उस रात लगभग 11 बजे मेरे एक मित्र का फोन मेरे मोबाईल सेट पर घनघना उठा । मैं अपने मोबाईल को बैठक के टेबल में रखकर दूसरे कमरे में हिन्दी ब्लागों को पढने में मगन था । मोबाईल का वाईब्रेशन पुन: सक्रिय हो गया, इस समय मेरे पुत्र का ध्यान उस ओर गया, स्वाभविक रूप से उसने मोबाईल उठा कर देखा और फोन कर रहे मित्र का नाम बताते हुए वहीं से आवाज दिया ' फलां का फोन है ' मोबाईल वाईब्रेट होता रहा । मन तो कह रहा था लपक लूं मोबाईल और बात करूं, आखिर मित्र का फोन था । पर किसी पूर्वनिर्धारित साफ्टवेयर आदेश की तरह मेरे शरीर के हार्डवेयर नें उसे पालन करते हुए मोबाईल नहीं उठाया और वाईब्रेटर हार थक के बंद हो गया ।
सुबह मैं अपने कार्यालय पहुंचकर उस मित्र को फोन किया, उसे किसी लेख के संबंध में कुछ आवश्यक सहयोग चाहिए था । उसके अनमनेपन को मैं भांप गया, मैंनें झेंपते हुए अपना पक्ष रखा, उसने भावुक होकर कुछ सुझाव दिये ।
चिंतन की शुरूआत इसके बाद ही हुई । मैं 80 व 90 के दसकों में हिन्दी लेखन से कुछ कुछ जुडा हुआ था । 1995 तक स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में यदा कदा मेरी रचनायें प्रकाशित होती रही है । 1995 में मेरे विवाह के बाद मैंने अपने कलम को विराम दे दिया था ।
इससे संबंधित मेरे द्वारा पूछे गये प्रश्न के उत्तर में मेरी पत्नी ने बताया था कि उसे कविता, कहानी व लेख लिखने वाले कतई पसंद नहीं हैं इसका कारण यह है कि ये लोग हकीकत की धरातल में रह कर नहीं लिखते काल्पनिक भावनाओं में डूबते उतराते रहते हैं और ना ही इससे पेट भरता है और ना ही घर चलता है । उसके दूसरे दलील में दम था अत: हमने ज्ञानदत्त जी के परसुराम वाले पोस्ट की तरह समझौता कर लिया था एवं लेखन को बंद कर दिये थे क्योंकि तब हमारे उपर परिवार की शुरूआती आर्थिक जिम्मेदारी थी एवं वेतन न्यूनतम था, तो हमने अपना कलम अपने संस्था के व्यावसायिक साख को बढाने में ही लगाया और सेवा कार्य में अपना संपूर्ण समय तन्मयता से लगाया ।
पिछले वर्षों से हमारे कानूनी दांव पेंचों एवं बहसों के सहारे पत्नी महोदया नें ब्लाग लिखने की टेंम्परेरी आर्डर पास कर दिया था, सो हम आप लोगों को छत्तीसगढ से परिचित कराने में लगे थे । पर आज भी उसके मन में लेखन से जुडे व्यक्तियों के प्रति आदर के भाव को मैं स्थापित नहीं कर पाया हूं, उसे प्रत्येक लेखन धर्मी से कोई विशेष श्रद्धा नहीं है । यही वह कारण है कि वह किसी ब्लाग लेखन के क्षेत्र से जुडे व्यक्ति के साथ लम्बी वार्ता मुझे करते देखने पर विचलित हो जाती है । मैं परिवार में विचलित मानसिकता को पसंद नहीं करता ।
मित्र के सुझावों पर अमल करते हुए मैंने पत्नी को समझाया पर उसनें साफ शब्दों में कहा कि 'यह सब व्यावसायिक क्रियाकलाप है, लेखन यद्धपि स्वांत: सुखय कर रहे हों पर भविष्य में इससे किसी न किसी प्रकार से लाभ लेने की लालसा सभी के मन में है अत: व्यावसायिक बातें कार्यालयीन समय में ही हो, घर तक उसे ना लायें । व्यावसायिक मित्रता व शुभकामनायें, घर में शुभकामना संदेश पत्रों तक ही सीमित रखना मुझे पसंद है ।'
