रामहृदय तिवारी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
रामहृदय तिवारी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

कला तपस्‍वी की यात्रा का समग्र

छत्तीसगढ़ के ख्‍यातिलब्ध रंग निर्देशक राम ह्रदय तिवारी जी की रंग यात्रा का समग्र अभी हाल ही में, लोक रंगकर्मी दीपक चंद्राकर के द्वारा, राजेंद्र सोनबोईर के संपादन में प्रकाशित हुआ है। सात सर्गों में विभक्त इस ग्रंथ में राम ह्रदय तिवारी जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व, साक्षात्कार, उनके आलेख, उनके नाटकों की समीक्षा, उनका आत्मथ्‍य व अन्य संग्रहणीय सामग्री संकलित है। इस ग्रंथ में राम ह्रदय तिवारी जी की सुदीर्ध कला यात्रा को विभिन्न विद्वानों ने अपनी-अपनी दृष्टि से प्रस्तुत किया है। जिनमें जयप्रकाश, डॉ. परदेशी राम वर्मा, महावीर अग्रवाल, राजकुमार सोनी, विनोद साव, सरला शर्मा, संतोष झांझी आदि प्रमुख हैं। इस सर्ग में 'एक दर्द भरा संगीत है घना जी का जीवन' शीर्षक से राजन शर्मा जी द्वारा लिखा गया आलेख महत्वपूर्ण है। राजन शर्मा जी न केवल राम ह्रदय तिवारी जी के संबंधी हैं बल्कि उनके सच्चे मित्र एवं मार्गदर्शक हैं। इसके साथ ही वे धर्म के वैश्विक क्षितिज में एक वरिष्ठ चिंतक और विद्वान के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उन्होंने अपने परिवार के साथ बालक राम ह्रदय तिवारी की इलाहाबाद तीर्थ यात्रा से अब तक के सफर का रोचक वर्णन किया है। सहज और सरल भाषा में गंभीर बात करते हुए वे राम ह्रदय तिवारी जी की भौतिक अस्तित्व के साथ ही उनके हृदय की गहराइयों तक यात्रा करते हैं, और उसे ज्यों का त्यों बिना लाग-लपेट प्रस्तुत करते हैं। इस पूरे सर्ग में यह एक अकेला आलेख रामह्रदय जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को जानने के लिए काफी है। इसका मतलब यह कदापि नहीं है कि अन्य संग्रहित आलेखों की उपादेयता नहीं है। प्रत्येक आलेख उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं एवं उनके द्वारा निर्देशित व लिखित नाटक आलेखों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है जैसे विनोद साव नें उनके बेरा नई हे को बहुत सुन्‍दर विश्‍लेषित किया है। कुछ आलेख रामह्रदय तिवारी जी के संबंध में पूर्व प्रकाशित जानकारियों का दोहराव नजर आता है। किंतु यह संपादक के विवेकाधिकार का मसला होने के कारण हम इस पर चर्चा नहीं करना चाहते।
राम ह्रदय तिवारी जी से लिए गए साक्षात्कार सर्ग में उनकी कला यात्रा का विस्तृत विवरण प्राप्त होता है साक्षात्कारों में प्रकाशित विचार एवं तथ्‍य स्वयं उनके द्वारा बताए गए हैं इस कारण क्षेत्रीय नाट्य एवं नागरी लोकनाट्य के इतिहास का यह महत्‍वपूर्ण दस्‍तावेज बन गया है। इस सर्ग में भी महावीर अग्रवाल, आसिफ इकबाल, चंद्रशेखर चकोर एवं आशीष ठाकुर आदि के द्वारा लिया गया साक्षात्कार उल्लेखनीय है। डॉ. श्रद्धा चंद्राकर के द्वारा रामह्रदय तिवारी जी के कला यात्रा के पथिकों से लिए गए साक्षात्कारों का पूरा एक सर्ग इस ग्रंथ में संग्रहित है। जिसमें उनके आपसी समझ और व्यक्तित्व का बहुत सुंदर विवरण प्राप्त होता है। तिवारी जी द्वारा लिखित आलेख व नाटकों का सर्ग, साहित्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण खण्‍ड है। उनकी भाषा की शास्त्रीयता के पतवार के साथ गहरे ज्ञान के समुंदर में विचरण कराती उनकी लेखनी अद्भुत है। छत्तीसगढ़ी लोक के वे आधिकारिक विश्लेषक हैं, उन्होंने इस सर्ग में छत्तीसगढ़ के विभिन्न प्रदर्शनकारी लोक कलाओं एवं कलाकारों का प्रामाणिक व सुंदर विश्लेषण किया है। पांचवें सर्ग में रामहृदय तिवारी जी द्वारा निर्देशित विभिन्न नाटकों, लोकनाट्यों एवं फिल्मों की समीक्षा संग्रहित है। क्षितिज रंग शिविर दुर्ग से आरंभ उनकी कला यात्रा के विभिन्न पड़ावों पर चर्चा करते हुए समीक्षकों ने उनकी कालजई प्रदर्शनों को रेखांकित किया है। जिसमें अंधेरे के उस पार, भूख के सौदागर, भविष्य, अश्वस्थामा, झड़ी राम सर्वहारा, मुर्गी वाला, घर कहां है, हम क्यों नहीं गाते, अरण्य गाथा से लेकर टेली फिल्म कसक, संवरी, फीचर फिल्म गम्मतिहा, लोकनाट्य लोरिक चंदा, कारी, मैं छत्तीसगढ़ महतारी हूं से शहंशाह सन्यासी विवेकानंद तक समाहित हैं। इस ग्रंथ में इन प्रदर्शनों के कई दुर्लभ चित्र भी संग्रहित हैं।
व्यक्तिगत रूप से मैं, इस ग्रंथ के अधिकांश आलेखों को पूर्व में ही कई-कई बार पढ़ चुका हूं। तो मेरे पास उपलब्ध विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, किताबों में संग्रहित हैं, किंतु इन सब को एक ही जगह संकलित कर प्रकाशित करने का यह पुनीत कार्य संपादक एवं प्रकाशक ने किया है वह सराहनीय है। मेरी समझ में, इतनी विस्तृत जानकारियों से परिपूर्ण यह ग्रंथ राम ह्रदय तिवारी जी के संपूर्ण कला यात्रा को जानने समझने का आरंभिक ट्रेलर है। इससे छत्तीसगढ़ के नाट्य को समझने, छत्तीसगढ़ी लोक नाट्य को बूझने और छत्तीसगढ़ पर गर्व करने के सभी तत्व मौजूद हैं। रामह्रदय तिवारी जी छत्तीसगढ़ के ऐसे बहुआयामी प्रतिभा संपन्न व्यक्ति हैं जिन पर अभी हजारों अध्याय लिखा जाना शेष है। उनके कलागत ज्ञान एवं छत्तीसगढ़ी प्रदर्शनकारी लोक कलाओं की दृष्टि पर कई शोध होना शेष है। यह ग्रंथ रंगकर्मियों, लोक कलाकारों, अध्येताओं, शोधार्थियों एवं छत्तीसगढ़ी अस्मिता बोध के प्रति सजग पाठकों के लिए पठनीय एवं संग्रहणीय है। इस किताब में लगभग साढ़े सात सौ पृष्ठ हैं जो चिकने रंगीन पेपर से सुसज्ज है। हार्ड बउंड इस किताब की कीमत 500 रूपया है, जिसे आप श्री दीपक चंद्राकर जी मो. नं. 8839500485 या श्री रामह्रदय तिवारी जी 9685366570 से बात कर प्राप्त कर सकते हैं। मैंनें इस किताब की दो प्रतियां रू. 1000 में ली थी जिसमें से एक श्रद्धेय खुमान लाल साव जी को दिया हूं और एक मेरे संग्रह में है। इसे मुझसे पढ़ने के लिए मांगने के बजाय आप क्रय कर लें यह मेरे लिए उपयुक्‍त होगा।
 -संजीव तिवारी

