विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
कविता, कहानी, लघुकथा फिर व्यंग्य को एक स्वतंत्र विधा के रूप में स्थापित करते लोक भाषा छत्तीसगढ़ी के कलमकार अब गज़ल को भी एक स्वतंत्र विधा के रूप में विकसित कर चुके हैं. छत्तीसगढ़ी गज़ल को विश्वविद्यालय के हिन्दी साहित्य के पाठ्यक्रमों में शामिल किया जा चुका है। दो तीन संग्रहों के प्रकाशन के बावजूद अभी यह शैशव काल में ही है, छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रेमी छत्तीसगढ़ी गजलों को अवश्य पढ़े और इसके विकास के साक्षी बनें .
पिछले वर्षों में लोक भाषा भोजपुरी के गज़कार मनोज 'भावुक' के गज़ल संग्रह 'तस्वीर जिन्दगी' को "भारतीय भाषा परिषद सम्मान" दिया जाना इस बात को सिद्ध करता है कि लोक भाषाओं में भी बेहतर गज़ल लिखे जा रहे हैं। जरूरत है लोक भाषाओं के साहित्य को हिन्दी जगत के सामने लाने की। अमरेन्द्र भाई अवधी भाषा के गज़लों को अपने पोर्टल अवधी कै अरघान में प्रस्तुत करते रहे हैं। हम गुरतुर गोठ डाट काम में नेट दस्तावेजीकरण एवं भविष्य की उपयोगिता को देखते हुए छत्तीसगढ़ी गज़लों की एक श्रृंखला क्रमश: प्रकाशित कर रहे हैं, अवसर मिलेगा तो विजिट करिएगा.
बहुत अच्छा काम करने जा रहे हो।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सराहनीय प्रयास।
जवाब देंहटाएंसराहनीय और उत्तम कार्य शुभारम्भ करने -हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंसंजीव जी के संग बढ़व
छत्तीसगढ़ी मा गज़ल पढ़व.
सराहनीय प्रयास...हार्दिक शुभकामनायें...
जवाब देंहटाएंमालवी अऊ भोजपुरी बुन्देली बघेली सबोच ले गुरतुर हे मोर छत्तीसगढी । अब छत्तीसगढी म गज़ल पढ्बो, बहुत खुशी के बात ए । सन्जीव भाई ल बहुत- बहुत बधाई । मोरो गज़ल ह छप जाही ग सन्जीव भाई ?
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