संबंधों में निरंतरता स्वमेव ही आदर या स्नेह के भाव को जगा देती है, जो मानव मन की सहज प्रवृत्ति है । श्रद्धा व प्रेम को दबावपूर्ण रूप से किसी के हृदय में उतारा नहीं जा सकता । जिस तरह से दस वर्षों के बाद मैनें अपनी पत्नी के मन में अपने लेखन प्रवृत्ति को स्वीकृत करवाया है वैसे ही मित्रों के लिए उसके मन में श्रद्धा को स्थापित होने में कुछ तो वक्त लगेगा ।
प्रारंभिक रहन सहन की अवस्थाओं का मनुष्य के मन में गहरा प्रभाव होता है, मेरी पत्नी छत्तीसगढ के एक बडे आबादी वाले भरे पूरे गांव से आई है । साल के 365 दिनों में से 300 दिन घर आये मेहमानों की खातिरदारी करने एवं बाकी के बचे 65 दिनो में हम पारिवारिक विवादों के तू तू मैं मैं में गुजार देते हैं । ऐसे में हिन्दी लेखन एवं आधुनिक परंपराओं से परिचित होने के लिए उसके पास समय ही नहीं रहता । हां उसे पता रहता है कि फलां तारीख को फलां की पेशी है एवं फलां तारीख को फलां की बेटी की सगाई है और फलां फलां आने वाले हैं उनके लिए ये ये सामान लाना है, खाना बनाना है खिलाना है बस । और फलां के साथ शहर का लुफ्त उठाने के लिए मेहमानों की टीम मेरे घर एवं मेरी पत्नी के सेवा का आनंद उठाते हुए दो चार दिन ज्यादा सेवा का अवसर देकर हमें कृतार्थ करते रहते हैं, मेरी पत्नी कभी मायके तो कभी श्वसुराल से आये मेहमानों की सेवा करते हुए सुबह उठ कर ठाकुर जी के सामने अगरबत्ती जलाते हुए गाती है
ठाकुर इतना दीजिये जामें कुटुम्ब समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूं साधु ना भूखा जाए ।।
तो इन साधुओं की भूख नें हमारी आर्थिक स्थिति के साथ ही पारिवारिक स्थिति को भी छिन्न भिन्न कर दिया है, गांव की महिलायें मेरे घर के मिठाईयों का स्वाद चखते हुए मेरी पत्नी को साहित्य पढने एवं आधुनिकताओं के दौड में बढने से रोकती हैं अत: हमारे ज्ञान बखान पर गोबर थोपा जाता है । हमारे विदेशी मेहमान गांव के दीवालों पर कंडा बनाने के लिए चिपकाये गये (थापे गए) गाय के गोबर को जिस प्रकार कूतूहल से देखते हैं कि गाय नें दीवाल में चढ कर कैसे गोबर किया होगा । वैसे ही कूतूहल बना रहता है कि मास्टर डिग्री तक पढी मेरी पत्नी क्या इतनी गैरआधुनिक हो सकती है कि मित्र से फोन पर हिन्दी लेखन के संबंध में लम्बे वार्तालाभ को सहज रूप से न स्वीकार कर पाये, पर यह सत्य है । यह आवश्यक नहीं है कि जिसके प्रति मेरे हृदय में सम्मान, प्रेम-स्नेह हो उसके प्रति किसी दूसरे के हृदय में भी वही भाव हो जो मेरे में है, यह एक नितांत निजी अनूभूति है ।
शिक्षा पर भारी पडती है पारिवारिक व सामाजिक परिस्थितियां । मेरी एक युवा भाभी ( अभी कुछ माह पूर्व ही उनका आकस्मिक निधन हो गया) भोपाल के एक कालेज में रसायन शास्त्र की विभागाध्यक्ष थी, भाई साहब राष्ट्रीयकृत बैंक के जोनल मैनेजर । नौकरी के पूर्व ही भाभी जी नें पी.एच.