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दांडी मार्च-2 के दौरान अमरीका को कुछ अधिक बारीकी से और कुछ अधिक करीब से देखने का मौका इसलिए भी मिला कि पखवाड़े लंबी यह पदयात्रा शुरू होने के पहले एक दिन और खत्म होने के बाद तीन दिन मुझे एक साधारण सैलानी की तरह घूम ने का मौका मिला और अलग-अलग जगहों पर अलग- अलग बातों से सामना भी हुआ। पश्चिम के कुछ दूसरे विकसित देशों की तरह अमरीका में भी लोगों के मन में अपने निजी अधिकारों के लिए एक बड़ा चौकन्नापन है। किसी सार्वजनिक जगह पर रहते हुए भी कोई किस तरह अपने निजी दायरे को निजी मानकर उसमें किसी की दखल का कैसा विरोध करता है इसका एक-दो मामलों में मुझे अनुभव हुआ। फोटोग्राफी करते हुए बहुत हिचककर और झिझककर काम नहीं चलता, इसलिए एक-दो मौकों पर मैंने कुछ छूट लेकर कुछ लोगों की तस्वीरें खींचने की कोशिश की। सान फ्रांसिस्को के सबसे गहमागहमी वाले इलाके के एक फुटपाथ पर एक नौजवान लडक़ी एक लडक़े के साथ चली आ रही थी। दोनों का हुलिया काफी रंगीन था, बाल, गहने, कपड़े सबकुछ बहुत अजीब से थे। इस लडक़ी के कंधे पर एक बिल्ली बैठी हुई थी और सबकुछ एक बहुत अच्छी , दिलचस्प तस्वीर का सामान दिख रहा था। मैंने अपने तैयार कैमरे से तुरंत ही उसकी तस्वीर खींची और उसने मुझे रोककर इसका विरोध किया और कहा कि मैंने उसकी इजाजत के बिना उसकी तस्वीर खींची है। अब कुछ झिझकते हुए मैंने उससे कहा कि उसकी बिल्ली की वजह से मैंने यह तस्वीर खींची थी, और अगर उसे आपत्ति हो तो मैं यह तस्वीर मिटा देता हूं। उसने मेरे कैमरे में देखते हुए यह तस्वीर मिटवाकर दम लिया और बात वहीं खत्म हुई। लेकिन एक बगीचे में बच्चों के झूलों सरीखे सामानों के बीच खेलते हुए बहुत से बचचों की तस्वीरें मैं लेना चाहता था। पास ही एक बेंच पर तीन महिलाएं बैठकर उन बचचों की निगरानी कर रही थीं इसलिए मैंने काफी देर इंतजार करने के बाद उनसे पूछा कि क्या मैं इन बचचों की तस्वीरें ले सकता हूं। उनमें से एक महिला ने कहा कि वह इसे पसंद नहीं करेगी। उसके शब्द थे- आई वोंट बी कम्फर्टेबल। लेकिन ऐसे ही एक दूसरे बगीचे में एक दूसरी महिला से जब मैंने उसके बचचे के साथ तस्वीरें लेने के बारे में पूछा तो उसने विनम्रता से इसकी वजह पूछी। जब मैंने कहा कि मैं हिन्दुस्तान से आया हुआ एक अखबारनवीस हूं तो उसने हामी भर दी। इसके बाद इस महिला से बहुत अच्छी बातचीत होती रही और फिर उसने अपने कैमरे से हम लोगों की तस्वीरें भी खींची और हमारे साथ खड़े रहकर अपनी तस्वीरें भी खिंचवाई।
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एक बड़ा ही दिलचस्प मामला इसी न्यूयार्क में अकेले घूमते हुए सामने आया जब वहां पुलिस के तीन अफसर अफ्रीकी नस्ल के एक नौजवान को फुटपाथ पर ही हथकड़ी डालकर उसके सामानों की तलाशी ले रहे थे। इसकी पिछली रात ही सडक़ों पर घूमते हुए ऐसा ही एक नजारा देखने मिला था और मेरे मेजबान आनंद ने बताया था कि नशे के सामानों की तलाश में पुलिस कई बार ऐसी जांच करती है। उस वक्त दो लोगों को दीवार के सहारे खड़ा करके पुलिस उनकी तलाशी ले रही थी और उनके साथ की दो लड़कियां अपने मोबाईल फोन पर इसकी वीडियो रिकॉर्डिंग कर रही थीं। अगली दोपहर मैं अकेले घूम रहा था और ऐसा ही नजारा फिर देखने मिला लेकिन इस बार इस अफ्रीकन नौजवान को हथकड़ी लगाई जा चुकी थी और उसके साथ आधा दर्जन लोग थे जो कि वीडियो रिकॉर्डिंग भी कर रहे थे। जब मैं इस पूरे नजारे की तस्वीरें लेने लगा तो इस टोली में शामिल एक गोरी लडक़ी ने मेरा विरोध किया और कहा कि मैं इस तरह फोटो नहीं ले सकता। जब मैंने कहा कि यह तो एक सार्वजनिक जगह है और यह खुली हुई पुलिस कार्रवाई चल रही है तो उसका कहना था कि यह पुलिस का रंगभेद चल रहा है और काले या अश्वेत लोगों को रोज ही ऐसी प्रताडऩा झेलनी पड़ती है। मैंने उससे कहा कि मैं हिन्दुस्तान से आया हूं और ऐसे रंगभेद को अच्छी तरह समझता हूं और ऐसे भेदभाव का विरोधी भी हूँ , और इसीलिए यह तस्वीर ले रहा हूं तो वह शांत हुई और फिर अमरीकी पुलिस की रंगभेदी ज्यादती के बारे में बताने लगी।
