रविशंकर विश्‍वविद्यालय के पाठ्यक्रम में सम्मिलित छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास आवा अब नेट में उपलब्‍ध

पिछले वर्षों से मेरे ब्‍लॉग साथियों की लगातार शिकायत रही है कि मैं इस ब्‍लॉग में नियमित नहीं लिख रहा हॅूं। कई पुराने ब्‍लॉगर साथियों का ये कहना था कि आपने अभी तक अपने पोस्‍टों के अर्धशतक, शतक, पंचशतक आदि इत्‍यादि पुर जाने पर धमाकेदार पोस्‍ट भी नहीं ठेला है। मित्रों के इन बातों से मैं थोड़ा उत्‍साहित होता हूं, क्‍यूंकि मैं पोस्‍ट ठेलने के आंकड़ों का रोकड़-बही रखूं तो लगभग दो महीने में पांच सौ पोस्‍टों का आंकड़ा यूंही पूरा हो जाता है, किन्‍तु इस आंकड़े में अधिक संख्‍या मेरे द्वारा छत्‍तीसगढ़ के लेखकों के लिए उनके नाम से बनाए गए ब्‍लॉगपोस्‍टों में पब्लिश पोस्‍टों के ही होते हैं, इसी कारण मैं आंकड़ों की मार्केटिंग नहीं कर पाता। 

मेरे अजीज़ इस बिना ब्‍लॉग हलचल के किये जा रहे कार्यों को जानते हैं, और मुझे इसके लिये निरंतर प्रोत्‍साहन देते रहते हैं, इसी कारण मैं अपना समय व श्रम इसमें लगा पाता हॅूं। अब्‍लॉगी लोगों का कहना होता है यदि रचना की सीड़ी दे दी है तो ब्‍लॉग में पब्लिश करने में क्‍या समय व श्रम लगेगा, किन्‍तु यह तो ब्‍लॉगर से ही पूछो कितना समय लगता है। अब्‍लॉगर भाईयों के लिये मैं इस प्रक्रिया को संक्षिप्‍त में ही सही स्‍पष्‍ट कर दूं, ताकि उन्‍हें पता चल सके कि सीडी मिलने के बाद से वह नेट में पब्लिश होने तक किन किन प्रक्रियाओं से गुजरता है। 

कोई भी अब्‍लॉगर अपनी कृति के प्रकाशन के बाद पुस्‍तक प्रकाशक से कृति की सीडी मांगता है। प्रकाशक के द्वारा तैयार सीड़ी गैरयूनिकोडित होती है। एक्‍सपी के आने और विण्‍डोज 2008 के जाने के बाद आजकल ज्‍यादातर प्रकाशक श्रीलिपि और चाणक्‍य को छोड़कर अलग-अलग फोंटों में सामाग्री तैयार करते हैं। पुस्‍तक को सुन्‍दर बनाने के लिये वे एक ही पेज में अलग-अलग करेक्‍टर मैपिंग के अलग अलग फोंटों का भी प्रयोग करते हैं। यद्धपि नेट पर बहुत सारे आनलाईन व आफलाईन यूनिकोड परिवर्तक हैं इसके बाद भी अलग अलग फोंट के कारण रचना पूरी तरह परिवर्तित नहीं हो पाती। दूसरी बात यह है कि कई ऐसे फोंट हैं जिसके परिर्वर्तक मुफ्त में उपलब्‍ध भी नहीं है। यदि मुफ्त में उपलब्‍ध परिवर्तक से यूनिकोड परिवर्तित कर भी दिया गया तो कई शव्‍द हैं जो पूरी तरह परिर्वर्तित नहीं होते, तो पूरी फाईल के उन शब्‍दों को मैनवली ठीक करना पड़ता है। 