इस ब्‍लॉग में इस ग्रंथ से संबंधित संग्रहित आलेख-
एक चिंतक रंगकर्मी : राम हृदय तिवारी 
रामहृदय तिवारी रंगकर्म और भाषा के आगे-पीछे का संघर्ष 
बोलियों की दुनिया में छत्‍तीसगढी बोली
छत्‍तीसगढ की बिटिया : तीजन बाई
अंचल की पहिचान के पर्याय: रामचन्‍द्र देशमुख
संगीत और शौर्य का संगम : पंडवानी

रामहृदय को 11वां रामचंद्र देशमुख सम्मान
ऑंसुओं से जन्‍मे कहकहों का कला संसार : नाचा
गौरा : घुमडते मादर के बीच गीतों की रिमझिम

रामहृदय को 11वां रामचंद्र देशमुख सम्मान


छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति के अग्रपुरुष दाऊ रामचन्द्र देशमुख की स्मृति में स्थापित तथा लोक संस्कृति के प्रति प्रदीर्घ समर्पण एवं एकाग्र साधना के लिए प्रदत्त रामचंद्र देशमुख बहुमत सम्मान इस वर्ष राज्य के प्रतिष्ठित संस्कृतिकर्मी रामहृदय तिवारी को प्रदान किया जाएगा। दाऊ रामचन्द्र देशमुख की 11वीं पुण्यतिथि के अवसर पर 14 जनवरी को आयोजित एक गरिमामय समारोह में श्री तिवारी को 11 वें रामचन्द्र देशमुख बहुमत सम्मान से अलंकृत किया जाएगा। सम्मान के अंतर्गत श्री तिवारी को 11 हजार रुपए की सम्मान निधि, शाल, श्रीफल एवं प्रशस्ती पत्र से सम्मानित किया जाएगा।

निर्णायक समिति के निर्णय की जानकारी देते हुए वरिष्ठ कवि जय प्रकाश मानस ने बताया कि यह निर्णय वरिष्ठ साहित्यकार देवेश दत्त मिश्र की अध्यक्षता में गणित निर्णायक समिति द्वारा लिया गया है। समिति में जनवदी शायर मुमताज, रंगकर्मी राजेश गनोदवाले, कवि बीएल पाल, कथाकार विनोद मिश्र, सामाजिक कायकर्ता सुमन कन्नौजे, पत्रकार सहदेव देशमुख एवं समालोचक केएस प्रकाश सदस्य थे।

