हमारे पाठकों को याद होगा कि वर्ष 2008 में छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध वनस्पति विज्ञानी डॉ.पंकज अवधिया जी के आलेखों को हम नियमित रूप से अपने इस ब्लॉग में प्रकाशित कर रहे थे। पंकज जी 'आस्था परम्परा विश्वास और अंधविश्वास' पर प्रत्येक सप्ताह एक आलेख आरंभ में प्रस्तुत करते थे, 'आस्था परम्परा विश्वास और अंधविश्वास' की 19 कडिंया आप इस ब्लॉग में देख सकते हैं।
पंकज जी, शोध आलेखों के साथ ही उपन्यास भी लिखते हैं यह हमें विगत दिनो ज्ञात हुआ जब इनके अप्रकाशित अंग्रेजी उपन्यास ब्रेब मनटोरा (Brave Mantora) का हिन्दी अनुवाद इतवारी अखबार में क्रमश: प्रकाशित हुआ है। हमारे अनुरोध पर पंकज जी नें इस उपन्यास के कुछ अंशों को आरंभ में प्रकाशित करने की सहमति दी है। ब्रेव मनटोरा के पॉंचवे अध्याय के कुछ अंश क्रमश: प्रस्तुत हैं :-
जैसे ही हेलीकाप्टर का शोर गाँव मे सुनायी दिया बच्चे बाहर भागे। कुछ देर मे उन्होने एक बडे से हेलीकाप्टर को गाँव के ऊपर मँडराते देखा। गाँव वाले समझ गये कि कोई बडी मुसीबत आ गयी है। वे भी बाहर आ गये। गाँव के बाहर एक खाली जगह पर हेलीकाप्टर उतर गया। चारो ओर धूल का बवंडर उठ रहा था और कानफोडू शोर हो रहा था। गाँव की शांति भंग हो चुकी थी। हेलीकाप्टर का दरवाजा खुला तो सैनिको की तरह वेशभूषा वाले कुछ लोग नीचे उतरे और सीधे ही भीड तक पहुँच गये। “मनटोरा, कहाँ है? हमे मिलना है तुरंत।“
दूर जंगल मे हेलीकाप्टर की आवाज मनटोरा ने भी सुनी थी और उसके बैगा बबा ने भी। दोनो घने जंगल मे एक मौसमी झरने से निर्मल जल एकत्र कर थे। बैगा बबा इस जल को अपने रोगियो को देने वाले थे। मनटोरा हमेशा की तरह उनके साथ थी। हेलीकाप्टर की तेज आवाज सुनकर उसके मन मे आया कि क्या आवाजविहीन हेलीकाप्टर नही बनाया जा सकता? या ऐसा हो कि हेलीकाप्टर कही और चले और आवाज कही और सुनायी दे? या फिर हेलीकाप्टर की आवाज एक बक्से मे कैद हो जाये और वापस जाकर बक्से को खोलकर आवाज को छोड दिया जाये।
मनटोरा छत्तीसगढ की बेटी है और छत्तीसगढ जितना मनुष्यो का घर है उससे ज्यादा वनस्पतियो और जीव-जंतुओ का घर है। इंसानी गतिविधियो के कारण किसी भी तरह के शोर से मनटोरा विचलित हो उठती है। उसे लगता है कि पता नही नन्हे पक्षियो पर क्या गुजर रही होगी? हमारी तरह उनके पास हाथ जो नही है जिससे वे कानो को बन्द कर ले और तेज आवाज से बच जाये।
“मनटोरा, ओ मनटोरा।” दूर से आती इस पुकार ने मनटोरा को आभासी दुनिया से वास्तविक दुनिया मे ला दिया। हेलीकाप्टर दूर जा चुका था। जंगल फिर से अपनी आवाज मे शांति का शोर कर रहा था। धीरे-धीरे पुकारने की आवाज पास आती गयी। अब तो आवाज लगाने वाले दिखने भी लगे थे। सात-आठ लोग तेजी से मनटोरा की ओर ही आ रहे थे। उन लोगो की वेशभूषा को देखकर उसे यह समझने मे जरा ही देर नही लगी कि वे कौन लोग है और हेलीकाप्टर क्यो आया है?
