धूप की नदी: कील कॉंटे और कमन्द

वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, कवि, पत्रकार सतीश जायसवाल जी का हालिया प्रकाशित यात्रा संस्मरण ‘कील कॉंटे कमन्द’ की चर्चा चारो ओर बिखरी हुई है। मैं बहुत दिनों से इस जुगत में था कि अगली बिलासपुर यात्रा में श्री पुस्तक माल से इसकी एक प्रति खरीदूं किन्तु उच्च न्यायालय के शहर से पहले स्थापित हो जाने के कारण, प्रत्येक दौरे में शहर जाना हो ही नहीं पा रहा था और किताब पढ़ने की छटपटाहट बढ़ते जा रही थी। इसी बीच कथा के लिए दिए जाने वाले प्रसिद्ध वनवाली कथा सम्मान से भी सतीश जायसवाल जी नवाजे गए। दो-दो बधाईयॉं ड्यू थी, और हम सोंच रहे थे कि अबकी बार बधाई वर्चुवल नहीं देंगें, उन्हें भिलाई बुलाते हैं और भिलाई साहित्य बिरादरी के साथ उन्हें बधाई देते हैं। जब वे बख्शी सृजन पीठ के अध्यक्ष थे तो भिलाई उनका निवास था इस कारण उनका लगाव भिलाई से आज तक बना हुआ है। शायद इसी जुड़ाव के कारण उन्होंनें हमारा अनुरोध स्वीकार किया। वो आए और भिलाई साहित्य बिरादरी के साथ एक सुन्दर आत्मीय मिलन का कार्यक्रम हुआ। इस कार्यक्रम की चर्चा फिर कभी, इस कार्यक्रम से ‘कील कॉंटे कमन्द’ में आवरण चित्रांकन करने वाली डॉ.सुनीता वर्मा जल्दी चली गयीं। प्रकाशक नें उनके लिए ‘कील कॉंटे कमन्द’ की एक प्रति सतीश जायसवाल जी के माध्यम से भेजा था, वह प्रति तब बतौर हरकारा मेरे माध्यम से भेजा जाना तय हुआ। किताब उन तक पहुचाने में विलंब हो रहा था और पन्ने फड़फड़ाते हुए आमंत्रित कर रहे थे कि पढ़ो मुझे।


स्कूल के दिनों में स्कूल खुलने के तत्काल बाद और नई पुस्तक खरीद कर जिल्द लगाने के पहले, नई किताबों से उठते महक को महसूस करते, हिन्दी विशिष्ठ में लम्बे और अटपटे से लगते नाम के लेखक की रचना ‘नीलम का सागर पन्ने का द्वीप’ को हमने तीस साल पहले पढ़ा था। बाद में हिन्दी के अध्यापक नें बताया था कि यह यात्रा संस्मरण है। जीवंत यात्रा संस्मरणों से यही हमारी पहली मुलाकात थी, बाद के बरसों में वाणिज्य लेकर पढ़ाई करने के बावजूद मैं हीरानंद सच्चिदानंद वात्सायन ‘अज्ञेय’ को बूझने का प्रयास उनकी कृतियों में करते रहा। पत्र-पत्रिकाओं में अन्यान्य विधाओं के साथ कुछेक यात्रा संस्मरण भी पढ़े, किन्तु अज्ञेय का वह जीवंत संस्मरण आज तक याद रहा। और यह कहा जा सकता है कि यात्रा संस्मरणों के प्रति मेरी दिलचस्पी बढ़ाने में वह एक कारक रहा। 

आदिवासी अंचल का यात्रा संस्मरण हाथ में था और जब हमने उसे खोला तो हमारी आंखें इस लाईन पर जम गई ‘... आखिरकार, यह एक रचनाकार का संस्मरण है। इसमें रचनाकार की अपनी दृष्टि और उसकी आदतें भी शामिल है।’ लगा किताब मुझे, अपने विशाल विस्तार में गोते लगाने के लिए बुला रही है। गोया, लेखक नें भी इस विस्तार को कई बार धूप की नदी के रूप में अभिव्यक्त किया है। आदिवासी अंचल की जानकारी, यात्रा विवरण, रचनाकार की दृष्टि एवं रचनाकार की आदतें सब एक साथ अपने सुगढ़ सांचे में फिट शब्दों के रूप में आंखों से दिल में उतर रहे थे। दिल में इसलिए कि रचनाकार नें किताब को अपने मित्र को समर्पित करते हुए लिखा ‘अपनी उस बेव़कूफ सी दोस्त के लिए जिसकी दोस्ती मैं सम्हाल नहीं पाया और अब उसका पता भी मेरे पास नहीं ...।’ इसे पढ़नें के बाद इतना तो तय हो जाता है कि आगे किताब के पन्नों पर दिल धड़केगा, रूमानियत और इंशानी इश्क की पोटली से उठती खुश्बू अलिराजपुर के मेले से होते हुए भोपाल तक महकेगी। 

लेखक किताब की भूमिका में बताते हैं कि मध्य प्रदेश साहित्य परिषद द्वारा प्रदेश के 16 वरिष्ठ साहित्यकारों को आदिवासी क्षेत्रों में अध्ययन के लिए भेजा गया था। लेखक नें अपनी स्वेच्छा से आदिवासी क्षेत्र झाबुआ अंचल को अध्ययन के लिए चुना और यह संस्मरण उसी अध्ययन का प्रतिफल है। लेखक अपनी भूमिका में ही नायिका हीरली और नायक खुमfसंग का हल्का सा चित्र खींचते हैं। आदिवासी झाबुआ के भगोरिया मेले में आदिवासी बालायें प्रेमियों के साथ भागकर व्याह रचाती हैं। हीरली भी इसी मेले में अपने पहले पति को छोड़कर खुमfसंग के साथ भागी थी। आगे बढ़ते हुए लेखक स्पष्ट करते हैं कि यह किताब नृतत्वशास्त्रीय अध्ययन के लिए नही है। 

