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नवंबर, 2007 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

शिवरीनारायण देवालय एवं परम्‍पराएं : प्रो. अश्विनी केशरवानी की संपूर्ण ग्रंथ

लेखक : प्रो. अश्विनी केशरवानी ashwinikesharwani@gmail.com प्रथम संस्‍करण : फरवरी 2007 मूल्‍य : 120 रूपये प्रिंट प्रकाशक : बिलासा प्रकाशन, बिलासपुर वेब ब्‍लाग प्रकाशन : संजीव तिवारी अनुक्रमणिका भूमिका शिवरीनारायण : एक नजर अ. देवालय १. गुप्तधाम २ शबरीनारायण और सहयोगी देवालय ३ अन्नपूर्णा मंदिर ४ महेश्‍वरनाथ ५ शबरी मंदिर ६ जनकपुर के हनुमान ७ खरौद के लखनेश्‍वर ब. परम्पराएं १. मोक्षदायी चित्रोत्पलागंगा २. महानदी में अस्थि विसर्जन ३. महानदी के घाट ४. महानदी के हीरे ५. शिवरीनारायण की कहानी और उसी की जुबानी ६. मठ और महंत परंपरा ७. गादी चौरा पूजा ८. रोहिणी कुंड ९. मेला १०. रथयात्रा ११. नाट्य परंपरा १२. तांत्रिक परंपरा १३. साहित्यिक तीर्थ १४. शिवरीनारायण के भोगहा १५. गुरू घासी बाबा १६. रमरमिहा १७. माखन वंशनुक्रम

बस्‍तर की देवी दंतेश्‍वरी

छत्‍तीसगढ के शक्तिपीठ – 1 बस्‍तर के राजा अन्‍नमदेव वारांगल, आंध्रप्रदेश से अपनी विजय पताका फहराते हुए बस्‍तर की ओर बढ रहे थे साथ में में मॉं दंतेश्‍वरी का आशिर्वाद था । गढों पर कब्‍जा करते हुए बढते अन्‍नमदेव को माता दंतेश्‍वरी नें वरदान दिया था जब तक तुम पीछे मुड कर नहीं देखोगे, मैं तुम्‍हारे साथ रहूंगी । राजा अन्‍नमदेव बढते रहे, माता के पैरों की नूपूर की ध्‍वनि पीछे से आती रही, राजा का उत्‍साह बढता रहा । शंखिनी-डंकिनी नदी के तट पर विजय पथ पर बढते राजा अन्‍नमदेव के कानों में नूपूर की ध्‍वनि आनी बंद हो गई । वारांगल से पूरे बस्‍तर में अपना राज्‍य स्‍थापित करने के समय तक महाप्रतापी राजा के कानों में गूंजती नूपूर ध्‍वनि के सहसा बंद हो जाने से राजा को वरदान की बात याद नही रही, राजा अन्‍नमदेव कौतूहलवश पीछे मुड कर देखने लगे । माता का पांव शंखिनी-डंकिनी के रेतों में किंचित फंस गया था । अन्‍नमदेव को माता नें साक्षात दर्शन दिये पर वह स्‍वप्‍न सा ही था । माता नों कहा 'अन्‍नमदेव तुमने पीछे मुड कर देखा है, अब मैं जाती हूं ।' राजा अन्‍नमदेव के अनुनय विनय पर माता नें वहीं पर अपना अंश स्‍था

अदालत में काले कोटों की बढती संख्‍या एवं घटती आमदनी

दो दिन पूर्व मैं जब अपने कार्यालय भिलाई जा रहा था तो रास्‍ते में देखा, जिला न्‍यायालय के एक परिचित वकील पैदल चलते हुए भिलाई से दुर्ग की ओर आ रहे थे, काला कोट उतार कर उन्‍होंनें अपने कंधे पर लटका रखा था । पैरों में जो जूते थे उसमें कई कई बार सिलाई किया गया था फिर भी वकील साहब की पैरों की एकाध उंगलियां जूते से बाहर झांकने को बेताब थी । मैं पिछले कई दिनों से उन्‍हें ऐसे ही रास्‍ते में देखता हूं, कभी अपनी खटखटिया लूना से तो कभी अपने शरीर को लहराते हुए पैदल चलते । रास्‍ते में और कई वकील भाई मिलते हैं जो अपनी सजीली चार चक्‍के और दो पहियों में न्‍यायालय की ओर जाते नजर आते हैं, पर जब भी मैं इस वकील को देखता हूँ मन में अजीब सी हूक जगती है । न्‍यायालय में इनसे मिल कर कई बार बात करने की कोशिस किया हूं पर व्‍यावसायिक प्रतिस्‍पर्धा की वजह से अपनी खस्‍ताहाली के संबंध में ये कभी चर्चा नहीं किये हैं किन्‍तु परिस्थितियां चीख चीख कर कहती है कि वकील साहब काले कोट के सहारे अपना अस्तित्‍व बचाये रखने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं । भारतीय न्‍यायालयों में ऐसे कई वकील हैं जो इस जद्दोजहद में प्रतिदिन सुबह 11 से

