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तथाकथित मानवाधिकार वादियों बस्‍तर के आदिवासियों को मुहरा बनाना बंद करो

पिछले दिनों छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के गलियारों से एवं समाचार पत्रों से प्राप्‍त जानकारी छत्‍तीसगढ़ के लिए तो चौंकाने वाला नहीं है किन्‍तु यह उन तथाकथित वनवासियों के शुभचिंतकों के लिए अवश्‍य चौंकाने वाला है. इस समाचार से यह स्‍पष्‍ट हो गया है कि तथाकथित मानवाधिकार वादी बस्‍तर के आदिवासियों को मुहरा बनाकर किस प्रकार से सरकार के विरूद्ध खेल खेल रहे हैं. इस समाचार नें उन सभी याचिकाओं की पोल खोल दी है जो तथाकथित मानवाधिकार वादियों के द्वारा हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक विभिन्‍न न्‍यायालयों में दायर की गई हैं. यह समाचार छत्‍तीसगढ़ के विभिन्‍न समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ है जिसे हमने अपने ब्‍लॉग जूनियर कौंसिल में भी प्रकाशित किया है. समाचार यह है -

नक्‍सल क्षेत्र दंतेवाड़ा जिले के एर्राबोर थाने का मामला

छत्तीसगढ हाईकोर्ट के १० वर्षों के न्यायालयीन इतिहास में यह पहला मामला है जब याचिकाकर्ता ने कोर्ट में उपस्थित होकर किसी तरह की याचिका दायर करने से ही इनकार कर दिया। जिस याचिका पर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में सुनवाई हो रही है उसमें एर्राबोर पुलिस पर आरोप लगाया है कि उसके पिता व बहन को गायब कर दिया गया है। पिछले सात महीने से इस याचिका पर डिवीजन बेंच में सुनवाई चल रही थी।

  • कोर्ट में आया अनुवादक

सिन्ना चूंकि हिंदी न तो बोल पाता है और न ही समझ पाता है। वह गोडी बोली बोलता और समझता है। इसे देखते हुए कोर्ट ने अनुवादक की व्यवस्था करने के निर्देश शासन को दिए थे। लिहाजा, अनुवादक के माध्यम से कोर्ट ने अपना सवाल किया। इस दौरान उन्होंने इस तरह का खुलासा किया।
यह चर्चित मामला दंतेवाड़ा जिले के एर्राबोर थाने की लेदरा ग्राम पंचायत के ग्राम दरभागुड़ा का है। यहां के निवासी विंगोसिन्ना ने १८ सितंबर २००९ को अपने वकील के जरिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी। याचिका में पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहा था कि अप्रैल-मई २००८ को उसके पिता वेकोदुल्ला व बहन वेको बजरे को पुलिस बलात्‌ उठाकर ले गई। याचिकाकर्ता ने कहा कि जिस वक्त पुलिस वहां पहुंची तो उसके परिवार के अन्य सदस्य जंगल की ओर भाग गए। लिहाजा, पुलिस उसे पकड़ नहीं पाई। याचिका में पिता व बहन को पुलिस के चंगुल से छुड़ाने के लिए पुलिस महानिदेशक व पुलिस अधीक्षक से शिकायत करने पर कोई कार्रवाई नहीं करने का आरोप भी लगाया गया है। इस मामले की सुनवाई डिवीजन बेंच में चल रही थी। इसी बीच १ फरवरी २०१० को याचिकाकर्ता के वकील ने हाईकोर्ट में इस बात की जानकारी दी कि याचिकाकर्ता से उसका कोई संपर्क नहीं हो पा रहा है।