अपनी बातें शुरू करने के पहले वे एक कविता भी प्रस्तुत करते हैं जिसमें fसंदबाद, मार्कोपोलो, ह्वेनसांग, फाह्यान व राहुल सांकृत्यायन के बाद की कड़ी में अपने आप को रखते, यायावरों की सांस्कृतिक परम्पराओं का निर्वाह करते हुए, अपरिचित ठिकानों से हमें परिचित भी कराते चलते हैं। लेखक यात्रा का पता ठिकाना बताते हुए अपने शब्दों के साथ ही पढ़नें वाले को भी झाबुआ के दिलीप fसंह द्वारा से आदिवासी भीलों की आदिम सत्ता में प्रवेश कराते हैं जहां आदिवासी भीलों की अपनी आचार संहिता है। साथ है आनंदी लाल पारीख , जो प्रसिद्ध छायाकार है और गुजरात, राजस्थान की सीमा से लगे मध्य प्रदेश के इस आदिवासी भूगोल के चप्पे चप्पे के जानकार हैं। अरावली पर्वत से गलबईहां डाले अनास और पद्मावती नदी के कछारों व पहाड़ों में समय के मंद आंच में निरंतर fसंकती भीलनियों के साथ ‘डूंगर खॉंकरी’ व ‘ग्वाल टोल’ खेलते हुए। कपास धुनकिए के आवाज में धुन मिलाते हुए भटकते हुए। 

किताब के शीर्षक कील कॉंटे कमन्द के साथ लेखक उस लापता मित्र वीणा परिहार से भी मिलवाते हैं जो असामान्य कद की लम्बी महिला हैं और कटे बालों के साथ झाबुआ के महाविद्यालय में प्राध्यपक हैं। लेखक नें यद्यपि उनका कद किसी फीते में नापा नहीं है किन्तु साथ चलते हुए परछाइयों में उसका यह कद दर्ज हुआ है। वह अंग्रेजी साहित्य में चर्चित शब्द ‘हस्की वॉइस्ड’ सी लगती है किन्तु लेखक उसकी प्रशंसा करते सकुचाते हुए से कहते हैं ‘... हमारे सामाजिक शिष्टाचार की संहिता में ‘सेक्सी ब्यूटी’ को ‘काम्पलीमेंट’ (प्रशंसा) अथवा ‘एप्रीशिएट’ (सराहना) करना तक जोखिम से भरा हो सकता है।’ लेखक के इस वाक्यांश से वीणा परिहार को समझ पाना आसान हो उठता है। सुकून मिलता है जब पता चलता है कि सुदूर कानपुर उत्तर प्रदेश से मध्यप्रदेश के आदिवासी अंचल में अकेली रहती उस अकेली लड़की के अकेलेपन में उसका ईश्वर भी हैं।

सफर के पहले पड़ाव के रूप में गझिन अमराई, पद्मावती नदी, काकनवानी, चाक्लिया गॉंव, चोखवाड़ा गढ़ी के आसपास के आदिवासी fस्त्रयों के स्तन-सूर्य का आख्यान, उनकी संस्कृति, सौंदर्यानुभूति को छूते हुए, मालवा के पारंपरिक दाल बाफले और चूरमे के सौंधी महक और भूख के साथ दिया बाती के समय में, जरायम पेशा भीलों की बस्ती बालवासा गॉंव मे, जब लेखक पहुचता है, तो ढ़िबरियों की रौशनी में गॉंव का सरपंच और लेखक का मेजबान रामसिंग कहीं खो जाता है। रामसिंग राजस्थान के किसी गॉंव में हालिया डाका डालकर यहॉं छुपा बैठा है और पुलिस उसे तलाश रही है। लेखक अपने यात्रा के सामान के साथ गॉंव में भोजन के लिए जलते लकड़ी के चूल्हे के बहाने परिवार की एकजुटता और परिभाषा की कल्पना करता है।

मेजबान रामसिंग के व्यक्तित्व की बानगी करते हुए लेखक उस अंचल के भीलों के जीवन में झांकते हैं। घटनाओं को जीवन और कल्पनाओं से जोड़ते हैं। यादों में झाबुआ के इस बीहड़ गॉंव में यात्रा प्रारंभ करने के पूर्व झाबुआ कलेक्टर के नाम जारी म.प्र.साहित्य परिषद एवं अदिवासी कल्याण विभाग से जारी अध्ययन यात्रा में सहयोग करने की अनुशंसा पत्र की अहमियत पर सवाल उठाते हैं। उस पत्र की फटी पुर्जी के पृष्ट भाग पर अपना नाम लिखकर कलेक्टर से मिलने के लिए भिजवाते हुए इस व्यवस्था को सिर झुकाकर स्वीकार भी करते हैं। 

किताब की नायिका हीरली के गॉंव गुर्जर संस्कृति से ओतप्रोत, अलिराजपुर में भीलों के धातक घेरे का विश्लेषण करते हुए बताते हैं कि कैसे भीलनी हीरली नें अपने पहले पति को छोड़कर अपने प्रेमी के साथ भागी थी और उसके भाई नें जब उसके प्रेमी को मारने के लिए तीर छोड़ा था तो वह सामने आ गई थी, उसके शरीर को बेधते हुए पांच तीर लगे थे और वह आश्चर्यजन रूप से बच गई थी। ताड़ी के मदमस्त नशे में होते अपराध, नशे के कारण होते अपनों के बीच की मार काट, सजा आदि की पड़ताल किताब में होती है। fहंसा के विरूद्ध प्रेम की सुगंध दृश्य अदृश्य रूप से महकता है।

