे भोजली सरोना या ठंडा करना कहते हैं, इस संपूर्ण यात्रा में भोजली सिर पर रखी कुआरी लडकियां एवं नवविवाहिता नये नये वस्‍त्र पहने हुए भोजली गीत गाती हैं साथ ही मांदर व मजीरें की संगत भी आजकल होने लगी है । पूर्णिमा का दिन भोजली ठंडा करने का सांघ्‍य काल गांव में उल्‍लास का वातावरण होता हैं । पूरा गांव भोजली के साथ साथ नदी किनारे तक चलता है, फिर भोजली दाई को अच्‍छे फसल की कामना के साथ जल में प्रवाहित कर दिया जाता है । महिलायें इसके साथ ही उतार पार जस गीत की भांति भोजली के विरह के गीत गाती हैं ।
भोजली के पौधों को प्रवाहित करने के साथ ही उसके कुछ भागों को गांव के लोग लेकर भगवान में भी चढाते हैं एवं अपने से बढों के सिर में डालकर चरण स्‍पर्श करते हैं । इस भोजली से छत्‍तीसगढ की महिलाओं का भावनात्‍मक संबंध है इसी लिए तो इस भोजली के दो चार पौधों को एक दूसरे के कान में खोंच (लगा) कर महिलायें तीन तीन पीढी के लिए मितान बन जाते हैं और संबंध भी ऐसा कि सगा जैसा । इसके संबंध में संजीत त्रिपाठी जी पूर्व में लिख चुके हैं

रिमझिम बरसते सावन में लाली गुलाली (रंग बिरंगी) साडियों में सजी नवयौवनाओं के मधुर स्‍वर लहरियों से रचा बसा मेरा गांव मुझे हर पल बुलाता है और जब शहर के उपनगरीय क्षेत्रों से पानी से भीगते हुए गुजरते समय भोजली गीत स्‍पीकरों से सुनाई देती है तो मन मोर नाचने लगता है । स्‍मृति के किसी कोने में जीवित छत्‍तीसगढिया जाग उठता है :-

देवी गंगा
देवी गंगा लहर तुरंगा
हमरो भोजली देवी के
भीजे ओठों अंगा।

संजीव तिवारी
(मेरी कलम से छत्‍तीसगढ को परिचित कराने का यह क्रम जारी रहेगा)

छत्तीसगढ़ी लोक जीवन में वर्षा : प्रो. अश्विनी केशरवानी

छत्तीसगढ़ का अधिकांश भूभाग मैदानी है इसलिए यहां के जन जीवन में वर्षा का महत्वपूर्ण स्थान है। क्योंकि यहां का लोक जीवन कृषि पर आधारित है। यही कारण है कि वर्षा ऋतु का जितनी बेसब्री से छत्तीसगढ़ में इंतजार होता है अन्यत्र कहीं नहीं होता ? वर्षा की पहली फुहार से मिट्टी की सोंधी महक यहां के लोक जीवन को प्रफुल्लित कर देता है। सब लोग नाचते गाते वर्षा की पहली फुहार का स्वागत करते हैं :-

झिमिर झिमिर बरसे पानी,
देखो रे संगी, देखो रे साथी।

श्रीरामचरित मानस के किष्किंधा कांड में तुलसी दास जी ने लिखा है- 'वर्षा काल मेघ नभ छाए। गरजत लागत परम सुहाए।।'' श्रीरामचंद्र जी अनुज लक्ष्मण से कहते हैं कि वर्षा काल में आकाश में छाए बादल गरजते हुए बहुत ही सुहावने लगते हैं। वे आगे कहते हैं कि हे लक्ष्मण ! देखो मोरों के झुंड बादलों को देखकर नाच रहे हैं- 'लछिमन देखु मोर गन नाचत बारिद पेखि।'

कृषि प्रधान छत्तीसगढ़ में अकरस जोताई कर वर्षा का इंतजार कर रहे किसान का मन पानी बरसने से मोर की तरह नाच उठता है। प्रसन्न मन से वह खेती-किसानी में जुट जाता है। छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध साहित्यकार पद्मश्री पंडित मुकुटधर पाण्डेय अपनी रचना ''वर्षा बहार'' में वर्षा के आगमन का बहुत ही सुंदर चित्रण किया है। देखिये उनकी रचना की एक बानगी :-

वर्षा बहार सबके, मन को लुभा रही है
नभ में छटा अनूठी, घनघोर छा रही है
बिजली चमक रही है, बादल गरज रहे हैं
पानी बरस रहा है, झरने भी बह रहे हैं
करते हैं नृत्य वन में, देखो ये मोर सारे
मेंढक लुभा रहे हैं, गाकर सुगीत प्यारे
इस भांति है, अनोखी वर्षा बहार भू पर
सारे जगत की शोभा, निर्भर है इसके उपर।

वर्षा ऋतु के आने से चारों ओर हरियाली छा जाती है। गाय, बैल और अन्य जानवर हरी घास खाकर तंदुरूस्त हो जाते हैं। मेंढक भी टर्र टर्र की आवाज करके अपनी खुशी व्यक्त करने लगता है। किसान अपने नांगर लेकर खेत की ओर चल पड़ता है। छत्तीसगढ़ में नगरिहा किसान किसी देवता से कम नहीं होता। उन्हीं के परिश्रम से अनाज की पैदावार होती है जो हमारे पेट की भूख को शांत करती है। कवि की एक बानगी देखिये :-

बरसे बरसे रे बियासी के बादर
छड़बड़ बइला छड़बड़ नांगर
छड़बड़ खेत जोतइया के जांगर
नगरिहा नइ उपजय तोर बिन धान।


