गांधी की टी-शर्ट तले बस्ती जलाने के गौरव से भरा दिल!


पिछले दिनों राजघाट से गाजा तक के कारवां में साथ रहे  दैनिक छत्‍तीसगढ़ समाचार पत्र के संपादक श्री सुनील कुमार जी का संस्‍मरण हमने अपने पाठकों के लिए छत्‍तीसगढ़ से साभार क्रमश: प्रकाशित किया था. महत्‍वपूर्ण एवं विश्‍व भर में चर्चित कारवां के बाद सुनील कुमार जी, अमरीका के कैलिफोर्निया राज्य में भारतीय मूल के लोगों द्वारा गांधी की 1930 की ऐतिहासिक दांडी-यात्रा की याद में निकाली गई 240 मील की पदयात्रा में भी शामिल हुए। इस पदयात्रा का संस्‍मरणात्‍मक विवरण दैनिक छत्‍तीसगढ़ के अप्रैल अंकों में प्रकाशित हुआ है. टैक्‍स्‍ट आधारित सर्च इंजनों में चाणक्‍य पीडीएफ समाचार पत्रों के आलेखों की अनुपलब्‍धता के कारण हम इस आलेख को ब्‍लॉगर दस्‍तावेजीकरण करते हुए, यहॉं क्रमश: पुन: प्रकाशित कर रहे हैं। प्रस्‍तुत है छठवीं किस्त ....


गांधी की सोच को लेकर चल रहे दांडी मार्च-2 में तमाम बातें गांधी वादी ईमानदारी और पारदर्शिता की चलती थीं और इसमें शामिल लोग ऐसे ही थे जो कि भारत के सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार देखकर थके हुए थे और भड़ास से भरे हुए थे। ऐसी बातों के बीच जब साथ चल रहे एक सज्‍जन ने गांधी के नारे लगाने के साथ-साथ बहुत साम्प्रदायिकता की बातें मुझसे कहीं तो थोड़ी सी हैरानी हुई। गुजरात से आकर अमरीका में बसे इस सज्‍जन ने मेरे नाम से ही मेरे धर्म का अंदाज लगा लिया था और मुझसे यह पूछने की जहमत भी उन्‍होंने नहीं की कि साम्प्रदायिकता या दूसरे धर्मों के बारे में मेरा क्‍या सोचना है। दरअसल हिन्‍दुस्‍तान के बाहर बसे हुए हिन्‍दुओं में से एक बड़ा तबका ऐसा है जो आक्रामक हिन्‍दुत्‍व को पसंद करता है और जिसके लिए भारत के भीतर धर्म निरपेक्षता एक कम्युनिस्ट सोच से अधिक कुछ नहीं है। देश से परे रहते हुए धर्म या ईश्वर पर आस्था लोगों को जोडक़र रखने का काम करती है और जगह-जगह मंदिर या ऐसे ही दूसरे आस्था केंद्र सामुदायिक केंद्रों की तरह काम भी करते हैं। इसलिए अमरीका के अपने ढाई बरस पहले के अनुभव और इस बार के अनुभव, दोनों के आधार पर मैं यह सोचता हूं कि वहां बसे हिन्‍दुओं का अधिक तर हिस्सा हिन्‍दुत्‍व को लेकर भारत में बसे आम हिन्‍दू के मुकाबले कुछ अधिक संवेदनशील और सक्रिय है। शायद अपनी जमीन से दूर रहते हुए लोगों को धर्म का महत्‍व कुछ अधिक लगता है। तो मैं बात कर रहा था कि गुजरात से अमरीका जाकर बसे हुए एक गुजराती सज्‍जन की जो कि इस दांडी मार्च में कुछ वक्त हमारे साथ रहे। उन्‍हें अच्‍छी तरह मालूम था कि मैं अखबारनवीस हूं, और साम्प्रदायिकता को लेकर मेरी क्‍या सोच है, उसके बाद भी वे अगर खुलासे से मुझे गुजरात की घटनाओं के बारे में बताते रहे, तो मेरा मानना है कि उसे लिखने में कोई नैतिकता भी मेरे आड़े नहीं आती।