लंका जैसे भौगोलिक आकृति के गॉंव साजनपुर में ताहेर बोहरा की कहानियॉं यत्र तत्र बिखरी हैं, खतरे वाले 16 किलोमीटर के घेरे में बिखरे इन कहानियों को लेखक बटोरता है और सीताफल की दो टोकरियॉं साथ लेकर लौटता है। लेखक चांदपुर, छोटा उदयपुर, छकतला गॉंव व नर्मदा बचाओ आन्दोलन के नवागाम बांध को समेटते हुए कर्मचारियों के स्थानांतरण के हेतु से सिद्ध कालापानी क्षेत्र के गांव मथवाड़ जहॉं भिलाला आदिवासियों की आबादी है, से साक्षात्कार कराता है। झाबुआ के लघुगिरिग्राम माने हिल रिसोर्ट आमखुट की यात्रा रोचक है। लेखक का 100 वर्ष पुराने चर्च की मिस ए.हिसलॉप यानी मिस साहेब से विक्टोरियन शैली की मकान मे मुलाकात, आदिवासी अंचलों में हो रहे धर्मांतरण के नये अर्थ गढ़ते हैं। केरल से आकर पुरसोत्तमन का वहॉं आदिवासियों के बीच काम करना, कुलबुलाते प्रश्न की तरह उठता है जिसका जवाब वे स्वयं देते हैं ‘... आदिवासी असंतोष और पृथकतावादी आन्दोलनों के आपसी रिश्ते मुझे एक त्रिकोण में मिलते हुए दिख रहे थे।’ आमखुट में विचरते हुए चंद्रशेखर आजाद भी सोरियाये जाते हैं, यहॉं अलिराजपुर और जोबट के बीच छोटी सी बस्ती भाबरा है जहॉं चंद्रशेखर आजाद का जन्म हुआ था। ऐसी कई नई जानकारियॉं हौले से बताते हुए वे इस तरह शब्दों के माध्यम से यात्रा में साथ ले चलते हैं कि समूचा परिदृश्य जीवंत हो उठता है।

मानव स्वभाव है कि वह अनचीन्हें को अपने आस पास के प्रतीकों से जोड़ता है, शायद इसीलिए वे पूरी यात्रा में वहॉं के स्थानों, व्यक्तियों से छत्तीसगढ़ की तुलना करना नहीं भूलते जिसके कारण अनचीन्हें परिदृश्य बतौर छत्तीसगढ़िया मेरे लिए सुगम व बोधगम्य हो उठते हैं। किताब पढ़ते हुए लगता है कि लिखते हुए अंग्रेजी साहित्य उनके जेहन में छाए रहता है वे कई जगह अंग्रजी साहित्य के चर्चित पात्रों व घटनाओं को यात्रा के दौरान के पात्रों और घटनाओं से जोड़ते हैं। शिविर समेटते हुए उनके लेखन में झाबुआ कलेक्टर के साहित्य के प्रति घोर अरूचि और आई.ए.एस. प्रशिक्षार्थी विमल जुल्का का साहित्य प्रेम भी प्रगट होता है जो नौकरशाहों की संवेदनशीलता का स्पष्ट चित्र खींचता है। यात्रा में कई सरकारी व असरकारी सहयोगियों का उल्लेख आता है जिनमें से लेखक आदिवासी लोक के चितेरे झाबुआ क्षेत्रीय ग्रामीण बैक के अध्यक्ष सुरेश मेहता का उल्लेख करते हैं जो संभवतः वही हैं जिनके साथ लेखक नें बस्तर के घोटुलों की यात्रा की थी। लोक कलाओं, परंपराओं और संस्कृतियों पर चर्चा करते हुए वे झाबुआ के कपड़े और तिनके से कलात्मक गुड़िया के निर्माण को कोट करते हैं जो झाबुआ के लोक कला को अंतर्राष्‍ट्रीय पहचान देनें में सक्षम है। इस पर जमीन से जुड़ाव के मुद्दे पर कहते हैं कि ‘.. लोक कलाओं को उसके नैसर्गिक परिवेश से अलग करके उनकी सहज स्वाभाविकता में ग्रहण नहीं किया जा सकता।’ 

यात्रा के दौरान बिम्बों, प्रतीकों, परम्पराओं के माध्यम से वे आदिवासी अंचल का विश्लेषण करते हैं। छोटी सी छोटी और नजरअंदाज कर देने वाली बातों, घटनाओं से भी वे चीजें बाहर निकालते हैं। वे नदी पार करते हुए नदी में पानी भरने आई भीलनियों के पात्रों से भी भीलों की सामाजिक आर्थिक संरचना का अंदाजा लगाते हैं। कल कल करती नदी को धूप की नदी कहते हैं, यह उनकी अपनी दृष्टि है एवं कल्पना है जिसके विस्तार का नाम है कील काटे कमन्द।

संजीव तिवारी
14.04.2014

कील कॉंटे कमन्द
सतीश जायसवाल
प्रकाशक मेधा बुक्स, एक्स 2, 
नवीन शाहदरा, दिल्ली 110 032, 
फोन 22 32 36 72
प्रथम संस्करण, पृष्ट 140, 
हार्ड बाउंड, मूल्य 200/- 
आवरण चित्र डा.सुनीता वर्मा

सतीश जायसवाल
कृतियॉं - 
कहानी संग्रह - जाने किस बंदरगाह पर, धूप ताप, 
कहॉं से कहॉं, नदी नहा रही थी
बाल साहित्य - भले घर का लड़का, हाथियों का सुग्गा
मोनोग्राफ - मायाराम सुरजन की पत्रकारिता पर केfन्र्गत
संपादन - छत्तीसगढ़ के शताधिक कवियों की कविताओं का संग्रह कविता छत्तीसगढ़ 

