16 मोड़ों के सफर में साथ रहे अली भईया

विगत दिनों ब्‍लॉग संहिता निर्माण के लिए देशभर के चुनिंदा ब्‍लॉगरों नें वर्धा में एकत्रित होकर मानसिक मंथन किया जिसकी खबरें पोस्‍टों के माध्‍यम से आनी शुरू हो गई थी और हम वहां नहीं जा पाने का मलाल लिए 10 अक्‍टू. को प्रादेशिक प्रवास पर निकल गए थे, आयोजन स्‍थल से भाई सुरेश चिपलूनकर जी और संजीत त्रिपाठी जी से फोन संपर्क बना हुआ था पर मन वर्धा हिन्‍दी विवि में अटका था। दूसरे दिन हम प्रवास से अपने गृह नगर वापस पहुचे, पूर्व तय कार्यक्रम के अनुसार जगदलपुर से अली भईया दो दिन पहले ही राजनांदगांव आ चुके थे और 11 अक्‍टू. को हम सब ब्‍लॉगरों की सुविधानुसार दुर्ग-भिलाई आने वाले थे।
इस आभासी दुनिया में एक  ब्‍लॉगर दूसरे ब्‍लॉगर से उसके पोस्‍ट और टिप्‍पणियों के माध्‍यम से वैचारिक साम्‍यता से अपने संबंधों की जड़ों की गहईयां तय करता है और संपर्क के माध्‍यमों यथा मेल, फोन आदि के माध्‍यमों से अपने आपसी संबंधों को और प्रगाढ़ बनाते जाता है, अली भईया से मेरा संबंध कुछ इसी तरह से रहा है। मैं उनके पोस्‍टों की गहराईयों में छुपे संदेशों में सदैव डूबता उतराता रहता हूं और मोबाईल वार्ता में बड़े भाई सा स्‍वाभाविक स्‍नेह उनसे पाता रहा हूं, इसलिये उनसे प्रत्‍यक्ष मिलने की इच्‍छा बलवती हो चली थी ऐसे में उनके दुर्ग आने के समाचार से मैं उत्‍साहित रहा। 11 अक्‍टू. की सुबह पाबला जी का फोन आया कि वे आज पुणे जाने वाले हैं अत: अली जी यदि आज आये तो उनसे मुलाकात हो जाती। 11 अक्‍टू. को मेरे संस्‍था प्रमुख भी प्रवास पर थे अत: मुझे काम के बीच में कुछ विश्राम की सहूलियतों की संभावना भी थी, मैंनें कहा आज का ही कार्यक्रम तय करते हैं और मोबाईल घंटियों से पहले अली भईया फिर ललित भईया, शरद कोकाश भईया, बा.कृ. अय्यर भईया, सुर्यकांत गुप्‍ता भईया से चर्चा कर मिलन कार्यक्रम तय कर लिया। मिलन की पूर्वपीठिका एवं मिलन के मजेदार पलों से आप ललित भईया और अली भईया के पोस्‍टों से रूबरू हो गए होंगें। 
11 को सुबह जल्‍दी कार्यालय के लिए निकल पड़ा, चाहता यह था कि किसी भी प्रकार से एक बजे तक भिलाई के छ़टपुट कार्यों को निबटाकर कचहरी चौंक पहुच जांउ क्‍योंकि अली भईया को मैं एक बजे वहां से पिकअप कर अपने घर लाने वाला था, भिलाई में नगर निगम में मुझे कुछ काम था वहां कार्यालय खुलते ही बीस मिनट में काम निबटाकर जैसे ही बाहर निकला तो देखा स्‍थानीय विधायक महोदय भीड़ के साथ मुख्‍य द्वार खड़े थे और दरवाजे को पुलिस नें बंद कर दिया था, मैं कुछ देर इंतजार करता रहा पर दरवाजा 12.00 तक नहीं खुला, विधायक के साथ की भीड़ नारेबाजी करती रही, मेरी धड़कने बढ़ गई। 12.30 को द्वार खुला वहां से मैं औद्योगिक क्षेत्र स्थित विद्युत मंडल के कार्यालय की और बढ़ चला वहां एक दस्‍तावेज उसी दिन जमा करना आवश्‍यक था, फिर कचहरी चौक दुर्ग की ओर सफर में मोबाईल बजते रहे वहां पहुचने में मुझे तय समय में पांच मिनट देरी हुई और अली भईया तब तक नहीं पहुचे थे। उनके आते तक मैंनें इत्‍मिनान से सांस लिया, ऐसा मेरे कार्य व्‍यवसाय में अक्‍सर होता है परिस्थियां मजबूर कर देती हैं समय की पाबंदी को झुठलाने के लिए।
