अच्छाई और बुराई के बीच ’प्राण’ एक शख्सियत

भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष
विनोद साव

भारतीय सिनेमा के सौ सालों में सिनेमा का सिनेरियो प्राण की चर्चा के बगैर कुछ अधूरा सा लगेगा। पिछले दिनों उन्हें श्रेष्ठतम अभिनय के लिए दादा साहब फाल्के पुरस्कार के सर्वोच्च पुरस्कार से नवाजा गया। प्राण साहब को यह सम्मान बहुत पहले ही मिल जाना था। अगर वे 93 वर्ष की आयु का लम्बा जीवन नहीं जीये होते तो यह पुरस्कार भी उन्हें नहीं मिल पाता। पुरस्कारों के साथ यह भी एक घालमेल है।

प्राण दिखने में बेहद हसीन इन्सान रहे हैं। अपनी नोकदार नाक व ठुड्डी, रसीली ऑखों और सिर के घुमावदार बालों से कई किस्म की भंगिमाएं वे दे लेते थे। उनके पास अभिनय और संवाद अदायगी की अकूत क्षमता थी। जिन चरित्रों में वे खड़े होते थे उनमें प्राण इस कदर प्राण डाल देते थे कि दर्शक उन्हें बडे विस्मय और भय से देखते हुए रोमांचित हो उठते थे। उनके जानदार अभिनय को देखकर दर्शक वैसे ही तालियॉ पीटकर वाह वाह कर उठते थे जैसे वे किसी भारतीय रुपहले परदे के बहुचर्चित ’खलनायक’ को नहीं बल्कि किसी रुमानी ’नायक’ को देख रहे हों। ’विलेन’ की अदाकारी में कई बार वे सिनेमा के असली हीरो से बाजी मार ले जाते थे और खुद हीरो बन जाते थे। प्राण कहते भी हैं कि ’आजकल के विलेन लाउड हो जाते हैं। दरअसल विलेन को भी अपनी फिल्म का हीरो हो जाना चाहिए।’ जबकि नायकत्व से भरे अपने व्यक्तित्व के बाद भी प्राण ने कभी भी फिल्मों में नायक बनना पसंद नहीं किया ज्यादातर खलनायक ही बने रहे, लेकिन अपनी भिन्न क्षमताओं के कारण उन्होंने अपने अभिनय की दूसरी पारी में कई चरित्र अभिनेताओं के किरदार को भी बखूबी निभाया और जीवंत किया। 



लाहौर की उसी पट्टी से प्राण भी आए थे जिस पट्टी ने फिल्म जगत को तमाम बड़े अदाकार और कलाकार दिए। फिल्मों में आने से पहले वे शिमला में रहे जहॉ कम उम्र में ही सिगरेट पीने की लत उन्हें लग चुकी थी। बाद में फिल्मों में उनके सिगरेट पीने, धुऑ छोड़ने और छल्ला निकालने के कई लटके झटकों को कैमरामैनों ने बखूबी फिल्माया और देखने वालों ने खूब मजा लिया। कभी कभी सुनहरे बालों वाले प्राण को, ऑखों पर सुनहरी लेंस धारण किए, सुनहरा सूट पहने हुए सुनहरे डिब्बे में स्प्रिट पीते हुए भी दिखलाया जाता था। यह सुनहरा दृश्‍य दर्शकों की ऑखों में बस जाता था और प्राण लोगों के दिलों में और भी बस जाते थे। खलनायक होते हुए भी प्राण नायकों की तरह स्टायलिश हुआ करते थे। बाद के प्राण खलनायक की भूमिकाओं से हटकर परोपकारी और मजाकिया इन्सान के रुप में आने लगे थे और यहॉ भी उन्होंने अपने अभिनय की अमिट छाप छोड़ी थी। अपने वास्तविक जीवन में वे कभी भी खल पात्र नहीं बल्कि एक नेक दिल इन्सान रहे हैं।