दुर्ग जिले के उरडहा गांव में 16 सितम्बर 1943 को जन्मे रामहृदय तिवारी लोककला के क्षेत्र में पिछले चार दशकों से सक्रिय है। एक स्वतंत्र रंगकर्मी के रुप में श्री तिवारीर सिर्फ रंगमंच ही नहीं अपितु नाट्यकर्म से जुड़ी अनेकानेक गतिविधियों में निरंतर संलग्न रहें हैं। श्री तिवारी द्वारा निर्देशित अंधेरे के उस पार भूख के सौदागर, भविष्य, अश्वत्थामा, राजा जिंदा है, मुर्गी वाला, झड़ीराम सर्वहारा, पेंशन, विरोध, हम क्यों नहीं गाते, अरण्यगाथा तथा अन्य अनेक हिन्दी नाटक छत्तीसगढ़ के समृद्ध रंगमंचीय इतिहास का हिस्सा तो बने ही, जनता के संघर्षमय जीवन की अंतरंग, शूक्ष्म और संवेदनशील अभिव्यक्ति के वाहक भी बने।

रामहृदय तिवारी ने कसक, संवरी, स्वराज, एहसास जैसी अनेक टेली फिल्मों का भी निर्देशन किया। श्री तिवारी ने छत्तीसगढ़ी नाचा, बोली, लोकगीत, लोककथा, लोक परम्परा, लोक संगीत, लोक नाट्य और लोक अभिव्यक्ति की विभिन्न विधाओं पर निरंतर और सौद्देयपूर्ण लेखन भी किया। वे लंबे संय तक हिन्दी रंगमंच क्षितिज रंग शिविर से जुड़े रहे और वर्तमान में राज्य की अत्यंत प्रतिष्ठित रंग संस्था लोक रंग अर्जुन्दा से संबद्ध है। वे लंबे समय तक दाऊ रामचंद्र देशमुख और दाऊ महासिंग चंद्राकर के सानिध्य में रहे।

बहुमत सम्मान निर्णायक समिति मानती है कि रामहृदय तिवारी ने छत्तीसगढी लोकजीवन की चहल-पहल को अत्यंत कलात्मक एवं उद्देश्यपूर्ण अभिव्यक्ति प्रदान किया है। दाऊ रामचंद्र देशमुख ने जनता के सुख-दुख को जिस अंतरंगता एवं संवेदनशीलता के साथ लोकनाट्य का हिस्सा बनाया, रामहृदय तिवारी ने उसे सार्थक दिशा और अर्थपूर्ण विस्तार प्रदान किया। महत्वपूर्ण यह है कि उन्होंने पहले रंगकर्म को अपने जीवन का हिस्सा बनाया, बाद में उनका जीवन ही रंगकर्म का हिस्सा बन गया।

इस  ब्लाग मे रामहृदय तिवारी जी द्वारा रचित एवं उनके संबंध में सम्पुर्ण प्रविष्टियां यहां पढें.

(कथाकार विनोद मिश्र द्वारा जारी विज्ञप्ति के आधार पर)
संजीव तिवारी

रामहृदय तिवारी रंगकर्म और भाषा के आगे-पीछे का संघर्ष डॉ. परदेशीराम वर्मा


पिछले छ: माह से छत्‍तीसगढ के ख्‍यात निर्देशक, रंगकर्मी व शव्‍द शिल्‍पी श्री रामहृदय तिवारी से मिलने और कुछ पल उनके सानिध्‍य का लाभ लेने का प्रयास कर रहा था किन्‍तु कुछ मेरी व्‍यस्‍तता एवं उनकी अतिव्‍यस्‍तता के कारण पिछले शनीवार को उनसे मुलाकात हो पाई. सामान्‍यतया मैं उनके फोन करने और उनके द्वारा मुझे बुलाने पर नियत समय पर पहुंच ही जाता हूं किन्‍तु इन छ: माह में मुझे कई बार उनसे क्षमा मांगना पडा था. पिछले दिनों हमारी मुलाकात छत्‍तीसगढ के विभिन्‍न पहलुओं पर निरंतर कलम चला रहे प्रो. अश्विनि केशरवानी जी के दुर्ग आगमन पर हुई थी तब श्री रामहृदय तिवारी जी द्वारा हमें दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया गया था और उन्‍होंनें अपनी व्‍यस्‍तताओं के बीच हमें लगभग पूरा दिन दिया था तब सापेक्ष के संपादक डॉ. महावीर अग्रवाल जी भी हमारे साथ थे. कल के मुलाकात में हिन्‍दी की प्राध्‍यापिका डॉ. श्रद्धा चंद्राकर द्वारा सर्जित किए जा रहे लघुशोध ग्रंथ- 'छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य को समृद्ध करने में निर्देशक रामहृदय तिवारी का अवदान’ पर भी चर्चा हुई जिसके संबंध में डॉ. श्रद्धा का कहना है कि यह लघु शोघ प्रबंध संपूर्ण वृहद शोध ग्रंथ के रूप में बन पडा है. इस शोध प्रबंध के लिए डॉ. श्रद्धा नें कुछ क्षेत्रीय मूर्धन्‍य साहित्‍यकारों से साक्षातकार लिए गए हैं जिनमें से डॉ. परदेशीराम जी वर्मा से पूछे गए प्रश्न और उनके उत्तर हम यहां प्रस्‍तुत कर रहे हैं :