वहां से मेरे घर तक 16 मोड़ों के सफर में गाईड बनते हुए और शाम तक उनके साथ रहते हुए मेरे चेहरे पर अली भईया के साथ होने की खुशी छाई रही, तय कार्यक्रम के अनुसार हम घर में भाभीश्री और मेरी श्रीमती को छोड़कर ब्‍लॉगर्स मीट के लिए वेज रेस्‍टारेंट तृप्ति की ओर प्रस्‍थान करने वाले थे किन्‍तु नानब्‍लॉगरों के लंच बाहर लेने की चाहत के कारण हम सब संयुक्‍त रूप से तृप्ति के लिए निकल पड़े। इसी बहाने भाभीश्री और मेरी श्रीमती से शरद भईया और ललित भाई का परिचय हो पाया, पाबला जी देर से आये इस कारण उनसे उनकी मुलाकात नहीं हो पाई। दोपहर से ललित भईया, शरद भईया, पाबला जी, अली भईया और मेरी आपस में बातें होती रही जो शाम होते तक खत्‍म न हुई, मैं अली भईया के पोस्‍टों पर और कुछ जनजातीय परिस्थितियों पर चर्चा करना चाह रहा था किन्‍तु हम ब्‍लॉग से हटकर आत्‍मीय पारिवारिक बातों में कुछ इस कदर खोए रहे कि इसका ध्‍यान ही नहीं आया। शाम होने पर अली भईया को विदा कहने के मूड में हम नहीं थे किन्‍तु सड़क की हालात और ट्रैफिक की भीड़ को देखते हुए हमने उन्‍हें गले मिलकर विदा किया, बड़े भाई के विशाल हृदय के मेरे दिल से मिलन की धड़कन को आज भी महसूस कर रहा हूं। 

छत्तीसगढ़ के जन-कवि स्व.कोदूराम 'दलित' की पुण्यतिथि में तीन पीढि़याँ उपस्थित

जनकवि कोदूराम ''दलित'' के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री अरुण कुमार निगम के द्वारा प्रेषित एक रपट :-
छत्तीसगढ़ के जनकवि स्व.कोदूराम 'दलित' की पुण्यतिथि नवागढ़ में स्थित शासकीय स्व.कोदूराम 'दलित' महाविद्यालय में मनाई गई.यह महाविद्यालय काफी वर्षों से नवागढ़ में स्थित है.इस बात की जानकारी दलित जी के परिवार को भी नहीं थी. महाविद्यालय के प्राचार्य , नवागढ़ के नागरिकों तथा विद्यार्थियों को यह नहीं मालूम था कि स्व.कोदूराम 'दलित' कौन है और कहाँ के हैं. जिला चिकित्सालय,दुर्ग के जिला मलेरिया अधिकारी डा. विनायक मेश्राम ने एक दिन नवागढ़ का दौरा करते हुए दलित जी का नाम महाविद्यालय के प्रवेश द्वार पर देखा और उत्सुकतावश महाविद्यालय में जाकर प्राचार्य से मिले और बताया कि दलितजी हमारे बड़े पिताजी हैं. प्राचार्य श्री इतवारीलाल देवांगन बहुत खुश हुए और उन्होंने दलितजी के बारे में विस्तृत जानकारी चाही. डा.मेश्राम ने उनका मोबाईल नंबर लेकर उन्हें आश्वस्त किया कि वे दलित जी के ज्येष्ठ पुत्र अरुण निगम से शीघ्र ही संपर्क कराएँगे. इस प्रकार मुझे अपने पिताजी के नाम पर महाविद्यालय होने कि जानकारी मिली और मैंने तुरंत ही प्राचार्य से मोबाईल पर संपर्क किया. प्राचार्य ने बताया कि वे सोलह वर्षों से वहां पदस्थ है किन्तु दलितजी के बारे में अनभिज्ञ हैं. हम न तो ग्रामवासियों को और नही विद्यार्थियों को दलितजी के बारे में कुछ बता पाते हैं. मैंने निश्चय कर लिया कि २८ सितम्बर को बाबूजी कि पुण्यतिथि नवागढ़ के महाविद्यालय में ही मनाएंगे जिससे नवागढ़वासियों को बाबूजी के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में पता चल सके. इस कार्यक्रम में हमने सपरिवार चलने का निश्चय किया. मैंने श्री दानेश्वर शर्मा जी से संपर्क कर इस सम्बन्ध में चर्चा की, उन्होंने खुश होकर स्वीकृति दे दी. आयोजन के सम्बन्ध में प्राचार्य श्री देवांगन से केवल मोबाईल पर ही चर्चा होती रही और उन्होंने स्वत: ही सारी व्यवस्था करनी शुरू कर दी.
