जस्टिस जगदीश भल्ला : छत्तीसगढ के बासी मे उबाल

छत्तीसगढ समाचार के २७ अप्रेल के अंक में शुभ्राशु चौधरी ने एक सार्गर्भित व जन मानस को झकझोर देने वाला आलेख लिखा है “क्या छत्तीसगढ दोयम दर्जे का राज्य है” उसी के अंश व दूसरे साईट के जुगाड खोज कर छत्तीसगढ के सुधियो के लिये प्रस्तुत कर रहे हैं, छत्तीसगढ समाचार सांध्य दैनिक होने के कारण सबेरे के अखबार से कम पढा जाता है जिसके कारण इतना गम्भीर लेख सब के सम्मुख प्रस्तुत करने के उद्देश्य से हम इसे इस चिठ्ठे मे पेश कर रहें हैं

छत्तीसगढ उच्च न्यायालय में एक नये न्यायाधीश की नियुक्ति से बहुत सारे सवाल उठ खडे हुए हैं क्योंकि इस न्यायाधीश को लेकर पहले से काफी विवाद चल रहे थे औरा उन विवादों को वजन इस बात से आंका जा सकता है कि इस न्यायाधीश को पदोन्नति देने की फाईल राष्ट्रपति नें वापस कर दी थी । वे इस पदोन्नति से सहमत नही थे । लेकिन सर्वोच्च न्यायालय में इन प्रशासनिक कार्यों के लिए जो कमेटी है उसने राष्ट्रपति की आपत्ति से असहमति जताते हुए फिर से इस जज का नाम भेजा है - शुभ्राशु चौधरी का आलेख प्रस्तुत करते हुए सांध्य दैनिक छत्तीसगढ, रायपुर नें लिखा है । सम्पुर्ण लेख छत्तीसगढ समाचार के २७ अप्रेल के अंक में देखा जा सकता है “क्या छत्तीसगढ दोयम दर्जे का राज्य है - शुभ्राशु चौधरी”

ज्ञात हो कि शुभ्राशु चौधरी बी बी सी के पूर्व पत्रकार एवं छत्तीसगढ के एकमात्र अंतरजाल सिटिजन जर्नलिस्ट के प्रयोगधर्मी साईट http://www.cgnet.in/ से जुडे हैं । सीजी नेट मे अनूप साहा के साईट का लेख है

शुभ्राशु चौधरी नें लिखा है “इन दिनों केरल और दिल्ली में छत्तीसगढ की बडी चर्चा है पर आश्चर्य की बात यह है कि जिस छत्तीसगढ को लेकर चर्चा जोरों पर है वह स्वयं खामोश है . . .”

किस्सा है लखनउ उच्च न्यायालय बेंच के न्यायाधीश जगदीश भल्ला का ।

क्या हैं चर्चा -
१. २१ जुलाई २००३ को जस्टिस भल्ला की पत्नी श्रीमती रेणु भल्ला नें नोएडा में ५ लाख रूपये में एक प्लाट खरीदा जिसका बाजार भाव ७.२ करोड रूपये था ।

२. दिल्ली के समीप दादरी में जहां रिलायंस एनर्जी का प्लांट लगने वाला है जिसके विरूद्ध रैली, घरना, प्रदर्शन पूर्व प्रधान मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में किया जाना था. इस कार्य को रोकने हेतु रिलायंस एनर्जी के दवारा कार्यालयीन समय के बाद लखनउ बेंच में ७ जुलाई को गैर तारांकित मामले की सुनवाई एक जज के घर में हुई जबकि वह मामला लखनउ बेंच की अधिकारिता में नही आता । देर रात हुए फैसले के जोर पर ही पुलिस नें प्रदर्शनकारी किसानों पर जमकर लाठियां भांजी, वी पी सिंह को भी सभा स्थल पर पहुंचने नही दिया गया । उक्त दमनकारी फैसले में रिलायंस एनर्जी के वकील आरोही भल्ला नें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और वकील आरोही भल्ला जस्टिस जगदीश भल्ला के पुत्र हैं ।

३. जुलाई ०५ में ग्रेटर नोएडा में भू आबंटन की लाटरी में जस्टिस जगदीश भल्ला के बेटे आरोही भल्ला के नाम आबंटन एवं उसके उपरांत उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय के उक्त आबंटन पर रोक लगाने के आदेश को सर्वोच्च न्यायालय नें खारिज कर दिया इस पर भी विवाद हैं जबकि इस आबंटन एवं प्रक्रियाओं में जस्टिस सबरवाल की बहू श्रीमती शीबा सबरवाल का भी नाम है ।


११ जुलाई २००६ को सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वाई के सबरवाल को प्रख्यात वकील रामजेठमलानी, वर्तमान मुख्य न्यायाधीश बालकृष्णन सहित दो पूर्व केन्द्रीय मंत्रियों की समिति कोजा (कमेटी आन जुडिसियल एकाउंटिबिलिटी) नें जस्टिस जगदीश भल्ला के विरूद्ध गंभीर अनियमितता का आरोप लगाते हुए उन पर महाभियोग चलाने की अपील की थी । छ: माह बाद भी उस अपील पर कोई कार्यवाही नही की गयी तब इस समिति नें जस्टिस जगदीश भल्ला के विरूद्ध एफ आई आर दायर करने की अनुमति की मांग भी की थी ।

तहलका से उपलब्ध जानकारी के अनुसार बताया जाता है कि जस्टिस जगदीश भल्ला के संबंध में सीबीआई से रिपोर्ट भी मंगाई गयी थी जिसके बाद ही राष्ट्रपति नें उनकी फाईल वापस कर दी थी ।
इधर अपने रिटायरमेंट के समय मुख्य न्यायाधीश वाई के सबरवाल नें पत्रकारों द्धारा पूछे गये सवाल के जवाब में जस्टिस जगदीश भल्ला को क्लीन चिट दे दिया था – “जस्टिस भल्ला के खिलाफ लगे आरोपों में कोई दम नही है ।“

अस्तु जस्टिस जगदीश भल्ला को केरल उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाये जाने की कवायद शुरू हो गयी इस बीच केरल के ही एक न्यायाधीश बालकृष्णन जो जस्टिस भल्ला के विरूद्ध शिकायत करने वाली कमेटी कोजा के सदस्य थे, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बनाये गये। तदैव जस्टिस जगदीश भल्ला को केरल के बजाय छत्तीसगढ भेजा जाना तय हो गया, अब राष्ट्रपति जी को फाईल पुन: प्रेषित की गयी है जिसमें उन्हे हस्ताक्षर करना ही है यही हमारा संविधान कहता है । ईसी सम्बंध में परंजय गुहा की भी बातें देखिये ।


न्यायाधीशों की कमी व लंबिंत मामलों से जूझते छत्तीसगढ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का तबादला केरल कर दिया गया और यहां मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो गया सो जस्टिस भल्ला के लिए छत्तीसगढ का रास्ता साफ हो गया ।

डा सुकुमार ओझिकोड, (पूर्व उप कुलपति, कालिकट विश्वविद्यालय, कालम लेखक) देशाभिमानी, सीपीएम का आमुख अखबार में लिखा जिसका अनुवाद शुभ्राशु चौधरी नें बासी में उबाल में लिखा है – “जस्टिस भल्ला को केरल न भेजा जाना एक अच्छा फैसला है । . . . क्या इस देश में दो तरह के प्रदेश हैं यदि जस्टिस भल्ला को केरल न भेजना एक उचित फैसला है तो उन्हे छत्तीसगढ का मुख्य न्यायाधीश कैसे बनाया जा सकता है ।“

प्रशंगवश

अभिब्यक्ति के प्रत्येक माध्यमो पर आरंभ से ही छीटाकशी होते रही है खासकर उन लोगों के द्वारा ही यह सब होते आया है जिन पर भाषा व भावनाओं को अभिब्यक्त करने का दायित्व रहा है । कालांतर में यही छीटाकशी जो मर्यादाओं मे बंधी थी, आलोचना समलोचना की रंगीली चुनरी बन गई ।
जहां तक साहित्य जगत का प्रश्न अभिब्यक्ति पर मर्यादित आलोचना, समलोचना व टिप्प्णियों एवं रचनाकारों के बीच मानसिक मतैक्य का है तो वह आधुनिक हिंदी काल में कभी भी नही रहा । आजादी के उपरांत भी साहित्य एवं संस्कृति के नेहरू वादी सरकारी शब्द्कोश के झंडाधारी गांधी एवं टैगोर जी के बीच वैचारिक मतभेद सर्वविदित है यद्यपि ऐसे मतभेद लिखित रूप में कभी भी प्रस्तुत नहीं हुये । अस्सी के दसक में मैं थोडा बहुत अभिब्यक्ति के चितेरों के सम्पर्क मे रहा उस समय की बातों का प्रसंगवश उल्लेख करना चाहुंगा । अस्सी के दसक के हिंदी के ध्वजा धारी प्रगतिशील, जनवादी, वामपंथी अलग अलग विचारों के थे उनमें समय समय पर वैचारिक मद्भेद होते रहते थे जो पत्र पत्रिकाओं के माध्यम व कुछ व्यक्तिगत माध्यमों से पाठकों के बीच उजगर होते रहते थे । भारत भवन के कमान सम्हालने से लेकर हिंदी सम्बंधी कोई भी नये प्रयोगों को पाठकों पर थोपने तक। एक मंद शीत युध सा चलते रहता था, मै आज किसी के नाम का उल्लेख नहीं करूंगा किंतु सभी जानते है कि उस समय क्या घट रहा था एसे ही प्रश्न के उत्तर में डा नामवर सिंह जी ने एक बार किसी पत्रिका मे अपने इंटरव्यू में कहा था कि सत्ता से धन आती है और धन से दर्प और दर्प व्यक्ति को साहित्य के गुहियता से दूर ले जाती है।
मै उनके सत्ता के माने को अभी हिंदी चिठ्ठा जगत में दबादबा कायम करना मान लेता हूं यद्यपि यह छ्द्म है, यदि यही सत्ता है तो वह दिन भी आयेगा जब दबादबा कायम करने का प्रयास (किंचित)करने वालों का साहित्य(यदि चिठ्ठकरिता को हिंदी लेखन की एक विधा मान लें तो ), गुहियता से दूर चला जायेगा । और इस भगदड में हमारे कई चिठ्ठकार प्रतिस्पर्धी लेखन और व्यक्तिगत कारणो से नारद से दूर चले जायेंगे और हिंदी ब्लागर को माया और राम दोनों नहीं मिल पायेगा ।
छत्तीसगढ में एक कहावत है " कूकूर भुंके हजार हांथी चले बजार" तो क्या चिठ्ठाकारों को इसी नीति को अपनाना चाहिये ?हांथी के चलने के सम्बंध में एक और कहानी हमारी दादी सुनाती थी -
जंगल के रद्दा म हांथी ल आवत देख के कोलिहा (सियार )हा ओखर आघू म आके खडा होगे । "अरे हांथी ! चल मोर रद्दा ले घुच !"अपन दू तीन ठन मेछा म ताव देवत बोलिस ।हांथी हकबका गे फेर अपन शरीर जैसे गम्भीर होके सोचिस " ओछे मन के पाछू का परना !" औ दूसर डहर चल दिस ।कोलिहा सोंचिस हांथी डेरा गे, थोरकन जोरदरहा चमकाये जाय कहि के हांथी ला खेदारे बर हांथी के पिछे लपकिस, हांथी के नजिक पाछू पहुंच के वोला फेर चमकाईस " अरे हांथी !"हांथी ह मन भर के पाखाना के पिचका मारीस, कोलिहा के परान लिदे मा छुट गिस । या इस नीति को ?

