छटते ही नहीं बादल
किरणों को देते नहीं रास्ता
उमड़ घुमड़ कर
गरज बरस कर
सोख लेते ध्वनि सारी
बजती ही नहीं पायल
स्मृति का देती नहीं वास्ता
सिसक झिझक कर
कसक तड़फ कर
रोक लेती चीख सारी
दिल ही नहीं कायल
खुशबू ऐसी फैली वातायन में
निरख परख कर
बहक महक कर
टोक देती रीत सारी
दिखता ही नहीं काजल
चाँदनी ऐसी बिखरी उपवन में
घूम घूम कर
चूम चूम कर
रो लेती नींद सारी
तुम नहीं हो पास
आज चाँद बहुत उदास है
- अशोक सिंघई -
किरणों को देते नहीं रास्ता
उमड़ घुमड़ कर
गरज बरस कर
सोख लेते ध्वनि सारी
बजती ही नहीं पायल
स्मृति का देती नहीं वास्ता
सिसक झिझक कर
कसक तड़फ कर
रोक लेती चीख सारी
दिल ही नहीं कायल
खुशबू ऐसी फैली वातायन में
निरख परख कर
बहक महक कर
टोक देती रीत सारी
दिखता ही नहीं काजल
चाँदनी ऐसी बिखरी उपवन में
घूम घूम कर
चूम चूम कर
रो लेती नींद सारी
तुम नहीं हो पास
आज चाँद बहुत उदास है
- अशोक सिंघई -
वाह क्या कहने। अशोक जी और आपको बहुत धन्यवाद इस प्रस्तुति के लिये। आरम्भ की गति कुछ कम हो गई है। उम्मीद है जल्दी ही आपको उसी चिरपरिचित ऊर्जा के साथ देख पायेंगे हम सब।
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता. वाह! वाह!!
जवाब देंहटाएंसुंदर!!!
जवाब देंहटाएंआरंभ का तो हुलिया ही बदल दिया आपने!!
बढ़िया लग रहा है!!
सुन्दर लयबद्ध कविता है.
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर लयबद्ध कविता!
जवाब देंहटाएंस्वयं शून्य