छत्‍तीसगढ को हिन्‍दीभाषी राज्‍य घोषित करने का दुराग्रह क्‍यों ? सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

छत्‍तीसगढ को हिन्‍दीभाषी राज्‍य घोषित करने का दुराग्रह क्‍यों ?

राज्‍य सरकार संविधान के अनुच्‍छेद 345 के अंतर्गत छत्‍तीसगढी भाषा को राजभाषा के रूप में शासकीय मान्‍यता प्रदान कर सकती है । फिर भी इसे हिन्‍दीभाषी राज्‍य घोषित करने का दुराग्रह क्‍यो ? पढिये दैनिक भास्‍कर में आज प्रकाशित स्‍वतंत्र पत्रकार श्री न्रदकिशोर शुक्‍ल की व्‍य‍था कथा जो हम सब छत्‍तीसगढियों को जानना आवश्‍यक है ।
कल रविवार को राजनांदगांव के सुरगी में संध्‍या 6 बजे राजभाषा छत्‍तीसगढी के लिए साहित्‍यकार व दिग्‍गज जुट रहे हैं ! आज सुबह हमारी प्रसिद्ध छत्‍तीसगढी साहित्‍यकार डा परदेशीराम वर्मा जी से हुई चर्चा में हमने रायपुर के हमारे व्‍लागर भाई संजीत त्रिपाठी जी के प्रश्‍न को भी उठाया था तो डा परदेशीराम वर्मा जी नें हमें आश्‍वासन दिया कि कल के इस आगाज में संजीत त्रिपाठी जी के बात को भी जनता के सामने रखा जायेगा । आगामी 19 जुलाई को डा खूबचंद बघेल के जयंती के अवसर पर हमारी भाषा के लिए एक महारैली रायपुर में आयोजित की जानी है । अब आगे जो भी हो अंजाम . . . निज भाषा सम्‍मान में हमारी लडाई जारी रहेगी ।

टिप्पणियाँ

  1. समझ में नही आया - हिन्दी और छत्तीसगढ़ी में विरोध है क्या? यही अवधी/भोजपुरी/मैथिली के विषय में भी कहा जाये?
    मैं तो समझता था कि ये सभी और हमारे जैसे की लंगड़ी हिन्दी भी हिन्दी का अंग हैं. क्या नहीं?
    संजीव/संजीत - आप स्पष्ट करें छत्तीसगढ़ी-हिदी विरोध क्या है.

    जवाब देंहटाएं
  2. यह लेख मैनें भी पढ़ा आज।

    जहां तक छत्तीसगढ़ी को राज्य के सरकारी गजट में राजभाषा के रुप मेघोषित किए जाने का रास्ता यदि हम देख रहे हों और इसी से संतुष्ट हो जाना चाहते हो तो बात अलग है पर यदि हम इसे जन जन से जोड़ना चाहते हैं तो निश्चित ही सर्वप्रथम इसे स्कूल, कालेजों के पाठ्यक्रम में जोड़ना होगा वह भी अनिवार्य विषय के रुप में जैसा कि बंगाल में बंगाली है और महाराष्ट्र में मराठी।सबसे पहले जरुरत इस बात की है कि नई पीढ़ी को छत्तीसगढ़ी से जोड़ा जाए। आज हर शहरी इलाके के घर में नई पीढ़ी से उनके अभिभावक छत्तीसगढ़ी की बजाय हिन्दी में बात करते हैं तो फ़िर यह नई पीढ़ी के बच्चे क्या छत्तीसगढ़ी से जुड़े रहेंगे और क्या अपने बच्चों को अर्थात आने वाली पीढ़ी को क्या और कैसी छत्तीसगढ़ी सीखाएंगे!
    क्या हम यह चाहते हैं कि राज्य सरकार छत्तीसढ़ी को राजभाषा घोषित कर दे और बस भूल जाए क्योंकि राजकाज की भाषा तो अंग्रेजी या हिंदी ही रहेगी॥

    ज्ञान दद्दा, हिन्दी और छत्तीसगढ़ी में कोई विरोध नही है, बस सारी जद्दोजहद छत्तीसगढ़ी को राज्य की राजभाषा घोषित करवाने की मांग को लेकर है।

