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कई दशक पहले के गुजरात के अहमदाबाद में एक साम्प्रदायिक तनाव के चलते उन्होंने जो किया उसका व्यौरा वे मुझे बहुत ही फख्र के साथ दे रहे थे। उन्होंने कहा कि उनके इलाके के बगल में मुस्लिम बस्ती थी और ऐसी आशंका थी कि मुसलमान इस मुहल्ले में आकर हिन्दू मंदिरों पर हमला कर सकते हैं। इस पर उन्होंने हिंदू मुहल्ले के और लोगों के साथ मिलकर, पुराने कपड़ों को लकड़ी पर बांधकर मशाल बनाई और मुस्लिम मुहल्ले में आग लगा दी। मैं उनका यह बखान सुनकर हक्का-बक्का रह गया। फिर मैंने पूछा कि क्या उसमें कुछ लोग मारे भी गए, तो उनका बड़ा साफ-साफ कहना था कि जब पूरी बस्ती जल गई तो कई लोगों को तो मरना ही था। मैंने सरकार की किसी कार्रवाई के बारे में पूछा तो उनका कहना था कि मुख्यमंत्री वहां पर आए और उन्होंने कहा कि ये आप लोगों ने क्या कर दिया? उन्होंने कहा कि विधानसभा में जवाब तो उन्हें देना होगा।
कैलिफोर्निया की सडक़ों पर इस गांधी यात्रा में पैदल चलते हुए उन्होंने आगे मुझे बताया कि उन लोगों ने मुख्यमंत्री से यह कहा कि जवाब देना उनका काम है और अगर वे यह बस्ती नहीं जलाते तो वे लोग आकर मंदिरों पर हमला करने वाले थे। इसके बाद जब इस गांधी मार्च के समापन समारोह में भारत से किसी प्रमुख व्यक्ति से वीडियो कांफ्रेंस की संभावना टटोली जा रही थी तो इन्होंने राय दी कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से बात करनी चाहिए क्योंकि वे एक ईमानदार सरकार के लिए जाने जाते हैं। न चाहते हुए भी मुझे इस आयोजन के इंतजाम की चर्चा में हिस्सा लेना पड़ा क्योंकि अगर यह दांडी यात्रा नरेन्द्र मोदी का इस तरह से सम्मान करने जा रही थी तो फिर वहां मेरा क्या काम रह जाता। मैंने सबके बीच ही कड़ा विरोध करते हुए कहा कि नरेन्द्र मोदी गुजरात की अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक तरह-तरह से अपनी सरकार के काम को लेकर कटघरे में हैं और उन पर देश के सबसे भयानक प्रायोजित साम्प्रदायिक दंगों के दाग भी लगे हुए हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में अगर ऐसे लोगों को महिमामंडित किया गया तो उससे देश का एक बड़ा तबका इस आंदोलन से ही दूर हो जाएगा।
दांडी मार्च-2 के आयोजकों को मेरा तर्क ठीक लगा और मोदी पर चर्चा खत्म हो गई। लेकिन अब तक यह सवाल मेरे सामने खड़ा है कि गांधी के छाप वाली टी-शर्ट पहनकर, गांधी की दांडी यात्रा के तर्ज पर हो रही इस यात्रा में ऐसे घोर साम्प्रदायिक और हिंसक लोग क्यों शामिल हो रहे हैं? हो सकता है कि इस कड़े सफर के बहुत से साथियों को मेरा यह लिखना नागवार गुजरे और वे शायद यह मानें कि ऐसी कड़वी चर्चा न करना इस आंदोलन के भविष्य के लिए बेहतर होता। लेकिन फिर मैं यह सोचता हूं कि अपने भीतर के अखबारनवीस को एक बार मैं मनाकर चुप भी कर लूं, तो भी गांधी की सोच के मुताबिक तो मुझे अपने से रूबरू की गईं ऐसी भयानक बातों की चर्चा तो कर ही लेनी चाहिए। अगर हमारे बीच ऐसे लोग हैं तो या तो अपने भीतर की हिंसा और साम्प्रदायिकता से आजादी पा लें, या फिर भ्रष्टाचार से आजादी का यह आंदोलन ऐसे लोगों से आजादी पा ले। मैंने आयोजकों को यह भी सुझाया कि अगर गांधी के नाम पर