( चित्र डेली छत्तीसगढ से साभार)
चांद पर जिस वर्ष मनुष्य नें पांव धरे उसी वर्ष जांजगीर में जन्में वेंकटेश शुक्ला नें छत्तीसगढ के छोटे से कस्बे अकलतरा से मैट्रिक की परिक्षा हिन्दी माध्यम से पूरा किया व इलैक्ट्रानिक्स में बीई करने की चाह में आईआईटी प्रवेश परीक्षा में बैठे । छत्तीसगढ के इस सपूत को एमएसटी भोपाल जो वर्तमान में एनआईटी है, में बीई करने का अवसर प्राप्त हुआ ।
देश में ही रह कर कार्य करने के इच्छुक वेंकटेश नें भारतीय राजस्व सेवा को चुनकर भारतीय राजस्व सेवा में कार्य करने लगे किन्तु मन में इलैक्ट्रानिक्स इंजीनियरिंग के प्रति लगाव जीवित रही । विवाह के बाद अमेरिका में रह रही पत्नी के आग्रह पर अमेरिका गये और वहां एमबीए किया । एमबीए करने के लिए, लिए गए कर्ज को चुकाने के लिए अमेरिका के ही मल्टीनेशनल कम्पनी में नौकरी शुरू की एवं निरंतर सफलता प्राप्त करते हुए अपने स्वयं का कारोबार विकसित कर लिया वे स्वयं कहते हैं –
’ मैंने एक नई कम्पनी शुरू की है, यह तीसरी चौथी कम्पनी मैने शुरू की है । यह चिप डिजाईन के क्षेत्र में काम करती है । करीब ढाई साल हो गए इस कम्पनी को, इसमें करीब 25 इंजीनियर हैं मुझे छोडकर बाकी इंजीनियर हैं, तकनीकि क्षेत्र में काम करते हैं छह अमेरिका में और अट्ठारह बैंगलोर में । मैंनें जितनी भी कम्पनियां शुरू की, उसमें भारत की भूमिका रही ।‘
इनके व्यावसायिक साख एवं कार्यकुशलता व भारत में विदेशी मुद्रा लाने के अतिरिक्त इन्होंनें जो गरीब और जरूरतमंद छात्र-छात्राओं के उच्च शिक्षा के लिए वित्तीय सहायता के रूप में छात्रवृत्ति देने का कार्य प्रारंभ किया है वह वाकई काबिले तारीफ है । वेंकटेश की संस्था फाउन्डेशन फार एक्सीलेंस (http://www.ffe.org/) एवं फाउन्डेशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्मस इन इंडिया (http://www.fdri.org/) भारत के जरूरतमंद होनहार बच्चों को उच्च अध्ययन के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है वो भी बिल्कुल मुफ्त । वेंकटेश स्वयं कहते हैं –
‘ भारत में हम सिर्फ 22 प्रदेशों में कार्य कर रहे हैं, हर साल करीब ढाई हजार बच्चों को छात्रवृत्ति देते हैं । टाटा-बिडला और अंबानी ये तीन समूह मिलाकर तीन सौ बच्चों को ऋण देते हैं, हम ढाई हजार बच्चों को छात्रवृत्ति देते हैं ।‘
इसे लौटाना नहीं पडता के प्रश्न पर वे कहते हैं – ‘ नहीं, लौटाना नहीं पडता, लेकिन एक अच्छी बात हमने देखी है कि कुछ बच्चे स्नातक होते ही हमें पैसे भेजना शुरू कर देते हैं । ....... बच्चे मदद पाकर इतने खुश रहते हैं कि वे इसे लौटाना चाहते हैं । हम इन बच्चों से सिर्फ एक वादा लेते हैं कि अपने जीवन में वे दो दूसरे बच्चों की मदद करेंगें । इससे मदद का सिलसिला तेजी से बढता जाता है ।‘
यदि आप भी किसी ऐसे जरूरतमंद बच्चे को जानते हैं जिसे वेंकटेश की मदद की आवश्यकता है तो ऐसे प्रतिभा को वेंकटेश शुक्ला की संस्था तक पहुंचावें एवं धन के कारण शिक्षा से वंचित बच्चों की सहायता में सहभागी बनें ।
(डिस्कवरी छत्तीसगढ के लिए सांध्य दैनिक छत्तीसगढ के संपादक सुनील कुमार नें इस वर्ष के प्रवासी छत्तीसगढ का सम्मान प्राप्त करने वाले वेंकटेश शुक्ला से लंबी बातचीत की है जिसे उन्होंनें सांध्य दैनिक छत्तीसगढ में तीन किश्तों में प्रकाशित किया है । सांध्य दैनिक छत्तीसगढ www.dailychhattisgarh.com में पढे संपूर्ण साक्षातकार )
छत्तीसगढ से बाहर निकलकर दुनिया के दूसरे देशों में कामयाबी के झंडे गाडने वालों में एक छत्तीसगढ के वेंकटेश शुक्ला ( सिलिकान वैली प्रोफेशनल एसोशियेशन के वरिष्ठ सदस्य ) भी हैं जिन्हें छत्तीसगढ सरकार नें इस वर्ष के प्रवासी छत्तीसगढ सम्मान के लिए चुना हैं ।