00 रामहृदय तिवारी जी के व्यक्तित्‍व से आप किस तरह परिचित है? पारिवारिक मित्र के रूप में, विचारक के रूप में, कलाकार के रूप में अथवा एक निर्देशक के रूप में? उनका कौन सा पक्ष आपको सर्वाधिक प्रभावशाली लगता है? और क्यों ?

0 मैं श्री रामहृदय तिवारी के मंचीय कौशल से प्रभावित होकर उनसे जुड़ा। उन्‍हें मैंने पहली बार दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के बाड़ा में देखा। तब पदुमलाल पुन्नालाल जी बख्शी की लिखित रचना पर मंचीय इतिहास की अलभ्य कृति 'कारी’ को जमीनी आधार देने के लिए दाऊ जी वितान तान रहे थे। वहीं मेरा परिचय रामहृदय तिवारी से हुआ। चुकचुकी दाढ़ी वाले, अंतर्मुखी, छुन्ने से दिखने वाले रामदृदय तिवारी से मैं र्पूणतया अपरिचित था। मैं मिनटों में घुल मिल जाने वाला बहिर्मुखी व्यक्ति हूं। तिवारी जी दूसरे सिरे पर खड़े रहस्यमय व्यक्ति लगे। मुझे ऐसे लोग सहसा नहीं सुहाते। मगर तिवारी जी की एक विशेषता ऐसी थी, जिससे मैं बांध लिया गया। वे अतिशय विनम्र और अल्पभाषी है। अनावश्यक वार्तालाप से बचते हैं मगर जरुरी वालों को कहे बगैर चुप नहीं रहते। ऐसे लोग विवाद में पड़े बगैर सदैव मैदान मार लेते हैं। यही पक्ष मुझे सर्वाधिक प्रभावित कर गया। आज भी चुप रहकर मंच के माध्‍यम से ऐलान-ए-जंग करने का उनका अंदाज मुझे सुहाता है।

00 'क्षितिज रंग शिविर’ की स्थापना से लेकर 2009 तक पिछले चार दशकों में हिन्‍दी रंगमंच के क्षेत्र में उनके योगदान को आप किस रूप में देखते हैं?

0 तुलसीदास जी की विनय पत्रिका को विद्वान, मानस से भी बड़ी रचना कहते हैं। मगर जनमन रमता है मानस पर। उसी तरह रामहृदय तिवारी की हर नाट्य-कृति महत्‍वर्पूण है। मगर उन्‍हें लोक में स्थापित किया 'कारी’ ने। यह छत्तीसगढ़ी लोकमंच की कृति है। हिन्‍दी नाटकों का लंबा सिलसिला है जिसमें अंधेरे के उस पार, भूख के सौदागर, भविष्य, अश्वस्‍थामा, राजा जिंदा है, मुर्गीवाला, झड़ी राम सर्वहारा, पेंशन, विरोध, घर कहां है, हम क्यों नहीं गाते, अरण्‍यगाथा, स्वराज, मैं छत्तीसगढ़ महतारी हूं इत्‍यादि है। मुझे 'अरण्‍य गाथा' पसंद है। 'घर कहां है' और 'मुर्गीवाला' अन्‍य कारणें से। उनकी मारक शक्ति और जनहित की पक्षधरता के कारका ये नाटक मकबूल हुए। रामहृदय तिवारी ने छत्तीसगढ़ में हिन्‍दी मंच को चमत्‍कारिक स्पर्श दिया। वे भाषा के जानकार और शास्‍त्रीयता के पक्षधर है। इसलिए उनका काम सर चढक़र बोलता है। निश्चित रूप से रामहृदय तिवारी छत्तीसगढ़ में रंगमंच के ऐसे पुरोधा हैं, जिन्‍हें अभी पूरी तरह जानना बाकी है। वे अगर व्यवसायिकता के दबाब और छिटपुट कामों की मसलूफियत को छोड़ सकें तो छत्तीसगढ़ में निर्देशन की अविस्मरणीय और सहज परंपरा की पुख्ता नींव रख देंगे। हम प्रतीक्षा कर रहे हैं।

00 रामहृदय तिवारी निर्देशित कौन- कौन से नाटक आपने देखे हैं? प्रभावोत्‍पादकता की दृष्टि से इन नाटकों को आप किस कोटि में रखते हैं? सामाजिक समस्याओं के निदान में उनके नाटक किस हद तक सफल कहे जा सकते हैं?