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय पाण्‍डेय जी, हम छत्‍तीसगढी व हिन्‍दी में विरोध की बात नही कर रहे हैं । हिन्‍दी हमारे देश की राट्रभाषा है हम सभी छत्‍तीसगढिया हिन्‍दी का आदर करते हैं, हम अपने राज्‍य में अधिसंख्‍यक रूप में बोली जाने वाली भाषा एवं विस्‍तृत व प्रचुर छत्‍तीसगढी साहित्‍य की उपलब्‍धता के आधार पर इस भाषा को राजकीय मान्‍यता दिलाने के मत के पक्षधर हैं ।
    रही बात अवधि की तो अवधि को संपूर्ण भारत हिन्‍दी का ही प्रतिरूप मानता है, रामचरित मानस किस भाषा में है यह पूछने पर जन सामान्‍य यह नही कहता कि यह अवधि में है बल्कि यह कहता है कि यह हिन्‍दी में है । भोजपुरी व मैथिल के संबंध में आपकी बात सहीं है कि यह मूल हिन्‍दी से किंचित हट के है । इन भाषाओं के बोलने वाले उत्‍तर प्रदेश, बिहार, उत्‍तरांचल व झारखण्‍ड में हैं । संवैधानिक रूप से जब तक छत्‍तीसगढ राज्‍य नही बना था हम हिन्‍दी राजभाषा पर ही कायम थे । किन्‍तु जब से प्रदेश का निर्माण हुआ है तब से निहित संवैधानिक विकल्‍प की उपलब्‍धता के कारण हम छत्‍तीसगढी को राजभाषा बनाने के लिए कह रहे हैं । हम यह चाहते हैं कि संविधान नें हमारे राज्‍य को भाषा चुनने का अधिकार व अवसर दिया है तो हम छत्‍तीसगढी को ही क्‍यों न चुने । हिन्‍दी तो हमारी राट्रभाषा है ही । जब तक हम मध्‍य प्रदेश के अंग थे भाषा संबंधी कोई मतभेद नही थे । जब से राज्‍य बना है तब से इस ‘चयन’ नें छत्‍तीसगढी बोली को भाषा के रूप में खडा कर दिया है और हम राज्‍य की भाषा के रूप में छत्‍तीसगढी भाषा को चाहते हैं । ऐसे में हमारी हिन्‍दी व छत्‍तीसगढी दोनो का समुचित विकास होगा ऐसा हमारा मानना है ।

    आदरणीय आपकी हिन्‍दी लंगडी नही है यदि आप ऐसा कहने लगेंगे तो हम सब का क्‍या होगा ।

    जवाब देंहटाएं
  4. मैं आप दोनो सज्जनों की सम्वेदना समझता हूं. अगर आप छत्तीसगढ़ी को राज-काज की भाषा के रूप में प्रयोग किये जाने योग्य और समृद्ध पाते हैं तो आगे बढ़ें. दुर्भाग्य से मैं तो हिन्दी में भी कमियां देखता हूं और पग पग पर अंग्रेजी के प्रयोग को बतौर अनिवार्यता पाता हूं.
    सब कुछ आप लोगों की मेहनत और छत्तीसगढ़ी को तेजी से विकसित करने पर निर्भर करेगा. यह आकलन कर लें कि कहीं आप का सोचना सेंटीमेंटल भर न हो और सरकार का निर्णय विकास का अवरोधक न साबित हो.