जब नर तितलियां ले जाए प्रणय उपहार : डॉ. पंकज अवधिया जी की कलम से

पंकज अवधिया जी (दर्द हिन्‍दुस्‍तानी) के लेख विभिन्‍न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होते रहते हैं जिससे पाठक एवं ब्‍लागजगत वाकिफ ही है अभी सांध्‍य दैनिक छत्‍तीसगढ में 22 नवम्‍बर को उपरोक्‍त लेख जब प्रकाशित हुआ था तो हम अपने आप को रोक नहीं पाये और इसे यहां आप लोगों के लिए प्रस्‍तुत कर दिया ।

आज चाँद बहुत उदास है

छटते ही नहीं बादल किरणों को देते नहीं रास्ता उमड़ घुमड़ कर गरज बरस कर सोख लेते ध्वनि सारी बजती ही नहीं पायल स्मृति का देती नहीं वास्ता सिसक झिझक कर कसक तड़फ कर रोक लेती चीख सारी दिल ही नहीं कायल खुशबू ऐसी फैली वातायन में निरख परख कर बहक महक कर टोक देती रीत सारी दिखता ही नहीं काजल चाँदनी ऐसी बिखरी उपवन में घूम घूम कर चूम चूम कर रो लेती नींद सारी तुम नहीं हो पास आज चाँद बहुत उदास है - अशोक सिंघई -

अशोक सिंघई : काहे रे नलिनी तू कुम्‍हलानी

अशोक सिंघई : डॉ. परदेशीराम वर्मा जनवरी 2007 से राजभाषा प्रमुख, भिलाई स्‍पात संयंत्रसाहित्‍यकार एवं कवि अशोक सिंघई के संबंध में वरिष्‍ठ कहानीकार डॉ. परदेशीराम वर्मा नें अपने पुस्‍तक ‘काहे रे नलिनी तू कुम्‍हलानी’ में रोचक प्रसंगों का उल्‍लेख किया है आप भी पढे अशोक सिंघई जी का परिचय :- काहे रे नलिनी तू कुम्‍हलानी छत्‍तीसगढ के ख्‍यातिलब्‍ध व्‍यक्तियों के संबंध में डॉ. परदेशीराम वर्मा जी द्वारा लिखित 'अपने लोग' श्रृंखला की किताब एक वरिष्‍ठ प्रबंधक, जन संपर्क के कार्यालय में विज्ञापन आदि के लिए पत्रकारगण मिलते ही हैं । कुछ बडे लोग फोन पर भी अपनी बात कहते हैं । एक दिन संयोगवश मेरी उपस्थिति में ही किसी बडे पत्रकार का फोन आया । बातचीत कुछ इस तरह होने लगी । पत्रकार : मैं अमुक पत्र से बोल रहा हूँ । सिंघई जी : कहिए । पत्रकार : मिला नहीं । सिंघई जी : देखिए, अब जो स्थिति है उसमें हमें निर्देशों के अनुरूप सीमा के भीतर ही रहकर अपने कर्तव्‍यों का निर्वाह करना है । इस्‍पात उद्योग की हालत तो आप भी बेहतर जानते हैं । पत्रकार : यह तो सामान्‍य जवाब है । सिंघई जी कुछ उखडते हुए : देखिए, अशोक सिंघई स्‍

नथमल झंवर जी की दो कवितायें

जीवन का इतिहास यही है जीवन की अनबूझ राहों में चलते-चलते यह बनजारा गाता जाये गीत विरह के जीवन का इतिहास यही है यौवन की ऑंखों से देखे वे सारे स्‍वप्निल सपने थे जिन-जिन से नाता जोडा था वे भी तो सारे अपने थे सबके सब हरजाई निकले जीवन का परिहास यही है पीडाओं की अमर कहानी कोई विरही-मन लिख जाये और व्‍यथा के सागर डूबा कोई व्‍याकुल-तन दिख जाये पीता है नित विष का प्‍याला जीवन का संत्रास यही है संघर्षो में बीता जीवन कभी रात भर सो न पाया जिसे कोख में पाला हमने लगता है अब वही पराया तोडो रिश्‍तों की जंजीरें जीवन का सन्‍यास यही है देखो सागर की ये लहरें सदा कूल से मिलने जाती दीप-शिखा को देखो प्रतिदिन अंधकार से मिलकर आती तुम प्रियतम से मिल सकते हो जीवन का विश्‍वास यही है अपने मंदिर की देहरी पर आशाओं के दीप जलाओ जीवन से जो हार चुके हैं उन्‍हें विजय का घूंट पिलाओ परमारथ तन अर्पित कर दो जीवन का आकाश यही है प्रथम रश्मि देखो सूरज की जीवन में उल्‍लास जगाती और चंद्र की चंचल किरणें सबके तन-मन को हरषाती पल-पल में अमृत रस भर दो जीवन का मधुमास यही है सूरज सा ढलना है मंजिल है दूर बहुत, और अभी चलना है जग को उजियारा

.. श्री सूक्त ( ऋग्वेद) ..