0 इस प्रश्न के उत्‍तर ऊपर के प्रश्नों के जवाब में मैं दे चुका हूं। आम जन की उपेक्षार्पूण जिंदगी पर मेरी कई कहानियां है। मुझे आश्चर्य हुआ सुखद संयोग पर कि जिस दंश के एक मंचीय परिवार के सदस्य होने के नाते मैं झेलता रहा, उसे श्री तिवारी ने किस तरह पूरे प्रभाव और मंचीय कौशल के साथ अपनी कई प्रस्तुतियों में रख दिया।

00 छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति, लोक नाट्य और छत्तीसगढ़ी नाटक के क्षेत्र में रामहृदय तिवारी का क्‍या विशिष्ट योगदान है? आप अपनी राय दीजिए।

0 छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति, लोकनाट्य और छत्तीसगढ़ी नाटक के संदर्भ में किसी व्यक्ति के योगदान को कुछेक पंक्तियों में रेखांकित करना उचित नहीं होगा। छत्तीसगढ़ी नाटकों में श्री रामहृदय तिवारी द्वारा निर्देशित नाटक हैं- 'लोरिक चंदा', 'कारी', 'कार कहां हे', 'मैं छत्तीसगढ महतारी हूं', 'धन धन के मोर किसान' 'नवा बिहिनिया', 'आजादी के गाथा' 'बसंत बहार' आदि। ये सभी प्रस्तुतियां महत्‍वर्पूण है। हर नाटक की अपनी विशिष्टता, प्रभाव और गमक है।


00 'मैं छत्तीसगढ़ महतारी हूं' नाटक के लेखक और निर्देशक रामहृदय तिवारी आम छत्तीसगढ़ी आदमी के जीवन के यथार्थ, उसकी पीड़ाओं और उसकी अदम्य जिजीविषा को किस तरह अभिव्यक्ति देते हैं?

0 'मैं छत्तीतसगढ़ महतारी हूं' नाटक में शीर्षक से ही सब कुछ स्पष्ट हो जाता है। हर व्यक्ति का अपना नजरिया होता है कृतियों को परखने का। नाटक में छत्तीसगढ़ के भावाकुल सपूतों के महिमा मंडल का प्रयास प्रभावित करता है, मगर उनकी कमजोरियों पर ऊंगली रखने की अपेक्षित और पर्याप्त कोशिश नहीं की गई। सोमनाथ का मंदिर ध्‍वस्त हुआ तब मंदिर के पुजारियों की संख्या लुटेरों से कई गुनी अधिक थी, मगर संघर्षहीन सुविधा भोगी लोगों की भीड़ काट दी गई। छत्तीसगढ़ भी आज सोमनाथ बना हुआ है। अंधेरा गहरा है, रात काली है, चारों ओर बदहवासी है, लोग गफलत में है। जागरण का संदेश देने के निमित्‍त ही यह कृति तैयार हुई है। जागरण का संदेश देना हमारा पहला दायित्‍व है। हमारा गौरवशाली अतीत और भयावह भविष्य दोनों मंच पर लिखे। हांफता हुआ वर्तमान भी मंच पर नजर आये। इस दृष्टि से 'मैं छत्तीसगढ़ महतारी हूं' नाटक देखता हूं तो मुझे लगता है कि लडऩे का जज्‍बा पैदा करने की दृष्टि से नाटक को और कई दिशाएं तय करना है। फिर भी यह एक यादगार कृति है।

00 रामहृदय तिवारी ने दूरदर्शन के लिए, सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं के लिए कई छोटी बड़ी फिल्मों का निर्देशन किया है। इनमें से कौन-कौन सी फिल्में आपने देखी है? ये फिल्में दर्शकों को किस सीमा तक प्रभावित करती है? साथ ही यह भी बताइए कि ये फिल्में दर्शकों के समक्ष किस तरह की चुनौतियां प्रस्तुत करती है?

0 रामहृदय तिवारी निर्देशित लगभग सभी फिल्में मैंने देखी है। तिवारी जी में कला- साना और समर्पण के गुण इतने अधिक हावी हो जाते हैं कि उनसे बाजार छूट जाता है। मैं कामना करता हूं कि वे बाजार की विशेषता को समझकर मैदान मारने के लिए कमर कस सकें। कलात्‍मक गुकावत्‍ता की दृष्टि से उनकी सभी फिल्में ऐसी हैं, जिन पर गुणियों की नजर पड़े तो वे पुरस्कृत हो जाएं।

00 रामहृदय तिवारी समय- समय पर समसामयिक विषयों को लेकर अपने विचार व्यक्त करते रहे हैं? एक लेखक के रूप में उनका मूल्यांकन आप किस तरह करेंगे?