विनोद साव के कथा संग्रह ’तालाबों ने उन्हें हंसना सिखाया’ पर चर्चा गोष्ठी संपन्न



लिटररी क्लब, भिलाई के तत्वावधान में वरिष्ठ साहित्यकार विनोद साव के नव प्रकाशित कथा संग्रह ’तालाबों ने उन्हें हंसना सिखाया’ पर चर्चा गोष्ठी संपन्न हुई. दुर्ग, भिलाई और रायपुर के ख्यातनाम कहानीकारों के बीच संपन्न गोष्ठी में मुख्य अतिथि उपन्यासकार तेजिंदर ने कहा कि ‘विनोद साव की कहानियों में लेखक की समृध्द भाषा और स्थितियों पर उनकी सूक्ष्म अवलोकन दृष्टि ने कथ्य की कमी को महसूस न होने देते हुए कहानियो की पठनीयता को बढ़ा दिया है.’ अध्यक्षता कर रही डॉ. उर्मिला शुक्ल ने कहा कि ‘लेखक के संग्रह की चार प्रेम कथाओं में आज का सच बोलता है जहां यह समाज के प्रौढ़ वर्ग के विवाहेत्तर संबधों को कटघरे में खड़े करता है.’ 

प्रसिद्ध कथाकार परदेशी राम वर्मा ने अपने आलेख में कहा कि ‘विनोद साव व्यंग्यकार के रूप में पर्याप्त यश और सम्मान अर्जित करने के बाद कहानी लेखन के क्षेत्र में आये, इसीलिये कहानी की भाषा में एक विलक्षण सधाव है. उनका कथानक चेखव की तरह और कहने की कला विनोद कुमार शुक्ल की तरह है.’ प्रगतिशील कथाकार लोकबाबू ने कहा कि ‘विनोद की कहानियों में भाषा बहुत सुन्दर है और इसे संग्रह की पहली कहानी ‘तुम उर्मिला के बेटे हो’ में बखूबी देखा जा सकता है. युवा कथाकार कैलाश बनवासी ने कहा कि ‘वह, पत्नी और लंबी सड़क’ पढकर लगता है कि लेखक प्रयोगधर्मी है और कहानी के फार्मेट को तोड़ने को तत्पर है.’ कवि एवं समीक्षक अशोक सिंघई ने कहा कि ‘संग्रह की हर कहानी में एक लिरिकल सौंदर्य है. ‘कहानी - ‘मैं दूसरी नहीं होना चाहती’ किशोर प्रेम की एक गीतमय अभिव्यक्ति है.’ 

कथाकारा मीता दास ने कहा कि ‘औरत की जात’ कहानी संग्रह की सबसे शक्तिशाली कथा है जिसमें स्त्री के मनोभावों के शब्द चित्र बखूबी उतारे गए हैं. गोष्ठी में डॉ. नलिनी श्रीवास्तव व प्रेस क्लब-भिलाई के अध्यक्ष शिवनाथ शुक्ल ने भी विचार व्यक्त किये. आरम्भ में स्वागत भाषण लिटररी क्लब के अध्यक्ष त्र्यम्बक राव साटकर ने दिया. संचालन सत्यवान नायक ने किया. अंत में आभार व्यक्त महासचिव शेख निजाम राही ने किया. 

एनटीपीसी बिजलीƒ घर के लिए जमीनों की अवैध खरीदी बिक्री


अब तक 4 सौ करोड़ का मामला सामने आया, 14 सौ 6 मामले निरस्त करने की कार्रवाई शुरू 



कलेक्‍टर की पहल पर सामने आया भूमि घोटाला

रायगढ़, 6 अप्रैल(छत्‍तीसगढ़)। जिले के पुसौर ब्‍लाक में लगने जा रहे एनटीपीसी के चार हजार मेगावाट पावर प्‍लांट के नाम पर जमीनों की अवैध खरीदी बिक्री का मामला सामने आने पर हडकंप मच गया है। ग्राम लारा सहित आधा दर्जन से अधिक ग्रामों में हुई रजिस्ट्रियों की जांच से पांच हजार से भी अधिक ऐसे खाते सामने आए हैं जिनमें 4 सौ करोड़ की राशि बतौर मुआवजा बांट दी गई। अब जिला कलेक्‍टर की जांच के बाद खातों को निरस्त करने की कार्रवाई बड़े पैमाने पर शुरू हो गई है। पुसौर ब्‍लाक के ग्राम एवं आसपास के आधा दर्जन से भी अधिक ग्रामों में करीब 7 हजार से भी अधिक रजिस्ट्रियां हो गईं और इन रजिस्ट्रियों को कराने के लिए दलालों द्वारा बड़े पैमाने पर अपनी भूमिका निभाते हुए एक के बाद एक फर्जी हस्ताक्षर व फर्जी खरीददार बनकर शासन से लाखों रूपये बतौर मुआवजे प्राप्त कर लिए गए । इस संबंध में शहर के एक सामाजिक कार्यकर्ता की मानें तो ए नटीपीसी के चार हजार मेगावाट पावर प्‍लांट ग्राम लारा में आने की खबर मिलने के बाद इन गांवों के जमीनों की खरीदी बिक्री के लिए दलाल पहले से सक्रिय हो गए थे।