अभिनय के हिसाब से देखें तो प्राण में वैसी ही अभिनय क्षमता भरी थी जैसी दिलीपकुमार और अमिताभ बच्चन में रही। उनकी फिल्मों की संख्या भी बड़े स्टारों की तरह बहुत ज्यादा रही। दिलीपकुमार की तरह वे भी पचास बरसों से अधिक समय तक अभिनय में सक्रिय रहे। उन्होंने सबसे ज्यादा फिल्में भी दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन के साथ की। कला समीक्षक ये मानते हैं कि फिल्मों के दृश्‍यों के दौरान दिलीप कुमार के व्यक्तित्व और अभिनय को जो अतिरिक्त गरिमा मिलती थी वह उनकी प्राण से टकराहट के कारण मिलती थी। यही प्रभाव अमिताभ के साथ भी देखा जा सकता है विशेषकर ’जंजीर’ के शेरखान के साथ। इस फिल्म के निर्देशक प्रकाश मेहरा को प्राण ने कह भी दिया था कि अमिताभ के रुप में हमारी फिल्मी दुनियॉ को एक बड़ा स्टार मिल गया है। दिलीप और अमिताभ की तरह प्राण भी सबसे ज्यादा अपनी संवाद अदायगी के लिए जाने जाते थे। उनके डायलाग बड़े दिलकश होते थे। संवादों को बोलते समय उनकी गड़गड़ाती हुई टीस भरी आवाज ऐसी बुलन्द होती थी कि मामूली सा संवाद भी धॉसू डायलाग साबित हो जाता था। फिल्म ’मजबूर’ में जब इंसपेक्टर अमिताभ उनसे पूछते हैं कि ’सुना है कि चोरों के भी उसूल होते हैं!’ तब प्राण अपने अन्दाज में कह उठते हैं कि ’चोरों के ही तो उसूल होते हैं राजा।’ उनकी संवाद अदायगी का प्रभाव उनके समकालीन खलनायकों जीवन और अजीत में भी देखा जा सकता है।

अभिनय की उंचाई और दिलकश आवाज के जरिये प्राण में भी दिलीप और अमिताभ की ही तरह फिल्मों के बेबुनियाद दृश्‍यों और चरित्रों को उंचा उठा देने की ताकत थी। भारतीय सिनेमा की छवि ज्यादातर व्यावसायिक सिनेमा की ही बन पाई और इनके बाजार को बढ़ाने के लिए जो स्टार और स्टारडम चाहिए वह प्राण जैसी शख्सियतों के पास भरपूर रही है। खलनायकों और चरित्र अभिनेताओं में शायद ही किसी ने इतनी लम्बी पारी खेली हो।

विनोद साव

संपर्कः मो. 9407984014


20 सितंबर 1955 को दुर्ग में जन्मे विनोद साव समाजशास्त्र विषय में एम.ए.हैं। वे भिलाई इस्पात संयंत्र में प्रबंधक हैं। मूलत: व्यंग्य लिखने वाले विनोद साव अब उपन्यास, कहानियां और यात्रा वृतांत लिखकर भी चर्चा में हैं। उनकी रचनाएं हंस, पहल, ज्ञानोदय, अक्षरपर्व, वागर्थ और समकालीन भारतीय साहित्य में भी छप रही हैं। उनके दो उपन्यास, चार व्यंग्य संग्रह और संस्मरणों के संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है। उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं। वे उपन्यास के लिए डॉ. नामवरसिंह और व्यंग्य के लिए श्रीलाल शुक्ल से भी पुरस्कृत हुए हैं। आरंभ में विनोद जी के आलेखों की सूची यहॉं है।
संपर्क मो. 9407984014, निवास - मुक्तनगर, दुर्ग छत्तीसगढ़ 491001
ई मेल -vinod.sao1955@gmail.com