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भट्ट ब्राह्मण कैसे

यह आलेख प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट जी नें इस ब्‍लॉग में प्रकाशित आलेख ' चारण भाटों की परम्परा और छत्तीसगढ़ के बसदेवा ' की टिप्‍पणी के रूप में लिखा है। इस आलेख में वे विभिन्‍न भ्रांतियों को सप्रमाण एवं तथ्‍यात्‍मक रूप से दूर किया है। सुधी पाठकों के लिए प्रस्‍तुत है टिप्‍पणी के रूप में प्रमोद जी का यह आलेख - लोगों ने फिल्म बाजीराव मस्तानी और जी टीवी का प्रसिद्ध धारावाहिक झांसी की रानी जरूर देखा होगा जो भट्ट ब्राह्मण राजवंश की कहानियों पर आधारित है। फिल्म में बाजीराव पेशवा गर्व से डायलाग मारता है कि मैं जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय हूं। उसी तरह झांसी की रानी में मणिकर्णिका ( रानी के बचपन का नाम) को काशी में गंगा घाट पर पंड़ितों से शास्त्रार्थ करते दिखाया गया है। देखने पर ऐसा नहीं लगता कि यह कैसा राजवंश है जो क्षत्रियों की तरह राज करता है तलवार चलता है और खुद को ब्राह्मण भी कहता है। अचानक यह बात भी मन में उठती होगी कि क्या राजा होना ही गौरव के लिए काफी नहीं था, जो यह राजवंश याचक ब्राह्मणों से सम्मान भी छीनना चाहता है। पर ऊपर की आशंकाएं निराधार हैं वास्तव में यह राजव

क्या सफेद फूलो वाले कंटकारी (भटकटैया) के नीचे गडा खजाना होता है?

8 . हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? - पंकज अवधिया प्रस्तावना यहाँ पढे इस सप्ताह का विषय क्या सफेद फूलो वाले कंटकारी (भटकटैया) के नीचे गडा खजाना होता है? बैगनी फूलो वाले कंटकारी या भटकटैया को हम सभी अपने घरो के आस-पास या बेकार जमीन मे उगते देखते है पर सफेद फूलो वाले भटकटैया को हम सबने कभी ही देखा हो। मै अपने छात्र जीवन से इस दुर्लभ वनस्पति के विषय मे तरह-तरह की बात सुनता आ रहा हूँ। बाद मे वनस्पतियो पर शोध आरम्भ करने पर मैने पहले इसके अस्तित्व की पुष्टि के लिये पारम्परिक चिकित्सको से चर्चा की। यह पता चला कि ऐसी वनस्पति है पर बहुत मुश्किल से मिलती है। तंत्र क्रियाओ से सम्बन्धित साहित्यो मे भी इसके विषय मे पढा। सभी जगह इसे बहुत महत्व का बताया गया है। सबसे रोचक बात यह लगी कि बहुत से लोग इसके नीचे खजाना गडे होने की बात पर यकीन करते है। आमतौर पर भटकटैया को खरपतवार का दर्जा दिया जाता है पर प्राचीन ग्रंथो मे इसके सभी भागो मे औषधीय गुणो का विस्तार से वर्णन मिलता है। आधुनिक विज्ञ

क्या कौरव-पांडव का पौधा घर मे लगाने से परिवार जनो मे महाभारत शुरु हो जाती है?

16. हमारे विश्वास , आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक , कितने अन्ध-विश्वास ? - पंकज अवधिया प्रस्तावना यहाँ पढे इस सप्ताह का विषय क्या कौरव-पांडव का पौधा घर मे लगाने से परिवार जनो मे महाभारत शुरु हो जाती है? आधुनिक वास्तुविदो को इस तरह की बाते करते आज कल सुना जाता है। वे बहुत से पेडो के विषय ने इस तरह की बाते करते है। वे कौरव-पांडव नामक बेलदार पौधे के विषय मे आम लोगो को डराते है कि इसकी बागीचे मे उपस्थिति घर मे कलह पैदा करती है अत: इसे नही लगाना चाहिये। मै इस वनस्पति को पैशन फ्लावर या पैसीफ्लोरा इनकार्नेटा के रुप मे जानता हूँ। इसके फूल बहुत आकर्षक होते है। फूलो के आकार के कारण इसे राखी फूल भी कहा जाता है। आप यदि फूलो को ध्यान से देखेंगे विशेषकर मध्य भाग को तो ऐसा लगेगा कि पाँच हरे भाग सौ बाहरी संरचनाओ से घिरे हुये है। मध्य के पाँच भागो को पाँडव कह दिया जाता है और बाहरी संरचनाओ को कौरव और फिर इसे महाभारत से जोड दिया जाता है। महाभारत मे इस फूल का वर्णन नही मिलता है और न ही हमारे प्राचीन ग्रंथ इसके विषय मे इस तरह क