सामाजिक कार्यकर्ता राजेश त्रिपाठी पूरे मामले का खुलासा करते हुए बताते हैं कि जिस प्रकार जमीनों की खरीदी बिक्री हुई हैं उनमें बड़े पैमाने पर फर्जी रजिस्ट्रियां की गई है जिनमें अधिकारी से लेकर दलाल शामिल है। उनकी मानें तो अगर इसकी जांच हो जाए तो यह घोटाला कई अरब रूपये का होगा। बड़े पैमाने पर जमीनों की खरीदी बिक्री के फर्जी मामले सामने आने के बाद रायगढ़ जिला प्रशासन ने कड़े तेवर अपना लिए हैं। वहीं इस मामले को लेकर कई सामाजिक कार्यकर्ता राजेश त्रिपाठी सीधे-सीधे प्रशासन को ही दोषी ठहरा रहें हैं। उनकी मानें तो जब इतनी बड़ी मात्रा में जमीनों की खरीदी बिक्री हो रही थी तब प्रशासन हरकत में क्‍यों नहीं आया। एक के बाद एक जमीनों के खरीदी बिक्री संबंधी फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद जहां खरीददारों में हड़कंप मचा हुआ है, वहीं इसमें महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाने वाले दलाल भी भूमिगत होने लगे हैं।

कैसे आया मामला सामने 
प्रदेश में इस तरह का बड़ा घोटाला पहले कभी सामने नहीं आया है और इस प्रकार की जमीनों की खरीदी बिक्री में फर्जीवाड़े की छोटी सी शिकायत मिलने के बाद जिला कलेक्‍टर मुकेश बंसल ने जांच के आदेश दिए। तब परत दर परत मामला खुलता चला गया और देखते ही देखते पुसौर ब्‍लाक के ग्राम लारा, झिर्रीटार,देवलसुर्रा, आडमुड़ा, बोडाझरिया, कांदागढ़, छपोरा, महलोई, एवं रियापाली के रिकार्ड खंगालने के बाद लगभग पांच हजार से अधिक ऐसी रजिस्ट्रियां सामने आर्इं जो एक ही दिन में बड़े पैमाने पर कराई गई थीं। जमीन खरीदने वाले लोग दिल्‍ली, उत्‍तरप्रदेश, बिहार, झारखण्‍ड सहित मध्‍यप्रदेश और छत्‍तीसगढ़ के दूसरे जिलों के रहने वाले थे और गवाह भी ऐसे जो सैकड़ों की संख्या में हस्ताक्षर करते ही चले गए थे। आनंद शर्मा तथा नटवर अग्रवाल नाम के गवाहों ने तो शतक का आंकड़ा भी पार कर दिया था। कलेक्‍टर मुकेश बंसल की मानें तो देश के सबसे बड़े पावर प्‍लांट के लगने से पहले बड़े पैमाने पर जमीनों की खरीदी बिक्री का रिकार्ड बनाने वाले दलालों ने इस मामले में सबसे महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है। 

एनटीपीसी बिजलीघर के लिए जमीनों की अवैध खरीदी बिक्री अपने ग्राहकों को जमीन दिलाकर उनके बदले में एनटीपीसी की तरफ से मुआवजा दिलाने का लालच देकर एक के बाद एक हजारों रजिस्ट्री कराने वाले दलाल अभी भी जिला कलेक्‍टरेट के आसपास सक्रिय हैं। ‘छत्‍तीसगढ़’ ने ऐसे ही एक जमीन दलाल से जब बात की तो जमीन दलाल ने उल्टे ही इस मामले में किसी भी प्रकार के फर्जीवाड़े से न केवल इंकार कर दिया बल्कि अपने आप को पाक साफ बताते हुए यहां तक कहा कि जमीनों की खरीदी बिक्री में बड़े पैमाने पर अधिकारियों के रिश्तेदार शामिल हैं, और इतना ही नहीं धारा 4 के प्रकाशन के बाद इस पर रोक लगनी थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। और अब जांच के बाद जमीनों के छोटे-छोटे टुकडे की रजिस्ट्री को गलत बताना यह बताता है कि अपनी गलतियों पर पर्दा डालने के लिये यह काम कर रहा है। जमीन दलाल ने यहां तक कहा कि मुआवजा बंटने से पहले कलेक्‍टर को पहले रोक लगानी थी लेकिन जब बड़े पैमाने पर मुआवजा बंट गया, तब इस प्रकार जांच करते हुए रोक लगाना समझ से परे है। हमने जिस दलाल से बात की वह अकेले जमीनों की खरीदी बिक्री में बतौर ग्राहक 148 रजिस्ट्रियों में बतौर गवाह अपने हस्ताक्षर किए हैं।

बातचीत में जमीन दलाल ने ऐसे कई बातें बताईं जो इस बात के संकेत थे कि जमीनों की रजिस्ट्री के समय रजिस्ट्री अधिकारी के अलावा संबंधित गांव के पटवारी तथा अन्‍य कई वरिष्ठ अधिकारी की सहमति थी, और उनकी मिलीभगत से एक ही दिन में 5 सौ से अधिक रजिस्ट्रियां बड़े आराम से छोटे-छोटे टुकड़ों की होती चली गईं। जब उनसे यह पूछा कि एक साथ जमीन की रजिस्ट्री में 148 मामलों में बतौर गवाह हस्ताक्षर करने पर क्‍या कानून का उल्‍लंघन नहीं है? तब जमीन दलाल का सधा हुआ उत्‍तर था कि उसने ही यह हस्ताक्षर किए हैं, उसका कोई प्रमाण जिला प्रशासन के पास नहीं है। उसके बाद कोई भी फंसाने के उद्देश्य से हस्ताक्षर कर सकता है। जमीन दलाल ने एक और खुलासा करते हुए बताया कि जिला कलेक्‍टर की रोक के बाद भी मुआवजा का वितरण किया गया है, और जांच के बीच में ही जिन अधिकारियों ने एनटीपीसी पावर प्‍लांट स्थल पर जमीन खरीदी थी। उनके पैसे बकायदा एसडीएम ने बुला-बुलाकर बांट दिए हैं और कुछ लोगों का रोका है। बांटे गए पैसे में मोटी रकम थी और वह पूर्व कलेक्‍टर कटारिया के समय बांटे गए, और कई जमीनों के बंटवारे के मामले में अधिकारियों की मिलीभगत है।

