जीवन की अनबूझ राहों में
चलते-चलते यह बनजारा
गाता जाये गीत विरह के
जीवन का इतिहास यही है
यौवन की ऑंखों से देखे
वे सारे स्वप्निल सपने थे
जिन-जिन से नाता जोडा था
वे भी तो सारे अपने थे
सबके सब हरजाई निकले
जीवन का परिहास यही है
पीडाओं की अमर कहानी
कोई विरही-मन लिख जाये
और व्यथा के सागर डूबा
कोई व्याकुल-तन दिख जाये
पीता है नित विष का प्याला
जीवन का संत्रास यही है
संघर्षो में बीता जीवन
कभी रात भर सो न पाया
जिसे कोख में पाला हमने
लगता है अब वही पराया
तोडो रिश्तों की जंजीरें
जीवन का सन्यास यही है
देखो सागर की ये लहरें
सदा कूल से मिलने जाती
दीप-शिखा को देखो प्रतिदिन
अंधकार से मिलकर आती
तुम प्रियतम से मिल सकते हो
जीवन का विश्वास यही है
अपने मंदिर की देहरी पर
आशाओं के दीप जलाओ
जीवन से जो हार चुके हैं
उन्हें विजय का घूंट पिलाओ
परमारथ तन अर्पित कर दो
जीवन का आकाश यही है
प्रथम रश्मि देखो सूरज की
जीवन में उल्लास जगाती
और चंद्र की चंचल किरणें
सबके तन-मन को हरषाती
पल-पल में अमृत रस भर दो
जीवन का मधुमास यही है
सूरज सा ढलना है
मंजिल है दूर बहुत, और अभी चलना है
जग को उजियारा कर, सूरज सा ढलना है
घुटनों के बल चलना
आँगन का वह पलना
बातों ही बातों में जाने कब बीत गया
चाबी की वह गुडिया
माटी की वह चिडिया
तरूणाई आई तो जाने कब रीत गया
यौवन के आने से
उमर बीत जाने से
दुनिया को देखा तो सिर्फ एक छलना है
पपीहा पी-पी बोले
कानों में रस घोले
परदेशी बालम की यादें तरसा गई
जंगल में मोर नचा
ऑंखों में प्रीत रचा
सूखे इन अधरों पर अमृत बरसा गई
हरजाई बालम है
कैसा यह सरगम है
बाती को दीपक सँग जलना ही जलना है
मन का संताप लिये
अधरों में प्यास लिये
कौन आज दूर कहीं विरह राग गा रहा
मन पंछी व्याकुल है
तन कितना व्याकुल है
कौन है जो विजन में भी गीत आज गा रहा
नीले आकाश तले
क्षण-क्षण यह उमर ढले
सॉंसों को हर पल बस मोम जैसा गलना है।
परि
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नाम: डॉ. नथमल झँवर
पिता: स्व. नानकराम झँवर माता: स्व. गंगादेवी झँवर
पत्नि: श्रीमती शांति देवी जन्मतिथि: 22 नवम्बर 1944 ई.
