1952 के पहले आम चुनाव में दुर्ग विधानसभा में रोमांचक मुकाबला था। तब सीपी एंड बरार के स्पीकर घनश्याम सिंह गुप्त कांग्रेसी उम्मीदवार थे। जन संघ ने डॉक्टर डब्लू. डब्लू. पाटणकर को खड़ा किया था। अन्य प्रमुख उम्मीदवार डॉक्टर जमुना प्रसाद दीक्षित जो निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े थे। तीनों का चुनाव चिन्ह क्रमश: जुड़ा फंदा बैल, दिया और तराजू था। नगर और आसपास के क्षेत्रों में दोनों डॉक्टरों का अच्छा प्रभाव था। दोनों मृदुल स्वभाव के एवं हंसमुख व्यक्तित्व के थे। गरीबों और दीन दुखियों के इलाज करने के कारण लोग उन्हें भगवान जैसा पूजते थे।
घनश्याम सिंह गुप्त दुर्ग के सूबेदार के वंशज थे एवं सन 1937 से नागपुर के धारा सभा के लिए दुर्ग असेंबली का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। उनका प्रभाव कांग्रेस के बड़े नेता के रूप में स्थापित था। स्वतंत्रता के बाद जनता को पहली बार नेता चुनने एवं अपना मत देने का अवसर मिला था। जनता में भी चुनाव का उत्साह था। उस समय दुर्ग नगर के गांधी चौक में चुनावी सभा आयोजित होते थे। दाऊ घनश्याम सिंह गुप्ता छत्तीसगढ़ी भाषा में रोचक ढंग से लुभावने भाषण से जनता को प्रभावित करते थे। भाषण में कथा कहानी के साथ ही रोचक मुहावरों एवं लोकोक्तियों के माध्यम से एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप होते थे। उपस्थित भीड़ हंसी ठिठोली कर मजा लेती थी। इस चुनाव में घनश्याम सिंह गुप्त के विरोधी वक्ताओं में दाउ निरंजन लाल गुप्ता, भंगूलाल श्रीवास्तव, कृष्णानंद सोक्ता और चुन्नी लाल वर्मा को सुनने भीड़ जमती थी।
उस समय घनश्याम सिंह गुप्त ने छत्तीसगढ़ी में चुनाव पंपलेट छपवा कर बटवाया था। तो डॉक्टर जमुना प्रसाद दीक्षित के पक्ष में दाऊ निरंजन लाल गुप्ता ने घनश्याम सिंह गुप्त के विरोध में रोचक दोहों में 'गुप्त मोदक' लिखकर बटवाया था। उसकी कुछ बानगी देखिए-
घनश्याम सिंह गुप्त दुर्ग के सूबेदार के वंशज थे एवं सन 1937 से नागपुर के धारा सभा के लिए दुर्ग असेंबली का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। उनका प्रभाव कांग्रेस के बड़े नेता के रूप में स्थापित था। स्वतंत्रता के बाद जनता को पहली बार नेता चुनने एवं अपना मत देने का अवसर मिला था। जनता में भी चुनाव का उत्साह था। उस समय दुर्ग नगर के गांधी चौक में चुनावी सभा आयोजित होते थे। दाऊ घनश्याम सिंह गुप्ता छत्तीसगढ़ी भाषा में रोचक ढंग से लुभावने भाषण से जनता को प्रभावित करते थे। भाषण में कथा कहानी के साथ ही रोचक मुहावरों एवं लोकोक्तियों के माध्यम से एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप होते थे। उपस्थित भीड़ हंसी ठिठोली कर मजा लेती थी। इस चुनाव में घनश्याम सिंह गुप्त के विरोधी वक्ताओं में दाउ निरंजन लाल गुप्ता, भंगूलाल श्रीवास्तव, कृष्णानंद सोक्ता और चुन्नी लाल वर्मा को सुनने भीड़ जमती थी।
उस समय घनश्याम सिंह गुप्त ने छत्तीसगढ़ी में चुनाव पंपलेट छपवा कर बटवाया था। तो डॉक्टर जमुना प्रसाद दीक्षित के पक्ष में दाऊ निरंजन लाल गुप्ता ने घनश्याम सिंह गुप्त के विरोध में रोचक दोहों में 'गुप्त मोदक' लिखकर बटवाया था। उसकी कुछ बानगी देखिए-
बसा नगर शंकर तथा, बसा द्वारिका धाम।
स्वर्ण धाम है गुप्त फिर, कैसे हो बदनाम।
पुरखौती हक मानकर, तजत न पद को मोह।
शुकुल मिसिर गोविंद अरू, गुप्त सुभक्त गिरोह।
कवि ने इस पदमें जिस गिरोह की बात की है वे तत्कालीन मध्य प्रदेश के पं. रविशंकर शुक्ल, पं. डी.पी. मिश्र, सेठ गोविंद दास एवं घनश्याम सिंह गुप्त हैं, जो लंबे समय तक सीपी एंड बरार, मध्य प्रांत और मध्य प्रदेश में मलाईदार पदों पर आसीन रहे।
इस चुनाव में घनश्याम सिंह गुप्त को दोनों डॉक्टरों ने तगड़ी टक्कर दी थी। गुप्तजी 1035 मतों से जीते थे। दूसरे क्रम में निर्दलीय डॉ. जमुना प्रसाद दीक्षित एवं किसान मजदूर प्रजा पार्टी के मोतीलाल तीसरे क्रम में रहे। सोशलिस्ट पार्टी के हरिप्रसाद चौथे एवं भारतीय जनसंघ के डॉ. डब्लू. डब्लू. पाटणकर पांचवें क्रम में आए थे।
-संजीव तिवारीइस आलेख के आधार पर दुर्ग पत्रिका नें विधान सभा चुनाव के समय समाचार प्रकाशित किया था। क्रियेटिव कामन्न्स के तहत इसे यहां प्रकाशित कर रहा हूं क्योंकि इस सामाग्री को एकत्रित करने के लिए मैने मानसिक श्रम किया है।
इन्हें भी देखें ..
दुर्ग के सांसद किरोलीकर, बाकलीवाल और तामस्कर
भारतीय संविधान के निर्माण में छत्तीसगढि़या सिपाही : धनश्याम सिंह गुप्त
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