चांद पर जिस वर्ष मनुष्य नें पांव धरे उसी वर्ष जांजगीर में जन्में वेंकटेश शुक्ला नें छत्तीसगढ के छोटे से कस्बे अकलतरा से मैट्रिक की परिक्षा हिन्दी माध्यम से पूरा किया व इलैक्ट्रानिक्स में बीई करने की चाह में आईआईटी प्रवेश परीक्षा में बैठे । छत्तीसगढ के इस सपूत को एमएसटी भोपाल जो वर्तमान में एनआईटी है, में बीई करने का अवसर प्राप्त हुआ ।
देश में ही रह कर कार्य करने के इच्छुक वेंकटेश नें भारतीय राजस्व सेवा को चुनकर भारतीय राजस्व सेवा में कार्य करने लगे किन्तु मन में इलैक्ट्रानिक्स इंजीनियरिंग के प्रति लगाव जीवित रही । विवाह के बाद अमेरिका में रह रही पत्नी के आग्रह पर अमेरिका गये और वहां एमबीए किया । एमबीए करने के लिए, लिए गए कर्ज को चुकाने के लिए अमेरिका के ही मल्टीनेशनल कम्पनी में नौकरी शुरू की एवं निरंतर सफलता प्राप्त करते हुए अपने स्वयं का कारोबार विकसित कर लिया वे स्वयं कहते हैं –
’ मैंने एक नई कम्पनी शुरू की है, यह तीसरी चौथी कम्पनी मैने शुरू की है । यह चिप डिजाईन के क्षेत्र में काम करती है । करीब ढाई साल हो गए इस कम्पनी को, इसमें करीब 25 इंजीनियर हैं मुझे छोडकर बाकी इंजीनियर हैं, तकनीकि क्षेत्र में काम करते हैं छह अमेरिका में और अट्ठारह बैंगलोर में । मैंनें जितनी भी कम्पनियां शुरू की, उसमें भारत की भूमिका रही ।‘
इनके व्यावसायिक साख एवं कार्यकुशलता व भारत में विदेशी मुद्रा लाने के अतिरिक्त इन्होंनें जो गरीब और जरूरतमंद छात्र-छात्राओं के उच्च शिक्षा के लिए वित्तीय सहायता के रूप में छात्रवृत्ति देने का कार्य प्रारंभ किया है वह वाकई काबिले तारीफ है । वेंकटेश की संस्था फाउन्डेशन फार एक्सीलेंस (http://www.ffe.org/) एवं फाउन्डेशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्मस इन इंडिया (http://www.fdri.org/) भारत के जरूरतमंद होनहार बच्चों को उच्च अध्ययन के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है वो भी बिल्कुल मुफ्त । वेंकटेश स्वयं कहते हैं –
‘ भारत में हम सिर्फ 22 प्रदेशों में कार्य कर रहे हैं, हर साल करीब ढाई हजार बच्चों को छात्रवृत्ति देते हैं । टाटा-बिडला और अंबानी ये तीन समूह मिलाकर तीन सौ बच्चों को ऋण देते हैं, हम ढाई हजार बच्चों को छात्रवृत्ति देते हैं ।‘
इसे लौटाना नहीं पडता के प्रश्न पर वे कहते हैं – ‘ नहीं, लौटाना नहीं पडता, लेकिन एक अच्छी बात हमने देखी है कि कुछ बच्चे स्नातक होते ही हमें पैसे भेजना शुरू कर देते हैं । ....... बच्चे मदद पाकर इतने खुश रहते हैं कि वे इसे लौटाना चाहते हैं । हम इन बच्चों से सिर्फ एक वादा लेते हैं कि अपने जीवन में वे दो दूसरे बच्चों की मदद करेंगें । इससे मदद का सिलसिला तेजी से बढता जाता है ।‘
यदि आप भी किसी ऐसे जरूरतमंद बच्चे को जानते हैं जिसे वेंकटेश की मदद की आवश्यकता है तो ऐसे प्रतिभा को वेंकटेश शुक्ला की संस्था तक पहुंचावें एवं धन के कारण शिक्षा से वंचित बच्चों की सहायता में सहभागी बनें ।
(डिस्कवरी छत्तीसगढ के लिए सांध्य दैनिक छत्तीसगढ के संपादक सुनील कुमार नें इस वर्ष के प्रवासी छत्तीसगढ का सम्मान प्राप्त करने वाले वेंकटेश शुक्ला से लंबी बातचीत की है जिसे उन्होंनें सांध्य दैनिक छत्तीसगढ में तीन किश्तों में प्रकाशित किया है । सांध्य दैनिक छत्तीसगढ www.dailychhattisgarh.com में पढे संपूर्ण साक्षातकार )
साधु-साधु!!
जवाब देंहटाएंशुक्ला जी के इस कार्य की जितनी तारीफ़ की जाए कम है!! वह सच मे इस सम्मान के हकदार हैं!
ऐसे ही हमारे प्रवासी भारतीय और यहां के नागरिक स्वयं भी अगर अपनी माटी का कर्ज चुकाने की कोशिशें जारी रखें तो फ़िर हर बच्चा उच्च शिक्षा पाकर आत्मनिर्भर हो सकता है!!
वेंकटेश शुकला जी को मेरा सादर प्रणाम,
जवाब देंहटाएंशुक्ला जी के विषय में जानना और उनके द्वारा की जा रही छात्रों की मदद की जानकारी पढ़कर बहुत अच्छा लगा. मेरा नमन.
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