“हैलो, मनटोरा, मै भरत हूँ और हमे शर्मा जी ने भेजा है। तुमसे जरुरी बाते करनी है। अभी, तुरंत।“यह कहकर भरत ने सब को पास की चट्टान मे बैठने को कहा। “मनटोरा, राजधानी मे आतंकवादी हमला हो गया है अस्सी से अधिक महत्वपूर्ण लोगो को बन्धक बना लिया गया है। बडी संख्या मे आतंकवादी है और कुछ भी कर गुजरने की तैयारी से आये है। सेना ने इमारत को चारो ओर से घेर लिया है। आतंकवादियो ने तीन बन्धको को मार दिया है। उनसे बात करने की कोशिश हो रही है पर उन्हे उलझाये रखना बहुत मुश्किल है। वे परम्परागत तरीको से बखूबी वाकिफ है। वे हमारी किसी भी चाल मे नही फँसना चाहते है। उन्हे पैसे चाहिये और साथ ही हमारी खदानो से निकाले गये हीरे।
उनकी दूसरी भी माँगे है। वे चाहते है कि अब तक सरकार द्वारा उनके विरुद्ध की गयी कार्यवाही के लिये सरकार का मुखिया कान पकडकर उठक-बैठक करे राष्ट्रीय समाचार चैनलो पर। पागलो की तरह उनकी बाते है और माँगे भी। बीच-बचाव की आस मे घुसे एक पूर्व आतंकवादी को भी उन्होने मार दिया। पूरे शहर मे दहशत है। शर्मा जी चाहते है कि मनटोरा की मदद ली जाये। इसलिये हम तुरंत आ गये।“ भरत ने एक साँस मे ही सब कुछ कह दिया। उसकी आँखो मे दहशत के चिन्ह साफ दिखते थे।
बाते चल ही रही थी कि बैगा बबा ने झरने से एकत्र किया हुआ पानी सबसे सामने रखा और पीने को कहा। भरत ने तो खुशी-खुशी पानी पी लिया पर उसके साथ आये लोगो ने अपनी जेबो से मिनरल वाटर की बोतले निकालकर दिखायी और कहा कि हमे प्यास नही लगी है। पर जब बैगा बबा ने बहुत आग्रह किया तो वे धीरे से बोले कि कही बाहर का पानी पीने से हमारा स्वास्थ्य तो नही बिगड जायेगा। पता नही कहाँ से यह पानी बहकर आ रहा होगा। भरत ने स्थिति को सम्भाला और कहा कि पी लो ऐसा पानी कही नही मिलेगा।
उसके साथी पानी पीने लगे। थोडा रुककर और पानी माँगा। फिर और। यह क्रम तब तक चलता रहा जब तक कि पानी खत्म नही हो गया। “हमने तो पहली बार ऐसा कुछ पीया है।“ वे बोले तो सब हँस पडे। बैगा बबा ने उनसे बोतल वाला पानी माँगा और फिर बोतल खोलकर सूँघने लगे। उन्होने गहरी साँस अन्दर ली फिर निराश होकर बोले कि इसमे पानी के कोई भी लक्षण नही है। यह पहले पानी हुआ करता होगा पर अब इसकी मृत्यु हो चुकी है।
“मनटोरा, आप मोबाइल क्यो नही रखती है? आपकी सीधी बात शर्मा जी से हो जाती।“ भरत के एक साथी मनोज ने पूछा। “क्या यहाँ टावर नही है?“ मनटोरा ने कहा कि ये मोबाइल तरंगे मेरे गाँव, मेरे जंगल के लिये अभिशाप बनी हुयी है। मधुमख्खियाँ परेशान है, जंगली फलो को खाकर इतराने वाले चमगादड परेशान है, वे नाराज होकर दूर भटक रहे है। उनके न आने से जंगली पेड परागण के लिये तरस रहे है। गाँव मे बडी संख्या मे प्रवासी पक्षी आते थे। मोबाइल टावर के आने के बाद से उन्होने आना बन्द कर दिया है। यह सब देखकर मैने ठान लिया कि बहुत हो गया। अब और नही। मुझे मोबाइल नही चाहिये। मेरी देखा-देखी गाँव वालो ने भी यही किया और मोबाइल टावर उखाड दिया गया। शेष दुनिया से सम्पर्क टूट गया। पर हमारे अपनो से फिर से सम्पर्क जुड गया। सारा जंगल एक बार फिर से साँस लेने लगा। अब चलिये, राजधानी चलने की तैयारी करते है। आप मुझे कुछ समय के लिये बैगा बबा के साथ छोड दीजिये। कुछ वनस्पतियाँ एकत्र करनी है। आप लोग गाँव मे हमारा इंतजार करिये।
