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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

छत्तीसगढ : संदर्भों में आत्ममुग्धता का अवलोकन - 5

पूर्व अंश : छत्तीसगढ : संदर्भों में आत्ममुग्धता का अवलोकन - 1- 2 - 3- 4 (अंतिम किश्त) कला व संस्कृति के विकास में हमारे लोक कलाकारों नें उल्ले खनीय कार्य किये हैं इसके नेपथ्य‍ में अनेक मनीषियों नें सहयोग व प्रोत्साहन दिया है किन्तु वर्तमान में इसके विकास की कोई धारा स्पष्ट नजर नहीं आती जबकि हमारी संस्कृति की सराहना विदेशी करते नहीं अधाते, जापान व जर्मनी के लोग हमारे पंडवानी का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं और हम स्वयं थोथी अस्मिता का दंभ भरते हुए अपनी लोक शैली तक को बिसराते जा रहे हैं । शासन के द्वारा विभिन्न मेले मडाईयों व उत्सवों का आयोजन कर इसे जीवंत रखने का प्रयास किया जा रहा है किन्तु हमें इसे अपने दिलों में जीवंत रखना है । डॉ. हीरालाल शुक्ल जी इस संबंध में गहराते संकट को इस प्रकार व्यक्त करते हैं - ’ रचनात्मकता के नाम पर आज जो हम अपने बच्चों को सौंप रहे हैं, वह सृजन क्षमता नहीं, पश्चिम की टोकरी में भरा हुआ कबाड है, जिसको आधुनिक बाजार किशोर संवेदनाओं को उत्तेजित कर संस्कृति के नाम पर बेंच रहा है । कहीं ऐसा न हो कि छत्तीसगढी नाचा सीखने के लिए हमें पश्चिम के किसी व

छत्तीसगढ : संदर्भों में आत्ममुग्धता का अवलोकन - 4

पूर्व अंश : छत्तीसगढ : संदर्भों में आत्ममुग्धता का अवलोकन - 1 2 3 हमें गर्व है कि हमारी भाषा को शासन नें भी सम्मान दिया और इसे संवैधानिक मान्यता प्रदान की । छत्तीगसगढी भाषा पूर्व से ही समृद्ध भाषा थी अब इसे संवैधानिक मान्यता मिलने के बाद निश्चित ही इसके विकास के लिए शासन द्वारा समुचित ध्यान दिया जायेगा एवं हमारी भाषा सुदृढ होगी । वैसे छत्तीसगढी भाषा संपूर्ण छत्तीसगढ में बोली जाने वाली विभिन्न जनजातीय भाषाओं एवं हिन्दी का एक मिलाजुला रूप है यह गुरतुर बोली है । छत्तीसगढ की भाषा एवं भाषा परिवार पर डॉ. हीरालाल शुक्ल कहते हैं - ’ छत्तीसगढ के तीन भाषा परिवारों की लगभग दो दर्जन से भी अधिक भाषाओं में भावों की रसधार सर्वत्र समभाव से बहती है । यहां की आर्यभाषाओं के अंतर्गत छत्तीसगढी, सदरी, भथरी तथा हल्बीए आदि बोलियां सम्मिलित हैं । द्रविड परिवार के अंतर्गत कुडुख, परजी तथा गोंडवाना-वर्ग की चार बोलियां शामिल हैं । मुंडा-परिवार के अंतर्गत र्कोकू, कोरवा, गदबा, हो, खडिया, संथाली, जुआंग, निहाली, मुडा आदि की अपनी ही बानगी है । इन बोलियों के लोकगीतों में अपने-अपने अंचलों की कुछ मौलिक वि