कोई भी कार्यक्रम करना है तो उससे किसी भी तरह की साम्प्रदायिकता को दूर रखना ही ईमानदारी होगी। लेकिन आज की दुनिया में जो लोग आर्थिक सफलता और संपन्नता को ही सरकार या किसी राज्य की अकेली खूबी मानते हैं, उनके बीच नरेन्द्र मोदी खासे सफल हैं। लेकिन ऐसे लोगों में मैं अभी किसी गैरहिंदू से वहां नहीं मिला था। मोदी के वार के शिकार जो लोग हैं, उनके हमबिरादरी लोगों से अगर बात हुई होती तो हो सकता है कि कुछ और सुनने-समझने मिलता।
इस पदयात्रा के पहले कुछ दिनों में ही एक सुबह जब स्कूल की उम्र वाली एक लडक़ी अपने सिर पर एक कपड़े को हिजाब की तरह बांधकर साथ चल रही थी तो उसके आसपास दाढ़ी वाले एक सज्जन देखकर यह अंदाज लगाना मेरे लिए आसान था कि वे शायद मुस्लिम हैं। साथ चलते-चलते इस बच्ची से मैंने उसके बारे में पूछा, उसके मजहब, उसके हिजाब के बारे में पूछा और यह बताया कि मैं पिछले दिनों किस तरह एक कारवां में हिन्दुस्तान से फिलीस्तीन तक गया था और किस तरह कुछ हफ्ते लगातार मुस्लिम देशों में रहना हुआ। साथ चलते-चलते उसके पिता भी उत्सुकता से मेरी बातों को सुनते रहे और फिर बातचीत में शरीक हुए। उन्हें गाजा कारवां के बारे में जानकर बहुत हैरानी हुई और वे लगातार सोचते रहे कि किस तरह अमरीका के कुछ मुस्लिम संगठनों के साथ वे मुझे एक बैठक में बुला सकें और वहां अमरीकी मुस्लिम मेरी बात सुन सकें।
इस पदयात्रा के पहले कुछ दिनों में ही एक सुबह जब स्कूल की उम्र वाली एक लडक़ी अपने सिर पर एक कपड़े को हिजाब की तरह बांधकर साथ चल रही थी तो उसके आसपास दाढ़ी वाले एक सज्जन देखकर यह अंदाज लगाना मेरे लिए आसान था कि वे शायद मुस्लिम हैं। साथ चलते-चलते इस बच्ची से मैंने उसके बारे में पूछा, उसके मजहब, उसके हिजाब के बारे में पूछा और यह बताया कि मैं पिछले दिनों किस तरह एक कारवां में हिन्दुस्तान से फिलीस्तीन तक गया था और किस तरह कुछ हफ्ते लगातार मुस्लिम देशों में रहना हुआ। साथ चलते-चलते उसके पिता भी उत्सुकता से मेरी बातों को सुनते रहे और फिर बातचीत में शरीक हुए। उन्हें गाजा कारवां के बारे में जानकर बहुत हैरानी हुई और वे लगातार सोचते रहे कि किस तरह अमरीका के कुछ मुस्लिम संगठनों के साथ वे मुझे एक बैठक में बुला सकें और वहां अमरीकी मुस्लिम मेरी बात सुन सकें।
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क्रमश: ....
सुनील कुमार
सुनील कुमार जी एवं आपको बधाई .
जवाब देंहटाएंdharm ko lekar aksar vevajah hi jang chhid jaati ,achchha hua ki aapne ise sambhalne ki koshish ki .badhai aapko
जवाब देंहटाएंआपकी कोशिशों को बधाई विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
जवाब देंहटाएंOn Buzz -
जवाब देंहटाएंAmitabh Mishra - यदि कटघरे में खड़े लोगों से परेशानी होने के कारण नरेन्द्र मोदी के महिमामंडन पर लेखक को आपत्ति है तो बिनायक सेन जैसे कटघरे में खड़े लोगों को पंचवर्षीय योजना की कार्यसमिति में लिया जाना उन्हें कैसे पचता है? मैं स्पष्ट कर दूँ कि न तो मैं कट्टर हिंदूवादी हूँ, न मोदी का समर्थक, पर दोहरे मापदंडों का मैं सदा विरोधी रहूँगा.
Sanjeet Tripathi - amitabh ji ne bahut hi marke ki bat kahi hai, unse pure taur par sahmat hun.