  • चेतना परिषद पर लगाया आरोप

सिन्ना ने आदिवासी चेतना परिषद के पदाधिकारियों पर आरोप लगाते हुए कहा कि उसके अलावा कई और आदिवासियों को चेतना परिषद के पदाधिकारी दो बार बिलासपुर लेकर आए थे। इसी दौरान कई दस्तावेजों पर उसके हस्ताक्षर लिए गए थे। किस बात के लिए हस्ताक्षर लिए गए थे इसकी जानकारी उसे नहीं है।
वकील की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता की खोजबीन करने व कोर्ट में उपस्थित करने के लिए शासन को नोटिस जारी किया था। डिवीजन बेंच के निर्देश के बाद पुलिस ने २३ मार्च २०१० को याचिकाकर्ता विंगोसिन्ना को डिवीजन बेंच के समक्ष पेश किया। याचिकाकर्ता के वकील ने अपने मुवक्किल के रूप में उसकी पहचान की। डिवीजन बेंच द्वारा पूछताछ के दौरान याचिककर्ता ने कोर्ट के समक्ष सनसनीखेज खुलासा करते हुए कहा कि उसने किसी तरह की कोई याचिका हाईकोर्ट में दायर ही नहीं की है। और न ही पुलिस पर किसी तरह का आरोप लगाया है। विंगोसिन्ना ने इस बात की जानकारी कोर्ट को दी कि उसके पिता व बहन पिछले कुछ दिनों से गायब हैं। इस पर जस्टिस धीरेंद्र मिश्रा व जस्टिस आरएन चंद्राकर की डिवीजन बेंच ने दंतेवाड़ा एसपी को सिन्ना के पिता व बहन की खोजबीन करने के निर्देश दिए। साथ ही याचिका को निराकृत कर दिया है।

इस समाचार की सत्‍यता जानने के बाद सुप्रीम कोर्ट में लगाए गए बस्‍तर संबंधी विभिन्‍न याचिकाओं पर भी मन में शंका हो रही है कि वे इसी तरह से फर्जी तो नहीं हैं. हांलांकि इस समाचार के विरोध में तथाकथित मानवाधिकार वादी यह भी कहने से नहीं चूकेंगें कि सरकार व पुलिस किसी अन्‍य व्‍यक्ति को न्‍यायालय में प्रस्‍तुत कर याचिकाकर्ता के रूप में प्रस्‍तुत कर रही है, या याचिकाकर्ता को धमकाया गया है. 6/4 के निर्मम घटना के बाद भी  विदेशों में व दिल्‍ली में बैठे बुद्धजीवी इन फर्जी मानवों के खून चूसने वालों पर विश्‍वास करती है तो बौद्धिकता पर शर्म आती है.

संजीव तिवारी

विश्वरंजन या तो मारे जाएंगे या जेल जाएंगे - सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख जनहित वकील प्रशांत भूषण ने आक्रोश में कहा


विशेष संवाददाता, रायपुर, 11 जनवरी (छत्तीसगढ़)। प्रसिद्ध सुप्रीम कोर्ट वकील और अनेक जनवादी संगठनों की ओर से विभिन्न मामलों में पैरवी करने वाले प्रशांत भूषण छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन पर जमकर बरसे। उन्होने आपरेशन ग्रीन हंट को तत्काल रोकने की मांग करते हुए कहा कि जिस हिसाब से छत्तीसगढ़ पुलिस निर्दोष आदिवासियों का खून बहा रही है उसके चलते जल्द ही या तो विश्वरंजन गोली से मार दिए जाएंगे अथवा वे जेल के भीतर होंगे।

उन्होने चेतावनी दी कि ग्रीन हंट से सिविल वार का अंदेशा है और यह गृह युद्ध छत्तीसगढ़ के शहरी क्षेत्रों को भी अपनी लपेट में ले लेगा। उन्होने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में एमनेस्टी इंटरनेशनल भेजे जाने की मांग भी की। उन्होने विश्वरंजन को छद्म साहित्यकार निरूपित करते हुए छत्तीसगढ़ के साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों की इस बात को लेकर आलोचना की कि वे विश्वरंजन को साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित कर उन्हे सिर पर उठाए घूम रहे हैं।