दलाल से बातचीत में इसका खुलाशा हुआ कि किस तरह ग्राम लारा व आसपास के गांव में खरीदी गई जमीनों में अधिकारियों की कितनी बड़ी संलिप्तता है और उनकी जानकारी में पहले से थी। इसीलिए जमीन की रजिस्ट्री करवाने वालों में कई अधिकारी शामिल थे। चार हजार मेगावाट वाले एनटीपीसी के प्रस्तावित पावर प्‍लांट स्थल के आसपास वाले ग्राम लारा सहित ग्राम झिर्रीटार और अन्‍य कई गांव का दौरा ‘छत्‍तीसगढ़’ टीम ने किया। जब ग्रामीणों से हमने बात की तो वह भी अपनी सफाई देते नजर आ रहे थे। जमीन घोटाले में पुसौर ब्‍लाक के कई गांव के सरपंच व उनके रिश्तेदार तथा नेतानुमा ग्रामीण इस पूरे मामले में महत्‍वपूर्ण भूमिका दलालों के साथ मिलकर निभाते चले गए थ। दो दिन पहले ही छत्‍तीसगढ़ ने रायगढ़ एसडीएम तीर्थराज अग्रवाल के कार्यालय के सामने ग्राम लारा की महिला सरपंच के पति सत्‍यानंद और उसके एक साथी पंकज गुप्ता से उनके क्षेत्र की जमीनों की अवैध रजिस्ट्री संबंधी चर्चा की तो दोनों पल्‍ला झाड़ते नजर आए। जानकार सूत्र बताते हैं कि इनके जैसे और कई पदाधिकारी है जि‹होंने पुसौर ब्‍लाक के ग्राम लारा, झिर्रीटार सहित आसपास के गरीब किसानों को बहला फुसलाकर औने-पौने दामों में उनकी जमीनों को बेचने के लिए उल्‍लेखनीय भूमिका निभाई थी। और बदले में भूमि दलाल के साथ उनको भी मोटी रकम कमीशन की मिली थी।

क्‍या कहते हैं कलेक्‍टर
कलेक्‍टर मुकेश बंसल के अनुसार जमीनों की खरीदी बिक्री में सबसे बड़ा पहलू यह है कि छोटे-छोटे टुकड़ों में होने वाली रजिस्ट्रियों में एक ही गवाह सैकड़ों रजिस्ट्रियों में हस्ताक्षर करना पाया गया, और जमीन खरीदने वाले वे लोग थे जो दिल्‍ली, उत्‍तरप्रदेश, बिहार व अन्‍य दूसरे प्रांतों के निवासी हैं। उनके नाम से रजिस्ट्री कार्यालय में हस्ताक्षर भी फर्जी होने की आशंका पाई गई है। उन्‍होंने यह भी बताया कि पूरे मामले में एनटीपीसी के अधिकारियों के द्वारा भी जमीन खरीदने की बात सामने आने के बाद उनके वरिष्ठ अधिकारी को पा लिखकर वह सूची मांगी है जिन्‍होंने एनटीपीसी के प्रस्तावित पावर प्‍लांट स्थल पर बड़े पैमाने में जमीनों की खरीदी की है।

कलेक्‍टर के मुताबिक तो अब तक 5 हजार से भी अधिक रजिस्ट्रियों की जांच करने के बाद 4 सौ करोड़ का घोटाला सामने आ चुका है साथ ही साथ उन्‍होंने फर्जी हस्ताक्षर व फर्जी गवाह वाले प्रकरण जिला पुलिस अधीक्षक को भेजने के आदेश दिए हैं ताकि ऐसे लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज करके वसूली की जाए। ऐसा नहीं है कि जमीनों की खरीदी बिक्री में रायगढ़ जिले के बड़े लोग शामिल है बल्कि इस खरीदी बिक्री में ज्‍यादा से ज्‍यादा रकम कमाने के लिये एक सोची समझी राजनीति के तहत दिल्‍ली से लेकर उत्‍तरप्रदेश और उत्‍तरप्रदेश से लेकर बिहार व झारखण्‍ड सहित मध्‍यप्रदेश के बड़े लोग भी शामिल है। चूंकि जानकार सूत्र बताते हैं कि रजिस्ट्रियों की जांच के बाद यह बात सामने आई है कि दिल्‍ली सहित अन्‍य प्रदेशों में रहने वाले जमीन खरीददार रायगढ़ में रहने वाले किसी गवाह को जानते हैं ऐसा लगता नहीं। यह भी जानकारी मिली है कि जो जमीन खरीददार रजिस्ट्री में हस्ताक्षर कर चुका है वह रायगढ़ आया था या नहीं जांच का विषय है।

14 सौ रजिस्ट्र्री होगी निरस्त? 
एसडीएम तीर्थराज अग्रवाल ने जांच में अब तक 14 सौ 6 मामले पकड़ भी लिए हैं, और इन सभी फर्जी रजिस्ट्रियों को निरस्त करने की कार्रवाई शुरू कर दी गई है। रायगढ़ एसडीएम तीर्थराज अग्रवाल की मानें तो सभी 14 सौ 6 मामले ग्राम झिर्रीटार के हैं, जहां करीब दो हजार से अधिक रजिस्ट्रियों की जांच की गई थी। पूरी जांच के बाद अभी तक 14 सौ 6 मामले ऐसे सामने आए हैं जिनमें बड़े पैमाने पर गड़बड़ी होनें की जानकारी मिली है। चर्चा के दौरान तीर्थराज अग्रवाल बताते है कि ग्राम झिर्रीटार के बाद देवलसुर्रा, आडमुड़ा, बोडाझरिया, कांदागढ़, छपोरा, महलोई, एवं रियापाली के साथ-साथ ग्राम लारा में भी जमीनों के खरीदी बिक्री संबंधी रिकार्ड की जांच चल रही है और इनमें भी कई फर्जीवाड़ा होनें की जानकारी मिलने पर कार्रवाई की जाएगी।
दैनिक छत्‍तीसगढ से सभार