२८ सितम्बर को हम सपरिवार श्री दानेश्वर शर्मा जी के साथ नवागढ़ पहुचे. हमारे साथ स्टेट बैंक रायपुर में कार्यरत व्यंगकार श्री उमाशंकर मिश्रा जी भी थे. शासकीय स्व.कोदूराम 'दलित' महाविद्यालय, नवागढ़ में काफी उत्सुकता और उत्साह का माहौल था. स्थानीय गणमान्य निवासी, विद्यार्थी, पत्रकार एवं महाविद्यालय के कर्मचारी उपस्थित थे. कार्यक्रम के प्रारम्भ में बाबूजी के फोटो का अनावरण किया गया. श्री दानेश्वर शर्मा ने दलितजी के व्यक्तित्व पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए कहा कि कोदूराम जी दलित ने मुझे चौथी हिंदी में पढाया है. अपने संस्मरण में उन्होंने बताया कि दलितजी मेरे शालेय जीवन के दौरान मुझे रामलीला में लक्ष्मण का अभिनय करते हुए देख लिया था. दुसरे दिन उन्‍होंनें शाला में मुझे बेंच पर खड़े होकर अपने संवाद सुनाने को कहा. इस प्रकार वे छात्रों को हमेशा प्रेरित किया करते थे. वह समय आज़ादी के पहले का था. दलितजी कविताओं और राउत नाचा के दोहों के जरिये राष्ट्रीयता कि भावना जागृत करते थे. राउत नाचा में मैंने उनका यह दोहा पढ़ा था : 'गांधीजी के छेरी भैया दिन भर में-में नरियाय रे, ओकर दूध ला पीके भैया,बुढुवा जवान हो जाये रे." इसी प्रकार उनकी ये पंक्तियाँ देखें : ''सत्य-अहिंसा के राम -बाण , गांधीजी मारिस तान-तान.'', ''खटला खोजो मोर बर, ददा-बबा सब जाव, खेखर्री सही नही, बघनिन सही लाव.
श्री दानेश्वर शर्मा ने बताया कि दलितजी बड़े विनोदी स्वभाव के थे. चर्चाओं और गोष्ठियों में उनकी चुटकियाँ हास्य प्रधान व्यंग्‍य तथा बेबाक उक्तियाँ सुनी जा सकती थी. इत्र के बड़े शौकीन थे. दलितजी खरे भी उतने ही थे. गलतियों को बर्दाश्त नही करते थे. नगरपालिका के शाला में अध्यापक होते हुए भी व्याकरण की गलती पर कालेज के प्रोफ़ेसर को भी फटकार देते थे. वैसे, वे सहृदय भी बहुत थे. एकबार ठण्ड के दिनों में मैं और दलितजी बिलासपुर के कवी सम्मलेन से लौट रहे थे. रात दो बजे के लगभग उनी कोट, मफलर, मोज़े पहने रहने के बावजूद भी मैं ठण्ड से कांप रहा था. मुझे कांपते देख कर दलितजी ने कहा- तुम्हे ठण्ड ज्यादा लग रही है, मेरी शाल ले लो. मैं हैरान हो गया. शिष्य के प्रति इस प्रकार पुत्रवत व्यवहार आज के हमारे जीवन में कल्पना से भी परे है. श्री शर्माजी ने ऐसे बहुत से संस्मरण सुनाये.