एक कार्यक्रम के सिलसिले में बिलासपुर आए प्रशांत भूषण कल प्रसिद्ध वकील कनक तिवारी के कार्यालय में शहर के कुछ चुनिंदा पत्रकारों और बुद्धिजीवियों के साथ बातचीत कर रहे थे। उन्होने इस बात को मानने से इंकार कर दिया कि नक्सलवादियों द्वारा भी निर्दोष आदिवासियों के कत्ल किए जा रहे हैं। उन्होने कहा कि हो सकता है नक्सलियों की ओर से कुछ लोग मारे गए हों परंतु इसका अनुपात एक के मुकाबले सौ ही है। यानि अगर पुलिस वाले सौ बेगुनाहों को मार रहे हैं तो एकाध आदिवासी नक्सलियों की ओर से मारा जा रहा होगा। हालांकि उन्होने कहा कि इस बात की उन्हे ज्यादा जानकारी नहीं है कि नक्सली क्या कर रहे हैं।

उन्होने कहा कि ग्रीन हंट के नाम पर विश्वरंजन जंगलों में जो कर रहे हैं वह उन्हे 'सबसे बड़ा अपराधी साबित करने के लिए पर्याप्त है और उचित समय पर वे जेल जाएंगे। उन्होने बताया कि इस ऑपरेशन से नक्सलियों की तादाद बढ़ेगी। जिन निर्दोषों को सताया जा रहा है उनमें से कम से कम एक फीसदी तो नए नक्सली बनेंगे।

प्रशांत भूषण का मानना है कि ग्रीन हंट का असर कम से कम दो लाख आदिवासियों पर होगा पर इनमें से दो हजार लोग निश्चित ही नक्सली बनेंगे। इस तरह डीजीपी नए नक्सली पैदा कर रहे हैं और माओवादियों का कैडर विस्तारित कर रहे हैं। उन्होने चेतावनी दी कि ग्रीन हंट के खिलाफ इतना भीषण रोष है कि यह गृह युद्ध में तब्दील हो जाएगा। उन्होने चेतावनी दी कि शहर वाले ये न समझें कि वे इस युद्ध से अछूते रह जाएंगे। जंगलों से निकलकर नक्सली शहरी इलाकों में भी कार्रवाई करेंगे।

प्रशांत भूषण ने इस बात पर रोष जताया कि आदिवासियों के प्रति सहानुभूति रखने वाले और मानवाधिकार की चिंता करने वाले हर किसी को विश्वरंजन नक्सली बताने पर तुले हैं और उनके खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं। डॉ. बिनायक सेन, हिमांशु आदि इसी नीति के शिकार हो रहे हैं। उन्होने बताया कि इन तमाम परिस्थितियों पर विचार-विमर्श करने के लिए दिल्ली में एक बैठक इसी शनिवार को बुलाई गई है जिसमें अनेक प्रसिद्ध बुद्धिजीवी, मानवाधिकार व सामाजिक कार्यकर्ता आदि शामिल होंगे।

यह पूछे जाने पर कि क्या नक्सलियों को भी बातचीत के लिए आगे नहीं आना चाहिए, उन्होने कहा कि आखिर वे (नक्सली) किस विषय पर बातचीत करेंगे। उनका तो लोकतंत्र में विश्वास ही नहीं है और वे इस राज्य की सत्ता को उखाड़ फेंकना चाहते हैं। प्रशांत भूषण ने तत्काल राज्य की ओर से युद्ध विराम की मांग करते हुए कहा कि इसके साथ ही तीन काम किए जाने अत्यंत आवश्यक हैं, वे हैं-भूमि सुधार लागू करना, खदान माफिया खत्म करना और एसईजेड के नाम पर होने वाले गैर कानूनी भूमि अधिग्रहण व निजीकरण को रोकना।

प्रशांत भूषण का दावा है कि इतना भी अगर किया जाता है तो माओवादियों की गतिविधियां काफी सीमित हो जाएंगी। जब उनके ध्यान में लाया गया कि छत्तीसगढ़ में एसईजेड जैसी कोई चीज ही नहीं है और निजीकरण भी माओवादियों की गतिविधियों के मुकाबले हाल ही में लागू हुआ है तो उन्होने कहा कि किसी भी रूप में जमीनों का हो रहा अधिग्रहण रोका जाना चाहिए क्योकि इससे आदिवासियों में व्यापक असंतोष फैल रहा है और उनके जीवन-यापन के साधन छिन रहे हैं।