जे.के.लक्ष्मी सीमेंट : स्थानीय बनाम बाहरी

दुर्ग जिले के अहिवारा ब्लॉक का एक छोटा सा गांव मलपुरी इन दिनों खबरों के शीर्ष पर है, गांव वालों पर आरोप है कि उन्होंनें निर्माणाधीन जे.के.लक्ष्मी सीमेंट प्लांट को आग लगा दिया. शांत स्वभाव वाले इन किसान और मजदूरों पर आरोप है कि उन्होंनें उग्र होकर भीषण आगजनी की जिसमें कम्पनी की 600 करोड़ की सम्पत्ति का नुकसान हुआ. कम्पनी के आने के पहले मलपुरी में किसान खेती करते थे और भूमिहीन उन खेतों में मजदूरी करते थे. कहते हैं कि मलपुरी के धरती के गर्भ में आसपास के अन्य गांवों से ज्यादा पानी है इसी कारण अधिकांश किसानों के पास बोर थे और फसल बारो मास लहलहाती थी. इस खुशहाल गांव में जब हरियाणा के लोगों के नाम से जमीनें धीरे धीरे खरीदी जाने लगी तभी से राहू की वक्र दृष्टि पड़ने लगी. जमीन दलाल सक्रिय हुए और किसानों को जमीन बेचने के लिए बहुविध लालच देने लगे. धीरे धीरे आधा से ज्यादा जमीन हरियाणवी ताउओं के नाम पर बहुत ही सस्ते दरों पर चढ़ गई. जब तक लोगों को पता लगा कि मलपुरी में सीमेंट प्लॉंट लगने वाला है तब तक जमीनें किसानों से छिन चुकी थी.

जे.के.लक्ष्‍मी सीमेंट के मालिकों को अहिवारा क्षेत्र के भूमि में दबे सीमेंट उत्पादन में सहयोगी पत्थरों की भनक बरसों पहले लग चुकी थी और उसके उत्खनन की अनुमति भी उन्होंनें ले ली थी, किन्तु उनकी औद्यौगिक साम्राज्य की जीजीविषा पर कुछ न्यायालयीन अड़चने पाला मार रही थी. न्यायालय से हरी झंडी मिलते ही जे.के.लक्ष्‍मी सीमेंट नें खानों के पत्थरों को उदरस्थ करने और पास बह रही शिवनाथ को लीलने की अपनी इच्छा शासन से की. इस समय तक राहुओं नें मलपुरी गांव सहित आस पास के गांवों की जमीनों को पूरी तरह से ग्रस लिया था. मलपुरी गांव में परिवहन सहित अन्य संसाधनों की सुगम सुविधाओं को देखते हुए प्लॉंट की स्थापना यहीं तय हुई. जे.के.लक्ष्‍मी सीमेंट ने आवश्यकता की अतिरिक्त भूमि के लिए राज्य शासन से गुहार लगाई और शासन ने त्वरित कार्यवाही करते हुए भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया आरंभ कर दी. प्रक्रिया के चलते ही जे.के.लक्ष्‍मी सीमेंट नें गांव के निस्तारी भूमियों को कब्जा करना आरंभ कर दिया, धीरे धीरे उनके सभी पारंपरिक रास्ते बंद कर दिए गए. ठगे से ग्रामीणों नें तभी पहली बार विरोध में स्वर उठाया. जे.के.लक्ष्‍मी सीमेंट को सीधे विक्रय किए गए भूमि के भू स्वामियों नें नौकरी की मांग की और मांगों पर ध्यान नहीं दिए जाने के फलस्वरूप प्लांट के द्वार पर प्रभावितों की तंबू तन गई.