निजी स्कूल प्रबंधन के द्वारा बेहिसाब लूट : त्रस्त पालक, सहमें बच्चे

भिलाई के मित्र अमरनाथ यादव नें अपने फेसबुक वाल में सी.बी.एस.ई. चेयरमैन को एक पत्र लिखा है एवं सरकार व लालची स्कूल प्रबंधन के बीच पिस रहे पालक एवं बच्चों के संबंध में जानकारी प्रकाशित की है। इनकी चिंता जायज है, शिक्षा अब व्यवसाय हो गया है जिसमें लाभ अर्जन के तमाम तरह की बुराईयां सामने आ रही है। आईये पढ़ें, सोंचें और विरोध के स्वर मुखर करें।


अमर नें सी.बी.एस.ई. चेयरमैन को लिखे पत्र में कहा है कि सीबीएसई से संलग्न स्कूलों में स्कूल प्रबंधन द्वारा प्रकाशकों से सांठगांठ कर प्रत्येक स्कूल में अलग अलग किताबें पढ़ाई जा रही है, और अनुचित लाभ अर्जित किया जा रहा है। क्लास 1-2 के बच्चों को शिव खेड़ा की किताबें खरीदवाई जा रही है। जो बच्चे ठीक से हिंदी, अंग्रेजी पड़ना नहीं जानते, उन्हें शिव खेड़ा का प्रबंधन कितना समझ में आयेगा और क्या यह उनके लिए रूचिकर होगा। क्या इसकी जगह पांचजन्य या समकक्ष भारतीय शिक्षोपदेशक किताब ज्यादा ऊचित नहीं होती। प्रबंधन जितनी वर्क बुक खरीदवाता है, उनमें से अधिकतर में आधे से एक चौथाई की पढ़ाई ही नहीं होती। बेवजह बच्चों पर कोर्स ज्यादा होने का दबाव होता है। इनके सांठगांठ की वजह से पालकों पर अतिरिक्त आर्थिक भार पड़ रहा है साथ ही एक ही दुकान पर ऊपलब्ध होने की वजह से दो-दो घण्टे लाईन लगाकर किताबें खरीदने को पालक मजबूर हैं।

उन्होंनें आगे चेयरमैन से सवाल किया है कि क्या कोई ऐसा नियम है कि सारे स्कूल एक ही प्रकार की किताबों से पढ़ाई करवाये, क्योंकि जब सीबीएसई परीक्षा लेता है तो अखिल भारतीय स्तर पर समान रूप से होना चाहिए, और यदि ऐसा नहीं है तो क्यों नहीं किया जा रहा है। क्या आपके संस्थान द्वारा स्कूलों को मान्यता प्रदान करते समय इस प्रकार के दिशा निर्देश जारी किए जाते हैं, जिनका पालन अनिवार्य रूप से होना चाहिए।

पत्र के अंत वे चेयरमैन से निवेदन करते हैं कि कृपया कुछ कड़े कदम उठाए, ताकि मुश्किल हालातों से जूझते हुए पालकों को राहत मिले। क्योंकि सरकारी स्कूलों की हालत को देखते हुए प्राईवेट स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने के लिए पालक मजबूर हैं। 
अपने वाल ‘मदमस्त सरकार और लालची स्कूल प्रबंधन के बीच पिस रहे हैं पालक एवं बच्चे’ में वे बिन्दुमवार तथ्ये प्रस्तुकत करते हैं जिसमें वे लिखते हैं कि नया शिक्षा सत्र शुरू हो गया, और पिछले वर्षो की भांति पालकों को फिर बच्चों की सारी तैयारियां करनी पड़ी। मसलन लाईन में लगकर किताबें खरीदने से लेकर यूनिफॉर्म, जुते खरीदने तक। पालको को इस साल उम्मीद थी कि सरकार कोई गाइडलाइंस जारी करेगी, जिससे पालक राहत महसूस करेंगे। पर सरकार को कहां फुर्सत कि वह इस मामले में गंभीरता से विचार करे।

आगे वे प्रश्न रखते हैं कि पिछले साल भर छत्तीसगढ़ में पालको ने स्कूलों के खिलाफ़ आंदोलन किया कि किस तरह पालको से प्रतिवर्ष एडमिशन फीस ली जाती है। किस तरह पालक स्कूल से किताब -काफी खरीदने को मजबूर हैं। कैसे 10-11 माह के बदले पालकों से पुरे साल की फीस और परिवहन शुल्क लिया जाता है। एक्जाम फीस के लिए सैकड़ों रूपये अलग से वसुले जाते हैं। इस तरह के कई अन्य परेशानीयों से तंग आकर पालकों ने आंदोलन किया, धरना प्रदर्शन से लेकर चिट्ठी पत्री के कई दौर चले, प्रशासन ने आश्वासन भी दिया, पर अंततः हुआ कुछ नहीं। पालक फिर छला गया, और मजबुरन उसे स्कूल की ज्यादती सहनी पडी़।