शिक्षा: इन्टरमीडिएट, राष्ट्रभाषा रत्न,
साहित्य रत्न मानद् उपाधि-विद्यावाचस्पति (पी-एच.डी) विद्यावारिधि
प्रेरणाश्रोता: श्री जी.पी. तिवारी, श्री बबन प्रसाद जी मिश्र, डॉ. विनय कुमार पाठक
प्रकाशन: सरिता, मेरी सहेली, समरलोक, पालिका समाचार, नवभारत, दैनिक-भास्कर, नोंक झोंक, स्वर्णिम प्रकाश, देशबन्धु, हरिभूमि, प्रखर समाचार, हिन्दी जगत, छत्तीसगढ टुडे, विकास संस्कृति, सुमन सुधा, माहेश्वरी, माहेश्वरी सेवक, समाज प्रवाह, श्री माहेश्वरी टाइम्स, साहित्यांचल आदि अनेक पत्र पत्रिकाओं में ।
संप्रति: संरक्षक- सृजन साहित्य परिषद् तिल्दा (नेवरा), अध्यक्ष- वर्षा साहित्य समिति, सिमगा, अध्यक्ष- माहेश्वरी सभा सिमगा, कार्यकारिणी सदस्य- छत्तीसगढ हिन्दी साहित्य परिषद (रायपुर), सचिव – शिवनाथ सृजन समिति सिमगा, आजीवन सदस्य – साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी परियावां (उ.प्र.), सदस्य – विकल्प साहित्य परिषद तिल्दा, सदस्य – ‘वक्ता एवं लेखक पेनल’ माहेश्वरी महासभा, कार्यकारिणी सदस्य – छ.ग. प्रादेशिक माहेश्वरी सभा
सम्मान- विद्यावारिधि – साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी परियावां (उ.प्र.) विद्या वाचस्पति (पी-एच्.डी.) – विक्रम शिला हिन्दी विद्यापीठ ईशीपुर भागलपुर (उ.प्र.) मैथिलीशरण गुप्त सम्मान- अखिल भारतीय साहित्यकार अभिनंदन समिति मथुरा (उ.प्र.) वर्ष 2000 बीसवीं शताब्दी रत्न सम्मान – जैमिनी अकादमी पानीपत वर्ष 2000 साहित्य श्री सम्मान – अरविन्द प्रकाशन केन्द्र सतना, वर्ष 2000 साहित्य सौरभ सम्मान- शिव संकल्प साहित्य परिषद नर्मदापुरम, वर्ष 2001 स्व. मुकीम अहमद पटेल ‘रासिख’ सम्मान इतिहास एवं पुरातत्व शोध संस्थान बालाघाट, वर्ष 2000 प्रयास प्रकाशन बिलासपुर, अभिनन्दन – वर्ष 2001 पं. राजाराम त्रिपाठी स्मृति सम्मान – साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी, प्रतापगढ (उ.प्र.) वर्ष 2001 पद्म श्री डॉ. लक्ष्मीनारायण दुबे स्मृति सम्मान – जैमिनी अकादमी पानीपत, वर्ष 2001 काव्य सुमन सम्मान- पुष्पगंधा प्रकाशन कवर्धा, वर्ष 2006 दीपाक्षर सम्मान – दीपाक्षर साहित्य समिति भिलाई, वर्ष 2006 .ऋतंभरा अलंकरण-ऋतंभरा साहित्य मंच कुम्हारी (दुर्ग) वर्ष 2005 छत्तीसगढ लोककला उन्नयन मंच – भाटापारा द्वारा अभिनंदन वर्ष 2000
प्रसारण: आकाशवाणी रायपुर से प्रसारण (कविताओं का)
प्रकाशित कृति: एक गीत तुम्हारे नाम (काव्य संग्रह) वर्ष 2000 ई.
(विदेश मंत्रालय द्वारा आठवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के लिए अनुशंसित)
सौ समुंदर पार से (गीत संग्रह) वर्ष 2003 ई. प्रकाशनाधीन: जीवन का इतिहास यही है (काव्य संग्रह) (प्रेस में)
यादों का सफर (कहानी संग्रह)
अप्रकाशित: नेता प्रशिक्षण केन्द्र (व्यंग)
संपर्क: झँवर निवास,
मेन रोड, सिमगा जिला रायपुर (छ.ग.) 493101
स्वर संपर्क: चल 94255-18635, 93292-49110
अचल: 07726-274245
Shri Nathmal Jhanwar ji ki kavitaayein behad umda hain! Bina laag lapet ke arthpoorN abhivyakti...saralta me jo saundarya hai wo chandon me kaha?
जवाब देंहटाएं"Alankrut na karo is dulhan ko, deepshikha ki jyoti hi uska maangteeka hai!"
Nathmal ji ko punah badhaayi is rachna ke liye aur sang me aapko bhi ki aapne ham tak ise preshit kiya!
Saadar vande!
Swati.
बहुत बढ़िया प्रस्तुति, संजीव...झंवर जी ने सरल शब्दों में अच्छी कवितायें लिखी हैं..
जवाब देंहटाएंnice poem
जवाब देंहटाएंnice poems
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