छत्तीसगढ़ के मजदूर किसान आन्दोलन का इतिहास जानने वाले लोग जानते हैं कि छत्तीसगढ़िया शांतिपूर्वक धरना देनें में विश्वास रखते हैं. वे लम्बे समयावधि तक धरने देते हैं, भूखे रहते हैं, स्वयं कष्ट सहते हैं और अपनी मांगों पर अडिग रहते हुए अपनी मांग मनवाते हैं. जे.के.लक्ष्‍मी सीमेंट प्रबंधन को छत्तीसगढ़ियों के इस स्वभाव का अंदाजा ही नहीं था वे अपने हरियाणा व राजस्थान के प्लांटों के अनुभवों को यहां आजमा रहे थे. निर्माण के लिए भारी संख्या में बाहरी लोगों को बुलाकर धड़ा धड़ निर्माण कराया जा रहा था, बलपूर्वक सरकारी और निस्तार की जमीनों को हथियाया जा रहा था और धरने में बैठे लोगों की वाजिब मांगों को मानने के बजाए उन्हें डराया धमकाया जा रहा था, लोगों की माने मो बाहर से बाउंसर बुलाकर बच्चो और महिलाओं तक को पिटवाया गया था ताकि गांव वालों पर कम्पनी की दहशत कायम हो.

उसके बाद के धटनाक्रम से पाठक वाकिफ हैं, अचानक क्या हुआ कि जे.के.लक्ष्‍मी सीमेंट को 600 करोड़ का नुकसान व इसके ठीकरे पर शांतिप्रिय छत्तीसगढ़ियों पर आरोपों और कष्टों का पहाड़ टूट पड़ा. रायपुर के एक युवा पत्रकार नें अपने ब्लॉग में लिखा 'कल जब जेके लक्ष्मी सीमेंट कंपनी के एक अधिकारी का ऑफिशियल वर्जन मेल पर आया तो मैं देखकर दंग रह गया। वे बोल रहे थे कि जैसे गांव का विकास जेके लक्ष्मी ने किया, कर रहा है और करेगा। मगर गांव वाले सबके सब नाकाबिल उनके प्लांट में आग लगाने वाले अपराधी हैं।' इसे पढ़कर लगा कि सौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली शब्दांश ऐसे ही किसी वाकये को देखकर हमारे पुरखों नें शुरू किया होगा.

अपराध की बुनियाद पर इमारत खड़ी करने वाली कम्पनी जनता से कहती है कि तू अपराधी है, वाह जी! किस मुह से ये कह रहे हो. उचित मुआवजा व पुर्नवास के अनिवार्य दायित्व से बचने के लिए हरियाणवी ताउ से जमीन खरीदवाया वो भी कृषि के उद्देश्य के लिए फिर तान दी उद्योग. पर्यावरण अनुमति कहीं और के लिए लिया और मनमानी करते हुए फैक्ट्री कहीं और डाल ली, सरपंचों को धोखे में डालकर एनओसी लिया. गुण्डों से गांव वालों की पिटाई कराई, दहशत फैलाया. श्रमिक सुरक्षा के बेहतर इंतजाम नहीं किया इसलिए तीन मजदूर मिट्टी में दबकर मर गए. गांव वालों की जमीन को अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरा हुए बिना भी कब्जे में लिया. सम्मिलित चरागान की जमीन जिस पर सर्वोच्च न्यायालय का स्पष्ट दिशा निर्देश है कि उसका निजी या उद्योग हेतु उपयोग नहीं किया जायेगा, उसे भी कब्जा कर लिया. व्‍यक्तिगत गलतियों को छिपाने के लिए जनता पर दोष मढ़ना कुछ सामर्थवानों की फितरत रही है. इसी क्रम में कम्‍पनी नें मीडिया में मेल भेजकर अपने आप को पाक साफ प्रचारित किया.