भरत और उसके साथी वापस गाँव की ओर चल पडे। अचानक ही उनके सामने से दो हिरण कुलाँचे मारते हुये निकल गये। मनोज का हाथ अनायस ही पिस्टल पर चला गया। उसने सोचा कि एक भी मिल जाये तो जंगल मे मंगल वाली बात हो जायेगी। इसे खाकर ही राजधानी की ओर चलेंगे। साथ चल रहे ग्रामीणो ने मनोज का इरादा भाँप लिया। उन्होने पुष्टि के लिये मनोज की आँखो मे झाँका तो उन्हे वहाँ एक लालची शिकारी बैठा नजर आया। वे झट से बोले, “साहब, ऐसा सोचना भी नही। ये रिश्तेदार है।“ “रिश्तेदार, किसके रिश्तेदार?” मनोज चौक पडा। “ये मनटोरा के रिश्तेदार है। इन्हे कोई नही मार सकता।“ मनोज का सारा उत्साह ठन्डा पड गया। आँखो से पकते हुये गोश्त का चित्र गायब हो गया। उस चित्र के स्थान मे मनटोरा दिखने लगी। गुस्से से भरी मनटोरा। वह तेज कदमो से अपने साथियो के साथ गाँव की ओर लौट गया।
भरत और उनके साथियो के गाँव पहुँचने के कुछ समय बाद ही दूर से मनटोरा तेज कदमो से आती दिखी। उसके पास एक बडी से गठरी थी। लगता था कि आनन-फानन मे उसने ढेरो वनस्प्तियाँ एकत्र कर ली थी। उसके पीछे कुछ दूरी पर बैगा बबा आते दिख रहे थे। बैगा बबा और गाँव के सियानो से आर्शीवाद लेकर मनटोरा हेलीकाप्टर मे बैठ गयी और कुछ ही पलो मे हेलीकाप्टर उड चला। क्रमश: ....
पंकज अवधिया
दूर जंगल मे हेलीकाप्टर की आवाज मनटोरा ने भी सुनी थी और उसके बैगा बबा ने भी। दोनो घने जंगल मे एक मौसमी झरने से निर्मल जल एकत्र कर थे। बैगा बबा इस जल को अपने रोगियो को देने वाले थे। मनटोरा हमेशा की तरह उनके साथ थी। हेलीकाप्टर की तेज आवाज सुनकर उसके मन मे आया कि क्या आवाजविहीन हेलीकाप्टर नही बनाया जा सकता? या ऐसा हो कि हेलीकाप्टर कही और चले और आवाज कही और सुनायी दे? या फिर हेलीकाप्टर की आवाज एक बक्से मे कैद हो जाये और वापस जाकर बक्से को खोलकर आवाज को छोड दिया जाये।
मनटोरा छत्तीसगढ की बेटी है और छत्तीसगढ जितना मनुष्यो का घर है उससे ज्यादा वनस्पतियो और जीव-जंतुओ का घर है। इंसानी गतिविधियो के कारण किसी भी तरह के शोर से मनटोरा विचलित हो उठती है। उसे लगता है कि पता नही नन्हे पक्षियो पर क्या गुजर रही होगी? हमारी तरह उनके पास हाथ जो नही है जिससे वे कानो को बन्द कर ले और तेज आवाज से बच जाये।
“मनटोरा, ओ मनटोरा।” दूर से आती इस पुकार ने मनटोरा को आभासी दुनिया से वास्तविक दुनिया मे ला दिया। हेलीकाप्टर दूर जा चुका था। जंगल फिर से अपनी आवाज मे शांति का शोर कर रहा था। धीरे-धीरे पुकारने की आवाज पास आती गयी। अब तो आवाज लगाने वाले दिखने भी लगे थे। सात-आठ लोग तेजी से मनटोरा की ओर ही आ रहे थे। उन लोगो की वेशभूषा को देखकर उसे यह समझने मे जरा ही देर नही लगी कि वे कौन लोग है और हेलीकाप्टर क्यो आया है?