पौरुष की कापीराईट




धुर बस्तर में एक आदिवासी जनजाती मुरिया (मुडिया )निवास करती है । जिनमें विवाह के पूर्व युवा लडके एवं लडकियां गांव में स्थित घोटुल में अपने आप को दाम्पत्य के लिये तैयार करते हैं एवं प्रेम का पाठ सीखते हैं छत्तीसगढ के आदिवासियों की यह परंपरा अर्वाचीन है यह परंपरा उनकी अस्मिता है जिस पर कई लोगों ने लिखा है पर आज मेरे बस्तर के एक मित्र ने मुझे बस्तर की एक युवती का चित्र दिया जिसमे कापीराईट कोई सुनील जान के नाम से लिखा था मैने नेट पे ईसे खोजा तो पाया कैसे हमारे अस्मिता का व्यवसायीकरण हो रहा है । अब वो दिन भी दूर नहीं जब हमारे पौरुष का कापीराईट सुदूर अमेरिकन के पास होगा और हमें अपने बच्चे को अपना कहने के लिये कापीराईट ओनेर को रायल्टी देनी होगी । जान साहेब का लिंक है : http://members.aol.com/sjanah2/archive/tribals/index.htm

हेडर के रूप में चित्र को बीटा ब्लागर में जोडना – नये चिटठाकारों के लिये

सबसे पहले फोटोशाप या अन्‍य ग्राफिक साफटवेयर से अपना हेडर बनाये, ब्‍लागर में लागईन करें, पहले अपने टेम्पलेट का बेकअप डाउनलोड फुल टेम्पलेट या चेंज यूवर टेम्पलेट से उपयोग विधि अनुसार ले लेवें ।
२ अपने इच्छित चित्र को गूगल पेज, फोटो बकेट जैसे मुफत होस्ट में अपलोड करें एवं यु आर एल की कापी प्राप्त कर लेवें ।
३ ब्लागर बीटा में लागइन करें डेशबोर्ड से अपना ब्लाग चयन करें लेआउट चयन करें यह आपको एड एण्ड
अरेंज पेज में ले जायेगा एडिट एच टी एम एल को क्लिक करें व निम्नलिखित कोड के आते तक नीचे जायें :-
यहां तक div id="header-wrapper" ?xml:namespace prefix = b / b:section class="header" id="header" showaddelement="no" maxwidgets="1" b:widget id="Header1" title="The Widgets of Beta Blogger. (Header)" type="Header" locked="false" /b:widget /b:section /div

उपरोक्त कोड में निम्नलिखित बदलाव करें :-
maxwidgets="1" की जगह maxwidgets="2" एवं showaddelement="no" की जगह showaddelement="yes" करें टेम्पलेट सेव करें

४ अब पेज एलीमेंट टैब को क्लिक करें एड एण्ड अरेंज एलीमेंट पेज खुलेगा यहां आप हेडर सेक्शन जुडा हुआ देखेंगे
जिसमें आप अपने पसंद का चित्र देखना चाहते हैं ।
५ अब पेज इलेमेंट से एच Html/Javascript को चयन करें जिसमें आपके दृवारा पसंद किये गये चित्र का यू आर एल पेस्ट करें इस प्रकार :-

ऐसे a title="YOUR BLOG TITLE" href="http://www2.blogger.com/BLOG" img alt="YOUR BLOG TITLE" src="http://www2.blogger.com/URL" / /a
सेव करें ।

६ एड टू ब्लाग को क्लिक करें खुलने पर गुगल पेज में सेव किये गये चित्र का यू आर एल (URL) को यू आर एल टैक्ट बाक्स में पेस्ट करें । सेव करें ब्लाग देखें ।
७ यदि आपको ऐसा गलता है कि पहले से लिखा हुआ ब्लाग टाईटल हेडर चित्र के उपर आये नीचे में न दब जाये यानी पुराने वाला टाईटल फोन्ट वाला चित्र के उपर हो यह ऐसा क्योंकि सर्च ईंजन आप्टमाईजेशन के लिये आवश्यक हो तो पेज एलीमेंट में जायें एडिट लिंक को क्लिक करें popup window which appears में रिमूव को क्लिक करें ( यदि यहां एडिट लिंक टैक्स बाक्स में नही है तो एडिट एच टी एम एल सब टैब में जायें निम्ललिखित कोड आने तक नीचे आयें

यहां तक b:widget id="Header1" title="The Widgets of Beta Blogger. (Header)" type="Header" locked="true"

इस कोड में बदलाव करें locked='true' की जगह locked='false' करें व सेव करें ।

८ पेज एलीमेंट में जायें जहां आप टायटल बाक्स व रिमूव लिंक ऐडिट को क्लिक करने पर आ जायेगा एडिट लिंक देख पायेंगें जिसे अपनी इच्छानुसार बदला जा सकेगा ।

9 मैने भी ईसी तरह से अपना हेडर बनाया है, देखा ना आपने, बाकी जानकारी मेरे पंडित भाईयों, संजीत जी एवं ब्‍लागर गुरूओं से पूछें ।
मेरे पंडित भाईयों एवं ब्‍लागर गुरूओं को मेरा प्रणाम ।
जुगाड : http://betabloggerfordummies.blogspot.com/ To add a picture to a Beta Blog Header

नर नारी . . समाधि-सुख के . . शिखर पर : उर्वशी


महाकवि रामधारी सिंह दिनकर की उर्वशी के कुछ अंश कवि चिट्ठाकारों के मन में जोश व उत्साह लाने के उद्देश्य से प्रस्तुत कर रहा हूं, मैं ये नहीं जानता कि इससे कापीराईट कानून का उलंघन होता है कि नहीं किन्तु उर्वशी को बार बार पढने का मन होता है, नेट पर यह उपलब्ध नही है अस्तु :-

नर के वश की बात, देवता बने कि नर रह जाये
रूके गंध पर या बढकर फूलों को गले लगावे ।


सहधर्मिणी गेह में आती कुल पोषण करने को,
पति को नही नित्य नूतन मादकता से भरने को ।
किन्तु पुरूष चाहता भींगना मधु के नये कणों से
नित्य चूमना एक पुष्प अभिसिंचित ओसकणों से ।


हाय मरण तक जीकर मुझको हालाहल पीना है
जाने इस गणिका का मैनें कब क्या सुख छीन लिया था
जिसके कारण भ्रमा हमारे महाराज की मति को,
छीन ले गयी अधम पापिनी मुझसे मेरे पति को ।


ये प्रवंचिकाएं जाने, क्यों तरस नहीं खाती हैं,
निज विनोद के हित कुल वामाओं को तडफाती हैं ।

जाल फेंकती फिरती अपने रूप और यौवन को,
हंसी हंसी में करती हैं आखेट नरों के मन का ।

किन्तु बाण इन व्याधिनियों के किसे कष्ट देते हैं,
पुरूषों को दे मोद, प्राण वधुओं के लेते हैं ।

इसमें क्या आश्चर्य प्रीति जब प्रथम प्रथम जगती है,
दुर्लभ स्वप्न समान रम्य नारी नर को लगती है ।

कौन कहे यह प्रेम हृदय की बहुत बडी उलझन है
जो अलभ्य, जो दूर उसी को अधिक चाहता मन है ।

जब तक यह रस दृष्टि, तभी तक रसोद्वेग जीवन में
आलिंगन में पुलक और सिहरन सजीव चुंबन में ।
विरस दृष्टि जब हुई स्वाद चुंबन का खो जाता है
दारू स्पर्श वत सारहीन आलिंगन हो जाता है ।

पर नर के मन को सदैव वश में रखना दुष्कर है
फूलों से यह मही पूर्ण है और चपल मधुकर है ।
जितना ही हो जलधि रत्न पूरित, विक्रांत अगम है
उसकी वाडाग्नि उतनी ही अविश्रान्त, दुर्गम है ।
बंधन को मानते वही जो नद नाले सोते हैं
किन्तु महानद तो, स्वभाव से ही, प्रचण्ड होते हैं ।


चूमता हूं दूब को, जल को, प्रसूनों, पल्लवों को,
वल्लरी को बांह भर उर से लगाता हूं,
बालकों सा मैं तुम्हारे वक्ष में मुंह को छिपाकर,
नींद की निस्तब्धता में डूब जाता हूं ।

सिंधु सा उद्दाम, अपरंपार मेरा बल कहां है
गूंजता जिस शक्ति का सर्वत्र जयजयकार
उस अटल संकल्प का संबल कहां है
यह शिला सा वक्ष, ये चट्टान सी मेरी भुजाएं
सूर्य के आलोक से दीपित, समुन्नत भाल
मेरे प्राणों का सागर अगम, उत्ताल, उच्छल है ।
सामने टिकते नहीं वनराज, पर्वत डोलते हैं
कांपता है कुंडली मारे समय का व्याल
मेरी बाहों में मारूत, गरूड, गजराज का बल है ।
मर्त्य मानव की विजय का सूर्य हूं मैं
उर्वशी ! अपने समय का सूर्य हूं मैं
अंध तम के भाल पर पावक जलाता हूं
बादलों के शीश पर स्यंदन चलाता हूं
पर न जाने क्या बात है !

इंद्र का आयुध पुरूष जो झेल सकता है
सिंह से बाहें मिला कर खेल सकता है
फूल के आगे वही असहाय हो जाता
शक्ति के रहते हुए निरूपाय हो जाता
विध्द हो जाता सहज बंकिम नयन के बाण से
जीत लेती रूपसी नारी उसे मुस्कान से ।

नारी जब देखती पुरूष को इच्छा भरे नयन से
नही जगाती है केवल उद्वेलन, अनल रूधिर में
मन में किसी कांन्त कवि को भी जन्म दिया करती है ।


कसे रहो, बस इसी भांति उरपीडक आंलिंगन से
और जलाते रहो अधर पुट को कठोर चुम्बन से ।

जब भी तन की परिधि पार कर मन के उच्च निलय में
नर नारी मिलते समाधि सुख के निश्चेतक शिखर पर,
तब प्रहर्ष की अति से यों ही प्रकृति कांप उठती है
और फूल यों ही प्रसन्न होकर हंसने लगते हैं ।


जिसके भी भीतर पवित्रता जीवित है शिशुता की
उस अदोष नर के हांथों में कोई मैल नहीं है ।

शुभे ! त्रिया का जन्म ग्रहण करने में बडा सुयश है
चंद्राहत कर विजय प्राप्त कर लेना वीर नरों का
बडी शक्ति है शुचिस्मिते ! वीरता इसे कहता हूं ।

कितनी सह यातना पालती त्रिया भविष्य जगत का
कह सकता है कौन पूर्ण महिमा इस तपश्चरण की ।

छत्तीसगढ के हिन्दी ब्लागर्स निराश न होवें : संजीव तिवारी का मूंछों वाला खानदानी दवाखाना आरंभ