डी. कर लिया था तब छत्तीसगढ, मध्य प्रदेश से अलग नहीं हुआ था और राजधानी भोपाल ही थी । रिश्तेदारों का काम से भोपाल आना जाना होता था और मेरा नेता जी की सेवा में विधायक विश्राम गृह में बसेरा होता था । रिश्तेदारों के आने पर भाभी जी से मिलने जब भी कालेज जाता था तो भाभी जी कालेज परिसर में जहां भी मिलती थी, कृषकाय बुजुर्ग रिश्तेदार के धूलधूसरित पैरों को, सिर में पल्लू ढांक कर, पारंपरिक रूप से झुककर चरण स्पर्श करती थी । उनका यह सहज व्यवहार जहां एक ओर कालेज में विद्यार्थियों के हंसी ठिठोली का कारण बनता था वहीं दूसरी ओर मेरे मन में उनके प्रति श्रद्धा के भाव अंतस तक उमड पडते थे । तो यह भाव है उसके संसकार के जो शिक्षा एवं पद के बावजूद उसमें सहज रूप से विद्यमान थे ।
मुझे उनका सलवार या गाउन पहनने के लिए भाई साहब के प्रोत्साहन के बावजूद 'घर में बडे बुजुर्ग आते रहते हैं' की बात कहकर गाउन पहनने को जीवन भर टालते रहने की बात भी याद हो आती है जबकि आज महिलाओं के लिए यह आम बात है । यही वो प्रवृत्ति है जिसे आधुनिक समाज असहज भले कहता हो पर ग्रामीण नारी के मन से अंदर तक पैठे इन भावों को निकाल फेंकना सहज नहीं है । जिस प्रकार से रूढियों के प्रतिकूल आधुनिक अच्छे परंपराओं नें नारी शिक्षा को आत्मसाध करना सिखाया है वैसे ही अन्य परंपराओं की पैठ शैन: शैन: समाज में होगी । इसमें कुछ वक्त तो जरूर लगेगा और तब तक मेरा मोबाईल घर में बजता रहेगा ।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
लेबल
संजीव तिवारी की कलम घसीटी
समसामयिक लेख
अतिथि कलम
जीवन परिचय
छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में
पुस्तकें-पत्रिकायें
छत्तीसगढ़ी शब्द
Chhattisgarhi Phrase
Chhattisgarhi Word
विनोद साव
कहानी
पंकज अवधिया
सुनील कुमार
आस्था परम्परा विश्वास अंध विश्वास
गीत-गजल-कविता
Bastar
Naxal
समसामयिक
अश्विनी केशरवानी
नाचा
परदेशीराम वर्मा
विवेकराज सिंह
अरूण कुमार निगम
व्यंग
कोदूराम दलित
रामहृदय तिवारी
अंर्तकथा
कुबेर
पंडवानी
Chandaini Gonda
पीसीलाल यादव
भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष
Ramchandra Deshmukh
गजानन माधव मुक्तिबोध
ग्रीन हण्ट
छत्तीसगढ़ी
छत्तीसगढ़ी फिल्म
पीपली लाईव
बस्तर
ब्लाग तकनीक
Android
Chhattisgarhi Gazal
ओंकार दास
नत्था
प्रेम साईमन
ब्लॉगर मिलन
रामेश्वर वैष्णव
रायपुर साहित्य महोत्सव
सरला शर्मा
हबीब तनवीर
Binayak Sen
Dandi Yatra
IPTA
Love Latter
Raypur Sahitya Mahotsav
facebook
venkatesh shukla
अकलतरा
अनुवाद
अशोक तिवारी
आभासी दुनिया
आभासी यात्रा वृत्तांत
कतरन
कनक तिवारी
कैलाश वानखेड़े
खुमान लाल साव
गुरतुर गोठ
गूगल रीडर
गोपाल मिश्र
घनश्याम सिंह गुप्त
चिंतलनार
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग
छत्तीसगढ़ वंशी
छत्तीसगढ़ का इतिहास
छत्तीसगढ़ी उपन्यास
जयप्रकाश
जस गीत
दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति
धरोहर
पं. सुन्दर लाल शर्मा
प्रतिक्रिया
प्रमोद ब्रम्हभट्ट
फाग
बिनायक सेन
ब्लॉग मीट
मानवाधिकार
रंगशिल्पी
रमाकान्त श्रीवास्तव
राजेश सिंह
राममनोहर लोहिया
विजय वर्तमान
विश्वरंजन
वीरेन्द्र बहादुर सिंह
वेंकटेश शुक्ल
श्रीलाल शुक्ल
संतोष झांझी
सुशील भोले
हिन्दी ब्लाग से कमाई
Adsense
Anup Ranjan Pandey
Banjare
Barle
Bastar Band
Bastar Painting
CP & Berar
