विक्रम साराभाई, चित्र गूगल खोज से |
बचपन में आकाश के तारे शायद सभी को बेहद रहस्यमय और आकर्षक लगते हैं तारों का शायद यही आकर्षण और रहस्य मानव को अन्तरिक्ष के रोमांचक सफर के लिए प्रेरित किया होगा।
अन्तरिक्ष की ओर मानव के बढ़ने का पहला ऐतिहासिक विवरण चीन से प्राप्त होता है जहां सेना के काम आने वाले रॉकेटों को एक कुर्सी पर बांधकर एक व्यक्ति उड़ा पर वापस नहीं आया। यह घटना मिंग वंश के काल की है। यह घटना मजाक, जैसी लगती है पर वर्तमान अन्तरिक्ष अभियानों से इसकी बड़ी समानता यह है कि वर्तमान में भी उन्हीं रॉकेटों बुस्टरों का उपयोग किया जाता है। जिनका विकास मूलतः सेना की मिसाइलों के लिए किया गया है। हम भारतीय भी मिसाइलों का उपयोग टीपू सुल्तान के समय से कर रहे हैं पर वर्तमान में अन्तरिक्षयानों में जिन रॉकेटों बुस्टरों का उपयोग किया जा रहा है उनका मूल डिजाईन जर्मन वैज्ञानिक गेलार्ड के वी.टू. मिसाईल से लिया गया है। जिससे द्वितीय विश्वयुद्ध में बिना इंग्लिश चैनल को पार किये जर्मनों ने लंदन को मटियामेट कर दिया था। हिटलर की पराजय के पश्चात् उच्च स्तर के अधिकांश जर्मन वैज्ञानिक अमेरिका के हाथ लगे जबकि जर्मन अनुसंधान शालाओं के अधिकांश तकनीशियन व कामगार सोवियत संघ चले गये। और इन्हीं लोगों ने कालांतर में इन देशों में अन्तरिक्ष कार्यक्रमों की नींव रखी। जिससे 14अप्रैल 1961 को सोवियत संघ ने यूरी गागरिन को अन्तरिक्ष में पहुंचा दिया जबकि अमेरिका का अपोलों 11 नील आर्म स्टांग को चांद तक ले गया।
समाज कल्याण में स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त विवेकराज सिंह जी स्वांत: सुखाय लिखते हैं।अकलतरा, छत्तीसगढ़ में इनका माईनिंग का व्यवसाय है.
भारत में अन्तरिक्ष कार्यक्रमों की शुरूआत 1956 में विक्रम साराभाई ने तत्कालीन सोवियत संघ की सहायता से की थी। उनके कार्यकाल में भारत का अन्तरिक्ष कार्यक्रम एकदम प्रारंभिक स्तर का था। पर भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान का मूल ढ़ांचा उन्होंने ही तैयार किया। विक्रम साराभाई के संबंध में एक रोचक तथ्य यह भी है कि अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में से उन्होंने आम आदमी व किसानों के उपयोग में आने वाली दर्जनों चीजे जैसे ट्रैक्टर, हाईड्रोलिक, ट्राली, पानी के पम्प, साबुन, वाशींग पाउडर कीटनाशक इत्यादि भारत में उस समय बनाई जब ये चीजे आयातित होने के कारण महंगी होती थी, विक्रम साराभाई ने सहकारी क्षेत्र के माध्यम से इनका उत्पादन व वितरण काफी सस्ते दामों किया। गुजरात में सहकारी आन्दोलन की नींव भी शायद विक्रम साराभाई ने ही रखी जो बाद में निरमा व अमूल के रूप में पुष्पपित व पल्लवित हुआ। शायद हम विषय से भटक गये है चलिये मूल विषय पर आते है।
सन् 1983 में सोवियत यान में बैठकर हमारे राकेश शर्मा जी भी अंतरिक्ष से हो आये इसी कालखण्ड में भारत में अन्तरिक्ष अनुसंधान ने गति पकड़ी और आज भारत ने क्रायोजनिक इंजनों का खुद से विकास कर तथा चन्र्चयान को चन्द्रमा तक पहुंचाकर अपनी तकनीकी महारत साबित कर दी। आज हमारा इसरो दुनिया में सबसे कम खर्च पर उपग्रहों को कक्षा तक पहुचाने वाली संस्था है पर शायद सबसे विश्वसनीय नहीं।