“हैलो, मनटोरा, मै भरत हूँ और हमे शर्मा जी ने भेजा है। तुमसे जरुरी बाते करनी है। अभी, तुरंत।“यह कहकर भरत ने सब को पास की चट्टान मे बैठने को कहा। “मनटोरा, राजधानी मे आतंकवादी हमला हो गया है अस्सी से अधिक महत्वपूर्ण लोगो को बन्धक बना लिया गया है। बडी संख्या मे आतंकवादी है और कुछ भी कर गुजरने की तैयारी से आये है। सेना ने इमारत को चारो ओर से घेर लिया है। आतंकवादियो ने तीन बन्धको को मार दिया है। उनसे बात करने की कोशिश हो रही है पर उन्हे उलझाये रखना बहुत मुश्किल है। वे परम्परागत तरीको से बखूबी वाकिफ है। वे हमारी किसी भी चाल मे नही फँसना चाहते है। उन्हे पैसे चाहिये और साथ ही हमारी खदानो से निकाले गये हीरे।
उनकी दूसरी भी माँगे है। वे चाहते है कि अब तक सरकार द्वारा उनके विरुद्ध की गयी कार्यवाही के लिये सरकार का मुखिया कान पकडकर उठक-बैठक करे राष्ट्रीय समाचार चैनलो पर। पागलो की तरह उनकी बाते है और माँगे भी। बीच-बचाव की आस मे घुसे एक पूर्व आतंकवादी को भी उन्होने मार दिया। पूरे शहर मे दहशत है। शर्मा जी चाहते है कि मनटोरा की मदद ली जाये। इसलिये हम तुरंत आ गये।“ भरत ने एक साँस मे ही सब कुछ कह दिया। उसकी आँखो मे दहशत के चिन्ह साफ दिखते थे।
बाते चल ही रही थी कि बैगा बबा ने झरने से एकत्र किया हुआ पानी सबसे सामने रखा और पीने को कहा। भरत ने तो खुशी-खुशी पानी पी लिया पर उसके साथ आये लोगो ने अपनी जेबो से मिनरल वाटर की बोतले निकालकर दिखायी और कहा कि हमे प्यास नही लगी है। पर जब बैगा बबा ने बहुत आग्रह किया तो वे धीरे से बोले कि कही बाहर का पानी पीने से हमारा स्वास्थ्य तो नही बिगड जायेगा। पता नही कहाँ से यह पानी बहकर आ रहा होगा। भरत ने स्थिति को सम्भाला और कहा कि पी लो ऐसा पानी कही नही मिलेगा।
उसके साथी पानी पीने लगे। थोडा रुककर और पानी माँगा। फिर और। यह क्रम तब तक चलता रहा जब तक कि पानी खत्म नही हो गया। “हमने तो पहली बार ऐसा कुछ पीया है।“ वे बोले तो सब हँस पडे। बैगा बबा ने उनसे बोतल वाला पानी माँगा और फिर बोतल खोलकर सूँघने लगे। उन्होने गहरी साँस अन्दर ली फिर निराश होकर बोले कि इसमे पानी के कोई भी लक्षण नही है। यह पहले पानी हुआ करता होगा पर अब इसकी मृत्यु हो चुकी है।
“मनटोरा, आप मोबाइल क्यो नही रखती है? आपकी सीधी बात शर्मा जी से हो जाती।“ भरत के एक साथी मनोज ने पूछा। “क्या यहाँ टावर नही है?