गर्मी की तपन और पेट की भूख से परेशान छत्तीसगढ़ के किसान मजदूरी करने अन्यत्र चले जाते हैं। लेकिन वर्षा ऋतु के आगमन के साथ वे भी अपने गांव वापस लौटने लगते हैं। ऐसे किसानों को कवि श्री रामफल तिवारी समझाइस देते हैं कि सब मिल जुलकर खेती करें और सोना जैसे अनमोल धान उपजाएं जिससे उन्हें गांव छोड़कर अन्यत्र मजदूरी करने जाना न पड़े। देखिये कवि की एक बानगी :-

एती ओती कहूं कती झिन जावा किसान रे
छत्तिसगढ़ के भुंइयां हर हमरे भगवान रे
छत्तिसगढ़ ल कइथे संगी 'धान के कटोरा'
जउने मिले खावा पिया जादा कि थोड़ा
इल्ली दिल्ली कलकत्ता के मोह ला अब छोड़ा
खा लेवा नून बासी आमा के अथान रे
रांपा कुदारी संगी गैंती ला धर लावा
गांसा-पखार मोही सब खेतन के बनावा
अपन अपन खेत ला सब्बो जुर मिल के बनावा
भर देवा छत्तीसगढ़ म सोना कस धान रे।


छत्तीसगढ़ के लोक जीवन में गीत का बहुत चलन है। हर पल उनके गीत में मन की अभिव्यक्ति होती है। गांव के चौपाल में आल्हा के गीत गाये जाते हैं, तो खेत खलिहान में ददरिया। ददरिया भावपूर्ण और मनोहारी होता है। इसमें प्राय: श्रृंगार रस का पुट होता है :-

खाये ला पान रचाये मुंह लाल
झन मया ला बढ़ाबे, हो जाही जीवन के काल।

प्रेयसी अपने प्रेमी से कहती है कि जैसे पान खाने से मुंह तो लाल हो जाता है पर पान की जान चली जाती है। उसी प्रकार हे प्रियतम यदि तू प्रीत बढ़ायेगा तो यही प्रीति मेरे प्राण जान का कारण बन जायेगी।
सावन में नव ब्याहता बहुएं अपने मायके चली जाती हैं। वहां पिया मिलन की आस उन्हें ब्याकुल कर देती है। सखी सहेली और भौजाई के छेड़ने पर उनके मन की ब्यथा इस तरह फुट पड़ती है :-

सावन महिना बिहरिन रोवे
जेकर सैंया गए हे परदेस
अभी कहूं बालम घर में रइतिस
तब सावन के करतेंव सिंगार।

पंडित मुकुटधर पाण्डेय ने छत्तीसगढ़ी मेघदूत में भी बिरही की ब्यथा को लिखा है :-

जे बादर ल देख काम कौतुक हर मन में जागे।
ओकर आगू केसनो कर के ठाढ़े रस में पागे।।
बहुत बेर ले सोंचत रहिगे मगन भाव के होके।
यक्षराज के अनुचर हर आंखी में आंसू रोके।।
मेघ देख के सुखिया के मन घलो बदल जब जाथे।
बिरही मन के का कहिना दुरिहा म जी अकुलाथे।।




लोक जीवन में कहावतों का अधिक महत्व होता है। छत्तीसगढ़ी कहावतों में कई पीढ़ियों के विश्वासों, अनुभवों, आचार-विचार की व्यवहारिक जानकारियों और परिणामों की अभिव्यक्ति होती है। ये कहावतें ग्रामीणों के ज्ञानकोष की भांति उनके कृषि, वाणिज्य और व्यापार आदि में सहायक होते हैं। ऐसी कहावतों में या तो किसी कार्य को करने का शुभ समय होता है अथवा किसी अशुभ परिणाम का संकेत होता है। प्रकृति की विशेष अवस्था में क्या घटित होता है, इसकी भी सूचना होती है। कुछ बानगी पेश है :-

१. चार दिन पानी
त एक दिन धाम।
२. धान के बदरा
बड़े आदमी के लबरा।
३. बाढ़े पूत पिता के घर मा
खेती उपजै अपने करमा।
४. खातू पड़े तो खेती
नइ तो नदिया के रेती।


छत्तीसगढ़ में वर्षा के आगमन के साथ त्योहारों का सिलसिला शुरू हो जाता है। आषाढ़ शुक्ल द्वितीय को रजुतिया होता है। उड़ीसा के इस प्रमुख पर्व को छत्तीसगढ़ के गांव और शहरों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन नई बहू और बेटी को लिवा लाने और बिदा करना शुभ माना है। ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ को शिवरीनारायण से ही पुरी ले जाया गया था और प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ शिवरीनारायण में विराजते हैं। सावन में नागपंचमी, रक्षा बंधन, भोजली, हरेली, भादो में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव, बहुला चौथ, खम्हरछट, तीजा, पोरा और गणेश पूजा प्रमुख होता है। रायगढ़ में जन्माष्टमी के अवसर पर मेला लगता है। इसी प्रकार प्राचीन काल से ही रायगढ़ में गणेश चतुर्थी से गणेश मेला का आयोजन होता रहा है। आज इसे चक्रधर समारोह के रूप में मनाया जाता है और इस अवसर पर नृत्य और संगीत का समागम होता है। चांपा में भी अनंत चौदस को गणेश उत्सव होता है। किसानों का प्रमुख त्योहार हरेली है। इस दिन वह अपने कृषि उपकरणों की पूजा करके अन्न का बढ़िया उत्पादन होने की कामना करता है। राऊतों के द्वारा रसायन कल्प तैयार करके गायों को पिलाया जाता है, नीम पत्ती और दशमूल के पत्ती घरों में खोंसकर उनके स्वस्थ रहने की कामना की जाती है। इसी दिन बांस की गेड़ी बनाकर चढ़ते हैं और चौपालों में संध्या धार्मिक अनुष्ठान किया जाता है। इस दिन तंत्र मंत्र की सिद्धि भी की जाती है। इन त्योहारों के साथ हमारा राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस भी छत्तीसगढ़ में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। सभी त्योहारों का अपना महत्व होता है।