अंतरजाल में हिन्दी चिटठाजगत, हिन्दी भाषियों का स्वर्ग है पूरे विश्व में नित नये चिट्ठाकार हिन्दी में चिट्ठा लिख रहें हैं, साहित्यकार साहित्य श्रृजन कर रहें हैं जो साहित्य जगत से परिचित नही है एवं हिन्दी के पारंपरिक रचनाकार नही हैं, जिन्हें शब्दशिल्प का ज्ञान नही है, वे भी इस महायज्ञ में आहुति दे रहे हैं । हिन्दी रचनाकारों के रचनाशिल्प का यह एक नया युग है चिट्ठा काल, वैसे ही जैसे साहित्य में रचनाशीलता एवं रचनाकारों के समय के अनुरूप समय समय पर विधा का व काल का जन्म हुआ ।

संपूर्ण विश्व जब चेटिंग फेटिंग छोड के एक सार्थक पहल कर रहा है, ऐसे समय में मेरे छत्तीसगढ के सभी कम्प्यूटर सेवी व प्रेमियों से सानुरोध आग्रह है कि वे भी इस पुण्य में सहभागी बने अपने प्रदेश एवं देश की अस्मिता को अपनी शैली में चिट्ठे के द्वारा प्रदर्शित करें ।


इस कार्य में आपके समक्ष आने वाली समस्याओं से मैं भलीभांति परिचित हूं, आपका जी मेल में खाता है और आप ब्लाग खाता भी खोल चुके हैं किन्तु आपकी मूल समस्या है हिन्दी में लिखने की, आप हिन्दी सहायता वाले ढेरों साईटों पर जा चुके हैं उनके सुझावों पर अमल भी लाये हैं किन्तु सब सिफर ।

मेरा अनुभव कुछ ऐसा ही रहा, हम पारंपरिक रूप से माईक्रोसाफ्ट के गुलाम हैं उसके द्वारा फेंके गये रोटी के तुकडे के पीछे भागने वालों की भी कमी नही है, उसके गुलामी का साधन है अंग्रेजी और उसके इसी साधन का वर्षों तक उपयोग करने के कारण हमारे मन व प्राण में कम्प्यूटर शव्द के साथ यह साधन बस चुका है । यही मानसिकता के कारण हम अपने कम्प्यूटर में हिन्दी को स्थापित नही कर पाते, लिखित रूप में अपनी भाषा में पढने उसे समझने के बावजूद । इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है चिट्ठा जगत में हिन्दी सहायता के लिये उपलब्ध हजारों लेखों, जुगाडों, लिकों के बाबजूद प्रत्येक दिन नये नये हिन्दी सहायता के संबंध में चिट्ठे लिखे जा रहे हैं ।

तो अंतरजाल में हिन्दी लिखने व पढने के संबंध में आपकी समस्या का निदान आपके पहुच में एवं मौखिक रूप से यदि आपको प्राप्त हो तो आपकी यह विकट समस्या पल में ही दूर हो जावेगी और आप भी हिन्दी सेवी के रूप में चिटठाजगत में आकर छत्तीसगढी व हिन्दी में अपने विचार प्रस्तुत कर सकेंगे।

आपके इस प्रयास में आपके प्रदेश के दो व्यक्ति आपको सहयोग करने हेतु पलक पावडे बिछाये बैठे हैं, यह मेरा स्वयं का अनुभव है । यदि आप चाहते हैं अपना स्वयं का ब्लाग बनाना एवं चाहत उस पर अपनी अभिव्यक्ति पूरे विश्व के समक्ष प्रस्तुत करने की तो आगे पढें . . .।

प्रदेश के गौरव (यह मेरी व्यक्तिगत राय है) इन दो व्यक्तियों में से एक से मैं व्यक्तिगत तौर पर इस संबंध में स्वीकृति ले चुका हूं और ये चैटर से ब्लागर बनाने का पुनीत कार्य रायपुर में कर रहे हैं, ये ब्लाग जगत के पुराने खिलाडी है, हिंदी को भी अच्छे से जानते हैं, छत्तीसगढी में जीते हैं और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार (रायपुर में कहा जाता है कि सेनानी परिवार का एक मनका खसका रहता है यानी धुन के पक्के, यह मै इसलिये समझ सकता हुं क्योंकि मेरी पत्नी भी एक सेनानी परिवार से है) के हैं, ये हैं रायपुर के आवारा भाई संजीत त्रिपाठी जी जिनके पास जुगाडों का खजाना है ये पूरे आवारगी (संजीदगी) से सभी हिन्दी चिट्ठों में भ्रमण करते हैं व अपनी सक्रियता व्यक्त करते हैं, आप इनकी सहायता अवश्य लें, इन्हे मेल करें ।

इनका लिंक है :- http://sanjeettripathi.blogspot.com/


एवं एक हैं जिनसे मुझे स्वीकृति लेने की आवश्यकता नही हैं, इनके सम्बध में मैं कुछ नहीं कहुंगा ये परिचय के मोह्ताज नहीं हैं इंहें सब जानते हैं । मुझे विश्वास है और यह संपूर्ण चिट्ठाजगत जानता है कि वे हमारे प्रदेश ही नही पूरे विश्व के चिटठाकारों की सहायता के लिये सदैव तत्पर हैं । वें चिट्ठाकारिता के नये युग व विधा के जनक हैं नाम है भाई रवि रतलामी, मेरे प्रदेश का शेर जहां गया वहां का राजा ।

इनका लिंक है :- http://raviratlami.blogspot.com/


भाई जय प्रकाश मानस के चिट्ठे से भी चिट्ठाकार सहायता ले सकते हैं । इसके अतिरिक्त हमारे ई पंडित सहित सभी चिट्ठाकार, चिट्ठाकारिता के संबंध में पूछे गये हर सवाल का जवाब देने को चौबीसो घंटे तत्पर हैं बिना राग द्वेश के, जिनसे आप चिट्ठाजगत में आने के बाद स्वयं ही परिचित होते जायेंगें ।


आप आरंभ करें शास्त्रों में कहा गया है जब रास्ता न सूझे तो ? जायें वहां - जे बहु गणा गता सो पंथा । जिधर बहुत लोग जायें वही सही राह है, वहीं जायें, क्योंकि जिधर बहुत लोगों के कदम पडते हैं वहीं पगडंडिंयों का निर्माण होता है जो कालांतर में राजपथ में तब्दील हो जाता है। (यह मेरा निजी शब्दार्थ हैं)

शुभकामनाओं सहित ।

संजीव तिवारी

छत्तीसगढ के नगाडे की धूम : संपूर्ण विश्व में


गिनीज बुक आफ वल्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज कराने छत्तीसगढ के लोक कलाकार स्पात नगरी के रिखी क्षत्रीय ने सौ घंटे अनवरत नगाडा बजाने का छत्तीसगढिया जजबा को फलीभूत करने के लिये स्थानीय कला मंदिर में शुक्रवार, १३ अप्रैल की सुबह ९.२५ को छत्तीसगढी लोकगीतों के साथ गायन व वादन का रिकार्ड तोडू सफर का आरंभ किया ।
(आलोक प्रकाश पुतुल का लेख पढें बी बी सी हिंदी में)


नगाडा दुनिया का सबसे पुराना वाद्य यंत्र है, इसका रुप और इसके बजाने की शैली अलग अलग देशों मे अलग अलग प्रकार से है रिखी ने छत्तीसगढ के इस पारम्परिक वाद्य यंत्र की घटती लोकप्रियता को बढाने एवम छत्तीसगढ की संस्कति, अस्मिता व स्वाभाविकता, सरलता को विश्व में प्रस्तुत करने के उद्देश्य से यह बीडा उठाया है ।

गिनीज बुक में ८४ घंटे तक लगातार ड्रम बजाने का रिकार्ड फिलहाल स्विटजरलैंड के अरूलानाथन सुरेश के नाम दर्ज है जिन्होंने यह शराहनीय कार्य वर्ष २००४ में किया था ।

भाई रिखी क्षत्रीय छत्तीसगढ के लोक कलाकार हैं इन्होंने छत्तीसगढ के पारंपरिक लोक वाद्य यंत्रों का अनोखा संग्रह किया है जिसकी प्रदर्शनी समय समय पर देश व विदेश में भिलाई स्पात संयंत्र के सहयोग से लगायी जाती रही है ।

आज इनका प्रयास प्रत्यक्ष देखने के बाद मेरा छत्तीसगढिया मानस गदगद हो गया, आप भी इन्हें आर्शिवाद प्रदान करें कि रिखी क्षत्रीय एवं उनकी टीम विश्व रिकार्ड कायम करें ।

आपसे अधिकाधिक संख्या में टिप्पणी की आवश्यकता लिम्का विश्व रिकार्ड में रिकार्ड के लिये चहिये तो देरी मत कीजिये रिखी को इंतजर है आपके आशीश की आप किसी भी भासा में अपना कमेंट हमें भेज सकते है ।


रिखी को शुभकामनाओं सहित ।

संजीव तिवारी

छतीसगढी लघु कथा : कोंन नामवर सिंह ?

पुन्नी के दिन मोर घर सतनरायेन के कथा होये रहिस. वोमा मोर परोसी बलाये के बाद घलव नई आये रहिस. मोर सुवांरी बने मया कर के परसाद ल मोर टेबल में माढे कागज में पुतिकिया के रौताईन (शहर में काम करईया बाई मन ल हमन अपन मन मढाये बर अईसनहे रौताईन कथन काबर कि बम्हनौटी बांचे रहे कहि के) के हांथ परोसी के घर भेज दिस.

कथा पूजा के बाद मैं हर हरहिंछा उपरोहिता बाम्हन ल दान दक्षिणा देके बने खुश करा के अउ टें टें के अपन आप ल बकिया तिवारी वेदपाठी बाम्हन बतात बतात उपरोहिता बाम्हन के चेहरा म अपन आप ल एक आंगुर उपर बैठारत भाव ल खोजत अपन कुर्सी टेबल म बैठेंव त मोर होश उठा गे.

मोर जम्मो लिखना ल तो मोर सुवांरी बोहायेच दे रहिस फेर मोर इंदौर के इतवारी भास्कर में छपे जुन्न्टहा एक ठन कहानी के बारे म टीका टिपनी डा नामवर सिंह हा मोला भेजे रहिस तउन चिट्ठी ला मैं ह अपन टेबल के उपरेच में रखे रेहेंव काबर कि कथा सुनईया अवईया मन ह ओला देखही त मोर बर उखर सम्मान बाढही कहि के,

टेबल ले चिटठी गायब ! घर के जम्मो मनखे मन ल पूछ डारेंव पता चलिस परसाद ह चिट्ठी के पुतकी म बंधा के परोसी घर पहुंच गे हे तुरते परोसी घर चल देंहेंव फेर कईसे कहंव परसाद ल वापस कईसे मांगव दरवाजा म खडे गुनत रहंव तईसनहे बद ले परसाद के पुतकी ह बाहिर खोर म गिरीस परोसिन ह बडबडा बडबडा के परसाद ल फेंक दिस, मैं मारे खुशी के पुतकी कोती दौंडेव ओखर पहिली ले कुकुर ह टप्प ले पुतकी ल झोंक लिस मोर हात हुत कहत ले पुतकी तार तार होगे.

बडका कोहा उठायेंव अउ कुकूर के मूडे ल देंव ! कांय कांय !