0 रामहृदय तिवारी शब्‍द शिल्पी है। अच्‍छे चिंतक है। उनका व्यक्तित्‍व बेहद भाव प्रणव है। यथार्थ से टकराने वाली भाषा त्रयाशं से टकराने वाले स्वभाव से जन्‍म लेती है। तिवारी जी आध्‍यात्‍म, कला, साहित्‍य के तिराहे पर खड़े न होते तो उनकी सिद्धि और प्रसिद्ध किसी एक क्षेत्र में कुछ और रूप ग्रहण कर चुकी होती। लेकिन तमाम क्षेत्रों की मसरूफियत के बावजूद वे भाषा को साधने के लिए खूब यत्‍न करते रहे, इसलिए लेखन में भी उनकी गति बनी रही। भाव जगत में जब वे विचरण करते हैं- तब भाषा उनके पीछे भागती है। जब वे यथार्थ से टकराने का प्रयास करते हैं तब भाषा के पीछे वे भागते हैं। मुझे उनके इस द्वन्‍द और दुख को देखकर सदैव आनंद आया।
00 त्रैमासिक पत्रिका 'सर्जना' के अभी तक आठ अंक प्रकाशित हो चुके हैं। सर्जना के संपादक के रूप में रामहृदय तिवारी निरंतर प्रयोगशाला नजर आते हैं। 'सर्जना' की उपादेयता और प्रयोगशीलता पर अपने विचार बताइए।
0 श्री रामहृदय तिवारी के संपादन में पिछले दो वर्षों से प्रकाशित होने वाली 'सर्जना' एक विशिष्ट त्रैमासिक पत्रिका है, भीड़ में अलग पहचानी जा सकने वाली, स्तरीय और मूल्यवान। मैं इसका नियमित पाठक हूं। शोधार्थियों के लिए भी यह पत्रिका उपयोगी है, ऐसा मैं मानता हूं।

बोलियों की दुनिया में छत्‍तीसगढी बोली


आलेख : रामहृदय तिवारी

प्रकृति बोलती है, कभी क्रोध से, कभी करूणा से, कभी दुत्कार से तो कभी दुलार सेभौंचक मनुष् समझ नहीं पाता, सिर्फ महसूस करता है प्रकृति की अनंत बोलियों कोमनीषी कहते हैं प्रकृति की सारी ध्वनियॉं अज्ञात अनंत सत्ता की सांकेतिक अभिव्यक्तियॉं हैतत् दर्शियों ने इन्हें अनहद नाद कहा, कभी अल्लाह कहा, कभी यहोवाह, कभी आमेन तो कभी ओमकहते हैं कि स्रष्टि की सारी ध्वनियों का, सारी बोलियों और भाषाओं का स्रोत यह उँ ही हैयह अनहद नाद समूचे ब्रम्हाण् में परिव्याप् हैमनुष् का शरीर भी इस नाद का केन्द्र बिन्दु है, जहां से नि:स्रत होती हैविभिन् घ्वनियांमनुष् ने इस घ्वनियों को शब्दों में ढालकर ग्राहा और संप्रेषणीय बना दिया हैसंसार की सारी बोलियां मनुष् के सतरंगी मनोभावों की उद्दाम परिणतियां हैंविश् की तमाम बोलियां हमारी उत्कट भावनाओं के प्रतिफलन और हमारी सामाजिकता की आधारशिलाएं हैंबोलियों को मनुष् ने कब बोलना सीखा, हम नहीं जानते, लेकिन क्यों और कैसे बोलना सीखा- इसका पर्याप् प्रमाण हैहमारे पास

लगभग तीन हजार भाषाओं वाले इस सभ् संसार में अनगिनत बोलियां हैउन सबकी अलग अलग अभिव्याक्तियां मानव जाति की अमूल् धरोहर हैबोलियां सांस्क्रतिक जगत की श्रेष्ठतम उपलब्धियों में एक हैअलग- अलग तेवर, तर्ज और रंग होने के बावजूद सारी बोरियों की गंध एक ही है । - माटी की गंधमाटी चाहे वह किसी भी देश, प्रान् या अंचल की हो, उसकी आत्मा में बस एक ही तडप होती हैफूल बनकर लिखने की, हरियाली बनकर लहलहाने कीमनुष्यता के साथ जीने कीरंगो, नस्लों, कौमों, मजहबों और सरहदों के पास बोलियों की यही तडप उनकी सबसे बडी पहिचान है, सबसे बडी ताकत है

जैसा कि हम जानते हैं, दुनिया के नक्शे में एक जगमगाता हुआ देश है, हिन्दुस्तानहिन्दुस्तान के ह्रदय स्थल के रूप में सोलह जिलों को अपनी बाहों में समेटे, एक प्यारा अंचल है छत्तीसगढ, जो अब स्वयं नए राज् के रूप में आकार ले चुका हैधान का कटोरा नाम से सुविख्यात इस गमकते हुए छत्तीसगढ राज् की शस् श्यामला धरती में ऐसा बहुत कुछ है जिसकी मोहकता, मादकता और माधुर्य पर हम न्यौछावर हैंयहां बोली जाने वाली छत्तीसगढी बोली भी उन्हीं में से एक हैदक्षिणापथ, दक्षिण कौशल, महाकान्तार और दण्डकारण् जैसे प्राचीन संबोधनों से सुशोभित हमारा छत्तीसगढ, संस्क्रति, पर्व और परंपराओं का मानसरोवर हैजैसे लहरों के बिना सरोवर सूना और श्रीहीन है, वैसे ही बोलियों के बिना अंचलछत्तीसगढी केवल बोली ही नही, इस अंचल की धडकन हैछत्तीसगढी एक ऐसी बोली है, जिसके साथ समूचे छत्तीसगढ प्रान्तर की आत्मीयता, आवेग, आदर और स्वाभिमान की भावनाएं जुडी हुई हैंइसकी ध्वनियां सरगुजा की सरहदी पहाडियों से बस्तर के सघन वनों तक, बिलासपुर जिले के खंडहरों से राजनांदगांव की डोंगरियों तक अपने पूरे वैभव सामर्थ् और अर्थवत्ता के साथ प्रतिध्वनित होती हैउसकी आभा मैकल के आर-पार बिखरती हैछत्तीसगढी बोली इस अंचल की आंतरिक सुषमा और उसका बाह्य श्र्रंगार हैइसकी सरसता, सरलता, माधुर्य और लचीलापन मन को बरबस मोह लेता हैएक उदाहरण देखें :