आगजनी, प्रशासन की कार्यवाही फिर कम्‍पनी का यह मेल छत्‍तीसगढ़ को बदनाम करने की कडिया ही हैं. शुरूआती मांगों, असंतोष व विवादों के संबंध में स्थानीय प्रशासन संवेदनशील नहीं रही. आग अंदर ही अंदर सुलगता रहा. संपूर्ण घटनाक्रम का बीज झूठ बोलकर जमीन खरीदने के समय से ही बो दी गई, फिर उसे परिवर्तित कराने व बाद में सरकारी डंडे से भूमि अधिग्रहण कराने की प्रक्रिया के द्वारा पानी खाद देकर इसे सींचा गया, मजबूत बनाया गया. स्थानीय भूमि अधिग्रहण अधिकारी नें अपने अधिकारों का अतिक्रमण करते हुए, पुर्नवास एवं मुआवजा के मसले पर संवेदनाओं को ताक में रखकर कम्पनी के हित में अधिग्रहण को उचित ठहराया. यदि प्रकरण पर विचार करते समय कम्पनी के मुलाजिम मेहता को जिस प्रकार उचित आसन दिया जाता था उसी प्रकार एक मनुष्य होने के नाते अपने जमीन का हक खोने वाले मनुष्यों के अधिकारों को उचित स्थान दिया गया होता तो इस प्रकार के उग्र आन्दोलन की बात ही ना होती. नौकरी के लिए चल रहे घरने का औचित्‍य समाप्‍त हो जाता. भूमि अधिग्रहण के संबंध में निर्णय आने के पहले ही कम्पनी के द्वारा जमीनों पर धड़ाधड़ कब्जा किया गया, इससे ग्रामीणों की स्वतंत्रता लगभग समाप्त होती गई और प्रशासन चारागान व गांव के निस्तार की जमीनों पर कम्पनी के द्वारा किए जा रहे अतिक्रम व निर्माण को देख सुनकर भी मौन रही बल्कि एक कदम आगे बढ़ाते हुए उन्हीं जमीनों का अधिग्रहण कम्पनी के लिए करने में सहयोग करती रही.

हमने कम्पनी के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे अधिग्रहण के विरूद्व जब आपत्ति की थी तो कहा था कि प्रस्तावित अधिग्रहण से प्रदेश के भू स्वामियों के संवैधानिक मौलिक अधिकार अतिक्रमित होंगें एवं आस पास के ग्रामों में पुनर्स्‍थापना एवं पुनर्वास की गंभीर समस्या उपस्थित होगी। प्रस्तावित अधिग्रहण भूमिधारितों को सम्पत्ति से वंचित करने एवं वर्तमान व भविष्यगत क्षति कारित करने वाला है क्‍योंकि प्रभावित भू स्‍वामियों का मूल पेशा कृषि है एवं इनके भूमि से इनका अधिकार छीन लेने से ये कृषि कार्य नहीं कर पायेंगें एवं उन्‍हें अपूरणीय क्षति होगी। यह कि भूमि स्वामियों की मूल्यवान सम्पत्ति का अर्जन किया जा रहा है जिससे भूमि स्वामियों का वर्तमान एवं भविष्य अवलंबित है। इस अर्जन से कृषि कार्य में लगे मजदूर भी प्रभावित होंगें एवं उनके समक्ष रोजगार की बड़ी समस्या उपस्थित होगी.