नागपंचमी को नाग देवता की पूजा होती है। भाई-बहन के पवित्र बंधन का त्योहार है रक्षाबंधन। इसी प्रकार माताएं खमरछट को अपने पुत्र की औ तीजा में महिलाएं अपने पति के दीर्घायु होने की कामना निर्जला व्रत रखकर करती हैं। कुंवारी लड़किया प्रकृति देवी की आराधना करने भोजली त्योहार मनाती हैं। जिस प्रकार एक सप्ताह में भोजली खूब बढ़ जाती है उसी प्रकार हमारे खेतों में फसल दिन दूनी रात चौगुनी बढ़े-'देवी गंगा दंवी गंगा' की टेक मानो वह कल्याणमयी पुकार हो जो जन जन-गांव गांव को नित लहर तुरंग सं ओतप्रोत कर दे...सब ओर अच्छी वर्षा हो, अच्छा फसल हो और सब ओर खुशहाली ही खुशहाली हो- यही छत्तीसगढ़ के लोक जीवन का सत्य है।

रचना, लेखन एवं प्रस्तुति,
प्रो. अश्विनी केशरवानी
राघव, डागा कालोनी, चांपा-495671

कहां खो गया मेरा गांव

रचना, लेखन और प्रस्तुति # प्रो. अश्विवनी केशरवानी

प्रो. अश्विनी केशरवानी

केशरवानी जी के संबंध मेंWho's Who in Madhya Pradesh के 1997 संस्‍करण के पेज क्र. 229 में उल्‍लेख है यथा - जन्‍म : 18 अगस्‍त, 1958 ; शिक्षा : एमएससी (प्राणीशास्‍त्र) रचना : ललित निबंध, साहित्‍य और परंपरा के उपर स्‍वतंत्र लेखन । सम्‍मान : पाठक मंच एवं कादिम्‍बीनी क्‍लब द्वारा सम्‍मानित, केशरवानी सभा द्वारा सम्‍मानित । प्रकाशन : विभिन्‍न पत्र पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित ।


शबरीनारायण, जी हां ! लोग मुझे इसी नाम से जानते हैं। लोग मेरे नाम का विश्लेषण करते हुए कहते हैं कि जहां शबरी जैसी मीठे बेर चुनने वाली भीलनी और साक्षात् भगवान नारायण का वास हो, उस पतित पावन स्थान को ही शबरीनारायण कहते हैं। मेरी पवित्रता में चार चांद लगाती हुई चित्रोत्पला-गंगा (महानदी) बहती है। हालांकि वह गंगा के समान पवित्रता को समेटे हुए है। इसी महानता के कारण उसे महानदी कहते हैं। इससे मेरा मान बढ़ा है। कवि श्री धनसाय विदेह के मुख से :-

धन्य धन्य शबरीनारायण महानदी के तीर।

जहां कभी पद कमल धरे थे रामलखन दो वीर।।

धन्य यहां की वसुन्धरा, धन्य यहां की धूल।

धन्य सहां की शबरीनारायण का दर्शन सुखमूल।।



महानदी की पवित्रता से इंकार कैसा ? लेकिन उसकी धार के साथ आ रही रेती से नदी उथली होती जा रही है, दोनों तट पर मिट्टी के कटाव बढ़ने से नदी का पार चौड़ा होता जा रहा है और थोड़ी बरसात हुई नहीं कि पानी बस्ती के भीतर। एक बार, दो बार नहीं बल्कि कई बार महानदी में आई बाढ़ से प्रलय जैसा दृश्य उपस्थित होता रहा है और ठाकुर जगमोहनसिंह जैसे कवि की लेखनी चलने लगती है:-