श्री दानेश्वर शर्मा के संस्मरणों के पश्चात् जनकवि कोदूराम 'दलित' क़ी ज्येष्ठ पुत्रवधू श्रीमती सपना निगम ने अपनी मधुर आवाज में कृष्ण क़ी रास लीला पर अपनी स्वरचित कविता का पाठ किया. ''ई नंदलाला, अरे गोपाला, किशन कन्हैया, तय बंशीवाला.'' इस रचना में उन्होंने कृष्ण क़ी रासलीला में ब्रम्हा, विष्णु, महेश, गणेश आदि देवी-देवताओं के सपत्नीक रासलीला में शामिल होने क़ी अद्भुत कल्पना की. श्रोताओं ने रचना को काफी पसंद किया. श्रोतागण हँसते रहे और तालियाँ बजाते रहे. मैंने बाबूजी क़ी कुंडलियों का पाठ किया. ''भाई एक खदान के सब्बो पथरा आन, कोन्हो खुंदे जाय नित, कोन्हो पूजे जाय.'' अन्य रचना ''काटत जाये कतरनी, सूजी सीयत जाय, सहे अनादर कतरनी, सूजी आदर पाय ''.साथ बाबूजी की हिंदी तथा बालोपयोगी रचनाओं का भी पाठ किया. मेरे पश्च्यात उमाशंकर मिश्र ने भी दलितजी क़ी कुंडलियों का पाठ किया. ''मुड़ी हलाये टेटका, अपन टेटकी संग.'' अन्य रचना में ''अरे खटारा साईकिल निच्चट गए बुढाए.''
दूसरे दौर में दानेश्वर शर्मा ने अपनी सदाबहार रचना ''तपतकुरू भाई तपतकुरू '',  ''सुनतो दीदी पार्वती, के साग रांधे रहे '' (छंद) सुना कर श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया. नवागढ़ के निवासियों ने कहा कि पहले तो हम जानते नही थे क़ी कोदूराम ''दलित' कौन हैं. आज इस कार्यक्रम के आयोजन से हम उनकी महानता से परिचित हो गए हैं. हमें गर्व हो रहा है कि कोदूराम ''दलित' हमारे ही दुर्ग जिले के हैं. मेरी माँ श्रीमती सुशीला निगम ने इस आयोजन के लिए महाविद्यालय और नवागढ़वासियों का आभार प्रकट किया. मेरे छोटे भाई हेमंत निगम ने प्राचार्य श्री देवांगन का शाल श्रीफल से सम्मान किया. कार्यक्रम में मेरे छोटे भाई की धर्मपत्नी श्रीमती नंदा निगम, अपने बच्चों निति, कृति और दीप के साथ उपस्थित थी. मेरा छोटा पुत्र अभिषेक निगम और भांजी शुभा मस्तुरिया ने आयोजन को सफल बनाने में अपना उत्कृष्ट सहयोग दिया. इस प्रकार उक्त आयोजन में कोदूराम ''दलित'' कि तीन पीढि़याँ उपस्थित रहीं. कार्यक्रम की सफलता में ग्राम टिकरी के श्री प्रवीण लोन्हारे(वर्तमान में बेमेतरा में पदस्थ) की भूमिका अविस्मर्णीय रही. कार्यंक्रम की समाप्ति पर हमने बाबूजी की कविताओं का संग्रह ''बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय'' का वितरण सभी को किया.
अरुण कुमार निगम
एच.आई. जी.१/२४
आदित्य नगर,दुर्ग.