उसकी बातों से मुझे यूनियन स्क्वेयर पर बिकते हुए कुछ टी-शर्ट याद आए। न्यूयार्क के इस सबसे जिंदादिल इलाके में सडक़ किनारे बहुत से स्थानीय आदिवासी (रेड इंडियंस) अपने नारों के टी-शर्ट बेचते दिखते हैं। उन पर बनी तस्वीरें आधी सदी से चली आ रही हैं और उन पर किसी का कॉपीराईट भी नहीं है इसलिए मैंने बिना इजाजत ही चुपचाप कुछ तस्वीरें खींच लीं। इनमें अमरीका की सरकारों के खिलाफ वहां के मूल निवासियों की नाराजगी के नारे थे और मुझे इस बात का कोई अंदाज नहीं है कि ये नारे वहां की आज की हकीकत है या फिर ये एक राजनीतिक बेचैनी की वजह से एक आकर्षक और बिकाऊ नारे के रूप में टी-शर्ट पर हैं। इनमें वहां की सरकार को आतंकी करार देते हुए रेड इंडियंस को ही आंतरिक सुरक्षा रखने वाला बताया गया है और एक दूसरे टी-शर्ट पर वहां का एक दूसरा लोकप्रिय नारा था- हां, आप सरकार पर भरोसा कर सकते हैं,... किसी इंडियन (मूल निवासी) से पूछकर देखें। इसी तरह कुछ दूसरे टी-शर्ट थे जिन पर अमरीका की उस विख्यात पहाड़ी, माऊंट रशमोर, की तस्वीर छापी गई थी जिस पर वहां के प्रमुख राष्ट्रपतियों के चेहरे चट्टानों पर तराशे गए हैं। इस टी-शर्ट पर इस पहाड़ी के सामने वहां के मूल निवासी खड़े हुए हैं और इनके बारे में यह नारा लिखा गया है- इस देश के असली पितामह। ऐसी कुछ तस्वीरों को मुझे बिना इजाजत ही लेना पड़ा क्योंकि कोई मौलिक डिजाइन न होते हुए भी ऐसे दुकानदार तस्वीरें लेने देना पसंद नहीं कर रहे थे। अमरीकी लोगों में बेतकल्लुफी, यूरोपीय लोगों के मुकाबले काफी अधिक है। लेकिन अपनी निजी बातों को निजी रखने को लेकर वे काफी चौकस रहते हैं और यह पसंद करते हैं कि लोग किसी भी तरह की दखल की सोचने के भी पहले उनसे इजाजत ले लें।
उसकी बातों से मुझे यूनियन स्क्वेयर पर बिकते हुए कुछ टी-शर्ट याद आए। न्यूयार्क के इस सबसे जिंदादिल इलाके में सडक़ किनारे बहुत से स्थानीय आदिवासी (रेड इंडियंस) अपने नारों के टी-शर्ट बेचते दिखते हैं। उन पर बनी तस्वीरें आधी सदी से चली आ रही हैं और उन पर किसी का कॉपीराईट भी नहीं है इसलिए मैंने बिना इजाजत ही चुपचाप कुछ तस्वीरें खींच लीं। इनमें अमरीका की सरकारों के खिलाफ वहां के मूल निवासियों की नाराजगी के नारे थे और मुझे इस बात का कोई अंदाज नहीं है कि ये नारे वहां की आज की हकीकत है या फिर ये एक राजनीतिक बेचैनी की वजह से एक आकर्षक और बिकाऊ नारे के रूप में टी-शर्ट पर हैं। इनमें वहां की सरकार को आतंकी करार देते हुए रेड इंडियंस को ही आंतरिक सुरक्षा रखने वाला बताया गया है और एक दूसरे टी-शर्ट पर वहां का एक दूसरा लोकप्रिय नारा था- हां, आप सरकार पर भरोसा कर सकते हैं,... किसी इंडियन (मूल निवासी) से पूछकर देखें। इसी तरह कुछ दूसरे टी-शर्ट थे जिन पर अमरीका की उस विख्यात पहाड़ी, माऊंट रशमोर, की तस्वीर छापी गई थी जिस पर वहां के प्रमुख राष्ट्रपतियों के चेहरे चट्टानों पर तराशे गए हैं। इस टी-शर्ट पर इस पहाड़ी के सामने वहां के मूल निवासी खड़े हुए हैं और इनके बारे में यह नारा लिखा गया है- इस देश के असली पितामह। ऐसी कुछ तस्वीरों को मुझे बिना इजाजत ही लेना पड़ा क्योंकि कोई मौलिक डिजाइन न होते हुए भी ऐसे दुकानदार तस्वीरें लेने देना पसंद नहीं कर रहे थे। अमरीकी लोगों में बेतकल्लुफी, यूरोपीय लोगों के मुकाबले काफी अधिक है। लेकिन अपनी निजी बातों को निजी रखने को लेकर वे काफी चौकस रहते हैं और यह पसंद करते हैं कि लोग किसी भी तरह की दखल की सोचने के भी पहले उनसे इजाजत ले लें।
क्रमश: ...
सुनील कुमार
सुनील कुमार
बड़ा ही रोचक यात्रा वृत्तान्त।
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