हमने यह भी कहा था कि प्रस्तावित अधिग्रहण का प्रयोजन ‘औद्यौगिक प्रयोजन हेतु’ दर्शाया गया है. जिसके अनुसार यह परिलक्षित होता है कि भू अर्जन उक्‍त क्षेत्र में विभिन्‍न औद्यौगिक इकाइयों के स्‍थापना के उद्देश्‍य से किया जा रहा है किन्‍तु सामूहिक रूप से उद्योगों के व्यवस्थित एवं योजनाबद्ध विकास को सुनिश्चित ना करते हुए एक निजी उद्योग कम्पनी के लिए यह अर्जन किया जा रहा है। किसी निजी उद्देश्‍य के भू अर्जन, लोक प्रयोजन की श्रेणी में कतई नहीं आता। यह अधिग्रहण निजी कम्पनी के लिए अधिग्रहण है इसके लिए भू अर्जन अधिनियम में विधिवत प्रावधान दिए गए है। कम्पनी हेतु अर्जन संबंधी धाराओं में अधिग्रहण किये जाने के वैकल्पिक प्रावधान होने के बावजूद सार्वजनिक प्रयोजन का मिथ्‍या अर्थान्‍वयन किया जाना अवैधानिक है। अधिग्रहण की यह प्रक्रिया एक उद्योग के लिए की जा रही है यहां अलग अलग औद्यौगिक इकाईयां या सामूहिक औद्यौगिक विकास का कार्य प्रस्तावित नहीं है. किसी एक ऐसे कम्पनी या उद्योग के लिए सरकार के द्वारा भूमि का अधिग्रहण किया जाना जन विरोधी है जिसका मूल उद्देश्य निजी लाभ अर्जित करना है ना कि सार्वजनिक लाभ. इसलिए यह कार्य या प्रयोजन सार्वजनिक प्रयोजन की श्रेणी में कतई नहीं आता. अर्जन की यह कार्यवाही जे.के.लक्ष्मी सीमेंट लिमिटेड के लिए भूमि की व्यवस्था हेतु, शासन के द्वारा अर्जित की जा रही है जबकि कम्पनी के पास इसके पूर्व ही काफी एवं समुचित मात्रा में किसानों की कृषि भूमि आपसी समझौते के तहत क्रय कर ली गई है। अब इसी कम्पनी के लिए अतिरिक्त एवं इतने भारी मात्रा में कृषि भूमि का अधिग्रहण किया जाना ना ही न्याय संगत है एवं ना ही तर्कसंगत है। बढ़ते औद्यौगीकरण व प्रदूषण के कारण पूरे देश में एवं प्रदेश में धीरे धीरे कृषि भूमि का रकबा कम होते जा रहा है एवं देश में खाध्यान्य संकट की स्थिति पैदा हो रही है इस कारण इतने बड़े मात्रा में कृषि भूमि का अधिग्रहण प्रस्ताव निरस्त करने योग्य है। इस अर्जन कार्यवाही के द्वारा एक कम्पनी को लाभ पहुचाने के उद्देश्य से शासन ने शक्ति का छद्म प्रयोग किया है, यह प्रथम दृष्टया स्पष्ट है कि इस अधिग्रहण से किसी व्यक्ति विशेष या कम्पनी/संस्था विशेष को लाभ पहुच रहा है समुदाय या समाज को इससे कोई लाभ नहीं होगा। कि अधिग्रहित किए जाने वाले क्षेत्र के गावों में भू स्वामियों की भूमि को कम्पनी के द्वारा समझौते के तहत क्रय किए जाने की प्रक्रिया भी निरंतर जारी है कम्पनी के दलालों के द्वारा किसानों की जमीन को कृषि हेतु क्रय करने का झांसा देते हुए हड़पने का कार्य बदस्तूर जारी है ऐसे में जिन भू स्वामियों के द्वारा जागरूकता दिखलाते हुए भूमि कम्पनी को नहीं दी गई उनकी भूमि छीनने के उद्देश्य से सरकारी सहयोग एवं शक्ति का प्रयोग इस अधिग्रहण से किया गया था.

केन्‍द्रीय संसद में नया भूमि अधिग्रहण अधिनियम पारित होने की स्थिति में है ऐसी अवधि में शासन द्वारा पुराने भूमि अधिग्रहण अधिनियम के प्रावधानों के तहत् भूमि अधिग्रहण करना औचित्‍यहीन है। वैसे भी कानुनविदों एवं न्‍यायालयों नें विद्यमान भूमि अधिग्रहण कानून को असंगत एवं बदलाव की आवश्‍यकता वाला बतलाया है। यह सर्वविदित है कि माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय एवं केन्‍द्र शासन नें वर्तमान भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 को पूर्णरूपेण खारिज कर दिया है तथा केन्‍द्र शासन के द्वारा नया भूमि अधिग्रहण अधिनियम संसद में प्रस्‍तुत भी कर दिया गया है जो कि पारित होने के अंतिम स्‍तर पर है ऐसे में भू-स्‍वामी को अनावश्‍यक भू-अर्जन के द्वारा उसके नैसर्गिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। यह कि ऐसे समय में जब देश में नया भू अधिग्रहण अधिनियम संसद में पारित होकर अधिनियमित होने वाला है जिसमें भू धारितों को अपने भूमि के बाजार मूल्य का छ: गुना मुआवजा देने का प्रावधान है, को अनदेखा कर यह अधिसूचना जारी की गई है ताकि अधिग्रहण चाहने वाली कम्पनी को भूमि के बाजार मूल्य का छ: गुना मुआवजा ना देना पड़े.

