आदरणीय अशोक सिंघई के सुन रही हो ना कविता संग्रह की पहली कविता -
शब्द नहीं
ध्वनि हो तुम मेरी कविता की
एक अनुगूँज
झंकृत करती उस कारा को
बंदी है जिसमें आत्मा मेरी
0
रक्ताक्त हैं अँगुलियाँ खटखटाते द्वार अहर्निश
नहीं होते दर्शन
मैं चिर प्रतीक्षित
व्याकुलता हो गई तिरोहित
न कोई तृष्णा / न मरीचिका
न दौड़ता है मन
अंतरिक्ष के आर-पार
लगाती रहो टेर पर टेर
खुलेंगे एक दिन
इस पिंजर के द्वार
भला जी कर के भी
कौन सका है जी
0
अन्तराल में
निहारता रहता हूँ छवि
मन है अतिशय उदार
दिखला देता है ध्वनि विरल को
एक नहीं / कई क्षण / कई बार
मत छुओ मन को
हो जाओ मन के पार
नहीं शेष कोई आग्रह
नहीं उठती हिलकोरे ले चाह
कभी नहीं ढूँढी मैंने
कभी नहीं देखी तेरी राह
भला कौन कर सका
आँखें न हों गीली
0
मुटि्ठयों में कैसे हो बंद
शून्य का आलिंगन
अस्पर्श / अब नहीं बढ़ाता संताप
मौन / केवल मौन
अखण्ड चराचर में
निष्कम्प ज्योति सा यह सम्बन्ध
नहीं किसी ने अब तक परिभाषा दी
0
शब्द नहीं
ध्वनि हो तुम मेरी कविता की
0
अशोक सिंघई
शब्द नहीं
ध्वनि हो तुम मेरी कविता की
एक अनुगूँज
झंकृत करती उस कारा को
बंदी है जिसमें आत्मा मेरी
0
रक्ताक्त हैं अँगुलियाँ खटखटाते द्वार अहर्निश
नहीं होते दर्शन
मैं चिर प्रतीक्षित
व्याकुलता हो गई तिरोहित
न कोई तृष्णा / न मरीचिका
न दौड़ता है मन
अंतरिक्ष के आर-पार
लगाती रहो टेर पर टेर
खुलेंगे एक दिन
इस पिंजर के द्वार
भला जी कर के भी
कौन सका है जी
0
अन्तराल में
निहारता रहता हूँ छवि
मन है अतिशय उदार
दिखला देता है ध्वनि विरल को
एक नहीं / कई क्षण / कई बार
मत छुओ मन को
हो जाओ मन के पार
नहीं शेष कोई आग्रह
नहीं उठती हिलकोरे ले चाह
कभी नहीं ढूँढी मैंने
कभी नहीं देखी तेरी राह
भला कौन कर सका
आँखें न हों गीली
0
मुटि्ठयों में कैसे हो बंद
शून्य का आलिंगन
अस्पर्श / अब नहीं बढ़ाता संताप
मौन / केवल मौन
अखण्ड चराचर में
निष्कम्प ज्योति सा यह सम्बन्ध
नहीं किसी ने अब तक परिभाषा दी
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शब्द नहीं
ध्वनि हो तुम मेरी कविता की
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अशोक सिंघई
शब्द नहीं ध्वनि हो तुम मेरी कविता की --बहुत खूब ... यही ध्वनि मन की गहराई मे गूँज उठती है.
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है। सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबढ़िया कविता!!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया!!
सुन्दर अति सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
बहुत सुन्दर भाव है इस कविता के।
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