शबरीनारायण सुमिर भाखौ चरित रसाल।

महानदी बूड़ो बड़ो जेठ भयो विकराल।।

अस न भयो आगे कबहुं भाखै बूढ़े लोग।

जैसी वारिद वारि भरि ग्राम दियो करि सोग।।

शिव के जटा बिहारिनी बड़ी सिहावा आय।

गिरि कंदर मंदर सबै टोरि फोरि जल जाय।।






सन १८६१ में जब बिलासपुर जिला बना तब बिलासपुर के अलावा दो अन्य तहसील क्रमश: शबरीनारायण और मुंगेली बनाया गया। इसके पूर्व न्यायालयीन कार्य क्रमश: खरौद और नवागढ़ में होता था। अंग्रेजों ने तब यहां पुलिस थाना, प्राइमरी स्कूल आदि खुलवाया था। तब मैं भोगहापारा और महंतपारा में बटा था। तहसील कार्यालय पंडित यदुनाथ भोगहा के भवन में लगता था। यदुनाथ भोगहा, महंत अर्जुनदास और माखन साव यहां आनरेरी बेंच मजिस्‍ट्रेट थे। महंत अर्जुनदास के बाद महंत गौतम दास और माखन साव के बाद खेदूराम साव यहां के आनरेरी मजिस्ट्रेट नियुक्त हुये थे। विजयराघवगढ़ के राजकुमार ठाकुर जगमोहनसिंह यहां के तहसीलदार थे। वे सुप्रसिद्ध साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चंद्र के सहपाठी थे। ठाकुर साहब ने न केवल इस क्षेत्र के नदी-नालों, अमराई, वन पर्वतादिक को घूमा बल्कि उन्हें अपनी रचनाओं में समेटा भी है। इसके अलावा वे यहां के बिखरे साहित्यकारों को एक सूत्र में पिरोकर उन्हें लेखन की दिशा प्रदान की और इसे सांस्कृतिक के साथ ही साहित्यिक तीर्थ की मान्यता दिलायी। उस समय पंडित अनंतराम पाण्डेय (रायगढ़), पंडित पुरूषोत्तम प्रसाद पाण्डेय (बालपुर), पंडित मेदिनी प्रसाद पाण्डेय (परसापाली), वेदनाथ शर्मा (बलौदा), ज्वालाप्रसाद तिवारी (बिलाईगढ़), काव्योपाध्याय हीरालाल (धमतरी) आदि यहां काव्य साधना के लिए आया करते थे। यहां भी पंडित मालिकराम भोगहा, पंडित हीराराम त्रिपाठी, गोविन्द साव और पंडित शुकलाल पाण्डेय जैसे उच्च कोटि के साहित्यकार हुए। कुथुर के श्री बटुकसिंह चौहान और तुलसी के जन्मांध कवि नरसिंहदास वैष्णव ने इसे अपनी साधना स्थली बनायी। प्राचीन साहित्य में यह उल्लेख मिलता है कि ठाकुर जगमोहन सिंह ने यहां काशी के ''भारतेन्दु मंडल`` की तर्ज में ``जगमोहन मंडल'' की स्थापना की थी। वे यहां सन् १८८२ से १८८७ तक रहे और लगभग एक दर्जन पुस्तकें लिखकर प्रकाशित करायी। कुछ पुस्तकें अधूरी थी जिसे वे कूचविहार स्टेट में रहकर पूरा किया था। पंडित मुकुटधर पाण्डेय ने भी एक जगह लिखा है कि ``मेरे पूज्याग्रज श्री पुरूषोत्तम पाण्डेय नाव की सवारी से शबरीनारायण जाया करते थे। वहां के पंडित मालिकराम भोगहा से उनकी अच्छी मित्रता थी। भोगहा जी भी अक्सर बालपुर आया करते थे। आगे चलकर लोचनप्रसाद जी ने भोगहा जी को गुरूतुल्य मानकर उनकी लेखन शैली को अपनाया था।``

अंग्रेज जमाने के पुलिस थाने में आज तक कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। शायद सरकार को पुरानी चीजों को मौलिक रूप में सहेज कर रखने की आदत हो गयी है। उस समय इस थाने का कार्य क्षेत्र बहुत विशाल था, आज उसमें कटौती कर दी गयी है..जगह जगह पुलिस थाना और चौकी बना दिया गया है। मीडिल स्कूल अब हाई स्कूल अवश्य हो गया है, संस्कृत पाठ शालाएं बंद हो गई हैं और कन्या हाई स्कूल, सरस्वती विद्यालय और कान्वेंट स्कूल आदि खुल गये हैं। स्कूलों की गिरती दीवारें, टूटते छप्पर, वहां का हाल सुनाने के लिए पर्याप्त है। स्कूलों में शिक्षक की कमी तो लगभग सभी स्कूलों में है, तो यहां कैसे नहीं होगी ? एक बार मुझे यहां के गौरवशाली स्कूल में जाने का सौभाग्य मिला और वहां की स्थिति देखकर वह बात याद आ गयी जिसमें कहा गया है कि``... स्वयं अभावों में रहकर बच्चों के अच्छी पढ़ाई की कल्पना कैसे की जा सकती है ?`` यहां तो शिक्षक ही घंटी बजाता है, झाड़ू लगाता है और टूटी-फूटी कुर्सी में बैठता है। साहित्य समाज का दर्पण होता है, हमारे समाज का साहित्य आज ऐसी स्थिति में पहुंच गया है कि अगर हम समय रहते उचित कदम नहीं उठाते हैं तो हमारे समाज की विकृति हमारी नौनिहालों के भविष्य को नष्ट कर देगी ?




महानदी अपनी विनाश लीला दिखाने में कभी पीछे नहीं रही। महानदी में एक गंगरेल बांध और दूसरा हीराकुंड बहुद्देशीय बांध बनाया गया है जिससे बाढ़ में कमी अवश्य आयी है। लेकिन सन् १८८५ और १८८९ में जो विनाशकारी बाढ़ आयी थी जिससे यहां के तहसील के कागजात बह गये थे और अंग्रेज अधिकारी शबरीनारायण को बाढ़ क्षेत्र घोषित कर पूरा गांव खाली करने का आदेश दे दिया था। मगर भगवान नारायण के भक्त इस गांव को खाली नहीं किये... बल्कि उनकी आस्था भगवान नारायण के उपर बढ़ गयी। तहसील मुख्यालय तो चाम्पा के जमींदार की सहमती से जांजगीर में स्थापित कर दिया गया। आज जांजगीर जिला मुख्यालय बन गया है लेकिन शबरीनारायण के हिस्से में ले देकर उप तहसील मुख्यालय ही आ सका है।