प्रकाशकों की सीडी में सबसे बड़ी समस्‍या यह होती है कि वे या तो क्‍वार्क या पेजमेकर में बनी होती है, प्रकाशक अपनी सुविधा के लिए एक कागज में चार पेज छापता है फिर उसे काटकर पुस्‍तक के रूप बाइंड करता है इसके कारण वह एक पेज में क्रमिक रूप से पेज नम्‍बर डालने के बजाए अलग अलग पेज छापता है। अब आप जब अपने कम्‍यूटर में उसे खोलते हो तो वह गारबेज दिखता है अब खोजो पेज नम्‍बर और जमाओ क्रम से ....। इसके लिये मुझ रवि श्रीवास्‍तव भईया ने जो सुझाव दिया था उसका प्रयोग मैं करता हूं, मैं पूरे फाईल का एचटीएमएल कनवर्सन करता हूं फिर उसे यूनिकोड परिवर्तित कर देता हूं पर इससे पेज नम्‍बर पता नहीं चल पाता क्‍योंकि प्रकाशक पेज नम्‍बर या तो अंग्रेजी में डालता है या किसी दूसरे फोंट से, और यह जब परिवर्तित होता है तो गारबेज दिखने लगता है। इसलिये आपको प्रिंटेड पुस्‍तक पकड़ कर एक एक पेज को जमाना पड़ता है, फिर तैयार हो पाता है यूनिकोडित पुस्‍तक की पाण्‍डुलिपि। 

अब इसे ब्‍लॉग में पब्लिश करना चुटकियों का खेल है, यद्धपि इसके बावजूद कई बार कुछ मात्राओं और शब्‍द बिखर जाते हैं जिन्‍हें एडिट पोस्‍ट से बाद में सुधारना होता है। तो इस तरह पाठकों के लिए किसी पूरे पुस्‍तक को परोसना संभव हो पाता है। इसी तरह की प्रक्रियाओं से गुजरते हुए ब्‍लॉग आकर लेता है जिसमें किसी कोने पर अपना नाम और अपने आरंभ ब्‍लॉग का लिंक डालकर मैं खिसक लेता हूं। पिछले माह से मैंनें डॉ.परदेशीराम वर्मा जी की पत्रिका अगासदिया के कुछ अंक व अन्‍य साहित्‍यकारों की कृतियों को ड्राफ्ट करके रखा हूं, जिन्‍हें कुछ दिनों में पब्लिश कर दूंगा। 

वर्तमान ब्‍लॉगिया परिपाटी में जताने की परम्‍परा को कायम रखते हुए मैंनें अब सोंचा है कि ऐसे प्रत्‍येक कार्यों के बाद एक पोस्‍ट अवश्‍य ठेला जाए ताकि लोगों को पता चल सके कि हम असक्रिय नहीं है। पिछले दिनों हमने पं.रविशंकर विश्‍वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल 225 पेज के संपूर्ण छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास आवा को ब्‍लॉग के रूप में उपलब्‍ध कराया है। आप चित्र को क्लिक करके आवा ब्‍लॉग में जा सकते हैं, जी चाहे तो वापस आकर यहॉं मुझे टिपिया सकते हैं।  

संजीव तिवारी 

8 टिप्‍पणियां:

  1. घायल ही जाने घायल की भाषा.. :)

    पर, मुझे लगता है कि आप अलग-2 लेखकों के अलग-2 ब्लॉग बनाएंगे तो मामला उलझेगा. तो किसी एक ब्लॉग में ही इन सभी को समेंटें (जैसे कि रचनाकार में होता है) तो ज्यादा उत्तम रहेगा.

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  2. सबका प्रोत्साहन आवश्यक है, आपका प्रयास सफल हो।

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  3. अब तो आपको निर्मल बाबा जी का आशीर्वाद भी प्राप्त हो गया :)

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  4. और हां आपने आवा लगाया और हम निगाहें सेंक चले :)

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  5. kya kya dhoond nahi late aap sachmuch behad mehnat hai aapki jo aapke blog me jhalakti hai

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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