मोर अंतस रो दिस वो चिट्ठी ल मैं हर अपन बीते दिनन के निसानी के रूप म रखे रेहेंव हाय !
घर लहुट गेंव कुकुर के कांय कांय बंद नई होईस

घर आके सोंचेंव वा रे सतनरायेंन के भगत
तोर धरवाली परसाद वोला दिस जेखर मन म भगवान बर सरधा नई हे
वुहु परोसी भगवान के परसाद ल फेंक दिस लीलावती कलावती कनिया के कहिनी से बेखबर
कुकुर बड सरधा से खात रहिस वो का जानैं बिचारा कि परसाद ह मोर सम्मान में बंधाये हे
मैं कथा कहवईया ह वोला मार देंव नई खान देंव
फेर वो कुकूर बिचारा का जानैं
कोंन नामवर सिंह अउ कोन लीलावती ?

संजीव तिवारी

छत्तीसगढी राजभाषा दिवस

३० मार्च २००२ को छत्तीसगढ विधानसभा में छत्तीसगढी भाषा को राजभाषा घोषित करने के अशासकीय संकल्प के पारित होने के यादगार क्षणों को अविश्मरणीय बनाने एवं छत्तीसगढ राज्य के अपने पहचान को स्थापित करने के उद्देश्य से ३० मार्च २००७ को छत्तीसगढी भाषा दिवस के रूप में मनाया गया ।

पूरे राज्य में छुटपुट क्रियाकलापों के अतिरिक्त एक बडा आयोजन छत्तीसगढ की राजधानी में देखने को मिला ।

रायपुर में राज्य स्तरीय संगोष्ठी के आयोजन में राज्य के लगभग सभी छत्तीसगढी भाषा के सुधी उपस्थित थे ।

डा सुधीर शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक छत्तीसगढी राजभाषा का सामर्थ्य का विमोचन भी इस अवसर पर किया गया, डा सुधीर शर्मा की आयोजन अविध् में प्राप्त जानकारी के अनुसार इस पुस्तक को जन जन तक पहुंचाना भी एक प्रकार से छत्तीसगढी की सेवा ही होगी । एक बोली को भाषा व भाषा को राजभाषा के रूप् में स्थापित करने के सफर में उसके तकनीकि पहलू व राजनेताओं में इसके लिये अदम्य संकल्प शक्ति के विकास के पहल के लिये ऐसे अध्ययन की आवश्यकता हम सभी को है ।

श्रीमान रमेश नैयर का यह कथन वर्तमान परिवेश में सर्वाधिक उचित है कि छत्तीसगढी भाषा को स्थापित करने के लिये व्यापक जन आन्दोलन की आवश्यकता है । सिर्फ सभा, गोषठी से कुछ नही होने वाला, छत्तीसगढ के प्रत्येक व्यक्ति को इसके लिये मानसिक रूप् से तैयार करना होगा एवं छत्तीसगढी भाषा के प्रति सम्मान का भाव जगाना होगा ।

सत्य के घ्वजाधर श्री धनाराम जी नें छत्तीसगढी भाषा के प्रति छत्तीसगढ में व्यवहार के संबंध में बहुत ही सटीक उदाहरण प्रस्तुत किया जो हम सभी के लिये अनुकरणीय है, हम स्वयं अपनी भाषा को पददलित करने के लिये दोष ी हैं ।

छत्तीसगढी भाषा के संबंध में श्री नंदकिशोर तिवारी जी नें अपनी छत्तीसगढी पत्रिका में लिखा है कि हमने स्वतंत्रता आंदोलन के समय से ही अपना कमान हिन्दी भािषयों को सहजता से सौंप दिया । मेरी समझ में उस समय के छत्तीसगढ के अ छत्तीसगढी भाषी विचारकों नें छत्तीसगढी को विकसित करने के बजाय उसके विकास में सदैव रोडे अटकाये । इसी का परिणाम है कि हमें अपनी पहचान को स्थापित करने के लिये कमजोर वैचारिक क्रांति के पौधे को बारबार सींचना पड रहा है ।

३० मार्च के इस राज्यस्तरीय सम्मेलन में वक्ताओं के उदबोधन से उपस्थित व्यक्तियों में सम्मेलन अवधि तक ही सहीं अपनी भाषा के प्रति सम्मान का भाव स्पषट परिलक्षित हुआ, आशा है यही भाव हम संपूर्ण छत्तीसगढ में जगा पायें ।

उक्त अवसर पर उपस्थित छत्तीसगढ के अनेकों प्रेमियों में से मैं कुछेक के नाम का यहां पर उल्लेख करना चाहूंगा क्योंकि हमें भविषय में इन्ही प्रेमियों के सहारे हम अंजाम तक पहुंच पायेंगे यथा :-

सर्वश्री रमेश नैयर, भूपेश बघेल, सरजूकांत झा, पदमश्री महादेव पाण्डेय, डा चितरंजन, गिरीश पंकज, श्रीमती शकुंतला तरार, परदेशीराम वर्मा, डा सुधीर शर्मा, सुरजीत नवदीप, प्रो प्रभुलाल मिश्र, प्रेम चंद्राकर, जलकुमार मसंद, सुश्री प्रीति डूमरे, जे आर सोनी, अनूप रंजन पाण्डेय, डा चितरंजन, श्रीमती सत्यभमा आडिल, बसंत कुमार तिवारी, वीरेन्द्र पाण्डेय, रामेश्वर वैषणव, भाई लक्ष्मण मस्तुरिहा, हमारे चिट्ठा जगत के चितेरे भाई जय प्रकाश मानस, धनाराम ढिंढे, ममता चंद्राकर सहित अनेक छत्तीसगढी प्रेमी उपस्थित थे ।
इस समाचार को यहां के समाचार पत्रों ने कोइ तवज्जो नहीं दिया, राजनीतिक माल्यार्पण व समाचारो से भरे रहने वाले पत्रों के पेज में इस समाचार को हांसिया ही मिल पाया

मै इस चिट्ठे के सहारे मेरे इस अनुभव को उन सभी छत्तीसगढी के सुधी पाठकों के बीच ले जाना चाहता हूं जहां विचारों को बांध देने के लिये कोई मीसा लागू नहीं है ।

शब्दों में लयबद्धता की कमी के लिये क्षमा चाहूंगा, एक अप्रैल से आज तक इस संबंध में कुछ लिखने की सोंच रहा था किन्तु चिट्ठा जगत एवं आत्म प्रवंचना में खो सा गया था आज भाव जागे हैं तो प्रवाह के चपलता को बांध नहीं पा रहा हूं, क्षमा सहित ।

छपास ले मन भले भरत होही पेट ह नई भरय - संजीव तिवारी

इंटरनेट म हिन्दी अउ छत्तीसगढी के भरमार ल देख के सुकालू दाऊ के मन ह भरभरा गे वोखर बारा बरिस पहिली कोठी म छाबे भरूहा काडी ल गौंटनिन मेंर हेरवाइस, तुरते सियाही घोरे ल कहिस गौंटनिन कहे लागिस का गौंटिया तोर सियाही घोरे के किस्सा तोर बहिनी भाई मन बिक्कट करथे जब तुमन छोट कन रेहेव त हमार सास चोरभठ्ठिन ल बड पदोवव, हंउला हंडा म सियाही घोरे ल कहव उहू ह कम पर जही कहि के रोवव अब फेर मोर मेर घोरवांंहू का सियाही ल.

जईसे तईसे सुआंरी के मुह ला बंद करा के लईका के सियाही के बोदल म भरूआ काडी ल बोरिस अउ का लिखव का लिखव कहि के सोंचे लागिस भरूहा काडी के सियाही सुखा गे फेर का के जवाब नई सूझिस.

बारा बछर पहिली के मन भौंरा अब नई नाचे ल करे, रहे सहे लिखे के समरथ ओखर मंत्री कका के समाजवादी सोंच ल बेगारी म टाईप कर कर के अउ अरथ ल गुन गुन के, अपन खातिर कानून के बडका बडका पुस्तक मन ला चांट चांट के चकबका के कुंदरू बन गे हे खाली पक्षकार, आवेदक, अनावेदक, धारा, यह कि .. . के सिवाय अउ कुछू बर दिमाक चलय नही.

थोर बहुत बांचे आसा ल अउ लिखईया मन बर सुकालू दाऊ के हिरदे म बसे सम्मान ल, दिल्ली के एक झन राजस्थानी अडबड बडका हास्य कवि ह टोर दिस. होईस अइसन के, एक पईत सुकालू दाऊ के सियानी म चलत पांच चंदैनी वाले एक होटल म मंत्री महोदय के आदेस म कबि सम्मेलन बर फोकटौंहा के दस ठन कमरा बुक होईस. कअि मन दारू-सारू उडईन तहां दिल्‍ली वाले बड़े कबि चिक्कन फर्रस में बिछल के गिर गए. सुकालू दाऊ ह तुरते डक्टर ल बला के वोखर इलाज करवाईस, वोखर सेवा म अपन जम्मों चाकर मन ल लगा दिस. वो बिचारा सुकालू दाऊ ला अडबड असिस दीस. सांझ कन मंत्री महोदय के एक चम्मच कबि ह बड़े कबि के बिछले के बात म, सुकालू दाऊ ला गलती धरात, अइसन चमकायिस कि वोखर पुरखा कबिता वाले मन के तीर म जाना छोड दीस, अईसन विद्रूप अउ शोषण के विरूद्ध बोलईया मन ला तोरे खटिया तोरे बेटिया . . . करत देख के वोखर मन ह भर गे, कि अब नई लिखव सिरतोन में मोर गौंटनिन संही कहिथे नेता ले बडे झुठ्ठल्ला हो गे हें लिखईया मन ह. लिखथे कुछ करथें कुछ. फेर नेट ल देख देख के नवां नवां उदंत भाई मन के, लेख अउ उखर प्रोफाईल म उखर बारे म सूंघे के परयास कर कर के भरम के बादर छटत गिस.

अईसनहे समय म सुकालू दाऊ के मन ह कहिस, बाबू थोरकिन धीर धर ले, पहिली पढे लईक जिनिस मन ला पढ ले, गुन ले, अभी भरूहा कांडी धरईया मन ह का अउ कोन, बिसे में कुरू चारा बांटत हे, तेला पहिली समझ तो ले. फेर लिखे ल धरबे, फेर तोर भरूआ काडी के जमाना तो सिरा गे हे, तईहा के बात ल बईहा लेगे तईसनेहे. जेमा तैं ह लिखना चाहत हस तिहां की बोरड के कलम अउ यूनीकोड के सियाही घोरे ल परही.

अईसे करत करत दिन ह पहाये लागिस अब रोजे सुकालू दाऊ, आफिस म हिन्दी अउ छत्तीसगढी के गियान ल खोजय ओला अपन ताबिज पेन डराईभ म सकेलय अउ घर आके फुरसदिया पढय, अइसे म सुकालू दाऊ ला अढबड बेरा लगय. वोखर गौंटनिन कहय का जी तुहर कम्प्यूटर तो मोर सौत ये, मोर तीर गोठियाय बोले के टेम तुहांर तिर नई ये सिरिफ खटर खटर म लगे रथो अइसनहे अउ दू चार दिन चलही त तुहंर जम्म्मो कहिनी किस्सा गीत ददरिया ल शिवनाथ म सरोये रेहेंव तईसनेहे कम्प्यूटर ल सरो देहूं .सुकालू दाऊ मारे डर के उहू काम ल छोड दिस कम्प्यूटर रहिही तभे, चुपे चाप मोर मानस ह सप सप करत जीयत रहिही.