Chhattisgarh Food
Chhattisgarh Rajbhasha Aayog
Chhattisgarhi
Chhattisgarhi Film
Daud Khan
Deo Aanand
Dev Baloda
Dr. Narayan Bhaskar Khare
Dr.Sudhir Pathak
Dwarika Prasad Mishra
Fida Bai
Geet
Ghar Dwar
Google app
Govind Ram Nirmalkar
Hindi Input
Jaiprakash
Jhaduram Devangan
Justice Yatindra Singh
Khem Vaishnav
Kondagaon
Lal Kitab
Latika Vaishnav
Mayank verma
Nai Kahani
Narendra Dev Verma
Pandwani
Panthi
Punaram Nishad
R.V. Russell
Rajesh Khanna
Rajyageet
Ravindra Ginnore
Ravishankar Shukla
Sabal Singh Chouhan
Sarguja
Sargujiha Boli
Sirpur
Teejan Bai
Telangana
Tijan Bai
Vedmati
Vidya Bhushan Mishra
chhattisgarhi upanyas
fb
feedburner
kapalik
romancing with life
sanskrit
ssie
अगरिया
अजय तिवारी
अधबीच
अनिल पुसदकर
अनुज शर्मा
अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
अमिताभ
अलबेला खत्री
अली सैयद
अशोक वाजपेयी
अशोक सिंघई
असम
आईसीएस
आशा शुक्ला
ई—स्टाम्प
उडि़या साहित्य
उपन्यास
एडसेंस
एड्स
एयरसेल
कंगला मांझी
कचना धुरवा
कपिलनाथ कश्यप
कबीर
कार्टून
किस्मत बाई देवार
कृतिदेव
कैलाश बनवासी
कोयल
गणेश शंकर विद्यार्थी
गम्मत
गांधीवाद
गिरिजेश राव
गिरीश पंकज
गिरौदपुरी
गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’
गोविन्द राम निर्मलकर
घर द्वार
चंदैनी गोंदा
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय
छत्तीसगढ़ पर्यटन
छत्तीसगढ़ राज्य अलंकरण
छत्तीसगढ़ी व्यंजन
जतिन दास
जन संस्कृति मंच
जय गंगान
जयंत साहू
जया जादवानी
जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड
जुन्नाडीह
जे.के.लक्ष्मी सीमेंट
जैत खांब
टेंगनाही माता
टेम्पलेट डिजाइनर
ठेठरी-खुरमी
ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं
डॉ. अतुल कुमार
डॉ. इन्द्रजीत सिंह
डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव
डॉ. गोरेलाल चंदेल
डॉ. निर्मल साहू
डॉ. राजेन्द्र मिश्र
डॉ. विनय कुमार पाठक
डॉ. श्रद्धा चंद्राकर
डॉ. संजय दानी
डॉ. हंसा शुक्ला
डॉ.ऋतु दुबे
डॉ.पी.आर. कोसरिया
डॉ.राजेन्द्र प्रसाद
डॉ.संजय अलंग
तमंचा रायपुरी
दंतेवाडा
दलित चेतना
दाउद खॉंन
दारा सिंह
दिनकर
दीपक शर्मा
देसी दारू
धनश्याम सिंह गुप्त
नथमल झँवर
नया थियेटर
नवीन जिंदल
नाम
निदा फ़ाज़ली
नोकिया 5233
पं. माखनलाल चतुर्वेदी
पत्रकार
परिकल्पना सम्मान
पवन दीवान
पाबला वर्सेस अनूप
पूनम
प्रशांत भूषण
प्रादेशिक सम्मलेन
प्रेम दिवस
बलौदा
बसदेवा
बस्तर बैंड
बहादुर कलारिन
बहुमत सम्मान
बिलासा
ब्लागरों की चिंतन बैठक
भरथरी
भिलाई स्टील प्लांट
भुनेश्वर कश्यप
भूमि अर्जन
भेंट-मुलाकात
मकबूल फिदा हुसैन
मधुबाला
महाभारत
महावीर अग्रवाल
महुदा
माटी तिहार
माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह
मीरा बाई
मेधा पाटकर
मोहम्मद हिदायतउल्ला
योगेंद्र ठाकुर
रघुवीर अग्रवाल 'पथिक'
रवि श्रीवास्तव
रश्मि सुन्दरानी
राजकुमार सोनी
राजमाता फुलवादेवी
राजीव रंजन
राजेश खन्ना
राम पटवा
रामधारी सिंह 'दिनकर’
राय बहादुर डॉ. हीरालाल
रेखादेवी जलक्षत्री
रेमिंगटन