इन गंभीर आपत्तियों के बावजूद भी भूमि अधिग्रहण अधिकारी नें ना तो इन आपत्तियों के लिए अधिग्रहण चाहने वाली एजेंसी से इसका जवाब मांगा ना ही इसकी जांच करने की जहमत उठाई, आपत्तियों का निराकरण करने के बजाए सीधे आपत्तियों को खारिज किया कि दम है तो जावो उच्‍च न्‍यायालय और चुनौती दो हमारे फैसले को. अब हर कोई तो उच्‍च न्‍यायालय जाने से रहा और इस प्रकार कम्‍पनी की रोटी पक गई. सरकारी सहायता से अधिग्रहण के के माध्‍यम से भूमि प्राप्‍त करने वाले उद्योगों में आरंभिक विवाद चाहे कुछ भी हो मूल रूप से जमीन से जुड़ा होता है. जमीन से जुड़ा मसला जनता से जुड़ा मसला होता है चाहे वह भूमि छिनने वाले परिवार को नौकरी देने, उचित मुआवजा देने या अन्‍य संसाधनों के विकास की मांग हो सभी जमीन से जुड़े मुद्दे होते हैं. प्रशासन को इसे संवेदनशीलता से हल करना चाहिए क्‍योंकि यही उग्र रूप धरते हैं और आपके हाथ से नियंत्रण छूट जाता है, फिर आप बौखला जाते हैं और इससे स्‍थानीय जनता पिसती है.

जे.के.लक्ष्‍मी सीमेंट में आगजनी की घटना के बाद पुलिस के मीडियायी बयानों को देखें तो इस घटनाक्रम के लिए वीरेन्द्र कुर्रे को महिमामण्‍डन करने का कुचक्र चल रहा है. समय का तकाजा एवं वर्तमान में बौद्धिकता की परम्‍परा हो गई है कि पश्चिमी देशों और वामपंथ के झंडाबरदारों, मानवाधिकार वादियों के मन में जनसुरक्षा कानून में फंसें लोगों के प्रति स्‍वाभाविक सहानुभूति आ जाती है. पुलिस इस बात से नाखबर है कि वह बड़ी आसानी से वीरेन्‍द्र को हीरो बनाने में सहयोग कर रही है. पुलिस कह रही है कि वीरेन्द्र के घर से नक्सली साहित्य बरामद हुआ है. नक्सल साहित्य का सटीक अर्थान्वयन अभी अदालतों में होना बाकी है, तब भी पुलिस व प्रशासन नक्सल साहित्य के आड़ में अपना हित साधती रही है. पुलिस तात्कालिक रूप से हालात को काबू में करना चाहती है, इसके लिए वो इसे हथियार के तौर पर प्रयोग करती है एवं लोगों में अपराध के प्रति डर को कायम करने का विफल प्रयास करती है. पाश, धूमिल, ब्रेख्त से लेकर नागार्जुन और मुक्तिबोध की कविताओं में सामंती दमन के खिलाफ उठते विरोध की पंक्तियों में बार बार नक्सल साहित्य उलझता है. काल र्माक्स, मेधा पाटकर, बी.डी.शर्मा, अरूंधती राय जैसों कई नामों व कई अनाम लेखकों के गद्यों में नक्सल विचारधारा को पुलिसिया बाईनाकुलर तलासती है. बार बार न्यायालयों में मुहकी खाती है और बार बार नक्सली साहित्य के सहारे लोगों को निरूद्ध करने का प्रयास करती है. इसे देखते हुए किसी के घर से तथाकथित 'नक्सली साहित्य' का बरामद होना जनसुरक्षा अधिनियम के तहत उस घर मालिक को अपराधी सिद्ध नहीं करती. अदालत में सिद्ध करने का भार पुलिस पर है और अभी लम्बी अदालती लड़ाई बाकी है. इस बीच बहुत सारे लोग हाथ सेकेंगें, बयानबाजी होगी, रूदालियां होगीं और स्थानीय किसान मजदूर बाहरी लोगों के नारों से पेट भरेंगें.