कई दशक पहले के गुजरात के अहमदाबाद में एक साम्प्रदायिक तनाव के चलते उन्‍होंने जो किया उसका व्‍यौरा वे मुझे बहुत ही फख्र के साथ दे रहे थे। उन्‍होंने कहा कि उनके इलाके के बगल में मुस्लिम बस्ती थी और ऐसी आशंका थी कि मुसलमान इस मुहल्‍ले में आकर हिन्‍दू मंदिरों पर हमला कर सकते हैं। इस पर उन्‍होंने हिंदू मुहल्‍ले के और लोगों के साथ मिलकर, पुराने कपड़ों को लकड़ी पर बांधकर मशाल बनाई और मुस्लिम मुहल्‍ले में आग लगा दी। मैं उनका यह बखान सुनकर हक्का-बक्का रह गया। फिर मैंने पूछा कि क्‍या उसमें कुछ लोग मारे भी गए, तो उनका बड़ा साफ-साफ कहना था कि जब पूरी बस्ती जल गई तो कई लोगों को तो मरना ही था। मैंने सरकार की किसी कार्रवाई के बारे में पूछा तो उनका कहना था कि मुख्‍यमंत्री वहां पर आए और उन्‍होंने कहा कि ये आप लोगों ने क्‍या कर दिया? उन्‍होंने कहा कि विधानसभा में जवाब तो उन्‍हें देना होगा।
कैलिफोर्निया की सडक़ों पर इस गांधी यात्रा में पैदल चलते हुए उन्‍होंने आगे मुझे बताया कि उन लोगों ने मुख्‍यमंत्री से यह कहा कि जवाब देना उनका काम है और अगर वे यह बस्ती नहीं जलाते तो वे लोग आकर मंदिरों पर हमला करने वाले थे। इसके बाद जब इस गांधी मार्च के समापन समारोह में भारत से किसी प्रमुख व्यक्ति से वीडियो कांफ्रेंस की संभावना टटोली जा रही थी तो इन्‍होंने राय दी कि गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेन्‍द्र मोदी से बात करनी चाहिए क्‍योंकि वे एक ईमानदार सरकार के लिए जाने जाते हैं। न चाहते हुए भी मुझे इस आयोजन के इंतजाम की चर्चा में हिस्सा लेना पड़ा क्‍योंकि अगर यह दांडी यात्रा नरेन्‍द्र मोदी का इस तरह से सम्मान करने जा रही थी तो फिर वहां मेरा क्‍या काम रह जाता। मैंने सबके बीच ही कड़ा विरोध करते हुए कहा कि नरेन्‍द्र मोदी गुजरात की अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक तरह-तरह से अपनी सरकार के काम को लेकर कटघरे में हैं और उन पर देश के सबसे भयानक प्रायोजित साम्प्रदायिक दंगों के दाग भी लगे हुए हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में अगर ऐसे लोगों को महिमामंडित किया गया तो उससे देश का एक बड़ा तबका इस आंदोलन से ही दूर हो जाएगा।

 दांडी मार्च-2 के आयोजकों को मेरा तर्क ठीक लगा और मोदी पर चर्चा खत्‍म हो गई। लेकिन अब तक यह सवाल मेरे सामने खड़ा है कि गांधी के छाप वाली टी-शर्ट पहनकर, गांधी की दांडी यात्रा के तर्ज पर हो रही इस यात्रा में ऐसे घोर साम्प्रदायिक और हिंसक लोग क्‍यों शामिल हो रहे हैं? हो सकता है कि इस कड़े सफर के बहुत से साथियों को मेरा यह लिखना नागवार गुजरे और वे शायद यह मानें कि ऐसी कड़वी चर्चा न करना इस आंदोलन के भविष्य के लिए बेहतर होता। लेकिन फिर मैं यह सोचता हूं कि अपने भीतर के अखबारनवीस को एक बार मैं मनाकर चुप भी कर लूं, तो भी गांधी की सोच के मुताबिक तो मुझे अपने से रूबरू की गईं ऐसी भयानक बातों की चर्चा तो कर ही लेनी चाहिए। अगर हमारे बीच ऐसे लोग हैं तो या तो अपने भीतर की हिंसा और साम्प्रदायिकता से आजादी पा लें, या फिर भ्रष्टाचार से आजादी का यह आंदोलन ऐसे लोगों से आजादी पा ले। मैंने आयोजकों को यह भी सुझाया कि अगर गांधी के नाम पर कोई भी कार्यक्रम करना है तो उससे किसी भी तरह की साम्प्रदायिकता को दूर रखना ही ईमानदारी होगी। लेकिन आज की दुनिया में जो लोग आर्थिक सफलता और संपन्नता को ही सरकार या किसी राज्‍य की अकेली खूबी मानते हैं, उनके बीच नरेन्‍द्र मोदी खासे सफल हैं। लेकिन ऐसे लोगों में मैं अभी किसी गैरहिंदू से वहां नहीं मिला था। मोदी के वार के शिकार जो लोग हैं, उनके हमबिरादरी लोगों से अगर बात हुई होती तो हो सकता है कि कुछ और सुनने-समझने मिलता।