मोबाईल-9907174334

अरपा पैरी के धार ..... छत्‍तीसगढ़ के पत्रकार इसे अवश्‍य पढें

छत्‍तीसगढ़ राज्‍य के भव्‍य स्‍थापना समारोह की तैयारियों के बीच समाचार पत्रों के द्वारा राज्‍य के थीम सांग के संबंध में समाचार जब प्रकाशित हुए तो छत्‍तीसगढ़ के संस्‍कृतिधर्मी मनीषियों को खुशी के साथ ही बेहद आश्‍चर्य हुआ। कतिपय समाचार पत्रों के स्‍थानीय पत्रकारों ने प्रदेश के प्रसिद्ध गीत 'अरपा पैरी के धार ...' के गीतकार के रूप में लक्ष्‍मण मस्‍तूरिहा का नाम छापा। यह भूल कैसे समाचार पत्रों में छपा यह पता ही नहीं चला, एक समाचार पत्र को देखकर दूसरे समाचार पत्र भी यही छापते रहे और अपने प्रादेशिक ज्ञान (अ) का झंडा फहराते रहे, किसी ने भी प्रदेश के संस्‍कृति विभाग या किसी साहित्‍य-संस्‍कृति से जुडे व्‍यक्ति से पूछने की भी जहमत नहीं उठाई।
हम इन दिनों कुछ व्‍यस्‍त रहे इस कारण अखबारों को भी पलटकर नहीं देख पाये, हमें इसकी संक्षिप्‍त जानकारी भाई श्‍याम उदय 'कोरी' से दो लाईना चेटियाते हुए हुई और उसके दूसरे दिन व्‍यंग्‍यकार व कवि राजाराम रसिक जी से ज्ञात हुआ कि डॉ.परदेशीराम वर्मा जी नें इस पर अपना विरोध जताते हुए सभी समाचार पत्रों के संपादकों से संपर्क भी किया। कुरमी समाज नें भी इसका जोरदार विरोध किया किन्‍तु इसके बावजूद लगातार इस गीत के गीतकार के रूप में लक्ष्‍मण मस्‍तुरिहा का नाम छापा गया, बाद में जब प्रदेश के बुद्धिजिवियों नें सामूहिक रूप से इसका विरोध किया तो करेले में नीम चढा टाईप हेडिंग से समाचार छपने लगे कि 'नहीं छंटा कुहासा अरपा पैरी के धार के गीतकार का' या 'अरपा पैरी के धार के गीतकार के संबंध में विवाद'। अभी कल ही एक समाचार पत्र में इस तरह के हेडिंग लगे थे।
दुख है कि छत्‍तीसगढ़ में पत्रकारिता करने के बावजूद इस लोकप्रिय गीत के गीतकार के नाम को कतिपय पत्रकारों नें न केवल गलत लिखा बल्कि अब भी स्‍वीकार करने को तैयार नहीं हैं। प्रदेश की कला-संस्‍कृति व साहित्‍य का सामान्‍य ज्ञान तो प्रदेश में पत्रकारिता करने वाले हर पत्रकार को होना चाहिए यदि नहीं है तो अपना ज्ञान बढ़ाना चाहिए। उन सभी समाचार पत्रों नें व उसके पत्रकारों नें ऐसा लिखकर संपूर्ण प्रदेश की जनता का दिल दुखाया है। यदि वे पत्रकार अपनी इस भूल को सुधारना चाहते हैं तो इस गीत के गीतकार आचार्य डॉ.नरेन्‍द्र देव वर्मा जी को 8 सितम्‍बर को उनकी पुण्‍यतिथि पर हृदय से श्रद्धांजली अर्पित करें।
यदि आप भी 'अरपा पैरी के धार ...' के गीतकार आचार्य डॉ.नरेन्‍द्र देव वर्मा के संबंध जानना चाहते हैं तो पढ़ें :-