सुकालू दाऊ अउ वोखर गौंटनिन के लरई ल वोखर परोसी मस्टरिन टूरी ह (जउन ह सुकालू दाऊ के बेटा ला टिउसन पढावय तउन ह) रोज सुनय. एक दिन टीबी वाले बाइ के इस्टाइल म कहिस गौंटनिन तुमन गौंटिया ल जउन काम करत हे तउन ल करे ले मत रोकव, देश हा अडबड उन्नति कर डरे हे गौंटिया के लिखई पढई ल तुमन बंद मत करव. वो ह इंटरनेट म हिन्दी खोजथे वोला खोजन दव. देखव तुहर गुड्डू ह रोज नवां कम्प्यूटर लेहे ल गौंटिया ल कहत हे, फेर तुमन ओला नई दे सकत हव वुही जुन्नटहा मसीन म वो ह गेम खेलत हे, अउ अपन ममा के लेपटाप म अपन नजर गडियाये हे.

हिन्दी अउ छत्तीसगढी म इंटरनेट म अडबड काम होवत थे, ये समझ लेवव कि राहत कार्य खुले हे, काम करे बर सब्बो झिन ल झारा झारा नेउता हे. हमर छत्तीसगढीया भाई इतवारी ह रतलाम ले अउ शुकुल महराज ह अमरिका ले गियान बांटत हे. अउ अडबड झिन हे दाई एक ले बड के एक छत्तीसगढी म परकाश भाई रईपुर ले अउ तुंहर कोरबा वाले पिरिंसपल दीना ममा ससुर के मितान कनहईया तिवारी ह बेलासपुर ले खटर पटर करत हें अउ बलाग लिखईया मन ला ईनाम देवईया हे कोन जाने तोर गौंटिया ल कोनों चिन डारही अउ मोर कपिला भांचा ल कुछुच तो दान दे डारव, अगले जनम ल सुघ्घर करे बर कहि के, इनाम दे डारिस, त तोर गुड्डू बर नवां खेलवना आ जही, अउ तोर गौंटिया के पेपर म नाव तक छपही.

गौंटनिन ह पेपर म नाव छपई के बात ल सुनके जंग हो जथे, देख मस्टरिन येखर नाम ह मोर बिहा के आये के पहिली अडबड छपत रहिसे. ओला देख पढ के मोर बाप ह येखर बर बिहा दिस. फेर येखर छपई ले हमर परिवार के पेट नई भरतिस गांव के गौंटी ल छोड के शहर आ गे हे. इहां अक्केल्ला रहिसे त खर्चा कम रहिस, खाली छपास रोग ल धरे रहिस गांव के धान पान कतका दिन ले पुरही, इंखर बबा मालगुजार रहिस अब कईसे गुजारा चलत हे तउन ला तो तैं ह देखत हस.

अपन मालिक बर काम करे के टेम म कुटूर मुटूर की बोरड अउ कलम ल अपन खातिर चला के नमक हरामी नई करना हे दाई, न तो येखर तिर बिहनिया ९ ले रात कन ९ तक काम के सिवा टेम हे न तो ये हर सरकारी दमांद हे, जउन डिउटी टेम म सेटर गुंथई, चेटिंग करई अउ साहित्य लिखे बर ससुर ह तनखा दे दिही. बडे बडे झंडाबरदार बाना धरईया, अतका किताब, ओतका किताब ये इनाम वो सनमान पवईया मन ह अपन डिअटी टेम म कतको छत्तीसगढ, छत्तीसगढी, हिन्दी, अंतरजाल के सेवा कर लैं अउ वहवाही लूट लैं मोर समझ में ये ह अपन काम ले बेईमानी करे के नवां आदत ल बढावा देना ये.

तेखर सेती दाऊ ला बने मेहनत कर दाउ कहिथौं, छपास ले मन भले भरत होही पेट ह नई भरय अउ रहिस बात ईनाम पाये के, त मोला मोर गौंटिया के मेहनत म भरपूर बिसवास हे, वो ह अपन गियान ला अपन नौकरी धंधा म लगाही त मोर सातो पुरखा ल तार दिही.

गौंटनिन के ये बात ल सुन के मैं अउ मस्टरिन दोनों चुप हो गेन.

मोर सोंच मोर छत्तीसगढी

छत्तीसगढी भासा बोलैया समझैया मन ला मोर जय जोहारमोर मन हा छत्तीसगढी बोले पढे लिखे म अडबड गदगद होथे, काबर नई जानव ? फ़ेर सोचथो मोर जनम इहि छत्तिसगढ के कोरा मा होये हवय गाव, गौठन, गाडा रावन के धुर्रा संग खेलत औउ ब्यारा के पैरा मा उलानबादी खेलत लईकई बिते हे सुआ ददरिया फ़ाग अउ माता सेवा गात नाचा गम्मत खेलत पढई के दिन बिते हे तेखरे सेती मोर छत्तिसगढ अंतस ले कुहुक मारथे ।इहा भिलाई में मोर छत्तीसगढी परेम मा पर्रा डारे ला लागथे काबर कि भेलई तो मोर भारती बुढी दाई के रुप ये, इहा मोर सब्बे २७ मोसी बढी दाई के बेटा मन मिल जुर के रहिथे । उमन ला मोर भासा ला समझे मा थोरिक तकलिभ होथे, तकलिभ होवय के झींन होवह फ़ेर मोर भासा ला सुन के उकर मन मा निपट अनपढ गवांर - अढहा अउ मरहा मनखे के छबि छा जथे अउ उहि छबि जईसे उंखर हमर मन बर ब्यवहार परगट होथे ।तेखर सेती मोला हिंदी बोले ला लागथे, फ़ेर कहां जाही माटी के छाप हा, परगट होइच जाथे । जईसे बिहारी भाई के लाहजा, बंगाली भाई के लहजा हिंदी हर माटी ला बता देथे ।मोर माटी के लहजा वाले हिंदी ले काम चलाथों जईसे कोनो मोर भासा वाले मिलथे छत्तीसगढी में गोठ बात करथों मोर ईहि परेम ला देख के मोर एक बंगाली मितान मोर संग छत्तीसगढी में बेरा कुबेरा बतियाथे, बतियाथे का भईया अईसन कर के वो हा हमर छत्तीसगढीया मन के झुठे छबि मोर जम्मो बाहिर ले आये भईया मन के मन मा बैठे हे वोला सोंच सोंच के अपन अंतस ला जुडवाथे फ़ेर मोला ऐसे जनवाथे की मोर भासा के सम्मान करथे, मैं ओखर संग छत्तीसगढी नई बोलव ? काबर बोलहुं जी मोर भासा ला चिढईया मन संग तो हमन ला अंगरेजी में बोलना चहिये आप मना का सोंचथो मोला लिखव ।एक बात जौन मोर सियान मन हर हमेशा कहिथे दुसर राज ले आये ईहां के रहैया मन हा अपन घर मा, अपन भासा बोलैया मनखे मन संग, अपनेच भासा में गोठीयाथे फ़ेर हमन अपनो मन संग छत्तीसगढी में गोठीयये में लाज करथन ।मोर एक झन संगी अमरीका मा रहिथे उंहा ले मोला फोन करथे त छत्तीसगढी मा गोठीयाथे कहिथे अडबड मजा आथे ये भासा मा बात कर के । मोर संगी जब तैं मोर संग रहत रहे त अपन पापा (ददा) ला फोन करना रहय त मोला बहाना बना के एति वोति भेज देवस काबर कि तोला छत्तीसगढी मे अपन पापा संग बात करना रहय ओखर संग तै हिंदि नई मार सकस अउ मोर आघु मा छत्तीसगढी बोल के अपन आप ला गवनीहा सबित नई कर्ना चाहत रहे । अब कहा ले पलपला गे मोर महतारि के मया हा । शिवनाथ के तीर मे रहि के मछ्ररी के छोठ्का घर अपन बैठ्क् में रखैया भाई तोर गरु गठरी ला बोहे बर महि मिले हव । मोर अईसनहो संगि मन छत्तीसगढी ब्लाग लिखे लागे हें चल भाई तोरो जय होवय थोरिक देरी मा सही मोर छत्तीसगढी के रतिहा पंगपंगईस तो सहीं ।छत्तीसगढी में अउ बहुत कुछ लिखना चाहत हौं आप के अशिश के जरुरत हे ।आगू अउ लिखिहव छत्तीसगढी में समा गे जम्मो भासा : नवा छत्तीसगढी

एक यायावर : हीरानंद सच्चिदानंद वात्सायन ‘‘अज्ञेय’’

आज लेखक कवि अज्ञेय की महानता के सम्बंध में विशेष रूप से कुछ कहने की आवश्यकता बाकी नही है । हिंदी सहित्य के वे अपने ढंग के मूर्धंय लेखक व सर्वधिक चर्चित रचनाकार थे ।१९२४ में “सेवा” नामक पत्रिका में अज्ञेय जी की पहली रचना प्रकशित हुई तब वे मात्र १३ वर्ष के थे, उसके बाद वे कभी मुड के नहीं देखे ईसी के बल पर् वे लगभग १५ कविता संग्रह, ७ कथा संग्रह, ४ उपन्यास सहित ७५ कृतियों के श्रृष्ठा बने । वे पिछले लगभग ५ दसकों से हिंदी कविता को लगातर प्रभावित किये रहने वाले और हिंदी उपन्यास लेखन पर अनेकों प्रश्न चिंह व विवाद खडे करने वाले नई शैली के श्रृष्ठा थे।

अज्ञेय जी के अद्भुत वाक्य संयोजन ने मुझे “नीलम का सागर पन्‍ने का द्वीप” मे प्रभावित किया, इसे पढने के बाद इस विशिष्‍ठ लेखक के सम्बंध में जानकारी इकट्ठे करना प्रारंभ कर दिया था, यह लग्भग २४ वर्ष पूर्व की बात थी, किंतु यह ऐसा लेखक था कि इसकी जीवनी अस्पस्ट होती थी। इन्‍होंने आज तक कहीं अपने बारे में कुछ् लिखा व कहा नहीं, वे स्वभावत: मौन ही रहते थे। अज्ञेय जी एक क्रांतिकारी थे, इनके क्रांतिकारी मित्र राजकमल राय अपने पुस्तक “शिखर से सागर तक” में इनके मौन का उल्लेख तद समय के साहित्यकारों की जुबान में करते हैं यथा - विमल कुमार जैन “वात्सायन शुरु से कम व स्पस्ट बोलते हैं” रघुबीर सहाय “वे अपने जीवन में किसी भी किस्म की घुसपैठ पसंद नहीं करते।“

इसी सम्बंध में मनोहर श्याम जोषी कहते हैं “वे भला कब किसको अवसर देते हैं की कोइ उंहें कुछ भी जान सके, किसको वे अपने भीतर प्रवेश करने देते हैं, जो भी उनके बारे में जानने का दावा करता है, ब्यर्थ करता है।“  कुछ कही कुछ सुनी व कुछ पढी गई बातों के आधार पर उंहें लोग याद करते हैं। उनके जीवन के सम्बंध में न सहीं उनके सहित्य के सम्बंध मे लोग उन्‍हें जानते हैं व उनकी लेखन क्षमता का लोहा मानते हैं। एक जमाने में “विशाल भारत” पत्रिका में छपने वाली कहानियों के नायक “सत्या” का जन्‍मदाता अज्ञेय जनमानस के लिये एक विचित्र लेखक हुआ करता था। कहां प्रेमचंद के कहनियों की भाषा भाव की सादगी और कहां यह अज्ञेय की भाषा जिसके अनेकों शब्दों को समझना तो दूर सहीं ढंग से उच्चारण कर पाना भी मुश्किल होता था, तिस पर एक अदभुत नायक “सत्य” एसा आदमी प्रेमचंद के नायकों सा जनमानस नहीं होता था। अत: कहनी के उद्देश्यों को समझने में लोगों को कई दिन लग लग जाते थे। जब वे समझते थे तो विस्मित रह जाते थे सत्य पर और अज्ञेय पर।