कितनी विडंबना है कि लोग मेरे नाम की पवित्रता और धार्मिक महत्ता का बखान करते अघाते नहीं है, लेकिन मेरे नाम का कोई पटवारी हल्का नहीं है। मेरा अस्तित्व महंतपारा और भोगहापारा के रूप में है। प्राचीन काल में यह क्षेत्र दंडकारण्य फिर दक्षिण कोसल और आज छत्तीसगढ़ का एक छोटा सा भाग है। जब दंडकारण्य के इस भाग को खरदूषण से मुक्ति मिल गयी तब यहां मतंग ऋषि का गुरूकुल आश्रम था जहां शबरी परिचारिका थी।... और शबरी को दर्शन देकर कृतार्थ करने भगवान श्रीराम और लक्ष्मण यहां आये थे। द्वापरयुग में यह एक घनघोर वन था। तब इस क्षेत्र को सिंदूरगिरि कहा जाता था। इसी क्षेत्र में एक कुंड के किनारे बांस पेड़ों के बीच भगवान श्रीकृष्ण के मृत शरीर को जरा नाम का शबर लाकर उसकी पूजा-अर्चना करने लगा। बाद में पुरी (उड़ीसा) में भव्य मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हुआ तब आकाशवाणी हुई कि ``दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में शिव गंगा का संगम के निकट बांस के घने वनों के बीच रखी मूर्ति को लाकर स्भापित करो..`` आगे चलकर उस मूर्ति को पुरी में भगवान जगन्नाथ के रूप में स्थापित किये। उनके यहां ये चले जाने के बाद उनका नारायणी स्वरूप यहां गुप्त रूप से विद्यमान रहा। तब से इसे ``गुप्तधाम`` के रूप में ``पांचवां धाम`` होने का सौभाग्य मिला। उस पवित्र कुंड को ''रोहिणी कुंड`` कहा गया। इस कुंड को श्री बटुक सिंह चौहान ने एक धाम माना है जबकि सुप्रसिद्ध साहित्यकार पंडित मालिकराम भोगहा ने ''शबरीनारायण माहात्म्य'' में उसे मुक्ति धाम बताया हैं :-

रोहिणि कुंडहि स्पर्श करि चित्रोत्पल जल न्हाय।

योग भ्रश्ट योगी मुकति पावत पाप बहाय ।।



भगवान नारायण की पूजा-अर्चना में यहां का भोगहा परिवार ६० पुश्तों से करते आ रहे हैं। उनको ``भोगहा`` उपनाम भगवान को भोग लगाने के कारण ही मिला है। आगे चलकर भोगहापारा उनकी मालगुजारी हुई। भोगहा जी ने माखन साव के परिवार को हसुवा से यहां बसाया। इस क्षेत्र के सभी राजा-महाराजा, जमींदार और मालगुजारों से भोगहा जी की मित्रता थी। उन्हीं के कहने पर सोनाखान के जमींदार रामाराय ने अपने बारापाली गांव को भगवान नारायण मंदिर में चढ़ा दिया था। ये सब माफी गांव हैं और मठ के अधीन हैं।




यहां के सभी मंदिरों की भोग रागादि की व्यवस्था मठ से होती है। श्रद्धालुओं द्वारा जितने भी गांव मंदिर में चढ़ाए गये उनकी देखरेख भी मठ के द्वारा होती है। प्राचीन काल में शबरीनारायण नाथ सम्प्र्रदाय के तांत्रिकों गढ़ था। नारायण मंदिर के दक्षिणी द्वार पर दो छोटे मंदिर है,उसी में कनफड़ा बाबा और नाकफड़ा की मूर्ति है जो नाथ सम्प्रदाय के तांत्रिकों के गुरू थे। स्वामी दयाराम दास तीर्थाटन करते रत्नपुर आये। उनसे प्रभावित होकर रत्नपुर के राजा उन्हें शबरीनारायण क्षेत्र में निवास करने की प्रार्थना की और कुछ माफी गांव दिए। यहां आकर उन्होंने तांत्रिकों से शास्त्रार्थ किया और इस क्षेत्र को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने ही यहां वैष्णव पीठ की स्थापना की। इस मठ के वे पहले महंत हुए। तब से आज तक १४ महंत एक से बढ़कर एक थे। वर्तमान में श्री रामसुन्दरदास यहां के महंत हैं। महंतों ने इस क्षेत्र में धर्म के प्रति जागृति पैदा की, अंचल की परम्पराओं को संरक्षित किया। उनकी मालगुजारी महंतपारा में माघ पूर्णिमा को मेला का आयोजन करना, उसकी व्यवस्था करने में महंत का अविस्मरणीय योगदान रहा है। भोगहा जी भी भोगहापारा में मेला लगाने की कोशिश की मगर उनको सफलता नहीं मिली। बहरहाल, यहां का मेला सुव्यवस्थित होता है। पहले यहां का मेला एक माह तक लगता था लेकिन अब १५ दिन तक लगता है। मान्यता है कि माघ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ यहां विराजमान होते हैं। इस दिन उनका दर्शन मोक्षदायी होता है। कदाचित् इसी कारण यहां श्रद्धालुओं की अपार भीड़ होती है। यहां के मेला को ''छत्तीसगढ़ का महाकुंभ'' कहा जाता है। हालांकि महाकुंभ हर १२ वर्ष में लगता है लेकिन यहां महाकुंभ जैसी भीड़ हर वर्श होती है।