“ मनटोरा ने कहा कि ये मोबाइल तरंगे मेरे गाँव, मेरे जंगल के लिये अभिशाप बनी हुयी है। मधुमख्खियाँ परेशान है, जंगली फलो को खाकर इतराने वाले चमगादड परेशान है, वे नाराज होकर दूर भटक रहे है। उनके न आने से जंगली पेड परागण के लिये तरस रहे है। गाँव मे बडी संख्या मे प्रवासी पक्षी आते थे। मोबाइल टावर के आने के बाद से उन्होने आना बन्द कर दिया है। यह सब देखकर मैने ठान लिया कि बहुत हो गया। अब और नही। मुझे मोबाइल नही चाहिये। मेरी देखा-देखी गाँव वालो ने भी यही किया और मोबाइल टावर उखाड दिया गया। शेष दुनिया से सम्पर्क टूट गया। पर हमारे अपनो से फिर से सम्पर्क जुड गया। सारा जंगल एक बार फिर से साँस लेने लगा। अब चलिये, राजधानी चलने की तैयारी करते है। आप मुझे कुछ समय के लिये बैगा बबा के साथ छोड दीजिये। कुछ वनस्पतियाँ एकत्र करनी है। आप लोग गाँव मे हमारा इंतजार करिये।
भरत और उसके साथी वापस गाँव की ओर चल पडे। अचानक ही उनके सामने से दो हिरण कुलाँचे मारते हुये निकल गये। मनोज का हाथ अनायस ही पिस्टल पर चला गया। उसने सोचा कि एक भी मिल जाये तो जंगल मे मंगल वाली बात हो जायेगी। इसे खाकर ही राजधानी की ओर चलेंगे। साथ चल रहे ग्रामीणो ने मनोज का इरादा भाँप लिया। उन्होने पुष्टि के लिये मनोज की आँखो मे झाँका तो उन्हे वहाँ एक लालची शिकारी बैठा नजर आया। वे झट से बोले, “साहब, ऐसा सोचना भी नही। ये रिश्तेदार है।“ “रिश्तेदार, किसके रिश्तेदार?” मनोज चौक पडा। “ये मनटोरा के रिश्तेदार है। इन्हे कोई नही मार सकता।“ मनोज का सारा उत्साह ठन्डा पड गया। आँखो से पकते हुये गोश्त का चित्र गायब हो गया। उस चित्र के स्थान मे मनटोरा दिखने लगी। गुस्से से भरी मनटोरा। वह तेज कदमो से अपने साथियो के साथ गाँव की ओर लौट गया।
भरत और उनके साथियो के गाँव पहुँचने के कुछ समय बाद ही दूर से मनटोरा तेज कदमो से आती दिखी। उसके पास एक बडी से गठरी थी। लगता था कि आनन-फानन मे उसने ढेरो वनस्प्तियाँ एकत्र कर ली थी। उसके पीछे कुछ दूरी पर बैगा बबा आते दिख रहे थे। बैगा बबा और गाँव के सियानो से आर्शीवाद लेकर मनटोरा हेलीकाप्टर मे बैठ गयी और कुछ ही पलो मे हेलीकाप्टर उड चला। क्रमश: ....
पंकज अवधिया
पंकज जी की लेखकीय क्षमता उजागर होती है इस उपन्यास अंश से। अनुरोध है कि यदि संभव हो तो उपन्यास को शुरू से प्रकाशित किया जाये ताकि इसका पूरा आनन्द लिया जा सके।
जवाब देंहटाएंआपकी यह कहानी सच में उत्सुकता बढ़ा रही है आगले अंक का इंतज़ार रहेगा समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपजा स्वागत है।
जवाब देंहटाएंhttp://mhare-anubhav.blogspot.com/
शायद अवधिया जी ने मुझे इसके कुछ अंश काफी पहले भेजे थे....इतने कम अंश से यह स्थापित होना मुश्किल है कि यह साईंस फिक्शन है .....
जवाब देंहटाएंउत्सुकता बढ़ाता कथाक्रम।
जवाब देंहटाएंअच्छी कहानी....
जवाब देंहटाएंआगे का इंतजार रहेगा
अच्छी कहानी है|
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