"४ नवंबर १९३९ से ८ सितंबर १९७९ को बीच केवल चालीस वर्ष में, अपनी सृजनधर्मिता दिखाने वाले आचार्य डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा, वस्तुत: छत्तीसगढ़ी भाषा-अस्मिता की पहचान बनाने वाले गंभीर कवि थे । हिन्दी साहित्य के गहन अध्येता होने के साथ ही, कुशल वक्ता, गंभीर प्राध्यापक, भाषाविद् तथा संगीत मर्मज्ञ गायक भी थे । .......... डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा को स्मरण करना, छत्तीसगढ़ी भाषा की पुख्ता नींव को स्मरण करना है । वे छत्तीसगढ़ी लोककला के प्रेमी, लोक संस्कृति के गायक और छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य की परंपरा को समृद्ध करने वाले महत्वपूर्ण हस्ताक्षर थे ।"
- डॉ. सत्यभामा आड़िल
"मुंशी प्रेमचंद और रेणु के कथा संसार से जुड़कर हर संवेदनशील छत्तीसगढ़ी पाठक को यह महसूस होता था कि छत्तीसगढ़ में बैठकर कलम चलाने वालों के साहित्य में हमारा अंचल क्यों नहीं झांकता । छत्तीसगढ़ी में लिखित साहित्य में तो छत्तीसगढ़ अंचल पूरे प्रभाव के साथ उपस्थित होता है लेकिन हिन्दी में नहीं । इस बड़ी कमी को कोई छत्तीसगढ़ महतारी का सपूत ही पूरा कर सकता था । साप्ताहिक हिन्दुस्तान में तीस वर्ष पूर्व जब सुबह की तलाश उपन्यास जब धारावाहिक रूप से छपा तब हिन्दी के पाठकों को लगा कि छत्तीसगढ़ में भी रेणु की परंपरा का पोषण अब शुरू हो चुका है । ....... ‘सुबह की तलाश’ एक विशिष्ट उपन्यास है जिस पर पर्याप्त चर्चा नहीं हुई । छत्तीसगढ़ी लेखकों पर यूं भी देश के प्रतिष्ठित समीक्षक केवल चलते-चलते कुछ टिप्पणी भर करने की कृपा करते हैं । जिन्हें छत्तीसगढ़ की विशेषताओं की जानकारी है वे राष्ट्रीय स्तर के समीक्षक नहीं हैं । और जो राष्ट्रीय परिदृश्य पर अपनी समीक्षा दृष्टि के लिए जाने जाते रहे हैं उन्हें छत्तीसगढ़ की आंतरिक विलक्षणता कभी उल्लेखनीय नहीं लगी । संभवत: वे इसे सही ढ़ंग से जान भी नहीं पाये । फिर भी डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा ने अपनी ताकत का अहसास करवाया । वे हार कर चुप बैठ जाने वाले छत्तीसगढ़ी नहीं थे । राह बनाने के लिए प्रतिबद्ध माटीपुत्र थे । उन्होंने महसूस किया कि सुबह की तलाश को कुछ लोगों ने ही पढ़ा । लेकिन उसकी अंतर्वस्तु ऐसी है कि कम से कम समग्र छत्तीसगढ़ उसे जाने समझे ।"
- डॉ. परदेशीराम वर्मा
स्वामी आत्मानंद ने अपने अनुज डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा के बारे में मरणोपरांत लेख लिखा है । वे लिखते हैं कि सोनहा बिहान की चतुर्दिक ख्याति की खबरें सुनकर वे भी इसकी प्रस्तुति देखने के लिए लालायित हो उठे १९७८ के अंत में महासमुंद में एक प्रदर्शन तय हुआ । स्वामी जी को डाक्टर साहब ने बताया कि आप चाहें तो उस दिन