इस पदयात्रा के पहले कुछ दिनों में ही एक सुबह जब स्कूल की उम्र वाली एक लडक़ी अपने सिर पर एक कपड़े को हिजाब की तरह बांधकर साथ चल रही थी तो उसके आसपास दाढ़ी वाले एक सज्‍जन देखकर यह अंदाज लगाना मेरे लिए आसान था कि वे शायद मुस्लिम हैं। साथ चलते-चलते इस बच्‍ची से मैंने उसके बारे में पूछा, उसके मजहब, उसके हिजाब के बारे में पूछा और यह बताया कि मैं पिछले दिनों किस तरह एक कारवां में हिन्‍दुस्‍तान से फिलीस्तीन तक गया था और किस तरह कुछ हफ्ते लगातार मुस्लिम देशों में रहना हुआ। साथ चलते-चलते उसके पिता भी उत्‍सुकता से मेरी बातों को सुनते रहे और फिर बातचीत में शरीक हुए। उन्‍हें गाजा कारवां के बारे में जानकर बहुत हैरानी हुई और वे लगातार सोचते रहे कि किस तरह अमरीका के कुछ मुस्लिम संगठनों के साथ वे मुझे एक बैठक में बुला सकें और वहां अमरीकी मुस्लिम मेरी बात सुन सकें।

मैं पिछले कुछ दिनों से इस पदयात्रा के साथ-साथ कई मंदिरों में जा चुका था और आगे भी मंदिरों में जाना तय था इसलिए मुस्लिमों की एक बैठक में जाने से मुझे बहुत सी नई जानकारी मिल सक ती थी । लेकिन हम हर दिन एक नए शहर में थे, रोज बहुत सुबह से लेकर देर शाम तक लगातार पैदल चलते थे इसलिए ऐसी कोई बैठक हो नहीं पाई। हमारे साथ चल रहे लगभग सभी पदयात्री साम्प्रदायिकता से बहुत दूर थे और गांधी की सोच पर अमल कर रहे थे। लेकिन बीच-बीच में जब कभी किसी बैठक में या बहस में जब कुछ लोग उग्र हिंदुत्‍व की सोच वाले निकल आते थे तो उस उग्रता से बहस करने वाला मैं लगभग अकेला पड़ जाता था। लोगों की नजरों में मुस्लिम समाज के कुछ अपराधियों द्वारा किए गए गोधरा कांड और मोदी सरकार द्वारा करवाए गए दंगों के बीच कोई अधिक फर्क नहीं था, बल्कि कोई फर्क ही नहीं था। हिंसा कुछ अपराधी करें, या संविधान की शपथ लेने वाली सरकार, इसके बीच कोई फर्क लोगों की नजरों में नहीं था। लेकिन यह हाल सिर्फ अमरीका में बसे हुए लोगों का ही नहीं है, हिन्‍दुस्‍तान में भी आम हिंदुओं में से बहुत से लोगों की सोच ऐसी ही है। दरअसल इंसाफ, लोकतंत्र और जिंदगी के बाकी बहुत से महीन पहलुओं को सोचने का रिवाज हिन्‍दुस्‍तान में आम लोगों के बीच नहीं सा है।

क्रमश: ....

सुनील कुमार 

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुनील कुमार जी एवं आपको बधाई .

    जवाब देंहटाएं
  2. dharm ko lekar aksar vevajah hi jang chhid jaati ,achchha hua ki aapne ise sambhalne ki koshish ki .badhai aapko

    जवाब देंहटाएं
  3. On Buzz -
    Amitabh Mishra - यदि कटघरे में खड़े लोगों से परेशानी होने के कारण नरेन्द्र मोदी के महिमामंडन पर लेखक को आपत्ति है तो बिनायक सेन जैसे कटघरे में खड़े लोगों को पंचवर्षीय योजना की कार्यसमिति में लिया जाना उन्हें कैसे पचता है? मैं स्पष्ट कर दूँ कि न तो मैं कट्टर हिंदूवादी हूँ, न मोदी का समर्थक, पर दोहरे मापदंडों का मैं सदा विरोधी रहूँगा.

    Sanjeet Tripathi - amitabh ji ne bahut hi marke ki bat kahi hai, unse pure taur par sahmat hun.

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...