नारित्व का बोध

विगत दिनों चर्चा में रहे अमिताभ बच्चन की फिल्में क्रमश: नि:शब्द व चीनी कम जैसी फिल्मों के मूल भावों एवं फिल्म समीक्षा व विचार मंथनों में जवान पुरुष से ज्यादा ६० से अधिक उम्र के पुरुषों की कामुक प्रवृत्तियों पर खुलकर चर्चा हुई । सभी ने अपने-अपने मति के अनुसार इस पर अपने-अपने विचार प्रकट किए । हम फिल्म तो नहीं देख पाते पर इस पर चर्चाओं को कभी कभी पढते रहते हैं एवं फिल्म देखने का मजा उसी से लेते हैं ।

आज सुबह हम एक साध्वी के श्री मुख से दूरदर्शन में प्रवचन सुन रहे थे, उन्होंने उपरोक्त मुद्दे का राज, पौराणिक कथाओं की माध्यम से खोला, हमारी भी आँखें खुल गई । लीजिए हम प्रस्तुत कर रहे हैं उस कथा को जो कथा नहीं चिंतन है, भाव उनके है शब्द हमारे:-

एक बार एक सरोवर में राजकन्यायें निर्वस्त्र होकर जल क्रीड़ा का आनंद ले रही थी । महर्षि वेद व्यास का युवा साधु पुत्र ऋषि पाराशर वहाँ से गुजरे, ऋषि ने जलक्रीड़ा करती हुई उन नग्न बालाओं को देखा और अपना कमंडल उठाये आगे बढ गए, युवतियाँ स्नान करती रहीं । थोड़ी देर पश्चात स्वयं महर्षि वेद व्यास जी उसी पथ से गुजरे, उन्होंने भी जलक्रीड़ा में मग्न, नग्न बालाओं को देखा और आगे बढने लगे । स्‍नान करती बालायें बोल पड़ी ‘महर्षि ठहरें ! आपने नग्न नारियों को देखकर पाप किया है ।’ महर्षि ने प्रतिउत्तर दिया- ‘इस पथ से अभी अभी मेरा पुत्र गया है उसने भी तुमको इसी स्थिति में देखा है, तो मेरे देखने से पाप क्यों ?’ राजकन्याओं ने कहा- ‘महर्षि आपका पुत्र इस राह से गुजरा उसने हमें इसी स्थिति में देखा, किन्तु उसके मन में जो भाव थे वो कुछ ऐसे थे कि सरोवर में जानवर क्रीड़ा कर रहे हों, उसने हमें नारी समझकर नहीं देखा, हम स्त्रियां दृष्टि का मर्म समझती हैं, किन्तु आपने हमें नारी के रुप में ही देखा और हमें आभास करा दिया कि हम नारी है, यही भाव तो पाप के भाव हैं ।‘

इसके बाद मेरे घर में विद्युत प्रवाह विच्छेदित हो गया, बाकी का चिंतन मेरे मन ने पूरा किया । युवक पाराशर द्वारा नग्न नारियों पर दृष्टिपात करने पर भी उसका मन निर्विकार रहा, वहीं वृद्ध वेद व्यास के मानस नें नारियों के प्रति पुरुषों की सहज उत्कंठा को जागृत कर दिया । मत्स्यकन्या से उत्पन्न महाज्ञानी पाराशर ऋषि के निर्मल मन को पाप छू नहीं सका क्योंकि वह नारी के भोग से पूर्ण संतुष्ट था तभी तो कालांतर से पाराशर गोत्रज आज भी विद्यमान है, जबकि महर्षि वेदव्यास ने नारी को भोगा था किन्तु वय के कारण कर्मणा नहीं मनसा कामना जीवित थी । इसीलिए उसकी एक दृष्टि ने ही उन बालाओं को उनके नारी होने का बोध करा दिया, वे झटपट अपने अंगों को हाथों से छुपाने लगीं ।

सनातन में दण्ड से ज्यादा पश्च्याताप और अपराधबोध कराकर दण्ड को स्वयं स्वीकारने की परंपरा रही है, महर्षि ने सनातन विधि से पश्चात्यताप किया । इस कथा से हमने जो समझा वह यह है-

पाप पहले मन में कामना के रुप में पैदा होता है तदनंतर शरीर उसे मूर्त रुप देता है, शारीरिक क्रिया अकेले पापी नहीं है, यदि कामना न हो तो पापमय दृष्टि का प्रश्न ही नहीं उठता, और यह भी कि भिन्‍न भिन्‍न व्‍यक्तियों की दृष्टि में समान भाव नहीं होते । नारित्व के बोध का भाव ही किसी कम वय की कन्या को अपने से इतर वय के पुरुषों के प्रति आकर्षण का कारण है । मात्र रजोदर्शन ही नारित्व का बोध नहीं है पुरुष के मन की कामना जब इंद्रियों से परिलक्षित होती है तब नारी को नारी होने का शाश्वत बोध होता है ।

नारित्‍व के रुप अनेक हैं यहां हमने उसके एक स्वरुप का ही चित्रण किया है इसका मतलब यह नहीं है कि वह श्रद्धा नहीं है या कविता नहीं है । किसी भी व्यक्ति के मन को इस लेख से किसी भी प्रकार की चोट पहुंचती है तो मैं उनसे क्षमा चाहता हूं मैने अपने विचार प्रकट किये हैं, आप भी स्वतंत्र है मुझे टिपियाने के लिए ।

संजीव तिवारी

6 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. संजीव जी यद्यपि मै नारी हूँ इस लेख को पढ़कर एक बार लगा कि क्या लिखूँ..लिखूँ या न लिखूँ... चूकि मै आपकी नियमित पाठक हूँ अपने विचार प्रस्तुत करने कि इजाजत चाहूँगी आपका चिंतन सराहनिय है...मै भी अपने कुछ विचार प्रस्तुत कर रही हूँ...हम हर पाप पुण्य का जिम्मेदार कभी नारी तो कभी पुरूष को ठहराते है...कभी भी यह नही सोचते की यह पाप है भी कि नही और अगर है तो हुआ ही क्यूँ इस बात को समझे बिना ही हम फ़ैसला कर देते है कि यह पाप है और इसका धर्म के अनुसार निवारण क्या है किस देवता की शान्ति करवाई जाये या कोई टोने -टोटके किये जाये...मगर तिवारी जी एसा कुछ नही है...