उन्होने पूरे लाल गलियारे (माओवादियों के प्रभाव वाला पट्टा) में एसईजेड के कारण नक्सली गतिविधियों के बढऩे की बात कही। उन्होने कहा कि एसईजेड दरअसल पैसे वालों के लिए अनैतिक और गैर सांवैधानिक तरीके से जमीन हथियाने की सरकारी चाल है जिसमें जनता का कोई फायदा नहीं है। यहां बड़े-बड़े व्यवसायिक प्रतिष्ठान आएंगे और उसके बाद आदिवासियों और ग्रामीणो के लिए कोई भी विकल्प नहीं बचेगा। वे या तो अपनी जमीनें छोडक़र भाग जाएंगे अथवा नक्सली बनकर लड़ते रहेंगे। माओवादियों के इलाकों में खदानों के निजीकरण पर तत्काल रोक की मांग करते हुए प्रशांत भूषण ने कहा कि इससे सरकार को कोई विशेष फायदा नहीं हो रहा है।

कर्नाटक में सरकार को लौह अयस्क में प्रति टन रायल्टी 27 रुपए मिलती है जबकि उसे उद्योगपति छह सौ रुपए प्रति टन की दर से खुले बाजार में बेचते हैं। उड़ीसा में स्टरलाईट इंडस्ट्रीज ने कई लाख टन बाक्साइट भंडार वाले नियामगिरी खदानों पर गैर कानूनी तरीके से कब्जा कर लिया है जिससे वहां के आदिवासियों में व्यापक असंतोष फैला हुआ है। उन्होने आरोप लगाया कि इसमें गृह मंत्री पी. चिदंबरम का भी शेयर है।

प्रशांत भूषण के अनुसार यह खदान माफिया लगातार फल-फूल रहा है और लगभग सभी राजनैतिक दलों की इसमें हिस्सेदारी है। इसीलिए सरकार ने उनसे जमीनें अधिग्रहित कर इन कंपनियों को दे दी है। इसी के चलते माओवादियों का प्रभाव क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है तथा कोई भी सरकार उन पर प्रभावशाली ढंग से अंकुश नहीं कर पा रही है। इसका कारण उन्होने यह भी बताया कि पुलिस का मनोबल अत्यंत गिरा हुआ है जबकि माओवादी कई वर्षों से इतने बड़े क्षेत्र में बढ़ते मनोबल के साथ संघर्षरत है।

हालांकि प्रशांत भूषण ने यह भी माना कि नक्सलियों का कोई संगठित नेतृत्व नहीं है और जो बुद्धिजीवी व सामाजिक कार्यकर्ता उनके बीच काम करने जा रहे हैं वे भी उन्हे प्रभावित करने की स्थिति में नहीं है और न ही किसी बातचीत में उनका प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। उन्होने कहा कि सबसे पहले आदिवासियों को बराबरी के स्तर पर लाया जाए तभी कोई बातचीत अर्थर्पूण रहेगी। गैर बराबर पक्षों के बीच कोई बातचीत नहीं हो सकती। इस दिशा में उन्होने राज्य और लोगों के सहयोग को भी आवश्यक बताया।

प्रशांत भूषण ने यह मानने से इंकार किया कि नक्सलवादी भी निर्दोष आदिवासियों का बड़े पैमाने पर कत्ल कर रहे हैं। उनका दावा था कि जिस पैमाने पर पुलिस आदिवासियों को मार रही है उसके मुकाबले नक्सलियों द्वारा निर्दोषों को काफी कम तादाद में मारा जा रहा है। उन्होने कहा कि हो सकता है कुछ मुखबिर आदि उनके हाथों मारे गए हों। लेकिन इस बारे में उन्हे ज्यादा जानकारी न होने से उन्होने किसी तरह की टिप्पणी करने से इंकार किया। उन्होने मांग की कि इस क्षेत्र में एमनेस्टी इंटरनेशनल या राष्ट्रसंघ द्वारा नियुक्त कोई एजेंसी या व्यक्तियों को भेजा जाना चाहिए जो वहां जाकर वस्तुस्थिति की निष्पक्ष जांच करे और निदान सुझाए।

