विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
नानसेंस टाइम्स
पूरे ब्रम्हांड का एक अनोखा सालाना अखबार जिसे होली के अवसर पर प्रकाशित किया जाता है , रायपुर प्रेस क्लब में प्रदेश के मूर्धन्य लोग जिसे विमोचित करने लालायीत रहते है, पेंसन भोगी पत्रकारों की इस भंगीली प्रस्तुति में सच्चाई के रंग के साथ टूच्चाई का रंग होता है जिसे पढ़ कर मस्ती भी मौकापरस्त हो जाती है , सही मायने में यह एक आइना है.नानसेंस टाइम्स के संपादक मंडल का सेन्स कुछ ऐसा होता है की इसकी प्रति पढने के लिए लोगो में होड़ लगी रहती है.रायपुर प्रेस क्लब से होली के दिन विगत 14 वर्षों से प्रकशित नॉन सेन्स टाइम्स इस वर्ष से आन लाईन हो गई है, नॉन सेन्स टाइम्स को अब आप यहॉं से पढ सकते हैं. रायपुर प्रेस क्लब मे ब्लॉग का चिराग जलाने मे बडे भाई अनिल पुसदकर जी का अहम योगदान रहा है. यह खुशी की बात है कि, आज क्लब मे कई पत्रकार भाई अपना ब्लॉग बना लिये हैं और ब्लागिस्तान से जुड गये हैं. इसी के कारण हम लोगों को भी यह टाइम्स देखने को मिल सका.
पत्रकारजगत और ब्लॉगजगत के प्रिय अमीर धरती गरीब लोग वाले भाई अनिल पुसदकर जी का "बुरा ना मानो होली है " फोटू हम इसी नॉन सेन्स टाइम्स से साभार यहा लगा रहे हैं, होली का उमंग अभी भी बाकी है, आप भी टिपिया के होली के अबीर - गुलाल उडाई लो.
अनिला भईया को इस रुप में देखकर बहुत बढ़िया लगा ।
जवाब देंहटाएंहा हा हा
जवाब देंहटाएंपूरा नॉनसेंस टाईम्स बढ़िया है
अनिल पुसदकर जी का उपरोक्त चित्र तो लाज़वाब है, खासतौर पर सवारी का ख्याल !!!
बी एस पाबला
ईश्वर से प्रार्थना है कि पुसदकर जी की मनोकामना पूर्ण हो ...और अगर ईश्वर युवती की मनोकामना के साथ हों तो फिर उसके चरणों के पास पड़ी अटैची में माल होना चाहिए :)
जवाब देंहटाएंहोली के अवसर पर पढ़ कर अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएं- विजय
यह हमारा सौभाग्य है कि आपके ब्लॉग के माध्यम से हमे नॉंसेंस टाइम्स पढने को मिल गया आपकी मेहनत को सलाम ।
जवाब देंहटाएंहा हा!! नानसेंस टाईम्स के हीरो-अनिल जी जिन्दाबाद!!
जवाब देंहटाएंभाई, अब लक्ष्मी का वाहन तो उलूक ही है ना!
जवाब देंहटाएंनॉनसेंस टाईम्स...चकाचक...
जवाब देंहटाएंफोटो तो बहुत ही अच्छा है गोकुल भाई ने कमाल किया है,,
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाह,वाह!
जवाब देंहटाएंनॉनसेंस टाईम्स-चकाचक टाइम्स!
Bahoot Khoob!
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