    इस धरती पर इश्वर ने दो ही रिश्ते बनाये है एक औरत और एक पुरूष...जब दोनो मिलते है तो सृष्टि का निर्माण होता है...अब जब इश्वर ने उन्हे एक दूसरे के लिये बनाया है तो विपरिताकर्षण तो होना ही है...एसे में इसे पाप कहा जाना अनुचित है... मनुष्य एक परिवर्तन शील प्राणी है हमेशा एक जगह नही टिक सकता मनुष्य और जानवर में कोई फ़र्क नही होता सिवाय इसके कि मनुष्य को सोचने समझने कि ज्यादा शक्ति मिली है,इसिलिये वह रिश्तो की मर्यादा में बधाँ है..वरना अब तक तो यह नही पता चलता कौन पिता है कौन पुत्र,और कौन माँ है कौन पुत्री,और ये रिश्ते होना ही एक स्वस्थ समाज के परिचायक है...मगर जब हम पुराने समय को देखते है एक पुरूष कई कई विवाह कर सकता था एक स्त्री के कई पति भी सुने है...ये सब क्या था? क्या वो पाप नही था...पुराने मंदिरो की गुफ़ाओ में यह बात साफ़ पता चलती है की एक से अधिक पति और पत्नि होते थे,यहाँ तक की ऋषि मुनि भी इन बातों से अछूते नही है...
    मगर आज जब हमारे पुर्वजो ने इन बातों से होने वाली परेशानियों पर ध्यान दिया है कुछ नियम और कानून बना दिये है...और चूँकि मनुष्य धार्मिक प्रवृति का होता है तो उसे यही पाप-पुण्य की दुहाई देकर डराया जाता है,जिससे एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके...और मनुष्य पाप-पुण्य के चक्कर में हर रिश्ता बखुबी निभा सके...
    अगर हम खुद अपने आप से सोचें तो पाप-पुंण्य कुछ भी नही है,मगर यह भी सच है गर मनुष्य को भगवान का नाम लेकर डराया जाये पाप-पुण्य की दुहाई दी जाये तो हर रिश्ता बखूबी निभा लेता है जिसकी भावना जिसके प्रति जैसी रहती है वह वही सोचता है और वैसा ही उसे देखने की कोशिश करता है...अगर पिता को यह न लगे कि बेटी से नाजायज रिश्ता बनाना कोई गलत नही है तो उसकी नजर में वह जायज हो जायेगा मगर जब वो इस बात को जानेगा कि बेटी को इस नजर से देखना भी पाप है तो इस घृणित कार्य के लिये उसका मन उसकी आत्मा कभी भी उसका साथ नही देगी...
    यही पत्नी-व्रती पति के साथ होता है और एसा ही पति-व्रता स्त्री के साथ होता है जब वो एक दूसरे को धर्म के मुताबिक समर्पित कर देते है तो कोई भी दुसरा रिश्ता उनकी नजर में पाप कहलाता है...
    यह जरूरी भी है हमारे समाज के लिये...मगर बस अंत में एक बात कहना चाहूँगी...हद से ज्यादा बंधन इन्सान को कमजोर और मानसिक रूप से कुंठित बना देते है...और हद से ज्यादा खुला पन या नग्नता फ़ुहड़ता तो कहलाती है वरन इन्सान को पैशाचिक प्रवृति का बनने पर मजबूर कर देती है...

    सुनीता(शानू)

    जवाब देंहटाएं
  3. इसे ऐसे भी ले सकते हैं - पाराशर रुक्ष ब्रह्मज्ञानी हैं और वेदव्यास अनुभव मर्मज्ञ कवि. पाप और पुण्य न लायें बीच में!

    जवाब देंहटाएं
  4. मैं ज्ञानदत्त से सहमती व्यक्त करना चाहता हूँ, अगर आपत्ति न हो तो.

    जवाब देंहटाएं
  5. सुनीता जी बहुत बहुत आभार आपने अपनी बात कही, पाण्‍डेय जी एवं आचार्य जी धन्‍यवाद आपने भी मुझे मार्गदर्शन दिया ।

    इसे पढने वाले सभी से मेरा अनुरोध है कि अपनी राय मुझे अवश्‍य देवें यहां नही तो मुझे मेल कर देवें ।

    आप मुझे दूषित मानसिकता का व्‍यक्ति भी समझ सकते हैं किन्‍तु मैनें जो अनुभव किया पढा व देखा उसको ही व्‍यक्‍त कर रहा हूं हो सकता है मेरी सोंच विपरीत हो ?

    tiwari.sanjeeva@gmail.com

    जवाब देंहटाएं
  6. अपने तो उपर से निकल गई बात भैय्या!!
    ऐसी भारी भरकम बातें सामने आती है तो मेरी हाईट ही एकदम कम हो जाती है ना जाने क्यों और तब ये सब बातें मेरे सिर के उपर से ही निकल जाती है

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...