सलवा जुडूम को पूरी तरह से गैर कानूनी और असंवैधानिक सशस्त्र बल बताते हुए प्रशांत भूषण ने कहा कि अगर यहां हिंसा को रोकना है तो सलवा जुडूम को तत्काल खत्म करना होगा। इन क्षेत्रों के चुनावों को भी उन्होने छद्म बताया।

स्कूल और अन्य विकास कार्यों में नक्सलियों द्वारा अवरोध पैदा करने और उन पर हमले किए जाने की ओर ध्यान दिलाने पर प्रशांत भूषण ने कहा कि नक्सली उन्ही स्कूलों को अपना निशाना बना रहे हैं जहां पर कोई पढ़ाई नहीं होती और उनमें माओवादियों के खिलाफ कार्रवाई कर रहे सशस्त्र बल ने अपना ठिकाना बना रखा है। उन्होने कहा कि इसमें कोई आश्चर्य नहीं है क्योकि वे तो पुलिस वालों के खिलाफ युद्ध कर रहे हैं सो उन पर वे हमले तो करेंगे ही। उन्होने यह भी माना कि मुख्य सडक़ों से ज्यादा अंदर विकास कार्य होने संभव ही नहीं है। सरकारी एजेंसियां और मुलाजिम उनमें घुस ही नहीं सकते क्योकि वहां माओवादियों ने बारूदी सुरंगे बिछा रखी हैं।

छत्तीसगढ़ के मीडिया के कामकाज पर भी उन्होने असंतोष जताते हुए कहा कि राष्ट्रीय मीडिया और स्थानीय समाचार पत्रो में उन्हे एकदम अलग तरह की रिपोर्टिंग इस विषय पर देखने को मिली है। राष्ट्रीय मीडिया ज्यादा सही और जिम्मेदारी से रिपोर्टिंग कर रहा है जबकि यहां का मीडिया पुलिस के खौफ से अथवा किसी अन्य प्रभाव से पुलिस के पक्ष में लिख रहा है। प्रशांत भूषण ने बताया कि इन स्थितियों को देखते हुए कहा कि यहां के मीडिया पर बहुत विश्वास नहीं किया जा सकता और वे कोई मानवाधिकार आयोग अथवा उच्चा स्तरीय समिति लाने की कोशिश करेंगे ताकि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जो हो रहा है उसकी वस्तुस्थिति का पता चल सके।

न्यायपालिका को पुलिस विभाग के बाद दूसरा सबसे बड़ा भ्रष्ट विभाग बताते हुए प्रशांत भूषण ने कहा कि यह कोई सोच ही नहीं सत्ता कि सुप्रीम कोर्ट जैसे प्रतिष्ठान में भी पचास फीसदी से ज्यादा जस्टिस भ्रष्ट हैं। उन्होने कहा कि अगर कोई यह कहता है कि ज्यादा भ्रष्टाचार नीचे स्तर पर है और ऊपर के स्तर पर कम तो ऊपर की कोर्ट निचली कोर्ट के भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए कोई कदम क्यो नहीं उठाती? उन्होने कहा कि गाजियाबाद प्रकरण से तो यह स्पष्ट हो गया है कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे चलता है तथा उस स्तर पर भ्रष्टाचार की राशि का एक बडा हिस्सा उपर तक जाता है।

मेरी मौत कैसे होगी, यह प्रशांत भूषण तय नहीं करेंगे : विश्वरंजन


प्रशांत भूषण के इस बयान पर कि छत्तीसगढ़ के डीजीपी विश्वरंजन या तो गोली से उड़ा दिए जाएंगे अथवा जेल में होंगे, खुद श्री विश्वरंजन का कहना है कि आदमी की मौत सिर्फ एक बार होती है और वे इस बात की परवाह नहीं करते कि उनका सामना मौत से कैसे होगी। उन्होने पूछा कि आखिर प्रशांत भूषण यह तय करने वाले कौन होते हैं कि उन्हे नक्सली गोली मारेंगे या नहीं?