दुर्ग में तत्कालीन कलेक्टर रीना बाबा साहब कंगाले और जिला शिक्षा अधिकारी बी.एल. कुर्रे ने कुछ साहस दिखाया और सभी निजी स्कूलों की जांच करवाई तथा उनके खाते -बही का अंकेक्षण किया। लगभग सभी स्कूलों में भारी अनियमितता पायी गयी। कलेक्टर ने कार्रवाही करते हुए नियमानुसार वसुली गई बिना हिसाब कीअतिरिक्त राशि का दस गुना जुर्माना शहर के दो प्रतिष्ठित स्कूलों पर लगाया, जो लगभग एक करोड़ से भी अधिक था। पर जैसा कि होता आया है जैसे ही दो स्कूलों पर जुर्माना हुआ, प्रदेश के सभी निजी स्कूल एक हो गए और प्राइवेट स्कूल एशोसियेशन बना लिया। और सर्व प्रथम दोनों अधिकारियों का तबादला करवाया और कानून की सकरी गलियों का फायदा उठाते हुए कोर्ट से आदेश भी रद्द करवा लिया। इस बात की काफ़ी चर्चा थी कि कम ही सही न्यायालय कुछ न कुछ जुर्माना तो अवश्य लगाएगा जिससे स्कूल प्रबंधन कुछ सबक लेगे और पालको को कुछ राहत मिलेगी। पर हुआ इसके बिल्कुल विपरीत, प्रबंधन जीत गया।

इसी बीच पालक संघ का आंदोलन भी निजी स्वार्थ की भेंट चढ़ गया और प्रमुख पदाधिकारी ने स्कूलों से अपना अनुचित लाभ अर्जित किया और आंदोलन की बलि चढ़ा दी। इसका फायदा उठाते हुए निजी स्कूलों ने इस वर्ष भी अपनी मनमानी जारी रखी और एक मुश्त एडमिशन राशि को फीस के साथ किश्तो में वसुल रहे हैं। जब इनकी मर्जी होती है यूनिफॉर्म बदल देते हैं। ब्लेजर का कलर बदल दिया जाता है, इस वर्ष तो कुछ स्कूलों ने हद कर दी, बच्चों के जुते बदल दिए वह भी महंगे ब्रांडेड एडिडास और लिबर्टी कम्पनी के। जो काम 400-500 में हो जाता था, उसके लिए अब पालकों को हजारों रूपये देने पड़ रहे हैं। समझ में नहीं आ रहा है कि ये लोग कहा -कहा से पैसे वसूलना चाहते है। और इनके लालच की कोई सीमा है कि नही। किताब वालो से सैटिंग, यूनिफॉर्म वाले से सैटिंग, जुते वाले से सैटिंग, मतलब जहा तक वसूल सको वसूल लो।

सरकारी महकमे से पालक क्या उम्मीद करे उन्हें तो स्टेशनरी खरीदने, टेबल -कुर्सी खरीदने और ट्रांसफर मे घोटाला करने से फुर्सत मिले तो कुछ करे।और फिर स्कूल प्रबंधन भी समय समय पर उनका ख्याल रखता है। पालकों से उन्हें क्या मिलेगा। खानापूर्ति के लिए नोडल अधिकारी भी मौजूद है और शिक्षक पालक समिति भी, पर सब स्कूल प्रबंधन पर ही मेहरबान है। दुर्ग शहर के नामी स्कूलों में से एक मे पालक समिति मे उन पालकों को रखा जाता है जिनके बच्चे क्लास में मेरिट में आते हैं। दुसरे नामी स्कूल में वह पालक है जो प्रबंधन के परिवार के सदस्यों के नजदीकी है या उनसे व्यवसायिक रूप से भी जुड़े हुए हैं। स्कूलों की कमाई का आलम यह है कि बिना लाभ - हानि वाले संस्थान होने के बावजूद इनके सदस्यों की विलासिता देखते ही बनती है, मसलन भव्य बग्ंले, लक्जरी सिडान कारे और ठाठ - बाठ के तो कहने ही क्या, समान्य आदमी की तो आंखें ही चौंधिया जाती है देखकर। हद तो यह है कि कुछ एक स्कूल तो परिवार की प्राईवेट लिमिटेड कम्पनी की तरह संचालित हो रहे हैं। परिवार का सदस्य ही डायरेक्टर हैं, प्रिसिंपल है, वाईस प्रिंसिपल है, एडमिनिस्टे्टर है, हेड एकाउंटेंट है, टा्ंसपोर्ट इंचार्ज हैं, और बाकी बचे हुए पदो पर आसीन हैं। घर पर रहने वाली महिला सदस्यों को भी स्कूल की फैकल्टी बताकर मोटी रकम तनख्वाह स्वरूप ली जाती है। और इन सबका बोझ कहीं न कहीं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पालको को ही उठाना पड़ता है।

इसके इतर भी स्कूलों को कई तरह से आर्थिक फायदा होता है जैसे छुट्टियों के दौरान एक - एक दिन में 50000 रूपये तक का डीजल बचता है स्कूल बसों का। ऐसा नही है कि सरकार में बैठे नुमाइंदो को कुछ मालूम नहीं है, वो सब कुछ जानबूझकर भी कुछ करना नहीं चाहते, क्योंकि सब की मुट्ठी गरम होती है, मंत्री से लेकर संतरी तक। पर सरकार ये भुल जाती है कि उन्हें उस कुर्सी पर बैठाने वाली जनता कहीं न कहीं पालक है। अपनी सत्ता के मद में सरकार इतनी मगरूर हो गयी है कि उसे पालकों की तकलीफें महसूस नहीँ हो रही है और न ही उनका दर्द दिखाई दे रहा है।

शुरूआत में मिडीया ने पालकों को सहयोग किया और समाचार पत्रों में उचित स्थान दिया। पर बाद में उन्होंने भी धीरे धीरे किनारा कर लिया। उनकी भी मजबुरी थी, क्योंकि इन स्कूलों का प्रचार - प्रसार का सालाना भारी-भरकम बजट होता है, वो इन्हें नाराज कर कैसे जाने देते। पालक अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने के लिए स्कूलों की उचित-अनुचित मांग मानने को मजबूर हैं। क्योंकि सरकारी स्कूलों का हाल और उनके पढाई का स्तर तो सर्वविदित है। 

अमर नाथ यादव जी के फेसबुक वाल के आधार पर 

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