हां तो मैं कह रहा था... पहले ले देकर महंतपारा और भोगहापारा को मिलाकर ग्राम पंचायत बनाया गया और सरपंच बने श्री तिजाऊप्रसाद केशरवानी। ११ वर्ष तक तन मन से उन्होंने नगर की सेवा की, कई शासकीय दफ्तर खुलवाये, स्कूल भवन, पंचायत भवन, भारतीय स्टैट बैंक भवन, बिजली आफिस भवन आदि का निर्माण करवाये। नदी के बढ़ते कटाव को रोकने के लिए पाट बनवाये, सब्जी बाजार लगवाये। मवेशी बाजार की वसूली का अधिकार जनपद पंचायत जांजगीर से प्राप्त कर पंचायत की आय में बृद्धि की। नदी में तरबूज और खरबूज की खेती करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया। मैं बचपन से ही यहां के बिजली खम्भों में ट्यूब लाइट और मरकरी देखते आ रहा हंू। ग्राम न्यायालय गांवों में आज लागू हुआ है जबकि शिवरीनारायण में बहुत पहले से ही लागू है।...न जाने कितने परिवारों को बिखरने और टूटने से बचाया है श्री तिजाऊप्रसाद ने, लेकिन आज अपने ही परिवार को बिखरने ने नहीं बचा पा रहे हैं। इसके बाद श्री सुरेन्द्र तिवारी सरपंच बने। नया खून, नया जोश..लोगों को भी उनसे बहुत आशाएं थी। मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। हां, उसके बाद यह नगरपालिका बना और प्रथम नगरपालिका अघ्यक्ष बनने का सौभाग्य हासिल किया श्री विजयकुमार तिवारी ने। जन्म भर की कांग्रेस की सेवा करने का पुरस्कार था यह। सन् १९८० में यहां भयानक बाढ़ आयी और खूब तबाही मचायी..कई स्वयं सेवी संस्थाएं आसूं पोंछने आये, कई नेता आये और अनेक घोषणाएं भी की मगर मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अर्जुन सिंह ने महानदी में पुल निर्माण की जो घोषणा की थी वह अवश्य पूरी हो गयी है जिससे यहां विकास का मार्ग खुल गया है। यहां की जनता उनके प्रति आभारी है। तत्कालीन केंद्रीय मंत्री श्री विद्याचरण शुक्ल ने महानदी के कटाव को रोकने के लिए दोनों ओर तटबंध निर्माण कराने की घोषणा की थी, लेकिन वे उनके कार्यकाल में उनकी घोषणा पूरा नहीं हो सका। छत्तीसगढ़ शासन की जागरूकता से महानदी के तट में घाट का निर्माण कराया जा रहा है जिससे निश्चित रूप से कटाव रूकेगा।

....लेकिन जर्जर सड़कें, गंदगियों की भरमार, बीमार अस्पताल, नगर पंचायत का खस्ता हाल, बनारस की याद दिलाते यहां के गंदगियों से भरे घाट और आपस में लड़ते-मरते लोग आज की उपलब्धि है। श्री बल्दाऊ प्रसाद केशरवानी ने अपने दादा श्री प्रयागप्रसाद केशरवानी की स्मृति में उनके जीते जी एक चिकित्सालय का निर्माण कराया, उसमें श्री देवालाल केशरवानी ने अपने दादा स्व. श्री पचकौड़प्रसाद साव की स्मृति में विद्युतीकरण कराया तो लोगों को अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग होने का अहसास हुआ। डॉ. एम. एम. गौर को लोग अब भूल गये हैं लेकिन उन्हीं की प्रेरणा और सहयोग से ऐसा संभव हुआ था। उनके बाद डॉ. बी. बी. पाठक, फिर डॉ. शुक्ला, डॉ. आहूजा, डॉ. बी. पी. चंद्रा, डॉ. वर्मा, डॉ. जितपुरे और डॉ शकुन्तला जितपुरे, डॉ. बोडे आये और चले गये मगर आज यह नगर एक अद्द डॉ. के लिए तरस रहा है। दानदाता की बात निकली है तो कहना अनुचित नहीं होगा कि लोगों ने दान के नाम पर नगर को बहुत छला है। श्री जगन्नाथ प्रसाद केशरवानी शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय और २० बिस्तर वाला जुगरीबाई प्रसूती गृह का शिलान्यास क्रमश: श्री विद्याचरण शुक्ला और कु. बिमला वर्मा ने किया था। इस अस्पताल में ऑपरेशन थियेटर के निर्माण की घोषणा श्री गणेशप्रसाद नारनोलिया ने की थी। श्री परसराम केशरवानी और श्री तिजराम केशरवानी ने अपने बच्चों की स्मृति में एक एक कमरा पेइंग वार्ड के लिये बनवाने की घोषणा की थीे। मगर घोषणाएं तो वाहवाही के लिए होती हैं, उसे पूरा करना जरूरी नहीं होता ? दानदाताओं के द्वारा दान में दिया गया भवन शासन लेता जरूर है मगर उसकी देखभाल नहीं करता और भवन जर्जर होकर गिर जाता है..। शासन आज ऐसे पब्लिक सेक्टर के शासकीय कार्यालयों को जनभागीदरी से संचालित करता जा रहा है तो दान में दिये गये भवनों की सुरक्षा, उसकी देखभाल आदि की जिम्मेदारी शासन क्यों नहीं लेता। इससे लोगों में दान के प्रति झुकाव कम हुआ है। यही हाल स्कूल भवनों का है। एक तो ८० प्रतिशत स्कूलों के अपने भवन नहीं हैं और जहां है उसकी देखरेख नहीं हो पा रहा है। शासन की यह नीति कहां तक उचित है ? अस्पताल में न डॉक्टर है, न स्कूलों में शिक्षक...न जाने कैसा होगा मेरा भविष्य ?