धरम धाम भुइंया छत्तीसगढ,
महानदी के धार जेकर चरन पखारथे,
जिहां राजीव लोचन सौंहत बिराजथे,
माटी जिंहा सोन के लोंदा अउ मनखे जइसे चंदैनी गोंदा, रागी,
अब ओखर कतेक करौं मैं बन्दन,
धुर्रा फुदकी घलो जिंहा मलागर के चन्दन

छत्तीसगढी बोली के कोषागार में सरस लोक-गीत है, सम्रद्व लोकगाथाएं हैं, कथाएं हैं, पहेलियां, किंवदंतियां, कहावतें और मुहावरे हैंपंथी, पंडवानी, करमा, ददरिया जैसे लोकगीतों के साथ छत्तीसगढी लोकनाट्य नाचा तो अंचल में ही नहीं, विश् के मंचीय जगत में विख्यात हैनाचा, जीवन केन्द्रित एक ऐसी लोकनाट्य विधा है जिसमें मनोरंजन और लोक शिक्षण का दुर्लभ संयोग देखा जा सकता हैनाचा छत्तीसगढी बोली का सर्वाधिक स्पष्, मुखर और नयनाभिराम आईना हैपंडवानी महाभारत के अमर पात्रों की शौर्य गाथा का छत्तीसगढी संस्करण हैपंडवानी के नाम से किसी महाकाव् का लोक शैली में गायन छत्तीसगढी बोली की अन्यतम विशेषता हैपंडवानी छत्तीसगढ की लोकवाचिका परम्परा का श्रेष्ठतम उदाहरण हैददरिया छत्तीसगढी लोकगीतों की राजललना हैबिहारी के दोहों की भांति तीखापन और व्यापक अर्थवत्ता लिए ददरिया में ग्रामीण युवा ह्रदयों की सहज सुकुमार भावनाएं तरंगायित होती हैक्रषि प्रधान इस अंचल के लिए ददरिया, श्रमशक्ति संचार और श्रम परिहार का सहज सुलभ साधन हैसुवागीत में नारी-पंगों के मंडलाकार गतिचक्र और हथेलियों की समरस लयबद्वता के साथ-साथ छत्तीसगढी बोली के कल-कल निनादी प्रवाह का मोहक समन्वय हैआत्मा के प्रतीक सुवा को संबोधित सुवा गीत में नारी विरह वेदना ही आकुल अभिव्यक्ति ही नहीं, अंततोगत्वा इष् के एकाकार होने की चरमचाह और सर्वजन कल्याण की उदात् भावनाएं हैं

शोधकर्ताओं के अनुसार छत्तीसगढ के पूर्व में उत्तर दक्षिण उडीषा भाषा का विस्तार हैइस संक्रांति क्षेत्र की बोली लरिया के नाम से जानी जाती हैदक्षिण में मराठी के प्रभाव से छत्तीसगढी का जो रूप प्रचलित है उसे हल्बी की संज्ञा मिली हैउत्तर में भोजपुरी का प्रभाव हैबोधगम्यता और आंतरिक एकरूपता की द्रष्टि से छत्तीसगढ के सोलह जिलों की इस बोली को ही छत्तीसगढी बोली के नाम से पुकारा जाता हैअधिकाश विद्धान मानते हैं कि यह बोली अर्ध-मागधी की दुहिता और अवधी की सहोदरा हैछत्तीसगढ से प्राप् शिलालेखों में अवधीपन का स्पर्श और रामचरित मानस में छत्तीसगढी शब्दों का बाहुल् अवधि छत्तीसगढी की अंतरंगता को प्रमाणित करता हैऐसा माना जाता है कि आज से लगभग 1080 वर्ष पूर्व अर्धमागधी के गर्भ से छत्तीसगढी बोली का जन् हुआइन हजार वर्षो में इस बोली पर अन् भाषाओं की छाया पडती गईउत्तरोत्तर उसका स्वरूप परिवर्तित होता गयाआज यह बोली अपने सम्रद्ध लोक साहित् के कारण, बोली के स्तर से उठकर भाषा के सिंहासन पर आरूढ होने की स्थति में पहुंची है