संजीव तिवारी

निर्माणाधीन जे.के.लक्ष्‍मी सीमेंट में आग : त्‍वरित टिप्‍पणी

दैनिक भास्‍कर, मुख्‍य पृष्‍ट
मलपुरी, दुर्ग के जे.के.लक्ष्मी सीमेंट में जो हुआ वो अच्छा नहीं हुआ. छत्तीसगढ़ के विकास के परिपेक्ष्य में इसे कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता. किन्तु जे.के.लक्ष्मी सीमेंट के विरूद्ध बढ़ते जन आक्रोश का आंकलन करें, यह भीषण आगजनी जे.के.लक्ष्मी सीमेंट के सामंती अपराध, दबाव व षड़यंत्र के विरूद्ध दमित समाज द्वारा निकला खीझ है. इस बड़े हादसे के नेपथ्य में जो बातें सामने है उनमें तात्कालिक रूप से जो कारण समझ में आते है उनमें से कुछ इस प्रकार हैं -

विगत दिनों प्रशाशन नें भूमि अधिग्रहण के विरूद्ध प्रस्तुत आवेदनों, गंभीर शिकायतों को कागजी जमा खर्च करते हुए निरस्त कर दिया था. इसके लिए कुटिल चाल चलते हुए दुर्ग में प्रशासनिक अधिकारियों के घरों व कार्यालयों में चमचागिरी करते कम्पनी के एक अधिकारी को बार बार देखा गया. जिसनें विरोध करने वालों की कीमतें आंकी, और अपनी ‘महत्ता’ प्रतिपादित करते हुए षड़यंत्रपूर्वक सारे फैसले कम्पनी के हित में करवा लिये.

मलपुरी आन्दोलन नेतृत्व विहीन रहा, सभी अपनी अपनी रोटी सेंककर किसानों व स्थानीय लोगों को मूर्ख बनाते रहे. प्रबंधन नें जानबूझकर स्थानीय किसानों की हर संभव उपेक्षा की और बाहर से श्रमिक एवं गुडे (बाउंसर) बुलाकर आवाज को दबाया. स्था‍नीय लोगों से डर के आडंबर को प्रचारित करते हुए कार्यरत अधिकारियों की पत्नियों नें मोर्चा खोला और अपने पतियों को सुरक्षा दिलाने का ‘मीडिया गोहार’ करते हुए फोटो सोटो खिंचाया, समाज सेवा के नये प्रतिमानों के प्रति अपनी आस्था जताई किन्तु विगत दिनों हादसे में वहां कार्यरत श्रमिकों की जब मौत हुई तो चुप्पी साध ली.

कुछ और भी ज्व्लंत कारण रहे हैं जो इस निंदनीय घटना के पीछे हैं, अभी इतना ही. पूरे मसले में जे.के.लक्ष्मी सीमेंट और स्थानीय प्रशासन दोषी है. यदि समय पर स्थानीय निवासियों एवं किसानों की मांगें इमानदारी पूर्वक मान ली जाती तो यह बड़ा हादसा नहीं होता.

एक टीप जो कम्पनी के पक्षधरों और मानवता के झंडाबरदारों के लिए है.. ‘’इस आक्रोश या छत्‍तीसगढ़ में हो रहे इस प्रकार के मजदूर किसान आन्दोलन को किसी वामपंथ या पारंपरिक मजदूर किसान आन्दोलनों के 'फ्रेम' से जोड़कर देखना वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार नासमझी होगी.’’

संजीव तिवारी

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...