भगवान नारायण के अनेक रूप जैसे केशवनारायण ,लक्ष्मीनारायण, राधाकृृष्ण, जगन्नाथ के मंदिर यहां हैं। इसी प्रकार औघड़ दानी शिव के अनेक रूप जैसे महेश्वरनाथ, चंद्रचूड़ महादेव, श्रीराम लक्ष्मण जानकी मंदिर, मां अन्नपूर्णा मंदिर, मां काली मंदिर आदि अन्यान्य मंदिर दर्शनीय है। महानदी का मुहाना बड़ा मनोरम है। छत्तीसगढ़ शासन शिवरीनारायण को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया है जिसके लिए वह बधाई के पात्र हैं। यहां की जनता उनके प्रति आभारी है। इस महाकंुभ के अवसर पर सारे जगत को जगन्नाथ धाम का दर्शन कराने वाला और मोक्ष देने वाला है..तभी तो कवि हीराराम त्रिपाठी गाते हैं :-

होत सदा हरिनाम उच्चारण रामायण नित गान करै।

अति निर्मल गंग तरंग लखै उर आनंद के अनुराग भरै।।

शबरी बरदायक नाथ विलोकत जन्म अपार के पाप हरै।

जहां जीव चारू बखान बसै सहज भवसिंधु अपार तरै।।




प्रो. आश्विनी केशरवानी
राघव, डागा कालोनी, चांपा (छ.ग.)

स्‍पात माफियाओं के शिकंजे में भिलाई स्‍पात संयंत्र : इस सप्‍ताह की खबर


पढे और भी सनसनीखेज 4 से 10 अगस्‍त तक की साप्‍ताहिक खबरें छत्‍तीसगढ सवेरा में जिसे हमने पिछले सप्‍ताह ही चिट्ठा संसार में आप सब की प्रेरणा से उतारा है ।


आज प्रस्‍तुत है इसका द्वितीय चिट्ठा प्रति । संपूर्ण समाचारों को हमने इसमें डाला है, चित्रों को डालना शेष है, भविष्‍य में इसे और भी रूचिकर बनाने का प्रयास है ।


इस पर समय व श्रम अत्‍यधिक लग रहा है । हालांकि हम क्‍वार्क फाईलों को रवि रतलामी जी के सुझाये रूपांतर का प्रयोग कर यूनिकोड रूपांतर कर रहे हैं, परन्‍तु एक दिन में संपूर्ण साप्‍ताहिक को रूपांतरित करना एवं पोस्‍ट करना (लगभग पचास) कष्‍टप्रद है ।


आप सब का आर्शिवाद एवं प्रोत्‍साहन चाहता हूं । कृपया हमारे साप्‍ताहिक समाचार चिट्ठे पर आयें एवं उसका अवलोकन कर यहां हमें सुझाव देवें ।


प्रेम मुक्ति है

मैं यानि अहंकार ! अहंकार और प्रेम में क्या संबंध हो सकता है । प्रेम तो अहंकार का विसर्जन है. जब भी किसी के प्रति प्रेम उगमता है, तो उसके प्रति हम अपना अहंकार छोड़ देते हैं, हम उसके प्रति अपने को समर्पित कर देते हैं. फिर वह प्रेम साधारण जगत का हो या भगवान के प्रति हो. मौलिक प्रक्रिया तो एक ही है. जिस स्त्री को तुमने प्रेम किया, या जिस पुरुष को तुमने प्रेम किया, उस प्रेम में तुम्हें परित्याग क्या करना पड़ता है ? प्रेम मांगता क्या है ? प्रेम एक ही चीज मांगता है कि मैं को समर्पित करो !और जब भी कोई पुरुष या स्त्री एक दूसरे के प्रति अपने को समर्पित कर देते हैं, तो उनके जीवन में बड़ी हरियाली के फूल खिलते हैं, बड़ी सुवास उठती है, मगर यह बहुत मुश्किल से होता है. क्योंकि आखिर पुरुष, पुरुष है और स्त्री, स्त्री है ! दोनों के लिए अपने मैं को, अपने अहंकार को छोड़कर स्वयं को समर्पित करना कठिन कार्य है. और कभी यह समर्पण जीवंत हो भी जाए तो वह क्षणभंगुर ही होता है, उस क्षण में थोड़ी सी झलक मिलती है- रस की, मन थोड़ा सा मुग्ध हो जाता है, थोड़े प्राण आनंदित भी हो जाते हैं- मगर कुछ क्षणों के लिए, और फिर वही अंधेरी रात ।




इसलिए प्रेम में थोड़ा सुख भी और बहुत ज्यादा दुख है. जिन्होंने प्रेम को जाना उन्होंने सुख जाना ही नहीं, उन्होंने प्रेम में सुख से भी ज्यादा गहन दु:ख जाना ! इसीलिए तो बहुत से लोग प्रेम में पड़ते ही नहीं । छोटे सुख से तो वे वंचित रह रहते हैं । मगर बड़े गहन दु:ख से भी बच जाते हैं । इसीलिए तो कई लोग सदियों-सदियों तक जंगल में भाग गये हैं. संसार का क्या अर्थ होता है ? जहाँ प्रेम होने की संभावना हो . जहाँ प्रेम का अवसर हो. जहाँ दूसरा मौजूद हो । जहाँ न जाने कब किसी से मन मिल जाये. और न जाने कब किसी से राग जुड़ जाये ।




भाग जाओ ! सदियों-सदियों से साधु संत जंगलों में भागते रहे हैं, पहाड़ों में भागते रहे हैं. किससे भाग रहे हैं. वे कहते हैं संसार से भाग रहे हैं. मगर ऐसा होता नहीं. उनके मनोविज्ञान को समझो. वे संसार से नहीं प्रेम से भाग रहे होते हैं. संसार प्रेम का ही दूसरा नाम हैं. लेकिन भागे हुए ये लोग बहुत अधिक अहंकारी होते हैं. इसीलिए तुम साधु-संतों में जितना अहंकार देखोगे, वैसा अहंकार और कहीं नहीं दिखेगा. क्योंकि प्रेम जो मिटा सकता था उनके अहंकार को, उस प्रेम को तो वे छोड़कर चले गये, अब तो बीमारी ही रही, औषधी रही नहीं. मैं ऐसे सन्यास का समर्थक हूँ, जो प्रेम से भागता नहीं, वरन् प्रेम के सत्य में जागता है. ऐसा सन्यास जो प्रेम को शाश्वत सच्चाई की तरह स्वीकार करता है. जो संसार से, प्रेम से नहीं बल्कि अहंकार से भागता है, अहंकार को त्यागता है क्योंकि दु:ख प्रेम से नहीं आता,प्रेम से ही सुख आता है भले ही क्षणभंगुर ही सही, मगर प्रेम चला जाता है तो फिर अहंकार सिर उठाता है. इसीलिए मेरा सन्यास भिन्न है, जो तोड़ता नहीं बल्कि सबसे जोड़ता है..........