छत्तीसगढी बोली की परिव्याप्ति का क्षेत्रफल 51,888 वर्गमील हैगणनानुसार छत्तीसगढी बोलने वालों की संख्या लगभग डेढ करोड से उपर आंकी गई हैप्रत्येक जिले की बोली में स्थानगत भेद स्पष् दिखाई देता हैइसके ग्राम् और नागर रूप में भी कुछ अंतर देखा जा सकता हैजैसे दसना दसा दे नागर रूप का ग्राम् रूप जठना जठा दे हैछत्तीसगढी बोली में विभिन् भाषाओं के शब्दों का पर्याप् प्रभाव और घुसपैठ अस्वाभाविक बात नहीं हैसंस्क्रत, प्राक्रत, अपभ्रंश तथा पूर्वी हिन्दी के शब्दों का पाया जाना तो स्वाभाविक है ही, क्योंकि उन्हीं स्तरों को पार करके छत्तीसगढी को यह रूप मिला है, इसमें मराठी, उडिया और नेपाली शब्दों के अतिरिक् बंगला, भोजपुरी, बुंदेलखंडी, ब्रजभाषा, गोंडी, संथाली, कोरकू, तुर्की, अरबी तथ फारसी के शब् छत्तीसगढी में नीर क्षीर की भांति घुले मिले हैंवैज्ञानिक अध्ययन की द्रष्टि से बोलियां, भाषाओं की अपेक्षा नि:संदेह अधिक महत् रखती हैंबोलियों की अक्रत्रिमता, ताजगी और प्राणवत्ता आत्मा को छूती हैउनके मुहावरों, कहावतों, कथाओं, एवं गीतों में लोक जीवन का अनगढ मगर सरल, सरस और उद्दाम सौंदर्य झलकता हैछत्तीसगढी कहावतों और पहेलियों में जीवन के गहरे अनुभव और शब् विन्यास की छटा सुनने तथ गुनने की चीज हैगंवई के चिन्हार अउ सहर के मितान, पर्रा भर लाईदेस भर बगराई, चार गोड के चिप्पो, तेमा बइठे मिप्पो, ओला लेगे निप्पो, बइठे चापक चिप्पोइस तरह अनगिनत उदाहरण है

जैसा कि सर्वविदित हैअंचल का चिर संचित स्वप् छत्तीसगढ राज् अब आकार ले चुका हैनए राज् के अल्हाद में लोक संस्क्रति का सागर अपने पूनम के चांद को छूने बेचैन हैपूनम जब अपने यौवन में सोलहवें श्र्रंगार के साथ मचलता है तब सागर भी पगला उठता है और लहरें गले मिलने आतुर हो दौड पडती हैअंचल का जनसागर अपनी छाती में क्या क्या दबाए अभिव्यक्ति के लिए आज मचल उठा हैअब छत्तीसगढी में साहित् स्रजन की प्रव्रत्तियां ऊफान पर हैछत्तीसगढियों का चरम आज अपना सम्पूर्ण ह्रदय खोलकर रख देने को आकुल है :

लहर लहर लहरावे खेती, चंवर डोलावे धान,
कोदो राहेर तिंवरा बटुरा, मा भर थे मुस्कान
हरियर हरियर जम्मो कोती, दिखथे सबो कछार,
दूध असन छलकत जावत हे, महानदी के धार

यह स्वीकृत सत् है कि अब तक विश् में जो भी अविष्क्रत बोलियां और भाषाएं हैं, वे मनुष् की अथाह अनुभूतियों को व्यक् करने में अभी भी पूर्ण सक्षम और समर्थ नहीं हो पायी हैंगूंगे के गुड की तरह हक अभी भी अपने भावोद् गारों को अभिव्यक् करने, परिभाषित करने छटपटाते हैंआवश्यकता है एक ऐसी विश् जमीन बोली की जहां हम पूरी तरह खुल सकें, मिल सकें, परस्पर प्रेम कर सकेंयही हर बोली की अभीप्सा है, अभिप्राय है :

पोथी पढ पढ जग मुआ, पंडित भया कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढे सो पंडित होय

आत्मीयता और प्रेम छत्तीसगढी बोली की मौलिक विशेषता हैक्रोध, कुत्सा, ईर्ष्या और घ्रणा जैसे मनोविकारों का शब्दिक पर्याय ही नहीं है इस बोली मेंसर्वत्र प्रेम है, स्नेह और आतिथ् परायण्ता के मनोभाव हैंदूसरों के लिए सर्वस् त्याग करने की उत्कट कामना हैसभी प्राणियों के लिए मंगल कामनाएं, जडचेतन के लिए नैष्ठिक अनुराग छत्तीसगढी बोली का अन्यतम आकर्षण है और इसी में अंतर्निहित है छत्तीसगढ की आत्मा, छत्तीसगढ राज् की गरिमा

उडत चिरइया रूम झूम ले
बहिनी उडत चिरइया रूम झूम ले
राम रमउवा ले ले
बहिनी, राम रमउवा ले ले
भइया राम रमउवा ले ले.

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...