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आगंतुक नें भवन अधिकारी से अनुरोध किया कि महोदय, मुझे उस फर्जी शिकायत को दिखाया जाय। अधिकारी ने फाईल मंगवाया, और आगंतुक वह पत्र देखने लगा जो पंजीकृत डाक से भवन अधिकारी को प्राप्त हुआ था जिसमें आगंतुक के द्वारा अवैध निर्माण के संबंध में कहानी गढ़े गए थे। मैं आगंतुक के बाजू में बैठा था इस कारण वह पत्र मैं भी सुविधाजनक रूप से पढ़ पा रहा था। आवेदन के अंत में लिखे शब्द नें मेरी उत्सुकता बढ़ा दी, वहां लिखा था 'कापी टू श्रीमान अन्ना हजारे, रालेगन सिद्धी, म.रा.' । मेरे चेहरे में फैलती मुस्कान अब हसी में बदल गई और आगंतुक सहित कार्यालय में बैठे सभी लोग हसने लगे थे।
शिकायतकर्ता का जो नाम और पता लिखा था वह पूर्णतया फर्जी था, क्यूंकि जिस परिसर का पता दिया गया था उस परिसर में इस नाम का कोई व्यक्ति नहीं है यह मैं जानता था। शिकायतकर्ता द्वारा यह शिकायत क्यूं प्रेषित किया गया था यह समझ में नहीं आया किन्तु कापी टू अन्ना हजारे को देखकर होठ बार बार बुदबुदाते रहे 'कापी टू ......'
उस पत्र को देखने के बाद से मैं सोंच रहा हूँ कि 1. क्या लोग अन्ना पर भरोसा करते हैं, 2. क्या लोग अन्ना को मजाक समझते हैं या 3. क्या लोग अन्ना के नाम पर सरकारी कर्मचारियों को डराते हैं या रौब गांठते हैं। या 4. क्या अन्ना और सूचना के अधिकार कानून के नाम पर ब्लैकमेलिंग चालू हो गई है।
जो भी हो अब मैंनें भी सीख लिया है कोई सरकारी विभाग में शिकायती पत्र लिखना है तो नीचे लिखा जाए 'कापी टू अन्ना हजारे' भले भेजें कि मत भेजें।
संजीव तिवारी
संजीव तिवारी
रोचक, कॉपी भी जानी प्रारम्भ हो गयीं।
जवाब देंहटाएंयह भी एक नया शगूफा हो गया ....वाह हमारा देश ! वाह हमारे लोगों की सोच ! वाह अन्ना हजारे ...!
जवाब देंहटाएंरोचक विवरण।
जवाब देंहटाएंसूचना के अधिकार का अधिकतर मामलों में ब्लैकमेल के लिए उपयोग हो ही रहा है और अब इस कडी में अन्ना हजारे का नाम भी जुड गया तो आश्चर्य नहीं......
शुभ काम का पहला निमंत्रण भगवान के नाम भेजा जाता है...
जवाब देंहटाएंवाह यह बढ़िया चीज बताई ।
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक..अब अन्ना के नाम से डराना भी शुरू हो गया..
जवाब देंहटाएंbahoot khoob
जवाब देंहटाएंयह भी खूब रही।
जवाब देंहटाएंयह कोई नई बात नहीं है। कई बार सरकारी कार्यालयों के कर्मचारी भी अपने उत्पीड़न की शिकायत करते समय कापी टू........आयोग, नई दिल्ली लिख देते हैं। मतलब आप समझ गये होंगे। हालांकि सभी उत्पीड़न की शिकायतें सच नहीं होती हैं और न ही सभी मामलों में वास्तव में कॉपी भेजी जाती है। शायद यह ब्लैकमेलिंग के हथकण्डे के रूप में ही अपनाया जाने लगा है।
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