लक्ष्मण प्रसाद दुबे
लाईनेक्स
लाला जगदलपुरी
लेह
लोक साहित्य
वामपंथ
विद्याभूषण मिश्र
विनोद डोंगरे
वीरेन्द्र कुर्रे
वीरेन्द्र कुमार सोनी
वैरियर एल्विन
शबरी
शरद कोकाश
शरद पुर्णिमा
शहरोज़
शिरीष डामरे
शिव मंदिर
शुभदा मिश्र
श्यामलाल चतुर्वेदी
श्रद्धा थवाईत
संजीत त्रिपाठी
संजीव ठाकुर
संतोष जैन
संदीप पांडे
संस्कृत
संस्कृति
संस्कृति विभाग
सतनाम
सतीश कुमार चौहान
सत्येन्द्र
समाजरत्न पतिराम साव सम्मान
सरला दास
साक्षात्कार
सामूहिक ब्लॉग
साहित्तिक हलचल
सुभाष चंद्र बोस
सुमित्रा नंदन पंत
सूचक
सूचना
सृजन गाथा
स्टाम्प शुल्क
स्वच्छ भारत मिशन
हंस
हनुमंत नायडू
हरिठाकुर
हरिभूमि
हास-परिहास
हिन्दी टूल
हिमांशु कुमार
हिमांशु द्विवेदी
हेमंत वैष्णव
है बातों में दम
छत्तीसगढ़ की कला, साहित्य एवं संस्कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख
लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा
विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...
-
दे दे बुलउवा राधे को : छत्तीसगढ में फाग संजीव तिवारी छत्तीसगढ में लोकगीतों की समृद्ध परंपरा लोक मानस के कंठ कठ में तरंगित है । यहां के ...
-
यह आलेख प्रमोद ब्रम्हभट्ट जी नें इस ब्लॉग में प्रकाशित आलेख ' चारण भाटों की परम्परा और छत्तीसगढ़ के बसदेवा ' की टिप्पणी के रूप मे...
-
8 . हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? - पंकज अवधिया ...
दिलचस्प जानकारी है। आराम से पढ़ूंगा।
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है।आज की युवा पीढ़ी को इन संस्कारों को समझने मे वक्त लगेगा। वैसे उम्मीद पर दुनिया कायम है।
जवाब देंहटाएंचेतावनी ग्रहण की गई!! अब तो मै आपके घर में रहने के टाईम में ब्लॉग के संबंध में फोन नई करूंगा!! बुआ से डांट नई खानी मुझे!!!
जवाब देंहटाएंवैसे ग्यारह बजे रात में किस ब्लॉग मित्र का फ़ुनवा आ गया था!!
लिखा बहुत बढ़िया है आपने!!
:))
जवाब देंहटाएंरात 11 बजे फोन करने का भी कोई समय है? मैं उस समय फोन को तभी उपयुक्त समझता हूं जब बहुत इमरजेंसी हो! जैसे कोई रेल दुर्घटना आदि।
जवाब देंहटाएंएक ही साँस में पूरा पढ़ गया, संजीव...अपने बारे में और तमाम बातों पर अपनी सोच जाहिर की. पढ़कर सचमुच बहुत अच्छा लगा. हम हमेशा अपने हिसाब से नहीं चल सकते, और इसे स्वीकार करने में कोई हर्ज ही नहीं.
जवाब देंहटाएंबहुत सहज भाव से की गई अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंपढ़कर एक इच्छा जागी कि छत्तीसगढ़ जाना चाहिए..
बस यही कहूंगा कि फिर भी लिखते रहिये क्योकि भावनाओ का अभिव्यक्त न होना भी कई प्रकार के रोगो की जड है। बाकी सब इग्नोर कर दे।
जवाब देंहटाएंaap ke lekhan mein sahaj abhivyakti hai jo mujh jaise naye likhane walon ke liye grahya hai!
जवाब देंहटाएंdhanyawad!
Manish Pandey
भई, पोस्ट में छिपी चेतावनी हमने भी ग्रहण कर ली।
जवाब देंहटाएंअब लम्बी वार्ता से बचने की कोशिश की जाएगी। :-)
वैसे सहज भाव से लिखी गई पोस्ट का भावार्थ पसंद आया। निश्चित ही, गहरे बैठे संस्कार संतुष्टि का कारक बनते हैं।
बी एस पाबला