.. श्री सूक्त ( ऋग्वेद) .. हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् । चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो ममावह ।१। तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ।२। अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् । श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ।३। कांसोस्मि तां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् । पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ।४। चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलंतीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् । तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ।५। आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः । तस्य फलानि तपसानुदन्तुमायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ।६। उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह । प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेस्मिन्कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।७। क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् । अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुदमे गृहात् ।८। गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् । ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ।९। मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि । पशूनां

प्रवासी छत्‍तीसगढ सम्‍मान : वेंकटेश शुक्‍ला

( चित्र डेली छत्‍तीसगढ से साभार) छत्‍तीसगढ से बाहर निकलकर दुनिया के दूसरे देशों में कामयाबी के झंडे गाडने वालों में एक छत्‍तीसगढ के वेंकटेश शुक्‍ला ( सिलिकान वैली प्रोफेशनल एसोशियेशन के वरिष्‍ठ सदस्‍य ) भी हैं जिन्‍हें छत्‍तीसगढ सरकार नें इस वर्ष के प्रवासी छत्‍तीसगढ सम्‍मान के लिए चुना हैं । चांद पर जिस वर्ष मनुष्‍य नें पांव धरे उसी वर्ष जांजगीर में जन्‍में वेंकटेश शुक्‍ला नें छत्‍तीसगढ के छोटे से कस्‍बे अकलतरा से मैट्रिक की परिक्षा हिन्‍दी माध्‍यम से पूरा किया व इलैक्‍ट्रानिक्‍स में बीई करने की चाह में आईआईटी प्रवेश परीक्षा में बैठे । छत्‍तीसगढ के इस सपूत को एमएसटी भोपाल जो वर्तमान में एनआईटी है, में बीई करने का अवसर प्राप्‍त हुआ । देश में ही रह कर कार्य करने के इच्‍छुक वेंकटेश नें भारतीय राजस्‍व सेवा को चुनकर भारतीय राजस्‍व सेवा में कार्य करने लगे किन्‍तु मन में इलैक्‍ट्रानिक्‍स इंजीनियरिंग के प्रति लगाव जीवित रही । विवाह के बाद अमेरिका में रह रही पत्‍नी के आग्रह पर अमेरिका गये और वहां एमबीए किया । एमबीए करने के लिए, लिए गए कर्ज को चुकाने के लिए अमेरिका के ही मल्‍टीनेशनल कम्‍पनी म

छत्तीसगढ थापना परब अउ बुचुआ के सुरता

बुचुआ के गांव म एक अलगे धाक अउ इमेज हे, वो हर सन 68 के दूसरी कक्षा पढे हे तेखरे सेती पारा मोहल्ला म ओखर डंका बाजथे । गांव के दाउ मन अउ नवां नवां पढईया लईका मन संग बराबर के गोठ बात करईया बुचुआ के बतउती वो हर सन 77 ले छत्तीसगढ राज के सपना संजोवत हे तउन ह जाके 2000 म पूरा होये हे । सन 1977 म मनतरी धरमपाल गुप्ता के झोला मोटरा ल धरईया बुचुआ ह शहर अउ गांव म मेहनत करत करत 30 साल म छत्तीसगढ के बारे म जम्मो जानकारी ल अपन पागा म बंधाए मुडी म सकेल के धरे हे, नेता अउ कथा कहिनी लिखईया घर कमइया लग लग के । छत्तीसगढ के जम्‍मो परब तिहार, इतिहास अउ भूगोल ला रट डारे हे । कहां नंद, मौर्य, शंगु, वाकाटक, नल, पांडु, शरभपुरीय, सोम, कलचुरी, नाग, गोड अउ मराठा राजा मन के अटपट नाव ला झटपट याद करे रहय । रतनपुर अउ आरंग के नाम आत्‍ते राजा मोरध्‍वज के कहनी ला मेछा म ताव देवत बतावै । गांव म नवधा रमायन होवय त बुचुआ के शबरीनरायन महात्‍तम तहां लव कुश के कथा कहिनी ला अईसे बतावै जईसे एदे काली के बात ये जब छत्तीसगढ म लव कुश जनमे होये । भागवत कथा सुने ल जाय के पहिली बीर बब्रूवाहन के चेदिदेश के कथा सुनावै अउ मगन होवय कि वोखर