अपनी इसी शैली एवं क्रांतिकारी व भ्रमणशील जीवन का सुंदर समन्‍वय प्रस्तुत करते हुये दिल्ली जेल,  लाहोर, मेरठ, आगरा, डल्हौजी जैसे जगहों पर आपने अपनी उतकृष्‍ठ कृतियों का सृजन किया। अज्ञेय जी को भारत की संस्कृति एवं इतिहास के अतिरिक्त अन्य देशों की संस्कृति व इतिहास व तात्कालिक परिस्थितियों का विशद ज्ञान था। इसकी स्पट झलक उनकी कहानी व यात्रा वृतांतों में दृटिगत होता है, १९३१ में दिल्ली जेल में लिखी गयी उनकी कहानी “हारिति” अपने आप में संम्पूर्ण रूस को चित्रित करने वाली कहानी है, इसके नायक क्वानयिन व हारिति लम्बे समय तक याद किये जायेंगे, कहानी में शब्दों का प्रयोग इस ढंग से किया गया है कि आंखों के सामने सारा घटनाक्रम प्रस्तुत हो रहा है, ऐसा प्रतीत होता है। अज्ञेय जी स्वयं क्रांतिकारी रहे हैं इस कारण वे क्रांति का चित्रण बहुत सटीक ढंग से करते थे। रूसी क्रांति की पृष्टभूमि पर लिखी गयी एक और कहानी “मिलन” में दमित्र्री व मास्टर निकोलाई का मिलन और रूस की उस समय की परिस्थिति का स्पष्ट चित्रण इस बात का ऐहसास देता है कि वे रूस के चप्पे चप्पे से वाकिफ थे। इसके अतिरिक्त “विवेक से बढकर” ग्रीक पर तुर्की आक्रमण एवं “स्मर्ना नगर का भीषण आग” “क्रांति का महानाद” “अंगोरा के पथ पर” जैसे कहानी में किया गया है, इन कहानियों को बार बार पढनें को जी चाहता है।

कहानी उपन्यास एवं कविता के साथ साथ संपादन के क्षेत्र में उनका योगदान उल्लेख्नीय है, हिन्दी पत्रकारिता को उन्होंने नई दिशा “दिनमान” “नवभारत टाईम्स” और “सैनिक” आदि के सहारे जो दिया उसे भुलाया नहीं जा सकता। एक संपादक के रूप में समाचार पत्र और जनता के प्रति अपने कर्तव्य के निर्वहन में वे सर्वप्रथम रहे। इस संबंध में एक दिलचस्प वाकया प्रस्तुत है, आगरा के एक दैनिक समाचार पत्र के अज्ञेय जी संपादक थे और इसके प्रबंध संपादक कृष्ण दत्त पालीवाल थे। वे उस समय चुनाव लड रहे थे और चाहते थे कि सैनिक के संपादकीय में उनकी प्रसंशा नगम मिर्च लगाकर प्रकाशित की जाय। अज्ञेय जी को यह उचित नहीं लगा और इस प्रस्ताव को उन्होंने बडे सरल शब्दों में ठुकराकर जनता एवं पत्रकारिता धर्म के प्रति अपना फर्ज निभाया।

ऱचनात्मक लेखन व संपादन के क्षेत्र में “प्रतीक” “विशाल भारत” व “नया प्रतीक” का संपादन उनकी सर्जनात्मक प्रतिभा का महत्वपूर्ण योगदान है। अज्ञेय जी को अपने जीवन काल में ही कई छोटे बडे पुरूस्कार भी मिले और वे अलंकरणें से विभूषित भी हुए। इसी क्रम में भारतीय साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार १४ वां ज्ञानपीठ पुरस्कार “कितनी नावों में कितनी बार” के लिये प्राप्त हुआ। इसके पूर्व उनका नाम दो बार नोबेल पुरस्कार चयन समिति के बीच भी प्रस्तुत हुआ किन्तु यह सम्मान उन्हें नहीं मिल पाया।

१४ वां ज्ञानपीठ पुरस्कार समारोह कलकत्ता के कला मंदिर में बुधवार २८ दिसम्बर १९७९ को आयोजित हुआ था। उक्त अवसर पर पुरस्कृत काव्य कृति “कितनी नावों में कितनी बार” के साथ साथ ही उनकी एक अन्य कविता “असाध्य वीणा” को मंच पर नृत्य नाटिका रूपक में प्रस्तुत किया गया। यह अकेली कविता “असाध्य वीणा” अज्ञेय जी के कवि रूप के विविध आयामों को समेटे हुए उनकी रचना शिल्‍प और शैली का प्रतिनिध्त्वि करती है। पुरस्कार प्राप्ति के बाद मंच से अपने धीर वीर गंभीर वाणी में उन्होंने कहा था 'मेरे पास वैसी बडी या गहरी कोई बात कहने को नहीं है .. … किन्तु वे बडी गहरी व गूढ बात कहते हुए उसी प्रवाह में कहते चले गये .. साहित्य एक अत्यंत ऋजु कर्म है उसकी वह ऋजुता ऐक जीवन व्यापी साधना से मिलती है । नव लेखन एवं साहित्य के क्षेत्र में हुए नव प्रयोग के संम्बंध में उन्होंने कहा था, नये सुखवाद की जो हवा चल रही है उसमें मूल्यों की सारी चर्चा को अभिजात्य का मनोविलाश कह कर उडा दिया जाता है पर मैं ऐसा नहीं मानता और मेरा सारा जीवनानुभव इस धारणा का खण्डन करता है। मेरा विश्वास है कि इस अनुभव में मैं अकेला भी नहीं हूं।

अज्ञेय के समकालीन प्राय: सभी साहित्यकारों से उनके मधुर संबंध थे किन्तु यशपाल एवं जैनेन्द्र जी से उनका गहरा व पारिवारिक संबंध था। यशपाल के साथ वे सदा जेल में एवं बारूदों के बीच में रहे। इन दोनों के बीच में रहे एक क्रांतिकारी ने कहा था, कि क्रांतिकारी पार्टी में दो लेख्क थे, एक जनाब पिक्रिक एसिड धोते थे और दूसरे साहब श्रंगार प्रसाधन की सामाग्री बनाते थे, वे थे क्रमश: यशपाल व अज्ञेय। जैनेन्द्र जी से भी अज्ञेय जी का संम्बन्ध उल्लखनीय था। लेखक अज्ञेय ही थे जिनको लेकर जैनेन्द्र जी बहुत सी बातें करते थे, अज्ञेय को लेकर जैनेन्द्र जी हमेशा भावुक हो उठते थे, शायद इसका एक कारण तो यही था कि हिन्दी में अज्ञेय जी को परिचित कराने का दायित्व सर्वप्रथम उन्होनें ही वहन किया था।

अज्ञेय जी लाहौर के क्रांतिकारियों में मुख्य थे, उन्हे सजा हुयी तो दिल्ली जेल में रखा गया। उस समय उन्होंने अपनी कहानियां अपने वास्तविक नाम से जैनेन्द्र जी को भेजी, और जैनेन्द्र जी नें रचनाओं पर उनका असली नाम न देकर अज्ञेय नाम दिया, और इसी नाम से रचनायें प्रकाश्नार्थ पत्र पत्रिकाओं में भेजी। आगे जाकर वात्सायन का नाम अज्ञेय ही हिन्दी संसार में प्रतिष्ठित हुआ। अज्ञेय जी लम्बे समय तक जैनेन्द्र जी के साथ जुडे रहे उनके घर में भी रहे शंतिनिकेतन में भी रहे। जैनेन्द्र जी के उपन्यास “त्यागपत्र” का “द रेजिगनेशन” नाम से अंग्रेजी में अनुवाद भी किया। जैनेन्द्र जी ये मानते थे कि अज्ञेय अहं से कभी उबर नहीं पाये और ज्ञेय होने की सहजता उनसे हमेशा दूर रही किन्तु अज्ञेय जी के मन में अंत तक जैनेन्द्र जी के प्रति असीम श्रद्धा विद्यमान रही।

बहुयामी बहुरंगी प्रतिभा संपन्न और सामाजिक मर्यादाओं के संदर्भ में स्वच्छंद जीवन जीने वाले, अज्ञेय जी का लम्बे समय से न केवल उनकी रचनायें, अपितु उनका व्यक्तित्व भी, अपनी तरह का आर्कषण बनाये हुए था। इनके व्यक्तिगत जीवन में संतोष साहनी, कपिला व इला का हस्तक्षेप सर्वविदित है। कपिला दूर रह के भी अपने नाम के पीछे वात्सायन लिखती रहीं और अज्ञेय जी विवाह न करके भी इला के साथ रहे। इन बातों के बीच भी अज्ञेय जी नें अपनी रचना धर्मिता व अपनी विशिष्ट शैली को बरकरार रखा। अपने बारे में ही शायद उन्होंने “अमरवल्लरी” नामक कहानी में लिखा “प्रेम एक आईने की तरह स्वच्छ रहता है, प्रत्येक व्यक्ति उसमें अपना ही प्रतिबिंब पाता है और एक बार जब वह खंण्डित हो जाता है तब वह जुडता नहीं।” अज्ञेय जी का जीवन अत्यंत संर्घषरत विवादास्पद और कदम कदम पर चुनौतियों से भरा हुआ किन्तु सब कुछ झेल कर आगे बढने वाला रहा है। उन्‍होंनें हिन्दी कविता नई कविता कहानी उपन्यास आलोचना यात्रा संसमरण तथा अन्यान्य दिशाओं में उन्होनें विपुल कार्य किया है तथा उनके चिन्तन की गहराई से हिन्दी साहित्य को जो गरिमा और गौरवपूर्ण कृतियां प्राप्त हुई है उनका महत्व कभी कम होने वाला नही है। मैं ईनकी ही कविता “युद़ध विराम” से उन्हे श्रदधा सुमन अर्पित करता हू :-

“हमें बल दो देशसियोंक्योंकि तुम बल हो,
तेज दो, जो तेजस होओज दो, जो ओजस हो
क्षमा दो, सहिष्णुता दो, तप दो
हमें ज्योति दो देशवासियों
हमें कर्म कौशल दो,
क्योंकि अभी कुछ नहीं बदला है
अभी कुछ नहीं बदला है”

संजीव तिवारी
(दिसम्बर 1988, संभवत: संदर्भों का नकल करते हुए आलेख लिखने का प्रथम प्रयास; वाक्यांश अज्ञेय जी की कृतियों के संबंध में समय समय पर सारिका व अन्य पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित साक्षातकार व अंशों से लिये गये हैं)