प्रदर्शन देख सकतें हैं । महासमुंद में विराट दर्शक वृंद को देखकर स्वामी जी रोमांचित हो उठे । उनके भक्तों ने उन्हें विशिष्ट स्थान में बिठाने का प्रयत्न किया लेकिन डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा ने स्वामी जी को दर्शकों के बीच जमीन पर बैठकर देखने का आग्रह किया । स्वामी जी उनकी इस व्यवस्था से अभिभूत हो उठे । उन्होंने उस घटना को याद करते हुए लिखा है – ‘नरेन्द्र तुम सचमुच मेरे अनुज थे ।‘
प्रकाशित रचनांए :- प्रयोगवाद, हिन्दी स्वच्छन्दतावाद पुनमूल्यांकन, आधुनिक पाश्चात्य काव्य और समीक्षा के उपादान,  नयी कविता सिध्दांत और सृजन, हिन्दी नव स्वच्छन्दतावाद, अज्ञेय और समकालीन , मुक्तिबोध का काव्य,  प्रगीतकार अंचल और बच्चन, छत्तीसगढ़ी भाषा का उद्विकास।
प्रकाशित उपन्यास :- सुबह की तलाश ' साप्ताहिक हिन्दुस्तान में धारावाहिक रुप से प्रकाशित तदपश्‍चात राजपाल एण्‍ड संस प्रकाशन दिल्ली द्वारा पुस्तकाकार प्रकाशित व कई विश्‍वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में सम्मिलित.  इसका दूसरा संस्करण रचना प्रकाशन, इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित हुआ।
प्रकाशित काव्य संग्रह :-  अपूर्वा
अनुदित ग्रन्थ :- मोंगरा, श्री माँ की वाणी, श्री कृष्ण की वाणी, श्री राम की वाणी, बुध्द की वाणी, ईसा मसीह की वाणी, मुहम्मद पैगम्बर की वाणी, आधुनिक काव्य संकलन, छायावादोत्तर काव्य संकलन
अप्रकाशित ग्रन्थ :-  हिन्दी वर्तनी के मानकीकरण की समस्याएँ और समाधान (डी. लिट की उपाधि के लिए प्रस्तावित शोध प्रबंध लगभग पूर्ण है।)
प्रकाशित साहित्यिक शोधपत्र :- प्रयोगवादी समीक्षा, नयी कविता और नये स्वर, नन्ददुलारे बाजपेयी और रामचन्द्र शुक्ल के समीक्षा सिध्दांत, आचार्य बाजपेयी, प्रयोगवाद : नये निबंध में प्रकाशित, मुक्तिबोध का आलोचना दर्शन, अतर्विरोधों के कवि मुक्तिबोध : ज्ञानोदय, मानव वैशिष्टय और आत्मविश्वास, अर्थ की लय, मुक्बिोध का आत्मान्वेषण, आधुनिक भावबोध और अंचल का काव्य, आधुनिकता बात तत्वबोध की, हीनता का बोध : एडलर, मानसिक उर्जा, फायर्ड की कलाचिंतन, कला का माक्र्सवादी विवेचन, कला कुछ आरंभिक जिज्ञासाएं, मुक्तिबोध के काव्य की सृजन प्रकिया, आधुनिक राष्ट्रीय चेतना और साहित्य, व्यक्ति, समाज और जगत, छत्तीसगढ़ी साहित्य अतीत से वर्तमान, मनोवैज्ञानिक कथाकार जैनेन्द्र और अज्ञेय, छत्तीसगढ़ी हाना, छत्तीसगढ़ी का गद्य साहित्य, आधूनिकता कुरो तत्वबोध को, छैगो सांगलो, नेपाली भाषा में मुद्रित।
प्रकाशित भाषा वैज्ञानिक शोधपत्र :- हिन्दी और बघेली का भाषा कालक्रम वैज्ञानिक अध्ययन, हिन्दी और अवधी का शब्दसाख्यिकीय अध्ययन आदि. 