छत्तीसगढ : संदर्भों में आत्ममुग्धता का अवलोकन - 3

पूर्व अंश : छत्तीसगढ : संदर्भों में आत्ममुग्धता का अवलोकन - 1 2 जैसा कि पूर्व में ही कहा जा चुका है कि लोक गीत संस्कृति के अभिन्नि अंग हैं और हमारे इन्हीं गीतों में हमारी संस्कृति की स्पष्ट झलक नजर आती है । छत्तीसगढ में लोकगीतों की समृद्ध परंपरा कालांतर से लोक मानस के कंठ कठ में तरंगित है । भोजली, गौरा व जस गीत जैसे त्यौहारों पर गाये जाने लोक गीतों का अपना अपना महत्व है । समयानुसार यहां की वार्षिक दिनचर्या की झलक इन लोकगीतों में मुखरित होती है जिससे यहां की सामाजिक जीवन को परखा व समझा जा सकता है । वाचिक परंपरा के रूप में सदियों से यहां के किसान-मजदूर पारंपरिक लोकगीतों को गाते आ रहे हैं जिसमें प्यार है, चुहलबाजी है, शिक्षा है और समसामयिक जीवन का प्रतिबिम्ब भी । छत्तीसगढ के लोकगीतों में अन्य आदिवासी क्षेत्रों की तरह सर्वप्रमुख गाथा-महाकाव्य का अहम स्थान है जिसमें लोरिक चंदा, ढोला मारू, गोपीचंद, सरवन, भरथरी, आल्हा उदल, गुजरी गहिरिन, फुलबासन, बीरसिंग के कहिनी, कंवला रानी, अहिमन रानी, जय गंगा, पंडवानी आदि प्रमुख हैं । इसमें से हमारे पंडवानी को तीजन बाई और ऋतु वर्मा नें नई उंचाईयां

छत्तीसगढ : संदर्भों में आत्ममुग्धता का अवलोकन - 2 - छत्तीसगढी संस्कृति

पूर्व अंश : छत्तीसगढ : संदर्भों में आत्ममुग्धता का अवलोकन - 1 छत्तीसगढ का गौरव इतिहास वैदिक काल से समृद्ध रहा है, हमारे पुरातात्विक धरोहर इसके साक्षी हैं । हमारे वैदिक साहित्यी में भी छत्तीसगढ नें अपने वैभव के कारण स्थान पाया है । स्वतंत्रता आन्दोलन एवं समाज सुधार के लिए वैचारिक क्रांति लाने में हमारे पितृ पुरूषों नें जो कार्य किये हैं उन्हीं के कारण हम सदियों से अपने स्वाभिमान को जीवंत रख पाये हैं । हमारे महापुरूषों के नाम एवं उनके योगदान को हम आज भी कृतज्ञता से याद करते हैं । छत्तीसगढ के पुरातत्व, इतिहास व साहित्य के संबंध में ढेरों तथ्यपरक व शोध लेख प्रस्तु करने वाले प्रो. अश्विनी केशरवानी जी अपने एक लेख में लिखते हैं ’छत्तीसगढ़ पुरातन काल से धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बिंदु रहा है। एक ओर जहां छत्तीसगढ़ प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक और भौतिक संपदाओं को अपने गर्भ में समेटकर अग्रणी है, वहीं दूसरी ओर संत-महात्माओं की या तो जन्म स्थली है, तपस्थली या फिर कर्मस्थली। ये किताबी ज्ञान के बुद्धि विलासी न होकर तत्व दर्शन के माध्यम से निरक्षरों के मन मस्तिष्क म

छत्तीसगढ : संदर्भों में आत्ममुग्धता का अवलोकन - 1

भौगोलिक दृष्टि से मैदानी एवं पठारी व कुछ हिस्‍सों में सतपुडा व मैकल श्रेणियों के पहाडों में फैला छत्‍तीसगढ भारत के हृदय स्‍थल पर स्थित प्राकृतिक रूप से सुरम्‍य प्रदेश है, यहां की प्राकृतिक संरचना से मुग्‍ध होकर अनेक साहित्‍यकारों नें इसकी महिमा को शव्‍द दिया है । सौंदर्यबोध एवं धरती की कृतज्ञता में छत्‍तीसगढ महतारी की महिमा गीतों एवं आलेखों को हम अपने दिलों में भारत गणराज्‍य की संपूर्णता के साथ बसाये हुए हैं, यही हमारे गौरव की निशानियां हैं और हमें अपने स्‍वाभिमान से जीने हेतु प्रेरित भी करती है । वसुधैव कुटुम्‍बकम व सबै भूमि गोपाल की के सर्वोच्‍च आदर्श से परिपूर्ण भारत देश के वासी होने के बावजूद कभी कभी हमें लगता है कि हम छत्‍तीसगढ - छत्‍तीसगढ का ‘हरबोलवा’ बोल बोलते हैं, इसकी महिमा गान बखान चारण की भांति नित करते हैं । इससे मेरे देश की संपूर्णता के अतिरिक्‍त अपना एक पृथक अस्तित्‍व के प्रदर्शन का स्‍वार्थ भी झलकता है । हमें अपने क्षेत्रीय अतीत पर गर्व होना ही चाहिए किन्‍तु बार बार उसे रटने से अन्‍य प्रदेश वाले ऐसे में हमारी वसुधैव कुटुम्‍बकम के सार्वभैमिक भाव पर प्रश्‍न चिन्‍ह लगाते ह