प्रशांत भूषण के बयान को पूरी तरह एकतरफा बताते हुए विश्वरंजन ने कहा कि छत्तीसगढ़ के बारे में उनके पास पर्याप्त जानकारी नहीं है। पुराने बस्तर का कुल क्षेत्रफल करीब 40 हजार वर्ग किलोमीटर है जिसमें से बामुश्किल दो सौ वर्ग किलोमीटर पर खनिज पट्टे हैं और यहां निजी औद्योगिक घरानों को खदाने देने के काफी पहले से माओवाद पनप चुका है।

बस्तर में तो 1980 से माओवादी निर्दोषों का खून बहा रहे हैं, विकास रोक रहे हैं तथा स्कूल-सडक़ों को ध्वस्त कर रहे हैं। प्रशांत भूषण को चाहिए कि वे छत्तीसगढ़ खनिज विभाग से जानकारी लेकर अपने बयान को खुद ही सच्चाई की कसौटी पर कसें। निजीकरण और एसईजेड प्रदेश के लिए माओवाद के इतिहास के मुकाबले काफी नए हैं।

विश्वरंजन का कहना है कि ग्रीन हंट ऑपरेशन को रोकने का सवाल ही नहीं उठता। उन्होने कहा कि ग्रीन हंट के अंतर्गत सिर्फ नक्सली ही निशाने पर हैं और इसके साथ ही आदिवासियों के बीच ग्रीन हंट ऑपरेशन इस बात का जनजागरण कर रहा है कि पुलिस उनकी रक्षा में तत्पर है तथा वे अपनी सुरक्षा संबंधी समस्याएं लेकर पुलिस के पास आएं। पुलिस उनकी पूरी हिफाजत करेगी। उन्हे हमसे डरने की जरूरत नहीं है।

डीजीपी ने दावा किया कि इसका व्यापक असर हुआ है और आदिवासी खुद को पहले से ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रहे हैं तथा पुलिस को स्वस्फूर्त सहयोग दे रहे हैं। उन्होने प्रशांत भूषण के इस बयान को भी गलत बताया कि पुलिस के हाथों सौ निर्दोषों की हत्या के मुकाबले नक्सली एक बेगुनाह आदिवासी को मार रहे हैं। उन्होने कहा कि पिछले कई वर्षों से नक्सली निर्दोष आदिवासियों के खून-खराबे का घिनौना खेल खेलते आ रहे हैं। हाल ही में एक प्रदर्शनी लगाई गई थी जिसमें प्रदर्शित चित्रों में स्पष्ट दिखाई देता है कि नक्सली किस हद तक हिंसा का इस्तेमाल कर रहे हैं और निर्दोष आदिवासियों और नागरिकों के प्राण ले रहे हैं।

प्रशांत भूषण द्वारा एमनेस्टी इंटरनेशनल की ओर से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किए जाने के प्रस्ताव पर श्री विश्वरंजन ने कहा कि कोई भी व्यक्ति या एजेंसी आकर देख सकती है कि इन क्षेत्रों में क्या हो रहा है। ऐसे किसी भी व्यक्ति या एजेंसी का स्वागत है।

पुलिस महानिदेशक का कहना है कि अगर बातचीत के लिए नक्सलियों के पास कोई मुद्दा ही नहीं है तो इतनी लंबी लड़ाई आखिर वे किस आधार पर लड़ रहे हैं यह उनके बीच जाने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं,
मानवाधिकार संगठनों और उनके प्रतिनिधियों के सोचने की बात है। इसी से साबित होता है कि वे हिंसा में विश्वास रखते हैं और शांति प्रक्रिया में शामिल नहीं होंगे।

प्रशांत भूषण के इस बयान पर कि 'विश्वरंजन छद्म साहित्यकार हैं, उन्होने कहा कि यह तय करना साहित्यिक बिरादरी और पाठकों का काम है न कि प्रशांत भूषण का। इसके बारे में उन्हे बहुत ज्यादा कुछ नहीं कहना है।



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(यह रपट हम छत्तीसगढ से साभार प्रस्तुत कर रहे है)

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संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

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