
कल रविवार को राजनांदगांव के सुरगी में संध्या 6 बजे राजभाषा छत्तीसगढी के लिए साहित्यकार व दिग्गज जुट रहे हैं ! आज सुबह हमारी प्रसिद्ध छत्तीसगढी साहित्यकार डा परदेशीराम वर्मा जी से हुई चर्चा में हमने रायपुर के हमारे व्लागर भाई संजीत त्रिपाठी जी के प्रश्न को भी उठाया था तो डा परदेशीराम वर्मा जी नें हमें आश्वासन दिया कि कल के इस आगाज में संजीत त्रिपाठी जी के बात को भी जनता के सामने रखा जायेगा । आगामी 19 जुलाई को डा खूबचंद बघेल के जयंती के अवसर पर हमारी भाषा के लिए एक महारैली रायपुर में आयोजित की जानी है । अब आगे जो भी हो अंजाम . . . निज भाषा सम्मान में हमारी लडाई जारी रहेगी ।
समझ में नही आया - हिन्दी और छत्तीसगढ़ी में विरोध है क्या? यही अवधी/भोजपुरी/मैथिली के विषय में भी कहा जाये?
जवाब देंहटाएंमैं तो समझता था कि ये सभी और हमारे जैसे की लंगड़ी हिन्दी भी हिन्दी का अंग हैं. क्या नहीं?
संजीव/संजीत - आप स्पष्ट करें छत्तीसगढ़ी-हिदी विरोध क्या है.
यह लेख मैनें भी पढ़ा आज।
जवाब देंहटाएंजहां तक छत्तीसगढ़ी को राज्य के सरकारी गजट में राजभाषा के रुप मेघोषित किए जाने का रास्ता यदि हम देख रहे हों और इसी से संतुष्ट हो जाना चाहते हो तो बात अलग है पर यदि हम इसे जन जन से जोड़ना चाहते हैं तो निश्चित ही सर्वप्रथम इसे स्कूल, कालेजों के पाठ्यक्रम में जोड़ना होगा वह भी अनिवार्य विषय के रुप में जैसा कि बंगाल में बंगाली है और महाराष्ट्र में मराठी।सबसे पहले जरुरत इस बात की है कि नई पीढ़ी को छत्तीसगढ़ी से जोड़ा जाए। आज हर शहरी इलाके के घर में नई पीढ़ी से उनके अभिभावक छत्तीसगढ़ी की बजाय हिन्दी में बात करते हैं तो फ़िर यह नई पीढ़ी के बच्चे क्या छत्तीसगढ़ी से जुड़े रहेंगे और क्या अपने बच्चों को अर्थात आने वाली पीढ़ी को क्या और कैसी छत्तीसगढ़ी सीखाएंगे!
क्या हम यह चाहते हैं कि राज्य सरकार छत्तीसढ़ी को राजभाषा घोषित कर दे और बस भूल जाए क्योंकि राजकाज की भाषा तो अंग्रेजी या हिंदी ही रहेगी॥
ज्ञान दद्दा, हिन्दी और छत्तीसगढ़ी में कोई विरोध नही है, बस सारी जद्दोजहद छत्तीसगढ़ी को राज्य की राजभाषा घोषित करवाने की मांग को लेकर है।
आदरणीय पाण्डेय जी, हम छत्तीसगढी व हिन्दी में विरोध की बात नही कर रहे हैं । हिन्दी हमारे देश की राट्रभाषा है हम सभी छत्तीसगढिया हिन्दी का आदर करते हैं, हम अपने राज्य में अधिसंख्यक रूप में बोली जाने वाली भाषा एवं विस्तृत व प्रचुर छत्तीसगढी साहित्य की उपलब्धता के आधार पर इस भाषा को राजकीय मान्यता दिलाने के मत के पक्षधर हैं ।
जवाब देंहटाएंरही बात अवधि की तो अवधि को संपूर्ण भारत हिन्दी का ही प्रतिरूप मानता है, रामचरित मानस किस भाषा में है यह पूछने पर जन सामान्य यह नही कहता कि यह अवधि में है बल्कि यह कहता है कि यह हिन्दी में है । भोजपुरी व मैथिल के संबंध में आपकी बात सहीं है कि यह मूल हिन्दी से किंचित हट के है । इन भाषाओं के बोलने वाले उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तरांचल व झारखण्ड में हैं । संवैधानिक रूप से जब तक छत्तीसगढ राज्य नही बना था हम हिन्दी राजभाषा पर ही कायम थे । किन्तु जब से प्रदेश का निर्माण हुआ है तब से निहित संवैधानिक विकल्प की उपलब्धता के कारण हम छत्तीसगढी को राजभाषा बनाने के लिए कह रहे हैं । हम यह चाहते हैं कि संविधान नें हमारे राज्य को भाषा चुनने का अधिकार व अवसर दिया है तो हम छत्तीसगढी को ही क्यों न चुने । हिन्दी तो हमारी राट्रभाषा है ही । जब तक हम मध्य प्रदेश के अंग थे भाषा संबंधी कोई मतभेद नही थे । जब से राज्य बना है तब से इस ‘चयन’ नें छत्तीसगढी बोली को भाषा के रूप में खडा कर दिया है और हम राज्य की भाषा के रूप में छत्तीसगढी भाषा को चाहते हैं । ऐसे में हमारी हिन्दी व छत्तीसगढी दोनो का समुचित विकास होगा ऐसा हमारा मानना है ।
आदरणीय आपकी हिन्दी लंगडी नही है यदि आप ऐसा कहने लगेंगे तो हम सब का क्या होगा ।
मैं आप दोनो सज्जनों की सम्वेदना समझता हूं. अगर आप छत्तीसगढ़ी को राज-काज की भाषा के रूप में प्रयोग किये जाने योग्य और समृद्ध पाते हैं तो आगे बढ़ें. दुर्भाग्य से मैं तो हिन्दी में भी कमियां देखता हूं और पग पग पर अंग्रेजी के प्रयोग को बतौर अनिवार्यता पाता हूं.
जवाब देंहटाएंसब कुछ आप लोगों की मेहनत और छत्तीसगढ़ी को तेजी से विकसित करने पर निर्भर करेगा. यह आकलन कर लें कि कहीं आप का सोचना सेंटीमेंटल भर न हो और सरकार का निर्णय विकास का अवरोधक न साबित हो.