रोजगार की विवशता और संभावनायें - संजीव तिवारी

बेरोजगारी एवं रोजगार के अपरिमित संभावनाओं के छल के इस दौर में मेरे जैसे लाखों लोग छले जा रहे हैं । मैं उन सभी की बात कर रहा हूं जो ट्रेडिंग, रिटेल, सेवा के अन्य व्यवसाय में निचले दर्जे से उपर तक सिर्फ अपने हुनर व अनुभव के बल पर नौकरी पेशा हैं । ग्लोबलाईजेशन की बातें समाचार पत्रों व दूरदर्शन में बढ चढ के नजर आ रही हैं रिलायंस, वालमार्ट जैसे समूह छोटे से छोटे व्यवसाय को अपने कार्यक्षेत्र में शामिल करते जा रहे हैं । इन छोटे छोटे व्यवसाय के व्यवसायी के बेरोजगार होने की प्रबल संभावना तो है ही किन्तु उनके अंतस में निहित उद्यमशीलता उन्हे संघर्ष करते रहने की क्षमता अवश्य प्रदान करेगी दुखों का दौर उनका होगा जो उद्यम करने का पौरूष इन उद्यमियों के उद्यम को बरकरार रखने के कारण खो चुके हैं।

मैं उनकी ही बात कर रहा हूं जो अपना सब कुछ, अपना सारा श्रम एवं समय छोटे एवं मघ्यम दर्जे के इन उद्यमियों के लिये बतौर नौकर, मुशी, मैनेजर बन कर, लगा चुके हैं अब जबकि उन्हें इनके लम्बे अनुभव के चलते अच्छे स्थान व धन मिलने की संभावना बन रही थी वह भी समाप्त होते प्रतीत होती है क्योंकि मौजूदा उद्यमियों का उद्यम तो तालाबंदी का शिकार होगा और बहुरा ट्रीय कंपनियों में भर्ती के नियम कडे होंगे । व्यवसाय प्रबंधन में डिग्री या डिप्लोमा के साथ ही अंग्रेजी भा ाा के ज्ञान उक्त कंपनियों में प्रवेश का मुख्य आधार है जो वर्तमान में नयी जमात में बहुतायत में उपलब्ध है और सही अर्थों में वे ही बेरोजगार हैं, इन्हें रोजगार मिलने में कोई परेशानी नहीं है परेशानी है तो सिर्फ इनकी मांग जिसे आजकल पैकेज कहा जाता है । सहीं एवं मनपसंद पैकेज पर और कहीं कहीं अपने स्वयं की पारिवारिक समस्याओं के चलते कम पैकेज पर ये रोजगार हेतु सर्वत्र उपलब्ध हैं । इनकी सर्वत्रता एवं गली कूचे में स्थित प्रबंधन प्रशिक्षण संस्थानों की बहुलता ने हमारे जैसों को चिंतन के लिये विवश कर दिया है ।

यद्वपि हमें चिंतित नही अपितु खुश होना चाहिए कि हमारी अगली पीढी रोजगार के झंझट से शीघ्र ही निजात पाने वाली है किन्तु अभी हमारी आधी और संकट से जूझने में क्रमश: कमजोर साबित होने वाली जिन्दगी पडी है अभी से हम यदि बेरोजगार हो जावेंगे तो आगे क्या होगा । जब पान ठेला, सब्जी भाजी, टाकीज, निर्माण आदि जन सुलभ क्षेत्र में तदविषय में पारंगत व प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की नयी फौज नगरों व कस्बों में छा जावेगी और लोग गर्व से कहेंगे कि मेरा बेटा तो रिलायंस के पान ठेले में काम करता है ।

आज जब हम अपने गांव में अपने नौकरी के संबंध में बडे बूढों को समझा नही पाते वे सभी प्रायवेट नौकरी पेशा व्यक्ति को गांव के पास के कस्बे के बडे राशन दुकान या कपडा दुकान में काम करने वाले नौकरों व मुशियों की तरह ही समझते हैं तब, उन्हे अपने विश्वास को कायम रखने में कोई कठिनाई नहीं होगी ।

यह कोई दिवास्वप्न नही है बदलाव की आंधी बैंगलोर, अहमदाबाद, मुंम्बई, दिल्ली, कलकत्ता से होते हुए रायपुर व भिलाई तक पहुंच रही है कुछ ही दिनों पश्च्यात यह छा जाने वाली है हमें समय रहते ही सोंचना होगा ।

हमें समय के साथ साथ अपने आप को ढालना होगा, हमें शिक्षण के साथ ही तकनीकि प्रशिक्षण भी प्राप्त करना होगा समय के साथ अपने उद्यम जहां हम नियोजित हैं के भवि य में होने वाले परिवर्तन, ग्राहकों के व्यवहार में समयानुसार होने वाले बदलाव की बारीकियों को सीखना होगा । संचार माध्यम के बेहतर उपयोग को भी सीखना होगा क्या होगा जब गांव के चौपाल में बैठा किसान अपने घान का बाजार भाव इंटरनेट में देख कर मोल भाव करेगा और हम कम्प्यूटर के की बोर्ड से भी वाकिफ नही रहेंगे । ऐसे होने में ज्यादा वक्त नहीं लगने वाला । याद करें वो दिन जब हमारे दादा कहा करते थे कि पानी का विक्रय तो हो ही नही सकता, मोबाईल फोन जैसी चिडिया का अस्तित्व कम से कम गांव में तो हो ही नही सकता, आज सब कुछ हो रहा है, समय ज्यादा नही गुजरा है विकास पे विकास हो रहा है ।

आर्थिक उतार चढाव के शुरूआती दिनों में भारत के दैदीप्यमान टाटा समूह के सिरमौर नें अपने कम्पनी की जनसुलभ कार इंडिका को बाजार में उतारते समय कहा था कि इस दौर में प्रत्येक व्यक्ति को अपने मूल हुनर से संबंधित उद्यम में अपना सारा श्रम व घ्यान लगा देना चाहिए हम भी यानी टाटा भी अपने मूल हुनर लौह व परिवहन यांत्रिकी में अपना सारा ध्यान लगा रही है । इसी का नतीजा है कि मारूति जैसी कम दामों वाली कारों के उपलब्ध बाजार व प्रतिस्पर्धा के बावजूद टाटा नें इंडिका, सूमो जैसी कारों के साथ साथ छोटी से छोटी ट्रकों का निर्माण किया व उसके आशा से भी ज्यादा ग्राहक खडे कर दिये । यदि यही जज्बा हो तो कोरस जैसी कई कम्पनियां टाटा की होंगी । मेरे यह बताने के पीछे उद्देश्य यह है कि हमें अपने मूल हुनर को पकडे रहना है उसे छोडना कतई नही है आवश्यकता है तो सिर्फ उस हुनर को तरासने की उसमें निहित संभावनाओं को तलासने की और अपने हुनर में जोडने की ।

यदि हम ऐसा नहीं कर पाये तो वो दिन दूर नही जब हमें वर्तमान में मिलने वाला पगार हमसे छिन जायेगा और हम अपनी अगली पीढी के या तो गुलाम हो जावेंगे या फिर मानसिक श्रम को दरकिनार कर हमें शारिरिक श्रम करना पडेगा ।

मेरी फटी पुरानी डायरी के शेष पन्नों से मेरी प्रकाशित छत्तीसगढी कवितायें

दाई मोला सुरता आथे - संजीव तिवारी

खदर के छांधी
अउ झिपरा के ओधा म
तिंवरा के दार संग गुरमटिया चाउंर के भात
जेमा सुकसी चिंगरी के साग
अउ उहू म नून मिरचा कम डारे हस कहि के
तोर संग लडई
दाई मोला सुरता आथे

इंहां रहत हंव रोजी बर
कभू बापो पुरखा नई देखे रेहेंव
तइसनेहे बिल्डिगं के तिपत कुरिया म
गिलगोटहा भात के बोरे तहां बासी
अउ उहू म सुख्खा मिरचा के भुरका संग
तिबासी खात
रात कन भभकत कुरिया म
पसीना संग आंसू ह मिल के
तिबासी म जब टप ले टपकथे
दाई मोला सुरता आथे

आघू बाघू रेंगत मोर उदंत भंईसा
पाडू म पटकू भर पहिरे
भंईसा कस तने देंह के मोर ददा
जेखर खांध म नांगर
अउ ओखर पाछू म मोर पढई बर गहना धरे
लहलहावत हमर खेत के पीक
दाई मोला सुरता आथे

मोर घर के ओदरत भिथिया
ददा के माखुर बर पईसा मंगई
गौंटिया घर के देहे
तोर चिरहा अंडी के लुगरा
अउ उहु म तोर सूंता पहुची पहिरे के सौंउख
दाई मोला सुरता आथे

होत बिहिनिया रांध खा के
सेठ के दुकान म बहिरी मारथौं
त सेठ के गोड के धुर्रा संग
मोर जम्मों पढई ह उडा जथे
सं कर बे ! ओ कर बे !
इंहां जा बे ! उहां जा बे !
अउ उहू म सेठ अपन चाय पिये
जूठा कप ल जब धोवाथे
दाई मोला सुरता आथे
अउ सुते के टेम कथरी ह आंसू म फिल जाथे
कि येखरे खातिर मोला करजा लेके पढाये रेहेव

(१९९० किसी स्थानीय पत्र के अभरते स्वर नामक स्तंभ में प्रकाशित)


चिनहा - संजीव तिवारी

कईसे करलाई जथे मोर अंतस हा
बारूद के समरथ ले उडाय
चारो मुडा छरियाय
बोकरा के टूसा कस दिखत
मईनखे के लाश ला देख के
माछी भिनकत लाश के कूटा मन
चारो मुडा सकलाय
मईनखे के दुरगति ला देखत
मनखे मन ला कहिथे
झिन आव झिन आव
आज नही त काल तुहूं ला
मईनखे बर मईनखे के दुश्मनी के खतिर
बनाये बारूद के समरथ ले उडाई जाना हे

हाथ मलत अउ सिर धुनत
माछी कस भनकत
पुलिस घलो कहिथे
झिन आव झिन आव
अपराधी के पनही के चिनहा मेटर जाही

फेर में हा खडे खडे सोंचथौं
जउन हा अनियाव के फौजी
पनही तरी पिसाई गे हे
तेखर चिनहा ला कोन मेटार देथे ?
मईनखे बर मईनखे के स्वारथ खातिर

(१९९३ के बंबई बम कांड के दूसरे दिन दैनिक भास्कर के मुख्य पृष्ट पर प्रकाशित)


सुरहुत्ती - संजीव तिवारी

कहां ले बरही मनटोरा
तोर तेल बिन दिया ह
सुरहुत्ती के दिया ह दाउ मन बर ये
मोर करम म त सिरिफ
मोर मेहनत के चूहे तेल
अउ महाजन के कर्जा देहे दाना के बाती हे
जउन हा पेट के करिया रात ला
बुग बुग बर के अजोरत हे
अउ उही अंजोर म
मोर लछमी बूढी दाई
चूरी पहूंचा पहिरे
दुवारी दुवारी
कांसा के पुरखौती थारी मा
दीया सजाये
कभू ढाबा त कभू कोठी
त कभू कोठार म
दीया बांटत दिखत हे

(दीपावली विशेषांक विवरण उपलब्ध नही में प्रकाशित)

ग्रह दोष : निवारक टोटके लाल किताब (Lal Kitab) से - संजीव तिवारी



लाल किताब आधुनिक ज्योतिष जगत में काल सर्प के पहले सर्वाधिक चर्चित विषय रहा है, लाल किताब को भारतीय ज्योतिष का फ़ारसी भाषा में उप्लब्ध यवन संस्करण माना जा सकता है । लाल किताब जैसे महत्वर्पूण ज्योतिष साहत्यि का फारसी एवं उर्दु में लिखा होना इस बात का पुख्ता सबूत है कि भारतीय ज्योतिष का सफर बगदाद आदि खाड़ी देशों से होता हुआ पुन: यवनों के प्रभाव से भारत आया । यवनों का ज्योतिष ज्ञान उस समय में काफी सराहनीय था, इसका उहेख लगभग इ. सन् ५०० में भारतीय ज्योतिष के पितृ पुरुष वराहमिहरि नें कुछ इस तरह से उद्घृत किया था :-