रॉकेट, चित्र गूगल खोज |
भारत के अन्तरिक्ष कार्यक्रमों पर सवाल पहले भी उठते रहे है और चन्द्रयान के समय तो ये राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बन गया था कि भारत जैसे गरीब राष्ट्र को महंगे अंतरिक्ष अभियानों में आखिर क्यों धन खर्च करना चाहिए। मेरे ख्याल से यह लगभग वैसी ही बात है जैसी कि 1986-87 में जब राजीव गांधी ने पहले पहल जब कम्युचाटर क्रान्ति की बात की तब बहुत से लोगों ने कहा कि जिस देश में आधी से अधिक जनता निरक्षर है और 70प्रतिशत से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे है वहां कम्यु ैटर क्रान्ति की बात करना पागलपन नहीं तो घोर मुर्खता अवश्य है। पर बाद के समय में इसी कम्युचेटर क्रान्ति से उपजे साफ्टवेयर डेवलपरों के माध्यम से जो विदेशी मुद्रा देश में आयी उसने देश की गरीबी, अशिक्षा व बेकारी को हटाने में कितना योगदान दिया यह अब सर्वविदित है। अंतरिक्ष के क्षेत्र भी संचार उपग्रहों के निर्माण व उनके पट्टे पर देने तथा उपग्रहों को उनकी कक्षा तक पहुंचाने का विश्व बाजार खरबो डॉलर का है। जिसमें इसरों की काफी अच्छी संभावनाएं है। इसके अतिरिक्त यह रक्षा अनुसंधान से भी जुड़ा हुआ है। डी.आर.डी.ओ. के द्वारा विकसित अधिकांश मिसाईलें उन्हीं तकनीकों पर आधारित है जिनका विकास ईसरो ने अपने रॉकेटों बुस्टरों के निर्माण के लिए किया था।
भविष्य में विश्व के अन्तरिक्ष अभियान शायद इस बात पर केन्द्रित होंगे कि मानव को पृथ्वी के अतिरिक्त और कहां बसाया जा सकता है। क्योंकि वर्तमान के हिरण्यआक्षों (जिनकी आंखे सोने के सिक्कों पर लगी हो, यह उपमा शायद धन लोलुप उद्योगपतियों पर अधिक जचती है) ने अपने लोभ में आकर पृथ्वी के पर्यावरण को इतना बिगाड़ दिया है कि शायद आने वाले समय में वराह (भगवान विष्णु के अवतार) भी पृथ्वी का उद्धार नहीं कर पायेंगे। तब मानव संततियां इन्ही अन्तरिक्ष यानों में बैठकर अन्य आकाश गंगाओं में अपने लिए आशियाने ढूंढ़ेगी लेकिन इसमें काफी समस्याएं है बहुत सी चुनौतियां है जिनका सामना अभी किया जाना है। पर इन 50 सालों में अंतरिक्ष में मानव का सफर शानदार व रोमांचक रहा ये हम निश्चय पूर्वक अवश्य कह सकते है।
- विवेकराज सिंह
अकलतरा, छत्तीसगढ़.
मेल - vivekrajbais @ gmail.com
मो- 9827414145
- विवेकराज सिंह
अकलतरा, छत्तीसगढ़.
मेल - vivekrajbais @ gmail.com
मो- 9827414145
बढिया आलेख
जवाब देंहटाएंसुगढ़ आलेख, स्वान्तः सुखाय लगातार लिखते ही रहें।
जवाब देंहटाएंआपका स्वान्तः सुखाय, बहुजन हिताय हो, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंएक सुन्दर पठनीय आलेख
जवाब देंहटाएंआज फ़िर खेली है हमने लिंक्स के साथ छुपमछुपाई आपकी एक पुरानी कविता चर्चा में आज नई पुरानी हलचल
जवाब देंहटाएंBahut hi badiya prastuti...
जवाब देंहटाएंHaardik shubhkamnayen.