औकात जो भुलाये न बने

कल रायपुर के कोर्ट के गलियारे में पसीने से लथपथ काले कोट में लदे फदे गुजारने के बाद संजीत जी से बातें तय हुई कि कार्टून वॉच के श्री त्र्यंबक शर्मा जी को भी ब्लाग का लड्डू चखा दिया जाये सो हम दोपहर में रायपुर के मजेदार गर्मी का मजा लेते हुए संजीत जी के घर पहुचे और वहां से त्र्यंबक जी से बात कर त्रयंबक जी के घर पहुंचे । संजीत जी नें अपनी हिन्दी ब्लाग आबादी बढाने की प्रतिबद्धता को ध्यान में रखते हुए, त्र्यंबक जी को लगभग सभी आवश्यक जानकारी दी फिर हम अपने नगर यानी दुर्ग-भिलाई की ओर निकल पडे । रास्ते में ध्यान आया कि कुछ पारिवारिक मिलन भी हो जाये, क्योंकि मेरे परिवार के बहुतायत सदस्य रायपुर में ही रहते हैं रायपुर मेरा लगातार आना जाना लगा रहता है पर व्यावसायिक व्यस्तता की वजह से परिवार के लोगों से मिल नहीं पाता सो कल मैने रायपुर में ही निवासरत मेरे चाचा श्री के घर चला गया । वहां मेरी एक छोटी चचेरी बहन से मुलाकात हुई, सामाजिक कार्यक्रमों के दुआ-सलाम को यदि छोड दिया जाये तो मैनें लगभग 14 सालों बाद उसके पास एक घंटा बिताया । चर्चा के दौरान मेरी उस बहन की शादी का एक वाकया मुझे याद आ गया और मै

छत्तीसगढ़ में बनेगा देश का पहला कार्टून म्यूजियम : बी बी सी में कार्टूनिस्ट त्र्यंबक शर्मा का इंटरव्यू

छत्तीसगढ़ में बनेगा देश का पहला कार्टून म्यूजियम पिछले दिनों हमने छत्‍तीसगढ के ‍ कार्टूनिस्ट त्र्यंबक शर्मा जी की कार्टून पत्रिका ‘ कार्टून वाच ’ की लंदन में प्रदर्शनी के संबंध में जानकारी प्रस् ‍ तुत की थी । लंदन से उनके आने के बाद उनसे इस संबंध में कुछ और जानकारी प्राप्‍त हुई जिसे आपके लिये प्रस्‍तुत कर रहे हैं लंदन के नेहरू सेन्टर में कार्टून की प्रदर्शनी आयोजित कर लौटे कार्टूनिस्ट त्र्यम्बक शर्मा का मानना है कि कार्टून की भाषा एक ग्लोबल भाषा है बशर्ते वह बिना टिप्पणी के हो . उन्होंने कहा कि बिना टिप्पणी वाला कार्टून विश्व के किसी भी देश के किसी भी व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान ला सकता है . श्री शर्मा ने हमासे विशेष बातचीत में बताया कि देश की एक मात्र कार्टून पत्रिका के १२ वर्ष तक के सफल प्रकाशन के उपरांत उनकी कार्टून म्यूजियम की परिकल्पना भी शीघ्र साकार होते दिख रही है . उन्होंने बताया कि अभी देश में एक भी कार्टून म्यूजिय