विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
'मारकोनी!!!' प्रथम राज्य स्तरीय अधिवक्ता सम्मेलन में एक वरिष्ठ अधिवक्ता नें दूसरे वरिष्ठ अधिवक्ता को आवाज दिया. मैनें विरोध किया कि सर उनका नाम तो ... है. 'नहीं! मारकोनी नाम है उसका! हा हा हा!.. यह उसका निक नेम है!' सीनियर नें कहा.
मारकोनी, उम्र है तकरीबन 55 साल, वकील के काले कोट में सामान्य सा इकहरे बदन का लम्बा युवक. कहते हैं उसकी शादी नहीं हुई है. न्यायालय परिसर के वरिष्ठ अधिवक्ताओं और बाबूओं के बीच वह अपने इसी नाम से पहचाना जाता है. पर क्यूं? ज्दाया जिद कर पूछने पर वरिष्ठ बताते हैं कि मारकोनी शहर के एक प्रतिष्ठित वकील परिवार से ताल्लुक रखता है जिसके परिवार में एक से एक नामी वकील हैं. जवानी में उसकी शादी के लिए एक से एक लड़कियों के रिश्ते आए किन्तु कभी उसके मॉं बाप तो कभी स्वयं वह, लड़कियॉं छांटते रहे और धीरे धीरे विवाह की उम्र खिसक गई. पत्नी का स्वप्न संजोये वह उन दिनों यहॉं वहॉं से बड़े बड़े घरों से आए अपने रिश्ते की बातें मित्रों को बताता और मित्र उसका मजाक उड़ाते कि तुम्हारे लायक लड़की अभी बनी नहीं है, तुम लोगों को नये माडल की गाड़ी चाहिए जो पूरे शहर में ना हो, अगोरो!
इधर मित्रों नें देखा कि अगोरते अगोरते उसकी दमित यौन आकांक्षाओं नें उबाल मारना चालू कर दिया किन्तु प्रतिष्ठित परिवार के होने के कारण वह संयम की चादर ओढ़े रहा. पहले वह भीड़ से बचकर न्यायालय कक्षों में पहुचता था अब न्यायालय की भीड़ भाड़ वाली गलियों से होकर आना जाना उसे अच्छा लगने लगा.
खोजी मित्र लोग पीछे पड़ गए कि ये ऐसा क्यूं करता है, पता चला वकील साहब भीड़ में अपनी दोनों कोहनी (कुहनी) का बेहतर प्रयोग महिला वकीलों और न्यायालय में पेशी में आए सुन्दर लड़कियों, महिलाओं के वक्ष उभारों पर इस प्रकार करते थे कि उन्हें बहुत जल्दी है आगे जाने की. लज्जावती महिलायें सार्वजनिक स्थल पर अपने स्तन पर कोहनी का दबाब सहकर भी चुप रहती किन्तु कभी कभी गांव से आई महिलायें शुरू हो जातीं ..रोगहा जा अपन दाई के ल चपकबे! वह मुस्कुराते हुए आगे बढ़ जाता. अब तो यह उसकी आदत है.
इतना कह कर सीनियर विक्रमादित्य की तरह चुप हो गए. सीनियर के चुप्पी पर मेरा प्रश्न पुन: जीवंत हो उठता है, इस वाकये से मारकोनी का कोई लिंक समझ में नहीं आया?
सीनियर नें अपनी छाती में डायरी को दोनों हाथों से चिपका कर कोहनी (कुहनी) को उपर नीचे कर अभिनय करते हुए बताया, ये..ये.. मार कोनी.. बस में मार कोनी, ट्रेन में मार कोनी, माता के दरशन जाते हुए मार कोनी.. मारकोनी.. मारकोनी बाबा की जय!
सीनियर मारकोनी सर से क्षमा सहित.
संजीव तिवारी.
हर शहर मे ऐसे मारकोनी मिल जाएंगे संदीप, मेरे यहाँ के ऐसे दो तीन अधिवक्ता भी मारकोनी हैं। इनकी प्रतिष्ठा के चलते महिलाएँ कुछ नहीं कह पातीं पर कभी न कभी ऐसे लोगों को सबक मिल ही जाता है।
जवाब देंहटाएंकहीं कमी नहीं ऐसे लोगों की।
जवाब देंहटाएंमार-कोहनी तो समझ में आये पर ये पहले कमेन्ट वाले संदीप कौन है ;)
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा मारकोनी कोनो दिन भंदई घलो खाही, बने असन चपेट मा आगे त.........:))
जवाब देंहटाएंअसली मारकोनी बदनाम हो गये..
जवाब देंहटाएंसंजीव tiwari जी aap bhi aise लेख के फेर men
जवाब देंहटाएंmar kohni markoni isi tarah ban gya shabdon ka khel isi tarah shuru hota hai, snjeeva ji ko sharmane ki koi jarurat nahi hai, bebaki se arthon par lage rahiye
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