म्लेच्छा हि यवनास्तेषु सम्यक् शास्त्रमिदं स्थितम् ।
ऋषिवत्ते पि पूज्यन्ते किं पुनदैवविद् द्विज: ।।

ऋषि तुल्य पूजने का सुझाव देने के पीछे इब्राहीम अलफजारी के मुस्लिम चान्द्र वर्ष सारणी एवं सिंद हिंद जैसे ग्रंथ रहे हैं । रमल और ताजिक जैसे ज्योतिष के अंग अरब के प्रभाव को प्रस्तुत करते ही हैं । इकबाल, अशरफ जैसे यवनाचायो को भारतीय ज्योतिष के सभी मूल सिद्धांत ज्ञात थे इन्होनें इसे फारसी भाषा में लिख कर इस ज्ञान के प्रसार में योगदान किया । इन्हीं विद्वानों की तरह किसी गुमनाम लेखक नें फरमानों एवं शायरी के रुप में जो ज्ञान एवं सिद्धांत प्रस्तुत किया वह वर्षो से उत्तर भारत में अधिकारिक रुप से स्वीकार किया जाता रहा है । दक्षिण भारत में विगत कुछ वर्षों से इसके अनुवाद के प्रकाशन के बाद इसके टोटके एवं उपायों का प्रयोग प्रारंभ हुआ ।


नागा गोंड जो जादू से शेर बन जाता था


श्री के. सी. दुबे के पुस्तक में उपरोक्त संदभो पर बिन्द्रानवागढ़ के गांव देबनाई का नागा गोंड का उदाहरण दिया है जो कि शेर के रूप में आकर 08 लोगो को नुकसान पंहुचा चुुका है। और जिसे वर्ष 38 या 39 में ब्रिटिश शासन ने गिरफ्तार किया था। जादू टोना का गहन जानकार और वेश बदलने में माहिर था । और इस बात की प्रमाण तत्कालीन ब्रिटिश शासन के रिकॉर्ड में दर्ज़ भी है। तत्कालीन जॉइंट सेक्रेटरी गृह मंत्रालय भारत शासन श्री जी. जगत्पति ने भी 27/7/1966 को इस पुस्तक मे लिखा था की भिलाई स्टील प्लांट जैसे आधुनिक तीर्थ से 15 मील के भीतर के गावो तक में लोग बुरी आत्माओ की उपस्थिति को आज भी मानते है। जानकारी यहॉं पढ़ें


इस सिद्धांत के टोटके एवं ग्रह शांति के उपाय, गोचर अनुसार ग्रहों के जातक पर पड़नें वाने अनिष्ट प्रभावों से मुक्ति हेतु सामान्य सिद्धांत के अनुसार रत्न धारण एवं ग्रह शांति पूजन के भारी भरकम खचे से अवश्य ही निजात दिलाता है एवं ग्रहों के अनिष्टों से मुक्ति प्रदान करने का सहज एवं सुगम रास्ता प्रदान करता है ।

इस सिद्धांत के अनुसार जन्म कुण्डली में लग्नादि बारह भावों में राशियों का स्थान निश्चित है किन्तु ग्रह वैदिक सिद्धांत के अनुसार जन्म कुण्डली में जिस भाव में बैठे हों वहां बैठाया जाता है । इसे स्पस्ट रुप से समझाने के लिए ज्योतिष का सामान्य ज्ञान आवश्यक है, किन्तु यदि आपको ज्योतिष का सामान्य ज्ञान भी नहीं है तो चिंता की कोइ बात नहीं । ग्रहों के गति के अनुसार जन्म कुण्डली में ग्रहों की स्थिति भावों में निश्चित होती है और ग्रहों की यही स्थिति भावानुसार ग्रहों की शुभता या अशुभता को जीवनकाल में सुख व दुख के रुप में प्रदर्शित करती है ।

ग्रह अपनें अनिष्ट प्रभाव को जीवन में दो रुप में प्रस्तुत करता है, प्रथमत: जन्मकालिक स्थितियों के द्वारा एवं द्वितियत: कालभ्रमणानुसार अपने विमशोत्तरी या योगिनी दशा में । इन दोनों परिस्थितियों में मनुष्य के जीवन में ग्रहों के प्रभाव से अन्य अरिष्ट के अतिरिक्त कुछ ऐसे लक्षण पैदा होते हैं जिससे कि हम जान सकते हैं कि वर्तमान में दुख देने वाला ग्रह कौन सा है ।

हम आपकी सुविधा के लिए लाल किताब के सिद्धांत के अनुसार संक्षिप्त में ग्रह दोष से उत्पन्न सांकेतिक लक्षणों एवं उपायों की जानकारी यहां प्रस्तुत कर रहे हैं साथ ही उक्त ग्रह के ताप से मुक्ति हेतु ऐसे अचूक एवं अनुभव सिद्ध टोटके भी दे रहे हैं :-

सुर्य (Sun): सूर्य के अशुभ होने पर या कुण्डली में सुर्य के दूषित प्रभाव होने पर पेट, आंख, हृदय का रोग होवे, सरकारी बाधा आवे । ऐसे में तांबा, गेंहू एवं गुड का दान करें, आग को दूध से बुझावें, प्रत्येक कार्य का प्रारंभ मीठा खाकर करें , हरिवंश पुराण का पाठ करें , ताबें का बराबर दो तुकडा काटकर एक को पानी में बहा दें एक को जीवन भर साथ रखें ।


चंद्र (Moon): चंद्र के कुण्डली में अशुभ होने पर दुधारी पशु की मृत्यु हो जावे, स्मरण शक्ति का ह्रास हो, धर में पानी की कम पड़ जावे । ऐसे में भगवान शिव की आराधना करें , दो मोती या दो चांदीं का तुकड़ा लेकर एक तुकड़ा पानी में बहा दें एक को अपने पास रखें । चंद्र यदि कुण्डली में छठे भाव में हो तो दूध या पानी का दान कदापि नकरें , यदि वारहवां हो तो धमात्मा या साधु को भोजन न करावें न ही दूध पिलावें यदि ऐसा करेंगे तो जीवन भर कष्ट भोगेंगे ।

मंगल (Mars): मंगल के अशुभ होने पर बच्चे जन्म होकर मर जावे, आंख में रोग होवे, बात गठिया रोग दुख देवे, रक्त की कमी या खराबी वाला रोग हो जावे, हर समय क्रैंध आवे, लड़ाइ झगड़ा होवे तब हनुमान जी की आराधना एवं उपवास रखें , तंदूर की मीठी रोटी दान करें , बहते पानी में रेवड़ी व बताशा बहायें, मसूर की दाल दान में देवें ।

बुध (Mercury): बुध की अशुभता पर दांत टूट जाये, सूंघनें की शक्ति कम हो जावे, गुप्त रोग होवे उपाय में नांक छिदवायें, ताबें के प्लेट में छेद कर बहते पानी में बहायें, दुगा उपासना करें, अपने भोजन में से एक हिस्सा गाय को एक हिस्सा कुत्तों को दें ।


गुरु (Jupiter): देव गुरु वृहस्पति के अशुभ प्रभाव में आने पर सिर के बाल झड़ने लगे, सोना खो जाये या चोरी हरे जावे, शिक्षा में बाधा आवे, अपयश होवे तब माथे पर केशर का तिलक लगावें, कोइ भी अच्छा काय करने के पूर्व अपना नांक साफ करें । दान में हल्दी, दाल, केसर आदि देवें व ब्रम्हा जी की पूजा करें ।

शुक्र (Venus): दानवों के गुरु शुक्र के अशुभ प्रभाव में होने पर अंगूठे का रोग हो जावे, चलते समय अगूंठे को चोट पहुंचे, चर्म रोग होवे, स्वप्न दोष होता हो तो अपने खानें में से गाय को प्रतिदिन कुछ हिस्सा अवश्य देवें, गाय, ज्वांर दान करें, नि:सहाय व्यक्ति का पालन पोषण का जिम्मा लेवें, लक्ष्मी उपासना करें ।

शनि (Saturn): शनि के अशुभ प्रभाव में होने पर मकान या मकान का हिस्सा गिर जावे या क्षति होवे, अंगों के बाल झड़ जावे, काले संपत्ति का नाश होवे, आग लग जावे व धन संपत्ति का नाश हो तब कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलावे, तेल में अपना मुख देख वह तेल दान करें, लोहा, काला उडद, चमड़ा, काला सरसों आदि दान दें । भगवान शिव की आराधना करें । यदि कुण्डली में शनि लग्न में हो तो भिखारी को तांबे का सिक्का या बर्तन कभी न दें यदि देंगे तो पुत्र को कष्ट होगा । यदि शनि आयु भाव में स्थित हो तो धर्मशाला आदि न बनवायें ।

राहु : राहु के अशुभ होने पर हांथ के नाखून अपने आप टूटने लगे, राजक्ष्यमा रोग के लक्षण प्रगट होवे, दिमागी संतुलन ठीक न रहे, शत्रुओं के चाल पे चाल से मुश्किल बढ़ जावे ऐसी स्थिति में जौं या अनाज को दूध में धो कर बहते पानी में बहायें, कोयला को पानी में बहायें, मूली दान में देवें, भंगी को शराब,मांस दान में दें । सिर में चुटैया रखें, भैरव जी की की उपासना करें ।

केतु : इसके अशुभ प्रभाव में होने पर मूत्र एवं किडनी संबंधी रोग होवे, जोड़ों का रोग उभरे, संतान को पीड़ा होवे तब अपने खाने में से कुत्ते को हिस्सा देवें, तिल व कपिला गाय दान में दें, कान छिदवायें व श्री विघ्नविनायक की आराधना करें ।

उपरोक्त टोटके लाल किताब के अनुभव सिद्ध टोटके हैं । ग्रहों के द्वारा कष्ट प्रदान किये जाने पर उपरोक्तानुसार कार्य करने से उक्त ग्रह प्रशन्न होते हैं एवं शुभ प्रभाव में आकर उन्नति प्रदान करते हैं । इन टोटकों का प्रयोग कम से कम ४० दिन तक करना चाहिए तब ही फल प्राप्ति संभव होता है । लाल किताब के इन निदान उपायों को पाठक प्रयोग करें और गोचरवश आपके कुण्डली में अशुभ प्रभाव में स्थित ग्रहों को शुभ प्रभाव में ले आवें ।

संजीव तिवारी
सन बर्ड सूर्य का प्रभाव बढ़ायें
Aries Taurus Gemini Cancer Leo Virgo Libra Scorpio Sagittarius Capricorn Aquarius Pisces
रफी के छत्तीसगढ़ी गीत
रफ़ी का कौन सा गीत पहला ?
समय से आगे : हृदयनाथ
बस्ती-बस्ती पवर्त पवर्त गाता जाए बंजारा : रफी
तेरी गठरी में लागा चोर जैसे लोकप्रिय गीतों के गायक के.सी. डे
जहॉं नहीं चैना, वहाँ नहीं रहना : किशोर कुमार

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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...