आचार्य डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा जी के संबंध में जानकारी यहां भी है। 

सफर में हमसफर के पदचाप की आवाज साथ है

साथियों हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत के आरंभिक दौर से लेकर अभी तक छत्‍तीसगढ़ी माटी की छटा बिखेरने के उद्देश्‍य से प्रथमत: आवारा बंजारा में फिर आरंभ में आलेख प्रकाशित होते रहे हैं। हम अपनी प्रादेशिक सांस्‍कृतिक-परंम्‍पराओं व कला-साहित्‍य के संबंध में अपने ब्‍लॉग में जानकारी परोस कर स्‍वांनंदित होते रहे हैं। भारत व विश्‍व के कोने कोने के हिन्‍दी इंटरनेट पाठक जब हमारी परंपराओं के प्रति उत्‍सुकता जाहिर करते हैं तो हमारा उत्‍साह और दुगना हो जाता है। इसी उत्‍साह से हमने क्षेत्रीय लेखकों-संपादकों के पत्र-पत्रिकाओं, संग्रहों व रचनाओं के ढेरों पन्‍नों को काफी समय देते हुए यूनिकोड कनर्वट किया, टाईप किया और हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत में ढेरों ब्‍लॉग पोस्‍ट दर पोस्‍ट बनाकर उसे उन्‍ही के नाम से पब्लिश किया है, जिसकी सूची काफी लम्‍बी है जिसके बावजूद हम अभी भी असंतुष्‍ट हैं। जब भाई लोग अपने पोस्‍टों की संख्‍या के संबंध में ब्‍लॉगिंग परम्‍पराओं के अनुसार पोस्‍ट लिखते हैं तब हमें भी अपने द्वारा पब्लिश पोस्‍टों की संख्‍या को भी जताने-बताने को जी चाहता है :) ..... किन्‍तु अपनी-अपनी खुशी, बड़े ब्‍लॉगर भाई लोग ऐसा करते हैं क्‍योंकि उन्‍हें इससे ब्‍लॉग उर्जा मिलती है। हमें तो ब्‍लॉगिंग की प्रेरणा अग्रज जयप्रकाश मानस से मिली है जिन्‍होंनें बिना हो हल्‍ला किए हिन्‍दी वीकि में छत्‍तीसगढ़ के पेज को समृद्ध करते हुए कई क्षेत्रीय उपन्‍यासों व संग्रहों को ब्‍लॉग के सहारे नेट प्‍लेटफार्म दिया और जनसुलभ किया है।
हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत में छत्‍तीसगढ़ के ब्‍लॉगरों की संख्‍या यद्धपि दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ी है किन्‍तु छत्‍तीसगढ़ के उपलब्‍ध साहित्‍य, कला व संस्‍कृति से संबंधित आलेखों व रचनाओं को लगन के साथ पोस्‍टों में प्रस्‍तुत करने वालों की गिनती सदैव कम रही है जबकि हम ऐसे पोस्‍टों की अपेक्षा निरंतर करते रहे हैं ताकि प्रादेशिक जानकारी का फैलाव हो सके। निरंतर क्षेत्रीय सामयिक चिंतन प्रस्‍तुत करने वालों में अमीर धरती गरीब लोग, अग्रदूतबिगुलसरोकार, अपनी बात अपनो से, बस्‍तर सहित बहुतों नें जहां प्रदेश की खुशबू बिखेरी है वहीं अभी हाल ही में लोगों के दिलों में छा जाने वाले सिंहावलोकन नें तथ्‍यात्‍मक प्रादेशिक जानकारी के साथ ही राष्‍ट्रीय विमर्श भी प्रस्‍तुत किया है। हमें भविष्‍य में सिंहावलोकन पर हमारी परिकल्‍पना के अनुरूप छत्‍तीसगढ की छवि प्रस्‍तुत होने का भरोसा है। हाल ही में ब्‍लॉग जगत में आये ब्‍लॉग छत्‍तीसगढ़ी गीत संगी नें तो हमारे मन की मुराद पूरी कर दी है, इसमें छत्‍तीसगढ़ी गीतों का अनमोल खजाना बूंद बूद कर भरा जा रहा है। इसी क्रम में कुछ वर्षों पूर्व प्रशांत रथ द्वारा छत्‍तीसगढ़ी बोली का एक पाडकास्‍ट भी शुरू किया गया था किन्‍तु यह ब्‍लॉग निरंतर नहीं रहा हमें छत्‍तीसगढ़ से पाडकास्‍ट ब्‍लॉग का भी इंतजार रहा है जिसे पूरा करने का भरोसा दिला रही है, संज्ञा टंडन जी अपने पाडकास्‍ट ब्‍लॉग एलएमजी पाडकास्‍ट में, जिसमें संज्ञा जी नें स्‍वयं इस जादुई माध्‍यम के संबंध में बतलाते हुए अपने ब्‍लॉग का आगाज किया है। इस ब्‍लॉग में छत्‍तीसगढ़ के प्रख्‍यात भाषाविद व रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ.रमेश चंद्र महरोत्रा की आवज में उनकी स्‍वयं की कविता भी प्रस्‍तुत है। आशा है भविष्‍य में हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत में हमारी परिकल्‍पनाओं के विषय प्रस्‍तुत होते रहेंगें और हमें लम्‍बा ब्रेक मिलता रहेगा। 

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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...