(आचार्य रजनीश के विचार)

“पापा ये स्‍टेफ्री क्‍या होता है ?”

जून माह में निर्मल आनंद में फिल्‍म की चर्चा करते हुए श्रीयुत तिवारी जी कहते हैं -

.. दूसरी है ३४ वर्षीय तब्बू.. वो तो खैर क्या कहें.. कटारी है कटारी.. देख के मन करता है.. बस कब मौका मिले और सेक्स कर लें उसके साथ.. क्यों आप का नहीं करता.. हमारा तो करता है.. अमिताभ का भी करता है..

आप लोगों से पूछा गया है कि क्‍या आप का नहीं करता ? हमें उस समय बेहद अटपटा लगा था । आज उन स्‍मृतियों को ताजा किया तो उनकी यह साफगोई दिल को छू गई, भरे समाज में इस बात को लेकर आये और कह दिये जो बढी दाढी से छुपी रह सकती थी । फिल्‍म तो हम नहीं देखे पर इधर उधर से जो जानकारी मिली उसके अनुसार से यह बडे लोगों की बडी बातें थी । किसी नें कहा नयी चिंतन को जन्‍म देती कहानी है ।




क्‍या है यह चिंतन, फिल्‍म व टीवी सीरियल वाले भरपूर कोशिस कर रहे हैं, नारी पुरूष उन्‍मुक्‍तता व स्‍वैच्‍छाचारिता की सहज (? पैशाचिक) प्रवृत्ति को अपने फिल्‍मों व लोकप्रिय सीरियलों में दिखायें ताकि समाज में बदलाव लाया जा सके बच्‍चे भी जान सके कि अपनी मां के उदर से उत्‍पन्‍न भाई बहनों के अलग अलग पिता के संबंध में अपनी मां की वैचारिक स्‍वतंत्रता या स्‍वच्‍छंदता के संबंध में । यद्धपि यहां पर सगे का अर्थ खो गया है । एक होड सी लगी है एक पुरूष दूसरे की पत्‍नी, एक पत्‍नी दूसरे का पति और बहुत कुछ । आकांक्षा करोडों की है धरातल हजार की भी नहीं।

विगत दिनों महानगरों से हाईप्रोफाईल तथाकथित द्रौपतियों के समाचार लगातार आ रहे हैं । अभी हाल में नागपुर से पकडी गई हाईप्रोफाईल कालगर्ल की बाकायदा वेबसाईटें हैं व उनका दर तय है कम से कम एक लाख रूपया । यह एक लाख रूपया देने वाले निर्मल आनंद वाले तिवारी जी नहीं हो सकते हां यह हो सकता है वह टैक्‍सी ड्राईवर जिससे कल अरबों की सम्‍पत्ति व ढेरों कार बरामद हुए हैं । तब्‍बू से सेक्‍स करने की इच्‍छा रहने के बाद भी सफेद चोला ओढे लम्‍बा चौडा तर्क व दर्शन का पिटारा सम्‍हाले हां हूं ओह आह कहते ऐसे लोगों की लंबी फेहरिश्‍त है ।

पिछले दिनों श्री ज्ञानदत्‍त पाण्‍डेय जी नें अपने एक पोस्‍ट में जार्ज फर्नांडीज के संबंध में लिखा था कि वे टेलीविजन नहीं देखते, बिल्‍कुल सही करते हैं क्‍या शेष बचा है ।




मनोरंजन के नाम पर नैतिकता को ताक पर रख कर फिल्‍माये गये क... क... क... और यदि समाचार में मन रमाना चाहें तो सेक्‍स स्‍कैंडल, दिल्‍ली के फार्म हाउसों की पार्टिया, यूक्रेन की लडकियां, कास्टिंग काउच, बार बालायें अस्‍सी प्रतिशत सेक्‍स से जुडे खबर । बाकी कुछ बच गया तो अमूल माचो, स्‍टेफ्री सिक्‍योर ।




आज मेरा 11 साल का लडका मुझसे पूछ रहा था, “पापा ये स्‍टेफ्री क्‍या होता है ? उसे कहां लगाते हैं ?”
क्‍या कहते हैं आप ? आपसे यदि आपका बेटा ऐसा प्रश्‍न करे तो आप क्‍या उत्‍तर देगें ? कहां से होकर आ रही है यह विचारधारायें ?

नेट चैट प्रेमालाप नें पंहुचाया जेल




छद्म नाम एवं झूठ फरेब से भरी नेट की दुनिया का एक सच

भिलाई का एक छात्र नेट प्रेमिका से करोडपति पुत्र बनकर करता था चैट

प्रेमिका को रायपुर एयरपोर्ट से नई कार में रिसीव करने व रहीसी को साबित करने किया खुद के अपहरण नाटक
अपने ही बाप से मांगी पंद्रह करोड की फिरौती


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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...