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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

नेपाल - एक प्रेम कहानी में


राजा वीरेन्‍द्र का पूरा परिवार जिसमें से अब कोई जीवित नहीं है
कहा जाता है कि प्रेम की बुनियाद समर्पण हो तो वह मनुष्य को देवत्व तक उठा सकता है। सूफियों व प्रेममार्गी संतों ने इसे ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बनाया पर देवत्व के प्रतिरूप माने जाने वाले प्रेमांध नेपाल के आत्मघाती राजकुमार दीपेन्द्र विक्रम शाह ने 1 जून 2001 को जिस हत्याकांड को अंजाम दिया उसकी मिसाल और कहीं नहीं। यह उस इतिहास के खात्मे की तारीख है जो नेपाली राजवंश ''शाहवंश'' के द्रव्यशाह (1559) से प्रारंभ होता है।

शाहवंश में पृथ्वी नारायण शाह ने 1769 में नेपाल की सभी छोटी-छोटी रियायतों को जीतकर आधुनिक नेपाल की स्थापना की। एकीकृत नेपाली सेना ने 1816 में अमर सिंह थापा के नेतृव में अंग्रेजों के विरूद्ध बड़ी वीरता से लड़ाई लड़ी पर संसाधनों की कमी के कारण उसे सहायक संधि स्वीकारनी पड़ी। लेकिन नेपालियों ने भारतीय रियासतों के विपरीत अपनी स्वतंत्रता कायम रखी, यद्यपि उन्होंने वर्तमान हिमांचल, उत्तराखण्ड व पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग क्षेत्र तथा सिक्किम के चोग्याल के ऊपर नियंत्रण छोड़कर इसकी बड़ी कीमत चुकायी। कभी सतलज से राप्ती नदी तक फैले नेपाली सम्राज्य को अंग्रेजों ने महाकाली से मेच्छी नदियों के बीच समेट दिया।

हत्‍यारा राजकुमार दीपेन्‍द्र
1846 ई. में नेपाल में सत्ता का एक नया केन्द्र बना जिसे राणाशाही कहा जाता है। राणा जंगबहादुर ने प्रधानमंत्री का पद राणाओं के लिए वंशानुगत करा लिया, लेकिन 1950 आते-आते राणाशाही के विरूद्ध क्रान्ति हो गयी और राजा पुनः सत्ताधिकारी हो गये। शाहवंश के ग्यारहवें राजा वीरेन्द्र विक्रम शाह 1975 में गद्दी पर बैठे। उन्होंने राजपरिवार को एक सूत्र में बांधे रखने के लिए हर शुक्रवार को रात्रि भोज की परिपाटी चलायी। सामान्यतः राजपरिवार के आवास नारायणहिती में होने वाले इस भोज का मेजबान राजपरिवार का ही सदस्य होता था। 1 जून 2001 को ऐसा ही एक भोज युवराज दीपेन्द्र द्वारा दिया गया था, जिसमें राजा वीरेन्द्र सहित राज परिवार के अन्य सदस्य भी शामिल थे। माना जाता है कि इसी भोज में रानी ऐश्वर्य राजलक्ष्मी व दीपेन्द्र के बीच उनकी प्रेमिका देवयानी को लेकर कुछ कहासुनी हुई, जिससे तैश में आकर युवराज दीपेन्द्र ने अपने माता-पिता सहित राजपरिवार के दस सदस्यों को गोलियों से भून डाला और आत्महत्या कर ली।

दीपेन्द्र, ग्वालियर राज घराने की उषाराजे सिंधिया की पुत्री देवयानी से शादी करना चाहते थे जिस पर उनकी मां को आपत्ति थी। दरअसल रानी ऐश्वर्य व देवयानी दोनों ही राणा परिवार से आती हैं पर मामला यह था कि 1940 के दशक में चन्द्रशमशेर राणा व युद्धशमशेर राणा के बीच सत्ता के नियंत्रण को लेकर काफी खून खराबा हुआ, जिसमें राणा प्रमुख रणोदीप की हत्या उनके ही भतीजे खड्‌गशमशेर ने कर दी। इन्हीं खड्‌गशमशेर की पौत्री ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया थीं, देवयानी जिनकी पौत्री थी, जबकि रानी ऐश्वर्य रणोदीप के वंश से संबंधित हैं। इन दोनों परिवारों में अब भी नहीं पटती। यही रानी की आपत्ति का प्रमुख कारण था।

राजा ज्ञानेन्‍द्र ताजपोशी के समय
राजा वीरेन्द्र व उनके परिवार के खात्मे से नेपाल दहल उठा और कई तरह की अफवाहें फैलीं किन लोगों या समूह में किस उद्देश्य से इस हत्याकांड को कराया। यद्यपि दीपेन्द्र ने इसे भावावेश में अंजाम दिया पर बाद के घटनाक्रम ने स्पष्ट कर दिया कि अन्य हत्याकांडों की तरह ही इसके कुछ निश्चित उद्देश्य व लाभार्थी थे। इस हत्याकांड के सीधे लाभार्थी तो राजा के छोटे भाई ज्ञानेन्द्र ही थे क्योंकि राजा वीरेन्द्र के परिवार के खात्मे के बाद गद्दी उन्हें ही मिली। चूंकि राजा वीरेन्द्र अपनी प्रजा में बेहद लोकप्रिय थे इसलिए उनके रहते नेपाल में चीन के समर्थन से चल रहा माओवादी आन्दोलन सफल नहीं हो पा रहा था। जबकि उनकी हत्या के पश्चात अलोकप्रिय हो चुके ज्ञानेन्द्र के गद्दी पर बैठते ही माओवादी उन्हें हटा कर सत्ता पर काबिज होने में सफल हो गये। इस तरह हत्याकांड का अंतिम लाभार्थी चीन ही हुआ।

भारत और नेपाल के बीच धार्मिक सांस्कृतिक संबंध काफी दृढ़ है। हिन्दुओं के कई तीर्थ स्थल नेपाल में हैं, जिसमें काठमाण्डू का प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर प्रमुख है, जहां के पुजारी केरल से होते हैं। हिन्दू होने के कारण नेपालियों की भी भारत के तीर्थ स्थलों में गहरी आस्था है और इस तरह भारत व नेपाल के आपसी संबंधों को निर्धारित करने में धर्म की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। शायद इसीलिए दोनों के बीच 1700 कि.मी. लंबी सीमा रेखा खुली हुई है और कलकत्ता बंदरगाह से समान लाने-ले जाने के लिए नेपाल को विशेष सुविधाएँ प्राप्त हुई। यह नेपालियों की वीरता व विश्वासभाजन होने का परिणाम है कि नेपाली बड़ी संख्‍या में भारतीय सेना में भी हैं। हालांकि दोनों देशों के बीच विवाद के भी कई विषय है जिसमें आतंकवाद व जाली नोट की तस्करी प्रमुख है। भारत व नेपाल के बीच सीमाएं खुली होने के कारण नेपाल-भारत विरोधी तत्वों के लिए उपयुक्त स्थल बनता जा रहा है। कंधार विमान अपहरण कांड इसका उदाहरण है इसके अतिरिक्त कालेपानी का विवादित भू-भाग व महाकाली, गंडक व सप्तकोशी नदियों के जल का बंटवारा भी दोनों देशों के अच्छे संबंधों में आड़े आता है।

राजा ज्ञानेन्द्र के विरूद्ध जनक्रांति के बाद माओवादी सत्ता में आये, प्रसिद्ध माओवादी नेता और प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल ऊर्फ प्रचंड ने पूर्व माओवादी लड़ाकों को नेपाली सेना में लेना चाहा जिसका नेपाली सेनाध्यक्ष और राष्ट्रपति ने जमकर विरोध किया। इस कारण उन्हें प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा, सत्ता की जिम्मेदारी से मुक्त नेपाली माओवादी नेता व लड़ाके अब ''पशुपति से तिरूपति तक'' के अपने एजेंडे पर काम करते हुए भारत में माओवादी आन्दोलन का समर्थन कर रहे हैं जो आने वाले समय में भारत के लिए बड़ा सिरदर्द साबित होगा।
इस बीच नेपाल में घटना-चक्र तेजी से घूम रहा है। वहां अनौपचारिक तौर पर गणतंत्र की स्थापना हो चुकी है और नेपाल भी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बन चुका है किन्‍तु औपचारिक तौर पर अभी नये संविधान का निर्माण नहीं हो पाया है। वहां पहाड़ी और मधेशी, हिन्दूवादी व माओवादी तथा अन्य गुटों में सत्ता के लिए खींचतान चल रही है, जिसमें एक पक्ष नेपाली सेना भी है जो राजशाही की समर्थक तो है पर ज्ञानेन्द्र या उसके बेटे पारस को गद्दी पर बैठाना नहीं चाहते। एक अन्धे प्रेमी ने पूरे देश को द्वन्द्व की गहरी खाई में ढकेल दिया लेकिन उम्मीद की जा सकती है कि सख्‍तजान नेपाली इस बार भी अपनी क्षमता प्रमाणित करते हुए देश को पुनः विकास की राह पर वापस ले आयेंगे।


विवेक राज सिंह
समाज कल्‍याण में स्‍नातकोत्‍तर शिक्षा प्राप्‍त विवेकराज सिंह जी स्‍वांत: सुखाय लिखते हैं।अकलतरा, छत्‍तीसगढ़ में इनका माईनिंग का व्‍यवसाय है. 
इस ब्‍लॉग में विवेक राज सिंह जी के पूर्व आलेख - 
अन्तरिक्ष में मानव के पचास साल 
अफगानिस्तान - दिलेर लोगों की खूबसूरत जमीन
काश्मीर- जलते स्वर्ग की कथा

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